हाल ही में ब्लूस्ट्रैगलर (Blue Stragglers) का पहला व्यापक विश्लेषण करते हुए भारतीय शोधकर्त्ताओं ने इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में एक परिकल्पना प्रस्तुत की है।
ब्लूस्ट्रैगलर तारों के विषय में:
ब्लूस्ट्रैगलर की विशेषता:
ब्लूस्ट्रैगलर विकसित होने के बाद मुख्य अनुक्रम से हट जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके मार्ग में एक विपथन आ जाता हैजिसे टर्नऑफ के रूप में जाना जाता है।।
परिकल्पना के विषय मे:
(i) भारतीय शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि:
(ii) इस परिकल्पना के लिये शोधकर्त्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) के गैया (Gaiya) टेलीस्कोप का उपयोग किया।
(iii) आगे के अध्ययन के लिये, भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट (AstroSat) पर लगे पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप, साथ ही नैनीताल स्थित 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप का उपयोग किया जाएगा।
(iv) यह अध्ययन विभिन्न आकाशगंगाओं सहित बड़ी तारकीय आबादी के अध्ययन में रोमांचक परिणामों को उजागर करने के साथ ही इन तारकीय प्रणालियों की जानकारी की समझ में और सुधार लाने में सहायक होगा।
भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ सूर्य के वायुमंडल (Solar Corona) से विस्फोट के चुंबकीय क्षेत्र को मापा है, जो सूर्य के आंतरिक भाग की एक दुर्लभ झलक प्रस्तुत करता है।
अनुसंधान के संदर्भ में:
(i) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के वैज्ञानिकों ने पहली बार विस्फोटित प्लाज़्मा से जुड़े कमज़ोर थर्मल रेडियो उत्सर्जन का अध्ययन किया, जो चुंबकीय क्षेत्र और विस्फोट की अन्य भौतिक स्थितियों को मापता है।
(ii) टीम ने 1 मई, 2016 को हुए कोरोनल मास इजेक्शन (CME) से प्रवाहित प्लाज़्मा का अध्ययन किया।
(iii) कुछ अंतरिक्ष-आधारित दूरबीनों के साथ-साथ IIA के रेडियो दूरबीनों की मदद से उत्सर्जन का पता लगाया गया, जो सूर्य को अत्यधिक पराबैंगनी और सफेद प्रकाश में देखते थे।
(iv) वे इस उत्सर्जन के ध्रुवीकरण को मापने में भी सक्षम थे, जो उस दिशा का संकेत हैजिसमें तरंगों के विद्युत और चुंबकीय घटक दोलन करते हैं।
‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के विषय में:
(i) सूर्य एक अत्यंत सक्रिय निकाय है, जहाँ कई हिंसक और विनाशकारी घटनाओं के ज़रिये भारी मात्रा में गैस और प्लाज़्मा बाहर निकालता है।
(ii) ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के अंतर्निहित कारणों को अभी भी बेहतर तरीके से समझा नहीं जा सका है। हालाँकि खगोलविद इस बात से सहमत हैं कि सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
(iii) यद्यपि ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ सूर्य पर कहीं भी हो सकता है, किंतु सूर्य की ‘दृश्यमान सतह’ (जिसे फोटोस्फीयर कहा जाता है) के केंद्र के पास उत्पन्न ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ अध्ययन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इनका प्रभाव पृथ्वी पर प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।
(iv) जब एक मज़बूत ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ पृथ्वी के करीब होता है, तो यह पृथ्वी के आसपास मौजूद उपग्रहों में इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुँचा सकता है और पृथ्वी पर रेडियो संचार नेटवर्क को बाधित कर सकता है।
(v) जब प्लाज़्मा बादल हमारे ग्रह से टकराता है, तो एक भू-चुंबकीय तूफान आता है।
(vi) वे पृथ्वी पर आकाश से तीव्र प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं, जिसे औरोरा (Auroras) कहा जाता है।
(i) सूर्य का कोर- ऊर्जाथर्मोन्यूक्लियर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उत्पन्न होती है जो सूर्य के कोर के भीतर अत्यधिक तापमान का निर्माण करती है।
(ii) विकिरण क्षेत्र (Radiative Zone) - ऊर्जा धीरे-धीरे बाहर की ओर जाती है, सूर्य की इस परत के माध्यम से विकिरण करने में 1,70,000 से अधिक वर्षलगते हैं।
(iii) संवहन क्षेत्र (Convection Zone)- गर्म और ठंडी गैस की संवहन धाराओं के माध्यम से ऊर्जासतह की ओर बढ़ती रहती है।
(iv) क्रोमोस्फीयर (Chromosphere)- सूर्य की यह अपेक्षाकृत पतली परत चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा निर्मित है जो विद्युत आवेशित सौर प्लाज़्मा को नियंत्रित करती है। कभी-कभी बड़े प्लाज़्मा लक्षण, जो विशिष्ठ होते हैं, बहुत ही कमज़ोर और गर्म कोरोना में निर्मित होते हैं और कभी-कभी सूर्यसे दूर सामग्री को बाहर निकालते हैं।
(v) कोरोना (Corona)- कोरोना (या सौर वातावरण) के भीतर आयनित तत्त्व एक्स-रे और अत्यधिक पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य में चमकते हैं। अंतरिक्ष उपकरण इन उच्च ऊर्जाओं पर सूर्य के कोरोना की छवि बना सकते हैं क्योंकि इन तरंगदैर्ध्य में फोटोस्फीयर (सौर वातावरण की सबसे निचली परत) काफी मंद होता है।
(vi) कोरोनल स्ट्रीमर (Coronal Streamer)- कोरोना के बाहर प्रवाहित प्लाज़्मा को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा कोरोनल स्ट्रीमर नामक पतले रूपों में आकार दिया जाता है, जो अंतरिक्ष में लाखों मील तक फैला होता है।
(vii) सौर कलंक या सनस्पॉट ऐसे क्षेत्र होते हैं जो सूर्य की सतह पर काले दिखाई देते हैं। ये सूर्य की सतह के अन्य भागों की तुलना में ठंडे होते हैं, इसलिये काले दिखाई देते हैं।
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) द्वारा चंद्रमा की कक्षा में चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के प्रचालन के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर चंद्र विज्ञान कार्यशाला 2021 का आयोजन कियागया था।
चंद्रयान-2 के बारे में :
(i) चंद्र अन्वेषण मिशन: यह चंद्र अन्वेषण उपग्रहों की भारतीय शृंखला का दूसरा अंतरिक्षयान है।
(ii) लॉन्च: इसे 22 जुलाई, 2019 को GSLV Mk-III द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
(iii) लैंडर की विफलता: विक्रम लैंडर इसरो द्वारा पूर्व निर्धारित योजना के अनुरूप ही उतर रहा था और सितंबर 2019 में चंद्रमा की सतह से
2.1 किमी. की ऊँचाई तक इसके सामान्य प्रदर्शन को देखा गया था।
(iv) ऑर्बिटर की भूमिका: चंद्रमा के चारों ओर अपनी निर्धारित कक्षा में स्थापित ऑर्बिटर अपने आठ उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करके ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्रमा के विकास और खनिजों एवं पानी के अणुओं के मानचित्रण को साझा करेगा।
चंद्रयान-2 ऑर्बिटर द्वारा की गई खोजें:
आर्गन-40 की खोज: मास स्पेक्ट्रोमीटर चंद्र एटमाॅस्फेरिक कंपोज़िशनल एक्सप्लोरर 2 (CHACE 2) ने ध्रुवीय कक्षीय प्लेटफॉर्मसे चंद्र तटस्थ एक्सोस्फीयर की संरचना का पहला इन-सीटू अध्ययन किया।
(ii) क्रोमियम व मैंगनीज़ की खोज: चंद्रयान -2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (क्लास) पेलोड ने रिमोट सेंसिंग के माध्यम से क्रोमियम और मैंगनीज़ के मामूली तत्त्वों का पता लगाया है।
(iii) सूर्य के माइक्रोफ्लेयर्स का अवलोकन: क्वाइट-सन पीरियड (Quiet-Sun Period) के दौरान सूर्य के माइक्रोफ्लेयर का अवलोकन, जो कि सूर्य की कोरोनल हीटिंग से संबंधित महत्त्वपूर्णसूचना प्रदान करता है, सोलर एक्स-रे मॉनिटर (XSM) पेलोड द्वारा संपन्न किया गया।
(iv) हाइड्रेशन सुविधाओं की खोज: चंद्रयान -2 ने अपने इमेजिंग इंफ्रा-रेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) पेलोड [जिसने चंद्र की सतह पर हाइड्रॉक्सिल (Hydroxyl) और पानी-बर्फ (Water-Ice) के स्पष्ट उपस्थिति का पता लगाया] के साथ चंद्रमा कीजलयोजन विशेषताओं का पहली बार स्पष्ट पता लगाया।
(v) उपसतह पर जल-बर्फ की खोज: दोहरी आवृत्ति सिंथेटिक एपर्चर रडार (DFSAR) उपकरण ने उपसतह जल-बर्फ की उपस्थिति का पता लगाया और ध्रुवीय क्षेत्रों में चंद्र रूपात्मक विशेषताओं की उच्च रिज़ॉल्यूशन मैपिंग की।
(vi) चंद्रमा की इमेजिंग: अपने ऑर्बिटर हाई रेज़ोल्यूशन कैमरा (OHRC) के द्वारा "बेस्ट-एवर" रेज़ोल्यूशन के साथ 100 किमी चंद्र कक्षा से चंद्रमा की इमेजिंग भी प्राप्त की।
(vii) भूवैज्ञानिक निष्कर्ष: चंद्रयान-2 के टेरेन मैपिंग कैमरा (TMC 2), जो वैश्विक स्तर पर चंद्रमा की इमेजिंग कर रहा है, ने चंद्र क्रस्टल शॉर्टिंग और ज्वालामुखीय गुंबदों की पहचान के दिलचस्प भूगर्भिक साक्ष्य प्राप्त किये हैं।
(viii) चंद्रमा के आयनमंडल का अध्ययन: चंद्रयान-2 पर दोहरे आवृत्ति रेडियो विज्ञान (DFRS) प्रयोग ने चंद्रमा के आयनमंडल का अध्ययन किया है, जो चंद्र बाह्यमंडल की तटस्थ प्रजातियों के सौर फोटो-आयनीकरण द्वारा उत्पन्न होता है।
नोट:
हाल ही में शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जो क्लस्टर्ड रेग्युलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats- CRISPR) जो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग पर आधारित है, का उपयोग कर मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करती है।
हर साल लाखों लोग मच्छर से होने वाली डेंगू और मलेरिया जैसी दुर्लभ बीमारियों से संक्रमित होते हैं।
बाँझ कीट तकनीक (Sterile Insect Technique):
(i) SIT मच्छरों की जंगली आबादी (wild populations) को रोकने हेतु पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और प्रमाणित तकनीक है।
(ii) प्रिसिशन गाइडेड स्टेराइल टेकनीक (precision-guided Sterile Insect Technique- pgSIT) जो कि
CRISPR आधारित एक टेकनीक/तकनीक है, इसकी उपयोगिता को और अधिक बढ़ा देती है।
pgSIT:
(iii) यह एक नई स्केलेबल जेनेटिक कंट्रोल सिस्टम/प्रणाली (Scalable Genetic Control System) है जो तैनात मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिये CRISPR आधारित प्रणाली पर कार्य करती है।
(iv) pgSIT तकनीक पुरुष प्रजनन क्षमता से संबंधित जीन को परिवर्तित कर देती है जो बाँझ संतान पैदा करने तथा उड़ने वाली मादा एडीज़ एजिप्टी मच्छर जो कि डेंगू बुखार, चिकनगुनिया और जीका आदि बीमारियों को फैलाने के लिये ज़िम्मेदार मच्छर की एक प्रजाति है।
(v) PgSIT यांत्रिक रूप से एक प्रमुख आनुवंशिक तकनीक पर निर्भर करती है जो एक साथ सेक्सिंग (Sexing) और नसबंदी (Sterilization) को सक्षम बनाती है, इससे पर्यावरण में अंडों को छोड़ने की सुविधा मिलती हैजिससे केवल बाँझ वयस्क नर मच्छर ही उत्पन्न होते हैं।
(vi) pgSIT अंडों को मच्छर जनित बीमारी वाले स्थान पर भेजा जा सकता है या एक साइट पर विकसित किया जा सकता है, इस प्रकार उनका उत्पादन आस-पास के स्थानों पर अंडों को छोड़ने के लिये किया जा सकता है।
(vii) इन pgSIT अंडों को जंगल में छोड़ दिया जाता है और इनसे बाँझ pgSIT नर मच्छर उत्पन्न होते हैं जो अंततः मादाओं के साथ संभोग कर जंगली आबादी को आवश्यकतानुसार कम करने में मददगार साबित होंगे।
‘वैमानिकी विकास एजेंसी’ (ADA) के मुताबिक, LCA ‘तेजस-एमके-2’ को वर्ष 2022 तक लॉन्च कर दिया जाएगा और यह वर्ष 2023 की शुरुआत में अपनी पहली उड़ान भरेगा। वहीं ‘एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (AMCA) को वर्ष 2024 तक लॉन्च किया जाएगा और यह वर्ष 2025 में अपनी पहली उड़ान भरेगा।
LCA ‘तेजस-एमके-2’
(i) यह 4.5 जनरेशन का विमान है, जिसका इस्तेमाल भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाएगा।
(ii) यह ‘मिराज-2000’ श्रेणी के विमानों का प्रतिस्थापन है।
(iii) इस प्रौद्योगिकी को प्रारंभ से ही ‘हल्केलड़ाकू विमान’ (LCA) में प्रयोग के लिये विकसित किया गया है।
(iv) इसका उत्पादन वर्ष 2025 के आसपास शुरू होने की संभावना है।
(i) परिचय:
(ii) रेंज:
(iii) प्रकार और इंजन:
(iv) निर्माण:
हाल ही में इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (IAI) ने रिमोट कंट्रोल आधारित सशस्त्र रोबोट 'रेक्स एमके II’ (REX MK II) का अनावरण किया, जो युद्ध क्षेत्रों में गश्त करने, घुसपैठियों को ट्रैक करने तथा हमला/ फायरिंग करने में सक्षम है।
REX MK II के बारे में:
(i) यह रोबोट स्थलीय सैनिकों के लिये खुफिया जानकारी इकट्ठा कर सकता है, घायल सैनिकों को ले जा सकता है एवं युद्ध क्षेत्र के अंदर और बाहर रक्षा सामग्री की आपूर्ति कर सकता है तथा आस-पास के लक्ष्यों पर हमला कर सकता है।
(ii) इज़रायली सेना वर्तमान में गाजा पट्टी के साथ सीमा पर गश्त करने के लिये जगुआर नामक एक छोटे लेकिन उसके अनुरूप वाहनों का उपयोग कर रही है।
(iii) संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस सहित अन्य सेनाओं द्वारा मानव रहित स्थलीय वाहनों का तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है।
युद्ध में रोबोट के उपयोग के पक्ष में तर्क:
(i) कोई शारीरिक सीमा नहीं: यह स्वतः संचालक (Autonomous) रोबोट है, क्योंकि इसकी मानव शरीर की तरह कोई शारीरिक सीमाएँ नहीं हैं, यह नींद या भोजन के बिना कार्य करने में सक्षम है, उन चीजों को समझ और कर सकता हैजिसे लोग नहीं करते हैं और उन तरीकों से आगे बढ़ता है जो मनुष्य नहीं कर सकते।
(ii) सेना को परिचालन से संबंधित लाभ: रोबोट के निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं: तेज़, सस्ता, बेहतर मिशन संचालक, लंबी दूरी, अधिक दृढ़ता, अधिक सहनशक्ति, उच्च परिशुद्धता; तेज़ी से लक्ष्य से जुड़ना तथा रासायनिक और जैविक हथियारों से सुरक्षित।
(iii) कठिन परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता: लक्ष्य के पहचान की कम संभावना की स्थिति में रोबोट को खुद को बचाने की ज़रूरत नहीं है।
(iv) मानव जीवन के नुकसान को कम करना: मानव जीवन के नुकसान को कम करना युद्ध की नैतिकता के मूल सिद्धांतों में से एक है, जिसेरोबोट के उपयोग से पूरा किया जा सकता है।
युद्ध में रोबोट के प्रयोग के विरुद्ध तर्क:
भारत में सुरक्षा प्रबंधन:
आगे की राह
प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर को भारत महान इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की उपलब्धियों को मान्यता देने और उनका सम्मान करने के लिये राष्ट्रीय अभियंता दिवस (National Engineer’s Day) मनाता है।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया:
(i) उनका जन्म वर्ष 1861 में कर्नाटक में हुआ, उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय से कला स्नातक (BA) की पढ़ाई की और फिर पुणे में विज्ञान कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की तथा देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरों में से एक बन गए।
(ii) वह भारत के एक अग्रणी इंजीनियर थे जिनकी प्रतिभा जल संसाधनों के दोहन और देश भर में बाँधों के निर्माण और समेकन में परिलक्षित होती थी।
(iii) उनका काम की लोकप्रियता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1906-07 में जल आपूर्ति और जल निकासी व्यवस्था का अध्ययन करने के लिये अदन (यमन) भेजा।
(iv) उन्होंने वर्ष 1909 में मैसूर राज्य के मुख्य अभियंता और 1912 में मैसूर रियासत के दीवान के रूप में कार्य किया, इस पद पर वे सात वर्षों तक रहे।
(v) वर्ष 1915 में जनता की भलाई में उनके योगदान के लिये किंग जॉर्ज पंचम द्वारा उन्हें ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के नाइट कमांडर के रूप में नाइट की उपाधि दी गई थी।
(vi) वह एक इंजीनियर थे जिन्होंने वर्ष 1934 में भारतीय अर्थव्यवस्था की योजना बनाई थी।
(vii) उन्हें 50 वर्षों के लिये लंदन इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स की मानद सदस्यता से सम्मानित किया गया।
(viii) उन्हें वर्ष 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
वर्ष 1962 में बंगलूरू, कर्नाटक में उनका निधन हो गया।
उनके द्वारा लिखित पुस्तकें:
प्रमुख योगदान: अपने व्यावसायिक जीवन (Professional Life) के दौरान मैसूर, हैदराबाद, ओडिशा और महाराष्ट्र में कई उल्लेखनीय निर्माण परियोजनाओं का हिस्सा बनकर उन्होंने समाज के प्रति बहुत योगदान दिया है।
(i) वह मैसूर में कृष्णा राजा सागर बाँध के निर्माण के लिये मुख्य कार्यकारी अभियंता (Engineer) थे।
(ii) वर्ष 1903 में पुणे में खड़कवासला जलाशय में स्वचालित वियर फ्लडगेट (Automatic Weir Floodgates) की एक प्रणाली को डिज़ाइन और पेटेंट कराने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था।
(iii) वर्ष 1908 में हैदराबाद में आई विनाशकारी बाढ़ (मुसी नदी) के बाद उन्होंने भविष्य में शहर को बाढ़ से बचाने के लिये एक जल निकासी व्यवस्था तैयार की।
(iv) उन्होंने ही तिरुमाला और तिरुपति के बीच सड़क निर्माण की योजना तैयार की थी।
(v) विशाखापत्तनम बंदरगाह को समुद्री कटाव से बचाने के लिये उन्होंने एक प्रणाली विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(vi) मैसूर राज्य में कई नई रेलवे लाइनों को भी उन्होंने चालू किया।
(vii) उन्होंने 1895 में सुक्कुर नगर पालिका के लिये वाटरवर्क्स का डिज़ाइन और संचालन किया था।
(viii) उन्हें बाँधों में अवरोधक प्रणाली (Block System) के विकास का भी श्रेय दिया जाता है जो बाँधों में पानी के व्यर्थ प्रवाह को रोकता है।
(ix) उन्होंने मैसूर साबुन कारखाना, मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स (भद्रावती), श्री जयचामाराजेंद्र (Jayachamarajendra) पॉलिटेक्निक संस्थान, बैंगलोर (बंगलूरू) कृषि विश्वविद्यालय और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना की ज़िम्मेदारी भी निभाई।
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