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भारतीय संविधान में अधिकार - राजनितिक विज्ञान - 1, Class XI Notes - Class 11 PDF Download

अधिकारों की आवश्यकता:

व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है | ये भारतीय संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों के रूप में भारतीय नागरिकों को प्राप्त है |

 

अधिकारों की आवश्यकता निम्न कारणों से हैं :

(1) अधिकार मानव के व्यक्तित्व को सँवारते हैं |

(2) लोकतंत्र के लिए नागरिक स्वतंत्रताएँ अनिवार्य हैं, क्योंकि कोई भी राज्य मनमानी ढंग से नागरिक अधिकारों का दमन नहीं कर सकता, लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरी है |

(3) अधिकार शासन की मनमानी शक्तियों और कार्यों पर रोक का काम करते हैं |

(4) गरीबी और उत्पीडन से राहत पाने के लिए हमारे संविधान ने बहुत से अधिकार दिए हैं | इन नागरिक अधिकारों की रक्षा सर्वोच्य न्यायालय करता है |   

अधिकारों का घोषणा पत्र : संविधान द्वारा प्रदत्त और संरक्षित अधिकारों की सूची को ‘अधिकारों का घोषणा पत्र’ कहते हैं जिसकी मांग 1928 में नेहरु जी ने उठाई थी |

नागरिक स्वतंत्रता की प्राप्ति: नागरिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जनता को निरंकुश राजाओं के विरुद्ध घोर संघर्ष करना पड़ा था | ये स्वतंत्रताएँ थी मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी पर रोक, भाषण की स्वतंत्रता एवं धार्मिक स्वतंत्रता आदि | शुरू-शुरू में इन्हें नागरिक स्वतंत्रता कहा जाता था |

मानव अधिकार घोषणा पत्र :1789 में फ़्रांस की क्रांति के पश्चात् फ्रांस की राष्ट्रिय विधानसभा ने एक सुप्रसिद्ध मानव अधिकार घोषणा-पत्र जारी किया | इसमें यह घोषणा की गयी थी कि “सारे मनुष्य समान पैदा होते हैं, अत: उनके अधिकार समान होने चाहिए |”                

मानवाधिकार:एक समान्य मनुष्य के जीवन जीने के लिए तथा उनके व्यक्तिगत विकास के लिए कुछ अधिकार होने चाहिए इसी कड़ी में, सितंबर 1789 में अमेरिकी कांग्रेस ने संविधान में दस संशोधन स्वीकार किये तथा दिसंबर 1791 तक वे अमेरिकी सविधान के अंग बन गए | सामूहिक रूप से उन्हें अधिकार पत्र (बिल ऑफ़ राइट्स ) कहा जाता है | इस प्रावधान में निम्न अधिकार थे - भाषण की स्वतंत्रता, समाचारपत्रों की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक सभा-सम्मेलन करने का अधिकार, संपति की जब्ती से सरक्षण का अधिकार तथा निर्मम दंड से सुरक्षा आदि |

लोकहित मुकदमा : भारत में गरीबी से ग्रस्त और उत्पीडन से राहत पाने के लिए कोई साधन नहीं, कई बार सरेआम असंवैधानिक तरीके से लोगों के साथ अन्याय होता है और कानून वहाँ कुछ नहीं कर पाता है |      

 

मौलिक अधिकार

 

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार : 

(1) समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 - 18) 

(2) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद19 - 22) 

(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 - 24) 

(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 - 28) 

(5) संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 - 30)

(6) संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32) 

 

1. समता का अधिकार : भारतीय संविधान में समानता को भारतीय राज्य तंत्र का आधारशिला माना गया है | इसमें सभी प्रकार से लोगों के बीच समानता स्थापित करने के अधिकार प्राप्त होते हैं | 

"भारतीय संविधान द्वारा देश के किसी भी नागरिक को जाति, धर्म, रंगभेद, लिंग और जन्मस्थल के आधार पर उससे भेद भाव नहीं किया जायेगा | इसे ही समता का अधिकार कहते है |"

समता के अधिकार के अंतर्गत शामिल प्रावधान/बातें :

(i) कानून के समक्ष समानता 

(ii) कानून का समान संरक्षण 

(iii) धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेद भाव का निषेध 

(iv) रोजगार की अवसर की समानता 

(v) पदवियों का अंत 

(vi) छुआछुत की समाप्ति 

कानून के समक्ष समानता : देश का कानून सभी के लिए समान है चाहे वह गरीब हो या अमीर हो नेता हो या आम जनता हो | देश का संविधान सभी को एक न्याय प्रणाली के द्वारा न्याय देता है इसे ही कानून के समक्ष समानता कहते हैं | 

रोजगार के अवसर की समानता : हमारे संविधान द्वारा सभी को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार पाने अधिकार है | इसके लिए नागरिकों से उनके जाति, धर्म, लिंग, रंगभेद और जन्मस्थल के आधार पर भेद-भाव नहीं कर सकते है | 

स्वतंत्रता का अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता : 

स्वतंत्रता का अर्थ : बिना किसी अन्य की स्वतंत्रता को नुकसान पहुँचाए और बिनाकानून-व्यवस्था को ठेस पहुँचाए, प्रत्येक व्यक्ति अपना कोई भी कार्य कर सकता और अपनी-अपनी स्वतंत्रता का आनंद ले सकता है ।

स्वतंत्रता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल प्रावधान :

(i) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता 

(ii) शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतंत्रता 

(iii) संगठित होने की स्वतंत्रता 

(iv) भारत में कही भी आने जाने की स्वतंत्रता 

(v) भारत के किसी भी हिस्से में बसने और रहने की स्वतंत्रता 

(vi) कोई भी पेशा चुनने, व्यापार करने की स्वतंत्रता 

(vi) जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार 

(vii) अभियुक्तों एवं सजा पाए लोगों का अधिकार 

जीवन का अधिकार :  

सर्वोच्य न्यायलय ने यह माना है कि हर व्यक्ति को अपना जीवन जीने का अधिकार है इसके लिए यह परिभाषा दी है -

'जीवन के अधिकार' का अर्थ है कि व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का भी अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई व्यक्ति जिंदा नहीं रह सकता | 

व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार :

किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धरित प्रक्रिया का पालन किये बिना उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्ऱतार नहीं किया जा सकता।

अभियुक्त एवं सजा पाए लोगों को संविधान द्वारा प्राप्त अधिकार : 

(i) गिरफ्तार किये जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसंदीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है।

(ii) इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर निकटतम मैजिस्टेट के सामने पेश करे।

(iii) गिरफ्तारी के समय उसके घर वालों को सूचित करना आवश्यक है |

(iv) उसे यह भी जानने का अधिकार है कि उसे क्यों और किस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है |

(v) मैजिस्टेट ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं।

संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार : किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जायेगा | 

किसी भी अपराध में अभियुक्त व्यक्तियों के अधिकार :

ये तीन प्रकार के हैं : 

(1) किसी अपराध में दण्डित व्यक्ति अथवा अभियुक्त को कानून द्वारा निर्धारित दंड से अधिक दंड नहीं मिलना चाहिए | 

(2) किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दण्डित नहीं किया जा सकता | 

(3) किसी अपराध में अभियुक्त व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता | 

बल प्रयोग : 

बल प्रयोग का अर्थ है अभियुक्त को विवश करना अथवा जबरदस्ती जो वह नहीं करना चाहता है वह करवाना, जैसे - डराना-धमकाना, चोट पहुँचाना, मारना-पीटना, अथवा गैर-कानूनी तरीके से कैद करना | 

निवारक नजरबंदी :

निवारक नजरबंदी का अर्थ है बिना मुक़दमा चलाये किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना |

निवारक नजरबंदी का उदेश्य:

निवारक नजरबंदी का उदेश्य किसी व्यक्ति द्वारा किये गए अपराध के लिए दण्डित करना नहीं, अपितु उसे कोई अपराध करने से रोकना होता है | इस प्रकार यह कदम दंडात्मक नहीं अपितु सुरक्षात्मक होता  है |

किसी भी नजरबन्द व्यक्ति को दो अधिकार प्राप्त है :

(i) यह जानने का अधिकार कि उसे किस आधार पर बंदी बनाया गया है |

(ii) नज़रबंदी के आदेश के विरुद्ध प्रतिवेदन करने का अधिकार | 

आपातकाल (Emergency) : आपातकाल एक अप्रत्याशित, कठिन तथा खतरनाक स्थिति है जिसमें सरकार द्वारा अधिकांश मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया जाता है | जिसके अंतर्गत भाषण की स्वतंत्रता, सभा-सम्मलेन करने की स्वतंत्रता, देश के भीतर घूमने-फिरने की स्वतंत्रता आदि निलंबित हो जाते है | बिना किसी मुकदमे को सरकार किसी को भी हिरासत में रख सकती है |  

आपातकाल में मौलिक अधिकारों पर प्रभाव:

(1) आपातकाल की स्थिति में मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | जिसके अंतर्गत भाषण की स्वतंत्रता, सभा-सम्मलेन करने की स्वतंत्रता, देश के भीतर घूमने-फिरने की स्वतंत्रता आदि निलंबित हो जाते है |

(2) विधानमंडल ऐसे कानून बना सकती है और कार्यपालिका ऐसे कार्य कर सकती है जो अनुच्छेद (article) 19 द्वारा प्रदत अधिकारों के खिलाफ जाते हों |  

(3) आपातकाल एक अप्रत्याशित, कठिन तथा खतरनाक स्थिति है | इसमें तत्काल करवाई की आवश्यकता होती है | आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह पर करता है |

(4) इसमें स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता पर ढेर सारे प्रतिबन्ध देखने को मिलते हैं | इसके अतिरिक्त संविधान में निवारक नजरबंदी का भी प्रावधान है | 

 

2. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार : भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म या मत का पालन करने या चुनने का अधिकार है | चाहे वह किसी भी धर्म का हो वह चाहे तो अन्य किसी भी धर्म या मत के अनुसार उपासना कर सकता है | इसे ही धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार कहते है | 

धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में शामिल प्रावधान 

धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध : सरकार चाहे तो धार्मिक स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबन्ध लगा सकती है | जैसे लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है | जैसे कुछ सामाजिक बुराइयाँ आदि को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है | उदाहरण के लिए सरकार ने सती प्रथा, बहु विवाह मानव-बलि जैसी कुप्रथाओं पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए अनेक कदम उठाये हैं | 

धर्म परिवर्तन : जब कोई व्यक्ति स्वेच्छानुसार अपना धर्म त्यागकर किसी अन्य धर्म को अपना लेता है तो उसे धर्म परिवर्तन कहते है | 

धर्म परिवर्तन का अधिकार : भारतीय संविधान किसी भी नागरिक को एक धर्म से दुसरे धर्म में परिवर्तन करने का अधिकार प्रदान करता है | 

धर्म परिवर्तन के प्रकार : 

(i) स्वेच्छानुसार धर्म परिवर्तन - भारतीय संविधान ऐसे धर्म परिवर्तन को मान्यता देता है जो किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा के लिया गया हो | 

(ii) जबरन धर्म परिवर्तन - हमारा संविधान ऐसे जबरन धर्म-परिवर्तन की इजाज़त नहीं देता है | यह कानूनन अपराध है |  

(iii) लालच देकर धर्म परिवर्तन - भय या लालच देकर कराया गया धर्म-परिवर्तन भी कानूनन अपराध है | 

धर्म का प्रचार और प्रसार का अधिकार - संविधान हमें केवल अपने धर्म के बारे में सूचनाएँ प्रसारित करने का अधिकार देता है जिससे हम दूसरों को अपने धर्म की ओर आकर्षित कर सकें | 

शोषण के विरुद्ध अधिकार :

मानव-व्यापार - जब वस्तुओं की तरह औरतों और पुरुषों को बेचना, भाड़े पर उठाना अथवा अन्यथा उपयोग करना, इसके साथ-साथ औरत और लड़कियों से अनैतिक प्रयोजन के लिए व्यापार करना भी मानव-व्यापार कहलाता है | 

बेगार अथवा जबरन मजदूरी - किसी व्यक्ति से उसकी इच्छा के विरुद्ध काम लेना और फिर उसे मजदूरी न देना अथवा उचित मजदूरी न देना बेगार कहलाता है | 

 

हमारे संविधान में शोषण के विरुद्ध अधिकार में मुख्य दो प्रावधान हैं :

(i) मानव व्यापार तथा बेगार पर रोक : संविधान के अनुच्छेद 23 के द्वारा मानव-व्यापार तथा बेगार और जबरन काम करवाने को गैर कानूनी घोषित किया गया है | 

(ii) बाल मजदूरी पर रोक : बाल मजदूरी को बाल शोषण भी कहा जाता हैं | चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी फैक्ट्री, दुकान अथवा खान में काम पर लगाना अथवा इस प्रकार के बच्चों से कोई जोखिम वाला काम करवाना गैर कानूनी है | 

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार : 

अल्पसंख्यक : अल्पसंख्यक वह समूह है जिसकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर वह किसी अन्य समूह से छोटा होता है। ऐसे समुदाय या जाति को अल्पसंख्यक कहते है | 

सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार के अंतर्गत कौन-कौन से प्रावधान है : 

(i) अल्पसंख्यक समूहों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रखने और उसे विकसित करने का अधिकार है।

(ii) भाषाई या धर्मिक अल्पसंख्यक अपने शिक्षण संस्थान खोल सकते हैं। ऐसा करकेवे अपनी संस्कृति को सुरक्षित और विकसित कर सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं को वित्तीय अनुदान देने के मामले में सरकार इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि उस शिक्षण संस्थान का प्रबंध् किसी अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ में है।

संवैधानिक उपचारों के अधिकार :  

संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान द्वारा नागरिकों को दिया गया वह अधिकार जिसके अंतर्गत वह अपने म#2380;लिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में सीधे उच्च न्यायलय या सर्वोच्य न्यायलय जा सकता है | 

प्रादेश या रिट : सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश और निर्देश दे सकते हैं। न्यायालय कई प्रकार के विशेष आदेश जारी करते हैं जिन्हें प्रादेश या रिट कहते हैं।

संवैधानिक उपचारों के अधिकार के विषय में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने क्या कहा है ? 

संविधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है जिसके द्वारा सभी प्राप्त अधिकारों की रक्षा की जा सकती है | डॉ अम्बेडकर ने इस अधिकार को 'संविधान का ह्रदय और आत्मा' की संज्ञा दी है | 

न्यायलय द्वारा जरी रिट या प्रादेश : 

संवैधानिक उपचार के अधिकार के अंतर्गत न्यायलय को प्राप्त अधिकार जिससे वह नागरिकों के अधिकारों के हनन को रोकता है | 

(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण - बंदी प्रत्यक्षीकरण द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैरकानूनी या असंतोषजनक हो, तो न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है।

(2) परमादेश - यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है और इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।

(3) निषेध् आदेश - जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) उसे ऐसा करने से रोकने के लिए ‘निषेध् आदेश’ जारी करती है।

(4) अधिकार पृच्छा - जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिस पर उसका कोई कानूनी हक नहीं है तब न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश’ के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।

(5) उत्प्रेषण रिट - जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है, तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर उत्प्रेषण द्वारा उसे ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है।

मानवाधिकार : मानवाधिकार का अर्थ है किसी साधारण से साधारण व्यक्ति को प्राप्त वह अधिकार जो एक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से या संविधान से प्राप्त है |  

मानवाधिकार आयोग : मानवाधिकार आयोग एक संवैधानिक संस्था है जो अधिकारों के हनन के विरुद्ध चौकसी करती है | वर्ष 2000 मे सरकार ने राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग का गठन किया | 

मानवाधिकार आयोग का गठन एवं रूपरेखा : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकारों के संबंध् में ज्ञान या व्यावहारिक|

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FAQs on भारतीय संविधान में अधिकार - राजनितिक विज्ञान - 1, Class XI Notes - Class 11

1. भारतीय संविधान में कितने अधिकार हैं?
उत्तर: भारतीय संविधान में कुल मिलाकर 6 मौलिक अधिकार हैं। ये हैं - जीवन, आज़ादी, तंदुरुस्ती, विचारधारा, धर्म और अधिकारियों की सुरक्षा।
2. भारतीय संविधान में गृहस्थी का अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर: भारतीय संविधान में गृहस्थी के अधिकारों में शामिल हैं - निवास, सुरक्षा, तंदुरुस्ती, प्राकृतिक वातावरण के प्रति जवाबदेही, स्वास्थ्य, खान-पान, और अधिकारियों की सुरक्षा।
3. क्या भारतीय संविधान में मानवाधिकारों का उल्लंघन होने पर कोई सज़ा है?
उत्तर: हाँ, भारतीय संविधान में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर सज़ा की प्रावधानिकता है। यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है, तो संविधान द्वारा न्यायिक प्रक्रिया की सुनवाई की जाती है और उल्लंघनकर्ता को सज़ा दी जाती है।
4. भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार कब और कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर: भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय नागरिकों को जन्मजात अधिकार के रूप में प्राप्त होता है। किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार अपने जन्म से ही होता है और यह किसी से छीना नहीं जा सकता है।
5. भारतीय संविधान में याचिका का अधिकार क्या है?
उत्तर: भारतीय संविधान में याचिका का अधिकार, यानी पेशी का अधिकार, नागरिकों को उनके अधिकारों की हिफाज़त के लिए न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार देता है। जब कोई व्यक्ति मानवाधिकारों के उल्लंघन का शिकायत करता है, तो उसे याचिका का अधिकार होता है और वह न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से अपने अधिकारों की हिफाज़त करवा सकता है।
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