Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)  >  अनुवाद - कल्पतरूः | Chapter Explanation

अनुवाद - कल्पतरूः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9) PDF Download

1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिः नगेन्द्रः। तस्य सानो: उपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुः इति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्। स जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्। कदाचित् हितैषिणः पितृमन्त्रिणः यौवराज्ये स्थितं तं जीमूतवाहनं उक्तवन्तः-“युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्” इति।

शब्दार्था: –

नगेन्द्रः – पर्वतों का राजा
सम्प्राप्तयौवनम् – जवानी को प्राप्त
सानो: उपरि – चोटी के ऊपर
यौवराज्ये – युवराज के पद पर
विभाति – सुशोभित है
अभिषिक्तवान् – अभिषेक कर दिया
वसति स्म – रहता था
कदाचित् – किसी समय
कुंलक्रमागमः – कुल परंपरा से आया हुआ
सर्वकामदः – सभी की कामनाओं को पूर्ण करने वाला
आराध्य – आराधना करके
अस्मिन् – इसके
तत्प्रसादात् – उसकी कृपा से
अनुकूले – अनुकूल
सम्भवम् – उत्पन्न हुए
स्थिते – रहने पर
प्राप्नोत् – प्राप्त किया
बाधितुम् – दुखी करने में, सर्वभूत
अनुकम्पी – सभी प्राणियों पर दया करने वाला
नशक्नुयात् – समर्थ नहीं होवे
प्रेरितः – प्रेरणा दिया गया

अर्थ-
सब रत्नों की भूमि, पर्वतों में श्रेष्ठ हिमालय नामक पर्वत है। उसके शिखर (चोटी) पर कंचनपुर नामक नगर सुशोभित है। वहाँ विद्याधरों के राजा श्रीमान जीमूतकेतु रहते थे। उनके घर (महल) के बगीचे में वंश परंपरा से आ रहा कल्पवृक्ष था। उस राजा ने उस कल्पवृक्ष की आराधना करके और उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया। वह महान, दानवीर और सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला हुआ। उसके गुणों से प्रसन्न और अपने मंत्रियों से प्रेरित राजा ने समय पर जवानी को प्राप्त उसे (राजकुमार को) युवराज के पद पर अभिषिक्त किया। युवराज पद पर बैठे हुए उस जीमूतवाहन को (एक बार) किसी समय हितकारी पिता के मंत्रियों ने कहा-“हे युवराज! जो यह सब कामनाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष आपके बगीचे में खड़ा है, वह आपके लिए सदैव पूज्य है। इसके अनुकूल होने पर इंद्र भी हमें दुखी नहीं कर सकता है”।

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
उपरि – गृहस्य उपरि खगाः तिष्ठति।
तत्र – त्वं तत्र गत्वा स्वपाठं पठ।
इति – अहं कथयामि इति।
च – रामः लक्ष्मणः च वनम् अगच्छताम्।
कदाचित् – ऋषिः कदाचित् अपि असत्यं न अवदत्।
अपि – त्वम् अपि एतत् कार्यकर्तुं समर्थोऽसि।

विशेषण-विशेष्य-चयनम् –
सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः – हिमवान्
कुलक्रमागतः – कल्पतरुः
बोधिसत्त्वांशसम्भवम् – जीमूतवाहनम्
प्रसन्नः/प्रेरितः – राजा
सर्वकामदः – कल्पतरुः
अनुकूले स्थिते – अस्मिन्
श्रीमान्/विद्याधरपतिः – जीमूतकेतुः
सः/ राजा – जीमूतकेतुः
महान्/दानवीर:/सर्वभूतानुकम्पी – सः
हितैषिभिः – पितृमान्त्रिभिः
पूज्यः – सः

2. एतत् आकर्ण्य जीमूतवाहनः अचिन्तयत्-“अहो ईदृशम् अमरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैः अस्माकं तादृशं फलं किमपि न प्राप्तम्। किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थः अर्थितः। तदहम् अस्मात् कल्पतरोः अभीष्टं साधयामि” इति। एवम् आलोच्य सः पितुः अन्तिकम् आगच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरम् एकान्ते न्यवेदयत्-“तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरम् इदं सर्व धनं वीचिवत् चञ्चलम्। एकः परोपकार एव अस्मिन् संसारे अनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तद् अस्माभिः ईदृशः कल्पतरुः किमर्थ रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं ‘मम मम’ इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमं कल्पपादपम् आराधयामि।

शब्दार्थाः –

आकर्ण्य – सुनकर
अन्तिकम् – समीप
असीनम् – बैठे हुए (को)
संसारसागरे – संसार रूपी सागर में
प्राप्यापि – प्राप्त करके भी
आशरीरम् – शरीर से लेकर
किमपि – कुछ भी
वीचिवत् – लहरों की तरह
अनश्वरः – नष्ट न होने वाला
कैश्चित् – कुछ (के द्वारा)
युगान्तपर्यन्तम् – युग के अंत तक
कृपणैः – कंजूसों के द्वारा
प्रसूते – पैदा करता है
अर्थः – धन
पूर्वैः – पूर्वजों के द्वारा
अर्थितः – कमाया गया
आग्रहेण – इच्छा से
अभीष्टम् – प्रिय
एकफलसिद्धये – एकमात्र फल की प्राप्ति के लिए
आलोच्य – सोचकर
आराधयामि – आराधना करता हूँ।

अर्थ –
यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में सोचा-“अरे ऐसे अमर पौधे को प्राप्त करके भी हमारे पूर्वजों के द्वारा वैसा कोई भी फल नहीं प्राप्त किया गया, किंतु केवल कुछ ही कंजूसों ने ही कुछ धन प्राप्त किया। इस कल्पवृक्ष से तो मैं अपनी प्रिय इच्छा को पूरी करूँगा।” ऐसा सोचकर वह पिता के पास आया। (वहाँ) आकर सुखपूर्वक बैठे हुए पिता को एकान्त में निवेदन किया-“पिता जी! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार रूपी सागर में इस शरीर से लेकर सारा धन लहरों की तरह चंचल है।
एक परोपकार ही इस संसार में अनश्वर (नष्ट नहीं होने वाला) है जो युगों तक यश पैदा करता (देता) है। तो हम ऐसे कल्पवृक्ष की किसलिए रक्षा करते हैं? और जिन पूर्वजों के द्वारा यह (मेरा-मेरा) इस आशा से रक्षा किया गया, वे (पूर्वज) इस समय कहाँ गए? उनमें से किसका यह है? अथवा इसके वे कौन हैं? तो परोपकार के एकमात्र फल की सिद्धि (प्राप्ति) के लिए आपकी आज्ञा से इस कल्पवृक्ष की आराधना करता हूँ।

विशेषण – विशेष्य चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
ईदृशम् – अमरपादपम्
तादृशम् – फलम्
पूर्वैः – पुरुषैः/यैः
कैश्चित् – कृपणैः
अस्मात् – कल्पतरोः
सुखमासीनम् – पितरम्
सर्वम्, चञ्चलम् – धनम्
अभीष्टम् – मनोरथम्
अस्मिन् – सुखमासीनम्
एकः, अनश्वरः – परोपकारः
इमम् – कल्पपापम्’

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अपि – त्वम् अपि मया सह विद्यालयं चल।
किन्तु – किन्तु देवः अत्र एव तिष्ठतु।
एव – सः एव मम बन्धुः वर्तते।
एवं – एवं दुष्कर्म त्वं कदापि मा कुर्याः।
च – रामः लक्ष्मणः च विद्यालयम् अगच्छताम्।
तु – सः तु मम पिता एवास्ति।
कुत्र – बुद्धिम् विना कुत्र जनानां शोभा?
वा – अधुना त्वं गृहं गच्छ आपणं वा।
इति – तस्य भाषा मधुरा अस्ति इति।

3. अथ पित्रा ‘तथा’ इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-“देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि तथा करोतु देव” इति। एवं वादिनि जीमूतवाहने “त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि” इति वाक् तस्मात् तरोः उदभूत्। क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।

शब्दार्थाः –

अथ – इसके बाद
कामम् – कामना को
तथा – वैसे ही करो
अदरिद्राम् – गरीब रहित
अभ्यनुज्ञातः – आज्ञा को प्राप्त किया
वादिनि – कहने पर
उपगम्य – पास जाकर
उदभूत् – निकली
अस्मत्पूर्वेषा – हमारे पूर्वजों की,
समुत्पत्य – ऊपर उठकर
अभीष्टाः – प्रिय
वसूनि – रत्नों की
कामाः – कामनाएँ
दुर्गतः – ग़रीब।।

अर्थ –
इसके बाद पिता के द्वारा ‘वैसा ही करो’ ऐसी आज्ञा प्राप्त किया हुआ, वह जीमूतवाहन कल्पवृक्ष के पास जाकर बोला- “हे देव (भगवन्)! आपने हमारे पूर्वजों की सारी प्रिय कामनाएँ पूर्ण की हैं, तो मेरी एक कामना को पूरा कीजिए। जैसे पृथ्वी पर गरीबों को न देखू वैसे आप भगवन् कीजिए”। इस प्रकार जीमूतवाहन के कहने पर “तुम्हारे द्वारा छोड़ दिया गया यह मैं जा रहा हूँ” इस प्रकार की आवाज़ उस पेड़ से हुई। और क्षण भर में वह कल्पवृक्ष आकाश में उठकर भूमि पर वैसे रत्नों को बरसाने लगा, जिससे कोई भी दुर्गत (गरीब) नहीं रह गया। उसके बाद उस जीमूतवाहन की सभी जीवों पर कृपा करने के बाद सब जगह यश फैल गया।

विशेषण – विशेष्य – चयनम् –
विशेषणम् – विशेष्यः
अभ्यनुज्ञातः सः – जीमूतवाहनः
एकम् – कामम्
वादिनि – जीमूतवाहने
तस्मात् – तरोः
अभीष्टाः – कामाः
अदरिद्राम् – पृथ्वीम्
एषः त्यक्तः – अहम्
दुर्गतः – कोऽपि

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः –
अव्ययः वाक्य प्रयोगः
अथ – अथ रामः स्वगुरुम् अवदत्।
यथा-तथा – यथा अहं कथयामि तथा त्वं कुरु।
च – विद्यालये बालकाः बालिकाः च पठन्ति।
सर्वत्र – रामस्य यशः सर्वत्र प्रासरत्।
इति – त्वं तत्र कथं गच्छसि इति?
एवम् – तेन एवम् कदापि न वक्तव्यम्।
ततः – ततः देवदत्तः स्वगृहं प्राविशत्। सर्वत्र

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FAQs on अनुवाद - कल्पतरूः - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

1. कल्पतरू क्या है?
Ans. कल्पतरू एक पौधा है जिसे हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। यह पौधा संयम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है और माना जाता है कि इसके नीचे बैठने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
2. कल्पतरू कहाँ पाया जाता है?
Ans. कल्पतरू विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। इसे भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में देखा जा सकता है, जैसे कि हिमालय क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु आदि।
3. कल्पतरू की विशेषताएं क्या हैं?
Ans. कल्पतरू की कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं: 1. इसके पत्ते हमेशा हरे और ताजगी रखते हैं। 2. यह पौधा एक छोटा-मोटा वृक्ष होता है जिसकी ऊचाई करीब 15-20 फीट तक होती है। 3. कल्पतरु के फूल धूप में खिलते हैं और अरण्यों में खुशबू फैलाते हैं। 4. इस पौधे के फल मीठे होते हैं और उनका आकार छोटा होता है। 5. कल्पतरु की छाल गहरा नीला रंग होती है और इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।
4. कल्पतरू का धार्मिक महत्व क्या है?
Ans. कल्पतरू का धार्मिक महत्व बहुत उच्च माना जाता है। हिन्दू धर्म में इसे देवताओं का एक प्रतीक माना जाता है। इस पौधे के नीचे बैठने से मान्यता है कि सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और भक्त को अनंत आनंद मिलता है। यह प्रतीक भक्ति और संयम का प्रतीक होने के कारण भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
5. क्या कल्पतरू पौधे का वैज्ञानिक नाम क्या है?
Ans. कल्पतरू पौधे का वैज्ञानिक नाम "सिमरूबा ग्लौका" है। यह पौधा दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में पाया जाता है और इसे वन्य प्रजाति के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
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