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अनुवांशिकता एवं जैव विकास परिचय

  • जनन प्रक्रमों द्वारा नए जीव (individual) उत्पन्न होते हैं जो जनक के समान होते हुए भी कुछ भिन्न होते हैं | 
  • सबसे अधिक विभिन्नताएँ लैंगिक प्रजनन द्वारा ही प्राप्त होती हैं | 
  • पर्यावरण कारकों द्वारा उत्तम परिवर्त का चयन जैव विकास प्रक्रम का आधार बनाता है | नोट्स, पाठ - 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास (कक्षा दसंवी) - Class 10

स्पीशीज के अस्तित्व के लिए विभिन्नताओं का महत्त्व: किसी भी स्पीशीज में कुछ विभिन्नताएँ उन्हें अपने जनक से मिली होती है, जबकि कुछ विभिन्नताएँ उनमें विशिष्ट होती है | जो कई बार विशेष परिस्थितियों में उन्हें विशिष्ट बनाता है | प्रकृति की विविधता के आधार पर इन विभिन्नताओं से जीव की स्पीशीज को विभिन्न प्रकार का लाभ हो सकते हैं | जैसे - किसी जीवाणु की कुछ स्पीशीज में उष्णता को सहने की क्षमता है | यदि किसी कारण उसके पर्यावरण में अचानक उष्णता बढ़ जाती है तो इसकी सबसे अधिक संभावना है कि वह स्पीशीज अपने अस्तित्व को अधिक गर्मी से बचा लेगा |  

आनुवंशिकी (Genetics): लक्षणों के वंशीगत होने एवं विभिन्नताओं का अध्ययन ही आनुवंशिकी कहलाता है | 

आनुवंशिकता (Heredity): विभिन्न लक्षणों का पूर्ण विश्वसनीयता के साथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत होना आनुवंशिकता कहलाता है |

विभिन्नता (Variation): एक स्पीशीज के विभिन्न जीवों के शारीरिक अभिकल्प (Design) और डी.एन.ए. में अंतर विभिन्नता कहलाता है |

वंशागत लक्षण (Inherited Traits): वे लक्षण जो किसी स्पीशीज के अपने आधारभूत लक्षणों के साथ-साथ कुछ विशेष लक्षण जो उसके जनक से उसमें वंशानुक्रम हुए है | जैसे - कुछ मनुष्यों में कर्णपालि का जुड़ा हुआ होना या किसी में स्वतंत्र होना आदि | 


मेंडल का प्रयोग एवं वंशागत नियमों के प्रतिपादन में योगदान

मेंडल ने वंशागति के कुछ मुख्य नियमों को प्रस्तुत किए | उन्हें आनुवंशिकी विज्ञान का जनक कहा जाता है | उन्होंने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधों को चुना | मटर एक वर्षीय पौधा है जो बहुत ही कम समय में इसका जीवन काल समाप्त हो जाता है एवं फल एवं फुल दे देता है | मटर की विभिन्न प्रजातियाँ होती है जिनके लक्षण स्थूल रूप से दिखाई देते है | जैसे- गोल या झुर्रीदार बीज वाला, लम्बे या बौने पौधे वाला, सफ़ेद या बैगनी फुल वाला पीले या हरे बीज वाला आदि | 

Johann Gregor Mendel: Father of genetics.Johann Gregor Mendel: Father of genetics.लक्षणों के वंशागति के नियम :

(i)  मानव में लक्षणों की वंशागति के नियम इस बात पर आधारित हैं कि माता-पिता दोनों ही समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ को संतति (शिशु) में स्थानांतरित करते है | 

(ii) प्रत्येक लक्षण के लिए प्रत्येक संतति में दो विकल्प होते हैं |

(iii) प्रत्येक लक्षण माता-पिता के DNA से प्रभावित होते हैं | 

वंशानुगत लक्षण: 

(i) प्रभावी लक्षण (Dominent Traits): माता-पिता के वे वंशानुगत लक्षण जो संतान में दिखाई देते हैं प्रभावी लक्षण कहलाते हैं | उदाहरण: मेंडल के प्रयोग में लंबा पौधा का "T" लक्षण, प्रभावी लक्षण है जो अगली पीढ़ी F1 में भी दिखाई देती है | 

(ii) अप्रभावी लक्षण (Recessive Traits): माता-पिता सेआये वे वंशानुगत लक्षण जो संतान में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं |

(A) जीनोटाइप (Genotypes) : जीनोटाइप एक जीनों का समूह है जो किसी एक विशिष्ट लक्षणों के लिए उत्तरदायी होता है | यह अनुवांशिक सुचना होता है जो कोशिकाओं में होता है तथा यह व्यष्टि में हमें प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता है | 

यह दो alleles के भीतर निहित सूचनाएँ होती है जिन्हें निरिक्षण द्वारा देखा नहीं जा सकता बल्कि जैविक परीक्षणों से पता लगाया जाता है | यह सूचनाएँ वंशानुगत लक्षण होते है जो माता-पिता से अगली पीढ़ी में आती हैं | 

नोट्स, पाठ - 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास (कक्षा दसंवी) - Class 10जिनोंटाइप का उदाहरण:

(a) आँखों के रंग के लिए उत्तरदायी जीन |

(b) बालों के रंग के लिए उत्तरदायी जीन 

(c) लंबाई के लिए उत्तरदायी जीन |

(d) आनुवंशिक बिमारियों के लिए उत्तरदायी जीन आदि | 

जीनोटाइप बदलाव निम्न तरीकों से किया जा सकता है :

(i) जीन या गुणसूत्रों में परिवर्तन करके |

(ii) जीनों का पुन:संयोजन करके |

(iii) जीनों का संकरण करके | 

(A) फिनोटाइप (Phenotypes): दृश्य एवं व्यक्त लक्षण जो किसी जीव में दिखाई देता है जो जीनोटाइप पर निर्भर करता है फिनोटाइप लक्षण कहलाता है | परन्तु यह पर्यावरणीय कारकों द्वारा प्रभावित हो सकता है | यह जीन के सूचनाओं का व्यक्त रूप होता है | इसका पता मात्र सधारण अवलोकन के द्वारा लगाया जा सकता है | जैसे - आँखों का रंग, बालों का रंग, ऊँचाई, आवाज, कुछ बीमारियाँ, कुछ निश्चित व्यव्हार आदि से | 

मेंडल द्वारा लिए गए मटर के कुल लक्षण (Characters): मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के कुल सात विकल्पी लक्षणों को लिया था | जो इस प्रकार था |

1. बीजों का आकार - गोल एवं खुरदरा 

2. बीजों का रंग - पीला एवं हरा 

3. फूलों का रंग - बैंगनी एवं सफ़ेद 

4. फली का आकार - चौड़ा और भरा हुआ एवं चपटा और सिकुड़ा हुआ 

5. फली का रंग - हरा एवं पीला 

6. फूलों की स्थिति - एक्सिअल एवं टर्मिनल 

7. तने की ऊँचाई - लंबा एवं बौना 

इनमें से सभी प्रथम विकल्पी लक्षण प्रभावी है जबकि दूसरा लक्षण अप्रभावी लक्षण हैं | 

विकल्पी लक्षण (alleles)प्रभावी लक्षण अप्रभावी लक्षण 
1. बीजों का आकारगोलखुरदरा 
2. बीजों का रंग पीलाहरा
3. फूलों का रंगबैंगनीसफ़ेद
4. फली का आकारचौड़ा और भरा हुआचपटा और सिकुड़ा हुआ 
5. फली का रंगहरापीला
6. फूलों की स्थितिएक्सिअलटर्मिनल
7. तने की ऊँचाईलंबा बौना


मेंडल का प्रयोग 

(1) एकल संकरण (Monohybrid Cross) : इस प्रयोग में मेंडल ने मटर के सिर्फ दो एकल लक्षण वाले पौधों को लिया जिसमें एक लंबे पौधें दूसरा बौने पौधें थे | प्रथम पीढ़ी (F1) में सभी पौधे पैतृक पौधों के समान लंबे थे | उन्होंने आगे अपने प्रयोग में दोनों प्रकार के पैतृक पीढ़ी के पौधों एवं F1 पीढ़ी के पौधों को स्वपरागण द्वारा उगाया | पैतृक पीढ़ी के पौधों से प्राप्त पौधे पूर्व की ही भांति सभी लंबे थे | परन्तु F1 पीढ़ी से उत्पन्न पौधें जो F1 की दूसरी पीढ़ी Fथी सभी पौधें लंबे नहीं थे बल्कि एक चौथाई पौधे बौने थे |  

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मेंडल के प्रयोग का निष्कर्ष :

(i) दो लक्षणों में से केवल एक पैतृक जनकीय लक्षण ही दिखाई देता है, उन दोनों का मिश्रित प्रभाव दिखाई नहीं देता है | 

(ii) F1 पौधों द्वारा लंबाई एवं बौनेपन दोनों लक्षणों की वंशानुगति हुई | परन्तु केवल लंबाई वाला लक्षण ही व्यक्त हो पाया | 

(iii) अत: लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले जीवों में किसी भी लक्षण की दो प्रतिकृतियों (स्वरुप) की वंशानुगति होती है | 

(iv) दोनों एक समान हो सकते है अथवा भिन्न हो सकते है जो उनके जनक पर निर्भर करता है | 

मेंडल के प्रयोग में लक्षणों का अनुपात : 

मेंडल के एकल संकरण द्वारा Fसंतति के उत्पन्न पौधों में जीनोटाइप एवं फेनोटाइप के आधार पर लक्षणों का अनुपात निम्न था | 

फिनोंटाइप : Tt Tt Tt tt

अनुपात 3 :1 अर्थात 3 लंबा पौधा : 1 बौना पौधा 

जीनोटाइप : TT Tt Tt tt 

अनुपात 1 : 2 : 1 अर्थात आनुवंशिक रूप से 1 लंबा पौधा (TT) : 2 लंबे पौधे (Tt) : 1 बौना पौधा (tt) 

1. समयुग्मकी (Homozygous) : समयुग्मकी शब्द एक विशेष प्रकार के जीन के लिए किया जाता है जो दोनों समजात गुणसूत्र में समान विकल्पी युग्मकों (identical alleles ) को वहन करता है | 

(i) प्रभावी समयुग्मकी (Homozygous Dominent) : जब दोनों युग्मक प्रभावी लक्षण के हो तो इसे प्रभावी समयुग्मकी कहते हैं | उदाहरण - XX या TT 

(ii) अप्रभावी समयुग्मकी (Hetroozygous Dominent) : जब दोनों युग्मक अप्रभावी लक्षण के हो तो इसे अप्रभावी समयुग्मकी कहते हैं | जैसे - xx या tt 

उदाहरण : प्रभावी समयुग्मकी (XX) तथा अप्रभावी समयुग्मकी (xx) जैसे मेंडल के प्रयोग में (TT) लंबे  और (tt) बौने | 

capital letter में प्रभावी लक्षण होते है और small letter में अप्रभावी लक्षण होते हैं | 

2. विषमयुग्मकी (Hetrotraits) : जब किसी विकल्पी युग्मक में एक प्रभावी युग्मक का लक्षण तथा दूसरा अप्रभावी का हो तो इसे विषमयुग्मकी कहते हैं | 

जैसे - Tt या Xy या xY इत्यादि | 

समयुग्मकी एवं विषमयुग्मकी में अंतर : 

समयुग्मकी : 

1. इसके युग्मक में या तो दोनी प्रभावी विकल्पी लक्षण होते है या दोनों अप्रभावी विकल्पी लक्षण होते हैं | 

2, इसमें एक ही प्रकार के युग्मक होते हैं |

विषमयुग्मकी : 

1. इसके युग्मक में प्रभावी एवं अप्रभावी दोनों लक्षण होते है | 

2. इसमें दोनी प्रकार के युग्मक होते हैं | 

द्वि-संकरण अथवा द्वि-विकल्पीय संकरण (Dihybrid Cross) : दो पौधों के बीच वह संकरण जिसमें दो जोड़ी लक्षण लिए जाते है, द्वि-संकरण कहलाता है | 

मेंडल का द्वि-संकरण (Dihybrid Cross) प्रयोग : मेंडल ने अपनी अगली प्रयोग में गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधों से संकरण (cross pollination) कराया | F1 पीढ़ी के सभी पौधे लंबे एवं गोल बीज वाले थे | F1 पीढ़ी के संतति का स्वनिषेचन से F2 पीढ़ी के संतति जो प्राप्त हुई वे पौधे कुछ लंबे एवं गोल बीज वाले थे तथा कुछ बौने एवं झुर्रीदार बीज वाले थे | 

अत: दो अलग-अलग लक्षणों की स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होती  है | 

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यहाँ Fपीढ़ी के दोनों पौधों का स्व-निषेचन (Self-fertilisation) कराया गया | जिससे

F2 पीढ़ी के पौधे का जीनोटाइप (Genotypes) सूचनाएँ इस प्रकार थी जो दोनों F1 पीढ़ी के पौधों के युग्मक से प्राप्त हुई | 

                         F2 पीढ़ी के पौधे                                          

  युग्मक  RY  Ry  rY  ry
  RY RRYY  RRYy  RrYY  RrYy
  Ry RRYy  RRyy  RrYy  Rryy
  rY RrYY  RrYy  rrYY  rrYy
  ry  RrYy  Rryy  rrYy  rryy

 

F2 में फिनोंटाइप (Fenotypes):

(R तथा Y प्रभावी लक्षण हैं जबकि r तथा y अप्रभावी लक्षण है ) 

गोल, पीले बीज : 9

गोल, हरे बीज : 3

झुर्रीदार, पीले बीज : 3

झुर्रीदार, हरे बीज : 1

मैंडल द्वारा मटर के ही पौधे के चुनने का कारण : 

1. इनका जीवन काल बहुत ही छोटा होता है | 

2. ये बहुत ही कम समय में फल एवं बीज उत्पन्न कर देते हैं |

3. इसमें विभिन्नताएँ काफी पायी जाती है जिनका अध्ययन एवं भेद करना आसान हैं | 

वंशागति का नियम :

मंडल द्वारा प्रस्तुत वंशागति के दो नियम है |

1. एकल संकरण वंशागति तथा विसंयोजन का नियम : 

यह वंशागति का पहला नियम है : किसी जीव के लक्षण आतंरिक कारकों जो जोड़ियों में उपस्थित होते हैं, यह लक्षण इन्ही आंतरिक कारकों द्वारा निर्धारित होते हैं | एक युग्मक में इस प्रकार के कारकों की केवल एक जोड़ी उपस्थित हो सकती है | 

2. स्वतंत्र वंशानुगति का नियम : 

मैडल के वंशागति के दुसरे नियम को स्वतंत्र वंशागति का नियम कहा जाता है इसके अनुसार : साथ-साथ संकरण में विशेषकों की एक से अधिक जोड़ी की वंशागति में, विशेषकों की प्रत्येक जोड़ी के लिए उत्तरदायी कारक युग्मक स्वतंत्र रूप से बंट जाते हैं | 


लिंग निर्धारण

लैंगिक जनन में अलग-अलग स्पीशीज लिंग निर्धारण के लिए अलग-अलग युक्ति अपनाते है |

  • कुछ पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर करते हैं |
  • कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण निषेचित अंडे (युग्मक) के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है कि संतति  नर होगी या मादा |
  • घोंघे जैसे प्राणी अपना लिंग बदल सकते है, अत: इनमें लिंग निर्धारण अनुवांशिक नहीं है | 

मानव में लिंग निर्धारण :

मनुष्य में लिंग निर्धारण आनुवंशिक आधार पर होता है अर्थात जनक जीवों से वंशानुगत जीन ही इस बात का निर्णय करते है कि संतति लड़का होगा अथवा लड़की | 

लिंग गुणसूत्र: वह गुणसूत्र जो मनुष्य में लिंग का निर्धारण करते है लिंग गुणसूत्र कहते है, मनुष्य में इनकी संख्या 1 जोड़ी होती है |

मनुष्य में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं जिनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्र माता-पिता के गुणसूत्रों के प्रतिरूप होते हैं और एक जोड़ी गुणसूत्र जिसे लिंग गुणसूत्र कहते हैं, जो मनुष्य  में लिंग का निर्धारण करते हैं | स्त्रियों में ये पूर्ण युग्म होते हैं अर्थात एक जैसा जुड़ी होते हैं जो "XX" कहलाते हैं | जबकि नर में एक समान युग्म नहीं होता, इसमें एक समान्य आकार का "X" होता है एवं दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है जिसे "Y" गुणसूत्र कहते हैं | 

मानव में लिंग निर्धारण प्रक्रिया : मादा जनक में एक जोड़ी "XX" गुणसूत्र होते है एवं नर जनक में "XY" गुणसूत्र होते है | अत: सभी बच्चे चाहे वह लड़का हो अथवा लड़की अपनी माता से "X" गुणसूत्र प्राप्त करते हैं | अत: लड़का होगा या लड़की इसमें माता की कोई भूमिका नहीं है क्योंकि वे माता से समान गुणसूत्र प्राप्त करते हैं | लिंग का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता है कि संतान को अपने पिता से कौन-सा गुणसूत्र युग्मक के रूप में प्राप्त होता है | यदि पिता से "X" गुणसूत्र युग्मक के रूप में वंशानुगत हुआ है तो वह लड़की होगी एवं जिसे पिता से "Y" गुणसूत्र युग्मक के रूप में प्राप्त हुआ है वह लड़का होगा | 

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Q - जनन कोशिकाओं का निर्माण कहाँ होता है ? 

A - विशिष्ट जनन उत्तक वाले जननांगों में | 

(1) उपार्जित लक्षण (Aquired Traits): वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जीवन काल में अर्जित करता है उपार्जित लक्षण कहलाता है | उदाहरण : अल्प पोषित भृंग के भार में कमी | 

उपार्जित लक्षणों का गुण : 

(a) ये लक्षण जीवों द्वारा अपने जीवन काल में प्राप्त किये जाते है |

(b) ये जनन कोशिकाओं के डीएनए (DNA) में कोई बदलाव नहीं लाते और अगली पीढ़ी को वंशानुगत /स्थानांतरित नहीं होते | 

(c) ये लक्षण जैव विकास में सहायक नहीं हैं | 

(2) आनुवंशिक लक्षण (Heridatory Traits): वे लक्षण जिसे कोई जीव अपने जनक (parent) से प्राप्त करता है आनुवंशिक लक्षण कहलाता है | उदाहरण: मानव के आँखों व बालों के रंग | 

(a) ये लक्षण जीवों में वंशानुगत होते हैं |

(b) ये जनन कोशिकाओं में घटित होते हैं तथा अगली पीढ़ी में स्थानांतरित होते है |

(c) जैव विकास में सहायक हैं | 


जाति उदभव

पूर्व स्पीशीज  से एक नयी स्पीशीज का बनना जाति उदभव कहलाता है | 

नई स्पीशीज के उदभव के लिए वर्त्तमान स्पीशीज के सदस्यों का परिवर्तनशील पर्यावरण में जीवित बने रहना है | इन सदस्यों को नए पर्यावरण में जीवित रहने के लिए कुछ बाह्य लक्षणों में परिवर्तन करना पड़ता है | अत: प्रभावी पीढ़ी के सदस्यों में शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं जो जनन क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में हस्तांतरित हो जाते हैं | इस प्रकार नयी स्पीशीज (जाति ) का उदभव होता है | 

जाति उदभव का कारण: 

(i) अनुवांशिक विचलन (Genetic Drift) : किसी एक समष्टि की उत्तरोतर पीढ़ियों में सापेक्ष जींस की बारंबारता में अचानक परिवर्तन का उत्पन्न होना अनुवांशिक विचलन कहलाता है | 

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(ii) भौगोलिक पृथक्करण (Geographical Isolation) : किसी जनसंख्या के बीच जींस प्रवाह को भौगोलिक आकृतियाँ जैसे पर्वत, नदियाँ समुद्र इत्यादि रोकती है | जिससें एक ही समष्टि के जीव पृथक हो जाते है | इसके कारण इनका प्राकृतिक वरण भी विलग हो जाता है | इसे ही भौगोलिक पृथक्करण कहते है |

लैंगिक जनन करने वाले जीवों में जाति-उदभव का प्रमुख कारक है क्योंकि याग युग्मकों द्वारा पृथक जनसँख्या के बीच जीनों के बहाव को कम करता है या बाधा डालता है | परन्तु स्व-परागण वाले पादप जातियों के बीच जाति-उदभव का कारक नहीं है, क्योंकि इसमें प्रजनन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए दुसरे पादप ê#2346;र निर्भर नहीं रहना पड़ता है | 

(iii) प्राकृतिक वरण (Natural Selection) : चयन की वह प्रक्रिया जिसमे जीव अपने पर्यावरण के प्रति बेहतर अनुकूलित होते है और अपने उत्तरजीविता कोबनाए रखते हुए अधिक संताने उत्पन्न करते है | प्राकृतिक वरण के द्वारा व्यष्टियों में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है | यदि विभिन्नताएँ जीवों के अपनी मूल व्यष्टि से कहीं अधिक हो गयी तो जीव जींस में भी काफी परिवर्तन (जेनेटिक ड्रिफ्ट) आएगा तथा जीव भिन्न होगा और एक नयी जाति-का उदभव होता है | यह भी हो सकता है कि नया जीव अपने पूर्व के जीवों के साथ अंतर्जनन में असमर्थ हो |  

  • यदि डी.एन.ए. में यह परिवर्तन पर्याप्त है जैसे गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन, तो दो समष्टियों के सदस्यों की जनन कोशिकाएँ (युग्मकों) संलयन करने में असमर्थ हो सकती हैं।

अनुवांशिक विचलन का कारण : 

(i) डीएनए में परिवर्तन 

(ii) गुणसूत्रों में परिवर्तन 

स्थानीय समष्टि में विभिन्नता का कारण : जब कोई उपसमष्टि भौगोलिक पृथक्करण के कारण अप्रवास करता है तो वह अन्य स्थान को अपना आवास बनाता है और वहाँ के किसी उपसमष्टि के साथ जनन करता है जिससे जीन का प्रवाह होता है और इससे उत्पन्न नए जीव में विभिन्नता आती है |  

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विकास एवं वर्गीकरण

किसी पौधे या प्राणी में विशिष्ट लक्षणों के लिए जीन (genes) जिम्मेवार होते हैं | 

अभिलक्षण (Characteristics) : बाह्य आकृति अथवा व्यवहार का विवरण अभिलक्षण कहलाता है।

दूसरे शब्दों में, विशेष स्वरूप अथवा विशेष प्रकार्य अभिलक्षण कहलाता है। हमारे चार पाद होते हैं, यह एक अभिलक्षण है। पौधें में प्रकाशसंश्लेषण होता है, यह भी एक अभिलक्षण है।

  • सभी  जीवों में कोशिका जो आधारभूत इकाई है यह भी एक अभिलक्षण है |
  • सभी जीवों का वर्गीकरण उनके अभिलक्षणों के आधार किया है जिसमें पहला वर्गीकरण उनके कोशिकीय अभिलक्षण है जैसे केंद्रक झिल्ली वाले जीव (यूकैरियोटिक) और बिना केन्द्रक झिल्ली वाले जीव (प्रोकैरियोटिक)|  
  • दो स्पीशीश के मध्य जितने अध्कि अभिलक्षण समान होंगे उनका संबंध् भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा।
  • जिन जीवों में अभिलक्षण समान होगा तो वे जीव समान जनक से वंशानुगत हुए है | 


विकास (Evolution)

जीवों में होने वाले अनुक्रमिक परिवर्तनों#2306; के परिणाम को विकास कहते हैं जो लाखों वर्षों से भी ऊपर आदिम जीवों में घटित होते हैं जिनसे नई जातियाँ उत्पन्न होती हैं | चूँकि विकास जीवित जीवों का होता है इसलिए इसे जैव विकास भी कहते है | 

(i) समजात अंग (Homologous Organs): विभिन्न जीवों में वे अंग जो आकृति तथा उत्पति में समानता रखते हैं समजात अंग कहलाते हैं ।

उदाहरण - मेंढक के अग्रपाद , पक्षी के अंग , चमगादड. के पंख  घोड़ा के अग्रपाद आदि उत्पत्ति में समान होते हेैं परंतु वे कार्य में परस्पर भिन्नता रखते हैं । 

(ii) समरूप अंग (Analogous Oragans): विभिन्न जीवों के वे अंग जो कार्य में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में भिन्न होते हैं समरूप अंग कहलाते हैं ।

उदाहरण:- तितली . के पंख, पक्षी के पंख आदि कार्याें में समान होते हैं परंतु उत्पत्ति में वे भिन्न हैं । 

(iii) जीवाश्म (Fossil) : मृत जीवों के परिरक्षित अवशेष को जीवाश्म कहते हैं |

उदाहरण कोई मृत कीट गर्म मिट्टी में सुख कर कठोर हो जाये |

जीवाश्म प्राचीन समय में मृत जीवों के संपूर्ण, अपूर्ण, अंग आदि के अवशेष तथा उन अंगो के ठोस, मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया हो । ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोंडों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान काल में लुप्त हो चुके हैं ।

अब तक प्राप्त कुछ जीवाश्म के उदाहरण : 

अमोनाइट - अकशेरुकी जीवाश्म 

ट्राइलोबाइट - अकशेरुकी जीवाश्म 

नाइटिया - मछली का जीवाश्म 

राजासौरस - जीवाश्म - डायनासोर  

जीवाश्मों के अध्ययन से निम्न बातों का पता चलता है | 

1. जीवाश्म उन जीवों के #2346;ृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं ।
 2. इन जीवाश्मो की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं । इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता हैं कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के संबंध में क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं जो जीवधारियों कीे जीवित रहने के प्रतिकूल हो गए हैं । 

विकासीय संबंध की पहचान/प्रमाण : 

(i) समजात अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह बताता है कि इनके पूर्वज एक ही थे, अर्थात ये समान पैतृक पूर्वज से उत्पन्न हुए है | चूँकि इनका बनावट एक है परन्तु इनका कार्य भिन्न है लेकिन इनके अंगो में परिवर्तन विकास को दर्शाता है |   

(ii) समरूप अंग विकास के पक्ष में प्रमाण उलब्ध कराते हैं | यह अंग यह सूचित करता है कि भिन्न संरचनाओं के अंगों वाले जीव भी प्रतिकूल परिस्थितयों में अपने को बनाए रखने के लिए और एक समान कार्य करने के लिए अपने को अनुकूलित कर लेते है | इससे यह कहा जा सकता है कि विकास हुआ है | 

(iii) जीवाश्म भी विकास के संबंध में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं | उदाहरण : आर्कियोप्टेरिक्स के जीवाश्म के अध्ययन से पता चलता है कि यह दिखता तो पक्षी की तरह है परन्तु कई ऐसे दुसरे लक्षण सरीसृप (reptile) के जैसे है | इसके यह पता चलता है की पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है | 

जीवाश्मों की आयु का आंकलन :  

(i) खुदाई द्वारा /सापेक्ष पद्धति द्वारा : खुदाई करने पर पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की तुलना में अधिक नए होते है जबकि गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्म पुराने होते है | 

(ii) फॉसिल डेटिंग (Fossil Dating) द्वारा : जिसमें जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समस्थानिको का अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय-निर्धारित किया जाता है | इसमें कार्बन-14 समस्थानिक जो सजीवों में उपस्थित होता है, का उपयोग किया जाता है जिसमें सजीव के जीवाश्म में उपस्थित कार्बन-14 रेडियोएक्टिवता होती है जो समय के साथ धीरे-धीरे घटता जाता है | इसी रेडियोएक्टिवता की तुलना करके जीवाश्मों की आयु का पता लगाया जाता है |  


डार्विन का विकास सिद्धांत

प्रजनन की असीम क्षमता धारण करते हुए भी किसी भी जीवधारी की जनसंख्या एक सीमा के अंदर ही नियंत्रित रहती है। यह आपसी संर्धष के कारण है जो एक जाति के सदस्यो के बीच अथवा विभिन्न जातियो के सदस्यो के बीच भोजन, स्थान एवं जोडी के लिए होता रहता है। इस संर्धष से व्यष्टियां लोप हो जाती हैं। और एक नई जाति का उदभव होता है। इसे ही डार्विन के विकास का सिद्धांत कहते हैं | डार्विन द्वारा प्रस्तावित विकास के सिद्धांत को 'प्राकृतिक वरण का सिद्धांत' भी कहा जाता है | इन्होने इस सिद्धांत को अपनी पुस्तक "The Origin of Species" में वर्णन किया है |

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इस सिद्धांत के अनुसार :

(i) किसी भी समष्टि के अंदर प्राकृतिक रूप से विविधता (variation) होता है जबकि उसी समष्टि के कुछ व्यष्टियों में अन्य के अपेक्षा अधिक अनुकूलित विविधता होती है | 

(ii) प्रजनन की असीम क्षमता धारण करते हुए भी किसी भी जीवधारी की जनसंख्या एक सीमा के अंदर ही नियंत्रित रहती है।

(iii) यह आपसी संर्धष के कारण है जो एक जाति के सदस्यो के बीच अथवा विभिन्न जातियो के सदस्यो के बीच भोजन, स्थान एवं जोडी के लिए होता रहता है। इस संर्धष से व्यष्टियां लोप हो जाती हैं।

(iv) जो व्यष्टियाँ अनुकूलित होती है और जिनमें विविधता होती है वे ही अपनी उत्तरजीविता को बनाए रखती हैं, और वे इन अनुकूलित विविधता को एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ियों में हस्तांतरित करते हैं | 

(v) जब ये विविधताएँ लंबे समय तक संचित होती रहती है तो जीव अपने मूल समष्टि से भिन्न दिखाईदेने लगता है और एक नयी जाति (species) की उत्पति होती है | 

भ्रौणिकी (भ्रुण सम्बंधी) के अघ्ययन से विकास का प्रमाण :
 कशेरूकी जंतुओं के भ्रुणों के अध्ययन से पता चलता है कि इनका विकास मछली जैसे पूर्वजों से हुआ है । मछली , पक्षी तथा मनुष्य की भ्रुणों की पहली अवस्था लगभग समान होती है जिसके गहन अध्ययन से पता चलता है कि सभी में गिल दरारें तथा नोटोकार्ड  होते है ।   


पृथ्वी पर जीवों की उत्पति

एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे.बी.एस. हाल्डेन (जो बाद में भारत के नागरिक हो गए थे।) ने 1929 में यह सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे। उसने कल्पना की कि पृथ्वी पर उस समय का वातावरण, पृथ्वी के वर्तमान वातावरण से सर्वथा भिन्न था। इस प्राथमिक वातावरण में संभवतः कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जो जीवन के लिए आवश्यक थे। सर्वप्रथम प्राथमिक जीव अन्य रासायनिक संश्लेषण द्वारा उत्पन्न हुए होंगे।

जटिल अंगों का विकास एवं उनमें भिन्नता का कारण :

(i) इसका प्रमुख कारण अलग-अलग विकासीय उत्पत्ति है |

(ii) इनके डीएनए में परिवर्तन जो उनकी क्रमिक विकास के रूप में दिखाई देता है वह वास#2381;तव में अनेक पीढ़ियों के हुआ है |

(iii) आँख या अन्य कोई अंग का चयन उसकी उपयोगिता के आधार पर होता है | 

(iv) प्राकृतिक चयन भी इसका प्रमुख कारण है | 

कृत्रिम चयन (Artificial Selection) : 

कृत्रिम चयन/वरण (Artificial Selection) द्वारा विकास :  

नोट्स, पाठ - 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास (कक्षा दसंवी) - Class 10

जंगली गोभी का विकास 

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FAQs on नोट्स, पाठ - 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास (कक्षा दसंवी) - Class 10

1. What is Mendel's contribution to genetics and inheritance?
Ans. Gregor Mendel is known as the father of genetics and inheritance. He conducted experiments on pea plants and came up with the laws of inheritance, which are still used today. He introduced the concept of dominant and recessive traits and how they are passed from parents to offspring. He also explained the law of segregation and independent assortment, which describe how genes are passed on from one generation to the next.
2. How does Darwin's theory of evolution explain the origin of species?
Ans. Darwin's theory of evolution suggests that species evolve over time through a process called natural selection. This means that organisms that are better adapted to their environment are more likely to survive and reproduce, passing on their advantageous traits to their offspring. Over time, these advantageous traits become more common in the population, leading to the evolution of new species. Darwin's theory is supported by evidence from the fossil record, comparative anatomy, and molecular biology.
3. What is the relationship between genetics and development?
Ans. Genetics plays a crucial role in development, as genes determine the traits and characteristics that an organism will have. Genes control the production of proteins, which are the building blocks of cells and tissues. Changes in genes can lead to developmental disorders or abnormalities. Developmental biology studies how genes interact with each other and with the environment to shape an organism's development, from the fertilized egg to the mature adult.
4. What is the significance of the concept of inheritance in biology?
Ans. Inheritance is a fundamental concept in biology, as it explains how traits are passed down from one generation to the next. It is the basis of genetics and evolution, as variations in inherited traits can lead to the development of new species over time. Studying inheritance can also help us understand genetic disorders and how they are passed on in families. Inheritance patterns can also be used in breeding programs to produce desired traits in plants and animals.
5. How does the study of genetics and development impact society?
Ans. The study of genetics and development has many practical applications in society. It can be used in medical research to understand the genetic basis of diseases and develop treatments. Genetic testing can help diagnose inherited disorders and assess the risk of developing certain diseases. Developments in gene editing and gene therapy have the potential to cure genetic disorders and improve human health. In agriculture, genetics can be used to improve crop yields and develop disease-resistant plants.
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