अध्याय 2. स्वतंत्रता
स्वतंत्रता की परिभाषा : किसी व्यक्ति या समाज पर अनुचित प्रतिबंध मुक्त व्यवस्था को स्वतंत्रता कहते है |
अत: हम कह सकते है कि सभी प्रतिबंध अनुचित नहीं होते हैं | बहुत से प्रतिबंध व्यक्ति एवं समाज के विकास, समाजिक व्यवस्था, सामाजिक सुरक्षा बनाए रखने एवं राज्य कि शांति के लिए बनाए हुए होते हैं |
प्राकृतिक स्वतंत्रता का आशय: प्राकृतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय: है कि मनुष्य को राज्य की उत्पत्ति से पूर्व की वह अवस्था जिसमें उसे प्राकृतिक रूप से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी | रूसो के अनुसार "मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न हुआ है परन्तु प्रत्येक स्थान पर वह बंधन में बंधा हुआ है |
स्वतंत्रता के प्रकार :
(i) व्यतिगत स्वतंत्रता : किसी व्यक्ति की सोंच और उसके कार्यों पर सरकार और समाज द्वारा अनुचित प्रतिबंध मुक्त व्यवस्था व्यक्तिगत स्वतंत्रता कहलाता है |
(ii) राजनैतिक स्वतंत्रता : व्यक्ति को अपने प्रतिनिधियों के चयन के लिए मतदान का अधिकार उसे किसी पार्टी या दल बनाने या उसमें शामिल होने का अधिकार और विधानमंडल के लिए निर्वाचित होने का अधिकार ये सभी राजनैतिक स्वतंत्रता कहलाती हैं |
(iii) आर्थिक स्वतंत्रता : भूख और निर्धनता से मुक्ति तथा कोई भी व्यापार या व्यवसाय चुनने का अधिकार आदि आर्थिक स्वतंत्रता कहलाती है |
(iv) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : किसी व्यक्ति या समाज के भावनाओं को ठेस पहुँचायें बिना अपनी बात या अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते है |
प्रतिबंधो के स्रोत :-
1. क़ानूनी प्रतिबंध (कानून बनाकर )
2. सामाजिक प्रतिबंध (सामाजिक असमानता)
हानि का सिद्धांत : जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक 'ऑन लिबर्टी' में जिस मुद्दे को उठाया है राजनितिक सिद्धांत में उसे हानि-सिद्धांत के नाम से जाना जाता है |
इस सिद्धांत के अनुसार :
"किसी के कार्य करने कि स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्म रक्षा है | सभ्य समाज के किसी सदस्य कि इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एक मात्र उदेश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है |"
स्वसंबद्ध कार्य: स्वसंबद्ध वे कार्य हैं, जिनके प्रभाव केवल इन कार्यों को करने व्यक्ति पर पड़ते हैं |
मिल का तर्क है कि स्वसंबद्ध कार्य और निर्णयों के मामले में राज्य या किसी बाहरी सत्ता को कोई हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है |
जैसे - कोई व्यक्ति कहता है ये मेरा निजी मामला है इसमें आपको हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है अथवा ये कहे कि ये मेरा काम है मैं इसे वैसे करूँगा जैसा मेरा मन होगा | परन्तु ये सभी स्वसंबद्ध कार्य होगा जब इसका प्रभाव किसी अन्य के ऊपर ना पड़े |
परसंबद्ध कार्य : परसबंध कार्य वे होते है जो कर्ता के आलावा बाकी लोगो पर भी प्रभाव डालते है
स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा :
(अ) नकारात्मक स्वतन्त्रता का अर्थ है किसी प्रतिबंध का न होना |
(ब) इसमें राज्य का व्यक्ति पर काफी सीमित नियंत्रण होता है |
(स) इसके अनुसार वह सरकार सर्वोतम है जो कम से कम शासन करे |
(द) स्वतन्त्रता के नकारात्मक अवधारणा के अनुसार कानून व्यक्ति कि स्वतन्त्रता में बाधा पहुँचाता है |
स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा :
(अ) सकारात्मक स्वतन्त्रता का अर्थ है प्रतिबंधो का अभाव नहीं है |
(ब) इस स्वतन्त्रता में राज्य व्यक्ति के सामाजिक आर्थिक व राजनितिक विकास के लिए दखल कर सकता है |
(स) इसके अनुसार राज्य को नागरिकों के कल्याण के लिए सभी क्षेत्रों में कानून बनाकर दखल का अधिकार है |
(द) इस अवधारणा के अनुसार कानून व्यक्ति कि स्वतन्त्रता में वृद्धि करता है |
सामाजिक प्रतिबंध : समाज में किसी व्यक्ति या समूह या जाति पर लगे प्रतिबंध को सामाजिक प्रतिबंध कहा जाता है जैसे भारत में काफी समय तक कुछ जातियों को मंदिर में नहीं जाने दिया जाता था इस प्रकार कि स्वतन्त्रता से व्यक्ति की स्वतन्त्रता कम होती है
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की भूमिका :
1. लोकतान्त्रिक शासन
2. मौलिक अधिकार
3. कानून का शासन
4. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता
5. शक्तियों का विकेंद्रीकरण
6. शक्तिशाली विरोध दल
7. आर्थिक समानता
8. विशेषाधिकार न होना
9. जागरूक जनता
10. स्वतंत्र मीडिया
राष्ट्रिय स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले दो नेताओं का नाम :
(i) महात्मा गाँधी (भारत)
(ii) नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका)
प्रतिबंधों कि आवश्यकता :
(i) समाज के प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास के लिए |
(ii) मनमानी को रोकने के लिए |
(iii) समाज में अराजकता को रोकने एवं कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए |
स्वतंत्रता के चार संरक्षक :
(i) प्रजातंत्र की स्थापना : प्रजातंत्र कि स्थापना से राज्य में नागरिकों की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है | स्वतंत्रता की स्थापना के लिए लोकतंत्र का होना बहुत ही आवश्यक है | प्रजातंत्र में शक्ति का स्रोत जनता होती है और शासन जनमत के आधार पर चलाया जाता है | स्वतंत्रता को छिनने वाली सरकार को प्रजातंत्र में आसानी से चुनाव द्वारा हटाया जा सकता है |
(ii) मौलिक अधिकारों की घोषणा : स्वतंत्रता की सुरक्षा तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की घोषणा संविधान के मौलिक अधिकार में ही कर दी जाये | संविधान में लिखे अधिकारों और स्वतंत्रता को कोई भी सरकार आसानी से उल्लंघन नहीं कर सकती है |
(iii) शक्तियों का विकेंद्रीकरण : स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण बहुत ही जरुरी है | शक्तियों के केन्द्रीकरण से राज्य में निरंकुशता को बढ़ावा मिलता है | जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है और नागरिक उत्पीडित होते है |
(iv) स्वतंत्र न्यायपालिका : नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा संविधान के बाद यदि कोई करता है तो वो है न्यायपालिका | इसके लिए आवश्यक है कि न्यायपालिका स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से न्याय कर सके | न्यायपालिका ही नागरिक अधिकारों एवं मौलिक अधिकारों की रक्षा करती हैं |
उदारवादियों के अनुसार स्वतंत्रता : उदारवादियों के अनुसार स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है, कि मनुष्य के जीवन पर किसी स्वेच्छाचारी सत्ता का नियंत्रण नहीं हो और उसे अपने विवेक के अनुसार आचरण करने की स्वतंत्रता हो | उनका मानना है कि राज्य का कार्यक्षेत्र बढ़ने से व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है |
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