मुख्य बिन्दू :-
स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति की योगिता का विस्तार करना और उसके अंदर की संभावनाओं को विकसित करना है |
स्व निर्धारित कार्य / स्वसंबंद्ध कार्य - ये क्रियाएँ मानव की वे क्रियाएँ है जो केवल उसी व्यक्ति से संबधित होती है जो व्यक्ति अपने काम को स्वयं करता है तथा वह दूसरों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करते है |
अन्य निर्धारित कार्य / परस्वसंबंद्ध कार्य - ये क्रियाएँ मानव की वे क्रियाएँ है जो केवल दुसरे व्यक्ति से संबधित होती है जो अपना कम स्वयं न करके दुसरे व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप करते है |
राष्ट्रिय स्वतंत्रता उत्तेजनापूर्ण और आत्मिक होता है और राष्ट्रिय स्वतंत्रता के लिए लोग अपना जीवन समर्पित कर देते है |
जबकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति के विकास से जुड़ा होता है तथा इसमें व्यक्ति का अपना स्वार्थ निहित होता है |
अभ्यास प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1: स्वंतंत्रता से क्या आशय है ? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई संबंध है |
उत्तर : स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति की योगिता का विस्तार करना और उसके अंदर की संभावनाओं को विकसित करना है। इस अर्थ में स्वतंत्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सके ।
स्वतंत्रता के दो पहलु महत्वपूर्ण है जिनमे
(i)बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है | (ii) लोगों के अपनी प्रतिभा का विकास करना है |
प्रश्न 2: स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अंतर है?
उत्तर : स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में अंतर :-
स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा के पक्ष
नकारात्मक स्वतंत्रता को प्राचीन विचारक ज्यादा महत्व देते है क्योंकि उनका मानना था कि स्वतंत्रता से अभिप्राय है मनुष्यों पर किसी भी प्रकार से बंधनों का अभाव/मुक्ति से है या मनुष्य पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो | तथा उसकी कार्यों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध होना चाहिए | मनुष्य को अपने अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए |वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक,तथा धार्मिक रूप से स्वतंत्र होना चाहिए | व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार जो कुछ करना चाहता है उसे करने देना चाहिए | राज्य के द्वारा उस पर किसी भी प्रकार से प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए |
जाँन लाँक, एडम स्मिथ और जे.एस.मिल आदि विचारक स्वतंत्रता के नकारात्मक पक्षधर थे | जाँन लाँक को नकारात्मक स्वतंत्रता के प्रतिपादक माने जाते है इनके अनुसार -
स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा के पक्ष
जाँन लास्की और मैकाइवर स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक है | उनका मानना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव है | मनुष्य समाज में रहता है और समाज का हित ही उसका हित है | समाज हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए अवसर की प्राप्ति ही स्वतंत्रता है |
सकारात्मक स्वतंत्रता की विशेशताएँ है -
प्रश्न 3: सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है ? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ?
उत्तर : सामजिक प्रतिरोध शब्द का तात्पर्य है कि सामजिक बंधन और अभिव्यक्ति पर जातिय एवं व्यक्ति के व्यवहार पर नियंत्रण से है | ये बंधन प्रभुत्व और बाह्य नियत्रंण से आता है | ये बंधन विभिन्न विधियों से थोपे जा सकते है ये कानून, रीतिरिवाज, जाति, असमानता,समाज की रचना हो सकती है |
स्वतंत्रता के वास्तविक अनुभव के लिए सामाजिक और क़ानूनी बंधन आवश्यक है तथा प्रतिरोध और प्रतिबन्ध न्यायसंगत और उचित होना चाहिए | लोगों की स्वतंत्रता के लिए प्रतिरोध जरूरी है क्योंकि विना उचित प्रतिरोध या बंधन के समाज में आवश्यक व्यवस्था नहीं होगी जिससे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है |
प्रश्न 4: नागरिकों की स्वंतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है ?
उत्तर : नागरिकों की स्वंतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की भूमिका :-
राज्य के संबध में कई विचारकों का मानना है कि राज्य लोगों की स्वतंत्रता के बाधक है | इसलिए उनकी राय में राज्य के समान कोई संस्था नहीं होनी चाहिए |
व्यक्तिवादियों का मानना है कि राज्य एक आवश्यक बुराई है इसलिए वे एक पुलिस राज्य चाहते है जो मानव की स्वतंत्रता की रक्षा बाहरी आक्रमणों और भीतरी खतरों से कर सके | इसलिए आधुनिक स्थिति में स्वतंत्रता की अवधारणा और स्वतंत्रता के आवश्यक अवयव बदल गए है | आज इस तथ्य को स्वीकार किया जाता है कि प्रतिरोध और उचित बंधन आवश्यक हैं | यह स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है |
प्रश्न 5:अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का क्या अर्थ है ? आपकी राय में इस स्वंतत्रता पर समुचित प्रतिबन्ध क्या होंगे ? उदाहरण सहित बताइए |
उत्तर : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है जो प्रजातंत्र को सफल बनाती है तथा इसका अर्थ है कि एक पुरुष या स्त्री को स्वयं को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए | जैसे - लिखने,कार्य करने, चित्रकारी करने ,बोलने या कलात्मक करने की पूर्ण स्वतंत्रता |
उदाहरण के लिए ,
भारतीय संविधान में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, परन्तु साथ ही कानून - व्यवस्था, नैतिकता, शान्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा को यदि नागरिक द्वारा हानि होने की आशंका की अवस्था में न्यायसंगत बंधन लगाने का प्रावधान है | इस प्रकार विध्यमान परिस्थियों में न्यायसंगत प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है | परन्तु इस परिबंध का विशेष उद्देश्य होता है और यह न्यायिक समीक्षा के योग्य हो सकता है |
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न 1: स्वराज का अर्थ क्या है ?
उत्तर : भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी अवधारणा ‘स्वराज’ है। स्वराज का अर्थ ‘स्व’ का शासन है और ‘स्व’ के ऊपर शासन भी हो सकता है |
प्रश्न 2: स्वराज का क्या आशय है तथा स्वराज के बारे में गाँधी जी का क्या मानना था?
उत्तर : भारतीय राजनीतिक विचारों में स्वतंत्रता की समानार्थी अवधारणा ‘स्वराज’ है। स्वराज का अर्थ ‘स्व’ का शासन है और ‘स्व’ के ऊपर शासन भी हो सकता है | स्वराज का आशय अपने ऊपर अपना राज भी है।
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के संदर्भ में स्वराज राजनीतिक और संवैधनिक स्तर पर स्वतंत्रता की माँग है और सामाजिक और सामूहिक स्तर पर यह एक मूल्य है |
गाँधी जी के अनुसार -
स्वराज की समझ गाँधी जी के ‘हिंद स्वराज’ में प्रकट हुई है। हिंद स्वराज के शब्दों में, ‘‘जब हम स्वयं पर शासन करना सीखते हैं तभी स्वराज है’’। स्वराज केवल स्वतंत्रता नहीं ऐसी संस्थाओं से मुक्ति भी है, जो मनुष्य को उसी मनुष्यता से वंचित करती है। स्वराज में मानव को यंत्रवत बनाने वाली संस्थाओं से मुक्ति पाना निहित है। साथ ही स्वराज में आत्मसम्मान, दायित्वबोध् और आत्म साक्षात्कार को पाना भी शामिल है। स्वराज पाने की परियोजना में सच्चे ‘स्व’ और उसके समाज-समुदाय से रिश्तों को समझना महत्त्वपूर्ण है।’
गाँधी जी का मानना था कि ‘स्वराज’ के पफलस्वरूप होने वाले बदलाव न्याय के सिद्धांत से निर्देशित होकर व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह की संभावनाओं को अवमुक्त करेंगे।
प्रश्न 3: स्वतंत्र समाज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : स्वतंत्र समाज वह होता है जिसमे व्यक्ति अपने हित संवर्धन न्यूनतम प्रतिबंधों के बीच करने में समर्थ हो। स्वतंत्रता को इसलिए बहुमूल्य माना जाता है, क्योंकि इससे हम निर्णय और चयन कर पाते हैं। स्वतंत्रता के कारण ही व्यक्ति अपने विवेक और निर्णय की शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं।
प्रश्न 4: स्वतंत्रता के बारे में नेताजी सुभाष चन्द्र के विचारों का वर्णन कीजिए |
उत्तर : स्वतंत्रता के बारे में नेताजी सुभाष चन्द्र के विचार :-
यदि हम विचारों में क्रांति लाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारे सामने एक ऐसा आदर्श होना चाहिए जो हमारे पूरे जीवन को एक उमंग से भर दे। यह आदर्श स्वतंत्रता का है। लेकिन स्वतंत्रता एक ऐसा शब्द है, जिसके बहुत सारे अर्थ हैं। हमारे देश में भी स्वतंत्रता की अवधारणा विकास की एक प्रक्रिया से गुजरी है। स्वतंत्रता से मेरा आशय ऐसी सर्वांगीण स्वतंत्रता है- जो व्यक्ति और समाज की हो, अमीर और गरीब की हो, स्त्रियों और पुरुषों की हो तथा सभी लोगों और सभी वर्गों की हो। इस स्वतंत्रता का मतलब न केवल राजनीतिक गुलामी से मुक्ति होगा बल्कि संपत्ति का समान बंटवारा, जातिगत अवरोधों और सामाजिक असमानताओं का अंत तथा सांप्रदायिकता और धार्मिक असहिष्णुता का सर्वनाश भी होगा।
प्रश्न 5: उदारवाद क्या है ?
उत्तर : एक उदारवाद वह है जो रूढ़ीवाद तथा संकीर्ण विचारों का विरोधी है और जीवन के प्रति एक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण रखता है | उसका विचार है कि व्यक्ति को स्वतंत्र विचार रखने तथा उन्हीं व्यक्त करनें का अधिकार है | उदारवाद का विचार मनुष्य की स्वतंत्रता से है |
उदारवाद एकमात्र आधुनिक विचारधारा है, जो सहिष्णुता का समर्थन करती है। आधुनिक उदारवाद की विशेषता यह है कि इसमें केंद्र बिंदु व्यक्ति है। उदारवाद के लिए परिवार, समाज या समुदाय जैसी ईकाइयों का अपने आप में कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए इन ईकाइयों का महत्त्व तभी है, जब व्यक्ति इन्हें महत्त्व दे।
उदाहरण के लिए,
किसी से विवाह करने का निर्णय व्यक्ति को लेना चाहिए, परिवार, जाति या समुदाय को नहीं।
प्रश्न 6: हार्म सिद्धांत या हानि सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने निबंध ‘ऑन लिबर्टी’ में बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से उठाया है। राजनीतिक सिद्धांत के विमर्श में इसे ‘हानि सिद्धांत’ कहा जाता है।
हार्म सिद्धांत यह है कि किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्म-रक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।
जे.एस.मिल.ने हार्म के सिद्धांत को व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप के लिए अकेला प्रभावी कारक के रूप में स्वीकार किया है तथा उनहोंने मानव को दो भागों में विभाजित भी कियां है - स्व निर्धारित कार्य व अन्य निर्धारित कार्य |
इनका मानना है कि राज्य एक दुसरे एजेंसी द्वारा व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नही रखता है | ये कार्य एक दुसरे को हानी या प्रभाव नहीं डालते, परन्तु व्यक्ति के कार्य का निर्णय दूसरों को प्रभावित करते है |
प्रश्न 7: स्वसंबंद्ध और परस्वसंबंद्ध कार्यों में अंतर बताइए|
अथवा
स्व निर्धारित और अन्य निर्धारित कार्यों में अंतर बताइए|
उत्तर : जे.एस.मिल ने मानव के कार्यों को दो भागों में बाँटा है -
(i) स्व निर्धारित कार्य (क्रियाएँ ) / स्वसंबंद्ध कार्य - ये क्रियाएँ मानव की वे क्रियाएँ है जो केवल उसी व्यक्ति से संबधित होती है जो व्यक्ति अपने काम को स्वयं करता है तथा वह दूसरों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करते है |
(ii) अन्य निर्धारित कार्य (क्रियाएँ ) / परस्वसंबंद्ध कार्य - ये क्रियाएँ मानव की वे क्रियाएँ है जो केवल दुसरे व्यक्ति से संबधित होती है जो अपना कम स्वयं न करके दुसरे व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप करते है |
प्रश्न 8: अभिव्यक्ति स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है जो प्रजातंत्र को सफल बनाती है तथा इसका अर्थ है कि एक पुरुष या स्त्री को स्वयं को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए | जैसे - लिखने,कार्य करने, चित्रकारी करने ,बोलने या कलात्मक करने की पूर्ण स्वतंत्रता |
उदाहरण के लिए ,
भारतीय संविधान में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, परन्तु साथ ही कानून - व्यवस्था, नैतिकता, शान्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा को यदि नागरिक द्वारा हानि होने की आशंका की अवस्था में न्यायसंगत बंधन लगाने का प्रावधान है | इस प्रकार विध्यमान परिस्थियों में न्यायसंगत प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है | परन्तु इस परिबंध का विशेष उद्देश्य होता है और यह न्यायिक समीक्षा के योग्य हो सकता है |
प्रश्न 9: जे.एस.मिल.के आधार की व्याख्या कीजिए जिसपर उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को न्यायसंगत बताया है ?
उत्तर :19वीं शताब्दी के ब्रिटेन के एक राजनीतिक विचारक जॉन स्टुअर्ट मिल ने अभिव्यक्ति तथा विचार और वाद-विवाद की स्वतंत्रता का बहुत ही भावपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया है |
उन्होंने अभिव्यक्ति स्वतंत्रता को निम्लिखित आधारों पर न्यायसंगत बताया है :-
प्रश्न 10: राष्ट्रिय स्वतंत्रता से आप क्या समझाते है ?
उत्तर :राष्ट्रिय स्वतंत्रता उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की व्यक्तिगत स्वतंत्रता |
जिस प्रकार व्यक्ति का विकास स्वतंत्रता की प्राप्ति से होती है उसे प्रकार राष्ट्रिय स्वतंत्रता के बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं है | व्यक्तिगत विकास और राष्ट्रिय विकास साथ - साथ चलते है | ये दोनों एक दुसरे के पूरक है |
राष्ट्रिय स्वतंत्रता उत्तेजनापूर्ण और आत्मिक होता है और राष्ट्रिय स्वतंत्रता के लिए लोग अपना जीवन समर्पित कर देते है |
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