अध्याय 3. समानता
समानता का अर्थ : जिस संदर्भ में हम समानता का विचार कर रहे है उस संदर्भ में सामान व्यवहार करने से है |
समानता के प्रकार :
1. प्राकृतिक समानता
2. सामाजिक समानता
3. नागरिक वैधानिक समानता
4. राजनितिक समानता
5. आर्थिक समानता
1. प्राकृतिक समानता : प्राकृतिक समानता वह समानता है जो प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से प्राप्त है |
जैसे - सभी मनुष्य प्राकृतिक रूप से समान है अर्थात हम सभी प्राकृतिक रूप से मनुष्य हैं |
2. सामाजिक समानता: सामाजिक समानता का अर्थ है समाज में बिना किसी जाति, धर्म, वरंश, लिंग और रंग के समाज में किसी व्यक्ति से समान व्यवहार एवं समाजिक अवसरों से है | समाज में यदि सभी के साथ सामान व्यवहार हो रहा है और उसे सभी सामाजिक अवसरों का लाभ मिल रहा है तो इसे सामाजिक समानता कहते हैं |
3. नागरिक वैधानिक समानता : सभी व्यक्ति को क़ानूनी रूप से सामान अधिकार प्राप्त हो अर्थात कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हो इस समानता के अंतर्गत कानून किसी भी व्यक्ति से जाति, धर्म, नस्ल, वंश और लिंग के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं करता है ऐसी समानता को नागरिक वैधानिक समानता कहते हैं |
4. राजनितिक समानता : जब सभी नागरिकों को राज्य द्वारा समान राजनितिक अधिकार प्राप्त हो तो इसे राजनितिक समानता कहते हैं | राजनितिक अधिकार से तात्पर्य है सभी को वोट देने का अधिकार, अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार, राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, चुनने या चुनाव लड़ने का अधिकार इत्यादि से है |
5. आर्थिक समानता : आर्थिक समानता का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी को समान रोजगार, समान वेतन, व्यवसाय और समान रूप से आर्थिक कार्य करने का अधिकार हो तो ऐसी समानता को आर्थिक समानता कहते हैं |
उदारवाद :
सकारात्मक कार्यवाही : सकारात्मक कार्यवाही का अर्थ है सरकार को समानता की स्थापना एवं वृद्धि के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने से है जिससे सभो प्रकार समाज के समानता को बढ़ावा मिले | निम्न तथा वंचित समुदायों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाएँ |
कानून के समक्ष समानता :
कानून के समक्ष समानता का अर्थ है संविधान एवं कानून के लिए सभी नागरिक समान हैं | उसके लिए कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा, ऊँचा या निचा, शिक्षित या अशिक्षित, अमीर या गरीब नहीं है सभी उसकी दृष्टि में समान है और वो किसी से इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है और समान दृष्टि से सभी कि रक्षा करता है | संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने सभी समान है |
अध्याय 3. समानता
समानता का महत्त्व :
(i) स्वतंत्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है |
(ii) समानता होने से कोई नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है |
(iii) सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतंत्रता पाने के लिए समानता होना बहुत ही जरुरी है |
(iv) लोकतंत्र में अच्छी कानून के शासन के लिए समानता आवश्यक है अन्यथा लोकतंत्र का कोई मूल्य नहीं है |
(v) मौलिक अधिकारों कि सार्थकता भी समानता से ही है |
(vi) सभी के विकास के लिए समानता होना अति आवश्यक है |
समानता की विशेषताएँ :
(i) समानता के होने से विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति हो जाती है |
(ii) सभी को विकास के सामान अवसर मिलते हैं |
(iii) न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के अवसर प्राप्त होते हैं |
(iv) तर्क संगत भेदभाव की उपयुक्तता बढ़ जाती है |
(v) सामानों में समानता और असमानों में असमानता संभव हो पाता है |
उदारवादी समानता के तत्व:
(1) व्यक्तियों को उनकी योग्यतानुसार पुरस्कार देना |
(2) प्रतियोगिता का सिद्धांत अपनाना |
(3) प्रत्येक व्यक्ति के लिए न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी |
मार्क्सवादी समानता के तत्व :
(1) उत्पादन व वितरण के साधनों पर सरकार का नियंत्रण
(2) सभी को विकास के सामान अवसर प्रदान करना |
राजनितिक समानता स्थापित करने के उपाय :
(1) सबके लिए आर्थिक समानता |
(2) राजनितिक शिक्षा का प्रसार |
(3) कानून का शासन हो |
(4) प्रेस की स्वतंत्रता हो |
(5) लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था हो |
(6) सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार का प्रयोग हो |
आर्थिक समानता स्थापित करने के उपाय :
(1) धन का न्यायोचित वितरण
(2) उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण
(3) सिमित सम्पति का अधिकार
(4) आर्थिक सुरक्षा
(5) समान काम के लिए समान वेतन व्यवस्था |
भारत सरकार द्वारा सामाजिक समानता के लिए किए गए उपाय :
(1) कानून के समक्ष समानता (अनुo 14) |
(2) अस्पृश्यता का अंत (अनुo 17) |
(3) संसद तथा विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान |
(4) सरकारी सेवाओं में एससी, इसटी, और ओबीसी का आरक्षण |
(5) स्थानीय शासन में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण (अनुo 73-74) |
समानता को प्रोत्साहित करने के उपाय :
(i) संविधान : समानता को स्थापित करने में संविधान का बहुत बड़ा महत्त्व है | संविधान के द्वारा समानता को प्रोत्साहित किया जा सकता है |
(ii) कानून का शासन : कानून का शासन स्थापित कर समानता को बढाया जा सकता है | क्योंकि कानून का शासन का अर्थ ही है सबके लिए समान कानून और कानून के लिए सभी बराबर हैं |
(iii) शक्तियों का विकेंद्रीकरण : समानता को स्थापित करने के लिए की सत्ता शक्तियों का विकेंद्रीकरण होना चाहिए | इसमें सभी राज्य के सभी लोगों, समूहों की भागीदारी होनी चाहिए |
(iv) स्वतंत्र प्रेस : न्याय की समानता के लिए प्रेस की स्वतंत्रता बहुत ही आवश्यक है | विचारों को स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र प्रेस हो |
समाजवाद :
वह व्यवस्था जिसमें कोई राज्य का शासन का उदेश्य व्यक्तिगत अथवा कुछ व्यक्तियों तक सिमित न होकर समस्त समाज का कल्याण करना हो और राज्य की सभी नीतियाँ समाज कल्याण के उदेश्य से ही बनाई जाती हो | तो उसे समाजवाद कहते हैं |
समाजवाद की विशेषताएँ :
(i) इसका उदेश्य वर्त्तमान असमानताओं को न्यूनतम करना और संसाधनों का न्यायपूर्ण बँटवारा है |
(ii) वे शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे आधारभूत क्षेत्रों में सरकारी नियमन, नियोजन और नियंत्रण का समर्थन करते हैं |
(iii) राज्य की नीतियाँ समाज कल्याण के उदेश्य से बनाई जाती है |
(iv) ये समाज में सभी प्रकार के समानताओं को बढ़ावा देते है |
प्रमुख समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया द्वारा चिन्हित पांच असमानताएँ :
(i) स्त्री-पुरुष असमानता
(ii) चमड़ी के रंग पर आधारित असमानता
(iii) जातिगत असमानता
(iv) कुछ देशों का अन्य देशों पर औपनिवेशिक शासन
(v) आर्थिक असमानता
1. समानता क्या है? | ![]() |
2. समानता क्यों महत्वपूर्ण है? | ![]() |
3. समानता के प्रकार क्या हैं? | ![]() |
4. समानता के लिए क्या उपाय हैं? | ![]() |
5. समानता का अर्थ और अवश्यकता क्या है? | ![]() |