आपदा प्रबंधन: बाढ़ | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

बाढ़ एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है, जो व्यापक स्तर पर जान-माल को हानि पहुंचाती है, अर्थात् जब नदियों का जल अपने तटबंधों को तोड़कर बाहर की ओर बहने लगता है, तो सामान्यतः इसे बाढ़ कहा जाता है। बाढ़ एक ऐसी घटना है, जो प्रायः दुनिया के हर देश में आती है। बांग्लादेश, चीन एवं भारत जैसे देश बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित रहते हैं। बाढ़ के चपेट में आकर कई गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। एक विनाशकारी बाढ़ सड़क, पुल, पुलिया, रेलवे पुल एवं पटरी, वन एवं मकानों आदि को व्यापक क्षति पहुंचा सकती है। बाढ़ की आवृत्ति के अनुसार भारत में बाढ़ क्षेत्रों को सामान्य रूप से 3 भागों में बांटा जा सकता है -

  • जहां प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है। निम्न गंगा मैदान, ब्रह्मपुत्र घाटी मैदान, महानदी, कृष्णा, गोदावरी एवं कावेरी नदियों के डेल्टाई क्षेत्र आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
  • जहां 1 से 5 वर्ष के अन्तर्गत बाढ़ की स्थिति देखी गई है। भारत के अधिकतर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र इसी के अन्तर्गत आते हैं। 3) जहां 5 वर्ष से अधिक समय में बाढ़ की स्थिति देखी जाती है।

बाढ़ के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक

  • नदी जलग्रहण एवं बेसिन क्षेत्रों में भारी वर्षा का होना - नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र एवं उनके प्रवाह क्षेत्र में भारी वर्षा के परिणामस्वरूप नदियों के जल के आयतन में अप्रत्याशित वृद्धि हो जाती है तथा नदी जल अपने तटबंधों को पार कर बाहर के क्षेत्रों में फैल जाती है। भारत में नदियों के जल की मात्रा में वृद्धि का यह एक मुख्य कारक है। भारत की हिमालयी नदियां अपने क्षेत्र में भारी वर्षा से अत्यधिक मात्रा में जल प्राप्त करती है एवं बाढ़ के व्यापक परिणाम को जन्म देती है। दक्षिण भारत की ज्यादातर नदियां वर्षा पर निर्भर है तथा ये मानसून के समय ही अधिकतर जल प्राप्त करती है। कभी-कभी भारी वर्षा के कारण ये नदियां अपने डेल्टाई क्षेत्रों में बाढ़ उत्पन्न करती हैं।
  • छोटी नदियों के जलस्तर में वृद्धि - भारत की अनेक ऐसी छोटी-छोटी नदियां, जो बड़ी नदियों की सहायक हैं, जिसके जलस्तर में वृद्धि होने से मुख्य नदी के जल के आयतन में वृद्धि होती है, जिससे विनाशकारी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानसून के दिनों में गंगा की विभिन्न सहायक नदियों का जलस्तर उच्च होता है। ये नदियां गंगा में मिलकर गंगा के मैदानी क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ को जन्म देती है।
  • बादल का फटना - जब आई पवनें तीव्र संवहन के कारण तेजी से ऊपर उठती हैं तो संघनित होकर कम समय में काले कपासी वर्षा मेघों (Cumulonimbus Clouds) द्वारा भारी वर्षा कराती है, इस परिघटना को ही बादल का फटना कहते हैं। भारत में मानसून के समय बादल फटने की घटना अक्सर घटा करती है। इस घटना से हिमालयी क्षेत्र अधिक प्रभावित रहते हैं। 17 जून, 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भीषण वर्षा इसका एक उदाहरण है। ऐसी परिघटना कभी-कभी अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी देखी जाती है, जिसका मुख्य कारण अचानक हुई भारी वर्षा एवं खराब जल निकासी व्यवस्था का होना है। उदाहरण के लिए राजस्थान के बाड़मेर में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
  • चक्रवात - चक्रवात से उत्पन्न तूफान के कारण समुद्र तटील क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है। ये तूफान कई बार समुद्री लहरों को आक्रोशित करती हैं एवं ये लहरें तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल का विस्तार कर बाढ़ उत्पन्न करती हैं।
  • प्राकृतिक तटबंधों को क्षति - प्राकृतिक तटबंध नदी जल प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। कई बार हम जाने-आनजाने इन तटबंधों को नुकसान पहुंचाते हैं, जो बाढ़ की संभावनाओं को जन्म देती है।
  • वनों की कटाई - बाढ़ को नियंत्रित करने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि वन जल का अवशोषण करना है। जल संभरण क्षेत्रों में वनों की कटाई के बाढ़ के खतरे में वृद्धि हुई है। वन नदी के बहाव को धीमा करता है एवं इसके विनाशकारी प्रभाव को कम करता है। नदी प्रवाह क्षेत्र में वनों की कटाई से विनाशकारी बाढ़ की संभावनाएं बढ़ी हैं।
1. भारतीय संदर्भ में बाढ़ के अन्य कारण
  • नदियों का विशाल जलग्रहण क्षेत्र (Catchment Area) तथा हिमालय क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा ।
  •  नदियों में विशाल मात्रा में गाद के जमाव के कारण जल समायोजित करने की क्षमता में कमी।
  • हिमालय के तीव्र ढाल के कारण नदियों के तीव्र प्रवाह से मैदानी क्षेत्र में मंद ढाल के कारण नदी जल एवं लाए गए अवसादों का वृहत् क्षेत्र में फैलाव।
  • भूमिगत जल स्तर ऊँचा होने के कारण जल का धीमा रिसाव तथा लम्बे समय तक जल का जमाव ।
  • नदियों का मार्ग परिवर्तन । उदाहरण के लिए कोसी एवं तिस्ता, जो पहले गंगा की सहायक नदियां थीं, परन्तु मार्ग परिवर्तन के कारण वर्तमान समय में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियां बन गई है।
  • नेपाल, भूटान एवं तिब्बत से समय पर जल विज्ञान (Hydrology) सम्बन्धी आंकड़े प्राप्त न होना।
  • निम्न भूमि तथा मंद ढाल (डेल्टाई क्षेत्रों की समुद्र से कम ऊँचाई के कारण)।
  • चक्रवात के कारण मूसलाधार वर्षा ।
  • तूफानी तरंगों के कारण (चक्रवात से उत्पन्न ऊँची तरंगों के कारण नदी के निकास मार्ग का अवरूद्ध होना) सागरीय जल का तटीय क्षेत्रों में प्रवेश।
  • उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश में बादल के फटने के कारण फ्लैश फ्लड की समस्या उत्पन्न होती है।
  • पंजीब, हरियाणा एवं राजस्थान में अपवाह तंत्र विकसित नहीं होने एवं अचानक अधिक वर्षा हो जाने के कारण कभी-कभी बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

2. भारत में बाढ़ के प्रभाव

  • भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र मुख्यतः निम्न मैदानी एवं डेल्टाई क्षेत्र है, जहां अति सघन जनसंख्या निवास करती है। भारत का 12 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ प्रभावित है, परन्तु इस क्षेत्र में देश की 20 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
  •  विश्व में बाढ़ के कारण सर्वाधिक लोगों की मृत्यु में भारत का स्थान बांग्लादेश के बाद दूसरा है। बाढ़ से औसतन प्रतिवर्ष1500 लोगों की मृत्यु होती है तथा 2 लाख से भी अधिक मवेशियों की मृत्यु होती है। सितम्बर, 2014 में जम्मू-कश्मीर में हुई भारी वर्षा से बाढ़ की भयानक स्थिति में उत्पन्न हो गई । बाढ़ की स्थिति इतनी विकराल थी कि लगभग 284 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी, हजारों गांव जलमग्न हो गए तथा लाखों लोगों को बेघर होना पड़ा। बाढ़ के सैलाब के मद्देनजर भारतीय सेना के तीनों अंकों को बचाव कार्य में उतना पड़ा। सेना ने ऑपरेशन मेघ राहत एवं ऑपरेशन सहायता के द्वारा केवल श्रीनगर में ही लगभग 87 हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। इस बाढ़ से बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
  • बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में खाद्यान्न एवं पेयजल का संकट ।
  • कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी।
  • खाद्यान्नों के उत्पादन में गिरावट।
  • मकान, पुल, सड़क, रेलमार्ग आदि संरचनाओं का व्यापक पैमाने पर नुकसान ।
  • बाढ़ का प्रभाव मुख्यतः गरीब जनसंख्या पर पड़ता है एवं उनकी क्रयशक्ति (Purchasing Power) में कमी आती है, जिससे अकाल एवं भुखमरी की समस्या विकराल हो जाती है। साथ ही मातृ मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • बेराजगारी के कारण बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से अन्य क्षेत्रों में जनसंख्या का स्थानान्तरण ।
  • बाढ़ के पश्चात् महामारी की समस्या।

बाढ़ से बचने के उपाय

यद्यपि अचानक उत्पन्न होने वाली बाढ़ की समस्या को रोका नहीं जा सकता है, परन्तु समुचित व समेकित प्रबंधन से होने वाले जान-माल की हानि को कम किया जा सकता है। बाढ़ से बचने के उपाय निम्नलिखित हैं -

1. बाढ़ आने से पहले के उपाय

  • प्राकृतिक आपदाओं पर जिला स्तर की समितियों की बैठकें बुलाना।
  • नियंत्रण कक्ष (Control Room) चालू करना।
  • वर्षा का रिकॉर्ड रखना तथा पिछले वर्षों की रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • मौसम विज्ञान केन्द्रों, केन्द्रीय जल आयोग, बाढ़ पूर्वानुमान संगठन द्वारा जारी की गई मौसम रिपोर्टों तथा बाढ़ बुलेटिनों का प्रसारण।
  • महत्वपूर्ण स्थलों पर नौकाएं तैनात करना।
  • विद्युत चालित नौकाओं का प्रयोग।
  • खाद्यान्न एवं जीवन की अन्य बुनियादी आवश्यकताओं की व्यवस्था ।
  • सेना की सहायता हेतु अग्रिम व्यवस्था ।
  • बाढ़ राहत कार्य का प्रशिक्षण ।
  • राहत दलों का संगठन ।
  • वैकल्पिक पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था ।

2. बाढ़ आने के बाद के त्वरित उपाय
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जान-माल की क्षति को कम करने के लिए त्वरित कार्यवाही प्राथमिक रूप से की जाती है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण है -

  • बाढ़ की संभाव्यता के आधार पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया जाता है तथा रोगी, बूढ़ों, महिलाओं एवं बच्चों की देखभाल विशेष तौर पर की जाती है।
  • पेयजल सुविधा व खाद्य सामग्री की उचित प्रबंध किया जाता है।
  • बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में नौका आदि की तत्काल व्यवस्था बनाए रखी जाती है, ताकि बाढ़ में फंसे लोगों को बचाया जा सके एवं प्रभावित क्षेत्र की निगरानी की जा सके।
  • बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से जल निकासी व्यवस्था की जाती है तथा पंप आदि द्वारा पानी की निकासी की जा सकती है।
  • बाढ़ संभावित क्षेत्रों में बाढ़ की आशंका होने पर को देखते हुए दवाइयां एवं रक्षा सैनिकों की व्यवस्था की जाती है।
  • लोगों को बाढ़ से बचने के लिए प्राथमिक उपायों की जानकारी दी जाती है तथा तैराकी आदि में प्रशिक्षित किया जाता है।
  • बाढ़ संभावित नदी की तली की सफाई की जाती है, जिससे गाद के स्तर को कम किया जा सके।
  • बाढ़ संभावित क्षेत्रों में नाले एवं नालियों की व्यवस्था की जाती है, ताकि योजनाबद्ध तरीके से जल निकासी किया जा सके।

3. बाढ़ आने के बाद के दीर्घकालिक उपाय

  • मौसम पूर्वानुमान को सटीक एवं विश्वसनीय बनाना, जिसके लिए मानसून मिशन भी चलाया जा रहा है।
  • बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में आश्रय स्थलों का विकास करना।
  • सूक्ष्म ऋण एवं सूक्ष्म बीमा की व्यवस्था करना।
  • वर्षा जल संचय, छोटे-छोटे अवरोधक के निर्माण आदि के द्वारा जल प्रबंधन को बेहतर बनाना।
  • बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में संचार के वैकल्पिक साधन, जैसे - सेटेलाइट फोन आदि की व्यवस्था करना । इसके अतिरिक्त टेलीविजन,रेडियो, दुरसंचार संदेश (SMS) आदि के माध्यम से बाढ़ चेतावनी तंत्र को मजबूत बनाना।
  • खोज एवं बचाव से सम्बन्धित आधुनिक उपकरणों एवं साधनों को उपलब्ध कराना।
  • गांव एवं प्रखण्ड स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियों का गठन करना तथा आपदा से सम्बंधित तैयारियों को जांचने हेतु 'मॉकड्रिल' करना।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करना।
  • पर्वतीय भागों में बांध व उसके पीछे जलाशय का निर्माण करना चाहिए, ताकि वर्षा व नदी जल को नियंत्रित रूप से नदियों व नहरों में छोड़ा जा सके।

(i) यद्यपि बाढ़ को रोका नहीं जा सकता परन्तु समुचित भूमि उपयोग के द्वारा इससे होने वाले नुकसान को कम करना सम्भव है। इस संदर्भ में बाढ़ आयोग ने बाढ़ क्षेत्र में बाढ़ क्षेत्र जोनिका' की अवधारणा प्रस्तुत की है। इसके अनुसार बाढ़ क्षेत्र में भूमि उपयोग करने के क्रम में प्राथमिकताओं का निर्धारण आवश्यक है। उदाहरणार्थ - रिहायसी बस्तियां, हॉस्पिटल, स्कूल, हवाई अड्डा आदि का विकास अपेक्षाकृत ऊँचे भागों में की जा सकती है, जबकि खेत का मैदान, कार पार्किंग आदि निचले भूमि पर भी बनाए जा सकते हैं। ऐसे प्रयासों के द्वारा बाढ़ से होने वाले नुकसानों को कम किया जा सकता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए चावल एवं जूट जैसी फसलों का विशेष किस्मों का विकास किया जा रहा है, जिनसे बाढ़ कि स्थिति में भी उत्पाद प्राप्त किया जा सके।
(ii) वर्ष 1976 में 'राष्ट्रीय बाढ़ आयोग' का गठन किया गया। आयोग ने बाढ़ नियंत्रण के लिए एक समन्वित योजना को क्रियान्वित किया है। इसके अन्तर्गत बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में भूमि उपयोग तथा विकास कार्यों को विनियमित करने हेतु कानून बनाए गए तथा नदियों में खतरे के निशान का निर्धारण किया गया। इसका प्रमुख लक्ष्य बांध निर्माण, जल निकासी के लिए नहरों का निर्माण, नगरों को सुरक्षित करना, गांवों का ऊँचे स्थान पर स्थानांतरण, लाभ प्राप्त क्षेत्र आदि शामिल थे।

The document आपदा प्रबंधन: बाढ़ | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC

Top Courses for UPSC

34 videos|73 docs
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Free

,

Previous Year Questions with Solutions

,

ppt

,

Important questions

,

past year papers

,

Exam

,

mock tests for examination

,

shortcuts and tricks

,

आपदा प्रबंधन: बाढ़ | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

Sample Paper

,

आपदा प्रबंधन: बाढ़ | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

MCQs

,

Extra Questions

,

Objective type Questions

,

practice quizzes

,

आपदा प्रबंधन: बाढ़ | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

,

Summary

,

study material

,

Semester Notes

,

video lectures

;