काव्यांश- 1
भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का
जिससे दबा एक जन
भाग दूसरे जन का।
पूछो किसी भाग्यवादी से
यदि विधि अंक प्रबल हैं,
पद पर क्यों न देती स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है?
उपजाता क्यों विभव प्रकृति को
सींच-सींच व जल से
क्यों न उठा लेता निज संचित करता है।
अर्थ पाप के बल से,
और भोगता उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से।
नर-समाज का भाग्य एक है
वह श्रम, वह भुज-बल है।
जिसके सम्मुख झुकी हुई है;
पृथ्वी, विनीत नभ-तल है।
प्रश्नः 1. काव्यांश में निहित संदेश स्पष्ट कीजिए।
काव्यांश में निहित संदेश यह है कि मनुष्य को भाग्य का सहारा छोड़कर परिश्रम से सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
प्रश्नः 2. भाग्यवाद को किसका हथियार कहा गया है और क्यों?
भाग्यवाद को दूसरों का शोषण करने का अस्त्र कहा गया है क्योंकि भाग्यवाद का छलावा देकर लोग दूसरों का शोषण करते हैं और दूसरों को मिलने वाला भाग दबाकर बैठ जाते हैं।
प्रश्नः 3. भाग्यवादी सफलता के बारे में क्या मानते हैं ?
भाग्यवादी सफलता के बारे में यह मानते हैं कि भाग्य में लिखी होने पर ही सफलता मिलती है।
प्रश्नः 4. कवि भाग्यवादियों से क्या पूछने के लिए कहता है और क्यों?
कवि भाग्यवादियों से यह पूछने के लिए कहता है कि यदि भाग्य का बल इतना प्रबल है तो सुधा अपने भीतर छिपे रत्नों को मनुष्य के चरणों पर क्यों नहीं रख देती है। इसके लिए मनुष्य को परिश्रम क्यों करना पड़ता है। ऐसा पूछने का कारण हैं भाग्यवाद की बातें मिथ्या होना।
प्रश्नः 5. धरती और आकाश किसके कारण झुकने को विवश हुए हैं ?
धरती और आकाश मनुष्य के परिश्रम के कारण झुकने को विवश हुए हैं।
काव्यांश- 2
कैसे बेमौके पर तुमने ये
मज़हब के शोले सुलगाए।
मानव-मंगल-अभियानों में
जब नया कल्प आरंभ हुआ
जब चंद्रलोक की यात्रा के
सपने सच होने को आए।
तुम राग अलापो मज़हब का
पैगंबर को बदनाम करो,
नापाक हरकतों में अपनी
रूहों को कत्लेआम करो!
हम प्रजातंत्र में मनुष्यता के
मंगल-कलश सँवार रहे
हर जाति-धर्म के लिए
खुला आकाश-प्रकाश पसार रहे।
उत्सर्ग हमारा आज
हिमालय की चोटी छू आया है।
सदियों की कालिख को
हमने बलिदानों से धोना है
मानवता की खुशहाली की
हरियाली फ़सलें बोना है।
बढ़-बढ़कर बातें करने की
बलिदानी रटते बान नहीं
इतना तो तुम भी समझ गए
यह कल का हिंदुस्तान नहीं।
प्रश्नः 1. ‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में कौन-सा अलंकार है?
‘बढ़-बढ़कर बातें करने की’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 2. कवि अपने देश के लिए क्या कहना चाहता है?
कवि अपने बलिदान से सदियों की कालिख को धो देना चाहता है तथा मानवता की भलाई एवं खुशहाली के लिए हरियाली की फ़सल बोकर देश को खुशहाल देखना चाहता है।
प्रश्नः 3. मज़हब के शोले सुलगाने का यह मौका क्यों नहीं है?
मज़हब के शोले सुलगाने का यह वक्त इसलिए नहीं है क्योंकि इस समय मानव द्वारा मंगल पर यान भेजा जा रहा है जिससे चंद्रलोक की यात्रा की कल्पना को साकार रूप मिलेगा।
प्रश्नः 4. कवि ने ‘मज़हब के शोले’ किन्हें कहा है ?
कवि ने जाति-धर्म-संप्रदाय आदि पर आधारित नफ़रत फैलाने वाली बातों को ‘मज़हब के शोले’ कहा है।
प्रश्नः 5. मज़हब का राग अलापने वाले तथा अन्य लोगों में क्या अंतर है?
मज़हब का राग अलापने वाले अपने स्वार्थपूर्ण कार्यों से पैगंबर को बदनाम करते हैं और निर्दोष लोगों का खून खराबा करते हैं जबकि अन्य लोग लोकतंत्र को मजबूत बनाते हुए हर जाति-धर्म के लोगों के लिए अवसरों की समानता उपलब्ध करा रहे हैं।
काव्यांश- 3
निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी
हर बार बिखेरी गई किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़कर छल जाए ।
सूरज दमके तो तप जाए रजनी ठुमके तो ढल जाए,
यो तो बच्चों की गुड़िया-सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आए तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए,
फ़सलें उगती, फ़सलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है।
सौ बार बने सौ बार मिटे लेकिन मिट्टी अविनश्वर है।
प्रश्नः 1. मिट्टी कब ढल जाती है?
जब रात होती है तब मिट्टी ढल जाती है।
प्रश्नः 2. ‘यो तो बच्चों की गुड़िया सी’ में कौन-सा अलंकार है ?
‘यो तो बच्चों की गुड़िया-सी’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3. ‘भोली मिट्टी की हस्ती क्या’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है पर उसने अपने कथन का खंडन भी किस तरह किया है ?
कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि आँधी आने पर मिट्टी उड़ जाती है, पानी में गलकर बह जाती है, पर बार-बार फ़सलें कटने और उगने से धरती की चिर उर्वरता और मिटाने का प्रयास करने पर भी न मिटने की बात कहकर उसने अपने कथन का खंडन किया है।
प्रश्नः 4. सूरज के दमकने पर मिट्टी पर क्या असर पड़ता है?
सूरज के दमकने पर मिट्टी तप जाती हैं और उसका स्वरूप और भी मजबूत हो जाता है।
प्रश्नः 5. उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो मिट्टी के स्वरूप को मिटाने में असफल रही।
मिट्टी के स्वरूप को नष्ट करने का असफल प्रयास करने वाली परिस्थितियाँ हैं –
क. कुम्हार के द्वारा मिट्टी को कूटा-पीटा जाना।
ख. धूप में खूब तपाया जाना।
ग. बार-बार बिखराया जाना।
घ. छन्ने के द्वारा छाना जाना।
काव्यांश- 4
सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन में।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई ॥
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ।।
धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में॥
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे॥
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे।
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥
प्रश्नः 1. ‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
'हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 2. कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसका स्वरूप कैसा होगा?
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसमें कोई भी दीन-दुखी और दलित नहीं होगा। समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित जन भी आपस में भाई-भाई होंगे और वे एक-दूसरे को प्रेम से गले लगाएँगे।
प्रश्नः 3. कवि की हार्दिक इच्छा क्या है?
कवि की हार्दिक इच्छा यह है कि वह मरते समय तक देश की सेवा करता रहे।
प्रश्नः 4. कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए क्या-क्या करना चाहता है और क्यों?
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए शरीर में एक भी साँस रहने तक आगे बढ़ना चाहता है। वह लक्ष्य तक पहुँचे बिना साँस तक नहीं लेना चाहता है। कवि उस लक्ष्य के सहारे चाहता है कि विश्व के लोग भारत का गुणगान करें।
प्रश्नः 5. ‘हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में’ यहाँ ‘तफ़ान’ और ‘प्रलय’ किसके प्रतीक हैं?
‘हम तो अचल रहेंगे तूफान में प्रलय में’-यहाँ ‘तूफ़ान’ और ‘प्रलय’ राह की मुश्किलों के प्रतीक हैं।
काव्यांश- 5
जिसके निमित्त तप-त्याग किए, हँसते-हँसते बलिदान दिए,
कारागारों में कष्ट सहे, दुर्दमन नीति ने देह दहे,
घर-बार और परिवार मिटे, नर-नारि पिटे, बाज़ार लुटे
आई, पाई वह ‘स्वतंत्रता’, पर सुख से नेह न नाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है।
सुख, सुविधा, समता पाएँगे, सब सत्य-स्नेह सरसाएँगे,
तब भ्रष्टाचार नहीं होगा, अनुचित व्यवहार नहीं होगा,
जन-नायक यही बताते थे, दे-दे दलील समझाते थे,
वे हुई व्यर्थ बीती बातें, जिनका अब पता न पाता है।
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है।
शुचि, स्नेह, अहिंसा, सत्य, कर्म, बतलाए ‘बापू’ ने सुधर्म,
जो बिना धर्म की राजनीति, उसको कहते थे वह अनीति,
अब गांधीवाद बिसार दिया, सद्भाव, त्याग, तप मार दिया,
व्यवसाय बन गया देश-प्रेम, खुल गया स्वार्थ का खाता है –
क्या यही ‘स्वराज्य’ कहाता है।
प्रश्नः 3. ‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने व्यंग्य क्यों किया है ?
‘क्या यही स्वराज्य कहाता है’ कहकर कवि ने इसलिए व्यंग्य किया है क्योंकि हमारे जननायकों ने ऐसी स्वतंत्रता का सपना नहीं देखा था।
प्रश्नः 1. वीरों ने किसके लिए तप त्याग करते हुए अपना बलिदान दे दिया?
वीरों ने देश को आज़ादी दिलाने के लिए तप-त्याग करते हुए अपना बलिदान दे दिया।
प्रश्नः 5. बापू अनीति किसे मानते थे? उनकी राजनीति की आज क्या स्थिति है?
बापू उस राजनीति को अनीति कहते थे जिसमें पवित्रता, प्रेम, अहिंसा शांति जैसे सुधर्म का मेल न हो। उनकी राजनीति में अब गांधीवाद, सद्भाव, त्याग, तप आदि मर चुका है। देश-प्रेम के नाम पर व्यवसाय किया जा रहा है और सर्वत्र स्वार्थ का बोलबाला है।
प्रश्नः 2. ‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
‘सुख-सुविधा समता पाएँगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4. हमारे जननायकों ने किस तरह की स्वतंत्रता का स्वप्न देखा था? वह स्वप्न कहाँ तक पूरा हो सका।
हमारे जननायकों द्वारा स्वतंत्रता का सपना देखा गया था उसमें सभी को सुख-सुविधा और समानता पाने तथा मिल-जलकर प्रेम से रहने, भ्रष्टाचार मुक्त भारत में सबके साथ एक समान व्यवहार करने के सुंदर दृश्य की कल्पना की गई थी।
काव्यांश- 6
बहती रहने दो मेरी धमनियों में
जन्मदात्री मिट्टी की गंध,
मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा,
सदा-सदा को वांछित रह सकने वाले
पसीने की खारी यमुना।
शपथ खाने दो मुझे
केवल उस मिट्टी की
जो मेरे प्राणों का आदि है,
मध्य है,
अंत है।
सिर झुकाओ मेरा
केवल उस स्वतंत्र वायु के सम्मुख
जो विश्व का गरल पीकर भी
बहता है
पवित्र करने को कण-कण।
क्योंकि
मैं जी सकता हूँ
केवल उस मिट्टी के लिए,
केवल इस वायु के लिए।
क्योंकि
मैं मात्र साँस लेती
खाल होना नहीं चाहता।
प्रश्नः 2. ‘मात्र साँस लेती खाल’ का आशय क्या है?
मात्र साँस लेती खाल का आशय है – अपने स्वार्थ में डूबकर निष्प्राणों जैसा जीवन बिताना।
प्रश्नः 4. मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? उसने मातृभूमि की मिट्टी से अपना लगाव कैसे प्रकट किया है?
‘मानवीय संवेदनाओं की पावनी गंगा’ के माध्यम से कवि पीड़ित मानवता के उद्धार की बात कहना चाहता है। उसने मिट्टी को अपने प्राणों का आदि मध्य और अंत बताकर अपना लगाव प्रकट किया है।
प्रश्नः 1. ‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप क्या है?
‘जन्मदात्री मिट्टी की गंध’ पंक्ति में कवि की इच्छा का स्वरूप मातृभूमि के प्रति गहन अनुराग की उत्कट भावना है।
प्रश्नः 5. कवि अपना सिर किसके सामने झुकाना चाहता है और किसके लिए जीना चाहता है?
कवि अपना सिर उस वायु के सामने झुकाना चाहता है जो विश्व का जहर पीकर भी बहती रहती है। इसी वायु का सेवन करके वह इसी वायु और मातृभूमि की मिट्टी के लिए जीना चाहता है।
प्रश्नः 3. ‘पवित्र करने को कण-कण’ में कौन-कौन सा अलंकार है?
‘पवित्र करने को कण-कण में’ अनुप्रास अलंकार है।
काव्यांश- 7
ओ महमूदा मेरी दिल जिगरी
तेरे साथ मैं भी छत पर खड़ी हूँ
तुम्हारी रसोई तुम्हारी बैठक और गाय-घर में
पानी घुस आया
उसमें तैर रहा है घर का सामान
तेरे बाहर के बाग का सेब का दरख्त
टूट कर पानी के साथ बह रहा है
अगले साल इसमें पहली बार सेब लगने थे
तेरी बल खाकर जाती कश्मीरी कढ़ाई वाली चप्पल
हुसैन की पेशावरी जूती
बह रहे हैं गंदले पानी के साथ
तेरी ढलवाँ छत पर बैठा है
घर के पिंजरे का तोता
वह फिर पिंजरे में आना चाहता है
महमूदा मेरी बहन
इसी पानी में बह रही है तेरी लाडली गऊ
इसका बछड़ा पता नहीं कहाँ है
तेरी गऊ के दूध भरे थन
अकड़ कर लोहा हो गए हैं
जम गया है दूध
सब तरफ पानी ही पानी
पूरा शहर डल झील हो गया है
महमूदा, मेरी महमूदा
मैं तेरे साथ खड़ी हूँ
मुझे यकीन है छत पर ज़रूर
कोई पानी की बोतल गिरेगी
कोई खाने का सामान या दूध की थैली
मैं कुरबान उन बच्चों की माँओं पर
जो बाढ़ में से निकलकर
बच्चों की तरह पीड़ितों को
सुरक्षित स्थान पर पहुँचा रही हैं
महमूदा हम दोनों फिर खड़े होंगे
मैं तुम्हारी कमलिनी अपनी धरती पर…
उसे चूम लेंगे अपने सूखे होठों से
पानी की इस तबाही से फिर निकल आएगा।
मेरा चाँद जैसा जम्मू
मेरा फूल जैसा कश्मीर।
प्रश्नः 1. रसोई, बैठक और गाय घर में पानी घुस आने का क्या कारण है ?
रसोई, बैठक और गाय-घर में पानी घुस आने का कारण भीषण बाढ़ है।
प्रश्नः 2. ‘पूरा शहर डल-झील हो गया है’ का आशय क्या है ?
आशय यह है कि बाढ़ का पानी चारों ओर ऐसा भर गया है जैसे सारा शहर डलझील बन गया है।
प्रश्नः 3. कवयित्री को किस बात का विश्वास है?
कवयित्री को विश्वास है कि उसकी छत पर पानी की बोतल, खाने का सामान या दूध की थैली अवश्य गिरेगी।
प्रश्नः 4. जलमग्न हुए स्थान पर तोते और गाय-बछड़े की मार्मिक दशा कैसी हो गई है?
जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ जाने से पेड़ धराशायी हो गए हैं। बाहर सब जलमग्न हो गया है। इस स्थिति में तोता घर की छत पर बैठा है। इसी पानी में महमूदा की गाय बह रही है, बछड़े का पता नहीं है। बछड़े से न मिल पाने के कारण गाय के दूध भरे थन अकड़ गए हैं।
प्रश्नः 5. कवयित्री की आशावादिता किस प्रकार प्रकट हुई है? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
कवयित्री को आशा है कि पानी जल्द ही उतर जाएगा, धरती की रौनक-लौट आएगी और ज मू-कश्मीर का स्वर्ग जैसा सौंदर्य पुनः जल्दी वापस आ जाएगा।
काव्यांश- 8
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ?
सात साल की बच्ची का पिता तो है।
सामने गीयर से ऊपर
हुक से लटका रखी हैं
काँच की चार गुलाबी चूड़ियाँ।
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं,
झुक कर मैंने पूछ लिया,
खा गया मानो झटका।
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रौबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला : हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनियाँ ।
प्रश्नः 1. ‘खा गया मानो झटका’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
‘खा गया मानो झटका’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्नः 2. ‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ?
‘बच्ची का पिता तो है’ पंक्ति में बच्ची के प्रति आत्मीयता, स्नेह और लगाव की अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्नः 3. बस ड्राइवर के चेहरे और उसकी आवाज़ में निहित विरोधाभास स्पष्ट कीजिए?
बस ड्राइवर अधेड़ उम्र वाला व्यक्ति है। उसका चेहरा रोबीला है जिस पर घनी मूंछे हैं। इससे चेहरा कठोर प्रतीत होता है परंतु इस रोबीले चेहरे की आवाज़ धीमी है। इस तरह दोनों में विरोधाभास है।
प्रश्नः 4. ड्राइवर झटका क्यों खा गया?
चूड़ियों के बारे में पूछने पर ड्राइवर इसलिए झटका खा गया क्योंकि उसे अचानक अपनी बिटिया की याद आ गई।
प्रश्नः 5. चूड़ियाँ किसने और कहाँ लटका रखी थी और क्यों?
बस में चूड़ियों को ड्राइवर की बेटी ने गीयर से ऊपर हुक से लटका रखी थी ताकि पिता को उसकी बराबर याद आती रहे और वह जल्दी से घट लौट आएँ।
काव्यांश- 9
कोलाहल हो,
या सन्नाटा, कविता सदा सृजन करती है,
जब भी आँसू
कविता सदा जंग लड़ती है।
यात्राएँ जब मौन हो गईं
कविता ने जीना सिखलाया
जब भी तम का
जुल्म चढ़ा है, कविता नया सूर्य गढ़ती है,
जब गीतों की फ़सलें लुटती
शीलहरण होता कलियों का,
शब्दहीन जब हुई चेतना हुआ पराजित,
तब-तब चैन लुटा गलियों का जब भी कर्ता हुआ अकर्ता,
जब कुरसी का
कंस गरजता, कविता स्वयं कृष्ण बनती है।
अपने भी हो गए पराए कविता ने चलना सिखलाया।
यूँ झूठे अनुबंध हो गए
घर में ही वनवास हो रहा
यूँ गूंगे संबंध हो गए।
प्रश्नः 1. कविता की प्रवृत्ति किस तरह की बताई गई है?
कविता की प्रवृत्ति हर काल में नव सृजन करने वाली बताई गई है।
प्रश्नः 2. कविता मनुष्य को कब जीना सिखाती है?
जब परिश्रमी कर्मठ और श्रम करने वाले लोग अकर्मण्यता का शिकार हो जाते हैं तब कविता कर्म की राह दिखाकर उन्हें जीना सिखाती है।
प्रश्नः 3. कविता लगातार संघर्ष करने की प्रेरणा देती है-ऐसा किस पंक्ति में कहा गया है?
उक्त भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति है… जब भी आँसू हुआ पराजित, कविता सदा जंग लड़ती है।
प्रश्नः 4. कविता ने लोगों को कब प्रेरित किया और कैसे?
जब जब लोगों में निराशा और अंधकार के कारण हताशा की स्थिति आई, तब-तब कविता ने लोगों को प्रेरित किया। निराशा की इस बेला में कविता नया सूर्य बनकर अंधेरे में रास्ता दिखाती है।
प्रश्नः 5. संबंधों में दूरियाँ आ जाने का परिणाम आज किस रूप में भुगतना पड़ रहा है?
संबंधों में दूरियाँ बढ़ जाने के कारण अपने लोग भी दूसरों जैसा ही व्यवहार करने लगे। जो संबंध अत्यंत घनिष्ठ थे वे समझौता बनकर रह गए। लोग एक घर में रहते हुए भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं।
काव्यांश- 10
हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। ।
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक,
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।
सप्त स्वर सप्त सिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत।
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत।
अरुण-केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।
प्रश्नः 1. प्रथम किरणों का उपहार किसे मिलता है?
सूरज की पहली किरणों का उपहार भारत भूमि को मिलता है।
प्रश्नः 2. ‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में कौन-सा अलंकार है?
‘विमल वाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत’ में अनुप्रास अलंकार है। अपठित काव्यांश
प्रश्नः 3. दुनिया में आलोक कब फैला?
दुनिया में आलोक तब फैला जब भारतीय मनीषियों ने विश्व को ज्ञान दिया।
प्रश्नः 4. उषा किसका स्वागत करती है और किस तरह?
उषा भारत भूमि का हँसकर स्वागत करती है। वह सूरज की पहली किरणों का उपहार देकर हीरों का हार पहनाती है।
प्रश्नः 5. ‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में किस प्रसंग का उल्लेख है ? स्पष्ट कीजिए।
‘बचाकर बीज रूप से सृष्टि’ पंक्ति में उस प्रसंग का उल्लेख है जब सारी सृष्टि जलमय हो गई थी। धरती पर अत्यधिक सरदी पड़ने लगी थी तब आदि पुरुष मनु ने सृष्टि का बीज बचाने के लिए नाव पर इस शीत को झेला था जिससे सृष्टि को ऐसा स्वरूप मिला।
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1. अपठित काव्यांश क्या होता है ? |
2. अपठित काव्यांश के प्रश्न कैसे तैयार किए जाते हैं ? |
3. अपठित काव्यांश पढ़ने की सही विधि क्या है ? |
4. अपठित काव्यांश के लिए तैयारी कैसे करें ? |
5. कक्षा 10 की परीक्षा में अपठित काव्यांश से संबंधित प्रश्नों का महत्व क्या है ? |
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