1. में सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, दोनों ही जगत के अति परिचित और अति प्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्र्चाइ पर मुहर लर्गाइ थी-‘धरा के प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना।’’
मैं शिरीष के फूलों को देखकर कहता हूँ कि क्यों फलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है। सुनता कौन है? महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमें प्राण-कण थोड़ा भी ऊध्र्वमुखी है, वे टिक जाते हैं। दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरन्तर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने, वहीं देर तक बने रहें तो काल-देवता की आँख बचा जाएँगे।
प्रश्न: (क) शिरीष की किस विशेषता के कारण लेखक को यह सब लिखना पड़ा है?
(ख) मूर्ख अपना स्थान क्यों नहीं छोड़ते हैं? उन्हें क्या समझना जरूरी है?
(ग) किस सच्चाई को उजागर करने के लिए तुलसी को उद्धृत किया गया है?
उत्तर: (क) शिरीष के वृक्ष पर पुराने मजबूत फूलों को देखकर लेखक को यह सब लिखना पड़ा है कि समय रहते यह झड़ते क्यों नहीं हैं, अपने स्थान पर डटे रहते हैं।
(ख) मूर्ख यह समझते है कि वे जहाँ बने हैं, वहाँ देर तक बने रहे तो काल देवता की नजर से बच जायेंगे। पर यह सच नहीं है। जमे रहने पर मृत्यु और जल्दी आती है।
(ग) बुढ़ापा और मृत्यु दोनों संसार के अति प्रमाणित सत्य हैं अर्थात् हमें प्रड्डति के व्यवहार से सीख लेकर अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही परिस्थितियों में निरन्तर गतिशील बनाना चाहिए।
2. मैं शिरीष के फूलों को देखकर कहता हूँ कि क्यों नहीं फलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है! सुनता कौन है? महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड रहे हैं, जिनमे प्राणकण थोड़ा भी ऊध्र्वमुखी है, वे टिक जाते हैं। दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते है कि जहाँ बने हैं, वही देर तक वही बने रहे तो काल देवता की आँख बचा जाएँगे।
प्रश्न: (क) शिरीष की किस विशेषता पर लेखक को यह सब कहना पड़ा?
(ख) द्विवेदी जी वेळ अनुसार, तुलसीदास के कथन का क्या आशय है? उसमें किस सच्चाई को उजागर किया गया है?
(ग) ‘महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं’ से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर: (क) शिरीष के फल आसानी से अपनी डाल (शाखा) नहीं छोड़ते मानो उनमें अधिकार लिप्सा अधिक है। जब तक नये फल आकर उनको धक्का मार के हटा न दें तब तक वे अपना स्थान छोड़ते ही नहीं। इसी विशेषता को देखकर लेखक को अधिकार लिप्सा की यह बात कहनी पड़ी है।
(ख) तुलसी के कथन का आशय यह है कि प्रत्येक वस्तु जो पृथ्वी पर पैदा हुई है उसे एक दिन अवश्य ही नष्ट होना पड़ेगा। मृत्यु निश्चित है इस सच्चाई को इसके माध्यम से उजागर किया गया है।
(ग) महाकाल देवता ;समय देवता अर्थात् यमराजद्ध समरूप कोड़े चला रहे हैं अर्थात् समय बीतता जा रहा है। उनकी मार से जो कमजोर और जीर्ण हो गये हैं वे नष्ट हो रहे हैं किन्तु जिनमें अभी प्राण शक्ति है वे उस मार को झेलकर भी जीवित हैं।
3. एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हजरत न जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमंडल से अपना रस खींचता है। ज़रूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तंतुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत-कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवाह, पर सरस और मादक।
प्रश्न: (क) अवधूत किसे कहते हैं? लेखक शिरीष को अवधूत क्यों मानता है?
(ख) ‘यह हजरत’ कौन है? उनकी किस विशेषता का उल्लेख किया गया है?
(ग) शिरीष की किस विशेषता के कारण वनस्पतिशास्त्री के कथन को सच मानता है?
उत्तर: (क) अवधूत फक्कड़ योगी को कहते हैं। लेखक शिरीष को अवधूत इसलिए मानता है क्योंकि वह भी फक्कड़ योगी की तरह सुख-दुःख दोनों में प्रसन्न अर्थात् खिला रहता है।
(ख) ‘यह हजरत’ शिरीष है। तेज गरमी में जब धरती और आसमान दोनों भीषण ताप से जलते रहते हैं तब भी यह हजरत ;शिरीषद्ध न जाने कहाँ से अपना रस खींचकर आठों याम मस्त रहते हैं।
(ग) एक वनस्पतिशास्त्री ने लेखक को बताया था कि शिरीष उस श्रेणी का पडे है जो वायुमण्डल से अपना रस खींचता है उनकी यह बात सच है नही तो भयंकर लू के समय इतने कामेल तंतुजाल आरै एसेे सुकुमार कसेर को कसैे उगा सकता है
4. शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरेंगे जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन-धूप, वर्षा, आँधी, लू-अपने आप में सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब-तब हूक उठती है- हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
प्रश्न ;कद्ध अवधूत किसे कहा जाता है? शिरीष को अवधूत कहने का क्या कारण है?
(ख) ‘वह बूढ़ा’ किसे कहा गया है? वह देश की किन विषम परिस्थितियों में स्थिर रह सका?
(ग) शिरीष को देखकर लेखक के मन में क्या प्रश्न उठता है और क्यों?
उत्तर: (क)
व्याख्यात्मक हल- समदर्शी योगी को अवधूत कहा जाता है जो सुख-दुःख को समान भाव से सहन कर लेता है। शिरीष भी समान भाव से धूप, वर्षा, शीत को सहता है, इनकी चिंता नहीं करता अतः उसे अवधूत कहा गया है
(ख)
व्याख्यात्मक हल- ‘वह बूढ़ा’ गांधी जी को कहा गया है। अंग्रेजी शासनकाल के अत्याचारों को वह अहिंसा भाव से सामना करते रहे तथा भारत को स्वतंत्रता मिलते ही जो हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए, भारी मारकाट मची उसमें भी वे अपने मन को शांत रख सके इसी ओर संकेत है।
(ग)
व्याख्यात्मक हल- शिरीष को देखकर लेखक के मन में यह प्रश्न उठता है कि आज के युग में शिरीष जैसी सहनशीलता एवं त्याग कहीं दिखाई नहीं पड़ता। लोगों में त्याग का अभाव है समदर्शी भावना का समाज से लोप हो गया है और स्वार्थ की प्रवृत्ति प्रबल हो गई है।
अथवा
प्रश्न: (क) प्रकृति के बाह्य परिवर्तनो और भारतीय समाज की विषमताओ का साम्य किस प्रकार दिखाया गया है?
(ख) अपने देश के किन बवंडरों की ओर लेखक संकेत कर रहा है? उनके भीतर कौन स्थिर रह सका था
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए- ‘मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब-तब हूक उठती है-हाय, यह अवधूत आज कहाँ है?’
अथवा
‘हाय, वह अवधूत आज कहाँ है?’ कथन का भाव समझाइए।
उत्तर: (क) लेखक ने प्रकृति के बाह्य परिवर्तनों और भारतीय समाज की विषमताओं का साम्य दिखाया है कि जीवन में कितना ही संघर्ष और कोलाहल हो, मनुष्य को अपनी सरसता और अपना उत्साह नहीं छोड़ना चाहिए जिस प्रकार शिरीष अपने परिवेश की भीषण गर्मी, लू और प्रचंड धूप की भीषणता को साहसपूर्वक झेलने की क्षमता रखता है, भीतर से सरस बना रहता है, उसी प्रकार मनुष्य को चारों ओर फैले भ्रष्टाचार, अत्याचार, मार-काट, लूट-पाट और रक्तपात क ेबीच भी निराश नही ंहोना चाहिए। उन्हें इन विपरीत परिस्थितियो के बावजूद स्थिर और शांत रहना चाहिए।
(ख) लेखक देश में मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट खून-खच्चर आदि बवंडरों की ओर संकेत कर रहा है। उनके भीतर भी देश का एक बूढ़ा ;महात्मा गाँधीद्ध स्थिर रह सका था।
(ग) ‘मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब-तब हूक उठती है- हाय, वह अवधूत (गाँधी) आज कहाँ है?’ का आशय है- वर्तमान समाज में चारों ओर मार-काट, अग्निदाह, लूटमार, खून-खराबा का बोलबाला है। मानव सभ्यता घोर संकट से परिव्याप्त है। सत्य, अहिंसा आदि आदर्श कहीं भी दिखाई नहीं देते। जन-जन आतंक की छाया में जी रहा है। वर्तमान सभ्यता में मनुष्य विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने हेतु हिंसा मार-काट, लूटपाट पर उतावला हो उठता है। वह सत्य-अहिंसा की अपेक्षा असत्य, हिंसा मार-काट का पालन करता है। निजी स्वार्थों की पूर्ति करने में उसे किसी का भी अहित दिखाई नहीं देता। लेखक ऐसे संकट के समय सत्य, अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी जी को याद करता है।
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1. हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म कहाँ हुआ था? |
2. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किस क्षेत्र में अपना योगदान दिया? |
3. हजारी प्रसाद द्विवेदी को किस सम्मान से नवाजा गया था? |
4. हजारी प्रसाद द्विवेदी की कौन सी पुस्तकें सबसे प्रसिद्ध हैं? |
5. हजारी प्रसाद द्विवेदी के बारे में और जानने के लिए कौन सा आरंभिक स्रोत प्राथमिक रूप से उपयोगी होगा? |
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