UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

Table of contents
हिंद महासागर में चीन का नया समुद्री-सड़क-रेल लिंक
तालिबान पर संकल्प 2593: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
डूरंड रेखा: अफगानिस्तान और पाकिस्तान
पूर्वी आर्थिक मंच (EEF)
भारत-क्रोएशिया संबंध
नेपोलियन बोनापार्ट
श्रीलंका में खाद्य आपातकाल
भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल
एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल हेतु भारत-अमेरिका समझौता
13वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन
यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (SCEP)
भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रथम 2+2 वार
क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग
आगामी क्वाड बैठक

हिंद महासागर में चीन का नया समुद्री-सड़क-रेल लिंक

हाल ही में चीन के ‘चेंगदू’ शहर को ‘यांगून’ (म्याँमार) के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुँच प्रदान करने वाला एक नया समुद्री-सड़करेल लिंक शुरू किया गया है।

  • यह पश्चिमी चीन को हिंद महासागर से जोड़ने वाला पहला ‘ट्रेड कॉरिडोर’ है।

प्रमुख बिंदु

नए ‘ट्रेड कॉरिडोर’ के विषय में

(i) यह नया व्यापार गलियारा मार्ग सिंगापुर, म्याँमार और चीन की लॉजिस्टिक लाइनों को जोड़ता है तथा वर्तमान में हिंद महासागर को दक्षिण-पश्चिम चीन से जोड़ने वाला सबसे सुविधाजनक भूमि और समुद्री चैनल है।

(ii) चीन की योजना म्याँमार के ‘रखाइन प्रांत’ के ‘क्युकफ्यू’ में एक और बंदरगाह विकसित करने की भी है, जिसमें युन्नान (चीन) से सीधे बंदरगाह तक प्रस्तावित रेलवे लाइन शामिल है, लेकिन म्याँमार में सैन्य शासन और अशांति के कारण इसकी प्रगति रुकी हुई है।

(iii) चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत म्याँमार में इस क्षेत्र को 'सीमा आर्थिक सहयोग क्षेत्र' के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।

(iv) इस तरह यह क्षेत्र जहाँ एक ओर म्याँमार की आय का एक महत्त्वपूर्णस्रोत होगा, वहीं चीन के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण होगा।

(v) यह व्यापार गलियारा हिंद महासागर के लिये एक और प्रत्यक्ष चीनी आउटलेट है।

  • पहला पाकिस्तान के ‘ग्वादर बंदरगाह’ पर है।

(vi) यह व्यापार मार्ग ‘मलक्का डाइलेमा’ के लिये भी चीन का विकल्प है।

  • ‘मलक्का डाइलेमा’ वर्ष 2003 में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति ‘हू जिंताओ’ द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है।
  • यह चीन के ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ में समुद्री ब्लाकेड के डर को दर्शाता है। चूँकि चीन का अधिकांश तेल आयात ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ द्वारा होता है, इसलिये यहाँ एक समुद्री ब्लाकेड चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है।

ग्वादर पत्तन के बारे:

(i) ग्वादर को सुदूर पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में CPEC के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है।

(ii) ग्वादर को लंबे समय से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (People's Liberation Army Navy-PLAN) के संचालन हेतु उपयुक्त चीनी बेस के लिये स्थल के रूप में जाना जाता है।

(iii) चीन एक "रणनीतिक मज़बूत बिंदु" अवधारणा का अनुसरण करता हैजिसके तहत चीनी फर्मों द्वारा संचालित टर्मिनलों और वाणिज्यिक क्षेत्रों वाले रणनीतिक रूप से स्थित विदेशी बंदरगाहों का उपयोग इसकी सेना द्वारा किया जा सकता है।

(iv) इस तरह के "मज़बूत बिंदु" चीन के लिये हिंद महासागर की परिधि के साथ आपूर्ति, रसद और खुफिया केंद्रों का एक नेटवर्क बनाने की क्षमता प्रदान करते हैं।

  • इसे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स सिद्धांत के रूप में जाना जाता है।

(v) ग्वादर चीन के लिये तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण है:

  • पहला CPEC के ज़रिये हिंद महासागर क्षेत्र में सीधा परिवहन संपर्क स्थापित करना है।
  • दूसरा कारक यह हैकि ग्वादर पश्चिमी चीन को स्थिर करने में मदद करता है, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ चीन इस्लामी आंदोलन के प्रति संवेदनशील महसूस करता है।
  • इसके अलावा ग्वादर महत्त्वपूर्ण होर्मुज़ जलडमरूमध्य (फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ने वाले) से सिर्फ 400 किमी. दूर है, जिसके माध्यम से चीन द्वारा 40% तेल का आयात किया जाता है।

भारत के लिये निहितार्थ:

(i) बंगाल की खाड़ी में चीन का आर्थिक दाँव और यह नया व्यापार गलियारा इस क्षेत्र में एक बड़ी समुद्री उपस्थिति तथा नौसैनिक जुड़ाव का प्रतीक है, जो बदले में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को मज़बूती प्रदान करता है।

(ii) इस व्यापार गलियारे और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के अलावा चीन, चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे (CNEC) की भी योजना बना रहा है जो तिब्बत को नेपाल से जोड़ेगा।

  • परियोजना के समापन बिंदु गंगा के मैदान की सीमाओं को स्पर्श करेंगे।
  • इस प्रकार तीन गलियारे भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के आर्थिक और साथ ही रणनीतिक उदय को दर्शाते हैं।

भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु उठाए गए कदम:

  • सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव
  • ईरान के पूर्व में स्थित चाबहार बंदरगाह
  • एक्ट ईस्ट पॉलिसी
  • मालाबार अभ्यास
  • क्वाड पहल
  • उत्तर-पूर्वी भारत का विकास
  • इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएट

तालिबान पर संकल्प 2593: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तालिबान पर लाए गए एक संकल्प 2593 को भारत द्वारा अपनाया गया।

(i) फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा प्रायोजित इस संकल्प के पक्ष में भारत सहित 13 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि इसके विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा।

  • दो स्थायी और वीटो-धारक सदस्य रूस और चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया।

(ii) संकल्प को स्वीकार किया जाना सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अफगानिस्तान के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु

संकल्प 2593 के बारे में:

(i) संकल्प 1267 (1999) के अनुसार, नामित व्यक्तियों और संस्थाओं सहित यह अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्त्व को दोहराता है।

(ii) तालिबान से अफगानिस्तान छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिये सुरक्षित मार्ग की सुविधा प्रदान करने, मानवतावादियों को देश में प्रवेश की अनुमति देने, महिलाओं और बच्चों सहित मानवाधिकारों को बनाए रखने तथा समावेशी एवं बातचीत के ज़रिये राजनीतिक समझौता करने का आह्वान किया गया है।


रूस और चीन की तटस्थता:

(i) रूस ने इस संकल्प से स्वयं को अलग रखा क्योंकि इसमें आतंकी खतरों के बारे में पर्याप्त और विशिष्ट विवरण नहीं था, इसके अतिरिक्त संकल्प में अफगानों को निकालने से "ब्रेन ड्रेन" प्रभाव की बात नहीं की गई थी। साथ ही तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगान सरकार के अमेरिकी खातों को फ्रीज करने संबंधी अमेरिका के आर्थिक और मानवीय परिणामों को भी संकल्प के विवरण में संबोधित नहीं किया।

(ii) चीन ने रूस की कुछ चिंताओं को साझा किया। वह मानता हैकि वर्तमान अराजकता पश्चिमी देशों की "अव्यवस्थित वापसी" का प्रत्यक्ष परिणाम थी।

  • चीन का विचार हैकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये तालिबान के साथ जुड़ना और उसे सक्रिय रूप से मार्गदर्शन प्रदान करना आवश्यक है।

(iii) इसके अतिरिक्त रूस और चीन चाहते थे कि सभी आतंकवादी समूहों, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (ISIS) और उइगर ईस्ट तुर्किस्तानइस्लामिक मूवमेंट (ETIM) को विशेष रूप से दस्तावेज़ में नामित किया जाए।

भारत के हालिया कदम:

(i) भारत ने विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्च-स्तरीय समूह को भारत की तात्कालिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है।

  • इस समूह द्वारा अफगानिस्तान में फँसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी और अफगानिस्तान के क्षेत्र का उपयोग भारत के खिलाफ निर्देशित आतंकवाद के लिये न होने देने संबंधी मुद्दों पर प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।

(ii) हाल ही में कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की।

  • यह पहली बार है जब सरकार ने सार्वजनिक रूप से ऐसी बैठक को स्वीकार किया है जो तालिबान के अनुरोध पर बुलाई गई थी।
  • तालिबान नेता ने आश्वासन दिया कि सभी मुद्दों को सकारात्मक रूप से संबोधित किया जाएगा।

बहुपक्षीय संगठनों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्

(i) तालिबान के तहत अफगानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व पर अनिश्चितता के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में देश की सदस्यता को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।

  • सार्क में अफगानिस्तान के प्रतिनिधित्व का प्रश्न विशेष रूप से तब आया है जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसी तरह के मुद्दे को संबोधित किया जाना बाकी है।
  • सार्क पहले से ही कई मुद्दों का सामना कर रहा है तथा अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति ने इसके लिये मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
  • अफगानिस्तान को सार्क में 2007 में आठवें सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।

(ii) परंपरागत रूप से घरेलू राजनीतिक परिवर्तन के कारण देशों, क्षेत्रीय या वैश्विक प्लेटफार्मों की सदस्यता समाप्त नहीं होती है।

(iii) हालाँकि काठमांडू स्थित अंतर-सरकारी संगठन एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) में भी इसी तरह का सवाल उठने की संभावना है।

आगे की राह:

(i) भारत द्वारा 1988 प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता किये जाने की उम्मीद है जो तालिबान प्रतिबंधों की निगरानी करती है और अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के जनादेश का विस्तार करने संबंधी निर्णयन में भाग लेती है। इस दौरान भारत को रूस और चीन के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्राँस ब्लॉक की प्रतिस्पर्द्धी मांगों को भी संतुलित करना होगा।

(ii) भारत की अफगान नीति एक बड़े व्यवधान की स्थिति में है; वहाँ अपनी संपत्ति की रक्षा करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में और उसके आसपास होने वाले 'ग्रेट गेम' में प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को तद्नुसार अपनी अफगानिस्तान नीति का पुनरावलोकन करना होगा।


डूरंड रेखा: अफगानिस्तान और पाकिस्तान

हाल ही में तालिबान ने कहा हैकि अफगान लोग पाकिस्तान द्वारा डूरंड रेखा पर बनाई गई बाड़ (Fence) का विरोध करते हैं।

  • अफगानिस्तान के साथ 2,640 किमी. लंबी सीमा पर बाड़ या घेराव का काम मार्च 2017 में शुरू हुआ था, जब एक के बाद एक सीमा पार से कई हमले हुए थे।

प्रमुख बिंदु

(i) डूरंड रेखा को 1893 में हिंदूकुश क्षेत्र में स्थापित किया गया, यह अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच आदिवासी भूमि से होकर गुज़रती है। आधुनिक समय में इसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा को चिह्नित किया है।

(ii) डूरंड रेखा रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच 19वीं शताब्दी के ग्रेट गेम्स की एक विरासत है, जिसमें अफगानिस्तान को भयभीत अंग्रेज़ों

द्वारा पूर्व में रूसी विस्तारवाद के खिलाफ एक बफर ज़ोन के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

(iii) वर्ष 1893 में ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और उस समय के अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच डूरंड रेखा

के रूप में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।

(iv) द्वितीय अफगान युद्ध की समाप्ति के दो साल बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने, जिसमें अंग्रेज़ों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो

अफगान साम्राज्य का हिस्सा थे। डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान "सीमा" पर उनके और ब्रिटिश भारत के "प्रभाव क्षेत्र" की सीमाओं का सीमांकन किया।

(v) ‘सेवन क्लॉज़’ एग्रीमेंट ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी, जो चीन के साथ सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है।

(v) इसने रणनीतिक खैबर दर्रा को भी ब्रिटिश पक्ष में कर दिया।

  • यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा पर हिंदूकुश में एक पहाड़ी दर्रा है।
  • यह दर्रालंबे समय तक वाणिज्यिक और रणनीतिक महत्त्व का था, जिस मार्गसे लगातार आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश किया था और वर्ष 1839 एवं 1947 के बीच अंग्रेज़ों द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था।

(vi) यह रेखा पश्तून आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुज़रती है, जिससे गाँवों, परिवारों और भूमि को दो प्रकार से प्रभावित क्षेत्रों के बीच विभाजित किया जाता है।

  • वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के साथ पाकिस्तान को डूरंड रेखा विरासत में मिली और इसके साथ ही पश्तून ने रेखा को अस्वीकार कर दिया तथा अफगानिस्तान ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया।
  • जब तालिबान ने पहली बार काबुल में सत्ता हथिया ली, तो उन्होंने डूरंड रेखा को खारिज़ कर दिया। उन्होंने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का निर्माण करने के लिये एक इस्लामी कट्टरपंथ के साथ पश्तून पहचान को भी मज़बूत किया, जिसके चलते वर्ष 2007 के आतंकवादी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया।

अन्य महत्त्वपूर्णसीमा रेखाए

(i) मैकमोहन रेखा

(ii) ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सर ‘आर्थर हेनरी मैकमोहन’ (जो ब्रिटिश भारत में एक प्रशासक भी थे) के नाम से प्रसिद्ध ‘मैकमोहन रेखा’ एक सीमांकन है जो तिब्बत और उत्तर-पूर्व भारत को अलग करती है।

(iii) इसे कर्नल मैकमोहन द्वारा 1914 के शिमला सम्मेलन में तिब्बत, चीन और भारत के बीच की सीमा के रूप में प्रस्तावित किया गया था।

(iv) यह हिमालय के शिखर के साथ भूटान की पूर्वी सीमा से शुरू होती है और ब्रह्मपुत्र नदी में तक पहुँचती है, जहाँ यह नदी अपने तिब्बती हिस्से से असम घाटी में निकलती है।

(v) इसे तिब्बती अधिकारियों और ब्रिटिश भारत द्वारा स्वीकार किया गया था तथा अब इसे भारत गणराज्य द्वारा आधिकारिक सीमा के रूप में स्वीकार किया जाता है।

(vi) हालाँकि चीन मैकमोहन लाइन की वैधता को लेकर विवाद उत्पन्न करता रहा है।

(vii) चीन दावा करता हैकि तिब्बत एक संप्रभु सरकार नहीं है और इसलिये तिब्बत के साथ की गई कोई भी संधि अमान्य है।

(ix) पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का संरेखण (Alignment) वर्ष 1914 की मैकमोहन रेखा के साथ ही है।

  • LAC वह सीमांकन है, जो भारतीय-नियंत्रित क्षेत्र को चीनी-नियंत्रित क्षेत्र से अलग करता है।

रेडकिल्फ़ रेखा:

(i) इसने ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।

(ii) इसका नाम इस लाइन के वास्तुकार सर सिरिल रैडक्लिफ के नाम पर रखा गया है, जो सीमा आयोग के अध्यक्ष भी थे।

(iii) रेडक्लिफ रेखा पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) और भारत के मध्य पश्चिम की तरफ तथा उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में भारत एवं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच खींची गई थी।

(iv) रेडक्लिफ रेखा का पश्चिमी भाग अभी भी भारत-पाकिस्तान सीमा के रूप में तथा पूर्वी भाग भारत-बांग्लादेश सीमा के रूप में कार्य करता है।


पूर्वी आर्थिक मंच (EEF)

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छठे पूर्वी आर्थिक मंच (EEF) के पूर्ण सत्र को संबोधित किया।

  • प्रधानमंत्री ने 'विशेष एवं विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' के अनुरूप भारत-रूस संबंधों और सहयोग के संभावित क्षेत्रों के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

प्रमुख बिंदु

प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:

  • रूसी सुदूर-पूर्व के विकास के लिये राष्ट्रपति पुतिन के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के तहत रूस के एक विश्वसनीय भागीदार होने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।
  • महामारी के दौरान सहयोग के महत्त्वपूर्णक्षेत्रों के रूप में उभरे स्वास्थ्य और फार्माक्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
  • उन्होंने हीरा, कोकिंग कोल, स्टील, लकड़ी समेत आर्थिक सहयोग के अन्य संभावित क्षेत्रों का भी उल्लेख किया।

पूर्वी आर्थिक मंच के बारे में:

  • ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की स्थापना रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा वर्ष 2015 में की गई थी।
  • इस फोरम की बैठक प्रत्येक वर्ष रूस के शहर व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में आयोजित की जाती है।
  • यह फोरम विश्व अर्थव्यवस्था के प्रमुख मुद्दों, क्षेत्रीय एकीकरण, औद्योगिक तथा तकनीकी क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ रूस और अन्य देशों के समक्ष मौजूद वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • फोरम के व्यापार कार्यक्रम में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के प्रमुख भागीदार देशों और आसियान के साथ कई व्यापारिक संवाद शामिल हैं, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में गतिशील रूप से विकासशील देशों का एक प्रमुख एकीकरण संगठन है।
  • यह रूस और एशिया प्रशांत के देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को विकसित करने की रणनीति पर चर्चा करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूप में उभरा है।

भारत-रूस संबंधों का महत्त्व:

(i) चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।

  • रूस ने लद्दाख के विवादित गलवान घाटी क्षेत्र में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए हिंसक संघर्ष के बाद रूस, भारत तथा चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन किया था।

(ii) आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियार, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम), अंतरिक्ष (गगनयान) तथा हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा भारत और रूस के बीच आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों (जैसे- रोबोटिक्स, नैनोटेक, बायोटेक, खनन, कृषि- औद्योगिक एवं उच्च प्रौद्योगिकी) में अवसरों के उभरने की संभावना है।

  • भारत द्वारा रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र में अपनी पहुँच के विस्तार के लिये कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बढ़ावा मिल सकता है।

(iii) यूरेशियन आर्थिक संघ को पुनर्जीवित करना: रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन की वैधता के लिये भारत की सॉफ्ट पॉवर का लाभ उठाने के साथ शीत युद्ध के समय की तरह ही इस क्षेत्र पर अपने आधिपत्य को फिर से स्थापित करने का प्रयास करा रहा है।

(iv) आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस साथ मिलकर अफगानिस्तान में अपनी पहुँच को बढ़ाने के लिये कार्य कर रहे हैं, साथ ही दोनों देशों ने ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को शीघ्र ही अंतिम रूप दिये जाने की मांग की है।

(v) बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।

(vi) डिप्लोमेसी: रूस लंबे समय से भारत का मित्र रहा है; इसने न केवल भारत को एक दुर्जेय सैन्य प्रोफाइल बनाए रखने के लिये हथियार प्रदान किये बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर अमूल्य राजनयिक समर्थन भी दिया।

(vii) रक्षा सहयोग: हालाँकि भारत जान-बूझकर अन्य देशों से अपनी नई रक्षा खरीद में विविधता लाया है, लेकिन इसके रक्षा उपकरण (60 से 70%) का बड़ा हिस्सा अभी भी रूस से है।

  • ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम, SU-30 एयरक्राफ्ट और T-90 टैंकों का भारत में उत्पादन, दोनों देशों के बीच बढ़ रहे रक्षा व सुरक्षा संबंधों का एक उदाहरण है।
  • सैन्य अभ्यास:
  • अभ्यास- TSENTR
  • इंद्र सैन्य अभ्यास- संयुक्त त्रि-सेवा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अभ्यास

भारत-क्रोएशिया संबंध

हाल ही में भारत और क्रोएशिया के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हिंद-प्रशांत, अफगानिस्तान की स्थिति, आतंकवाद का मुकाबला करने और साझा आर्थिक हितों जैसे मुद्दों पर दोनों देशों की स्थिति काफी हद तक समान है।

प्रमुख बिंदु

बैठक की मुख्य बातें:

(i) पर्यटन एक बहुत ही महत्त्वपूर्णक्षेत्र है और दोनों ही देश हवाई संपर्क का विस्तार करने का प्रयास करेंगे।

(ii) दोनों का मानना हैकि रेलवे, फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में काफी संभावनाएंँ विद्यमान हैं।

(iii) यूरोपीय संघ-भारत संबंध, अफगानिस्तान की स्थिति, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग तथा कोविड के बाद की रिकवरी सहित आपसी हित के कई विषयों पर भी इस बैठक में चर्चा की गई।

भारत-क्रोएशिया संबंधों के बारे में:

(i) क्रोएशिया अपनी भू-रणनीतिक स्थिति, यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य होने के साथ-साथ एड्रियाटिक समुद्र तट के माध्यम से यूरोप के लिये गेटवे के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण मध्य यूरोपीय देश है।

(ii) पूर्व यूगोस्लाविया के दिनों से ही भारत और क्रोएशिया के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं।

  • 1990 के दशक की शुरुआत में राजनीतिक उथल-पुथल और संघर्षों की एक शृंखला के परिणामस्वरूप यूगोस्लाविया का विघटन हुआ।
  • इस विघटन ने छ: नए देशों को जन्म दिया अर्थात् बोस्निया और हर्ज़िगोविना, क्रोएशिया, मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया तथा स्लोवेनिया।

(iii) भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टिटो, दोनों ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अग्रदूत थे।

(iv) क्रोएशिया के लोगों की भारत में गहरी दिलचस्पी है। ज़ाग्रेब विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी विभाग छह दशकों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है और एक दशक पहले भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) हिंदी पीठ की स्थापना की गई थी।


नेपोलियन बोनापार्ट

हाल ही में डीएनए साक्ष्य पूर्वावलोकन द्वारा खोजी गई एक नई टोपी, जो यह प्रमाणित करती हैकि यह नेपोलियन बोनापार्ट की थी, को हॉन्गकॉन्ग के एक नीलामी घर में प्रदर्शित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

संक्षिप्त परिचय :

(i) नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त, 1769 को कोर्सिका (भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप) की राजधानी अजाशियो ( Ajaccio) में हुआ था।

  • उसे नेपोलियन-I के नाम से भी जाना जाता है।

(ii) एक फ्राँसीसी सैन्य प्रमुख और सम्राट जिसने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की।

  • वर्ष 1804 में इसने स्वयं को सम्राट घोषित किया।

(iii) 5 मई, 1821 को सेंट हेलेना द्वीप पर उसका निधन हो गया।


नेपोलियन बोनापार्ट का उदय:

(i) फ्राँसीसी क्रांति: नेपोलियन बोनापार्ट फ्राँसीसी क्रांति के दौरान सेना के स्थापित रैंकों के माध्यम से शीघ्रता से पदोन्नत हुआ।

  • उसे फ्राँसीसी क्रांति (1789-1799) की संतान माना जाता है।
  • एक सुदूर-वाम राजनीतिक आंदोलन और फ्राँसीसी क्रांति के सबसे प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय राजनीतिक क्लब के एक युवा नेता के रूप में उसने तत्परता से जैकोबिन्स (Jacobins) के लिये अपना समर्थन दिखाया।
  • वह फ्राँसीसी क्रांतिकारी युद्धों में लड़ा तथा 1793 में ब्रिगेडियर जनरल के रूप में पदोन्नत किया गया।

(ii) कैम्पो फॉर्मियो की संधि (1797): उत्तरी इटली में ऑस्ट्रियाई लोगों के खिलाफ जीत के बाद उसने कैंपो फॉर्मियो (Campo Formio) की संधि पर विचार किया।

(iii) नील नदी का युद्ध (1798): उसने मिस्र (1798-99) को जीतने का प्रयास किया, लेकिन नील नदी के युद्ध में होरेशियो नेल्सन के नेतृत्व में अंग्रेज़ों ने उसे हरा दिया।

(iv) 18 ब्रूमेयर का तख्तापलट (1799): इस घटना में नेपोलियन एक ऐसे समूह का हिस्सा था जिसने फ्राँसीसी निर्देशिका को सफलतापूर्वक उखाड़ फेंका।

  • निर्देशिका को तीन सदस्यीय वाणिज्य दूतावास के साथ परिवर्तित कर दिया गया था, नेपोलियन पहला कौंसल/वाणिज्य-दूत (Consul) बन गया, जिससे वह फ्राँस के प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में उभरा।

(v) मारेंगो की लड़ाई (1800): नेपोलियन की सेना ने फ्राँस के स्थायी शत्रुओं में से एक ऑस्ट्रिया को हराया और उसे इटली से बाहर कर दिया।

  • इस जीत ने नेपोलियन की शक्ति को प्रथम वाणिज्यिक-दूत के रूप में स्थापित करने में मदद की।
  • इसके अतिरिक्त 1802 में ब्रिटिश और फ्राँस ने युद्ध को समाप्त करते हुए अमीन्स की संधि पर हस्ताक्षर किये (हालाँकि इस शांति की समयावधि केवल एक वर्षथी)।

नेपोलियन बोनापार्ट का शासनकाल:

(i) नेपोलियन से संबंधित युद्ध: वर्ष 1803 से 1815 तक फ्राँस नेपोलियन से संबंधित युद्धों में लगा हुआ था, जो कि यूरोपीय देशों के विभिन्न गठबंधनों के साथ प्रमुख संघर्षों की एक शृंखला है।

(ii) लुइसियाना खरीद: वर्ष 1803 में आंशिक रूप से भविष्य के युद्धों के लिये धन जुटाने के साधन के रूप में नेपोलियन ने उत्तरी अमेरिका में फ्राँस के लुइसियाना क्षेत्र को नए स्वतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका को $15 मिलियन में बेच दिया, इस लेन-देन को बाद में ‘लुइसियाना’ खरीद के रूप में जाना जाने लगा।

(iii) ट्रफैलगर की लड़ाई: अक्तूबर 1805 में अंग्रेज़ों ने ट्रफैलगर की लड़ाई में नेपोलियन के बेड़े का सफाया कर दिया।

  • हालाँकि उसी वर्षदिसंबर में नेपोलियन ने वह प्राप्त किया’ जो ऑस्टरलिट्ज़ की लड़ाई में उसकी सबसे बड़ी जीत में से एक माना जाता है।
  • उसकी सेना ने ऑस्ट्रियाई और रूसियों को हराया।
  • जीत के परिणामस्वरूप पवित्र रोमन साम्राज्य का विघटन हुआ और राइन परिसंघ का निर्माण हुआ।

नेपोलियन द्वारा शुरू किये गए सुधार:

(i) नेपोलियन संहिता: 21 मार्च, 1804 को नेपोलियन ने नेपोलियन संहिता की स्थापना की, जिसे फ्राँसीसी नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है, जिसके कुछ हिस्से आज भी दुनिया भर में उपयोग में हैं।

  • (इसने जन्म के आधार पर विशेषाधिकारों की मनाही की, धर्म की स्वतंत्रता की अनुमति दी और कहा कि सरकारी नौकरी सबसे योग्य लोगों को दी जानी चाहिये।
  • इसमें आपराधिक कोड, सैन्य कोड और नागरिक प्रक्रिया संहिता तथा वाणिज्यिक कोड शामिल थे।
  • नेपोलियन संहिता ने नेपोलियन के नए संविधान का पालन किया, जिसने पहला ‘कौंसल’ बनाया।‘
  • ‘कौंसल’ एक ऐसी स्थिति थी जो किसी तानाशाही शासन से कम नहीं थी।

(ii) दासता और सामंतवाद की समाप्ति: नेपोलियन बोनापार्ट ने लोगों को स्वतंत्र करने के लिये देश में "दासता और सामंतवाद" को समाप्त कर दिया।

  • दास प्रथा, मध्यकालीन यूरोप में एक ऐसी स्थिति थी जिसमें एक काश्तकार किसान भूमि के वंशानुगत भूखंड और अपने ज़मींदार की इच्छा से बंँधा हुआ था।
  • सामंतवाद 10वीं-13वीं शताब्दी के यूरोपीय मध्ययुगीन समाजों की व्यवस्था थी जहांँ स्थानीय प्रशासनिक नियंत्रण और इकाइयों  (जागों) में भूमि के वितरण के आधार पर एक सामाजिक पदानुक्रम स्थापित किया गया था।

(iii) शिक्षा: नेपोलियन ने स्कूलों की एक विस्तृत प्रणाली की स्थापना की, जिसे लाइसी (lycées) कहा जाता है, जो अभी भी उपयोग में है। वह सार्वभौमिक शिक्षा का प्रस्तावक था।


नेपोलियन का पतन:

(i) महाद्वीपीय प्रणाली: यह ब्रिटिश वाणिज्य एवं व्यापार को समाप्त करके ग्रेट ब्रिटेन को पंगु बनाने के लिये नेपोलियन द्वारा डिज़ाइन की गई नाकाबंदी थी। यह काफी हद तक अप्रभावी साबित हुई और अंततः नेपोलियन के पतन का कारण बनी।

(ii) प्रायद्वीपीय युद्ध (1807–1814): यह नेपोलियन के सैन्य अभियानों के दौरान इबेरियन प्रायद्वीप के नियंत्रण के लिये फ्रांँस की आक्रमणकारी नीति के खिलाफ स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और पुर्तगाल द्वारा लड़ा गया सैन्य संघर्षथा।

(iii) रूस का आक्रमण: नेपोलियन ने यूनाइटेड किंगडम पर शांति स्थापित करने के लिये दबाव बनाने को ब्रिटिश व्यापारियों के साथ व्यापार बंद करने हेतु रूस के ज़ार अलेक्जेंडर को गुप्त रूप से मजबूर किया।

(iv) वर्ष 1812 में रूस के विनाशकारी आक्रमण के बाद फ्राँसीसी प्रभुत्व का तेज़ी से पतन हुआ। वर्ष 1812 में कई कारणों के चलते नेपोलियन रूस पर विजय प्राप्त करने में विफल रहा, जैसे- दोषपूर्ण रसद, खराब अनुशासन, बीमारी,और प्रतिकूल मौसम ।

  • वर्ष 1814 में नेपोलियन को पराजित कर एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया, इस प्रकार अंततः 1815 में वाटरलू के युद्ध में वह पराजित हो गया।

श्रीलंका में खाद्य आपातकाल

हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा मूल्यह्रास और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिये आर्थिक आपातकाल की घोषणा की है।

  • श्रीलंका में सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश के तहत आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर आपातकाल घोषित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

श्रीलंकाई आर्थिक संकट के लिये ज़िम्मेदार कारक:

(i) अंडरपरफॉर्मिंग टूरिज़्म इंडस्ट्री: पर्यटन उद्योग जो देश के सकल घरेलू उत्पाद के 10% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है और विदेशी मुद्रा का स्रोत है, कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

  • नतीजतन वर्ष 2019 में विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 बिलियन डॉलर से गिरकर जुलाई 2021 में लगभग 2.8 बिलियन डॉलर हो गया है।

(ii) मुद्रा का मूल्यह्रास: विदेशी मुद्रा की आपूर्ति के अत्यधिक कम होने के साथ श्रीलंकाई लोगों को सामान आयात करने के लिये आवश्यक विदेशी मुद्रा खरीदने हेतु जितना पैसा खर्च करना पड़ा है, वह बढ़ गया है।

  • इसकी वजह से इस वर्ष अब तक श्रीलंकाई रुपये के मूल्य में करीब 8% की गिरावट आई है।

(iii) बढ़ती मुद्रास्फीति: श्रीलंका अपनी बुनियादी खाद्य आपूर्ति, जैसे- चीनी, डेयरी उत्पाद, गेहूँ, चिकित्सा आपूर्ति को पूरा करने के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

  • ऐसे में रुपए में गिरावट के साथ खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेज़ी आई है।

(iv) विदेशी मुद्रा का कम होना: महामारी ने विदेशी मुद्रा आय के सभी प्रमुख स्रोतों जैसे- निर्यात, श्रमिकों के प्रेषण आदि को प्रभावित किया है।

(v) खाद्यान में कमी: श्रीलंका सरकार का हाल ही में रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाने और "केवल जैविक" दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय।

  • रातों-रात जैविक खादों की ओर रुख करने से खाद्य उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।

आपातकालीन संकट के तहत उठाए गए कदम:

(i) आपातकालीन प्रावधान सरकार को आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिये खुदरा मूल्य निर्धारित करने और व्यापारियों से स्टॉक ज़ब्त करने की अनुमति देते हैं।

(ii) आपातकालीन कानून अधिकारियों को वारंट के बिना लोगों को हिरासत में लेने, संपत्ति को ज़ब्त करने, किसी भी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने, कानूनों को निलंबित करने तथा आदेश जारी करने में सक्षम बनाता है, इन पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।

  • इसके अलावा ऐसे आदेश जारी करने वाले अधिकारी भी मुकदमों से मुक्त होते हैं।

(iii) सेना उस कार्रवाई की निगरानी करेगी जो अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देती हैकि आवश्यक वस्तुओं को सरकार द्वारा गारंटीकृत कीमतों पर बेचा जाए।


कदम की आलोचना:

(i) खतरा यह हैकि असंतोष को दबाने की वर्तमान सरकार की प्रवृत्ति को देखते हुए विरोध और अन्य लोकतांत्रिक कार्रवाइयों को रोकने के लिये आपातकालीन नियमों का इस्तेमाल किया जाएगा।

(ii) श्रीलंका के पास एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली या राशन कार्ड नहीं है जो यह सुनिश्चित कर सके कि आवश्यक सामान सभी उपभोक्ताओं तक पहुँच सके।

  • वर्तमान विनियम इसकी मूलभूत आर्थिक समस्या का समाधान नहीं करते हैं और इसके बजाय काला बाज़ारी का जोखिम पैदा करते हैं।

(iii) राज्य संस्थानों के बढ़ते सैन्यीकरण संबंधी मुद्दे भी चिंता का विषय हैं।

(iv) श्रीलंका में यह आर्थिक आपातकाल भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल से बहुत अलग है।


भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल

(i) घोषणा का आधार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि वह संतुष्ट हैकि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसके कारण भारतीय राज्यक्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या क्रेडिट को खतरा है।

(ii) संसदीय अनुमोदन और अवधि: वित्तीय आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।

  • संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होने के बाद वित्तीय आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है, जब तक कि इसे रद्द नहीं किया जाता।

(iii) वित्तीय आपातकाल का प्रभाव

  • राज्यों के वित्तीय मामलों पर संघ के कार्यकारी अधिकार का विस्तार।
  • राज्य में सेवारत सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों के वेतन और भत्तों में कटौती।
  • राज्य की विधायिका द्वारा पारित किये जाने के बाद सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।
  • संघ की सेवा में कार्यरत सभी या किसी भी वर्ग के व्यक्तियों और सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्तों में कटौती के लिये राष्ट्रपति से निर्देश।

एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल हेतु भारत-अमेरिका समझौता

हाल ही में भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिये एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे विमान से लॉन्च किया जा सकता है।

  • भारत के रक्षा मंत्रालय (MoD) तथा अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI) को लेकर संयुक्त कार्यसमूह वायु प्रणाली के तहत परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।

प्रमुख बिंदु

परियोजना समझौते (PA) के बारे में:

(i) लक्ष्य: सहयोग के तहत दोनों देश ALUAV प्रोटोटाइप के सह-विकास के लिये सिस्टम के डिज़ाइन, विकास, प्रदर्शन, परीक्षण और मूल्यांकन की दिशा में काम करेंगे।

  • एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (ALUAV) के लिये यह परियोजना समझौते (PA), भारत के रक्षा मंत्रालय (MoD) और अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) के बीच अनुसंधान, विकास, परीक्षण एवं मूल्यांकन (RDT&E) हेतु हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन का हिस्सा है।
  • इसे पहली बार जनवरी 2006 में हस्ताक्षरित किया गया था और जनवरी 2015 में इसे नवीनीकृत किया गया था।

(i) भारतीय प्रतिभागी: यह परियोजना समझौता (PA), वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला, भारतीय वायु सेना तथा रक्षा अनुसंधान और विकास

संगठन (DRDO) के बीच सहयोग हेतु रूपरेखा तैयार करता है।

(ii) निष्पादन: भारतीय और अमेरिकी वायु सेना के साथ परियोजना समझौता (PA) के निष्पादन के लिये डीआरडीओ में स्थापित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE) तथा वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला ( AFRL ) में स्थापित एयरोस्पेस सिस्टम निदेशालय प्रमुख संगठन हैं।

(iii) महत्त्व: यह समझौता रक्षा उपकरणों के सह-विकास के माध्यम से दोनों राष्ट्रों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।

  • यह भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समर्थित ड्रोन स्वार्म (Drone Swarm) को संयुक्त निर्माण की ओर ले जा सकता है जो विमान से लॉन्च होने में सक्षम है ताकि विरोधी की वायु रक्षा प्रणालियों को नष्ट कर सके।

रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल (DTTI):

(i) गठन: ‘रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल’ (DTTI) को वर्ष 2012 में सैन्य प्रणालियों के सह-उत्पादन और सह-विकास के लिये एक महत्त्वाकांक्षी पहल के रूप में घोषित किया गया था, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद इस पहल में वास्तव में कोई प्रगति नहीं की जा सकी है।

(ii) उद्देश्य: पारंपरिक ‘क्रेता-विक्रेता’ की धारणा के बजाय सहयोगी दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ते हुए अमेरिका और भारत के रक्षा औद्योगिक आधार को मज़बूत करना।

  • यह कार्यसह-विकास और सह-उत्पादन के माध्यम से तकनीकी सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज कर किया जाएगा।

(iii) परियोजाएँ: DTTI के तहत परियोजनाओं की पहचान निकट, मध्यम और दीर्घकालिक के रूप में की गई है।

  • निकट अवधि की परियोजनाओं में ‘एयर-लॉन्च स्मॉल अनमैन्ड सिस्टम’ (ड्रोन स्वार्म), ‘लाइटवेट स्मॉल आर्म्स टेक्नोलॉजी’ और ‘इंटेलिजेंस-सर्विलांस-टारगेटिंग एंड रिकोनिसेंस’ (ISTAR) सिस्टम शामिल हैं।\
  • मध्यम अवधि की परियोजनाओं में ‘समुद्री डोमेन जागरूकता समाधान’ और ‘वर्चुअल ऑगमेंटेड मिक्स्ड रियलिटी फॉर एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस’ (VAMRAM) शामिल हैं।
  • दीर्घकालिक परियोजनाओं में भारतीय सेना के लिये ‘टेरेन शेपिंग ऑब्सटेकल (लीथल एम्युनिशन) और काउंटर-यूएएस, रॉकेट, आर्टिलरी एवं मोर्टार (CURAM) प्रणाली नामक एंटी-ड्रोन तकनीक शामिल हैं।

(iv) संयुक्त कार्यसमूह: DTTI के तहत संबंधित डोमेन में पारस्परिक रूप से सहमत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु थल, नौ, वायु और विमान वाहक प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त कार्यसमूहों की स्थापना की गई है।


भारत और अमेरिका के बीच अन्य प्रमुख समझौते

(i) मूलभूत विनिमय तथा सहयोग समझौता ( Basic Exchange and Cooperation Agreement - BECA) बड़े पैमाने पर भू-स्थानिक खुफिया जानकारी और रक्षा के लिये मानचित्रों एवं उपग्रह छवियों पर जानकारी साझा करने से संबंधित है।

  • भारत और अमेरिका के बीच वर्ष 2020 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।

(ii) संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security AgreementCOMCASA) पर वर्ष 2018 में हस्ताक्षर किये गए थे।

  • इसका उद्देश्य दो सशस्त्र बलों के हथियार प्लेटफाॅर्मों (Weapons Platforms) के बीच संचार की सुविधा प्रदान करना है।

(iii) लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर पूरे 14 साल बाद वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे।

  • इसका उद्देश्य विश्व भर में आपसी रसद सहायता प्रदान करना है।

(iv) वर्ष 2002 में सरकार द्वारा सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।

  • इसका उद्देश्य अमेरिका द्वारा साझा की गई सैन्य जानकारी की रक्षा करना है।

13वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

हाल ही में प्रधानमंत्री ने 13वें ब्रिक्स वार्षिक शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की, जो कि वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया गया था।

  • इस वर्षब्रिक्स शिखर सम्मेलन का विषय 'ब्रिक्स@15: निरंतरता, समेकन और आम सहमति हेतु ब्रिक्स के बीच सहयोग' था।

प्रमुख बिंदु

प्रधानमंत्री का संबोधन

  • प्रधानमंत्री ने इस वर्ष (2021) भारत की अध्यक्षता के दौरान शुरू की गई कई नई पहलों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिसमें रिमोट-सेंसिंग उपग्रहों के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता; एक आभासी ब्रिक्स वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास केंद्र; हरित पर्यटन पर ब्रिक्स गठबंधन आदि शामिल हैं।
  • इसके अलावा प्रधानमंत्री ने ‘कोविड-19’ महामारी के बाद वैश्विक रिकवरी प्रकिया में ब्रिक्स देशों की महत्त्वपूर्ण एवं अग्रणी भूमिका पर भी प्रकाश डाला, उन्होंने 'बिल्ड-बैक रेजिलिएंटली, इनोवेटिवली, क्रेडिबली एवं सस्टेनेबली’ के आदर्शवाक्य के तहत ब्रिक्स सहयोग को बढ़ाने का आह्वान किया।

ब्रिक्स आतंकवाद विरोधी कार्ययोजना

यह आतंकवाद विरोधी सहयोग के क्षेत्रों के प्रति ब्रिक्स देशों के दृष्टिकोण और कार्यों को परिभाषित करती हैजिसमें शामिल हैं: कट्टरता और ऑनलाइन आतंकवादी खतरों का मुकाबला, सीमा प्रबंधन, सूचना/खुफिया साझाकरण आदि।


स्वीकृत दिल्ली घोषणा:

(i) घोषणा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सहित संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों में सुधार का आह्वान किया गया।

  • यह पहली बार हैकि ब्रिक्स ने 'बहुपक्षीय प्रणालियों को मज़बूत करने और सुधारने' पर सामूहिक रुख अपनाया है।

(ii) अफगानिस्तान के अलावा ब्रिक्स नेताओं ने म्याँमार, सीरिया में संघर्ष, कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव, इज़रायल-फिलिस्तीन हिंसा और अन्य क्षेत्रीय विवादों को भी उठाया।

  • इसने अफगानिस्तान में स्थिरता के लिये "समावेशी अंतर-अफगान वार्ता" का भी आह्वान किया।

कोविड-19 संबंधी

  • विश्व में कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन का तेज़ी से विस्तार सुनिश्चित करने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापारसंबंधित पहलुओं पर छूट हेतु विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा किये गए प्रस्तावों पर भी विचार किया गया।

ब्रिक्स

(i) ब्रिक्स दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।

  • BRICS की चर्चा वर्ष 2001 में Goldman Sachs के अर्थशास्री जिम ओ’ नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के लिये विकास की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट में की गई थी।
  • वर्ष 2006 में चार देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सामान्य बहस के अंत में विदेश मंत्रियों की वार्षिक बैठक के साथ एक नियमित अनौपचारिक राजनयिक समन्वय शुरू किया।
  • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और इसे BRICS कहा जाने लगा।

(ii) ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़ेविकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% और वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करता है।

(iii) ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S के क्रमानुसार सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता द्वारा की जाती है।

  • भारत वर्ष 2021 के सम्मलेन का अध्यक्ष है।

(iv) वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेजा में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान BRICS नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने सदस्यों को अल्पकालिक लिक्विडिटी सहायता प्रदान करने हेतु ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (BRICS Contingent Reserve Arrangement) पर भी हस्ताक्षर किये।


यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (SCEP)

हाल ही में अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान संशोधित ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) को लॉन्च किया गया।

SCEP को वर्ष 2021 की शुरुआत में आयोजित ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में दोनों देशों द्वारा घोषित ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ के तहत लॉन्च किया गया था।


प्रमुख बिंदु

(i) यूएस-इंडिया एजेंडा 2030 पार्टनरशिप:

  • इसका उद्देश्य पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मौजूदा दशक में इन कार्यों पर मज़बूत द्विपक्षीय सहयोग स्थापित करना है।
  • यह साझेदारी दो मुख्य मार्गों के साथ आगे बढ़ेगी: सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी और जलवायु कार्रवाई एवं वित्त संग्रहण संवाद।
  • भारत ने वर्ष 2018 में भारत-अमेरिका ऊर्जावार्ता को ‘रणनीतिक ऊर्जासाझेदारी’ तक बढ़ा दिया।

(ii) संशोधित सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (SCEP):

  • उभरते ईंधन (स्वच्छ ऊर्जा ईंधन) पर पाँचवें स्तंभ को जोड़ना।
  • इसके साथ SCEP अंतर-सरकारी गठबंधन अब सहयोग के पाँच स्तंभों पर आधारित है- शक्ति और ऊर्जा दक्षता, तेल और गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सतत विकास, उभरते ईंधन।
  • वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत का समर्थन करना है।
  • जैव ईंधन पर एक नए भारत-अमेरिका कार्यबल (Task Force) की भी घोषणा की गई।

(iii) भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जासहयोग की समीक्षा:

  • वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख पहलू यह था कि परमाणु आपूर्तिकर्त्तासमूह (NSG) ने भारत को एक विशेष छूट दी, जिसने उसे एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया।

(iv) ‘गैस टास्क फोर्स’ का रूपांतरण:

  • ‘यूएस-इंडिया गैस टास्क फोर्स’ को अब ‘यूएस-इंडिया लो एमिशन गैस टास्क फोर्स’ के रूप में जाना जाएगा।
  • यह भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कुशल एवं बाज़ार संचालित समाधानों को बढ़ावा देकर भारत की प्राकृतिक गैस नीति के साथ प्रौद्योगिकी एवं नियामक बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

(v) ‘इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम’ का संस्थानीकरण:

  • विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और मॉडलिंग के लिये छह टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
  • इसमें कोयला क्षेत्र में एनर्जी डेटा मैनेजमेंट, लो कार्बन टेक्नोलॉजी और ऊर्जा ट्रांज़िशन पर विचार-विमर्शकिया जाएगा।

(vi) ‘(PACE)-R’ पहल के दायरे का विस्तार:

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा भारत की ओर से उन्नत स्वच्छ ऊर्जा (PACE)-R पहल के लिये साझेदारी के दूसरे चरण के हिस्से के रूप में स्मार्ट ग्रिड और ग्रिड स्टोरेज को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की गई है।

(vii)अमेरिका-भारत संबंधों पर हालिया पहल:

  • मालाबार अभ्यास: ‘क्वाड’ समूह में शामिल देशों (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की नौसेनाओं ने अभ्यास के 25वें संस्करण में भाग लिया।
  • ALUAV पर भारत-अमेरिका समझौता: भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च मानव रहित हवाई वाहन (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे एक विमान से लॉन्च किया जा सकता है।
  • मुक्त व्यापार समझौते का मुद्दा: अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया हैकि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है।
  • निसार (NISAR): राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space
  • Administration- NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research
  • Organisation- ISRO) संयुक्त रूप से NISAR नामक SUV के आकार के उपग्रह को विकसित करने हेतु कार्य कर रहे हैं। यह उपग्रह एक टेनिस कोर्ट के लगभग आधे क्षेत्र में 0.4 इंच से भी छोटी किसी वस्तु की गतिविधि का अवलोकन करने में सक्षम होगा।

भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रथम 2+2 वार

हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों ने नई दिल्ली में पहली भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में हिस्सा लिया।

  • उद्घाटन संवाद 2021 में भारत-ऑस्ट्रेलिया वर्चुअल लीडर्स समिट के दौरान दोनों देशों के नेता भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाने के लिये सहमत हुए।


प्रमुख बिंदु

(i) इंडो-पैसिफिक पर फोकस: एक खुला, मुक्त, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र [यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के अनुरूप] बनाए रखने हेतु सहमति व्यक्त की गई।

  • भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल का समर्थन करना।
  • क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये क्वाड सदस्य देशों द्वारा नए सिरे से प्रयास करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।

(ii) सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव पर ध्यान देना: महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी तथा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये विश्वसनीय व भरोसेमंद व्यापारिक भागीदारों के बीच आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने हेतु बहुपक्षीय और क्षेत्रीय तंत्र के माध्यम से मिलकर काम करना।

  • इस संदर्भ में भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के व्यापार मंत्रियों द्वारा सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव के शुभारंभ का स्वागत किया गया।

(iii) गति को बनाए रखना: इसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिये इस प्रारूप के तहत प्रत्येक दो वर्षों में कम-से-कम एक बार मिलने का फैसला लिया गया।

(iv) अफगानिस्तान पर साझा दृष्टिकोण: हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्ज़ा किये जाने के बाद अफगान संकट के संदर्भ में दोनों देशों द्वारा एकसमान दृष्टिकोण प्रदर्शित किया गया।

  • भारत ने माना कि इस नीति का सार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 में निहित है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव 2593 इस बात पर ज़ोर देता हैकि अफगानिस्तान को किसी भी तरह के आतंकवाद के लिये अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।

(v) आतंकवाद का मुकाबला करना: आतंकवाद और कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिये तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) पर एक साथ मिलकर काम करना जारी रखना।\

(vi) द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: द्विपक्षीय व्यापार, वैक्सीन, रक्षा उत्पादन, सामुदायिक संपर्क, समुद्री सुरक्षा, साइबर और जलवायु सहयोग जैसे क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत करने पर चर्चा की गई।

(vii) कोविड-19 पर सहयोग: क्वाड फ्रेमवर्क के तहत वैक्सीन निर्माण में सहयोग को और मज़बूत करने तथा इंडो-पैसिफिक भागीदारों को गुणवत्तापूर्णवैक्सीन प्रदान करने हेतु समझौता किया गया।

(viii) दोनों देशों के शोधकर्त्ता ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के माध्यम से कोविड-19 स्क्रीनिंग को आगे बढ़ाने और वायरस का भविष्य के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं।

(ix) रक्षा संबंध: ऑस्ट्रेलिया ने भारत को भविष्य के टैलिसमैन सेबर अभ्यासों (Talisman Sabre Exercises) में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया है जो अंतर-संचालनीयता को बढ़ाएगा, जबकि दोनों पक्ष रसद समर्थन के मामले में दीर्घकालिक पारस्परिक व्यवस्था का पता लगाएंगे।

(x) आर्थिक समझौते: द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को अंतिम रूप देने के लिये नए सिरे से समर्थन व्यक्त किया गया।

  • इसके अलावा दोनों देशों ने भारत ऑस्ट्रेलिया दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA) के तहत भारतीय फर्मों की अपतटीय आय के कराधान के मुद्दे के शीघ्र समाधान के लिये भी पैरवी की।

(xi) अन्य: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता हेतु भारतीय उम्मीदवारी के समर्थन की पुष्टि करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 1 मिलियन डॉलर और आपदा अनुकूल अवसंरचना के लिये गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 10 मिलियन डॉलर का अनुदान (दोनों भारत के नेतृत्व वाली पहल)।


टू-प्लस-टू वार्ता

(i) 2+2 वार्ता दोनों देशों के मध्य उच्चतम स्तर का संस्थागत तंत्र है।

(ii) ‘टू-प्लस-टू वार्ता’ भारत-अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के नेतृत्त्व में आयोजित की गई।

(iii) भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ ‘टू-प्लस-टू’ स्तर की वार्ता आयोजित की जाती है।


भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध

(i) भू-राजनीतिक संबंध: पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण चीन सागर में व्यापक द्वीप निर्माण सहित चीन की कार्रवाइयों ने विश्व के कई देशों की चिंता बढ़ा दी है।

  • इससे क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका) समूह का गठन हुआ है।

(ii) रक्षा संबंध: भारत-ऑस्ट्रेलिया संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX), Ex AUSTRA HIND (सेना के साथ द्विपक्षीय अभ्यास) पिच ब्लैक सैन्य अभ्यास (ऑस्ट्रेलिया का बहुपक्षीय हवाई युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास) और मालाबार अभ्यास।

  • देशों के मध्य म्यूचुअल लॉजिस्टिक सपोर्ट अरेंजमेंट (MLSA) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

(iii) बहुपक्षीय सहयोग:

  • दोनों देश क्वाड, कॉमनवेल्थ, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), आसियान क्षेत्रीय मंच, जलवायु और स्वच्छ विकास पर एशिया प्रशांत साझेदारी के सदस्य हैं और दोनों ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया है।
  • दोनों देश विश्व व्यापार संगठन के संदर्भ में पाँच इच्छुक पार्टियों के सदस्यों के रूप में भी सहयोग कर रहे हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया ‘एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग’ (APEC) का एक महत्त्वपूर्ण देश है और इस संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन करता है।

(iv) अन्य राजनयिक जुड़ाव: एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर सितंबर 2014 में हस्ताक्षर किये गए थे।

  • पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) और प्रत्यर्पण संधि, जिस पर जून 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे।
  • इसके अलावा हाल ही में भारत-ऑस्ट्रेलिया सर्कुलर इकॉनमी हैकथॉन (I-ACE) का भी आयोजन किया गया।

क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत (जलवायु) ने भारत के केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के साथ दोनों देशों के बीच ‘क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’ (CAFMD) शुरू किया है।

  • यद्यपि भारत ने अब तक ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य हेतु प्रतिबद्धता नहीं ज़ाहिर की है, किंतु भारत सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने हेतु अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में काम कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’

(i) यह अप्रैल 2021 में ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में लॉन्च किये गए ‘भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030’ साझेदारी का हिस्सा है।

  • इससे पूर्व ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) को लॉन्च किया गया था।

(ii) यह दोनों देशों को जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग को नवीनीकृत करने के साथ ही इससे संबंधित वित्तीय पहलुओं को संबोधित करने और पेरिस समझौते के तहत परिकल्पित अनुदान एवं रियायती वित्त के रूप में जलवायु वित्त प्रदान करने का अवसर देगा।

(iii) साथ ही यह प्रदर्शित करने में भी मदद करेगा कि किस प्रकार दुनिया राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समावेशी एवं लचीले आर्थिक विकास के साथ तेज़ी से जलवायु कार्रवाई को संरेखित कर सकती है।


CAFM के स्तंभ:

(i) जलवायु कार्रवाई स्तंभ:

  • अगले दशक में उत्सर्जन को कम करने के तरीकों को देखते हुए इसमें संयुक्त प्रस्ताव होंगे।

(ii) वित्त स्तंभ:

  • इसके माध्यम से अमेरिका भारत में 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को लागू करने तथा पूंजी को आकर्षित करने और सक्षम वातावरण को बढ़ाने में सहयोग करेगा एवं नवीन स्वच्छ ऊर्जाप्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन तथा द्विपक्षीय स्वच्छ ऊर्जा निवेश व व्यापार को बढ़ावा देगा।

(iii) अनुकूलन और लचीलापन:

  • दोनों देश जलवायु जोखिमों को मापने और प्रबंधित करने के लिये क्षमता निर्माण में सहयोग करेंगे।

भारत के लिये अवसर:

(i) ऊर्जासंक्रमण (Energy Transition) में निवेश करने हेतु कभी भी बेहतर समय नहीं रहा। अक्षय ऊर्जा पहले से कहीं ज़्यादा सस्ती है।

(ii) वास्तव में विश्व में कहीं और की तुलना में भारत में सोलर फार्मबनाना सस्ता है।

(iii) वैश्विक स्तर पर निवेशक अब स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं और महामारी के सबसे बुरे दौर के बाद ऊर्जासंक्रमण पहले से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है तथा अब एक वर्ष में निवेश किये गए 8.4 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के महामारी पूर्व की स्थिति के रिकॉर्ड को तोड़ने के लिये तैयार है।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान हैकि यदि भारत स्वच्छ ऊर्जा के अवसर का लाभ उठाता है, तो यह बैटरी और सौर पैनलों हेतु विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार बन सकता है।

  • वर्तमान में भारत की स्थापित बिजली क्षमता वर्ष 2021-22 तक 476 GW होने का अनुमान हैजिसके वर्ष 2030 तक कम-से-कम 817 GW तक बढ़ने की उम्मीद है।

आगामी क्वाड बैठक

हाल ही में अमेरिका ने घोषणा की कि क्वाड देशों की पहली व्यक्तिगत बैठक अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित होगी। बैठक में चारों देशों (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका) के प्रमुख शामिल होंगे।

  • आगामी शिखर सम्मेलन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीन ने क्वाड की आलोचना की और कहा कि दूसरे देशों को लक्षित करने के लिये 'विशेष समूह' या गुटबाज़ी (मंडलियाँ) काम नहीं आएगी और इसका कोई भविष्य नहीं है।

प्रमुख बिंदु

क्वाड का गठन :

(i) हिंद महासागर सुनामी (2004) के पश्चात् भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने आपदा राहत प्रयासों में सहयोग करने के लिये एक अनौपचारिक गठबंधन बनाया।

(ii) वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने गठबंधन को चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता या क्वाड के रूप में औपचारिक रूप प्रदान किया ।

(iii) क्वाड को एशियन आर्क ऑफ डेमोक्रेसी स्थापित करना था, लेकिन इसके सदस्यों के बीच सामंजस्य की कमी के कारण बाधा उत्पन्न हुई और आरोप हैकि यह अधिकांशत: चीन विरोधी समूह था।

(iv) वर्ष 2017 में चीन के बढ़ते खतरे का सामना करते हुए चार देशों ने क्वाड को पुनर्जीवित किया, इसके उद्देश्यों को व्यापक बनाया और एक तंत्र का निर्माण किया जिसका उद्देश्य धीरे-धीरे एक नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना था।

(v) वर्ष 2020 में भारत-अमेरिका-जापान त्रिपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास का विस्तार ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के लिये किया गया, जो वर्ष 2017 में इसके पुनरुत्थान के बाद से क्वाड के पहले आधिकारिक समूह को चिह्नित करता है।

(vi) मार्च 2021 में क्वाड समूह के नेताओं ने पहली बार आभासी शिखर-स्तरीय बैठक में डिजिटल रूप से मुलाकात की और बाद में 'द स्पिरिट ऑफ द क्वाड' शीर्षक से एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें समूह के दृष्टिकोण और उद्देश्यों को रेखांकित किया गया था।

  • इसके अतिरिक्त यह एक दशक में चार देशों के बीच पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास था।

क्वाड के उद्देश्य:

  • 'स्पिरिट ऑफ द क्वाड' के अनुसार, समूह के प्राथमिक उद्देश्यों में समुद्री सुरक्षा, कोविड-19 संकट का मुकाबला करना, विशेष रूप से वैक्सीन कूटनीति, जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को संबोधित करना, क्षेत्र में निवेश के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना एवं तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना है।
  • हालाँकि क्वाड की व्यापक मुद्दों के प्रति प्रतिबद्धता के बावजूद इसका मुख्य फोकस क्षेत्र अभी भी चीन का मुकाबला करने के लिये माना जाता है।
  • क्वाड सदस्यों ने तथाकथित क्वाड प्लस के माध्यम से साझेदारी का विस्तार करने की इच्छा का भी संकेत दिया हैजिसमें दक्षिण कोरिया, न्यूज़ीलैंड और वियतनाम शामिल होंगे।

चीन के साथ क्वाड का संबंध:

(i) क्वाड के प्रत्येक सदस्य को दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों और ‘वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट’ जैसी पहलों के माध्यम से अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के प्रयासों से खतरा है।

  • अमेरिका लंबे समय से चीन के साथ वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को लेकर चिंतित है और उसने यह रुख कायम रखा हैकि चीन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय नियमों पर आधारित व्यवस्था को खत्म करना है।
  • इसी तरह जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर चिंतित हैं।
  • चीन के साथ भारत के अपने लंबे समय से लंबित सीमा मुद्दे हैं।

(ii) दूसरी ओर चीन क्वाड के अस्तित्व को स्वयं को घेरने की एक बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में देखता है और उसने समूह के साथ सहयोग करने से बचने के लिये बांग्लादेश जैसे देशों पर दबाव डाला है।

  • चीनी विदेश मंत्रालय ने समूह पर एशिया में क्षेत्रीय शक्तियों के बीच खुले तौर पर कलह भड़काने का आरोप लगाया।

क्वाड से संबंधित मुद्दे:

(i) अपरिभाषित दृष्टि: सहयोग की संभावना के बावजूद क्वाड परिभाषित रणनीतिक मिशन के बिना एक तंत्र बना हुआ है।

  • क्वाड एक विशिष्ट बहुपक्षीय संगठन की तरह संरचित नहीं है और इसमें एक सचिवालय और किसी भी स्थायी निर्णय लेने वाली संस्था का अभाव है।
  • इसके अतिरिक्त नाटो के विपरीत क्वाड में सामूहिक रक्षा के प्रावधान शामिल नहीं हैं, इसके बजाय एकता और कूटनीतिक सामंजस्य के प्रदर्शन के रूप में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने का विकल्प चुना गया है।

(ii) समुद्री समूहन: इंडो-पैसिफिक पर पूरा ध्यान क्वाड को एक भूमि-आधारित समूह के बजाय एक समुद्र का हिस्सा बनाता है, यह सवाल उठता हैकि क्या सहयोग एशिया-प्रशांत और यूरेशियन क्षेत्रों तक फैला हुआ है।

(iii) भारत की गठबंधन प्रणाली का विरोध: तथ्य यह हैकि भारत एकमात्र सदस्य है जो संधि गठबंधन प्रणाली के खिलाफ है, इसने एक मज़बूत चतुष्पक्षीय जुड़ाव बनाने की प्रगति को धीमा कर दिया है।


आगे की राह
(i) स्पष्ट दृष्टि की आवश्यकता: क्वाड राष्ट्रों को सभी के आर्थिक एवं सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक व्यापक ढाँचे में इंडो- पैसिफिक विज़न को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की ज़रूरत है।

  • जो तटीय राज्यों को आश्वस्त करेगा कि क्वाड क्षेत्रीय लाभ हेतु एक महत्त्वपूर्ण कारक होगा और यह किसी प्रकार का सैन्य गठबंधन नहीं है, जैसा कि चीन द्वारा दावा किया जा रहा है।
  • आगामी मंत्रिस्तरीय बैठकें इस विचार को सही ढंग से परिभाषित करने और भविष्य के मार्ग की रूपरेखा तैयार करने का एक अवसर हो सकती हैं।

(ii) क्वाड का विस्तार: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के कई अन्य साझेदार हैं, भारत ऐसे में इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों को इस समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित कर सकता है।

  • भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिये, जिसमें वर्तमान एवं भविष्य की समुद्री चुनौतियों पर विचार करने, अपने सैन्य एवं गैर-सैन्य उपकरणों को मज़बूत करने और रणनीतिक भागीदारों को शामिल करने पर ध्यान दिया जाए।
The document International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2183 docs|809 tests

Top Courses for UPSC

2183 docs|809 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

pdf

,

Sample Paper

,

Summary

,

video lectures

,

Weekly & Monthly

,

Viva Questions

,

Free

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

Semester Notes

,

past year papers

,

Extra Questions

,

Important questions

,

practice quizzes

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly

,

shortcuts and tricks

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Objective type Questions

,

International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): September 2021 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly

,

Previous Year Questions with Solutions

,

study material

,

Exam

,

ppt

;