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लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य तथा आचार स्थिति वं समस्याएं | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आचार की संकल्पना


एक व्यक्तिनिष्ठ (Subjective) धारणा है आचार जिसका व्यक्ति के अंत: करण (Inner conscience) और अंतः प्रज्ञा व्यक्ति की सोच, मनोवृत्ति, व्यवहार, मनोविज्ञान, चयनों एवं क्रिया को प्रभावित करती है। दूसरे शब्दों में अंत:करण व अंत:करण द्वारा उत्प्रेरित आचार (Ethics) ऐसे नियम और सिद्धांत के रूप में परिभाषित किये जा सकते हैं जो व्यक्तियों के व्यवहारों, उचित-अनुचित अच्छे-बुरे में भेद को स्पष्ट करता है। ऐसे में आचार की महत्ता इसलिए अत्यधिक हो जाती है कि यह विविध पदों पर स्थित, व्यक्तियों को सही, उचित, निष्पक्ष, न्यायपूर्ण निर्णय विकल्प के चुनने व कार्य निष्पादन को बढ़ावा देता है।

आचार की आश्वयकता क्यों?


यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है कि सिविल सेवा अथवा लोक सेवा में आचार की आवश्यकता क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर इस एक वाक्य में निहित है कि तर्क (Veason/logic) कानून प्रक्रिया और औपचारिकताओं की बेहतर  निर्णय निर्माण के संदर्भ में अपनी सीमितताएं होती हैं। उदाहरण के लिए यदि महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित कानून में महिला को वस्त्रहीन करने (disrobing) अथवा उसे घूरने, उसका पीछा करने व ताक-झाँक (Voyurism) करने के संबंध में औपचारिक दंडात्मक प्रावधान कर दिये गये और दोष के लिए प्रक्रियाएं निर्धारित कर दी गयीं तो वास्तविक रूप में इस अपराध में संलग्न न होने वाले व्यक्ति को नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यहां आचार (Ethics) का महत्व यह है कि वह लैंगिक रूप से तटस्थ (Gender-Neutral) विधायनों का प्रस्ताव करेगी।
गलत निर्णय से पीड़ित व्यक्ति को मुक्त करने के लिए अपराध करने की परिस्थितियों व दशाओं को ध्यान में रखकर निर्णयों की पुन: समीक्षा करना निर्णय के आचार शास्त्रीय पक्ष (Ethical aspect) को उजागर करता है।

इन बातों के अतिरिक्त सिविल सेवा में आचार की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं में व्यक्त किया जा सकता है:

  • प्रशासन में निष्पक्षता, पारदर्शिता व जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिए ताकि भ्रष्टाचार अथवा भ्रष्ट आचारों, भाई-भतीजावाद (Nepotism) सार्वजनिक पद के दुरुपयोग जैसी स्थितियों से बचा जा सके।
  • लोक सेवा में आचार की आवश्यकता समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए परानुभूति (Empathy) और सहानुभूति (Sympathy) के भावों के विकास के लिए आवश्यक है। यह प्रशासन में नैतिक समावेशन (Moral inclusion) की संकल्पना की पृष्ठभूमि तैयार करता है।
  • प्रशासनिक निर्णयों को न्यायपूर्ण बनाने व जनता की प्रशासन में निष्ठा व विश्वास को सुरक्षित कर सुशासन (Good-governance)की नींव रखने में आचार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • आचार की व्यापक व बहुआयामी महत्व वाली धारणा है जो सिविल सेवकों में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सत्यनिष्ठा जैसे गुणों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • लोकोपकारी अथवा लोककल्याण की दृष्टि से सिविल सेवकों को सोचने पर बाध्य करने की दृष्टि से आचार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • सिविल सेवा अथवा लोक सेवा में कई प्रकार की नकारात्मक प्रवृत्तियों व भावों जैसे प्रभुत्व की भावना (Feeling of domination), अधीनस्थों के साथ अनुचित व्यवहार (inappropriate behaviour with subordinates) मनमाना व्यवहार (arbitrary behaviour), अनुशासनहीनता, शक्ति व पद का दुरुपयोग (Misuse of power and post), स्वयं को जनता का मालिक समझना (Toconsider themselves as the masters of people) के उन्मूलन व जनकेन्द्रित (people-centric) सोच के विकास में आचार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • आचार संक्षेप में प्रशासन में मानवीय गुणों (humance attributes) और मानवीय हस्तक्षेपों (humanitarian interventions) को बढ़ावा देता है। यह जनता के प्रति प्रशासन की लापरवाही, अकर्मण्यता व यथास्थितिवादी रवैये को तोड़ता है। इन्हीं आधारों पर प्रशासन में नैतिक व एथिकल आधारों पर त्यागपत्र देने की परंपरा भी शुरू हुई। एथिकल आधारों पर ही किसी घटित घटना की जिम्मेदारी ली जाती है और दोषियों को बिना किसी रियायत के सजा का समर्थन किया जाता है।

नैतिक समावेशन की संकल्पना (Concept of moral inclusion)

समाज के नैतिक विकास की मुख्य धारा से कटे हुए लोगों (जैसे भ्रष्टाचारियों, बलात्कारी, आतंकवादी, मादक पदार्थों की अवैध तस्करी, मानव दुर्व्यापार, अनैतिक देह व्यापार में संलग्न स्त्रिायां आदि में उचित-अनुचित के भावों को विकसित कर समाज द्वारा स्वीकृत मानकों व आदर्शों के अनुरूप व्यवहार की प्रेरणा देकर) को इस धारा से जोड़ने की प्रक्रिया नैतिक समावेशन कहलाती है। मादक पदार्थों के व्यसनी व्यक्तियों के शारीरिक व मानसिक पुनर्वास भी रणनीतिक नैतिक समावेशन का ही उदहारण है। प्रशासनिक, अमानवीयता का मार्ग न अपनाकर समाज व व्यवस्था विरोधी तत्वों के प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण को अपना नैतिक समवोशन की संकल्पना को सुदृढ़ कर सकता है। उदाहरण के लिए भारत की प्रथम महिला आई.पी.एस अधिकारी किरण बेदी द्वारा तिहाड़ जेल के कैदियों के प्रति अपनाया गया सुधारात्मक रवैया इस दृष्टि से काफी सफल रहा।
समाज में विविध अनैतिक कृत्यों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, खाप पंचायतों के असंवैधानिक एवं तानाशाही फरमान, बाल अपराध, महिलाओं के प्रति अपराध, अपहरण, हत्या, डकैती आदि को प्रशासन द्वारा विविध स्तरों पर विविध साधनों से अनैतिक सिद्ध करने के बारंबार प्रयास (टीवी., समाचार पत्र, रेडियो, वरिष्ठ जनों अथवा बुजुर्गों की चौपाल आदि) से भी समाज में नैतिक समावेशन की धारणा को मजबूती मिल सकती है।

लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्य


लोक प्रशासन में लोक/सिविल सेवा मूल्यों के संदर्भ में इग्लैंड के सार्वजनिक जीवन में निर्धारित किये गये 7 सिद्धांतों का उल्लेख करना समीचीन होगा। ये 7 सिद्धांत जो लोक सेवा मूल्यों को स्पष्ट करते हैं, निम्नवत् हैं

  1. निःस्वार्थता (Selflessness): लोक सेवा मूल्य के रूप में नि:स्वार्थता का आशय है कि लोक पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा निर्णय पूर्णत: जनहित के दृष्टिकोण से किये जाएँ। लोक पदों पर आसीन व्यक्तियों को स्वयं, अपने परिवार व मित्रों के लिए वित्तीय व अन्य लाभों को ध्यान में रखकर कार्य न करना नि:स्वार्थता का गुण है, यह प्रशासन के जनकेंद्रित, कल्याणकारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
  2. वस्तनिष्ठता (Objectivity): वस्तुनिष्ठता लोक सेवा का महत्वपूर्ण मूल्य है। यह प्रशासन में निष्पक्षता, भेदभाव युक्त प्रशासन, पूर्वाग्रहों से परे उचित निर्णय करने व उचित कदम उठाने के लिए आवश्यक मूल्य के रूप में माना जाता है। वस्तुनिष्ठता के मूल्य के ही चलते लोक सेवकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे लोक व्यवसायों के संचालन (Carrying out public business) लोक नियुक्तियों के मामलों में, ठेका देने (Awarding contracts) अथवा किसी व्यक्ति को लाभ प्रदान करने के मामलों में योग्यता, दक्षता, कुशलता पर ध्यान केन्द्रित करें। प्रशासन को लाल फीताशाही (Red tepism) भाई-भतीजावाद (Nepotism) श्वेत वसन अपराधों (white collar crime) से बचाने के लिए वैषयिकता के मूल्यों को अधिक सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  3. जवाबदेहिता (Accountability): लोक सेवा अथवा लोक पदों पर आसीन व्यक्तियों को अपने निर्णयों एवं कार्यों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह होना एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक मूल्य है। गलत आचरण करने पर अपने खिलाफ जांच पड़ताल व पदमुक्ति के लिए तैयार रहना भी जवाबदेही के मूल्य के अंतर्गत आता है। राजनीतिक सूत्रों व प्रभावों से सिविल सेवकों की लापरवाहियों व कदाचारों के बावजूद उन्हें बचाने के प्रयासों पर रोक लगाकर बेहतर जवाबदेहिता तंत्र (Accountability mechanism) का विकसित किया जा सकता है।
  4. खुलापन (openness): लोक सेवकों को अपने निर्णयों व कार्यों के संदर्भ में खुलापन रखना भी एक लोक सेवा मुल्य है। सिविल सेवकों को अपने निर्णयन के कारणों को बताने के लिए तैयार रहना चाहिए। किन परिस्थितियों व किन कारणों से कोई विशेष निर्णय सिविल सेवकों द्वारा लिया गया है। (उदाहरण के लिए धारा 144 का प्रयोग, कपयूं लगाना आदि) को स्पष्ट करने से जनता का प्रशासन में विश्वास बढ़ता है। इसके साथ ही लोक सेवकों द्वारा जनहित के चलते किसी महत्वपूर्ण सूचना को सार्वजनिक न करने का निर्णय भी लिया जाना आवश्यक है।
  5. ईमानदारी (Honesty): लोक सेवकों को निजी व सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों के लोगों के हितों को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से ईमानदारीपूर्वक कार्य करना अपेक्षित है। विभिन्न विवादों, समस्याओं का कुशलतापूर्वक निस्तारण (Skillful resolution) प्रशासनिक मूल्य के रूप में देखा जाता है।
  6. नेतृत्व (Leadership): लोक सेवकों में नेतृत्व का गुण प्रशासनिक संरचना का महत्वपूर्ण भाग है। असामान्य परिस्थितियों जैसे सांप्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा, संगठित अपराध की स्थिति में नेतृत्व ही प्रमुख लोक सेवा मूल्य के रूप में समस्या से निपटने में सक्षमता प्रदान करता है।
  7. अखण्डता (Integrity): लोकसेवकों को किसी वित्तीय अथवा अन्य दायित्वों के वशीभूत होकर व्यक्तियों व संस्थाओं के हित के विरुद्ध कार्य नहीं करना चाहिए और अपने कार्यों के निष्पादन के दौरान  आधिकारिक कर्तव्यों (Official duties) को निभाने के क्रम में किसी अनपेक्षित बात से प्रभावित नहीं होना चाहिए। इससे प्रशासन में अखण्डता जैसे मूल्यों का विकास होता हैं।

लोक सेवा मूल्य वास्तव में वो बुनियादी इकाईयां जो एक नैतिक शासन (Ethical governance) के लिए दशाएं निर्मित करती है।

लोक सेवा में आचार के प्रबंधन हेतु सिद्धांत


लोक सेवा में आचार के प्रबंधन हेतु निम्नांकित सिद्धांतों पर कार्य किया जाना आवश्यक है:

  • लोक सेवा के लिए आचारशास्त्रीय मानक प्रतिमान स्पष्ट होने चाहिए (Ethical standards for public service should be clear): लोक सेवकों को अपने कार्य करने के दौरान किन बुनियादी सिद्धांतों व मानकों को ध्यान में रखना चाहिए अथवा उनके कार्यवाहियों की क्या सीमितताएं हैं? यह जानना आवश्यक है। इसलिए लोक सेवा को मार्ग निर्देशन देने वाली केन्द्रीय आचारशास्त्रीय मानकों एव सिद्धांतों का एक संक्षिप्त व सुप्रचारित वक्तव्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए एक आचार संहिता (Code of conduct) निर्धारित कर प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यवाहियों हेतु आचारशास्त्रीय मानक निर्धारित किये जाते हैं। 
  • आचारशास्त्रीय मानक/प्रतिमान वैधानिक रूपरेखाओं में प्रतिविम्बित होने चाहिए (Ethical standards should be reflected in the legal framework): रूपरेखा किसी भी लोक सेवक को न्यूनतम अनिवार्य मानकों (Minimum obligatory standards) और व्यवहार हेतु सिद्धांतों को स्पष्ट करने में सहायता होता है। विधियाँ व विनियम लोक सेवा के बुनियादी मूल्यों के बारे में बताते हैं और वैधानिक रूपरेखाएं सिविल सेवकों को मार्गदर्शन (Guidance), जाँच (Investigation), अनुशासनात्मक कार्यवाहियों (Disciplinary action) और अभियोग (prosecution) के संदर्भ में दिशा निर्देशित करने में भूमिका निभा सकती है।
  • लोक सेवकों को आचारशास्त्रीय मार्गदर्शन उपलब्ध होना चाहिए (Ethical guidence should be available to public servants should know their rights and obligations when exposing wrong doing):  लोक सेवकों को यह जानने की आवश्यकता है कि लोक सेवा के अंतर्गत किसी वास्तविक अथवा संभावित कुकृत्य का पर्दाफाश करने के संदर्भ में उनके अधिकार एवं दायित्व क्या है? अपने अधि कार एवं दायित्व के परे जाकर निहित स्वार्थों, राजनीतिक दबावों. पूर्वाग्रह व पक्षपात के प्रभाव में आकर कार्य करना अवांछनीय है। लोक सेवकों को आचारगत (ethical) भावों से जोड़ने के लिए यह भी अपेक्षित है कि उनके अधिकारों एवं दायित्वों के संदर्भ में नियम व प्रक्रियाएं सुस्पष्ट हों, जिनके पालन की आशा सिविल सेवकों से की गयी है और इस प्रकार दायित्वों की एक औपचारिक श्रृंखला (Formal chain ofresponsibility) होना चाहिए। लोक सेवकों को यह भी जानना आवश्यक है कि कुकृत्यों वाले मामलों का पर्दाफाश करने के क्रम में उन्हें किस प्रकार का संरक्षण प्राप्त होगा।
  • आचार हेतु राजनीतिक प्रतिबद्धताओं द्वारा लोक सेवकों के नैतिक आचारण को बल प्रदान किया WAT HET (Political commitment of ethics should reinforce the ethical conduct of public servants): राजनीतिक नेता अपने आधिकारिक दायित्वों के निष्पादन में एक उच्च मानक को बनाये रखने हेतु जिम्मेदार होते हैं। उनकी प्रतिबद्धताएं राजनीतिक स्तर की जाने वाली कार्यवाहियों व पहलों में प्रदर्शित होती हैं। उदाहरण के लिए राजनीतिक नेताओं द्वारा विधायी (Legislative) और संस्थागत व्यवस्थापनों (institutional arrangements) के जरिये आचारगत् व्यवहार प्रदर्शित किये जाते है। उदाहरण के लिए भारतीय राजव्यवस्था के अंतर्गत लोकपाल व लोकायुक्त के पद के गठन हेतु विधायन, व्हिसलब्लोअर के संरक्षण के लिए विधेयन, कंपनी विधेयक में निगमीय सामाजिक उत्तरदायित्व हेतु वैधानिक प्रावधान को अनिवार्य करना, राजनीति के अपराधीकरण को रोकने हेतु चुनावी उम्मीदवारी के दौरान शपथपूर्वक हलफनामा दाखिला किया जाना आदि, आचारगत व्यवहारों को बढ़ावा देने हेतु राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के उदाहरण हैं। इन आचार आधारित गतिविधियों के माध्यम से सिविल सेवकों नैतिक आचरण करने की दिशा में अग्रसर किया जा सकता है।
  • निर्णय-निर्माण प्रक्रिया पारदर्शी व छानबीन के लिए खुली होनी चाहिए (The decision-making process should be transparent and open to scrutiny): जनता को एक लोकतांत्रिक व सभ्य देश में यह जानने का अधिकार है कि लोक संस्थाएँ (public institutions) किस प्रकार शक्ति, सत्ता व संसाधनों का इस्तेमाल करती हैं। इस संदर्भ में लोक छानबीन (Public scrutiny) पारदर्शी व लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के तहत्  होनी चाहिए और इसका निरीक्षण विधायिका व लोकसूचना तक पहुँच द्वार होना चाहिए। उदाहरण के लिए लोक निधियों का इस्तेमाल कल्याणकारी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किस स्तर तक किया गया है? एमपीलैंड्स स्कीम के तहत् सांसदों द्वारा क्षेत्र विकास के लिए लोक व्यय कुशलतापूर्वक हुआ है या नहीं? मनरेगा के तहत आवंटित धन का अकुशल श्रमिकों के हित में उपयोग हुआ है अथवा नहीं? इन समस्त प्रश्नों का उत्तर प्रशासन से जानने का अधिकार है। किसी योजना अथवा कार्यक्रम में किसी खास वर्ग अथवा समुदाय को क्यों उपेक्षित किया गया है अथवा किसी क्षेत्र विशेष पर वांछित जोर क्यों नहीं दिया गया है? इन समस्त प्रश्नों के उत्तर प्रशासन को सहभागितामूलक व अनुक्रियाशील (Responsive) बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
  • लोक व निजी क्षेत्रकों के मध्य अंर्तसंपर्क हेतु स्पष्ट दिशानिर्देश होना चाहिए (There should be clear guidelines for interaction between the public and private sectors): निजी क्षेत्र से विविध मामलों में निपटने के लिए आचारगत मानकों द्वारा परिभाषित स्पष्ट नियमों का होना आवश्यक है और इन्हें लोक सेवकों के व्यवहारों हेतु मार्गदर्शन करने वाला होना चाहिए। जैसे लोक सेवकों को पब्लिक प्रोक्योरमेंट (Public procurement), आउटसोर्सिंग व लोक रोजगार दशाओं हेतु आचारगत पक्षों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।  लोक व निजी क्षेत्र के बीच वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में बढ़ता अंत:संपर्क इस बात पर ध्यान देने के लिए पर्याप्त है कि लोक सेवा मूल्यों को प्रशासनिक कार्य निष्पादन में उचित स्थान प्रदान किया जाय। इस बात का ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि नौकरशाही अथवा लोक सेवा पर राजनीतिक प्रभावों के साथ-साथ निजी क्षेत्र, उद्योगों, कॉरपोरेट घरानों, बड़े उद्यमियों का प्रभाव व दखलंदाजी बढ़ी है। नीरा राडिया टेप प्रकरण इस दिशा में अच्छा उदाहरण है। उल्लेखनीय है कि वोहरा समिति ने 1998 में ही स्पष्ट कर दिया था कि नौकरशाही व उद्योगपतियों के मध्य एक नकारात्मक गठजोड़ (Nexus) है।लोक सेवा में निष्पक्षता व वैषमिकता, पूर्वाग्रह व पक्षपात से मुक्ति इस दिशा में होना जरूरी है। निजी क्षेत्र की इकाईयों को किसी कार्य में दोषी पाये जाने पर उन्हें रियायत देने की किसी भी सोंच से लोक सेवाओं को मुक्त होना जरूरी है।
  • प्रबंधकों नैतिक आचरण का प्रदर्शन और प्रचार करना चाहिए  (Managers should demonstrate and promote ethical conduct): उच्च मानकों वाले एक संगठनात्मक वातावरण (Organisational environment) में यदि आचारगत व्यवहारों के लिए उपयुक्त अभिप्रेरणा (Appropriate incentives) जैसे उपर्युक्त कार्य की दशाएँ, प्रभावी निष्पादन मूल्यांकन आदि को प्रबंधकों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, तो इसका लोक सेवा मूल्यों के दैनिक अभ्यासों व आचारगत मानकों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्रबंधकों द्वारा इस दिशा में एक सुसम्बद्ध नेतृत्व प्रदान किया जाना लोक सेवकों व नागरिकों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

  • प्रबंधन नीतियों, प्रक्रियाओं और प्रैक्टिसों को नैतिक आचरण को बढ़ावा देना चाहिए (Man agement policies, procedures and practices should promote ethical conduct): प्रबंधन नीतियों व प्रैक्टिसों को एक संगठन के आचारगत मानकों के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करना चाहिए। चूंकि आचार 'सीख' का विषय है। अतः प्रबंधन नीतियों के तहत विवादों के निस्तारण के सहयोगपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण तरीके, कर्मचारियों के प्रति मित्रता व समन्वय के भाव, सहिष्णु व्यवहार, अनुशासनप्रियता, समयबद्धता आदि के जरिये नैतिक आचरणों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिसका लोक सेवकों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए नीतियों, प्रक्रियाओं में स्पष्ट किया होता है कि यदि विधि का अतिक्रमण नहीं किया जा रहा है तो इसका मतलब है कि लोक प्राधिकारी नैतिक रूप से कार्य कर रहा है। इससे लोक सेवा मूल्यों को आत्मसात् करने में मदद मिलती है।

  • लोक सेवा दशाओं और मानव संसाधनों के प्रबंधन द्वारा नैतिक आचरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। (Public service conditions and management of human resources should promote ethical conduct):  लोकसेवा रोजागार दशाओं जैसे कैरियर प्रास्पेक्ट्स, व्यक्तिगत विकास, पर्याप्त पारिश्रमिक (Adequate remuneration) और मानव संसाधन प्रबंधन नीतियों को एक ऐसे वातावरण का नीतियों को एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने वाला होना चाहिए जो आचारगत व्यवहारों की दृष्टि से अनुकूल हो। बुनियादी सिद्धांतों जैसे योग्यता (Merit) दैनिक भर्ती व प्रमोशन प्रक्रिया में सम्बद्धता (Consistency in the daily process of recruitment) आदि का प्रयोग करके लोक सेवा में अखण्डता (integrity) की नीव डाली जा सकती है।

  • लोक सेवा के अंदर पर्याप्त जवाबदेहिता मेकेनिज्म को स्थान दिया जाना चाहिए (Adeqate accountability mechanisms should be in place within the public service): लोक सेवा में आचारगत पक्षों (Ethical aspects) के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि लोक सेवक अपने कार्यों के लिए अपने वरिष्ठों (Seniors) के प्रति और अधिक व्यापक रूप में जनता के प्रति जवाबदेह रहें। जवाबदेहिता के तहत सिविल सेवकों द्वारा दो बातों को ध्यान रखा जाना जरूरी है प्रथम, जो अपेक्षित एवं वांछनीय दायित्व कर्तव्य है, उसे ही पूरा किया जाय और द्वितीय, लोक सेवा कार्यवाहियों के परिणामों की उपलब्धि पर ध्यान रखा जाना।
     जवाबदेहिता मेकेनिज्म को किसी सरकारी अभिकरण अथवा सिविल सोसाइटी के माध्यम से सुनिश्चित किया जा सकता है।

  • गलत आचरणों से निपटने के लिए उपयुक्त प्रक्रियाएं व प्रतिबंध होने चाहिए (Appropriate procedures and sanctions should exist to deal with misconduct): कुकृत्यों जैसे भ्रष्टाचार, शक्ति का दुरुपयोग, कदाचार की पहचान और स्वतंत्र जाँच के लिए मेकेनिज्म का होना आचार संरचना (Ethics infrastucture) का आवश्यक भाग है। लोक सेवा नियमों को तोड़ने अथवा उनका उल्लेखन की दशा में विश्वसनीय प्रक्रियाओं (reliable procedures) और ई-निगरानी, रिपोर्टिंग एवं जाँच पड़ताल के लिए संसाधनों का होना आवश्यक है। इसके साथ ही गलत आचरणों को हतोत्साहित करने के लिए प्रशासनिक व अनुशासनात्मक कार्यवाहियों व प्रतिबंधों का प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है।

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