प्रश्न 1: जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।॥ 1॥
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक॥ 2॥
(i) उपर्युक्त दोहे के पाठ का नाम और लेखक का नाम बताएं।
(क) पाठ का नाम- ध्वनि, लेखक- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
(ख) पाठ का नाम- क्या निराश हुआ जाए , लेखक का नाम- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) पाठ का नाम- कबीर की साखियाँ, लेखक- कबीरदास
(घ) पाठ का नाम- दीवानों की हस्ती, लेखक- भगवतीचरण वर्मा
उतर: (ग) पाठ का नाम- कबीर की साखियाँ, लेखक- कबीरदास
(ii) कवि किसकी जाति न पूछने की बात कर रहा है?
(क) साधु की
(ख) लोगों की
(ग) लेखक की
(घ) मजदूरों की
उतर: (क) साधु की
(iii) कवि किसका मोल करने की बात कर रहा है?
(क) अभिमान का
(ख) म्यान का
(ग) तलवार का
(घ) सुख का
उतर: (ग) तलवार का
(iv) ‘गारी’ शब्द का क्या अर्थ है?
(क) गाली
(ख) जीप
(ग) सोना
(घ) गाल
उतर: (क) गाली
प्रश्न 2: माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं॥ 3॥
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ॥ 4॥
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय॥ 5॥
(i) मनुष्य हाथ में क्या रखकर जाप करते है?
(क) फूल
(ख) अक्क्षत
(ग) माला
(घ) चावल
उतर: (ग) माला
(ii) घास का तिनका किसका प्रतीक है?
(क) ज्ञानी व्यक्ति की
(ख) कमजोर एवं तुच्छ व्यक्ति की
(ग) मूर्ख व्यक्ति की
(घ) इनमे से कोई नही
उतर: (ख) कमजोर एवं तुच्छ व्यक्ति की
(iii) मनुष्य का मन कैसा होना चाहिए?
(क) मनमोहक
(ख) चंचल और शांत
(ग) शीतल, निर्मल और शांत
(घ) उपर्युक्त सभी
उतर: (ग) शीतल, निर्मल और शांत
(iv) ‘दुहेली’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
(क) दुःख देने वाली
(ख) सुख देने वाली
(ग) सबका दुख हर लेने वाली
(घ) सबको देने वाली
उतर: (क) दुःख देने वाली
(v) ‘आपा को डारि दे’ का तात्पर्य निम्नलिखित में से क्या है?
(क) अपना घमंड त्याग देना
(ख) अपना घमंड बढ़ा देना
(ग) अपना सब कुछ त्याग देना
(घ) अपना सब कुछ लुटा देना
उतर: (क) अपना घमंड त्याग देना
प्रश्न 1: साधु से क्या पूछना चाहिए?
उत्तर: साधु से ज्ञान की बातें पूछनी चाहिए।
प्रश्न 2: घास कब कष्टप्रद बन जाती है?
उत्तर: घास कष्टप्रद तब बन जाती है जब घास का सूखा तिनका आँख में चला जाता है।
प्रश्न 3: मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे में व्यक्त होता है?
उत्तर: जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।
प्रश्न 4: आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर: आपा का अर्थ 'अहंकार' है और आत्मविश्वास का अर्थ है 'स्वयं पर विश्वास'।
आपा का अर्थ 'अहंकार' है और उत्साह का अर्थ है 'उमंग'।
प्रश्न 5: सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
उत्तर: "आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।।"
एकसमान होने के लिए आवश्यक है कि सभी के विचार एक जैसे हों।
प्रश्न 6: कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए।
उत्तर: साखी शब्द संस्कृत के शब्द 'साक्षी' का तदभव रूप है। इसका अर्थ है - प्रमाण। साखी में जीवन मूल्य और सत्य का चित्रण किया गया है। कबीर ने अपने अनुभवों को दोहों के रूप में कहा है। प्रामाणिक होने के कारण ही कबीर के दोहों को साखी कहा जाता है।
प्रश्न 7: कबीर की साखियाँ हमें क्या संदेश देती हैं?
उत्तर: कबीर के सखियाँ हमें यह संदेश देती हैं कि हमें साधु से उनकी जाति न पूछकर उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। किसी से भी हमें कटु वचन नहीं बोलना चाहिए। ईश्वर की भक्ति हमें स्थिर मन से करना चाहिए। हमें अपना स्वभाव शांत रखना चाहिए और सभी को समान भाव से देखना चाहिए।
प्रश्न 8: कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीरदास जी के अनुसार हमें कभी भी अहंकारवश किसी भी वस्तु को निम्न समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि समय आने पर वही छोटी वस्तु बड़े कष्ट का कारण बन सकती है। हर एक में कुछ न कुछ अच्छाई होती है। अत: हमें सबका सम्मान करना चाहिए।
प्रश्न 9: ‘तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं’-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: तलवार का महत्व होता है, म्यान का नहीं" से कबीर यह कहना चाहते हैं कि हमें किसी भी वस्तु के आंतरिक गुणों को महत्व देना चाहिए न कि बाहरी सुंदरता को। उसी प्रकार किसी व्यक्ति की पहचान उसके गुणों और ज्ञान से होती है, न कि कुल, जाति, धर्म आदि से। ज्ञान के आगे जाति का कोई अस्तित्व नहीं है।
प्रश्न 10: पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा संत कबीर जी कहते हैं कि केवल मुख से हरी का जाप करने से या हाथ में माला फेरने मात्र से ही ईश्वर का स्मरण नहीं होता है। यदि हमारा मन चारों दिशाओं में भटक रहा है और मुख से हरि का नाम ले रहे हैं, तो वह सच्ची भक्ति नहीं है। ईश्वर की सच्ची भक्ति तो मन को स्थिर रखकर भगवान का सुमिरन करते हुए ही संभव है।
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1. कबीर की साखियों का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. कबीर की साखियों में कौन-से प्रमुख शिक्षाएं मिलती हैं? | ![]() |
3. कबीर की साखियों में सामाजिक सन्देश कैसे प्रस्तुत किए गए हैं? | ![]() |
4. कबीर की साखियों का आज के समाज पर क्या प्रभाव है? | ![]() |
5. कबीर की साखियों का साहित्यिक मूल्य क्या है? | ![]() |