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भावनात्मक प्रज्ञता: मानसिक आयु | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

परिचय

भावनात्मक प्रज्ञता को समझने से पहले हमें भावना व प्रज्ञता को अलग-अलग समझना होगा। यहाँ प्रज्ञता का आशय सविवेक से है। प्रज्ञता वह मानसिक शक्ति है जो वस्तुओं एवं तथ्यों को समझने, उनमें आपसी संबंध खोजने तथा तर्कपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होती है।
प्रज्ञता एक ऐसा सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हम अपने दिन-प्रतिदिन के बोल-चाल की भाषा में काफी करते हैं। तेजी से सीखने तथा समझने, अच्छे स्मरण, तार्किक चिन्तन आदि गुणों के लिए हम दिन-प्रतिदिन की भाषा में 'प्रज्ञता' शब्द का प्रयोग करते हैं।

स्टर्नवर्ग (Stermberg, 1986) के अनुसार प्रज्ञता की जितनी भी प्रमुख परिभाषाएँ दी गयी हैं, उन्हें मोटे तौर पर दो भागों में विभक्त किया जा सकता है- संक्रियात्मक परिभाषा (Operational definition) तथा वास्तविक परिभाषा। संक्रियात्मक परिभाषा से तात्पर्य वैसी परिभाषा से होता है जिसमें किसी अवधारणा (Concept) को उन तरीकों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिस ढंग से उसे मापा जाता है। जैसे वोरिंग (Boring. 1923) की परिभाषा इसी श्रेणी की है क्योंकि उन्होंने प्रज्ञता को परिभाषित करते हुए कहा है कि
“प्रज्ञता वही है जो प्रज्ञता परीक्षण मापता है" (Intelligence is what the intelligence test measures)। परन्तु प्रज्ञता की संक्रियात्मक परिभाषा में दो प्रमुख खामियाँ हैं जो इस प्रकार हैं:

  1. इस तरह की परिभाषा चक्रीय (circular) होती है। सचमुच में प्रज्ञता परीक्षण का निर्माण मापने के लिए न कि प्रज्ञता को परिभाषित करने के लिए किया गया। प्रज्ञता परीक्षण निर्माता का यह उद्देश्य कभी नहीं रहा कि प्रज्ञता परीक्षण के माध्यम से प्रज्ञता को परिभाषित किया जाए।
  2. संक्रियात्मक परिभाषाएँ प्रज्ञता के स्वरूप को ठीक ढंग से समझने में एक तरह का अवरोध उत्पन्न करती हैं क्योंकि ऐसी परिभाषाएँ प्रज्ञता के सिद्धान्तों की उपयुक्तता (adequacy) पर चर्चा आगे बढ़ने से रोकती हैं।

इन खामियों के कारण कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रज्ञता की वास्तविक परिभाषा प्रस्तावित की गयी है। वास्तविक परिभाषा से तात्पर्य वैसी परिभाषा से होती है जो अवधारणा के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डालती है। विशेषज्ञों द्वारा इसे ध्यान में रखते हुए प्रज्ञता की कई परिभाषाएँ दी गयी हैं जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  1. वेक्सलर (Wechsler, 1939) के अनुसार, "प्रज्ञता एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है जिनके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिन्तन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।
  2. रॉबिन्सन तथा रॉबिन्सन (Robinson & Robinson 1965)के अनुसार, “प्रज्ञता से तात्पर्य संज्ञानात्मक व्यवहारों (Cognitive behaviours) के सम्पूर्ण वर्ग से होता है जो व्यक्ति में सूझ द्वारा समस्या समाधान करने की क्षमता, नयी परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की क्षमता, अमर्त रूप से सोचने की क्षमता तथा अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता को दिखलाता है।" 
  3. निस्सेलर तथा उनके सहयोगियों (Neisser etc. 1996) जो अमेरिका मनोवैज्ञानिक संघ के एक कार्य बल में सम्मिलित थे, ने प्रज्ञता को परिभाषित करते हुए कहा है कि वह व्यक्ति की, “जटिल विचारों को समझने, पर्यावरण के साथ प्रभावी ढंग से समायोजन करने, अनुभवों से सीखने, विभिन्न तरह के तर्कणा में सम्मिलित होने और चिंतन द्वारा बाधाओं को दूर करने की क्षमता होती है।
  4. स्टोडार्ड (Stoddard, 1941) के अनुसार, “प्रज्ञता उन क्रियाओं को समझने की क्षमता है जिनकी विशेषताएँ- (1) कठिनता, (2) जटिलता, (3) अमूर्त्तता, (4) मितव्ययिता,(5) किसी लक्ष्य के प्रति अनुकूलनशीलता,(6) सामाजिक मान तथा (7) मौलिकता की उत्पत्ति होती है और कुछ परिस्थिति में वैसी क्रियाओं को जो शक्ति की एकाग्रता तथा सांवेगिक कारकों के प्रति प्रतिरोध (resistance) दिखलाता है, करने की प्रेरणा देती है।"

इन सभी परिभाषाओं की एक सामान्य विशेषता यह है कि इन परिभाषाओं में प्रज्ञता को कई तरह की क्षमताओं का योग माना गया है। यही कारण है कि ऐसी परिभाषाएँ काफी प्रचलित तथा लोकप्रिय है। इन परिभाषाओं का सामान्य विश्लेषण (common analysis) करने पर हम निम्नांकित तथ्य पर पहुंचते है

  1. प्रज्ञता विभिन्न क्षमताओं का सम्पूर्ण योग (aggregate) होती है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रज्ञता में किसी विशेष प्रकार की समस्या के समाधान की क्षमता नहीं होती है। इसमें कई प्रकार की क्षमताएँ होती हैं। इन क्षमताओं का पूर्ण योग ही प्रज्ञता कहलाता है।
  2. प्रज्ञता के सहारे व्यक्ति किसी समस्या के समाधान में सूझ (insight) का सहारा लेता है। इतना ही नहीं, किसी समस्या के समाधान में गत अनुभूतियों का लाभ वह इसी प्रज्ञता के कारण ही उठा पाता
  3. प्रज्ञता के सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ (purposeful act) करता है। जो व्यक्ति जितना ही अधिक उद्देश्यपूर्ण एवं सार्थक क्रियाएँ करता है, उसे उतना ही अधिक प्रज्ञतावान माना जाता है। निरर्थक तथा उद्देश्यहीन क्रियाएँ करने वाले व्यक्ति को कम प्रज्ञता वाला समझा जाता है। अत: प्रज्ञता का स्वरूप कुछ ऐसा होता है कि इसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यहीन क्रियाएं करता है।
  4. प्रज्ञता व्यक्ति को वातावरण के साथ प्रभावशाली ढंग से समायोजन (adjustment) या अनुकलन (adaptation) करने में मदद करता है। अधिक प्रज्ञता वाले व्यक्ति अपने काम को किसी भी वातावरण में ठीक ढंग से समायोजन कर लेते हैं। इन व्यक्तियों के समायोजन की क्षमता कम होती है और व्यक्ति में वातावरण से सम्बन्धित समायोजन की कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  5. प्रज्ञता से व्यक्ति में विवेकशील चिन्तन (rational thinking) तथा अमूर्त चिन्तन करने में मदद मिलती है। इसका मतलब यह हुआ कि जो व्यक्ति प्रज्ञतावान होता है, उसके सोचने एवं चिन्तन करने का तरीका विवेकपूर्ण, तर्कपूर्ण, एवं युक्तिसंगत होता है। ऐसे व्यक्तियों में अमूर्त चिन्तन की क्षमता भी अधिक होती है। कम प्रज्ञता वाले व्यक्ति का चिन्तन अविवेकपूर्ण तथा तर्कहीन होता है। ऐसे व्यक्ति में अमूर्त चिन्तन करने की क्षमता भी कम होती है। ऐसे व्यक्तियों में चिन्तन करने तथा कार्य करने में असंगति (inconsistency) अधिक पायी जाती है।
  6. प्रज्ञतावान व्यक्ति प्रायः कठिन एवं जटिल कार्य को समझकर करते हैं। इनके कार्यों में मौलिकता अधिक होती है।

ऊपर किये गए वर्णन से स्पष्ट है कि प्रज्ञता का स्वरूप कुछ ऐसा होता है जिसे किसी एक कारक या समता के आधार पर नहीं समझा जा सकता है। इसमें भिन्न-भिन्न प्रकार की क्षमताएँ होती है। थर्स्टन (Thurstone, 1938) ने अपने अध्ययन के आधार पर बतलाया है कि प्रज्ञता में कुल 7 ऐसी क्षमताएँ (abilities) होती हैं जिन्हें प्रधान मानसिक क्षमताएँ (primary mental abilities) कहा जाता है। गिलफोर्ड (Guilford, 1967) ने हाल ही में बतलाया है कि प्रज्ञता में कुल 180 ऐसी क्षमताएँ (abilities) होती हैं।

अभी हाल में वर्नन (PE. Vermon, 1969) ने प्रज्ञता अवधारणा के तीन अर्थ बतलाये हैं जो लोकप्रिय होने के साथ-ही-साथ आकर्षक भी दिखते है। पहले डोनाल्ड हेब्ब (Donald Hebb) जो एक कनाडियन मनोवैज्ञानिक थे, ने प्रज्ञता A तथा B में अन्तर किया था। बाद में, वर्नन (Vernon) ने इसमें प्रज्ञता C को जोड़ा। इन तीनों में अन्तर इस प्रकार हैं

  1. जननिक क्षमता के रूप में प्रज्ञता (Intelligence as genetic capacity)- इस अर्थ में प्रज्ञता पूर्णत वंशागत (inherited) होती है। इसे हेब्ब (Hebb, 1978) ने 'प्रज्ञता ए' (Intelligence 'A') कहा है जो स्पष्टतः प्रज्ञता का एक जीनोटाइपिक (genotypic) प्रकार है तथा इसमें प्रज्ञता को व्यक्ति का एक आनुवंशिक गुण माना जाता है।
  2. प्रेक्षित व्यवहार के रूप में प्रज्ञता (Intelligence as on observed behaviour)- इस अर्थ में प्रज्ञता व्यक्ति के जीन्स एवं वातावरण की अन्त:क्रिया (interaction) का परिणाम होता है तथा जिस सीमा तक व्यक्ति प्रज्ञतापूर्ण ढंग से व्यवहार करता है, उस सीमा तक उसे प्रज्ञतावान समझा जाता है। प्रज्ञता का यह अर्थ फेनोटाइपिक (phenotypic) प्रारूप का है। इसे हेब्ब (Hebb) ने प्रज्ञता 'B' (intelligence B) कहा है।
  3. परीक्षण के रूप में प्रज्ञता (intelligence asatest score)- इस अर्थ से प्रज्ञता का एक क्रियात्मक परिभाषा (operational definition) दी गयी। इस अर्थ में प्रज्ञता वही है जो प्रज्ञता परीक्षण मापता है। इसे  हेब्ब (Hebb) ने प्रज्ञता 'सी' (Intelligence 'C) की संज्ञा दी है।

सैट्लर (Settler, 1974) के अनुसार प्रज्ञता 'A', 'B' तथा 'C' में से प्रज्ञता 'C' के साथ कई तरह की समस्याएँ सम्बन्धित होती हैं, क्योंकि बहुत से ऐसे कारक हैं जो परीक्षार्थी के परीक्षण निष्पादन (test performance) को कम कर सकता है। इसमें परीक्षार्थी में अभिप्ररेणा की कमी, परीक्षण के स्वरूप से अनभिज्ञ होना, परीक्षण निष्पादन में ठीक से न समझना, परीक्षक के प्रति अविश्वास आदि प्रमुख हैं। जब परीक्षार्थी के परीक्षण निष्पादन में इन कारणों से कमी हो जाती है तो उसे भी प्रज्ञता 'C' के अर्थ के अनुसार कम प्रज्ञता का समझा जाएगा जबकि सच्चाई यह है कि इन कारणों के न होने पर उसका निष्पादन अच्छा हो सकता है। A, B तथा C प्रज्ञता में सिर्फ C प्रज्ञता का ही मापन प्रज्ञता परीक्षण द्वारा होता है।

प्रज्ञता का प्रकार (Types of Intellignce)


ई० एल० थॉर्नडाइक (EL. Thorndike) ने प्रज्ञता के तीन प्रकार बतलाये हैं जो इस प्रकार हैं

  1. सामाजिक प्रज्ञता (Social intelligence) 
  2. अमूर्त प्रज्ञता (Abstract intelligence) 
  3. मूर्त प्रज्ञता (Concrete intelligence) 

इन तीनों का विवरण इस प्रकार है

  1. सामाजिक प्रज्ञता (Social intelligence)- सामाजिक प्रज्ञता से तात्पर्य वैसी सामान्य मानसिक क्षमता से होता है, जिसके सहारे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को ठीक ढंग से समझता है तथा व्यवहारकुशलता दिखलाता है। ऐसे लोगों का सामाजिक सम्बन्ध काफी अच्छा होता है तथा समाज में इनकी प्रतिष्ठा काफी होती है। इनमें सामाजिक कौशल काफी होता है। यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति एक अच्छे नेता बन जाते।
  2. अमूर्त प्रज्ञता (Abstract intelligence)- अमूर्त चिन्तन से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता से होता है। जिसके सहारे व्यक्ति शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों एवं चिन्हों के सम्बन्धों को आसानी से समझ सकता है तथा उसकी उचित व्याख्या कर पाता है। ऐसा व्यक्ति जिसमें अमूर्त प्रज्ञता अधिक होता है, एक सफल कलाकार, पेन्टर तथा गणितज्ञ आदि होता है।
  3. मूर्त प्रज्ञता (Concrete intelligence)- मूर्त प्रज्ञता से तात्पर्य वैसी मानसिक क्षमता से होता है जिसके सहारे व्यक्ति ठोस वस्तुओं के महत्त्व को समझता है तथा उसका ठीक ढंग से भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में परिचालन करना सीखता है। इस तरह की प्रज्ञता की जरूरत व्यापार एवं भिन्न-भिन्न तरह के व्यवसायों में अधिकतर पड़ती है। ऐसे प्रज्ञता वाले व्यक्ति एक सफल व्यापारी बन सकते हैं।

इस तरह से हम देखते हैं कि प्रज्ञता के मुख्य तीन प्रकार हैं। इन प्रकारों के बीच कोई स्पष्ट रेखा नहीं है। ऐसा नहीं है कि जिसमें सामाजिक प्रज्ञता अधिक होगी, उसमें मूर्त प्रज्ञता तथा अमूर्त प्रज्ञता कम होगी और मूर्त प्रज्ञता अधिक होगी तो अमूर्त प्रज्ञता तथा सामाजिक प्रज्ञता कम होगी।

मानसिक आयु  


मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति की आयु को दो भागों में बाँटकर अध्ययन किया है1. तैथिक आयु (chronological age) 2. मानसिक आयु (mental age) 

  1. तैथिक आयु (Chronological age)- इससे तात्पर्य व्यक्ति के जन्म से लेकर आज तक के समय से होता है। जैसे मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को पैदा हुए 15 वर्ष 3 महीना 7 दिन आज तक हुआ है तो उसकी तैथिक आयु 15 वर्ष 3 महीना 7 दिन की होगी। इस तरह से तैधिक आयु व्यक्ति की वास्तविक आयु होती है जिसे जन्म के दिन से प्रारम्भ माना जाता है। 
  2. मानसिक आयु (Mental age)- एक-दूसरे तरह की आयु है जिसका काफी ज्यादा प्रयोग प्रज्ञता मापने में मनोवैज्ञानिकों ने किया है। इस अवधारणा का प्रतिपादन बिने (Binet) तथा साइमन (Simon) द्वारा किया गया था। वेड एवं टैबरिस (Wade & Tavris, 2006) ने मानसिक आयु को परिभाषित करते हुए कहा है,
    "किसी विशेष आय पर औसत मानसिक क्षमता को मानसिक विकास के रूप में की गयी अभिव्यक्ति की माप को मानसिक आयु कहा जाता है।" टुकमैन (Tuckman, 1975) ने मानसिक आयु को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह एक ऐसा प्राप्तांक है जिसका निर्धारण अपने ही उम्र या अपने से कम या अधिक उप के बच्चों के औसत निष्पादन के साथ तुलना करके किया जाता है। एक उदाहरण लीजिए, मान लिया जाय कि कोई बच्चा जिसकी तैधिक आयु या वास्तविक आयु 6 वर्ष की है. 8 वर्ष के बच्चे के लिए बने प्रज्ञता परीक्षण पर यह इस उप के लिए निर्धारित समस्या के समाधान में सफल हो जाता है, तो उस बच्चे की मानसिक आयु 8 वर्ष की होगी जबकि वास्तविक आयु 6 वर्ष की है। उसी तरह यह भी सम्भव है कि 6 वर्ष का बच्चा 4 वर्ष के बच्चों के लिए बने प्रज्ञता परीक्षण पर सफल हो परन्तु 6 वर्ष के बच्चों के लिए बने प्रक्षता परीक्षण पर सफल न हो। ऐसी अवस्था में उस बच्चे की तैथिक आयु तो 6 वर्ष की अवश्य है परन्तु उसकी मानसिक उम्र 4 वर्ष की ही है। यदि 6 वर्ष का बच्चा सिर्फ अपने ही उम्र की बच्चों के लिए बने प्रज्ञता परीक्षण पर सफल होता है। तो ऐसा कहा जाता है कि इस बच्चे की तैथिक आबु तथा मानसिक आयु के समान है, यानी बराबर-बराबर है।

ऊपर के उदाहरण से यह स्पष्ट है कि मानसिक आयु वास्तविक आयु या तैथिक आयु (Chronological age) से कम, अधिक या बराबर हो सकता है। जब मानसिक आयु तैथिक आयु से कम होता है, तो व्यक्ति मंद प्रज्ञता वाला समझा जाता है। जब मानसिक आयु तैथिक आयु से अधिक होता है, तो व्यक्ति तीव्र प्रज्ञता का समझा जाता है और जब मानसिक आयु तथा तैथिक आयु एक-दूसरे के बराबर होता है, तो व्यक्ति को सामान्य प्रज्ञता (normal intelligence) का समझा जाता है। इस तरह से हम देखते है कि मानसिक आयु के आधार पर व्यक्ति की प्रज्ञता के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है।

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