Table of contents |
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जैव प्रक्रम (Life Process) क्या है? |
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जैव रासायनिक प्रक्रम (Bio-Chemical Process) किसे कहते हैं ? |
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पोषण (Nutrition) |
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श्वसन (Respiration) |
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मनुष्यों में वहन (Transportation in Human) : |
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शरीर की वे सभी क्रियाएँ जो शरीर को टूट-फुट से बचाती हैं और सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करती हैं जैव प्रक्रम कहलाती हैं |
जैव प्रक्रम में सम्मिलित प्रक्रियाएँ निम्नलिखित हैं :
1. पोषण (Nutrition)
2. श्वसन (Respiration)
3. वहन (Transportation)
4. उत्सर्जन (Excretion)
इन सभी प्रक्रियाओं में जीव बाहर से अर्थात बाह्य ऊर्जा स्रोत से उर्जा प्राप्त करता है और शरीर के अंदर ऊर्जा स्रोत से प्राप्त जटिल पदार्थों का विघटन या निर्माण होता है | जिससे शरीर के अनुरक्षण तथा वृद्धि के लिए आवश्यक अणुओं का निर्माण होता है | इसके लिए शरीर में रासायनिक क्रियाओं की एक श्रृंखला संपन्न होती है जिसे जैव रासायनिक प्रक्रम कहते हैं |
पोषण की प्रक्रिया (The process of Nutrition)
बाह्य ऊर्जा स्रोत से ऊर्जा ग्रहण करना (जटिल पदार्थ)
ऊर्जा स्रोत से प्राप्त जटिल पदार्थों का विघटन
जैव रासायनिक प्रक्रम से सरल उपयोगी अणुओं में परिवर्तन
ऊर्जा के रूप में उपभोग
पुन: विभिन्न जैव रासायनिक प्रक्रम का होना
नए जटिल अणुओं का निर्माण (प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया)
शरीर की वृद्धि एवं अनुरक्षण
अणुओं के विघटन की समान्य रासायनिक युक्तियाँ :
शरीर में अणुओं के विघटन की क्रिया एक रासायनिक युक्ति के द्वारा होती है जिसे चयापचय (Metabilism) कहते हैं |
उपापचयी क्रियाएँ जैवरासायनिक क्रियाएँ हैं जो सभी सजीवों में जीवन को बनाये रखने के लिए होती है |
उपापचयी क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं |
(i) उपचयन (Anabolism) : यह रचनात्मक रासायनिक प्रतिक्रियाओं का समूह होता है जिसमें अपचय की क्रिया द्वारा उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग सरल अणुओं से जटिल अणुओं के निर्माण में होता है | इस क्रिया द्वारा सभी आवश्यक पोषक तत्व शरीर के अन्य भागों तक आवश्यकतानुसार पहुँचाएँ जाते है जिससें नए कोशिकाओं या उत्तकों का निर्माण होता है |
(ii) अपचयन (Catabolism) : इस प्रक्रिया में जटिल कार्बनिक पदार्थों का विघटन होकर सरल अणुओं का निर्माण होता है तथा कोशिकीय श्वसन के दौरान उर्जा का निर्माण होता है |
जैव प्रक्रम के अंतर्गत निम्नलिखित प्रक्रम है जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं :
(1) पोषण (Nutrition)
(2) श्वसन (Respiration)
(3) वहन (Transportation)
(4) उत्सर्जन (Excretion)
1. पोषण (Nutrition) : सजीवों में होने वाली वह प्रक्रिया जिसमें कोई जीवधारी जैव रासायनिक प्रक्रम के द्वारा जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में परिवर्तित कर ऊर्जा प्राप्त करता है, और उसका उपयोग करता है, पोषण कहलाता है |
जैव रासायनिक प्रक्रम का उदाहरण :
(i) पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया
(ii) जंतुओं में पाचन क्रिया
पौधों में भोजन ग्रहण करने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है | इस प्रक्रिया में जीव अकार्बनिक स्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में सरल पदार्थ प्राप्त करते हैं | ऐसे जीव स्वपोषी कहलाते हैं | उदाहरण : हरे पौधे तथा कुछ जीवाणु इत्यादि |
एंजाइम (Enzyme) : जटिल पदार्थों के सरल पदार्थों में खंडित करने के लिए जीव कुछ जैव उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं जिन्हें एंजाइम कहते हैं |
पोषण के प्रकार (Types of Nutrition) :
पोषण दो प्रकार के होते है।
1. स्वपोषी पोषण (Autotrophic Mode of Nutrition) : स्वपोषी पोषण एक ऐसा पोषण है जिसमें जीवधारी जैविक पदार्थ (खाद्य) का संश्लेषण अकार्बनिक स्रोतो से स्वयं करते हैं। इस प्रकार के पोषण हरे पादप एवं स्वपोषी जीवाणु करते है।
उदाहरण : हरे पौधें और प्रकाश संश्लेषण करने वाले कुछ जीवाणु |
2. विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Mode of Nutrition) : पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपना भोजन अन्य स्रोतों से प्राप्त करता है | इसमें जीव अपना भोजन पादप स्रोत से प्राप्त करता है अथवा प्राणी स्रोतों से करता है |
उदाहरण : कवक, फंगस, मनुष्य, सभी जानवर, इत्यादि |
विषमपोषी पोषण तीन प्रकार के होते है।
(i) मृतपोषित पोषण (Saprophytic Nutrition) : पोषण की वह विधि जिसमें जीवधारी अपना पोषण मृत एवं क्षय (सडे - गले) हो रहे जैव पदार्थो से करते है। मृत जीवी पोषण कहलाता है | इस प्रकार के पोषण कवक एवं अधिकतर जीवाणुओ में होता हैं।
(ii) परजीवी पोषण (Parasitic Nutrition) : परजीवी पोषण पोषण की वह विधि है जिसमें जीव किसी अन्य जीव से अपना भोजन एवं आवास लेते है और उन्ही के पोषण स्रोत का अवशोषण करते हैं परजीवी पोषण कहलाता है |
इस प्रक्रिया में दो प्रकार के जीवों की भागीदारी होती है |
(i) पोषी (Host) : जिस जीव से खाद्य का अवशोषण परजीवी करते है उन्हें पोषी कहते हैं।
(ii) परजीवी (Parasite) : परजीवी वह जीव है जो पोषियों के शरीर में रहकर उनके ही भोजन और आवास का अवशोषण करते हैं | जैसे- मच्छरों में पाया जाने वाला प्लाजमोडियम, मनुष्य के आँत में पाया जाने वाला फीता कृमि, गोल कृमि, जू आदि जबकि पौधों में अमरबेल (cuscuta) |
(iii) प्राणीसमभोज अथवा पूर्णजांतविक पोषण (Holozoic Nutrition) : पोषण की बह विधि जिसमें जीव ऊर्जा की प्राप्ती पादप एवं प्राणी स्रोतो से प्राप्त जैव पदार्थो के अंर्तग्रहण एवं पाचन द्वारा की जाती हैं। अर्थात वह भोजन को लेता है पचाता है और फिर बाहर निकालता है | जैसे- मनुष्य, अमीबा एवं सभी जानवर |
अमीबा में पोषण (Nutrition in Amoeba): अमीबा भी मनुष्य की तरह ही पोषण प्राप्त करता है और शरीर के अन्दर पाचन करता है |
मनुष्य में पोषण (Nutrition in Human) : मनुष्य में पोषण प्राणीसमभोज विधि के द्वारा होता है जिसके निम्न प्रक्रिया है |
(i) अंतर्ग्रहण (Ingestion) : भोजन को मुँह में लेना |
(ii) पाचन (Digestion) : भोजन का पाचन करना |
(iii) अवशोषण (Absorption) : पचे हुए भोजन का आवश्यक पोषक तत्वों में रूपांतरण और उनका अवशोषण होना |
(iv) स्वांगीकरण (Assimilation) : अवशोषण से प्राप्त आवश्यक तत्व का कोशिका तक पहुँचना और उनका कोशिकीय श्वसन के लिए उपभोग होना |
(v) बहि:क्षेपण (Egestion) : आवश्यक तत्वों के अवशोषण के पश्चात् शेष बचे अपशिष्ट का शरीर से बाहर निकलना |
मनुष्य में पाचन क्रिया (Digestion In Human) :
(i) मुँह → भोजन का अंतर्ग्रहण
दाँत → भोजन का चबाना
जिह्वा → भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिलाना
लाला ग्रंथि → लाला ग्रंथि (salivary glands) स्रावित लाला रस या लार का लार एमिलेस एंजाइम की उपस्थिति में स्टार्च को माल्टोस शर्करा में परिवर्तित करना |
(ii) भोजन का ग्रसिका (Oesophagus) से होकर जाना → हमारे मुँह से अमाशय तक एक भोजन नली होती है जिसे ग्रसिका कहते है | इसमें होने वाली क्रमाकुंचन गति (peristalsis movement) से भोजन आमाशय तक पहुँचता है |
(iii) अमाशय (Stomach) → मनुष्य का अमाशय भी एक ग्रंथि है जो जठर रस/अमाशयिक रस (gastric juice) का स्राव करता है, यह जठर रस पेप्सिन जैसे पाचक रस, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और श्लेषमा आदि का मिश्रण होता है |
अमाशय में होने वाली क्रिया :
जठर रस
↓
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा अम्लीय माध्यम प्रदान करना
↓
भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोडना
↓
पेप्सिन द्वारा प्रोटीन का पाचन
↓
श्लेष्मा द्वारा अमाशय के आन्तरिक स्तर का अम्ल से रक्षा करना
(iv) क्षुद्रांत्र (Small Intestine) → क्षुद्रांत्र आहार नाल का सबसे बड़ा भाग है |
क्षुद्रांत्र तीन भागों से मिलकर बना है |
(i) ड्यूडीनम (Duodenum) : यह छोटी आँत का वह भाग है जो आमाशय से जुड़ा रहता है और आगे जाकर यह जिजुनम से जुड़ता है | आहार नल के इसी भाग में यकृत (liver) से निकली पित की नली (bile duct) कहते है ड्यूडीनम से जुड़ता है और साथ-ही साथ इसी भाग में अग्नाशय (Pancrease) भी जुड़ता है |
क्षुद्रांत्र का यह भाग यकृत तथा अग्नाशय से स्रावित होने वाले स्रावण प्राप्त करती है |
(a) यकृत (liver) : यकृत शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, यकृत से पित्तरस स्रावित होता है जिसमें पित्त लवण होता है और यह आहार नाल के इस भाग में भोजन के साथ मिलकर वसा का पाचन करता है |
पित रस का कार्य :
(i) आमाशय से आने वाला भोजन अम्लीय है और अग्नाशयिक एंजाइमों की क्रिया के लिए यकृत से स्रावित पित्तरस उसे क्षारीय बनाता है |
(ii) वसा की बड़ी गोलिकाओं को इमल्सिकरण के द्वारा पित रस छोटी वसा गोलिकाओं में परिवर्तित कर देता है |
(b) अग्नाशय (Pancrease) : अग्नाशय भी एक ग्रंथि है, जिसमें दो भाग होता है |
(i) अंत:स्रावी ग्रंथि भाग (Endocrine gland part): अग्नाशय का अंत:स्रावी भाग इन्सुलिन नामक हॉर्मोन स्रावित करता है |
(ii) बाह्यस्रावी ग्रंथि भाग (Exocrine gland part): अग्नाशय का बाह्य-स्रावी भाग एंजाइम स्रावित करता है जो एक नलिका के द्वारा शुद्रांत्र के इस भाग में भोजन के साथ मिलकर विभिन्न पोषक तत्वों का पाचन करता है |
अग्नाशय से निकलने वाले एंजाइम अग्नाशयिक रस बनाते हैं |
ये एंजाइम निम्न हैं :
(i) ऐमिलेस एंजाइम : यह स्टार्च का पाचन कर ग्लूकोस में परिवर्तित करता है |
(ii) ट्रिप्सिन एंजाइम : यह प्रोटीन का पाचन कर पेप्टोंस में करता है |
(iii) लाइपेज एंजाइम : वसा का पाचन वसा अम्ल में करता है |
(ii) जिजुनम (Jejunum) : ड्यूडीनम और इलियम के बीच के भाग को जुजिनम कहते हैं और यह अमाशय और ड्यूडीनम द्वारा पाचित भोजन के सूक्ष्म कणों का पाचन करता है |
(iii) इलियम (ileum) : छोटी आँत का यह सबसे लम्बा भाग होता है और भोजन का अधिकांश भाग इसी भाग में पाचित होता है | इसका अंतिम सिरा बृहदांत्र (colon) से जुड़ता है | बृहदांत्र (large intestine) को colon भी कहते है |
मनुष्य के छोटी आंत्र (क्षुद्रांत्र) के आंतरिक स्तर पर अनेक अँगुली जैसे प्रवर्धन पाए जाते हैं जिन्हें दीर्घरोम कहते है |
दीर्धरोम का कार्य:
1. ये अवशोषण के लिए सतही क्षेत्रफल बढा देते है।
2. ये जल तथा भोजन को अवशोषित कर कोशिकाओं तक पहुँचाते है।
Peristalsis Movement (क्रमाकुंचन गति): आहारनाल की वह गति जिससे भोजन आहारनाल के एक भाग से दुसरे भाग तक पहुँचता है क्रमाकुंचन गति कहलाता है |
भोजन प्रक्रम के दौरान हम जो खाद्य सामग्री ग्रहण करते है, इन खाद्य पदार्थों से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग कोशिकाओं में होता है | जीव इन ऊर्जा का उपयोग विभिन्न जैव प्रक्रमों में उपयोग करता है |
(1) कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration) : ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के बिखंडन को कोशिकीय श्वसन कहते है |
(2) श्वास लेना (Respiration) : श्वसन की यह क्रिया फेंफडे में होता होता है | जिसमें जीव ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है |
कोशिकाएं विभिन जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा कोशिकीय श्वसन के दौरान भिन्न-भिन्न जीवों में भिन्न विधियों के द्वारा प्राप्त करती हैं |
(i) ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में : कुछ जीव जैसे यीस्ट किण्वन प्रक्रिया के समय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए करता है |
इसका प्रवाह इस प्रकार है :
6 कार्बन वाला ग्लूकोज ⇒ तीन कार्बन अणु वाला पायरुवेट में बिखंडित हो#2379;ता है ⇒इथेनॉल, कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा मुक्त होता है |
चूँकि यह प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है इसलिए इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं |
(ii) ऑक्सीजन का आभाव में : अत्यधिक व्यायाम के दौरान अथवा अत्यधिक शारीरिक परिश्रम के दौरान हमारे शरीर की पेशियों में ऑक्सीजन का आभाव की स्थिति में होता है | जब शरीर में ऑक्सीजन की माँग की अपेक्षा पूर्ति कम होती है |
इसका प्रवाह निम्न प्रकार होता है :
6 कार्बन वाला ग्लूकोज ⇒ तीन कार्बन अणु वाला पायरुवेट में बिखंडित होता है ⇒ लैक्टिक अम्ल और ऊर्जा मुक्त होता है |
(iii) ऑक्सीजन की उपस्थिति में: यह प्रक्रिया हमारी कोशिकाओं के माइटोकोंड्रिया में ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है |
इसका प्रवाह निम्न प्रकार से होता है :
6 कार्बन वाला ग्लूकोज ⇒ तीन कार्बन अणु वाला पायरुवेट में बिखंडित होता है ⇒ कार्बन डाइऑक्साइड, जल और अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मोचित होता है |
यह प्रक्रिया चूँकि ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है इसलिए इसे वायवीय श्वसन कहते हैं |
वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration) : ग्लूकोज विखंडन की वह प्रक्रिया जो ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है उसे वायवीय श्वसन कहते हैं |
अवायवीय श्वसन (Anaroebic Respiration) : ग्लूकोज विखंडन की वह प्रक्रिया जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है उसे अवायवीय श्वसन कहते हैं |
अवायवीय श्वसन
1. इसमें 2 कार्बन अणु वाला ATP ऊर्जा उत्पन्न होती है।
2. यह प्रक्रम कोशिका द्रव्य में होता है।
3. यह निम्नवर्गीय जीव जैसे यीस्ट कोशोकाओं में होता है |
4. इस प्रकार की श्वसन क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है।
5. इसमें ऊर्जा के साथ एथेनोल और कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त होता है |
वायविय श्वसन :
1. इसमें 3 कार्बन अणु वाला ATP ऊर्जा उत्पन्न होती है।
2. यह प्रक्रम माइटोकॉड्रिया में होता है।
3. ये सभी उच्चवर्गीय जीवों में पाया जाता हैं ।
4. इस प्रकार की श्वसन क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती हैं ।
5. इसमें ऊर्जा के साथ कार्बन डाइऑक्साइड और जल मुक्त होता है |
ऊर्जा का उपभोग : कोशिकीय श्वसन द्वारा मोचित ऊर्जा तत्काल ही ए.टी.पी. (ATP) नामक अणु के संश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है जो कोशिका की अन्य क्रियाओं के लिए ईंधन की तरह प्रयुक्त होता है।
(i) ए.टी.पी. के विखंडन से एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा मोचित होती है जो कोशिका के अंदर होने वाली आंतरोष्मि (endothermic) क्रियाओं का परिचालन करती है।
(ii) इस ऊर्जा का उपयोग शरीर विभिन्न जटिल अणुओं के निर्माण के लिए भी करता है जिससे प्रोटीन का संश्लेषण भी होता है | यह प्रोटीन का संश्लेषण शरीर में नए कोशिकाओं का निर्माण करता है |
(iii) ए.टी.पी. का उपयोग पेशियों के सिकूड़ने, तंत्रिका आवेग का संचरण आदि अनेक क्रियाओं के लिए भी होता है।
वायवीय जीवों में वायवीय श्वसन के लिए आवश्यक तत्व :
(i) पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण करें |
(ii) श्वसन कोशिकाएं वायु के संपर्क में हो |
श्वसन क्रिया और श्वास लेने में अंतर :
श्वसन क्रिया :
1. यह एक जटिल जैव रासायनिक प्रक्रिया है जिसमें पाचित खाद्यो का ऑक्सिकरण होता है।
2. यह प्रक्रिया माइटोकॉड्रिया में होती हेै।
3. इस प्रक्रिया से ऊर्जा का निर्माण होता है |
श्वास लेना :
1. ऑक्सिजन लेने तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोडने की प्रक्रिया को श्वास लेना कहते है।
2. यह प्रक्रिया फेफडे में होती है।
3. इससे ऊर्जा का निर्माण नहीं होता है | यह रक्त को ऑक्सीजन युक्त करता है और कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त करता है |
विसरण : कोशिकाओं की झिल्लियों द्वारा कुछ चुने हुए गैसों का आदान-प्रदान होता है | इसी प्रक्रिया को विसरण कहते है |
पौधों में विसरण की दिशा :
विसरण की दिशा पर्यावरणीय अवस्थाओं तथा पौधे की आवश्यकता पर निर्भर करती है।
(i) पौधे रात्रि में श्वसन करते हैं : जब कोई प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया नहीं हो रही है, कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कासन करते है और ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं |
(ii) पौधे दिन में प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया करते है : श्वसन के दौरान निकली CO2 प्रकाशसंश्लेषण में प्रयुक्त हो जाती है अतः कोई CO2 नहीं निकलती है। इस समय ऑक्सीजन का निकलना मुख्य घटना है।
कठिन व्यायाम के समय श्वसन दर बढ़ जाती है :
कठिन व्यायाम के समय श्वास की दर अधिक हो जाती है क्योंकि कठिन व्यायाम से कोशिकाओं में श्वसन क्रिया की दर बढ जाती है जिससे अधिक मात्रा में उर्जा का खपत होता है। ऑक्सिीजन की माँग कोशिकाओं में बढ जाती है और अधिक मात्रा में CO2 निकलने लगते है जिससे श्वास की दर अधिक हो जाती है।
1. रक्त नलिकाएँ (Blood Vesseles) : हमारे शरीर में परिवहन के कार्य को संपन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार की रक्त नलिकाएँ होती हैं | ये तीन प्रकार की होती है |
2. लसिका (Lymph) : केशिकाओं की भिति में उपस्थित छिद्रों द्वारा कुछ प्लैज्मा, प्रोटीन तथा रूधिर कोशिकाएँ बाहर निकलकर उतक के अंतर्कोशिकीय अवकाश में आ जाते है तथा उतक तरल या लसीका का निर्माण करते है। यह प्लाज्मा की तरह ही एक रंगहीन तरल पदार्थ है जिसे लसिका कहते हैं | इसे तरल उतक भी कहते हैं |
लसिका का बहाव शरीर में एक तरफ़ा होता है | अर्थात नीचे से ऊपर की ओर और यह रक्त नलिकाओं में न बह कर इसका बहाव अंतरकोशिकीय अवकाश में होता है | जहाँ से यह लसिका केशिकाओं में चला जाता है | इस प्रकार यह एक तंत्र का निर्माण करता है जिसे लसिका तंत्र (Lymphatic System) कहते है | इस तंत्र में जहाँ सभी लसिका केशिकाएँ लसिका ग्रंथि (Lymph Node) से जुड़कर एक जंक्शन का निर्माण करती है | लसिका ग्रंथि लसिका में उपस्थित बाह्य कारकों जो संक्रमण के लिए उत्तरदायी होते है उनकी सफाई करता है |
लसिका का कार्य (Functions of Lymph):
(i) यह शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनता है तथा वहन में सहायता करता है |
(ii) पचा हुआ तथा क्षुदान्त्र द्वारा अवशोषित वसा का वहन लसिका के द्वारा होता है |
(iii) बाह्य कोशिकीय अवकाश में इक्कठित अतिरिक्त तरल को वापस रक्त तक ले जाता है |
(iv) लसीका में पाए जाने वाले लिम्फोसाइट संक्रमण के विरूद्ध लडते है।
1. What is meant by Life Process? | ![]() |
2. What are Bio-Chemical Processes? | ![]() |
3. What is the process of Nutrition? | ![]() |
4. What is Respiration? | ![]() |
5. What is meant by Transportation in Humans? | ![]() |