समास का अर्थ है ‘संक्षिप्तीकरण’। इसका शाब्दिक अर्थ होता है – छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं।
दूसरे शब्दों में: दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द (जिसका कोई अर्थ हो) को समास कहते हैं।
जैसे:
संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है। जर्मन आदि भाषाओं में भी समास का बहुत अधिक प्रयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:
वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥
समास रचना में दो पद होते हैं , पहले पद को 'पूर्वपद' कहा जाता है और दूसरे पद को 'उत्तरपद' कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे:
समास के 6 भेद होते है, जो इस प्रकार है:
1. अव्ययीभाव समास
इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।
जैसे:
2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है, पूर्वपद अप्रधान होता है। इसी के साथ दोनों पदों के मध्य में कारक का लोप रहता है, तो इस प्रकार के समास को तत्पुरुष समास तत्पुरुष समास कहते हैं। तत्पुरुष समास में विशेषणीय पद और मुख्य पद का संबंध एक निश्चित भावना को प्रकट करता है।
जैसे:
तत्पुरुष समास के 6 भेद होते है, जो इस प्रकार है:
i. कर्म तत्पुरुष समास: इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
ii. करण तत्पुरुष समास: जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह य विभक्ति “के द्वारा” और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे:
iii. सम्प्रदान तत्पुरुष समास: इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
iv. अपादान तत्पुरुष समास: इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (से) या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
v. सम्बन्ध तत्पुरुष समास: इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
vi. अधिकरण तत्पुरुष समास: इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
3. कर्मधारय समास
इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण -विशेष्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे:
कर्मधारय समास के भेद:
i. विशेषण पूर्वपद कर्मधारय समास: जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।
जैसे:
ii. विशेष्य पूर्वपद कर्मधारय समास: इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।
जैसे: कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
iii. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास: इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।
जैसे:
iv. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास: इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे: आमगाछ ,वायस-दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद:
i. उपमानकर्मधारय समास: इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘ इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद , चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति , वचन और लिंग के होते हैं , इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे: विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
ii. उपमितकर्मधारय समास: यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे:
iii. रूपककर्मधारय समास: जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।
जैसे: मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।
4. द्वन्द समास
द्वन्द जिस समास के सभीपद प्रधन हो द्वन्द होता है। द्वन्द का अर्थ है- दो का जोड़ा। इसमें दो पद प्रधन होते हैं और इसमें अवयव शब्दों के बीच समुच्चयबोध्क अव्यय ‘और’ अथवा, ‘या’ का लोप होता है। विग्रह करने पर ‘और’ अथवा ‘या’ का प्रयोग किया जाता है।
जैसे:
द्वन्द समास के भेद:
i. इतरेतरद्वंद्व समास: वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।
जैसे:
ii. समाहार द्वन्द्व समास: समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं , तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।
जैसे:
iii. वैकल्पिक द्वंद्व समास: इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या,अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।
जैसे:
5. द्विगु समास
द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं। इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे:
द्विगु समास के भेद:
i. समाहारद्विगु समास: समाहार का मतलब होता है समुदाय , इकट्ठा होना , समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।
जैसे:
ii. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास: उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
क. बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में।
जैसे:
ख. जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।
जैसे:
6. बहुव्रीहि समास
इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे:
बहुव्रीहि समास के भेद:
i. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास: इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है ,वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे:
ii. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास: समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे:
iii. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास: जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है। इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।
जैसे:
iv. व्यतिहार बहुब्रीहि समास: जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘ इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।
जैसे:
v. प्रादी बहुब्रीहि समास: जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।
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समास संबंधी अशुद्धियों के कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं-
शब्द निर्माण के लिए क्रिया या शब्दों के प्रति पूर्व जो शब्दांश जोड़े जाते है वे उपसर्ग कहलाते हैं। जैसे: प्र, परा, अप, सम, आदि। ये किसी न किसी शब्द के साथ ही आते हैं और उसके अर्थ में प्रायः परिवत्र्तन भी करते हैं।
जैसे:
उपसर्गों के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
1. प्रातिपदिक उपसर्ग
2. क्रियाविशेषण उपसर्ग
3. उपसर्ग समानार्थक शब्द
समानार्थी शब्द ऐसे शब्द होते हैं जिनके शाब्दिक अर्थ अलग-अलग होते हैं, लेकिन उच्चारण या वर्तनी में समानताएँ होती हैं। समानार्थी शब्द समानार्थी शब्दों से भिन्न होते हैं, जो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द होते हैं जिनका उच्चारण या वर्तनी एक जैसी होती है।
जैसे:
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1. समास क्या है और इसके प्रकार क्या हैं ? | ![]() |
2. उपसर्ग क्या होते हैं और इनमें से कुछ उदाहरण क्या हैं ? | ![]() |
3. समानार्थी शब्द क्या होते हैं और इनके क्या लाभ हैं ? | ![]() |
4. पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग कैसे किया जाता है ? | ![]() |
5. समास और पर्यायवाची शब्दों में क्या अंतर है ? | ![]() |