विश्वस्य उपलब्धासु भाषासु संस्कृतभाषा प्राचीनतमा भाषास्ति। भाषेयं अनेकाषां भाषाणां जननी मता। प्राचीनयोः ज्ञानविज्ञानयोः निधिः अस्यां सुरक्षितः। संस्कृतस्य महत्त्वविषये केनापि कथितम् – ‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा’। इयं भाषा अतीव वैज्ञानिकी। केचन कथयन्ति यत् संस्कृतमेव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमा भाषा। अस्याः वाङ्मयं वेदैः, पुराणैः, नीतिशास्त्रैः चिकित्साशास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति।
सरलार्थ: विश्व की उपलब्ध भाषाओं में संस्कृत भाषा सबसे पुरानी भाषा है। इस भाषा को अनेक भाषाओं की जननी माना जाता है। इसमें प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के खजाने सुरक्षित हैं। संस्कृत के महत्त्व के विषय में किसी ने कहा है -“भारत की दो प्रतिष्ठाएं हैं – संस्कृत और संस्कृति।” यह भाषा बहुत वैज्ञानिक है। कुछ कहते हैं की संस्कृत ही कम्प्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा है। इसका साहित्य वेदों, पुराणों, नीतिशास्त्रों और चिकित्सा शास्त्र आदि से समृद्ध है।
कालिदासादीनां विश्वकवीनां काव्यसौन्दर्यम् अनुपमम्। कौटिल्यरचितम् अर्थशास्त्रं जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमम् आर्यभटः अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरकसुश्रुतयोः योगदानं विश्वप्रसिद्धम्। संस्कृते यानि अन्यानि शास्त्राणि विद्यन्ते तेषु वास्तुशास्त्रं, रसायनशास्त्रं, खगोलविज्ञानं, ज्योतिषशास्त्रं, विमानशास्त्रम् इत्यादीनि उल्लेखनीयानि।
सरलार्थ: कालिदास आदि विश्व कवियों का काव्य सौंदर्य बेमिसाल (अद्वितीय) है। कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र विश्व में प्रसिद्ध है। गणित शास्त्र में शून्य का प्रतिपादन (demonstration) सर्वप्रथम आर्यभट ने की थी। चिकित्सा शास्त्र में चरक और सुश्रुत का योगदान विश्व प्रसिद्ध है। संस्कृत में जो अन्य शास्त्र मौजूद हैं उनमें वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र और विमान शास्त्र आदि उल्लेख करने योग्य हैं।
संस्कृते विद्यमानाः सूक्तयः अभ्युदयाय प्रेरयन्ति, यथा – सत्यमेव जयते, वसुधैव कुटुम्बकम्, विद्ययाऽमृतमश्नुते, योगः कर्मसु कौशलम् इत्यादयः। सर्वभूतेषु आत्मवत् व्यवहारं कर्तुं संस्कृतभाषा सम्यक् शिक्षयति।
सरलार्थ: संस्कृत में विद्यमान सुंदर उक्ति/कथन उन्नति के लिए प्रेरित करते हैं, जैसे “सत्यमेव जयते” (सच की ही जीत होती है), “वसुधैव कुटुम्बकम्” (पृथ्वी ही परिवार है), “विद्ययाऽमृतमश्नुते” (विद्या से अमरत्व की प्राप्ति होती है), “योगः कर्मसु कौशलम्” (कर्म की कुशलता ही योग है।), आदि। सभी प्राणियों में अपने समान व्यवहार करने के लिए संस्कृतभाषा ठीक से सिखाती है।
केचन कथयन्ति यत् संस्कृतभाषायां केवलं धार्मिकं साहित्यम् वर्तते- एषा धारणा समीचीना नास्ति। संस्कृतग्रन्थेषु मानवजीवनाय विविधाः विषयाः समाविष्टाः सन्ति। महापुरुषाणां मतिः, उत्तमजनानां धृतिः सामान्यजनानां जीवनपद्धतिः च वर्णिताः सन्ति। अतः अस्माभिः संस्कृतम् अवश्यमेव पठनीयम्। तेन मनुष्यस्य समाजस्य च परिष्कारः भवेत्। उक्तञ्च –
सरलार्थ: कुछ (लोग) कहते हैं कि संस्कृत में केवल धार्मिक साहित्य है- यह धारणा सही नहीं है। संस्कृत ग्रंथों में मानव जीवन के लिए विभिन्न विषयों के समावेश हैं। महापुरुषों की बुद्धि, श्रेष्ठ लोगों का धैर्य और सामान्य लोगों की जीवन शैलियाँ वर्णित हैं। इसलिए हमारे द्वारा संस्कृत को अवश्य ही पढ़ना चाहिए। इससे मनुष्य और समाज का शुद्धिकरण होगा। और कहा गया है –
अमृतं संस्कृतं मित्र !
सरसं सरलं वचः।
भाषासु महनीयं यद्
ज्ञानविज्ञानपोषकम् ॥
अन्वयः मित्र ! संस्कृतं अमृतं सरसं सरलं वचः। भाषासु महनीयं यद् ज्ञानविज्ञानपोषकम्।
सरलार्थ: हे मित्र ! संस्कृत अमृत, सरस/रसदार (और) आसान वाणी है। भाषाओं में महान है जो ज्ञान और विज्ञान का पोषक है।
15 videos|72 docs|21 tests
|
1. अमृतं संस्कृतम् का अर्थ क्या है? | ![]() |
2. संस्कृत भाषा का महत्व क्या है? | ![]() |
3. कक्षा 7 के छात्रों को संस्कृत क्यों पढ़नी चाहिए? | ![]() |
4. "अमृतं संस्कृतम्" पाठ में कौन से मुख्य विषय शामिल हैं? | ![]() |
5. संस्कृत भाषा को सीखने के लिए कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं? | ![]() |