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आपदा प्रबंधन: चक्रवात | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

वायुमण्डलीय आपदाओं में चक्रवात सबसे अधिक घातक होते हैं। ये वस्तुतः निम्न वायुदाब के क्षेत्र होते हैं, जिनके चारों ओर बढ़ते वायुदाब की रेखाएं पाई जाती हैं। इसमें अन्दर से बाहर की ओर जाने पर वायुदाब क्रमशः बढ़ता जाता है। अतएव परिधि से केन्द्र की ओर तीव्रगति से पवन का संचार होता है, जिसकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल होती है। इनका आकार गोलाकार, अण्डाकार अथवा 'v' अक्षर के समान होता है। चक्रवातों को मौसम एवं जलवायु की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि जिस स्थान पर ये पहुंचते हैं, वहां वर्षा तथा तापमान की मात्रा में अचानक परिवर्तन आ जाता है।

चक्रवातों के प्रकार

स्थिति के आधार पर चक्रवातों को 2 भागों में बांटा जा सकता है -

1. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclone)
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से दूर मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होते हैं । मध्य व उच्च अक्षांशों में जिन क्षेत्रों से ये गुजरते हैं, वहां मौसम संबंधी अवस्थाओं में अचानक परिवर्तन आता है। इन क्षेत्रों में ये चक्रवात प्रायः पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर भ्रमण करते हैं। गर्मियों में इनकी औसत गति 32 किमी प्रति घंटा, तो वहीं जाड़े में 48 किमी प्रति घंटा होती है। कभी-कभी ये तूफानी रफ्तार से भी आगे बढ़ते हैं। उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी भाग के पास उत्पन्न हो कर ये चक्रवात पछुआ हवाओं के साथ पूर्व दिशा में चलते हैं तथा यूरोप के मध्यवर्ती भाग पर पहुंचते-पहुंचते विलीन हो जाते हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अपेक्षा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विस्तार अधिक होता है। इन चक्रवातों के आगमन से मौसम परिवर्तन के साथ-साथ वर्षा होती है और यह वर्षा लम्बे समय तक लगातार होती रहती है।
  • इस प्रकार के चक्रवातों की संख्या तथा इससे प्रभावित क्षेत्र विस्तृत होते हैं, परन्तु ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात की अपेक्षा कम विनाशकारी होते हैं एवं सामान्यतः इनसे आपदाएं उत्पन्न नहीं होती हैं।
2. ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)
  • कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम से जाना जाता है। शीतोष्ण चक्रवातों की तरह इन चक्रवातों में समरूपता नहीं होती है। इनका विकास केवल गर्म सागरों के ऊपर होता है और इनके केन्द्र में वायुदाब बहुत कम होता है। भू-मध्य रेखा पर ये चक्रवात नहीं पाए जाते, जिसका प्रमुख कारण भू-मध्य रेखा पर कॉरिऑलिस बल की अनुपस्थिति होना है। भू-मध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर जाने पर कॉरिऑलिस बल तथा पृथ्वी की अक्षीय गति के कारण ही हवाओं की अवस्था चक्रीय हो जाती है, जो चक्रवातों के निर्माण में सहायक होती है। ये चक्रवात सागरों के ऊपर तीव्र गति से चलते हैं, परन्तु स्थल पर पहुंचते-पहुंचते क्षीण हो जाते हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों का भ्रमण पथ भिन्न-भिन्न होता है, फिर भी यह व्यापारिक पवनों का अनुसरण करते हुए पूर्व से पश्चिम दिशा में अग्रसर होते हैं, परंतु ये चक्रवात ऊपोष्णकटिबंध में प्रविष्ट होते ही समाप्त होने लगते हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों की गति साधारण से लेकर प्रचंड तक होती है। क्षीण चक्रवातों में पवन गति 32 किमी प्रति घंटा होती है, जबकि हरिकेन में पवन गति 120 किमी प्रति घंटा से भी अधिक देखी जाती है । ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात सदैव गतिशील नहीं होते। कभी-कभी एक ही स्थान पर ये कई दिनों तक वर्षा करते रहते हैं । सामान्यतः इन चक्रवातों की जीवन अवधि 5 से 7 दिनों की होती है। यही कारण है कि ये केवल तटीय भागों को ही प्रभावित कर पाते हैं।
  • ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों को संयुक्त राज्य अमेरिका के कैरीबियन सागर में हरिकेन व उत्तरी अमेरिका में टरनैडो, चीन व फिलिपीन्स में टाइफून, जापान में टायफू, ऑस्ट्रेलिया में विली-विली एवं उत्तरी हिन्द महासागर में चक्रवातों के नाम से जाना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी राज्यों में आने वाले प्रलयकारी तूफान केटरीना, रीटा, बिलमा आदि हरिकेन के ही अधिक शक्तिशाली रूप थे।

ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों का प्रभाव

1. जान-माल की हानि
ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों का आकार छोटा होता है, परन्तु दाब प्रवणता तीव्र होने के कारण पवन गति अत्यधिक तीव्र होती है।अत: इससे जन-धन की भारी क्षति होती है। कृषि भूमि में बालू की मात्रा बढ़ जाने के कारण भूमि बंजर हो जाती है। समुद्र में चक्रवातों के पैदा होने से समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं और मछुआरों तथा नाविकों की जान को खतरा हो जाता है। तटीय क्षेत्रों में चक्रवात प्रायः 180 किमी/घंटा की गति से टकराते हैं। प्रभंजन की गति वाली पवनों, प्रभंजन की लहरों तथा मूसलाधार वर्षा से उत्पन्न बाढ़ के कारण ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। प्रभाव की दृष्टि से ये चक्रवात सर्वाधिक विनाशकारी होते हैं और द्वीपीय तथा समुद्रतटीय बस्तियों को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हैं।

2. फसल एवं खाद्य आपूर्ति की समस्या
प्रचण्ड वायु एवं भारी वर्षा खड़ी फसल एवं निम्न स्थान पर एकत्रित किए गए खाद्यानों को सबसे अधिक हानि पहुंचाते हैं। केला तथा नारियल जैसी रोपण फसलें सबसे अधिक प्रभावित होती हैं । समुद्री जल, स्थल पर आकर मृदा में लवणता बढ़ाता है और भूमि को कषि के लिए अनुपयोगी बना देता है।

3. परिवहन एवं संचार की समस्या
चक्रवाती तूफान पेड़ों, बिजली व टेलीफोन के खंभों को उखाड़ देता है तथा कमजोर पुल क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सड़क, परिवहन एवं संचार बाधिक हो जाते हैं।

4. महामारियों का प्रकोप
बाढ़ की भाँति चक्रवात भी मनुष्यों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। तेज हवाएं अपने साथ रोग के कीटाणुओं को संचारित करती है तथा पेचिश और मलेरिया जैसे संक्रामक रोग फैलाती है। जहां-तहां जल जमाव (Water Logging) से विषाणुओं का प्रकोप बढ़ जाता है। मानव, पशु, पक्षी, इमारतें, अर्थात् – जो कुछ भी चक्रवात के रास्ते में आता है, चक्रवात उसका सर्वनाश कर देता है। बाढ़ एवं चक्रवाती तूफान द्वारा लाए गए तत्वों के कारण मनुष्यों व पशुओं की मृत्यु हो जाती है।

5. नौ-परिवहन के लिए आपदा
चक्रवातों से समुद्री जहाजों बड़ा खतरा रहता है और ये चक्रवात इन जहाजों को भारी क्षति पहुंचाते हैं, चाहे वे खुले समुद्र में हो या फिर बंदरगाहों पर लंगर डालकर खड़े हों। यदि जहाजों को समय पर चेतावनी मिल जाए तो ये चक्रवात के मार्ग से दूर जाकर अपना बचाव कर सकते हैं।

चक्रवात आपदा से बचने के उपाय

  • चक्रवात आपदा से बचने के लिए निम्नलिखित निरोधात्मक उपायों का अनुसरण किया जा सकता है - चक्रवात के सम्बंध में आगामी सूचना का प्रबन्ध होना चाहिए, जिससे सामयिक कार्यवाही की जा सके और लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सके। इससे मृतकों की संख्या कम हो सकती है। उपग्रह से प्राप्त चित्रों तथा कम्प्यूटरीकृत मॉडलों की सहायता से चक्रवातों की दिशा और उनके पथ के सम्बंध में काफी हद तक सही भविष्यवाणी की जा सकती है।
  • सुरक्षा के आश्रय स्थलों, तटबंधों, जलाशयों आदि के निर्माण से चक्रवातों के प्रभाव से काफी हद तक बचा जा सकता है।
  • तटीय क्षेत्रों में वृक्षारोपण से चक्रवातों के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलती है।
  • फसलों तथा पशुओं के बीमे से भी लोगों को क्षतिपूर्ति में सहायता मिलती है।
  • चक्रवात आश्रय (Cyclone Shelter) का निर्माण, वर्ष 1999 के सुपर साइक्लोन के पश्चात् इस पर बल तदया गया है।
  • चक्रवात प्रतिरोधी संरचनाओं (Cyclone Proof Structure) का विकास करना।
  • बाढ़ प्रबंधन।
  • तटीय क्षेत्रों में वनीकरण विशेष रूप से मैंग्रोव वनों का विकास करना।
  • चक्रवात प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि सूक्ष्म स्तर पर चक्रवात की सुभेद्यता वाले क्षेत्रों की पहचान की जाए तथा वहां भूमि उपयोग को नियंत्रित किया जाए।

(i) भारतीय मौसम विभाग द्वारा भी चक्रवात की निगरानी एवं चेतावनी प्रदान की जाती है, जिसके लिए उपग्रह संचार प्रणाली एवं अत्याधुनिक रडार प्रणाली का उपयोग किया जाता है। भारत में 557 वेद्यशालाएं स्थापित की गई है। तटीय क्षेत्र के सरकारी कार्यालयों में 250 से भी अधिक चक्रवात चेतावनी सेट लगाए गए हैं, जो उपग्रह से जुड़े हुए हैं। चक्रवात से सम्बंधित भविष्यवाणी में वायु की गति, चक्रवात के आगे बढ़ने की गति एवं दिशा, तूफानी तरंगों की संभावित ऊँचाई, वर्षा की मात्रा आदि से सम्बंधित सूचनाएं दी जाती है। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन को देखते हुए जल परिवर्तन की दिशा में अनुसंधान की दिशा में भी बल दिया जाना चाहिए।
(ii) वर्तमान समय में इन चक्रवातों के पूर्वानुमान हेतु भारत में कुल 10 रडार लगाए गए हैं (पूर्व में 6 और पश्चिम में 4)। इससे तटीय भागों एवं जहाजों को समय-समय पर इन चक्रवातों के वायुदाब व गति सम्बंधी जानकारी मिलती रहती है। इसके अतिरिक्त हवाई जहाजों के द्वारा रेडियो तरंगों (Radio Waves) को भेजकर तथा उपग्रहों के द्वारा प्राप्त संकेतों के आधार पर इन चक्रवातों के सम्बंध में जानकारी प्राप्त की जाती है।
चक्रवात के आने की जानकारी मछुआरों को, जहाजों को और तटीय क्षेत्र के निवासियों को, प्राप्त सूचना के आधार पर पूर्व में ही दे दी जाती है, परन्तु उस पर उनके द्वारा अधिक ध्यान नहीं दिए जाने के कारण अधिक नुकसान उठाना पड़ जाता है।

कुछ महत्वपूर्ण चक्रवाती तूफान

1. चक्रवात रोआनू
15 मई, 2016 को बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न रोआनू तूफान से तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा तथा बांग्लादेश के कुछ हिस्से प्रभावित रहे । लगभग 15 दिनों तक विद्यमान रहने वाले इस तूफान से 120 लोगों की मृत्यु हो गई तथा 150 से अधिक लोग लापता हो गए। साथ ही बहुत अधिक मात्रा में सम्पत्ति का नुकसान हुआ।

2. चक्रवात वरदा
12 दिसम्बर, 2016 को बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न हुआ। यह तूफान आन्ध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के तटों पर विनाशकारी रहा। पाकिस्तान द्वारा इसे वरदा, अर्थात् - लाल गुलाब नाम दिया गया। इस चक्रवात से निपटने के लिए NDRF की 12 टुकड़ियों की तैनाती की गई। साथ ही समुद्र में मछवारों का जाना कुछ समय के लिए प्रतिबंधित भी किया गया। इस तूफान के कारण 12 लोगों की मृत्यु हो गई।

3. चक्रवात हुदहुद
12 अक्टूबर, 2014 को हिंद महासागर में उत्पन्न तूफान हुदहुद भारत के पूर्वी तट पर आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तट से टकराया। इस चक्रवात का नाम हुदहुद ओमान देश द्वारा एक चिड़िया के नाम पर दिया गया है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, इस तूफान की अधिकतम वायुगति 200 किमी/घंटा मापी गई, अतः इसे 'अत्यधिक खतरनाक चक्रवाती तूफान' (Very Severe Cyclonic Storm) माना गया। आन्ध्र प्रदेश और ओडिशा के पूर्वी तटीय इलाकों में 'हुदहुद' चक्रवाती तूफान ने जमकर कहर बरपाया।
तूफान का प्रकोप इतना प्रचंड था कि सभी तैयारियों के बावजूद 24 लोगों की मृत्यु तथा लगभग 50 हजार मकान गिर गए। इस तूफान से सबसे अधिक नुकसान विशाखापत्तनम में हुआ। अन्य प्रभावित राज्यों में छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल थे। चक्रवात से प्रभावित क्षेत्रों में सेना द्वारा राहत एवं बचाव कार्य के लिए 'ऑपरेशन लहर' (Operatio Lehar) चलाया गया।

4. चक्रवात निलोफर
नीलोफर, अक्टूबर 2014 में दक्षिण हिंद महासागर में उत्पन्न एक चक्रवाती तूफान था। यह हुदहुद चक्रवात से कम गति का है। इस चक्रवात से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश को प्रभावित हुए। इसके नाम का सुझाव पाकिस्तान ने दिया था।

5. चक्रवात नीलम
चक्रवात नीलम उत्तरी हिंद महासागर में उत्पन्न होने वाला एक विनाशकारी चक्रवात था, जो 28 अक्टूबर को बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दबाव के कारण पूर्वोत्तर श्रीलंका से शुरू हुआ था। महाबलीपुरम के आसपास तूफान के मद्देनजर 3000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। चेन्नई में स्कूलों और कॉलेजों छुट्टियां घोषित कर 282 स्कूलों को राहत केन्द्रों के रूप में बदल दिया गया था। इस चक्रवात से संपत्ति को काफी नुकसान हुआ था, परन्तु जनहानि काफी कम थी।

6. चक्रवात नानौक
इस चक्रवातीय तूफान का नाम 'नानौक' म्यांमार द्वारा रखा गया। 9-15 जून, 2014 तक 'नानौक' नामक इस चक्रवाती तूफान के कारण विशेषकर अरब सागर के तटीय शहर खतरे में रहे। इस चक्रवात की दिशा मुख्यरूप से 'ओमान' के तट की तरफ थी, लेकिन इसका प्रभाव गुजरात के तटों पर भी देखा गया।

7. चक्रवात नियोगुरी
7 जुलाई, 2014 को जापान के ओकिनावा द्वीपसमूह से 252 किमी प्रति घंटा की रफ्तार के साथ 'टायफून नियोगुरी' टकराया, जिसके परिणामस्वरूप ‘ओकिनावा' द्वीपसमूह से 5 लाख से भी अधिक लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी तथा हजारों घर बिना बिजली के रहे।

8. टायफून हैयान
चक्रवाती तूफान हैयान को फिलीपींस में 'योलान्डा' (Yolanda) नाम दिया गया। 3-11 नवम्बर, 2013 के मध्य उत्तरी-पश्चिमी प्रशांत महासागरीय व दक्षिणी चीन सागरीय क्षेत्र, जैसे – फिलीपींस, वियतनाम, माइक्रोनेशिया एवं पलाऊ आदि इससे प्रभावित रहे । इस प्रचंड चक्रवाती तूफान से व्यापक रूप से जन-धन की हानि हुई, जिसमें फिलीपींस के विशेषकर समरद्वीप (Samar Island) और लेयटे (Leyte) में भारी तबाही मचाई । सुपर v श्रेणी के अन्तर्गत शुमार इस टाइफून हैयान की अधिकतम वायुगति 230 किमी/घंटा (10 मिनट तक लगातार) से 315 किमी/घंटा (1 मिनट तक लगातार) रिकॉर्ड की गई।

9. टायफून उसागी
उसागी एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ 'खरगोश' होता है। उसागी चक्रवात 16-24 सितम्बर, 2013 को आया, जिसे श्रेणी v का सुपर टायफून कहा गया। इस चक्रवात से उत्तरी-पश्चिमी प्रशांत महासागर के तटीय देश-फिलीपींस, ताइवान, चीन, हांगकांग तथा मकाऊ बुरी तरह प्रभावित रहे । भारी वर्षा के साथ तूफान की अधिकतम गति 205 किमी/घंटा (दस मिनट तक लगातार) आंकी गई, परन्तु एक मिनट तक लगातार 260 किमी/घंटा वायुवेग के साथ यह श्रेणी V के सुपर टायफून में परिवर्तत हो गया।

10. टायफून रम्मासुन
फिलीपींस में जुलाई, 2014 के तीसरे सप्ताह में आए 'टायफून रम्मासुन' के कारण 40,000 से अधिक लोगों को विस्थापित किया गया। इसे फिलीपींस में 'बादल का देवता' (गॉड ऑफ थंडर) भी कहा जाता है।

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