राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 राष्ट्र, राज्य, जिला एवं स्थानीय स्तरों पर संस्थागत, कानूनी, वित्तीय एवं समन्वय तंत्र स्थापित करता है। यह अधिनियम राष्ट्रीय स्तर पर NDMA, राज्य स्तर पर SDMA एवं जिला स्तर पर DDMA की स्थापना का प्रावधान करता है।
आपदा प्रबंधन हेतु प्राथमिक उत्तरदायित्व संबंधित राज्य सरकार का होता है। केंद्र, राज्य एवं जिला स्तर पर स्थापित संस्थागत तंत्र, राज्यों को प्रभावी रूप से आपदाओं का प्रबंधन करने में सक्षम बनाते हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत ढाँचा
- आपदा प्रबंधन प्रभाग (Disaster Management Division), गृह मंत्रालयः आपदा प्रबंधन का समग्र समन्वय गृह मंत्रालय (MHA) का दायित्व है। प्राकृतिक आपदाओं एवं मानव-जनित आपदाओं (सूखे व महामारी के अतिरिक्त) हेतु अनुक्रिया, राहत व तैयारी का उत्तरदायित्व आपदा प्रबंधन प्रभाग का है। प्रभावी आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु गह मंत्रालय का आपदा प्रबंधन प्रभाग, केंद्र सरकार की ओर से आपदा प्रभावित राज्य सरकारों, संबद्ध मंत्रालयों/विभागों, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority: NDMA), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force: NDRF), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management: NIDM) एवं अग्निशमन सेवा निदेशालय, होम गार्ड्स व नागरिक सुरक्षा तथा सशस्त्र बलों के साथ समन्वय करता है।
- राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (National Executive Committee: NEC): यह आपदा प्रबंधन के लिए समन्वयकारी व निगरानी निकाय के रूप में कार्य करता है। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय गह सचिव द्वारा की जाती है तथा कृषि, परमाणु ऊर्जा, रक्षा, पेयजल आपूर्ति, पर्यावरण व वन, वित्त (व्यय), स्वास्थ्य, विद्युत, ग्रामीण विकास, विज्ञान व प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, दूरसंचार, शहरी विकास व जल संसाधनों पर नियंत्रण वाले मंत्रालयों एवं विभागों के सचिव स्तर के अधिकारी इसके सदस्य होते हैं। चीफ्स ऑफ़ स्टाफ कमेटी का एकीकृत रक्षा स्टाफ प्रमुख (Chief of Integrated Defence Staff) इसका पदेन सदस्य होता है। किसी भी भीषण आपदा की स्थिति या आपदा की ऐसी स्थिति में जहां केंद्रीय सहायता की आवश्यकता हो, आपदा प्रबंधन अनुक्रिया का समन्वय NEC करती है। NEC, केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों/ विभागों, राज्य सरकारों एवं राज्य अधिकारियों को किसी विशिष्ट भीषण आपदा की संभावित स्थिति या आपदा के दौरान, राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार, उनके द्वारा किए जाने वाले उपायों के बारे में निर्देश दे सकती है।
- सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Security: CCS) और राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee: NCMC): ये आपदा प्रबंधन से सम्बंधित उच्चस्तरीय निर्णयन प्रक्रिया में सम्मिलित होने वाली महत्वपूर्ण समितियों में शामिल हैं। प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन हेतु गठित मंत्रिमंडलीय समिति 2014 में समाप्त कर दी गई थी।
- सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (CCs) : Ccs देश की सुरक्षा, कानून एवं व्यवस्था, आंतरिक सुरक्षा, विदेशी मामलों से संबंधित आंतरिक या बाह्य सुरक्षा निहितार्थ वाले नीतिगत मामलों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं राजनीतिक मामलों से संबंधित मुद्दों से सरोकार रखती है। CCS को गंभीर सुरक्षा निहितार्थों वाली आपदा से संबंधित निर्णयन प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता है।
- राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee: NCMC): NCMC गंभीर या राष्ट्रीय जटिलताओं वाले बड़े संकटों से संबंधित मामलों पर कार्यवाही करती है। इन घटनाओं में सुरक्षा बलों और/या खुफिया एजेंसियों की अत्यधिक भागीदारी की आवश्यकता होती है। ऐसी घटनाओं में आतंकवाद (जवाबी कार्यवाही), कानून और व्यवस्था से संबंधित मामले, शृंखलाबद्ध बम विस्फोट, हाईजैकिंग, हवाई दुर्घटना, CBRN हथियार व्यवस्था, खान दुर्घटनाएं, बंदरगाह व पत्तन संबंधी आपात स्थिति, वनाग्नि, तेल-क्षेत्र में आग और तेल रिसाव (oil spills) सम्मिलित हैं।
- राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच (National Platform for Disaster Risk Reduction: NPDRR) :
- भारत सरकार ने केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों सहित अन्य हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ निर्णयन की एक सहभागी प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता को स्वीकार किया। तदनुसार, एक बहु-हितधारक एवं बहु-क्षेत्रीय राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण मंच (NPDRR) का गठन किया गया। NPDRR की अध्यक्षता केन्द्रीय गृह मंत्री द्वारा की जाती है। गह मंत्रालय के तहत आपदा प्रबंधन का प्रभारी राज्य मंत्री इसका उपाध्यक्ष होता है। गह मंत्रालय में आपदा प्रबंधन प्रभाग का प्रभारी विशेष सचिव/अतिरिक्त सचिव आपदा जोखिम न्यूनीकरण राष्ट्रीय मंच (NPDRR) का संयोजक होता है।
यह निम्नलिखित कार्य करता है:
- आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में हुई प्रगति की सामयिक समीक्षा करना।
- केंद्र एवं राज्य सरकारों व अन्य संबंधित एजेंसियों द्वारा आपदा प्रबंधन नीति को कार्यान्वित करने के लिए अपनाए जाने वाले तरीकों का आकलन तथा इस मामले में उचित परामर्श प्रदान करना।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रणाली के विकास के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों/ संघ शासित प्रदेशों, स्थानीय सरकारों तथा सिविल सोसाइटी संगठनों के मध्य समन्वय के संबंध में परामर्श प्रदान करना।
- केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार संघ शासित प्रदेश द्वारा उठाए गए, या स्वयं ही, आपदा प्रबंधन से संबंधित किसी भी प्रश्न पर परामर्श प्रदान करना।
- आपदा प्रबंधन नीति की समीक्षा करना।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority: NDMA): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च निकाय है। NDMA आपदा प्रबंधन संबंधी नीतियाँ, योजनाएँ एवं दिशानिर्देश तैयार करने हेतु उत्तरदायी है। NDMA के दिशानिर्देश केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों तथा राज्यों की उनकी संबंधित आपदा प्रबंधन योजनाओं को तैयार करने में सहायता करते हैं। NDMA सभी प्रकार की आपदाओं (प्राकृतिक या मानव-जनित) से संबंधित मामलों में कार्यवाही करने हेतु अधिदेशित है:
- यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजनाओं एवं केन्द्रीय मंत्रालयों/ विभागों की योजनाओं को मंजूरी प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) के सामान्य अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण का उत्तरदायित्व NDMA में निहित हैं तथा ये कार्य NDMA द्वारा संपन्न किए जाते है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management: NIDM) NDMA द्वारा निर्धारित व्यापक नीतियों एवं दिशा-निर्देशों के फ्रेमवर्क के तहत कार्य करता है।
- किसी भीषण आपदा की आशंका की स्थिति में या आपदा के दौरान बचाव व राहत कार्यों के लिए आवश्यक सामग्री की आपातकालीन ख़रीद हेतु NDMA को विभिन्न विभागों या प्राधिकारियों को अधिकृत करने की शक्ति है।
- NDMA, किसी भीषण आपदा की आशंका की स्थिति या आपदा से निपटने हेतु, आपदाओं की रोकथाम या शमन के लिए, या तैयारी व क्षमता निर्माण हेतु, आवश्यकतानुसार अन्य उपायों को भी अपना सकता है।
- यह शमन एवं तैयारी सम्बन्धी उपायों हेतु वित्तीय प्रावधान तथा अनुप्रयोग का निरीक्षण करता है।
ऐसी घटनाएं जिनमें सुरक्षा बलों और/या खुफिया एजेंसियों की अत्यधिक भागीदारी की आवश्यकता होती है, जैसे आतंकवाद (जवाबी कार्यवाही), कानून और व्यवस्था से संबंधित मामले, शृंखलाबद्ध बम विस्फोट, हाईजैकिंग, हवाई दुर्घटना, CBRN (रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और नाभिकीय) वेपन सिस्टम; तथा खान दुर्घटनाओं, बंदरगाह व पत्तन संबंधी आपात स्थिति, वनाग्नि, तेल-क्षेत्र की आग (oilfield fires) एवं तेल रिसाव (oil spills) जैसी अन्य घटनाएं राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।
NDMA की परामर्शदात्री समिति: NDMA के तहत 15-सदस्यीय परामर्शदात्री समिति में आपदा प्रबंधन के विभिन्न क्षेत्रों तथा संबद्ध विषयों के विशेषज्ञ, शैक्षणिक समुदाय, सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) तथा सिविल सोसाइटी के सदस्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management NDM): राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मानव संसाधन विकास, क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, अनुसंधान, दस्तावेज़ीकरण और नीतियों के समर्थन हेतु उत्तरदायी एक नोडल एजेंसी है।
- NIDM ने केंद्रीय, राज्य व स्थानीय सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के साथ; भारत एवं विदेश में शैक्षणिक, अनुसंधान और तकनीकी संगठनों के साथ; तथा अन्य द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सामरिक समझौते किए हैं।
यह राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों (ATIS) में आपदा प्रबंधन केंद्रों (DMCs) के माध्यम से राज्य सरकारों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
वर्तमान में यह लगभग 30 ऐसे केंद्रों को सहायता प्रदान कर रहा है। इनमें से 6 केंद्रों को जोखिम प्रबंधन के विशिष्ट क्षेत्रों, जैसे- बाढ़, भूकंप, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन और औद्योगिक आपदाओं आदि के सन्दर्भ में उत्कृष्टता केन्द्रों (Centres of Excellence) के रूप में विकसित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force:NDRF): NDRF एक विशेषज्ञ अनुक्रिया बल है जिसे किसी भीषण आपदा की आशंका की स्थिति में या आपदा के दौरान तैनात किया जा सकता है। इस बल के सामान्य अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण का उत्तरदायित्व NDMA में निहित है। NDRF के महानिदेशक को इस बल की कमान एवं अधीक्षण का अधिकार
प्राप्त है। वर्तमान में, NDRF में 12 बटालियन सम्मिलित हैं- BSF और CRPF से प्रत्येक में से तीन तथा CISF, ITBP एवं SSB से प्रत्येक में से दो। प्रत्येक बटालियन में 45 कार्मिकों (personnel) वाले 18 आत्मनिर्भर विशेषज्ञ अन्वेषण एवं बचाव दल विद्यमान हैं, जिनमें इंजीनियर, तकनीशियन, इलेक्ट्रिशियन, डॉग स्क्वॉड्स और चिकित्सक/पराचिकित्सक सम्मिलित हैं। वर्तमान में, प्रत्येक बटालियन में 1149 कार्मिक हैं। राज्यों में इस बल की “अग्रसक्रिय उपलब्धता" और भीषण आपदा की आशंका की स्थितियों में इसके "पूर्व-संस्थापन" से देश में आपदाओं के कारण होने वाली क्षति के न्यूनीकरण में अत्यधिक सहायता मिली है।
NDRF के लिए किसी बड़ी आपदा से निपटने की पहली परीक्षा की घड़ी 2008 में कोसी नदी में आई बाढ़ थी। NDRF द्वारा अत्यधिक मुस्तैदी के साथ पांच बाढ़ प्रभावित जिलों में प्रशिक्षित बाद् बचाव दल भेजकर इस स्थिति को युद्ध स्तर पर संभाला गया था। परिणामस्वरूप, प्रारंभिक चरण के दौरान ही एक लाख से अधिक बाढ़ प्रभावित लोगों को बचाया जा सका। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा NDRF की त्वरित एवं समयानुकूल कार्यवाही की सराहना की गयी थी।
2015 में नेपाल में आए भूकंप (7.8 तीव्रता) के समय घटनास्थल पर सर्वप्रथम पहुँच कर आपदा प्रबंधन के गोल्डन ऑवर्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भारत का NDRF सुर्खियों में बना रहा। बचाव कार्य के दौरान NDRF कर्मियों ने कुल 16 पीड़ितों में से 11 को जीवित बाहर निकाला।
NDRF ने CERN (रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और नाभिकीय) चुनौतियों का सामना करने में अत्यधिक विशेषज्ञता प्राप्त कर ली है। अप्रैल और मई 2010 के दौरान, दिल्ली स्थित
राज्य स्तर पर संस्थागत ढाँचा
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार, भारत के प्रत्येक राज्य का आपदा प्रबंधन हेतु स्वयं का संस्थागत ढांचा होगा तथा प्रत्येक राज्य अपनी आपदा प्रबंधन योजना तैयार करेंगे। आपदा प्रबंधन अधिनियम यह अधिदेशित करता है कि प्रत्येक राज्य सरकार, राज्य विकास योजनाओं के अंतर्गत आपदाओं की रोकथाम या शमन के उपायों के एकीकरण करने, वित्त आवंटन करने और पूर्व चेतावनी प्रणालियों की स्थापना करने हेतु आवश्यक कदम उठाएगी। - विशिष्ट स्थितियों और जरूरतों के आधार पर, राज्य सरकार आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में केंद्र सरकार तथा केंद्रीय एजेंसियों की भी सहायता करेगी।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की स्थापना का भी प्रावधान करता है। संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री SDMA का पदेन अध्यक्ष होता है। प्रत्येक संघ शासित प्रदेश में उप-राज्यपाल की अध्यक्षता में समान प्रणाली कार्य करती है।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority :SDMA): आपदा प्रबंधन अधिनियम, प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की स्थापना किये जाने का प्रावधान करता है। संघ शासित प्रदेशों के मामले में, उप-राज्यपाल या प्रशासक, उस प्राधिकरण के अध्यक्ष होते हैं। संघ शासित प्रदेश दिल्ली में उप-राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री, इस राज्य प्राधिकरण के क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होते हैं।
SDMA के उत्तरदायित्वों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं: - यह राज्य में आपदा प्रबंधन से संबंधित नीतियाँ एवं योजनाएँ तैयार करता है।
- NDMA द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार यह राज्य आपदा प्रबंधन योजना को स्वीकृति प्रदान करता है।
- यह राज्य आपदा प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन का समन्वय करता है तथा शमन एवं तैयारीसंबंधी उपायों हेतु वित्तीय प्रावधानों की अनुशंसा करता है।
- रोकथाम, तैयारी एवं शमन संबंधी उपायों के समेकन को सुनिश्चित करने हेतु यह राज्य के विभिन्न विभागों की विकास योजनाओं की समीक्षा करता है।
- राज्य कार्यकारी समिति (State Executive Committee: SEC): राज्य सरकार, मुख्य सचिव
की अध्यक्षता में एक राज्य कार्यकारी समिति (SEC) का गठन करती है। इसके गठन का उद्देश्य SDMA की उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता करना है। SEC आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना एवं राज्य योजनाओं के कार्यान्वयन का समन्वय तथा निरीक्षण करती है। यह NDMA को आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित सूचना भी प्रदान करती है।
जिला स्तर पर संस्थागत ढाँचा
- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authority: DDMA) जिला स्तर पर, जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA), आपदा प्रबंधन संबंधी प्रयासों एवं नियोजनों के समग्र समन्वय के लिए उत्तरदायी होता है। DDMA की अध्यक्षता जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक राज्य सरकार राज्य में प्रत्येकजिले हेतु एक जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना करती है।
- जिला कलेक्टर द्वारा सह-अध्यक्ष के रूप में स्थानीय प्राधिकरण के निर्वाचित प्रतिनिधि के साथ DDMA की अध्यक्षता की जाती है।
- राज्य सरकार, जिले के अपर कलेक्टर/अपर जिला मजिस्ट्रेट के बराबर या ऊँचे ओहदे वाले एक अधिकारी को जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त करती है।
- DDMA जिले के लिए आपदा प्रबंधन योजना तैयार करता है और इसके कार्यान्वयन का निरीक्षण करता है। .
- इसके द्वारा NDMA तथा SDMA द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का सभी जिला स्तरीय कार्यालयों द्वारा अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाता है।
- स्थानीय प्राधिकरण : पंचायती राज संस्थाएँ (PRIs), नगरपालिकाएं, जिला एवं छावनी बोर्ड
और नगर नियोजन प्राधिकरण, नागरिक सेवाओं का नियंत्रण एवं प्रबंधन करते हैं तथा साथ ही प्रभावित क्षेत्रों में आपदाओं के प्रबंधन तथा राहत, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण गतिविधियों के कार्यान्वयन हेतु अपने कर्मचारियों के क्षमता निर्माण को सुनिश्चित करते हैं। ये अपनी आपदा प्रबंधन योजनाओं को राष्ट्रीय तथा राज्य के दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार करते हैं। - राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों एवं जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों का सुदृढीकरण
गृह मंत्रालय ने सभी SDMAS एवं चयनित DDMAS की प्रभावकारिता में सुधार लाने तथा उन्हें समर्पित आपदा प्रबंधन पेशेवरों की उपलब्धता सुनिश्चित कर कार्यात्मक रूप से सक्रिय बनाने हेतु एक योजना को अनुमोदित किया है। यह योजना NDMA की योजना कार्यान्वयन इकाई (SIU) द्वारा कार्यान्वित की जा रही है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत वित्तीय व्यवस्थाएँ
- राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि (National Disaster Response Fund: NDRF)
यह किसी भीषण आपदा की आशंका से उत्पन्न स्थिति के कारण किए गए आपदा अनुक्रिया, राहत एवं पुनर्वास संबंधित व्यय की पूर्ति करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा प्रबंधित निधि है। किसी आपदा की स्थिति में यदि राहत अभियानों के लिए आवश्यक धनराशि, राज्य आपदा अनुक्रिया निधि के खाते में उपलब्ध राशि से अधिक है, तो राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि से अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। 11वें वित्त आयोग द्वारा आरंभ की गई राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि (National Calamity Contingency Fund: NCCF) का विलय भी राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि में कर दिया गया है। - राज्य आपदा अनुक्रिया निधि (State Disaster Response Fund: SDRF)
राज्य आपदा अनुक्रिया निधि (SDRF) का उपयोग केवल आपदा पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने में हुए व्यय की पूर्ति करने के लिए किया जाता है। स्थानीय संदर्भ में, ऐसी राज्य विशिष्ट आपदाएं जो आपदाओं की निर्दिष्ट सूची में सम्मिलित नहीं होती हैं, वे भी राज्य आपदा अनुक्रिया निधि से सहायता प्राप्त करने के योग्य होती हैं। राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि एवं राज्य आपदा अनुक्रिया निधि में आनुग्रहिक राहत, खोज और बचाव अभियानों, राहत उपायों, हेलीकॉप्टर द्वारा आवश्यक सामग्री की आपूर्ति, पेयजल की आपात आपर्ति. मलबे के प्रबंधन सहित प्रभावित क्षेत्र को साफ करने, कृषि, पशुपालन, मत्स्य-पालन, हस्तशिल्प, कारीगरों, क्षतिग्रस्त अवसंरचना (तात्कालिक प्रकृति की) की मरम्मत/पुनःस्थापन और क्षमता विकास (तत्काल प्रकृति) हेतु प्रावधान किया गया है। - राष्ट्रीय आपदा शमन निधि (National Disaster Mitigation Fund: NDMF) राष्ट्रीय आपदा शमन निधि (NDMF) का गठन नहीं किया गया है। सरकार के अनुसार वर्तमान में विभिन्न परियोजनाओं में शमन संबंधी उपायों के वित्त पोषण हेतु पर्याप्त योजनाएं विद्यमान हैं तथा पृथक राष्ट्रीय आपदा शमन निधि का निर्माण करने की आवश्यकता महसूस नहीं की गई है। राष्ट्रीय आपदा शमन निधि के निर्माण का उद्देश्य अनन्य रूप से शमन के उद्देश्य हेत संपन्न की जाने वाली परियोजनाओं हेतु वित्त की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति वर्तमान केंद्र प्रायोजित योजनाओं तथा केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं, यथा- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन, नमामि गंगे-राष्ट्रीय गंगा योजना, नदी बेसिन प्रबंधन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना एवं जल संसाधन प्रबंधन आदि द्वारा की जा रही है।
- राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया रिजर्व (National Disaster Response Reserve: NDRR)
13वें वित्त आयोग ने आपदा पश्चात् राहत सामग्री/ उपकरण की तत्काल आवश्यकता की पूर्ति करने हेतु 250 करोड़ रुपए की राशि के साथ NDRR के गठन की अनुशंसा की। NDRR के गठन का उद्देश्य ऐसी आपदाओं के पीड़ितों के कष्टों को कम करना है, जिनकी तत्काल सहायता करने में राज्य असमर्थ होते हैं। - आपदा प्रबंधन हेतु निधि जुटाने पर 14वां वित्त आयोग (14th Finance Commission on Fund Mobilisation for DM) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत की गई परिकल्पना के अनुरूप वित्त आयोग द्वारा आपदा प्रबंधन निधियों के वित्तपोषण संबंधी व्यवस्थाओं की समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है।
14वें वित्त आयोग की अनुशंसाएं इस प्रकार हैं:- इसने अनुशंसा की है कि राज्य आपदा राहत निधि (State Disaster Relief Fund:SDRF) के अंतर्गत उपलब्ध निधियों के 10% तक के भाग का उपयोग राज्य द्वारा ऐसी घटनाओं के लिए किया जा सकता है जिन्हें राज्य स्थानीय संदर्भ में 'आपदाएं' मानते हों तथा जो गृह मंत्रालय की अधिसूचित आपदाओं की सूची में सम्मिलित न हों।
- चूँकि NDRF का वित्तपोषण अभी तक पूर्णतया चयनित वस्तुओं पर उपकर का अधिरोपण करके किया जाता रहा है, अतः इसने अनुशंसा की है कि सभी उपकरों और उद्हणों के वस्तु एवं सेवा कर के अंतर्गत समाविष्ट होने के पश्चात् केंद्र सरकार को आपदा निधि के वित्तपोषण हेतु सुनिश्चित स्रोत निर्धारित करना चाहिए।
- 14वें वित्त आयोग ने आपदा प्रबंधन हेतु सभी राज्यों को 55000 करोड़ रुपए आवंटित करने
की अनुशंसा की है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की कमियाँ
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का कार्यान्वयन अत्यंत मंद एवं निष्क्रिय रहा है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना को 2006 से 2013 तक सात वर्ष के विलम्ब पश्चात अंतिम रूप प्रदान किया गया। योजना को अंतत: 2016 में जारी किया गया। इस अधिनियम में गैर सरकारी संगठनों (NGOs), निर्वाचित स्थानीय जनप्रतिनिधियों, स्थानीय समुदायों एवं नागरिक समूहों की भूमिका को गौण माना गया है। इस आधार पर इस अधिनियम की आलोचना की जाती है। इस पर एक पदानुक्रमवादी, नौकरशाही आधारित तथा आदेश एवं नियंत्रण वाले 'टॉप डाउन' दृष्टिकोण (जो केंद्र, राज्य एवं जिला प्राधिकरणों को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है) को पोषित करने का आरोप भी लगता रहा है।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General: CAG) द्वारा देश में आपदा प्रबंधन तंत्र की परफॉरमेंस ऑडिट रिपोर्ट 2013 में जारी की गई थी। CAG की रिपोर्ट में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की कार्यप्रणाली में कई अन्य कमियों को उजागर किया गया है।
- इसमें कहा गया है कि NDMA द्वारा जिम्मेदारी ली गयी प्रमुख परियोजनाओं में से कोई भी पूरी नहीं की गई। परियोजनाओं को या तो बीच में छोड़ दिया गया या आरंभिक निम्नस्तरीय योजना निर्माण के कारण उनकी पुनर्रचना की गई।
- CAG रिपोर्ट के अनुसार, NDMA आपदा शमन के उद्देश्य हेतु निधियों के प्रावधान की अनुशंसा तथा ऋण पुनर्भुगतान में राहत की अनुशंसा जैसे कई अन्य कार्यों का भी निष्पादन नहीं करता रहा है।
- इसने यह भी उजागर किया कि NDMA में कई महत्वपूर्ण पद रिक्त हैं और रोजमर्रा के कार्यों के लिए परामर्शदाताओं की सहायता ली जाती है
लोक लेखा समिति ने दिसंबर 2015 में 'भारत में आपदा तैयारी' विषय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें निम्नलिखित अवलोकन किए गए हैं:
- इस अधिनियम के अनुसार तीन महीने में कम से कम एक बार राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की बैठक का आयोजन करना आवश्यक है। हालांकि, यह पाया गया कि यहाँ तक कि जब 2007 में पश्चिम बंगाल में बाढ़ एवं राजस्थान में 2008 में भगदड़ जैसी आपदाएँ घटित हुईं तो भी समिति की बैठक कभी-कभार ही हुई।
- केंद्र, राज्य और जिलों में आपदा तैयारी व पुनःस्थापन हेतु प्रयुक्त की जा सकने वाली शमन निधियों का गठन नहीं किया गया।
- आपदा प्रबंधन के लिए संचार नेटवर्क की सुदृढीकरण हेतु आरम्भ की गई विभिन्न परियोजनाएं या तो नियोजन की अवस्था में थी या विलिम्बत थी।
CAG की रिपोर्ट के सारांश के अनुसार 2012 एवं 2017 के मध्य 219 टेलीमेट्रो स्टेशनों (बाढ़ पूर्वानुमान उपकरणों) की स्थापना करने के लक्ष्य के विरुद्ध अगस्त 2016 तक केवल 56 स्टेशन स्थापित किये गए थे और मौजूदा टेलीमेट्री स्टेशनों में से 59% क्रियाशील नहीं थे।
- राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) में 27% पद रिक्त थे। NDRF के प्रशिक्षण संस्थान, राष्ट्रीय आपदा मोचन संस्थान की स्थापना नहीं की गई थी, जबकि 2006 में इसे अनुमोदित कर दिया गया था।