सिविल सेवक से ऐसी अपेक्षा कि जाती है कि उसके द्वारा लिये गये निर्णय किसी पूर्व धारणा या किसी पक्ष के समर्थन में न होकर वस्तुनिष्ठ मानकों पर आधारित हों। निष्पक्षता आधारित कार्य पूर्णत: न्याय संगत होते हैं। निष्पक्षता, न्याय का ही एक सिद्धान्त है।
निष्पक्षता के पक्ष
- प्रायः ऐसा देखा जाता है कि किसी योजना से सम्बन्धित निर्णय लेने का अधिकार आपके पास है लेकिन दो परिस्थितियों के बीच आप दुविधा में हैं कि यदि एक निर्णय लेते हैं जो आपके जानने वाले लोगों को लाभ पहुंच सकता है, लेकिन दूसरा निर्णय, विकास को बढ़ावा दे सकता है। अतः ऐसी स्थितियों में हमेशा ही न्याय संगत निर्णय लेना चाहिये, जो निष्पक्षता का ही रूप होगा।
- निष्पक्षता-युक्त कार्यों से गैर-तरफदारी को बढ़ावा मिलता है ऐसे निर्णय जो वस्तुनिष्ठता पर आधारित हों, देश के समावेशी विकास में सहायक होते हैं। जनता का शासन व प्रशासन के प्रति सहयोग व विश्वास बढ़ता है।
सामान्यत: ऐसी स्थितियाँ देखी जाती हैं जब प्रशासक ऐसे निर्णय लेते हैं जो कागजी तौर पर निष्पक्ष नहीं लगते, लेकिन व्यावहारिक तौर पर समाज के हित में होते हैं। अत: ऐसे निर्णयों को भी निष्पक्षता के दायरे में ही रखना चाहिये अर्थात्नि ष्पक्षता हमेशा काम्य नहीं है। कभी-कभी थोड़ा बहुत पक्षपात सामाजिक हित में वांछनीय हो सकता है।
राजनीतिक निष्पक्षता (Non-partisonship)
नौकरशाही के लिये राजनीतिक निष्पक्षता के मूल्य का विकास सबसे पहले ब्रिटेन में हुआ। वहाँ दो राजनीतिक पार्टियाँ बारी-बारी से सत्ता में आती थीं। अतः एक ऐसी नौकरशाही की जरूरत थी, जो दोनों के साथ काम कर सके। मैक्स वेबर ने भी तटस्थ नौकरशाही की अवधारणा दी। तटस्थ नौकरशाही का मतलब किसी दल विशेष से जुडाव न होना। व्यापक रूप में इसमें यह भी शामिल है, कि लोक सेवक किसी दल विशेष के प्रति निष्ठा जैसा भाव भी न रखते हों और वे सभी दलों के प्रति तटस्थ होकर राजकीय नीतियों को लागू करने का प्रयास करें।
वर्तमान समय में राजनीतिक निष्पक्षता, प्रशासनिक कार्यों में सबसे बड़ी नैतिक दुविधा है। प्रशासनिक कार्यों में राजनीतिक निष्पक्षता की कमी के कारण भ्रष्टाचार के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यों में राजनीतिक हस्तक्षेन भी बढ़ता है। प्रलोभन, पदोन्नति आदि की लालसा से राजनीतिक निर्णय या तरफदारी सामान्य नागरिक व सरकारी तंत्र के बीच विश्वास के स्तम्भ को कमजोर बनाते हैं। हालांकि कानूनी तौर से भारत में प्रशासनिक अधिकारियों को राजनीतिक प्रतिबद्धता रखने से मनाही है। वे राजनीतिक प्रचार, भाषण, लेख व सभाओं में भाग नहीं ले सकते।
कमजोर वर्गों के प्रति सहिष्णुता एवं करुणा (Tolerance and compassion towards the weaker sections)
सहिष्णुता एवं करुणा को सिविल सेवा के मूलभूत मूल्यों (
foundational values) के रूप में माना जाता है। सिविल सेवा में गतिशील, मानवीय जनकल्याण केन्द्रित भूमिका होती है। सर्दन पार्वती लॉ सेन्टर ने सहिष्णुता को परिभाषित करते हुए कहा है कि, "
यह हमारी विश्व की संस्कृतियों, अभिव्यक्ति के रूपों और मानव होने के तरीकों की समृद्ध विविधता के प्रति सम्मान, स्वीकृति और प्रशंसा है" (It is respect, acceptance and appreciation of rich diversity of our world's cultures, our forms of expression and ways of being human)
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहिष्णुता को मतभेत में सद्भाव (
harmony in difference) के रूप में परिभाषित किया है। यूनेस्को के अनुसार, सहिष्णुता केवल एक नैतिक कर्तव्य न होकर एक राजनीतिक व वैधानिक आवश्यकता भी है। यह युद्ध की बजाय शांति, विवाद की बजाय सहमति की दशा प्राप्त करने की एक महत्वपूण शर्त है।
सिविल सेवा के संदर्भ में सहिष्णुता की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह प्रशासन के लिए नैतिक दशाओं जैसे मानवधिकारों का संरक्षण, बहुलवाद (विशेषकर सांस्कृतिक बहुलवाद), लोकतंत्र में निष्ठा एवं विधि के शासन आदि को निर्मित करने में सहायता प्रदान करती है। सहिष्णुता के गुण के चलते ही सामाजिक अन्याय की स्थितियों के उन्मूलन का भाव लोक सेवकों में आता है। इस प्रकार सहिष्णुता की लोक सेवा में बहुआयामी भूमिका होती है।
करुणा एक मूलभूत गुण के रूप में (Compassion as a foundational value)
करुणा को सिविल सेवा के एक महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में माना जाता है। करुणा किसी दूसरे व्यक्ति या समुदाय के प्रति सहानुभूति संवेदना, दया भाव, मानवीयता की स्थिति है जो लोक सेवक के निर्णय को महत्वपूर्ण रूप में प्रभावित करती है। कमजोर वर्गों के प्रति विविध अत्याचारों (atrocities) से निपटने, विस्थापन की समस्या से ग्रसित व्यक्तियों व समुदायों के अधिकारों के पक्ष में कार्य करने के लिए करुणा जैसे मूल्यों द्वारा ही उत्पेरक का कार्य किया जाता है। झुग्गी झोपड़ियों (Slums) में रह रहे लोगों के जीवन जीने की अमानवीय दशाओं व अस्वास्थ्यप्रद स्थितियों के निराकरण के प्रयत्न भी करुणा जैसे गुणों के साथ सहयुक्त होकर ही किये जाते हैं।
- दूसरों द्वारा महसूस की जा रही भावनाओं को पहचाने की क्षमता ही सहानुभूति है। दूसरे शब्दों में दूसरों की नजरों से दुनिया को देखना ही सहानुभूति है। समाज के कमजोर वर्गों के प्रति सिविल सेवकों की सहानुभूति से तात्पर्य है कमजोर वर्गों की स्थिति, भावनाओं एवं उद्देश्यों को जानना। यह उनकी चिंताओं को जानने की क्षमता भी है।
- ब्रिटिश साम्राज्य ने जो सिविल सेवा बनाई थी, वह अभिजात तथा रूढ़िवादी थी और ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा रखती थी। लेकिन स्वतंत्रता के बाद भारत में एक लोकतांत्रिक, कल्याणकारी, राज्य की स्थापना हुई है, जहाँ ऐसे लोक सेवकों की जरूरत है जो समावेशी विकास को बढ़ावा दें। हालांकि कई रिर्पोटों में ऐसा बताया गया है, कि भारतीय प्रशासक भी उस ब्रिटिश लोक सेवा अभिजात मानसिकता से पूर्णत: निकल नहीं पाये हैं। यही कारण है- सिविल सेवा में सुधार पर गठित वाई. के. अलख कमेटी रिपोर्ट में कड़े शब्दों में कहा गया था कि यह एक लोकप्रिय धारणा है कि सिविल सेवा, शासक मानसिकता से ग्रसित है, जो कभी भी विनम्र मानवीय व्यवहार को प्रदर्शित नहीं करते और निर्णयन में पारदर्शिता से पूर्णत: वंचित हैं और अपने अस्तित्व तथा सिविल स्वार्थों में ही तल्लीन प्रतीत होते हैं। उनका यह व्यवहार तब और स्पष्ट हो जाता है जब उन्हें समाज के कमजोर वर्गों की आवश्यकताओं की देखरेख के लिए बुलाया जाता है खासकर तब जब नीतियों के क्रियान्वयन के क्रम में समाज के प्रभावशाली लोगों की हितों से संघर्ष की नौबत आती है। परिणामस्वरूप न्याय का उद्देश्य, निष्पक्षता, कमजोर वर्गों का विकास व कल्याण को स्वाभावतः भुगतना पड़ता है।
- योजना आयोग के पूर्व सचिव डॉ. एन.सी.सक्सेना ने योजना आयोग को अपनी रिपोर्ट प्रशासन और लोक उच्चतर नौकरशाही में क्रांतिकारी सुधार की जरूरत में कहा था कि नौकरशाह विगत वर्षों में समाज के गरीब तबकों के प्रति संवेदनहीन और यहां तक कि विरोधी हो गये हैं। कोई जिलाधिकारी आज अपने प्रदर्शन से कहीं अधिक ऊंचे दर्जे का जीवन जीता है। वह महलरूपी बंगले में रहता है जिसके चारों ओर नौकर व कर्मचारियों की फौज होती है, जहां तक गरीब लोगों की पहुंच मुश्किल हो जाती है। वह जिले के राजनीतिज्ञों एवं विशेषाधिकार लोगों से मिलता है और अपना अधिकांश समय राज्य की राजधानी व दिल्ली में बेहतर पोस्टिंग की कवायद में गुजरता है। जिला के विभिन्न गांवों में जिलाधिकारियों का रात्रि ठहराव तो शायद ही सुना जाता है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह लोगों के प्रति उत्तरदायी हों, खासकर असंगठित गरीबों के प्रति वह इस बात से खुश रहता है कि उसे किसी जातिवादी नेता का समर्थन हासिल है जो जिले में उसके आरामदायक ठहराव को सुनिश्चित करता है। ऐसा नहीं है कि कमजोर वर्गों के प्रति विलगाव केवल निम्न स्तरीय अधिकारी तक सीमित है, यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारी उनके प्रति निष्ठुर होते हैं। इस तरह की उन्मुखता के गंभीर परिणाम होते हैं।
- ऐसा देखा जाता है कि कमजोर वर्गों के प्रति सहिष्णुता का स्तर नौकरशाही में उल्लेखनीय नहीं है जिसकी चर्चा दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी की है और इस संबंध में सिफारिशें भी की हैं। अत: सिविल सेवकों को अपने नाम के अनुरूप यदि कर्त्तव्य निर्वाहन करना है, तो समाज के इन सामाजिक, आर्थिक रूप से वंचित लोगों के प्रति सहानुभूति का भाव रखना चाहिये, क्योंकि किसी भी लोकतंत्र का प्राथमिक लक्ष्य समतामूलक व्यवहार सुनिश्चित करना है। दूसरी ओर एक सिविल सेवक लोकतंत्र के सुचारू क्रियान्वयन में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। ऐसी स्थिति में आवश्यक है, कि लोक सेवकों में कमजोर वर्गों के प्रति सहानुभूति की भावना हो, ताकि इन वर्गों को समुचित अवसर उपलब्ध कराकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके।