कक्षा 10 के पाठ "एक कहानी यह भी" में लेखिका "मन्नू भंडारी" ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण तथ्यों को उभारा है। लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था परन्तु उनकी यादें अजमेर के ब्रह्मापुरी मोहल्ले के एक दो-मंज़िला मकान में पिता के बिगड़ी हुई मानसिक स्थिति से शुरू हुई। इस दस्तावेज़ की मदद से "एक कहानी यह भी" के पाठ पर आधारित लघु उत्तरीय प्रश्नों को समझा जा सकता है।
प्रश्न 1: मन्नू भंडारी ने अपने पिताजी के इंदौर के दिनों के बारे में क्या जानकारी दी है?
उत्तरः मन्नू भंडारी ने अपने पिताजी के बारे में इंदौर के दिनों की जानकारी देते हुए कहा कि वहाँ उनकी (पिताजी की) समाज में बड़ी प्रतिष्ठा थी, उनका सम्मान था और नाम था। कांग्रेस के साथ-साथ वे समाज सुधार के कामों से भी जुड़े हुए थे। ये पिताजी की खुशहाली के दिन थे और उन दिनों उनकी दरियादिली के चर्चे भी खूब थे।
प्रश्न 2: मन्नू भंडारी ने अपनी माँ के किन गुणों की चर्चा अपनी आत्मकथा में की है?
उत्तरः मन्नू भंडारी की माँ धैर्य और सहन-शक्ति में धरती से कुछ ज़्यादा ही थीं। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि वे पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य और बच्चों की हर ज़िद को अपना फ़र्ज़ समझकर बड़े सहज भाव से स्वीकार करती थीं। उन्होंने ज़िंदगी भर अपने लिए कुछ नहीं माँगा, कुछ नहीं चाहा, केवल दिया ही दिया। इसीलिए लेखिका के भाई-बहनों का सारा लगाव भी माँ के साथ था।
प्रश्न 3: लेखिका मन्नू भंडारी की कहानियों के अधिकांश पात्र कहाँ के थे ? इससे किस तथ्य का बोध होता है ?
उत्तरः लेखिका की कहानियों के अधिकांश पात्र गली-मोहल्ले के थे। इससे यह पता चलता है कि उनका अपने पड़ोसियों से आत्मीय संबंध था। उनके अनुसार, मोहल्ले में खेलता बच्चा भी घर के समान सुरक्षित महसूस करता है।
प्रश्न 4: ‘एक कहानी यह भी’ पाठ में पिताजी के शक्की स्वभाव की लेखिका पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? बताइए।
उत्तरः पिताजी के शक्की स्वभाव का प्रभाव लेखिका पर भी पड़ा। वह खुद भी शक्की स्वभाव की हो गईं और अपनी उपलब्धियों पर विश्वास नहीं कर पाती थीं। इससे उनका आत्मविश्वास कमजोर होता गया और मानसिक पीड़ा बढ़ती रही।
प्रश्न 5: काॅलेज से पिताजी के लौटने पर लेखिका उनके किस व्यवहार को देखकर आश्चर्यचकित रह गईं थीं ? ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः लेखिका को आशा के विपरीत पिताजी का व्यवहार देखकर आश्चर्य हुआ। वह डाँटने की बजाय लेखिका की प्रशंसा करने लगे। जब कॉलेज से अनुशासनहीनता की शिकायत पर पिताजी को बुलाया गया, तो वह पहले बहुत नाराज़ हुए। लेकिन प्रिंसिपल से मिलकर लौटने पर गर्व से बोले कि “मेरी लड़की जो कर रही है, वह पूरे देश की पुकार है।” यह सुनकर लेखिका हैरान रह गई।
प्रश्न 6: मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व में उनके पिताजी का क्या प्रभाव दिखाई पड़ता है ?
उत्तरः मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व में पिताजी की अनेक अच्छाइयों और बुराइयों ने प्रवेश पा लिया था। बचपन में लेखिका दुबली और मरियल थीं, इसलिए उनके पिताजी उनकी बड़ी और गोरी बहन सुशीला की खूब प्रशंसा करते थे, जिससे लेखिका के भीतर गहराई में हीन-भावना की ग्रंथि ने जन्म ले लिया था। इसीलिए आज लेखिका में पिताजी के शक्की स्वभाव की झलक दिखलाई देती है।
प्रश्न 7: लेखिका मन्नू भंडारी का अपने पिता से वैचारिक टकराहट का सिलसिला कब से और क्यों चला ?
अथवा
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः लेखिका मन्नू भंडारी को उनके पिता के व्यक्तित्व ने जाने-अनजाने में प्रभावित किया। पिताजी से उनकी टकराहट का सिलसिला होश संभालने के बाद ही शुरू हो गया था — कहीं कुंठाओं के रूप में, कहीं प्रतिक्रिया के रूप में, तो कहीं प्रतिच्छाया के रूप में।
प्रश्न 8: लेखिका मन्नू भंडारी और उसके भाई-बहनों का सारा लगाव किसके साथ था और क्यों ?
उत्तरः लेखिका और उनके सभी भाई-बहनों का सारा लगाव माँ के साथ था क्योंकि माँ स्वभाव से बहुत सरल और शांत थीं। उनकी त्याग और सहिष्णुता की भावना, तथा घर में होती उनकी उपेक्षा को देखकर भी सभी का लगाव माँ की ओर था।
प्रश्न 9: ‘पड़ोस कल्चर’ छूट जाने से आज की पीढ़ी को क्या हानि हुई है-‘एक कहानी यह भी’ पाठ में लिखित इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तरः ‘पड़ोस कल्चर’ छूट जाने से आज की पीढ़ी संस्कारविहीन होती जा रही है। पहले पड़ोस के बच्चों को डाँटना-डपटना या स्नेह करना सभी का अधिकार होता था। परंतु अब पड़ोस कल्चर समाप्त होता जा रहा है। आपसी संबंधों में आत्मीयता और अपनापन कम होता जा रहा है।
प्रश्न 10: उस घटना का उल्लेख कीजिए जिसके बारे में ‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका को न अपने कानों पर विश्वास हो पाया और न आँखों पर।
अथवा
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तरः जब लेखिका को कॉलेज में बुलाया गया और उनके पिता वहाँ से लौटकर बड़े गर्व से बोले कि “मेरी लड़की जो कर रही है, वह पूरे देश की पुकार है। इस पर कोई कैसे रोक लगा सकता है।” पिताजी का यह बदला हुआ रूप देखकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न ही अपने कानों पर।
प्रश्न 11: मन्नू भंडारी के लेखकीय व्यक्तित्व निर्माण में शीला अग्रवाल की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः शीला अग्रवाल लेखिका के कॉलेज में हिन्दी की अध्यापिका थीं तथा खुले विचारों वाली एक प्रबुद्ध महिला थीं। उनके संपर्क में आकर मन्नू भंडारी की समझ का दायरा विस्तृत हुआ। वे लेखिका को चुन-चुनकर अच्छी पुस्तकें पढ़ने को देतीं और उन पर लंबी चर्चाएँ भी करतीं, जिससे लेखिका की सोच विकसित हुई। इसके अतिरिक्त वे देश-दुनिया की राजनीतिक स्थिति से भी लेखिका को अवगत करातीं और अपनी जोशीली बातों से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की प्रेरणा देतीं। लेखिका के व्यक्तित्व निर्माण में निःसंदेह शीला अग्रवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
प्रश्न 12: शीला अग्रवाल जैसी प्राध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को कैसे सँवार सकती हैं?
उत्तरः शीला अग्रवाल जैसी प्राध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को इस प्रकार सँवार सकती हैं - वे विद्यार्थी का सही मार्गदर्शन करती हैं, उसकी सोच-समझ का दायरा बढ़ाती हैं, उसकी रुचियों के विकास का अवसर देती हैं और अपने आचरण से स्वयं को एक आदर्श रूप में प्रस्तुत करती हैं। चूँकि बचपन और किशोरावस्था में विद्यार्थियों में पूर्ण समझदारी नहीं होती, इसलिए उन्हें सही दिशा देने के लिए ऐसे प्रेरणादायक शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 13: ‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका मन्नू भंडारी के पिता ने रसोई को ‘भटियार खाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है? यह उनकी किस सोच का परिचायक है?
अथवा
इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है ?
उत्तरः उन्होंने रसोई को ‘भटियारखाना’ इसलिए कहा क्योंकि वे मानते थे कि वहाँ कार्य करने से मन्नू की प्रतिभा और क्षमता नष्ट हो जाएगी और उसका व्यक्तित्व विकास नहीं हो पाएगा। यह उनके आधुनिक और प्रगतिशील सोच का परिचायक है।
प्रश्न 14: मन्नू भंडारी के पिता की कौन-कौन सी विशेषताएँ अनुकरणीय हैं?
उत्तरः उनके पिता आधुनिक सोच वाले, समाजसेवी, देशभक्त, संवेदनशील और शिक्षा को महत्व देने वाले व्यक्ति थे। वे बच्चों की प्रतिभा को निखारने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करते थे।
प्रश्न 15: ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर मन्नू भंडारी के काॅलेज से शिकायती पत्र आने पर भी उनके पिता उनसे नाराज़ क्यों नहीं हुए ?
उत्तरः शिकायती पत्र मिलने पर भी पिता ने नाराज़गी इसलिए प्रकट नहीं की क्योंकि यह कार्यवाही देश की आज़ादी के लिए थी, जिस पर उन्हें गर्व था।
प्रश्न 16: ‘मन्नू भंडारी की माँ त्याग और धैर्य की पराकष्ठा थी-फिर भी लेखिका के लिए आदर्श न बन सकी।’
उत्तरः लेखिका की दृष्टि में माँ का स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं था। माँ का त्याग, धैर्य और सहिष्णुता विवशता से उत्पन्न थे। लेखिका स्वयं स्वतंत्र विचारों वाली थी, अपने अधिकार और कर्तव्यों को समझने वाली। परंतु माँ पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य समझकर सहन करती थीं। माँ की मजबूरी में लिपटा उनका त्याग और सहनशीलता कभी भी लेखिका का आदर्श नहीं बन सके।
प्रश्न 17: मन्नू भंडारी की हिन्दी अध्यापिका को काॅलेज वालों ने क्यों और क्या नोटिस दिया था ? ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर समझाइए।
उत्तरः मन्नू भंडारी की हिन्दी अध्यापिका शीला अग्रवाल को कॉलेज वालों ने नोटिस दिया, क्योंकि उनके अनुसार उन्होंने छात्रों को भड़काया था। इससे उन पर अनुशासन बिगाड़ने का आरोप लगा था।
प्रश्न 18: मन्नू भंडारी की ऐसी कौन सी खुशी थी जो 15 अगस्त, 1947 की खुशी में समाकर रह गई ?
उत्तरः मन्नू भंडारी और उनकी सहपाठियों पर काॅलेज का अनुशासन भंग करने का आरोप लगा, जिसके कारण थर्ड ईयर की कक्षाएँ बंद कर दी गईं और उनका काॅलेज में प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया। इसके विरोध में छात्राओं ने जमकर प्रदर्शन और हुड़दंग किया। अंततः काॅलेज प्रशासन को झुकना पड़ा और अगस्त में फिर से थर्ड ईयर की कक्षाएँ शुरू कर दी गईं। यह निर्णय लेखिका के लिए अत्यंत खुशी का कारण था, लेकिन यह खुशी 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता मिलने की अपार खुशी में समाकर रह गई।
प्रश्न 19: स्त्री होने के बाद भी लेखिका के लिए माँ का त्याग आदर्श क्यों नहीं बन पाया ? ‘एक कहानी यह भी’ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः माँ अनपढ़ थीं, दबे रहते थे, पिता की हर इच्छा पूरी करती थीं, उसे ही अपना धर्म मानती थीं। बच्चों की हर जिद पूरी करती थीं, अपनी स्वेच्छा कभी प्रकट नहीं की। उन्होंने केवल दिया, कुछ चाहा नहीं।
प्रश्न 20: माँ में इतनी विशेषताएँ होते हुए भी लेखिका मन्नू भंडारी अपनी माँ को अपना आदर्श क्यों नहीं बना सकीं?
उत्तरः लेखिका स्वयं स्वतंत्र विचारों वाली, अपने अधिकार और कर्तव्य को समझने वाली थीं, पर माँ पिताजी की हर ज्यादती को अपना प्राप्य समझकर सहन करती थीं। माँ की मजबूरी में लिपटा उनका त्याग और सहनशीलता कभी भी लेखिका का आदर्श नहीं बन सके।
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