1. साधकीय भूमिका
लोक सेवाओं को अपने संचालन में मूलतः साधकीय भूमिका निभानी चाहिए। इस अर्थ में यह नीति-निर्धारण तथा कार्यान्वयन में कर्ता नहीं बल्कि अधिकरण मात्र है। इसलिए यह सार्वभौम रूप से अपेक्षित होता है और एक बड़ी सीमा तक स्वीकार भी किया जाता है कि इन सेवाओं का अभिकल्पन एवं संयोजन ऐसा होना चाहिए कि वे राजनीतिक नेतृत्व एवं नीतिगत संघटकों की और सुसंगत और स्वैच्छिक अनुक्रिया कर सकें। सारभूत रूप में यह बात प्रशासनिक व्यवस्था पर राजनीतिक विचारधारा का ही परिचायक है।
2. निष्पक्ष भूमिका
3. प्रतिबद्ध भूमिका
क्या सरकारी कर्मचारियों को किसी दल, शासक दल अथवा दल के किसी व्यक्ति के प्रति बौद्धिक, भावनात्मक अथवा विचारात्मक रूप से प्रतिबद्ध होना चाहिए? उनकी प्रतिबद्धता का स्वरूप क्या होना चाहिए? लोक सेवाओं की प्रतिबद्ध भूमिका के समुचित बोध के लिए इन प्रश्नों का उत्तर आवश्यक है। इस विषय पर विभिन्न विचार व्यक्त किए गए हैं।
4. अनामता भूमिका
5. व्यावसायिक भूमिका
लोक सेवा विधेयक-2011
लोक सेवा विधेयक 2011, प्रशासन में जवाबदेहिता, निष्पक्षता व कार्य मूल्यांकन के लिये लाया गया, जिसमें निम्नलिखित प्रावधान हैं:
10 आयुक्त सदस्य होंगे।
लोक प्राधिकारी के अर्थ में सभी संवैधानिक व विधिक प्राधिकारी, अधिसूचना द्वारा स्थापित प्राधिकारी व सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल के तहत स्थापित प्राधिकारी शामिल होंगे।
प्राधिकारी की कार्यप्रणाली, सेवा आपूर्ति की विफलता व किसी विधि/नियम/कार्यक्रम के उल्लंघन में कोई भी नागरिक, लोक सेवा अधिकारी की शिकायत कर सकता है।
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