ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे पर पुनर्विचार
उद्योगों और सरकार के कुछ वर्गों की आलोचना के बीच उपभोक्ता मामलों का विभाग ई-कॉमर्स नियम, 2021 के मसौदे से संबंधित कुछ प्रावधानों पर पुनर्विचार कर रहा है।
- इससे पहले उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के प्रावधानों को अधिसूचित और प्रभावी बनाया था।
- इसके अलावा उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने अपने ‘ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स’ (ONDC) परियोजना के लिये एक सलाहकार समिति नियुक्त करने के आदेश जारी किये हैं, जिसका उद्देश्य "डिजिटल एकाधिकार" को रोकना है।
- यह ई-कॉमर्स प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने की दिशा में बढ़ रहा है, इस प्रकार एक ऐसा मंच तैयार किया जा रहा हैजिसका उपयोग सभी ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं द्वारा किया जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
(i) ड्राफ्ट ई-कॉमर्स नियम 2021 के प्रमुख प्रावधान:
- अनिवार्य पंजीकरण: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिये अनिवार्य पंजीकरण कराना आवश्यक है।
ई-कॉमर्स इकाई का मतलब ऐसे व्यक्तियों से है जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के लिये डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक सुविधा या प्लेटफॉर्म के मालिक हैं, उसका संचालन या प्रबंधन करते हैं। - फ्लैश बिक्री सीमित करना: पारंपरिक ई-कॉमर्स फ्लैश बिक्री पर प्रतिबंध नहीं है। केवल विशिष्ट ‘फ्लैश’ बिक्री या ‘बैक-टू-बैक’ बिक्री की अनुमति नहीं है जो ग्राहक की पसंद को सीमित करती है, कीमतों में वृद्धि करती है और एक समान प्रतिस्पर्द्धा पर रोक लगाती है।
- अनुपालन अधिकारी: ई-कॉमर्स साइटों को मुख्य अनुपालन अधिकारी (CCO) और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ चौबीसों घंटे समन्वय हेतु एक व्यक्ति की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिये भी निर्देशित किया जाता है।
- संबंधित पक्षों को प्रतिबंधित करना: पक्षपातपूर्ण व्यवहार की बढ़ती चिंताओं के समाधान हेतु नए नियमों में यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव हैकि किसी भी संबंधित पक्ष को 'अनुचित लाभ' के लिये किसी भी उपभोक्ता जानकारी (ऑनलाइन प्लेटफॉर्मसे) का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
- मूल देश हेतु शर्त: संस्थाओं को अपने मूल देश के आधार पर माल की पहचान करनी होगी और ग्राहकों के लिये खरीदारी से पूर्व चरण में एक पारदर्शी तंत्र स्थापित करना होगा।
- घरेलू विक्रेताओं को "उचित अवसर" प्रदान करने हेतु आयातित सामानों के विकल्प भी पेश करने होंगे।
- साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की रिपोर्ट करना: सभी ई-कॉमर्स संस्थाओं को साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों सहित कानून के उल्लंघन की जांँच करने वाली अधिकृत सरकारी एजेंसी द्वारा किये गए किसी भी अनुरोध पर 72 घंटों के भीतर जानकारी प्रदान करनी होगी।
(ii) ड्राफ्ट नियमों से संबंधित प्रमुख मुद्दे:
- 'संबंधित पार्टी' की परिभाषा: मसौदा नियम में कहा गया हैकि किसी भी ई-कॉमर्स इकाई की संबंधित पार्टियों को सीधे उपभोक्ताओं को बिक्री हेतु विक्रेता के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता है।
- 'संबंधित पार्टी' की इस "व्यापक परिभाषा" में संभावित रूप से सभी संस्थाएंँ शामिल हो सकती हैं जैसे कि रसद, किसी भी संयुक्त उद्यम आदि में शामिल।
- इसके कारण न केवल अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी विदेशी कंपनियों के लिये बल्कि घरेलू कंपनियों के लिये भी अपने विभिन्नब्रांडों जैसे 1mg, नेटमेड्स, अर्बन लैडर आदि को अपने सुपर-एप्स पर बेचना मुश्किल होगा।
- निवर्तन (Fall-back) देयता पर मुद्दा: उद्योग के खिलाड़ियों ने तर्क दिया हैकि एक तरफ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) नीति अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर बेची गई सूची पर नियंत्रण रखने से रोकती है।
- दूसरी ओर नियमों ने निवर्तन देयता की अवधारणा को पेश किया जो ई-कॉमर्स फर्मों को उत्तरदायी बनाती है, यदि कोई विक्रेता अपने प्लेटफॉर्म पर लापरवाह आचरण के कारण सामान या सेवाएँ देने में विफल रहता हैजिससे ग्राहक को नुकसान होता है।
- अधिकार क्षेत्र से बाहर: नीति आयोग ने चिंता जताई हैकि मसौदा नियमों में कई प्रावधान उपभोक्ता संरक्षण के दायरे से बाहर थे।
- यह उपभोक्ता मामलों के विभाग की "ओवररीच" की धारणा को प्रदर्शित करता है।
- कड़े नियमों का मामला: कुछ प्रस्तावित प्रावधान जैसे- अनुपालन अधिकारी होना, कानून प्रवर्तन अनुरोधों का पालन करना आदि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ) नियम, 2021 के नक्शेकदम (Footsteps) पर चलते हैं।
- इन IT नियमों को कई उच्च न्यायालयों में कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- इस प्रकार के नियम सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर अधिक-से-अधिक निरीक्षण करने की सरकार की बढ़ती इच्छा को दर्शाते हैं।
उधम सिंह
जीर्णोद्धार किये गए जलियांवाला बाग स्मारक की आलोचना के बीच बाग में स्थापित शहीद उधम सिंह की प्रतिमा पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं।
प्रमुख बिंदु
(i) परिचय:
- वे वर्ष 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम में पैदा हुए, उन्हें ‘शहीद-ए-आजम’ सरदार उधम सिंह भी कहा जाता हैजिसका अर्थ है 'महान शहीद'।
- इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।
- 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला हत्याकांड के बाद वे क्रांतिकारी गतिविधियों और राजनीति में सक्रिय हो गए। वे भगत सिंह से बहुत प्रभावित थे।
- वे वर्ष 1924 में औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से प्रवासी भारतीयों को संगठित करने के लिये गदर पार्टी में शामिल हुए।
- वर्ष 1927 में क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिये सहयोगियों और हथियारों के साथ भारत लौटते समय उन्हें अवैध रूप से आग्नेयास्त्र रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया तथा पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई गई।
- 13 मार्च, 1940 को उधम सिंह ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की कैक्सटन हिल में एक बैठक में जनरल डायर के स्थान पर माइकल ओ'डायर को गोली मार दी।
- जनरल डायर ने रॉलेट एक्ट का विरोध कर रहे लोगों पर फायरिंग का आदेश दिया था।
- उधम सिंह को मौत की सज़ा सुनाई गई और 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
(ii) गदर पार्टी:
- यह एक भारतीय क्रांतिकारी संगठन था, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।
- 'गदर' विद्रोह के लिये प्रयुक्त एक उर्दूशब्द है।
- वर्ष 1913 में पार्टी का गठन संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवासी भारतीयों द्वारा किया गया जिसमें ज़्यादातर पंजाबी शामिल थे । हालांँकि पार्टी में भारत के सभी हिस्सों से भारतीय भी शामिल थे।
- गदर पार्टी की स्थापना का मकसद भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सशस्त्र संघर्षछेड़ना था।
- पार्टी के अध्यक्ष बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया तथा लाला हरदयाल के नेतृत्व में प्रशांत तट पर सैन फ्रांसिस्को में हिंदी संघ के रूप में इसे स्थापित किया गया था।
- पार्टी के योगदान को भविष्य में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों की नींव रखने के लिये जाना जाता हैजिसने स्वतंत्रता संग्रम में एक और कदम के रूप में कार्यकिया।
- गदर पार्टी के अधिकांश सदस्य किसान वर्ग से संबंधित थे, जिन्होंने पहली बार 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब से एशिया के शहरों जैसे- हॉन्गकॉन्ग, मनीला और सिंगापुर में प्रवास करना शुरू किया था।
- बाद में कनाडा और अमेरिका में लकड़ी उद्योग के विकसित होने के साथ कई लोग उत्तरी अमेरिका चले गए जहांँ उन्होंने अपना प्रसार किया लेकिन उन्हें संस्थागत नस्लवाद का भी सामना करना पड़ा।
- ग़दर आंदोलन ने 'औपनिवेशिक भारत के सामाजिक ढांँचे में अमेरिकी संस्कृति के समतावादी मूल्यों (समतावाद) को स्थानांतरित करने का कार्यकिया था।
- समतावाद समानता की धारणा पर आधारित एक सिद्धांत है, अर्थात् सभी लोग समान हैं और उनका सभी वस्तुओं पर समान अधिकार है।
ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये सहायता अनुदान
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने ग्रामीण स्थानीय निकायों (Rural Local Bodies-RLBs) को सहायता अनुदान प्रदान करने हेतु 25 राज्यों को 13,385.70 करोड़ रुपए की राशि जारी की है।
- यह सहायता अनुदान वर्ष 2021-22 के बद्ध अनुदान (Tied Grants) की पहली किस्त है।
- 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर यह अनुदान जारी किया गया है।
प्रमुख बिंदु
(i) वित्त आयोग (FC) के अनुदान :
- संघीय बजट स्थानीय निकायों को धन, राज्य आपदा राहत कोष प्रदान करता है और FC की सिफारिश पर करों के हस्तांतरण के बाद राज्यों के किसी भी राजस्व हानि की भरपाई करता है।
- 73वें संविधान संशोधन, 1992 में केंद्र और राज्यों दोनों को पंचायती राज संस्थाओं को निधि, कार्य और पदाधिकारियों को सौंपकर स्वशासन की एक इकाई के रूप में विकसित करने में मदद करने की आवश्यकता है।
- 15वें वित्त आयोग ने 2021-22 से 2025-26 की अवधि के दौरान पंचायतों को 'जल आपूर्ति और स्वच्छता' के लिये 1 लाख 42 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित करने की सिफारिश की है।
(ii) बद्ध बनाम खुला अनुदान :
- पंचायती राज ( Panchayati Raj) संस्थाओं के लिये आवंटित कुल सहायता अनुदान (grants) में से 60 प्रतिशत 'बंधन या बद्ध अनुदान' है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत खुले में शौच मुक्त (ODF) स्थिति की स्वच्छता और रखरखाव में सुधार , पेयजल की आपूर्ति, वर्षा जल संचयन और जल पुनर्चक्रण के लिये केंद्र द्वारा आवंटित धन के अलावा ग्रामीण स्थानीय निकायों को अतिरिक्त धन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु बद्ध अनुदान प्रदान किया जाता है।
- शेष 40 प्रतिशत ‘अनटाइड या खुला ग्रांट‘ है और वेतन के भुगतान को छोड़कर, स्थान–विशिष्ट ज़रूरतों के लिये पंचायती राज संस्थानों के स्वविवेक पर इसका उपयोग किया जाता है।
- संसाधनों का आवंटन : राज्यों को केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त होने के 10 कार्य दिवसों के भीतर ग्रामीण स्थानीय निकायों को अनुदान हस्तांतरित करना आवश्यक है।
- 10 कार्यदिवसों से अधिक समय लगने पर राज्य सरकारों को ब्याज सहित अनुदान जारी करने की आवश्यकता होती है।
वित्त आयोग (Finance Commission)
- वित्त आयोग (FC) एक संवैधानिक निकाय है, जो केंद्र और राज्यों के बीच तथा राज्यों के मध्य संवैधानिक व्यवस्था एवं वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप कर से प्राप्त आय के वितरण के लिये विधि तथा सूत्र निर्धारित करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति को प्रत्येक पाँच वर्ष या उससे पहले एक वित्त आयोग का गठन करना आवश्यक है।
- 15वें वित्त आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नवंबर 2017 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में किया गया था।
- इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये मान्य होंगी।
FC अनुदान का विभाजन:
(i) ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये अनुदान: संविधान में परिकल्पित शासन का त्रिस्तरीय मॉडल ग्राम पंचायतों को स्पष्ट भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है।
- FC की सिफारिशें यह सुनिश्चित करती हैं कि इन स्थानीय निकायों को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया गया है।
- वास्तव में केंद्रीय बजट में FC अनुदान का लगभग आधा ग्राम स्थानीय निकायों को जाता है।
(ii) शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनुदान: ग्राम स्तर पर स्वशासन की इकाइयों के अलावा संविधान में शहरों को स्वशासन की इकाइयों के रूप में भी परिकल्पित किया गया है।
- शहरी स्थानीय निकायों जैसे- नगर परिषदों को ग्रामीण स्थानीय निकायों और राज्यों को हस्तांतरण के बाद FC अनुदान का सबसे बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है।
(iii) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) को सहायता: केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के वित्तपोषण के अलावा राज्य आपदा राहत कोष में भी धन मुहैया कराती है।
- FC की सिफारिशों के अनुसार राज्य सरकार के आपदा राहत अधिकारियों को सहायता प्रदान की जाती है।
(iv) हस्तांतरण के बाद राजस्व घाटा अनुदान: केंद्र द्वारा एकत्र किये गए कुल राजस्व का लगभग एक-तिहाई हिस्सा विभाज्य पूल में उनके हिस्से के रूप में सीधे राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है।
- हालाँकि FC राज्यों द्वारा किये गए किसी भी नुकसान के मुआवज़े के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है, जिसे पोस्ट-डिवोल्यूशन राजस्व घाटा अनुदान कहा जाता है।
- यह अनुदान स्थानीय ग्रामीण निकायों को सहायता के बाद FC हस्तांतरण का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है।
(v) FC अनुदान के तहत चार मुख्य हस्तांतरणों के अलावा केंद्र अपने स्वयं के संसाधनों से राज्यों और कमज़ोर समूहों को काफी राशि हस्तांतरित करता है।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और सिक्किम के लिये संसाधनों का केंद्रीय पूल
- बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना अनुदान
- बाहरी सहायता प्राप्त परियोजना ऋण
- उत्तर-पूर्व परिषद के लिये योजनाएँ
- संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत योजनाएँ
- अनुसूचित जातियों को विशेष केंद्रीय सहायता तथा जनजातीय क्षेत्रों को विशेष केंद्रीय सहायता।
ई-आईएलपी प्लेटफॉर्म : मणिपुर
हाल ही में मणिपुर के मुख्यमंत्री ने राज्य में इनर लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के प्रभावी नियमन हेतु ई-आईएलपी (e-ILP ) प्लेटफॉर्म को वर्चुअली लॉन्च किया।
- ILP प्रणाली 1 जनवरी, 2020 को मणिपुर में लागू हुई।
- मणिपुर में चार तरह के परमिट जारी किये जाते हैं- अस्थायी, नियमित, विशेष और श्रमिक या लेबर परमिट।
प्रमुख बिंदु
(i) ILP प्रणाली की पृष्ठभूमि :
- ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873’ के तहत अंग्रेज़ों ने निर्दिष्ट क्षेत्रों में बाहरी लोगों के प्रवेश और ठहरने को नियंत्रित करने वाले नियमों को तैयार किया।
- यह 'ब्रिटिश विषयों' (भारतीयों) को अपने क्षेत्रों में व्यापार करने से रोककर क्राउन के वाणिज्यिक हितों की रक्षा के लिये लागू किया गया था।
- 1950 में भारत सरकार ने 'ब्रिटिश विषयों' को 'सिटीज़न ऑफ इंडिया' या भारत के नागरिक से प्रतिस्थापित कर दिया।
- यह अन्य भारतीय राज्यों से संबंधित बाहरी लोगों से स्वदेशी लोगों के हितों की रक्षा के बारे में स्थानीय चिंताओं को दूर करने के लिये था।
(ii) परिचय :
- इनर लाइन परमिट (ILP) एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ है, जिसे अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, नगालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में प्रवेश करने के लिये अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों के पास ILP होना आवश्यक है।
- यह पूर्णतः यात्रा के प्रयोजन से संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
- ऐसे राज्यों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के प्रावधानों से छूट दी गई है।
- CAA, भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले तीन देशों के प्रवासियों की कुछ श्रेणियों के लिये पात्रता मानदंड में छूट प्रदान करता है। यह इनर लाइन सिस्टम द्वारा संरक्षित क्षेत्रों सहित कुछ श्रेणियों को छूट देता है।
(iii) विदेशी लोगों के लिये नियम:
- विदेशियों को पर्यटन स्थलों का दौरा करने के लिये ‘संरक्षित क्षेत्र परमिट’ (PAP) की आवश्यकता होती है, जो घरेलू पर्यटकों के लिये आवश्यक ILPs से भिन्न होता है।
- विदेशी (संरक्षित क्षेत्र) आदेश 1958 के तहत उक्त आदेश में परिभाषित 'इनर लाइन' के तहत आने वाले क्षेत्रों और विभिन्न राज्यों के अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे सभी क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
- एक विदेशी नागरिक को आमतौर पर किसी संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि इस तरह की यात्रा को उचित ठहराने के लिये उस व्यक्ति के पास विशिष्ट कारण है।
आभासी न्यायालय
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एन.वी. रमना ने आभासी सुनवाई के लिये सर्वोच्च न्यायालय में नए लगाए गए ओपन न्यायालय सॉफ्टवेयर के प्रति असंतोष व्यक्त किया है।
- यह असंतोष आभासी सुनवाई के दौरान आवाज़ो की प्रतिध्वनि की समस्या से उत्पन्न हुआ।
प्रमुख बिंदु
आभासी न्यायालय के बारे में:
- आभासी न्यायालय या ई-न्यायालय एक अवधारणा हैजिसका उद्देश्य न्यायालय में वादियों या वकीलों की उपस्थिति को समाप्त करना और मामले का ऑनलाइन निर्णय करना है।
- इसके लिये एक ऑनलाइन वातावरण और एक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) सक्षम बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 2020 में कोरोनावायरस महामारी के मद्देनज़र, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्णशक्ति का प्रयोग करते हुए देश भर के सभी न्यायालयों को न्यायिक कार्यवाही के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का व्यापक रूप से उपयोग करने का निर्देश दिया।
- इससे पहले न्यायिक प्रणाली में CJI द्वारा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित पोर्टल 'SUPACE' लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों को कानूनी अनुसंधान में सहायता करना था।
- साथ ही SC ने न्यायालय की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के लिये ड्राफ्ट मॉडल नियम जारी किये हैं।
ई-न्यायालय परियोजना
(i) ई-समिति द्वारा प्रस्तुत "भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना-2005" के आधार पर इसकी अवधारणा की गई थी। इसमें भारत के सर्वोच्च (ii) न्यायालय द्वारा भारतीय न्यायपालिका को ICT सक्षमता युक्त करने की परिकल्पना की गई थी ।
ई-न्यायालय मिशन मोड प्रोजेक्ट, एक अखिल भारतीय परियोजना है, जिसकी निगरानी और वित्तपोषण न्याय विभाग, कानून तथा न्याय मंत्रालय द्वारा देश भर के ज़िला न्यायालयों के लिये किया जाता है।
(iii) लाभ:
- वहनीय न्याय: ई-न्यायालय के विस्तार से समाज के सभी वर्गों के लिये न्यायालयों में न्याय तक सस्ती और आसान पहुँच सुनिश्चित होगी।
- न्याय की तेज़ी से डिलीवरी: ई-न्यायालय के प्रसार से न्याय निर्णयन प्रक्रिया तीव्र हो जाएगी तथा इसके लिये आवश्यक उपकरण प्रदान किये जाने चाहिये।
- पारदर्शिता: ई-न्यायालय चुनौतियों को दूर कर सेवा वितरण तंत्र को पारदर्शी और लागत प्रभावी बना सकते हैं। सेवा वितरण के लिये बनाए गए विभिन्न चैनलों के माध्यम से वादी अपने मामले की स्थिति ऑनलाइन देख सकते हैं।
- न्यायपालिका का एकीकरण: विभिन्न न्यायालयों और विभिन्न विभागों के बीच डेटा साझा करना भी आसान हो जाएगा क्योंकि एकीकृत प्रणाली के तहत सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध होगा।
- यह न्यायालयी प्रक्रियाओं में सुधार लाने और नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में फायदेमंद होगा।
(iv) चुनौतियाँ:
- संचालन संबंधी कठिनाइयाँ: आभासी न्यायालय में खराब कनेक्टिविटी, प्रतिध्वनि और अन्य व्यवधानों के कारण सुनवाई के दौरान तकनीकी रुकावटें देखी गई हैं।
- प्रक्रिया में वादी की निकटता न होने से विश्वास की कमी जैसे अन्य मुद्देंशामिल हैं।
- हैकिंग और साइबर सुरक्षा: प्रौद्योगिकी के स्तर पर साइबर सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता होगी।
- बुनियादी ढाँचा: अधिकांश तालुका/गाँवों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और बिजली तथा इंटरनेट कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- ई-न्यायालय रिकॉर्डबनाए रखना: परंपरागत स्टाफ दस्तावेज़ या रिकॉर्डसाक्ष्य को प्रभावी ढंग से संभालने के लिये अच्छी तरह से सुसज्जित और प्रशिक्षित नहीं है जो साक्ष्यों तथा विवरणों को वादी एवं परिषद के साथ-साथ न्यायालय तक आसानी से पहुँचा सकें।
आगे की राह:
- भारत की न्यायिक प्रणाली के लिये एक नया मंच विकसित करते समय डेटा गोपनीयता और डेटा सुरक्षा चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है।
- आभासी कार्यवाही प्रदान करने के लिये बुनियादी ढाँचे को पर्याप्त मशीनरी और डेटा कनेक्टिविटी के साथ अद्यतन करने की आवश्यकता है।
- एक उपयोगकर्त्ता के अनुकूल ई-न्यायालय तंत्र विकसित किया जाना चाहिये, जो आम जनता के लिये सरल और आसानी से सुलभ हो, यह भारत में वादियों को ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- वार्ता और संगोष्ठियों के माध्यम से ई-न्यायालय के बारे में जागरूकता पैदा कर सुविधाओं के संबंध में जानकारी देने में मदद मिल सकती है और ई-न्यायालय आसानी से न्याय की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
कार्बी एंगलोंग समझौता
हाल ही में असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह समझौता उग्रवाद मुक्त समृद्ध उत्तर-पूर्व के दृष्टिकोण के साथ समन्वित है, जिसमें पूर्वोत्तर के सर्वांगीण विकास, शांति और समृद्धि की परिकल्पना की गई है।
प्रमुख बिंदु
(i) कार्बी एंगलोंग संकट:
- मध्य असम में स्थित, कार्बी एंगलोंग राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है और नृजातीय तथा आदिवासी समूहों - कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी,
- हमार, तिवा, गारो, मान (ताई बोलने वाले), रेंगमा नागा संस्कृतियों का मिलन बिंदु है। इसकी विविधता ने विभिन्न संगठनों को भी जन्म
- दिया और उग्रवाद को बढ़ावा दिया जिसने इस क्षेत्र को विकसित नहीं होने दिया।
- कार्बी असम का एक प्रमुख जातीय समूह है, जो कई गुटों और इनके भागों से घिरा हुआ है। कार्बी समूह का इतिहास 1980 के दशक के उत्तरार्द्धसे हत्याओं, जातीय हिंसा, अपहरण और कराधान से युक्त रहा है।
- कार्बी एंगलोंग ज़िले के विद्रोही समूह जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके), कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स
- लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) आदि एक अलग राज्य बनाने की मुख्य मांग से उत्पन्न हुए।
(ii) उग्रवादी समूहों की कुछ अन्य मांगें इस प्रकार हैं:
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) में कुछ क्षेत्रों को शामिल करना।
- अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण।
- परिषद को अधिक अधिकार।
- आठवीं अनुसूची में कार्बी भाषा को शामिल करना।
- 1,500 करोड़ रुपए का वित्तीय पैकेज।
नोट:
(i) कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) एक स्वायत्त ज़िला परिषद है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है।
(ii) कार्बी-आंगलोंग शांति समझौते की मुख्य विशेषताएँ:
- कार्बी संगठनों ने आत्मसमर्पण किया: 5 उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT और KLF) ने हथियार डाल दिये और उनके 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने हिंसा छोड़ दी तथा समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
- विशेष विकास पैकेज: कार्बी क्षेत्रों के विकास के लिये विशेष परियोजनाएँ शुरू करने हेतु केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा पाँच वर्षों में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज आवंटित किया जाएगा।
- KAAC को अधिक स्वायत्तता: यह समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किये बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को अपने अधिकारों का प्रयोग करने हेतु यथासंभव स्वायत्तता हस्तांतरित करेगा।
- कुल मिलाकर वर्तमान समझौते में KAAC को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियांँ देने का प्रस्ताव है।
- पुनर्वासः इस समझौते में सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का प्रावधान किया गया है।
- स्थानीय लोगों का विकास: असम सरकार KAAC क्षेत्र के बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक कार्बी कल्याण परिषद (Karbi Welfare Council) की स्थापना करेगी।
- यह समझौता कार्बी लोगों की संस्कृति, पहचान, भाषा आदि की सुरक्षा और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
- KAAC को संसाधनों की आपूर्ति करने हेतु राज्य की संचित निधि में संशोधन किया जाएगा।
(iii) पूर्वोत्तर के अन्य हालिया शांति समझौते:
- NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ
- (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
- NLFT ने 10 अगस्त, 2019 को भारत सरकार और त्रिपुरा के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- इसके तहत भारत सरकार द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिये 100 करोड़ रुपए के ‘विशेष आर्थिक विकास पैकेज’ (SEDP) की पेशकश की गई है।
- ब्रूसमझौता, 2020 : ब्रू या रेयांग (Bru or Reang) पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है, ये लोग मुख्यतः त्रिपुरा, मिज़ोरम तथा असम में रहते हैं। त्रिपुरा में इन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिज़ोरम में इन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
- 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रूमिज़ोरम से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
- ब्रूसमझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति बनी है।
- बोडो शांति समझौता: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वे 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
- 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (Bodoland Territorial Area Districts- BTAD) के पुनर्निर्माण के साथ इसका नाम बदलकर बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) कर दिया गया।
वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई
हाल ही में महान स्वतंत्रता सेनानी वी.ओ. चिदंबरम पिल्लई को उनकी 150वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी गई।
- वह एक लोकप्रिय कप्पलोटिया थमिज़ान (तमिल खेवनहार) और "चेक्किलुथथा चेम्मल"के रूप में जाने जाते थे।
प्रमुख बिंदु
(i) जन्म:
- वल्लियप्पन उलगनाथन चिदंबरम पिल्लई (चिदंबरम पिल्लई) का जन्म 5 सितंबर, 1872 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले के ओट्टापिडारम में एक प्रख्यात वकील उलगनाथन पिल्लई और परमी अम्माई के घर हुआ था।
(ii) प्रारंभिक जीवन:
- चिदंबरम पिल्लई ने कैलडवेल कॉलेज, तूतीकोरिन से स्नातक किया। अपनी कानून की पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्होंने एक संक्षिप्त अवधि के लिये तालुक कार्यालय में क्लर्क के रूप में काम किया।
- न्यायाधीश के साथ उनके विवाद ने उन्हें 1900 में तूतीकोरिन में नए काम की तलाश करने के लिये मजबूर किया।
- वर्ष 1905 तक वे पेशेवर और पत्रकारिता गतिविधियों में संलग्न रहे।
(iii) राजनीति में प्रवेश:
- चिदंबरम पिल्लई ने 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद राजनीति में प्रवेश किया।
- वर्ष 1905 के अंत में चिदंबरम पिल्लई ने मद्रास का दौरा किया और बाल गंगाधर तिलक तथा लाला लाजपत राय द्वारा शुरू किये गए स्वदेशी आंदोलन से जुड़े।
- चिदंबरम पिल्लई रामकृष्ण मिशन की ओर आकर्षित हुए और सुब्रमण्यम भारती तथा मांडयम परिवार के संपर्क में आए।
- तूतीकोरिन (वर्तमान थूथुकुडी) में चिदंबरम पिल्लई के आने तक तिरुनेलवेली ज़िले में स्वदेशी आंदोलन ने गति प्राप्त करना शुरू नहीं किया था।
(iv) स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
- 1906 तक चिदंबरम पिल्लई ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कंपनी (एसएसएनसीओ) के नाम से एक स्वदेशी मर्चेंट शिपिंग संगठन स्थापित करने के लिये तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में व्यापारियों एवं उद्योगपतियों का समर्थन हासिल किया।
- उन्होंने स्वदेशी प्रचार सभा, धर्मसंग नेसावु सलाई, राष्ट्रीय गोदाम, मद्रास एग्रो-इंडस्ट्रियल सोसाइटी लिमिटेड और देसबीमना संगम जैसी कई संस्थाओं की स्थापना की।
- चिदंबरम पिल्लई और शिवा को उनके प्रयासों हेतु तिरुनेलवेली स्थित कई वकीलों द्वारा सहायता प्रदान की गई, जिन्होंने स्वदेशी संगम या 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक' नामक एक संगठन का गठन किया।
- तूतीकोरिन कोरल मिल्स की हड़ताल (1908) की शुरुआत के साथ राष्ट्रवादी आंदोलन ने एक द्वितीयक चरित्र प्राप्त कर लिया।
- गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह (1917) से पहले भी चिदंबरम पिल्लई ने तमिलनाडु में मज़दूर वर्ग का मुद्दा उठाया था और इस तरह वह इस संबंध में गांधीजी के अग्रदूत रहे।
- चिदंबरम पिल्लई ने अन्य नेताओं के साथ मिलकर 9 मार्च, 1908 की सुबह बिपिन चंद्र पाल की जेल से रिहाई का जश्न मनाने और स्वराज का झंडा फहराने के लिये एक विशाल जुलूस निकालने का संकल्प लिया।
(v) कृतियाँ: मेयाराम (1914), मेयारिवु (1915), एंथोलॉजी (1915), आत्मकथा (1946), थिरुकुरल के मनकुदावर के साहित्यिक नोट्स के साथ ((1917)), टोल्कपियम के इलमपुरनार के साहित्यिक नोट्स के साथ (1928)।
(vi) मृत्यु: चिदंबरम पिल्लई की मृत्यु 18 नवंबर, 1936 को भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस कार्यालय तूतीकोरिन में उनकी अंतिम इच्छा के अनुरूप हुई I
इंस्पायर पुरस्कार-मानक
हाल ही में इंस्पायर पुरस्कार-मानक (MANAK- मिलियन माइंड्स ऑगमेंटिंग नेशनल एस्पिरेशन एंड नॉलेज) के तहत 8वीं ‘राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता’ (NLEPC) शुरू हुई है।
प्रमुख बिंदु
(i) परिचय:
- इसे 'स्टार्टअप इंडिया' पहल के साथ जोड़ा गया है और इसे DST (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग) द्वारा नेशनल इनोवेशन फाउंडेशनइंडिया (NIF), DST के एक स्वायत्त निकाय के साथ निष्पादित किया जा रहा है।
- इस योजना के तहत देश भर के सभी सरकारी या निजी स्कूलों से छात्रों को आमंत्रित किया जाता है, भले ही उनके शैक्षिक बोर्ड (राष्ट्रीय और राज्य) कुछ भी हों।
- इसमें विज्ञान को आगे बढ़ाने और अनुसंधान में कॅरियर बनाने हेतु 10-15 वर्ष आयु वर्ग के और कक्षा 6 से 10 तक के छात्रों को शामिल किया गया है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के तहत विजेता छात्रों के बैंक खातों में 10,000 रुपए की पुरस्कार राशि प्रदान की जाती है।
- यह किसी भी स्तर पर प्रतिभा की पहचान के लिये प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने में विश्वास नहीं करता है। यह प्रतिभा की पहचान हेतु मौजूदा शैक्षिक संरचना की प्रभावकारिता में विश्वास करता है और उस पर निर्भर करता है।
(ii) लक्ष्य:
- छात्रों को भविष्य के नवप्रवर्तक और महत्त्वपूर्णविचारक बनने के लिये प्रेरित करना I
(iii) उद्देश्य:
- विद्यालयी छात्रों में रचनात्मकता और नवोन्मेषी सोच की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान एवं सामाजिक अनुप्रयोगों में निहित दस लाख मूल विचारों/नवाचारों को लक्षित करना।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करना तथा छात्रों को संवेदनशील एवं ज़िम्मेदार नागरिक, भविष्य के नवाचारी बनने के लिये पोषित करना।
(iv) इंस्पायर योजना:
- इंस्पायर (इनोवेशन इन साइंस परसुइट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च) योजना विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है।
- इसका उद्देश्य देश की युवा आबादी को विज्ञान की रचनात्मक खोज के बारे में बताना, प्रारंभिक चरण में विज्ञान के अध्ययन के लिये प्रतिभा को आकर्षित करना तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली अनुसंधान और विकास को मज़बूत व विस्तारित करने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल के आधार का निर्माण करना है।
- भारत सरकार ने वर्ष 2010 से INSPIRE योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है। इस योजना में 10-32 वर्ष आयु वर्ग के छात्रों को शामिल किया गया है और इसके पाँच घटक हैं।
- इंस्पायर पुरस्कार- MANAK इसके घटकों में से एक है।
(v) संबंधित पहलें:
राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 का मसौदा:
- इसका उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उत्प्रेरित करने और भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार (STI)
- पारिस्थितिकी तंत्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये STI पारिस्थितिकी तंत्र की ताकत तथा कमज़ोरियों की पहचान करना और उन्हें दूर करना है।
(vi) SERB-POWER योजना:
- यह भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रयोगशालाओं में विभिन्न विज्ञान व प्रौद्योगिकी (S&T)) कार्यक्रमों में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान में लैंगिक असमानता को कम करने के लिये विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों हेतु तैयार की गई एक योजना है।
(vii) स्वर्ण जयंती फैलोशिप:
- इसके तहत अच्छे ट्रैक रिकॉर्डवाले चयनित युवा वैज्ञानिकों को विशेष सहायता और अनुदान प्रदान किया जाता है ताकि वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अग्रणी क्षेत्रों में बुनियादी अनुसंधान को आगे बढ़ा सकें।
कॉमन सर्विस सेंटर (CSC)
हाल ही में सामान्य सेवा केंद्रों/कॉमन सर्विस सेंटर (Common Services Centres- CSC) को ग्रामीण क्षेत्रों में पासपोर्ट सेवा केंद्र कियोस्क (Passport Seva Kendra kiosks) के प्रबंधन और संचालन की मंज़ूरी प्राप्त हुई है।
प्रमुख बिंदु
(i) CSC के बारे में:
- यह इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY) की एक पहल है।
- CSC राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) की एक रणनीतिक आधारशिला है, जिसे मई 2006 में सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था, यह बड़े स्तर पर ई-गवर्नेंस को शुरू करने हेतु राष्ट्रीय सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम में प्रतिबद्धता के रूप में है।
- CSCs का उद्देश्य ई-गवर्नेंस, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेलीमेडिसिन, मनोरंजन के साथ-साथ अन्य निजी सेवाओं के क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता और लागत प्रभावी वीडियो, वाॅइस और डेटा सामग्री तथा सेवाएंँ प्रदान करना है।
- यह योजना निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों के लिये CSC योजना के कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये एक अनुकूल वातावरण प्रदान करती है, जो ग्रामीण भारत के विकास में सरकार की भागीदारी को सुनिशित करता है।
- CSC योजना के निजी-सार्वजनिक भागीदारी (Public Private Partnership- PPP ) मॉडल में एक 3-स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई हैजिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- सीएससी ऑपरेटर (CSC Operator) जिन्हें ग्राम स्तरीय उद्यमी या वीएलई कहा जाता है।
- सर्विस सेंटर एजेंसी (CSA), जो 500-1000 CSCs के विभाजन के लिये ज़िम्मेदार होगी
- राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राज्य नामित एजेंसी (SDA) पूरे राज्य में कार्यान्वयन के प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार।
(ii) सीएससी और डिजिटल इंडिया:
- डिजिटल इंडिया भारत का एक प्रमुख कार्यक्रम हैजिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना है।
- CSC डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तीन विज़न क्षेत्रों को सक्षम बनाता है:
- प्रत्येक नागरिक के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर एक उपयोगिता के रूप में;
- मांग पर शासन और सेवाएँ;
- नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण।
(iii) सीएससी 2.0:
- इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था, जिसने देश के सभी ग्राम पंचायतों में कार्यक्रम की पहुँच का विस्तार किया। 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक में कम-से-कम एक सीएससी की परिकल्पना की गई है।
- CSC 2.0 एक सेवा वितरण उन्मुख उद्यमिता मॉडल है, जो कि स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क (SWAN), स्टेट सर्विस डिलीवरी गेटवे (SSDG), ई-डिस्ट्रिक्ट (e-District), स्टेट डेटा सेंटर (SDC) और नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN)/ भारतनेट (BharatNet) के रूप में पहले से निर्मित बुनियादी ढाँचे के इष्टतम उपयोग के माध्यम से नागरिकों के लिये उपलब्ध कराई गई सेवाओं का एक व्यापक मंच है।
बैठने का अधिकार
हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने तमिलनाडु दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम, 1947 में संशोधन के लिये एक विधेयक पेश किया है।
- इस विधेयक में कर्मचारियों के लिये अनिवार्य रूप से बैठने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक उपधारा जोड़ने की मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु
(i) विधेयक की मुख्य बातें:
- प्रस्तावित संशोधन: अधिनियम की प्रस्तावित धारा 22-A में कहा गया हैकि प्रत्येक प्रतिष्ठान के परिसर में सभी कर्मचारियों के बैठने की उपयुक्त व्यवस्था होगी ताकि वे अवसर पड़ने पर बैठने का लाभ उठा सकें।
- विधेयक की आवश्यकता: दुकानों और प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान खड़े रहने के लिये मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- महत्त्व: इससे बड़े और छोटे प्रतिष्ठानों के हज़ारों कर्मचारियों, विशेष रूप से कपड़ा और आभूषण शोरूम में काम करने वालों को लाभ होगा।
(ii) समान विधान: कुछ वर्ष पहले केरल में कपड़ा शोरूम के कर्मचारियों ने 'बैठने के अधिकार' की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था।
- इसने केरल सरकार को उनके लिये बैठने की व्यवस्था करने हेतु वर्ष 2018 में केरल दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम (Kerala Shops and Establishments Act) में संशोधन करने के लिये प्रेरित किया।
आगे की राह
(i) बैठने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 42 (राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों का हिस्सा) के अनुसरण में एक नया कदम है जो राज्य को कार्यस्थल पर न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियाँ प्रदान करने हेतु प्रावधान करने के लिये प्रेरित करता है।
(ii) इसलिये संसद को इसका संज्ञान लेकर बैठने के अधिकार को अखिल भारतीय आधार पर कानून बनाना चाहिये।
शिक्षक पर्व 2021
शिक्षकों के योगदान को मान्यता देने और नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 को एक कदम आगे ले जाने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा 5-17
सितंबर तक शिक्षक पर्व मनाया जा रहा है।
- इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने शिक्षा क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण पहलों की शुरुआत की।
प्रमुख बिंदु
पाँच पहलों की शुरुआत:
(i) भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश:
- यह बच्चों और श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिये शुरू किया गया था। इसमें 10,000 शब्द हैं।
(ii) बोलती किताबें:
- ये दृष्टिबाधित लोगों के लिये ऑडियोबुक हैं।
(iii) स्कूल गुणवत्ता मूल्यांकन और प्रत्यायन ढाँचा (SQAA):
- SQAA केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा इससे संबद्ध स्कूलों में मानकों के रूप में उपलब्धि के वैश्विक मानदंड प्रदान करने के लिये प्रस्तावित एक गुणवत्ता पहल है।
- यह पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र, मूल्यांकन, बुनियादी ढाँचे, समावेशी प्रथाओं और शासन प्रक्रिया जैसे आयामों के लिये एक सामान्य वैज्ञानिक ढाँचे की अनुपस्थिति की कमी को दूर करेगा।
(iv) निपुण भारत हेतु निष्ठा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम:
- 'नेशनल इनिसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ (NISHTHA) एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिये एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।
- निपुण (बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल) भारत योजना को बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण को सुनिश्चित करने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने हेतु शुरू किया गया था, ताकि ग्रेड-3 तक का प्रत्येक बच्चा वर्ष 2026-27 के अंत तक पढ़ने, लिखने और अंकगणित में वांछित सीखने की क्षमता प्राप्त कर सके।
(v) विद्यांजलि 2.0 पोर्टल:
- इसे विद्यालय विकास हेतु शिक्षा स्वयंसेवकों, दाताओं और CSR (कॉरर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) योगदानकर्ताओं की सहायता प्राप्त करने के लिये प्रारंभ किया गया था।
- विद्यांजलि योजना उन अभिनव योजनाओं में से एक है जो सरकारी स्कूलों में स्वयंसेवी शिक्षकों की पेशकश करके साक्षरता में सुधार की ओर ध्यान केंद्रित करती है। इसे वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया था।
(vi) अन्य संबंधित हालिया पहलें:
- आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने वित्तीय वर्ष 2025-26 तक स्कूली शिक्षा कार्यक्रम, समग्र शिक्षा योजना 2.0 को मंज़ूरी दे दी है।
- इससे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की पहली वर्षगांँठ को चिह्नित करने के लिये प्रधानमंत्री ने अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट को लॉन्च किया जो उच्च शिक्षा में छात्रों को प्रवेश और निकास के कई विकल्प प्रदान करने के साथ ही प्रथम वर्ष के इंजीनियरिंग कार्यक्रम और उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में दिशा-निर्देश प्रदान करेगा।
- शुरू की गई पहलों में विद्या प्रवेश (Vidya Pravesh) पहल भी शामिल है, जो ग्रेड 1 के छात्रों के लिये नाटक/प्ले आधारित तीन माह का स्कूल प्रिपरेशन मॉड्यूल (School Preparation Module) है, माध्यमिक स्तर पर एक विषय के रूप में भारतीय सांकेतिक भाषा, NISHTHA 2.0, NCERT द्वारा डिज़ाइन किया गया शिक्षक प्रशिक्षण का एक एकीकृत कार्यक्रम है और SAFAL (सीखने के स्तर के विश्लेषण के लिये संरचित मूल्यांकन), जो कि सीबीएसई स्कूलों में ग्रेड 3, 5 और 8 के लिये एक योग्यता आधारित मूल्यांकन ढांँचा है।
- इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (NDEAR) और राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी फोरम (NETF) का शुभारंभ भी हुआ।
शिक्षक दिवस
- 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर उनकी याद में प्रतिवर्ष पूरे भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
- विश्व शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 अक्तूबर को शिक्षकों की स्थिति से संबंधित 1966 अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन/यूनेस्को अनुशंसा को अपनाने की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
- यह उपकरण शिक्षकों के अधिकारों तथा ज़िम्मेदारियों और उनकी प्रारंभिक तैयारी व आगे की शिक्षा, भर्ती, रोज़गार, शिक्षण एवं सीखने की स्थिति के मानकों को निर्धारित करता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुट्टनी में हुआ था। वे एक शिक्षक, दार्शनिक, लेखक और राजनीतिज्ञ थे।
- वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति (1952-1962) और वर्ष 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे।
- उन्हें 1931 में नाइटहुड से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1954 में उन्हें भारत रत्न (भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1963 में उन्हें ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर ऑफ मेरिट की मानद सदस्यता मिली।
सी-295 एयरक्राफ्ट डील
सुरक्षा मामलों संबंधी समिति (CCS) ने एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत भारतीय वायु सेना के लिये 56 सी-295 मेगावाट ( 56 C-295 MW) क्षमता वाले मध्यम परिवहन विमान की खरीद को मंज़ूरी दे दी है।
- 56 सी-295 एमडब्ल्यू (C-295 MW) विमान को एयरबस डिफेंस एंड स्पेस एस.ए, स्पेन से खरीदा जाएगा।
प्रमुख बिंदु
56 सी-295 एमडब्ल्यू के बारे में:
(i) क्षमता:
- 56 सी-295 एमडब्ल्यूसमकालीन तकनीक के साथ 5-10 टन क्षमता का परिवहन विमान है।
(ii) विशेषताएँ:
- इसमें तेज़ी से प्रतिक्रिया और सैनिकों एवं कार्गो की पैरा ड्रॉपिंग के लिये एक रीयर रैंप (Rear Ramp Door) है।
- इसे स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट (Electronic Warfare Suite) के साथ स्थापित किया जाएगा।
(iii)प्रतिस्थापन:
- यह भारतीय वायु सेना के एवरो-748 ( Avro-748) विमानों के पुराने बेड़े की जगह लेगा।
- एवरो-748 विमान एक ब्रिटिश मूल के ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप (British-origin twin-engine turboprop), सैन्य परिवहन और 6 टन माल ढुलाई क्षमता वाले मालवाहक विमान हैं।
(iv) परियोजना क्रियान्वयन:
- एयरबस डिफेंस एंड स्पेस (Airbus Defence and Space) और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (Tata Advanced Systems Limited-TASL) एयरोस्पेस क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया पहल के तहत वायु सेना को नए परिवहन विमान से लैस करने की परियोजना को संयुक्त रूप से क्रियान्वित करेंगे।
- एयरबस पहले 16 विमानों को उड़ान भरने की स्थिति में आपूर्ति करेगी, जबकि शेष 40 को TASL द्वारा भारत में असेंबल किया जाएगा।
सौदे का महत्त्व:
(i) निजी क्षेत्र की भागीदारी: यह अपनी तरह की पहली परियोजना हैजिसमें किसी निजी कंपनी द्वारा भारत में एक सैन्य विमान का निर्माण किया जाएगा।
- उम्मीद हैकि भारत में निर्माण की प्रक्रिया के दौरान टाटा कंसोर्टियम के सभी आपूर्तिकर्त्ता जो विशेष प्रक्रियाओं में शामिल होंगे, वे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एयरोस्पेस और ‘रक्षा संविदा प्रत्यायन कार्यक्रम’ (NADCAP) की मान्यता प्राप्त करेंगे और इसे बनाए रखेंगे।
(ii) आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा: यह भारतीय निजी क्षेत्र के लिये प्रौद्योगिकी गहन और अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी विमानन उद्योग में प्रवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है।
- यह कार्यक्रम स्वदेशी क्षमताओं को मज़बूत करने और 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिये एक अनूठी पहल है।
(iii) एमएसएमई को बढ़ावा: यह परियोजना भारत में एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देगी जिसमें देश भर में फैले कई सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) विमान के कुछ हिस्सों के निर्माण में शामिल होंगे।
(v) आयात पर निर्भरता कम होगी: यह परियोजना घरेलू विमानन निर्माण को बढ़ावा देगी जिसके परिणामस्वरूप आयात पर निर्भरता कम होगी और निर्यात में अपेक्षित वृद्धि होगी।
- भारत में बड़ी संख्या में पार्ट्स, उप संयोजक और एयरो स्ट्रक्चर के प्रमुख कंपोनेंट संयोजक इकाइयों का निर्माण किया जाना है।
(vi) रोज़गार सृजन: यह कार्यक्रम देश के एयरोस्पेस पारिस्थितिकी तंत्र में रोज़गार सृजन के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा।
- इससे भारत के एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष तौर पर 600 अत्यधिक कुशल नौकरियाँ, 3000 से अधिक अप्रत्यक्ष नौकरियाँ और 42.5 लाख से अधिक श्रम-घंटों के सृजन की उम्मीद है।
(vii) अवसंरचना विकास: इसमें हैंगर, भवन, एप्रन और टैक्सीवे के रूप में विशेष बुनियादी अवसंरचना का विकास शामिल होगा।
- डिलीवरी के पूरा होने से पूर्व भारत में ‘C-295 MW’ विमानों के लिये 'D' लेवल सर्विसिंग सुविधा (MRO) स्थापित करने की योजना है।
- यह उम्मीद की जाती हैकि यह सुविधा ‘C-295’ विमान के विभिन्न रूपों के लिये एक क्षेत्रीय MRO (रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल) हब के रूप में कार्य करेगी।
(viii) ऑफसेट दायित्व: ‘एयरबस’ भारतीय ऑफसेट भागीदारों से योग्य उत्पादों और सेवाओं की सीधी खरीद के माध्यम से अपने ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिलेगा।
- सरल शब्दों में ‘ऑफसेट दायित्व’ का आशय भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के दायित्व से है, यदि भारत इससे रक्षा उपकरण खरीद रहा है।
नोट
- नेशनल एयरोस्पेस एंड डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर प्रोग्राम (NADCAP) विशेष प्रक्रियाओं और उत्पादों के लिये लागत प्रभावी दृष्टिकोण का प्रबंधन करने तथा एयरोस्पेस एवं रक्षा उद्योगों के भीतर निरंतर सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया गया एक विश्वव्यापी सहकारी कार्यक्रम है।
रक्षा सेवाओं हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रत्यायोजन नियम, 2021
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने रक्षा सेवाओं हेतु वित्तीय शक्तियों का प्रत्यायोजन (DFPDS) नियम, 2021 जारी किया है।
- इस नियम का प्राथमिक केंद्रबिंदु वित्तीय शक्तियों के बढ़े हुए प्रत्यायोजन में प्रक्रियात्मक अवरोधों को दूर कर इसमें अधिक विकेंद्रीकरण और परिचालन दक्षता लाना है।
- सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये रक्षा सुधारों में DFPDS नियम, 2021 एक अन्य बड़ा कदम है।
प्रमुख बिंदु
DFPDS, 2021 की मुख्य विशेषताएँ:
(i) क्षेत्रीय टुकड़ियों (Field Formation) को सौंपी गई वित्तीय शक्तियाँ:
- यह सेना, नौसेना और वायु सेना (सशस्त्र बलों) के लिये राजस्व अधिप्राप्ति शक्तियों के मामले में अधिकारों की वृद्धि का प्रावधान करता है।
- सेवाओं के उप-प्रमुखों को प्रदत्त वित्तीय शक्तियों में 10 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।
- आवश्यकताओं के आधार पर सेवाओं के बीच नए अधिकारियों को वित्तीय शक्तियों से संबंधित अधिकार भी सौंपे गए हैं।
(ii) परिचालन तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करना:
- नए नियमों के तहत महत्त्वपूर्ण उपकरणों (जो न केवल बहुत महँगे होते हैं बल्कि इनकी परिचालन तैयारियों में भी काफी समय लगता है ) को खरीदने या लंबी अवधि के लिये पट्टे पर लेने के बजाय उन्हें कम अवधि के लिये किराए पर लिया जा सकता है।
- वित्तीय शक्तियों के प्रत्यायोजन का उद्देश्य फील्ड कमांडरों और उससे नीचे की रैंक वाले अधिकारियों को तत्काल परिचालन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं आवश्यक निर्वाह आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उपकरण/वॉर-लाइक स्टोर की खरीद के लिये सशक्त बनाना है।
(iii) व्यापार सुगमता को बढ़ावा:
- 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्य को हासिल करने के लिये स्वदेशीकरण/अनुसंधान एवं विकास से संबंधित वित्तीयन में तीन गुना तक की वृद्धि।
रक्षा क्षेत्र में हालिया सुधार:
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का सृजन।
- सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs) की स्थापना।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020।
- नवीनतम महत्त्वपूर्ण रक्षा अधिग्रहण: राफेल लड़ाकू विमान, S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली आदि।
- सशस्त्र बलों में महिलाओं की भागीदारी।
- रक्षा प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण: LCA तेजस, प्रोजेक्ट 75 आदि।
NSCN(K) निकी समूह के साथ युद्धविराम
हाल ही में केंद्र सरकार ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-K) निकी ग्रुप के साथ एक वर्ष की अवधि के लिये युद्धविराम समझौता किया है।
- यह पहल नगा शांति प्रक्रिया के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है तथा भारत के प्रधानमंत्री के 'उग्रवाद मुक्त, समृद्ध उत्तर पूर्व' के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
प्रमुख बिंदु
(i) नगा शांति प्रक्रिया :
- 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् आरंभिक चरण में नगा क्षेत्र असम का हिस्सा बना रहा।
- 1957 में, नगा नेताओं और भारत सरकार के बीच एक समझौते के बाद, असम के नगा हिल्स क्षेत्र तथा उत्तर-पूर्व में त्युएनसांग फ्रंटियर डिवीजन को एक साथ भारत सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासन की एक इकाई के अंतर्गत लाया गया था।
- नगालैंड ने वर्ष1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया, हालाँकि इसके बाद भी विद्रोही गतिविधियाँ जारी रही।
(ii) उग्रवाद मुक्त समृद्ध पूर्वोत्तर का दृष्टिकोण (विज़न)
- यह माना जाता हैं कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर राज्य देश के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- इसलिये इसका उद्देश्य 2022 तक पूर्वोत्तर में सभी प्रकार के विवादों को समाप्त करना तथा वर्ष 2023 में पूर्वोत्तर में शांति और विकास के एक नए युग की शुरुआत करना है।
- इसके तहत सरकार पूर्वोत्तर की गरिमा, संस्कृति, भाषा, साहित्य और संगीत को समृद्ध कर रही है।
- हालिया वर्षों में सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में सैन्य संगठनों के साथ कई शांति समझौतों पर भी हस्ताक्षर किये हैं।
उदाहरण -
- कार्बी एंगलोंग समझौता, 2021: इसमें असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और असम की राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- ब्रू समझौता, 2020 : ब्रूसमझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति व्यक्त की गई है।
- बोडो शांति समझौता, 2020 : 2020 में भारत सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों के प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (Bodoland Territorial Region-BTR) को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई।
- NSCN(NK), NSCN (R), और NSCN (K)-खांगो, NSCN (IM) जैसे नगा विद्रोह में शामिल विभिन्न सैन्य संगठनों के साथ शांति समझौता।
पूर्वोत्तर भारत में संघर्ष:
(i) संघर्षों की प्रकृति:
- राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष: इसमें एक अलग राष्ट्र के रूप में एक विशिष्ट 'मातृभूमि' की अवधारणा को शामिल है।
- नगालैंड: नगा विद्रोह, स्वतंत्रता की मांग के साथ शुरू हुआ।
- यद्यपि स्वतंत्रता की मांग काफी हद तक कम हो गई है, लेकिन 'ग्रेटर नगालैंड' या 'नगालिम' की मांग सहित अंतिम राजनीतिक समझौते का मुद्दा अभी भी जीवंत बना हुआ है।
(ii) जातीय संघर्ष: इसमें प्रभावशाली जनजातीय समूह की राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाविता के खिलाफ संख्यात्मक रूप से छोटे और कम प्रभावशाली जनजातीय समूहों के दावे को शामिल करना शामिल है।
- त्रिपुरा: वर्ष 1947 के बाद से राज्य की जनसांख्यिकीय रूपरेखा में काफी परिवर्तन हुआ है यह परिवर्तन मुख्य रूप से तब हुआ जब नवगठित पूर्वी पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन हुआ और इसने त्रिपुरा को आदिवासी बहुमत वाले क्षेत्र से बंगाली भाषी लोगों के बहुमत वाले क्षेत्र में बदल दिया।
- आदिवासियों को मामूली कीमतों पर उनकी कृषि भूमि से वंचित कर दिया गया तथा उन्हें वन भूमियों की ओर भेज दिया गया।
- इसके परिणामस्वरुप तनाव व्यापक हिंसा और उग्रवाद की स्थिति पैदा हुई।
(iii) उप-क्षेत्रीय संघर्ष: उप-क्षेत्रीय संघर्ष में ऐसे आंदोलनों को शामिल किया जाता है जो उप-क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मान्यता देने को प्रेरित करते हैं और प्रायः राज्य सरकारों या यहाँ तक कि स्वायत्त परिषदों के साथ सीधे संघर्ष में व्याप्त हो जाते हैं।
- मिज़ोरम: हिंसक विद्रोह के अपने इतिहास और उसके बाद शांति की ओर लौटने वाला यह राज्य अन्य सभी हिंसा प्रभावित राज्यों के लिये एक उदाहरण है।
- वर्ष 1986 में केंद्र सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट के बीच 'मिज़ो शांति समझौते' और अगले वर्ष राज्य का दर्जादिये जाने के बाद मिज़ोरम में पूर्णशांति और सद्भाव कायम है।
- इसके अलावा मिज़ोरम के गठन के समय से ही असम और मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद व्याप्त है।
(iv) अन्य कारण: प्रायोजित आतंकवाद, सीमापार से प्रवासियों की निरंतर आवाजाही के परिणामस्वरूप उत्पन्न संघर्ष, महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण को और मज़बूत करने के उद्देश्य के परिणामतः आपराधिक स्थितियाँ बन गई हैं।
- असम: राज्य में प्रमुख जातीय संघर्ष 'विदेशियों' की आवाजाही के कारण है यहाँ विदेशियों से तात्पर्यसीमा पार ( बांग्लादेश) से असमिया से काफी अलग भाषा और संस्कृति वाले लोगों से है।
- असम में हालिया तनाव नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की बहस से उत्पन्न हुआ है।
संघर्षसमाधान के तरीके:
- सुरक्षा बलों/पुलिस कार्रवाई' को मज़बूत करना।
- राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची, संविधान के भाग XXI के तहत विशेष प्रावधान जैसे तंत्र के माध्यम से अधिक स्थानीय स्वायत्तता।
- उग्रवादी संगठनों से बातचीत।
- विशेष आर्थिक पैकेज सहित विकास गतिविधियाँ।
इंडिया रैंकिंग्स- 2021
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (NIRF) द्वारा स्थापित ‘इंडिया रैंकिंग्स, 2021’ जारी की है।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क:
(i) लॉन्च: ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ (NIRF) को सितंबर 2015 में शिक्षा मंत्रालय (तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा अनुमोदित किया गया था।
- यह देश में उच्च शिक्षण संस्थानों (HEI) को रैंक प्रदान करने के लिये भारत सरकार का पहला प्रयास है।
- वर्ष 2018 में देश भर के सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों के लिये ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ में हिस्सा लेना अनिवार्य कर दिया गया था।
(ii) पाँच मापदंडों पर मूल्यांकन:
- शिक्षण, शिक्षा और संसाधन (Teaching, Learning and Resources),
- अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices),
- स्नातक परिणाम (Graduation Outcomes),
- आउटरीच और समावेशिता (Outreach and Inclusivity)
- अनुभूति (Perception)
(iii) श्रेणियाँ: कुल 11 श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ संस्थानों को सूचीबद्ध किया गया है- समग्र राष्ट्रीय रैंकिंग, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, कॉलेज, चिकित्सा, प्रबंधन, फार्मेसी, विधि, वास्तुकला, दंत चिकित्सा और अनुसंधान।
(iv) लॉन्च करने का कारण: ‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ और ‘टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग’ द्वारा विकसित रैंकिंग पद्धति में व्यक्तिपरकता ने भारत को शंघाई रैंकिंग की तर्ज पर भारतीय संस्थानों के लिये अपनी रैंकिंग प्रणाली शुरू करने हेतु प्रेरित किया है।
- ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ अपने छठे वर्ष में है, किंतु अभी भी यह केवल भारतीय संस्थानों को ही रैंक प्रदान करता है, जबकि शंघाई रैंकिंग अपने पहले वर्षसे ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रैंकिंग प्रदान कर रहा है
- हालाँकि ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क’ की दीर्घकालिक योजना इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाना है।
(v) वर्ष 2021 में भाग लेने वाले संस्थानों की संख्या: इस वर्ष राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क में 6,000 से अधिक संस्थानों ने भाग लिया है।
इंडिया रैंकिंग्स 2021 की मुख्य विशेषताएँ:
- समग्र: IIT-मद्रास, IISc-बंगलूरू और IIT-बॉम्बे देश के शीर्ष तीन उच्च शिक्षा संस्थानों के रूप में उभरे हैं।
- विश्वविद्यालय: IISc, बंगलूरू इस श्रेणी में सबसे ऊपर है।
- अनुसंधान संस्थान: IISc, बंगलूरू को भारत रैंकिंग 2021 में पहली बार शामिल की गई श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ शोध संस्थान का दर्जादिया गया।
- कॉलेज: मिरांडा कॉलेज लगातार पाँचवें वर्ष कॉलेजों में शीर्ष स्थान पर है, इसके बाद लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन और लोयोला कॉलेज का स्थान आता है।
- इंजीनियरिंग: इंजीनियरिंग संस्थानों में IIT-मद्रास नंबर वन पर रहा।
- प्रबंधन: भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद को पहला स्थान मिला।
- चिकित्सा: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली लगातार चौथे वर्षचिकित्सा में शीर्ष स्थान पर है।
- फार्मेसी: जामिया हमदर्द फार्मेसी विषय में लगातार तीसरी बार सूची में सबसे ऊपर है।
- वास्तुकला: IIT रुड़की वास्तुकला (Architecture) विषय में पहली बार शीर्ष स्थान पर है।
- कानून: नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलूरू ने लगातार चौथे वर्ष कानून में पहला स्थान बरकरार रखा है।
- दंत चिकित्सा: मणिपाल कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज़, मणिपाल ने "दंत चिकित्सा" श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया।
थमिराबरानी सभ्यता: तमिलनाडु
तमिलनाडु के थूथुकुडी ज़िले के शिवकलाई में पुरातात्त्विक खुदाई से प्राप्त कार्बनिक पदार्थों पर की गई कार्बन डेटिंग से पता चला हैकि थमिराबरानी सभ्यता कम-से-कम 3,200 साल पुरानी है।
- कार्बन डेटिंग: कार्बन के समस्थानिक कार्बन-12 और कार्बन-14 के सापेक्ष अनुपात से कार्बनिक पदार्थ की आयु या तिथि के निर्धारण को कार्बन डेटिंग कहते हैं।
प्रमुख बिंदु
(i) थमिराबरानी नदी:
- तमिलनाडु की सबसे छोटी नदी का उद्गम थामिराबरानी अंबासमुद्रम तालुके में पश्चिमी घाट की पोथिगई पहाड़ियों से होता है, यह तिरुनेलवेली और थूथुकुडी ज़िलों से होकर बहती है तथा कोरकाई (तिरुनेलवेली ज़िले) में मन्नार की खाड़ी (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है।
(ii) निष्कर्षों का महत्त्व:
- यह इस बात का प्रमाण दे सकता हैकि दक्षिण भारत में 3,200 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के बाद एक शहरी सभ्यता [पोरुनाई नदी (थामिराबरानी) सभ्यता] थी।
- इसके अतिरिक्त तमिल मूल की खोज के लिये अन्य राज्यों और देशों में पुरातात्त्विक उत्खनन किया जाएगा।
- पहले चरण में चेर साम्राज्य की प्राचीनता और संस्कृति को स्थापित करने के लिये केरल में मुज़िरिस के प्राचीन बंदरगाह, जिसे अब पट्टनम के नाम से जाना जाता है, पर अध्ययन किया जाएगा।
मिस्र में कुसीर अल-कादिम और पर्निका अनेके (Quseir al-Qadim and Pernica Anekke), जो कभी रोमन साम्राज्य का हिस्सा थे तथा ओमान में खोर रोरी (Khor Rori) में अनुसंधान कार्य किया जाएगा, इनके साथ तमिलों के व्यापारिक संबंध थे।
इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भी अध्ययन किया जाएगा, जहाँ राजा राजेंद्र चोल ने वर्चस्व स्थापित किया था।
तमिल भारत के तीन शासक घरानों, पांड्यों, चेरों और चोलों ने दक्षिणी भारत एवं श्रीलंका पर वर्चस्व के लिये लड़ाई लड़ी। इन राजवंशों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर प्रारंभिक साहित्य को बढ़ावा दिया तथा महत्त्वपूर्णहिंदू मंदिरों का निर्माण किया।
संगम साहित्य, जो छह शताब्दियों (3rd BCE – 3rd CE) की अवधि में लिखा गया था, विभिन्न चोल, चेर और पांड्य राजाओं के संदर्भ है।
(iii) अन्य हालिया निष्कर्ष:
- हाल ही में तमिलनाडु के कीझादी (Keezhadi) में खुदाई के दौरान चाँदी के पंच के रूप में चिह्नित एक सिक्का मिला, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, टॉरिन और अन्य ज्यामितीय पैटर्न के प्रतीक थे।
- इस पर किये गए अध्ययनों से पता चलता हैकि यह सिक्का चौथी शताब्दी ईसा पूर्व का है, जो प्राचीन मौर्यसाम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) के समय से पहले का है।
- तमिलनाडु में कोडुमानल, कीलादी, कोरकाई, शिवकलाई जैसे कई स्थानों पर पुरातात्त्विक खुदाई की जा रही है।
- कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग के अनुसार, कीलादी सभ्यता ईसा पूर्वछठी शताब्दी की है।
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021
हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II के तहत स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 या ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 की शुरुआत की।
- इससे पहले मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 और 2019 में स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण का आयोजन किया गया था।
- वर्ष 2016 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा प्रस्तुत किये गए स्वच्छ सर्वेक्षण शहरी 2021 की घोषणा की जानी है।
प्रमुख बिंदु
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021:
(i) परिचय:
- गाँवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस का दर्जा देने की केंद्र की पहल के एक हिस्से के रूप में यह ग्रामीण भारत में स्वच्छता, सफाई और स्वच्छता की स्थिति का आकलन करता है।
- ओडीएफ-प्लस स्थिति का उद्देश्य ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन सुनिश्चित करना है तथा यह ओडीएफ स्थिति का उन्नयन है जिसमें पर्याप्त शौचालयों के निर्माण की आवश्यकता थी ताकि लोगों को खुले में शौच न करना पड़े।
- यह कार्य एक विशेषज्ञ एजेंसी द्वारा किया जाता है।
(ii) कवरेज़:
- वर्ष 2021 के ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में इसमें 698 ज़िलों में फैले 17,475 गाँवों को कवर किया जाएगा।
(iii) विभिन्न तत्त्वों को वेटेज:
- सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता का प्रत्यक्ष निरीक्षण- 30%
- नागरिकों की प्रतिक्रिया- 35%
- स्वच्छता संबंधी मानकों पर सेवा स्तर की प्रगति- 35%
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II:
(i) परिचय:
- यह चरण-I के तहत उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
- सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने के लिये भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी।
- मिशन के तहत भारत के सभी गाँवों, ग्राम पंचायतों, ज़िलों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने ग्रामीण इलाकों में 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण करके महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्तूबर, 2019 तक खुद को "खुले में शौच मुक्त" (ओडीएफ) घोषित किया।
- SBM को क्रमशः शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय तथा जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- केंद्रीय बजट 2021-22 में स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 को पाँच साल, वर्ष 2021 से 2026 तक 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ लागू करने की घोषणा की गई थी।
(ii) कार्यान्वयन:
- इसे 2020-21 से 2024-25 तक मिशन मोड में 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ लागू किया जाएगा।
(iii) फंडिंग पैटर्न:
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न 90:10,अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाएगा।
- SLWM के लिये वित्तपोषण मानदंडों को युक्तिसंगत बनाया गया है और परिवारों की संख्या के स्थान पर प्रति व्यक्ति आधार पर बदल दिया गया है।
SBM के भाग के रूप में अन्य योजनाएँ:
(i) गोबर-धन योजना:
- इसे जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य बायोडिग्रेडेबल कचरे को संपीड़ित बायोगैस (CBG) में परिवर्तित करके किसानों की आय में वृद्धि करना है।
(ii) व्यक्तिगत घरेलू शौचालय:
- घरेलू शौचालय निर्माण के लिये 15000 रुपए दिये जाते हैं।
(iii) स्वच्छ विद्यालय अभियान:
- शिक्षा मंत्रालय ने एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी स्कूलों में बालक और बालिकाओं के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छ विद्यालय अभियान शुरू किया।
महाकवि सुब्रमण्यम भारती
हाल ही में उपराष्ट्रपति ने महाकवि ‘सुब्रमण्यम भारती’ को उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
(i) जन्म: सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को मद्रास प्रेसीडेंसी के ‘एट्टायपुरम’ में हुआ था।
(ii) संक्षिप्त परिचय: वे राष्ट्रवादी काल (1885-1920) के भारतीय लेखक थे, जिन्हें आधुनिक तमिल शैली का जनक माना जाता है।
- उन्हें 'महाकवि भारथियार' के नाम से भी जाना जाता है।
- सामाजिक न्याय को लेकर उनकी मज़बूत भावना ने उन्हें आत्मनिर्णय और सम्मान हेतु लड़ने के लिय प्रेरित किया।
(iii) राष्ट्रवादी काल के दौरान भागीदारी:
- वर्ष 1904 के बाद वह तमिल दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेशमित्रन’ से जुड़ गए।
- राजनीतिक मामलों के साथ उनके इस जुड़ाव के कारण वे जल्द ही ‘भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस’ (INC) के चरमपंथी विंग का हिस्सा बन गए।
- सुब्रमण्यम भारती ने अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने हेतु लाल कागज़ पर 'इंडिया' नाम का साप्ताहिक समाचार पत्र छापा।
- यह तमिलनाडु में राजनीतिक कार्टून प्रकाशित करने वाला पहला पेपर था।
- उन्होंने ‘विजय’ जैसी कुछ अन्य पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन भी किया।
- उन्होंने कॉन्ग्रेस के वार्षिक सत्रों में हिस्सा लिया और बिपिन चंद्र पाल, बी.जी. तिलक तथा वी.वी.एस. अय्यर जैसे चरमपंथी नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के बनारस सत्र (1905) और सूरत सत्र (1907) के दौरान उनकी भागीदारी एवं देशभक्ति के प्रति उनके उत्साह ने कई राष्ट्रीय नेताओं को प्रभावित किया।
- वर्ष 1908 में उन्होंने ‘स्वदेश गीतांगल’ प्रकाशित किया।
- वर्ष 1917 की रूसी क्रांति को लेकर सुब्रमण्यम भारती की प्रतिक्रिया ‘पुड़िया रूस’ (द न्यू रशिया) नामक कविता मौजूद है, जो कि उनके राजनीतिक दर्शन का एक आकर्षक उदाहरण प्रस्तुत करती है।
- उन्हें एक फ्राँसीसी उपनिवेश ‘पांडिचेरी’ (अब पुद्दुचेरी) भागने के लिये मज़बूर होना पड़ा, जहाँ वे वर्ष 1910 से वर्ष 1919 तक निर्वासन में रहे।
- इस अवधि के दौरान की सुब्रमण्यम भारती की राष्ट्रवादी कविताएँ और निबंध काफी लोकप्रिय थे।
(iv) महत्त्वपूर्ण रचनाएँ: ‘कण पाणु’ (वर्ष 1917; कृष्ण के लिये गीत), ‘पांचाली सपथम’ (वर्ष 1912; पांचाली का व्रत), ‘कुयिल पाउ’ (वर्ष 1912; कुयिल का गीत), ‘पुड़िया रूस’ और ‘ज्ञानारथम’ (ज्ञान का रथ)।
उनकी कई अंग्रेज़ी कृतियों को ‘अग्नि’ और अन्य कविताओं तथा अनुवादों एवं निबंधों व अन्य गद्य अंशों (1937) में एकत्र किया गया था।
(v) मृत्यु: 11 सितंबर, 1921
(vi) अंतर्राष्ट्रीय भारती महोत्सव:
- सुब्रमण्यम भारती की 138वीं जयंती के अवसर पर ‘वनाविल कल्चरल सेंटर’ (तमिलनाडु) द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय भारती महोत्सव-2020’ का आयोजन किया गया था।
- विद्वान श्री सेनी विश्वनाथन को वर्ष 2020 का भारती पुरस्कार प्राप्त हुआ।
आचार्य विनोबा भावे
हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्यविनोबा भावे की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
जन्म:
- विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को गागोडे, बॉम्बेप्रेसीडेंसी (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुआ था।
- नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे।
- उन पर उनकी माँ का अत्यधिक प्रभाव था, इसी कारण वह उनसे 'गीता' पढ़ने के लिये प्रेरित हुए।
(i) संक्षिप्त परिचय:
- वे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक और महात्मा गांधी के एक व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे।
- साथ ही भूदान आंदोलन के संस्थापक (भूमि-उपहार आंदोलन) थे।
(ii) गांधी के साथ जुड़ाव:
- वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों व विचारधारा से आकर्षित होकर राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से गांधी को अपना गुरु मानते थे।
- उन्होंने वर्ष 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती में गांधीजी के आश्रम (तपस्वी समुदाय) में शामिल होने के लिये अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई छोड़ दी।
- गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिये समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया।
(iii) स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- उन्होंने असहयोग आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और विशेष रूप से आयातित विदेशी वस्तुओं के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया।
- वर्ष 1940 में उन्हें भारत में गांधीजी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिये खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
- 1920 और 1930 के दशक के दौरान भावे को कई बार बंदी बनाया गया तथा ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिये 40
- के दशक में पांँच साल की जेल की सज़ा दी गई थी। उन्हें आचार्य (शिक्षक) की सम्मानित उपाधि दी गई थी।
(iv) सामाजिक कार्यों में भूमिका:
- उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने की दिशा में अथक प्रयास किया।
- गांधीजी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर उन्होंने उन लोगों का मुद्दा उठाया जिन्हें गांधीजी द्वारा हरिजन कहा जाता था।
- उन्होंने गांधीजी के सर्वोदय शब्द को अपनाया जिसका अर्थ है "सभी के लिये प्रगति" (Progress for All)।
- इनके नेतृत्व में 1950 के दशक के दौरान सर्वोदय आंदोलन ने विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें प्रमुख भूदान आंदोलन है।
(v) भूदान आंदोलन:
- वर्ष 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली (Pochampalli) गाँव के हरिजनों ने उनसे जीविकोपार्जन के लिये लगभग 80 एकड़ भूमि प्रदान कराने का अनुरोध किया।
- विनोबा ने गाँव के ज़मींदारों को इस आंदोलन में आगे आने और हरिजनों की सहायता करने के लिये कहा। उसके बाद एक ज़मींदार ने आगे बढ़कर आवश्यक भूमि प्रदान करने की पेशकश की। इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास मेंएक नया अध्याय जोड़ दिया।
- यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।
- यह आंदोलन 13 वर्षों तक जारी रहा और इस दौरान विनोबा भावे ने देश के विभिन्न हिस्सों (कुल 58,741 किलोमीटर की दूरी) का भ्रमण किया।
- वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीचि तरित किया गया।
- इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसको को आकर्षित किया तथा स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने हेतु इस तरह के एकमात्र प्रयोग के कारण इसकी सराहना की गई।
(vi) क्षेत्रीय कार्य:
- वर्ष 1923 में उन्होंने मराठी में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म' का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे।
- उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिये कई आश्रम स्थापित किये, जो विलासिता से रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देता है।
- महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1959 में महिलाओं के लिये ‘ब्रह्म विद्या मंदिर’ की स्थापना की।
- उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की।
(vii) साहित्यक रचना:
- उनकी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में शामिल हैं: स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन और तीसरी शक्ति आदि।
(viii) मृत्यु
- वर्ष 1982 में वर्द्धा, महाराष्ट्र में उनका निधन हो गया।
(ix) पुरस्कार
- विनोबा भाबे वर्ष 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय व्यक्ति थे। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन हेतु टास्क फोर्स
हाल ही में केंद्र सरकार ने कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन (ब्लैक हाइड्रोजन) हेतु रोडमैप तैयार करने के लिये एक टास्क फोर्स और विशेषज्ञ समिति का गठन किया।
यह टास्क फोर्स ‘कोयला गैसीकरण मिशन’ और ‘नीति आयोग’ के साथ समन्वय के लिये भी उत्तरदायी है।
प्रमुख बिंदु
कोयला आधारित हाइड्रोजन उत्पादन:
(i) परिचय:
- कोयला (हाइड्रोकार्बन ईंधन में से एक) इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा के अलावा हाइड्रोजन बनाने के महत्त्वपूर्णस्रोतों में से एक है।
- हालाँकि कोयले के माध्यम से हाइड्रोजन निकालने के दौरान कार्बन उत्सर्जन के डर के कारण हाइड्रोजन उत्पादन में कोयले को प्रोत्साहित नहीं किया गया है।
- भारत में लगभग 100% हाइड्रोजन उत्पादन प्राकृतिक गैस (ग्रे हाइड्रोजन) के माध्यम से होता है।
(ii) लाभ:
- कोयले से उत्पादित हाइड्रोजन की लागत सस्ती और आयात के प्रति कम संवेदनशील हो सकती है।
(iii) चुनौतियाँ:
- कोयले से हाइड्रोजन के उत्पादन में उच्च उत्सर्जन के संदर्भ में चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी और सीसीयूएस (कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण) एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- कोयले से हाइड्रोजन प्रक्रिया के दौरान बनने वाले कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड को पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ तरीके (CCS एवं CCUS) से संग्रहीत किया जाना।
(iv) हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था:
- यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो वाणिज्यिक ईंधन के रूप में हाइड्रोजन पर निर्भर करती है और देश की ऊर्जासेवाओं में बड़ा योगदान करेगी।
- हाइड्रोजन एक शून्य-कार्बन ईंधन है और इसे ईंधन का विकल्प व स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसका उत्पादन सौर और पवन जैसे ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से किया जा सकता है।
- यह भविष्य के ईधन के रूप में परिकल्पित है जहांँ हाइड्रोजन का उपयोग वाहनों, ऊर्जा भंडारण और लंबी दूरी के परिवहन के लिये ईंधन के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का उपयोग करने के विभिन्न मार्गों में हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण, परिवहन और उपयोग शामिल हैं।
- वर्ष 1970 में जॉन बोक्रिस (John Bockris) द्वारा 'हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था' शब्द का प्रयोग किया गया था। उन्होंने उल्लेख किया कि एक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था वर्तमान हाइड्रोकार्बन आधारित अर्थव्यवस्था का स्थान ले सकती है, जिससे एक स्वच्छ वातावरण निर्मित हो सकता है।
(v) वर्तमान परिदृश्य:
- हाइड्रोजन की वर्तमान वैश्विक मांग 70 मिलियन मीट्रिक टन है, जिसमें से अधिकांश का उत्पादन जीवाश्म ईंधन से किया जा रहा है, इसमें 76% प्राकृतिक गैस से , 23% कोयले से तथा शेष जल की इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन का उत्पादन होता है।
- इसके परिणामस्वरूप लगभग 830 मीट्रिक टन/वर्ष CO2 का उत्सर्जन होता है, जिसमें से केवल 130 मीट्रिक टन/वर्ष को ही कैप्चर कर उर्वरक उद्योग में उपयोग किया जा रहा है।
- वर्तमान में उत्पादित अधिकांश हाइड्रोजन का उपयोग तेल शोधन (33%), अमोनिया (27%), मेथनॉल उत्पादन (11%), इस्पात उत्पादन (3%) और अन्य के लिये किया जाता है।
(vi) संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जामिशन।
- हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वाहन।
- ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट।
कनेक्ट करो 2021
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने 'कनेक्ट करो 2021' - टूवर्ड्स इक्विटेबल, सस्टेनेबल इंडियन सिटीज़' कार्यक्रम को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु
(i) परिचय:
- यह विश्व संसाधन संस्थान (WRI) भारत द्वारा आयोजित और मेज़बानी किये जाने वाले कार्यक्रमों की एक वैश्विक शृंखला का हिस्सा है, ताकि भारतीय और वैश्विक नेताओं एवं अन्य हितधारकों को एक साथ लाया जा सके, जो समावेशी, टिकाऊ और जलवायु समर्थित भारतीय शहरों को डिज़ाइन करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- WRI India एक स्वतंत्र चैरिटी संस्थान है, जो कानूनी रूप से ‘इंडिया रिसोर्सेज़ ट्रस्ट’ के रूप में पंजीकृत है।
- ‘कनेक्ट करो’ विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित प्रस्तुतकर्त्ताओं का अवलोकन करता है, जैसे-वायु प्रदूषण, विद्युत गतिशीलता, शहरी नियोजन, शहरी जल लचीलापन, जलवायु शमन और सार्वजनिक पारगमन एवं दूसरों के बीच अपनी अंतर्दृष्टि तथा शोध निष्कर्षों को साझा करना।
(ii) शहरों का महत्त्व:
जीडीपी में योगदान:
- वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) का लगभग 70% शहरों से आएगा क्योंकि तेज़ी से शहरीकरण समूह की क्षमता की सुविधा प्रदान करता है।
- विश्व स्तर पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शहर भारतीय शहरों की तुलना में राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में पाँच गुना अधिक योगदान करते हैं।
कोविड-19 का प्रभाव:
- वर्ष 2030 तक भारत में शहरी आबादी लगभग दोगुनी होकर 630 मिलियन हो जाएगी और विकास के इस स्तर को सुविधाजनक बनाने के लिये शहरी बुनियादी ढाँचे को काफी उन्नत करने की आवश्यकता है तथा हमारे शहरों पर कोविड-19 के प्रभाव ने इसे और भी महत्त्वपूर्णबना दिया है।
जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायता:
- जैसा कि हाल ही में ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’ (आईपीसीसी) की रिपोर्ट बताती है, शहर जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने के साथ-साथ प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं, इसलिये ये शहर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख स्थान रखते हैं।
- यहाँ तक कि सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी)-11 में सार्वजनिक परिवहन में निवेश, हरित सार्वजनिक स्थान बनाना और शहरी नियोजन एवं प्रबंधन में भागीदारी तथा समावेशी तरीके से सुधार करना शामिल है।
सरकार की संबंधित पहलें:
- प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): 25 जून, 2015 को प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का शुभारंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों के लोगों को आवास उपलब्ध कराना है।
- अटल शहरी कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT): इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य सभी के लिये बुनियादी नागरिक सुविधाएंँ प्रदान करना है।
- क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क: यह हमारे शहरों द्वारा सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने, उन्हें लागू करने और प्रसारित करने की दिशा में उठाया गया कदम है जो हरित, टिकाऊ एवं लचीले शहरी आवासों के निर्माण की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की तुलना में मानकों को निर्धारित करता है।
- शहरी परिवहन योजना: इस योजना के तहत 20,000 से अधिक बसों के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराकर सार्वजनिक बस परिवहन सेवाओं को बढ़ाया जाएगा।
- जल जीवन मिशन (शहरी): यह सभी शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से घरों में पानी आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने से संबंधित है।
- स्वच्छ भारत मिशन (शहरी): इसे 2 अक्तूबर, 2014 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाना और देश में नगरपालिका ठोस कचरे का 100% वैज्ञानिक प्रबंधन करना है।
नोट:
(i) यूनेस्को का रचनात्मक शहरों का नेटवर्क (UCCN):
- इसे वर्ष 2004 में स्थापित किया गया था और इसका उद्देश्य रचनात्मकता एवं सांस्कृतिक उद्योगों (Creativity & Cultural Industries)को स्थानीय स्तर पर उनकी विकास योजनाओं के केंद्र में रखना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रूप से सहयोग करना है।
- UCCN में संगीत, कला, लोकशिल्प, डिज़ाइन, सिनेमा, साहित्य तथा डिजिटल कला और पाक कला जैसे सात रचनात्मक क्षेत्र शामिल हैं।
(ii) विश्व शहर सांस्कृतिक मंच:
- इसे वर्ष 2012 में लंदन में स्थापित किया गया था। यह सदस्य शहरों के नीति निर्माताओं को अनुसंधान एवं खुफिया जानकारी साझा करने में सक्षम बनाता है और उनकी भविष्य की समृद्धि में संस्कृति की महत्त्वपूर्ण भूमिका की खोज करता है।
- कोई भी भारतीय शहर इस फोरम का हिस्सा नहीं है।