लोक प्रशासन में नैतिकता के निर्धारण में मुख्य रूप से निम्न कारकों का उल्लेख किया जा सकता है
लोक प्रशासन की बदलती प्रवृत्तियों में सिविल सेवा मूल्यों की आवश्यकता
वर्तमान परिवर्तन के दौर में लोक प्रशासन प्रवृत्तियाँ भी तेजी से बदल रही हैं। आधुनिक रूपों में लोग, अपनी आकांक्षाओं के प्रति जागरूक रहते हैं। सोशल मीडिया या तकनीकी के अन्य साधनों द्वारा लोक प्रशासकों से जवाबदेही तय की जाती है व उनके निर्णय, कार्यों पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया दी जाती है। इसी जन जागरूकता का रूप है कि सरकारें अपनी परम्परागत भूमिका से हटकर सामर्थ्यकारी सरकार की भूमिका में कार्य कर रही हैं। और इस भूमिका का निर्वहन सरकार तथा जनता के बीच लोक प्रशासकों द्वारा एक कड़ी के रूप में किया जाता है। अतः एक व्यावहारिक लोकतंत्र की स्थापना के लिये सिविल सेवकों द्वारा जवाबदेही युक्त उत्तररायित्व को निभाना चाहिये। सिविल सेवा में मूल्यों के महत्व को निम्नांकित लामों के रूप में देखा जा सकता है
1. कई घोटालों,बोफोर्स से लेकर कोयला तक, ने लोगों का ध्यान लोक प्रशासकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के नीतिशास्त्रीय व्यवहारों पर केंद्रित किया है और यह स्थिति केवल भारत तक सीमित नहीं है वरन् अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में भी देखी गयी है। एक ओर जहाँ भारत में यूपीए-2 शासन द्वारा दिये गये अच्छे कार्यों को घोटालों की श्रृंखला ने आच्छादित कर दिया, ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका में रोनाल्ड रीगन के आठ वर्षीय राष्ट्रपति कार्यकाल को नीतिशास्त्रीय समस्याओं ने आच्छादित कर दिया था। जिस प्रकार यूपीए-2 शासन में राष्ट्रमंडल घोटाला, आईपीएल घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट, आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला, घूसकांड घोटाला जैसे घोटालों के कारण उच्च पदों पर बैठे कई लोगों को त्यागपत्र देना पड़ा, ठीक उसी प्रकार अमेरिका में रोनाल्ड रीगन के आठ वर्ष के कार्यकाल में रीगन प्रशासन द्वारा 150 से अधिक राजनीतिक नियुक्तियों को अनैतिक व्यवहार के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था।
2. भारतीय समाज में अनेक समस्याएँ विद्यमान हैं जिनमें खाद्यान्न, अशिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ प्रमुख हैं। भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है अर्थात् प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है परंतु समस्या खाद्यान के वितरण, मंडारण से है। इसके समाधान के लिए खाद्यान्न का भंडारण ब्लॉक स्तर पर विकंद्रीकरण करके होना चाहिए और साथ ही शीत गृहों का भी निर्माण किया जाना चाहिए। जिससे कि खर्च व समय की बचत होगी तथा इनका भंडारण व वितरण समय से सभी को हो पाएगा एवं अनाजों के सड़ने की खबर भी कम सुनाई देगी।
3. शिक्षा सेवाओं में भी समस्याएँ हैं चाहे वह उच्च शिक्षा के लिए हो या प्राथमिक शिक्षा के लिए। प्राथमिक विद्यालय जहाँ आधारभूत संरचनाओं व अनियमितताओं का शिकार हो रहे हैं। वहीं उच्च शिक्षा जिसमें आजकल कुकुरमुत्ते की तरह खुल रहे इंजीनियरिंग, मेडिकल व मानविकीय विद्यालय जिम्मेदार है जो कि शिक्षा गुणवत्ता को कम कर रहे हैं। छात्र शोध के लिए कम जा रहे हैं। इसके उपाय के लिए नयी शिक्षा नीति को जल्द से जल्द लागू करके इन सभी कमियों को दूर किया जाना चाहिए।
4. स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो अब भी कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जाना पसंद नहीं करते जिसका प्रमुख कारण वहाँ सुविधाओं की कमी तथा आर्थिक आय है। इन सबके सुधार के लिए पहले सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना उपलब्ध हो तथा महानगरों में उच्च सुविधा युक्त अस्पताल हो। नयी स्वास्थ्य नीति जल्द से जल्द लागू हो।
5. लोक प्रशासन की परंपरागत छवि प्रतिकूल रही है। नौकरशाही को लाल फीताशाही (Red tapism) अनग्यता, रूढ़िवाद, और संकट से निपटने में अनुशीलता एवं अनुसारक हॉचे के व्यवहार के रूप में देखा गया है। आमतौर पर नौकरशाहों में शिकायतों को दबाने, भूलों को ढंकने एवं फरियादों का उपहास करने की प्रवृत्ति होती है।
6. नई नस्ल के प्रशासकों से अधिक नव प्रवर्तक, प्रशासनिक तकनीकों के जानकार, और जनता की मांगों के प्रति अधिक अनुक्रियाशील होने की अपेक्षा की जाती है। उदीयमान समस्याओं को पहचानकर तथा औपचारिकता को न्यूनतम कर उन्हें तत्काल और परिशुद्ध कदम उठाना सीखना होगा।
7. वर्तमान सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए आधुनिक नौकरशाही (अधिकारी) को बहुल भूमिकाएँ ग्रहण करनी होंगी, यथाः
स्पष्टतः प्रत्येक नौकरशाह से इतना ही बहुमुखी प्रतिभावान होने की अपेक्षा करना अयथार्थवारी होना है, शायर अप्राप्य की अपेक्षा करना है। तथापि, जहाँ तक संभव हो इस आदर्श को व्यवहार में लाने का प्रयास होना चाहिए। आदर्श तक ऐसे संकेतक को व्यवहार में लाने का प्रयास होना चाहिए। आदर्श एक ऐसे संकेतक का व्यवहार करे जो नौकरशाहों की शिक्षा, प्रशिक्षण और चयन व्यवस्थाओं का लक्ष्य हो। व्यवहार में प्रत्येक प्रशासक किसी समय में सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और परिचालनीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम तरीके से कार्य करेगा।
सफल प्रशासन के लिए निम्नलिखित चरों की पहचान की गई है।
भारत जैसे विकासशील देश के लिये यह बहुत आवश्यक है कि राष्ट्र के त्वरित विकास के लिए सरकारी तंत्र नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए जिम्मेदारियों को निष्ठापूर्वक निभाये। इसीलिये,सरदार पटेल ने देश की व्यवस्था को कायम करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं को देश का स्टीलफ्रेम' कहा था और कौटिल्य ने भी सरकारी अधिकारियों में नैतिक मूल्यों के समावेश की सख्त वकालत की थी और नैतिक जिम्मेदारी निभाने में असफल अधिकारियों के लिये सजा का प्रावधान किया था।
आज देश के सामने तरह-तरह की समस्याएँ तथा चुनौतियाँ हैं। इनमें प्रमुख हैं गरीबी, भ्रष्टचार, बेरोजगारी, आतंकवाद, नक्सलियों की समस्या, अशिक्षा, स्वार्थपूर्ण राजनीति इत्यादि। इन सब समस्याओं के पीछे राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव तो है ही परंतु साथ में हम प्रशासनिक संरचना की गैर-जिम्मेदारियों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।
''सभ्य सरकार और यहाँ तक कि, मैं सोचता हूँ, स्वयं सभ्यता का भविष्य एक सेवा और दर्शन एवं सभ्य समाज के सार्वजनिक कार्यों को करने में समर्थ प्रशासन के व्यवहार को विकसित करने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।"
1. लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति क्या है? |
2. लोक प्रशासन में कौन सी समस्याएं हैं? |
3. लोक प्रशासन में नैतिकता क्या है और इसके क्या निर्धारक हैं? |
4. यूपीएससी क्या है और यह किस परीक्षा से संबंधित है? |
5. लोक प्रशासन के क्षेत्र में कौन से प्रश्न अधिकतर गूगल पर खोजे जाते हैं? |
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