प्रश्न 1. सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी ?
अथवा
सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्रियों ने क्या सहयोग दिया ?
उत्तर: सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्रियों का विशेष सहयोग था। गुजराती सेविका संघ के जुलूस में पुलिस ने बहुत-सी लड़कियों को गिरफ्तार किया। मारवाड़ी बालिका विद्यालय ने झण्डा उत्सव मनाया। स्त्रियाँ जुलूस निकालकर ठीक स्थान पर पहुँचने की कोशिश कर रही थीं। लाठी चार्ज की परवाह किए बिना स्त्रियाँ बड़ी तादाद में मोन्युमेंट में पहुँची और उसकी सीढ़ियों पर चढ़कर झण्डा फहराया और घोषणा पढ़ी। पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लाल बाजार भेजने पर भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। लगभग 105 स्त्रियों को गिरफ्तार किया गया।
प्रश्न 2. ”जबसे कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा ही, कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।“ यहाँ पर कौन-से और किसके द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है ? क्या कानून भंग करना उचित था ? पाठ के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर: यहाँ पर ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है। पुलिस कमिश्नर का नोटिस निकला था। कानून था कि अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती । जो इस सभा में हिस्सा लेगा वह दोषी समझा जाएगा। कानून भंग करना हमारे विचार से उचित था, ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस मनाने का अधिकार नहीं था जिसे मनाने के लिए उन्हें रोका जा रहा था। उस कानून को भंग करके भारतीय नेताओं ने झण्डारोहण भी किया और जुलूस भी निकाला था।
प्रश्न 3. जुलूस के लाल बाजार आने पर लोगों की क्या दशा हुई ?
उत्तर: जुलूस के लाल बाजार आने पर लोगों की यह दशा हुई कि उस जुलूस में नर-नारी, युवा सभी शामिल होने लगे। वे ‘वन्दे मातरम्’ के नारे लगा रहे थे। लोगों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। पुलिस उन्हें रोकने का प्रयास करने के लिए लाठी चलाती जिससे लोग घायल हो जाते थे। लोगों को पकड़कर कुछ दूर पुलिस ले जाती और फिर छोड़ देती थी। इसमें 105 स्त्रियाँ पकड़ी गई थीं। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।
प्रश्न 4. बहुत से लोग घायल हुए, बहुतों को लाॅकअप में रखा गया, बहुत-सी स्त्रियाँ जेल गईं फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार में यह सब अपूर्व क्यों है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: हमारे विचार में यह सब अपूर्व इसलिए है, क्योंकि इस दिन बहुत अधिक लोगों ने स्वतंत्रता दिवस मनाया था। लोगों ने अपने-अपने नेताओं के संरक्षण में झण्डारोहण करके विशाल सभाएँ कीं और जुलूस निकाले थे। ब्रिटिश सरकार के बनाए कानून को तोड़ने के अपराध से युवाओं, पुरुषों और स्त्रियों को पुलिस का कोप भाजन बनना पड़ा था। महिलाओं को जेल भी जाना पड़ा था। इसलिए यह दिन अपूर्व है। इस दिन बहुत अधिक लोग लगभग 200 कार्यकत्र्ता घायल हुए थे और बंदी बनाए गए थे। आज जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ कोई काम नहीं हो रहा है, वह आज बहुत अंश में धुल गया था।
प्रश्न 5. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
(क)आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है वह आज बहुत अंश में धुल गया।
(ख) खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
उत्तर:
(क) ”डायरी का एक पन्ना“ नामक पाठ के माध्यम से लेखक श्री सीताराम सेकसरिया कह रहे हैं, कि जब 26 जनवरी, 1931 के दिन सारे देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था, उस दिन क्रांतिकारियों द्वारा स्थान-स्थान पर प्रदर्शन किया जा रहा था। झण्डारोहण, सभा और जुलूस को रोकने की व्यवस्था ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी। इस कार्यक्रम में महिलाओं द्वारा धरना जुलूस का आयोजन किया गया। जब सुभाष बाबू का जुलूस चैरंगी पर पहुँचा तो उसे रोक दिया गया और लाठीचार्ज किया गया। विरोध स्वरूप वहाँ भीड़ एकत्र हो गई। स्त्रियाँ जुलूस बनाकर आगे चलीं। तब उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। कुल मिलाकर 105 (एक सौ पाँच) स्त्रियाँ बंदी बनाकर थाने लाई गईं। काफी लोग घायल भी हुए थे। आज जो कुछ भी यह हुआ था वह अपूर्व था क्योंकि बंगाल या कलकत्ता के नाम पर लगा हुआ कलंक, कि यहाँ काम नहीं हो रहा है, बहुत अंश तक धुल गया था।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति के अनुसार लेखक उस समय का वर्णन कर रहे हैं जब स्वतंत्रता दिवस के आयोजन के अवसर पर ब्रिटिश सरकार ने कानून भंग होने से रोकने के लिए, किसी भी सार्वजनिक सभा को होने से रोकने के लिए नोटिस और सूचना दे दी थी कि जो व्यक्ति किसी भी सभा में शामिल होगा वह दोषी समझा जाएगा। सर्वसाधारण और क्रांतिकारियों ने खुली चुनौती के रूप में सभा का आयोजन करने का निश्चय किया था। इससे पूर्व कोई ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
प्रश्न 6. ‘डायरी का एक पन्ना’ पाठ के आधार पर भारतीय स्वाधीनता संग्राम की एक झाँकी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पाठ में 26 जनवरी, 1931 के दिन कोलकाता में राष्ट्रीय झंडा फहराए जाने का वर्णन है। इस दिन भारतीय जनता ने अंग्रेज सरकार के विरूद्ध खुला विद्रोह किया था। काँग्रेस के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन चल रहा था। सरकारी आदेश के अनुसार इस दिन सार्वजनिक सभा करने और राष्ट्रीय झंडा फहराए जाने पर रोक थी। स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली कौंसिल शाम को मोनुमेंट के नीचे सभा करने तथा झंडा फहराए जाने के लिए तत्पर थी। यह खुला विद्रोह था। पुलिस ने खुलकर लाठीचार्ज किया, पकड़-धकड़ की और आंदोलन को दबाने की कोशिश की। अभूतपूर्व उत्साह होने के कारण लोग चोट खाकर भी रुकते नहीं थे। हजारों नर-नारी सभा स्थल पर इकट्ठे हुए। कितने ही घायल हुए। पकड़े गए और कितनों को जेलों में बंद कर दिया गया। सरकार की हर कोशिश के बावजूद निर्धारित समय पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी गई।
प्रश्न 7. ”भारत को मिली स्वतंत्रता में सभी वर्गों की भूमिका थी“ - सिद्ध कीजिए।
उत्तर: भारत को जो स्वतंत्रता मिली, उसमें समाज के सभी वर्गों की भूमिका थी। इस आंदोलन में स्त्रियों ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। उन्होंने स्वप्रेरणा से अपनी टोलियाँ खुद बनाकर संघर्ष का नेतृत्व किया। उन्होंने पूर्व निश्चय के अनुसार मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा भी फहराया और पूर्ण स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी। उन्होंने लाठियाँ खाईं, गिरफ्तारी दी तथा जेल गईं। विद्यार्थियों ने भी बढ़-चढ़कर झंडोत्सव मनाया। व्यापारियों ने बाजारों और मकानों को ऐसे सजाया मानो स्वतंत्रता मिल गई हो।
प्रश्न 8. 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाया गया ?
उत्तर: दिसंबर 1929 में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। उसमें प्रस्ताव पारित किया गया कि हम पूर्ण स्वराज्य से कम कुछ नहीं मागेंगे। 26 जनवरी, 1930 को देशवासियों ने भारत को ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ दिलाने के लिए हर प्रकार का बलिदान देने की प्रतिज्ञा की। अतः उस दिन को तब से स्वतंत्रता-दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। आजाद भारत में इसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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