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विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध (नक्सलवाद) | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

विकास की अवधारणा एवं भारत में विकास

  • विकास को एक बहुपक्षीय विषय के रूप में देखा जा सकता है। इसमें आर्थिक विकास के साथ-साथ शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर, समाज में महिलाओं की स्थिति, पोषण तथा आवास की उपलब्धता, वस्तुओं और सेवाओं तक लोगों की पहुंच आदि को शामिल किया जा सकता है।
    भारत में अनेक राज्य हैं तथा इन राज्यों में सामाजिक एवं आर्थिक विकास में असमानताएँ है। विभिन्न राज्यों में गरीबी, भुखमरी, आवास संबंधी समस्याएँ व्याप्त है। बेकारी अथवा बेरोजगारी सबसे प्रमुख समस्या है। जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण मांग एवं पूर्ति में अंतर ने समस्या को और बढ़ा दिया है।
  • विकास के लाभों का असमान वितरण एक ऐसे सापेक्षिक वंचना के भाव को जन्म देता है जो वंचित एवं बहिष्कृत वर्गों में व्यवस्था की विश्वसनीयता को धूमिल कर देता है। कोई भी व्यक्ति या समुदाय किसी व्यवस्था से अपनापन तभी महसूस करता है जब उसे इस बात का विश्वास हो कि उसकी बुनियादी आवश्यकताओं, उसके मौलिक अधिकार, उसकी सभ्यता व संस्कृति के प्रति सरकार संवेदनशील है। सामाजिक-आर्थिक न्याय के प्रति शासन की संवेदनशीलता इसकी कसौटी है।
  • 1990 के दशक में नई आर्थिक नीति को अपनाए जाने के बाद भारत ने उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया। लेकिन व्यवस्था में विभिन्न स्तर पर बिचौलियों की उपस्थिति, मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति से आधारभूत स्तर (ग्राम स्तर) पर खासकर आदिवासी क्षेत्रों तथा पिछड़े क्षेत्रों में आम जनता के शोषण के कई साधन (जैसे साहूकारी प्रथा आदि) विद्यमान रहे। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि विकास समावेशी नहीं था। अतः बेरोजगारी एवं असमान विकास से उपजे सामाजिक-आर्थिक असंतुलन से अलगाववाद एवं अलग व्यवस्था के पक्षधर लोगों को बढ़ावा मिला है और यह उग्रवाद के रूप में सामने आया है।

उग्रवाद का अर्थ

भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में वे व्यक्ति या समूह जो लोकतंत्र की जगह एक ऐसी व्यवस्था के पक्षधर हैं जो संवैधानिक व्यवस्थाओं को महत्त्व न देते हुए हिंसक गतिविधियों का उपयोग कर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं, उग्रवादी के नाम से जाने जाते हैं और उनकी इस विचारधारा को ही उग्रवाद कहा जाता है।

  • वायु सेना आदि में इस भावना का होना कि रक्षा नीति-निर्माण में थल सेना का प्रभुत्व है। ऐसा माना जाता है कि 'चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)' के परिणामस्वरूप वर्ष 1947 से पूर्व की स्थिति के समान स्थिति उत्पन्न न हो जाए, क्योंकि उस समय थल सेना बहुत अधिक प्रभुत्वपूर्ण सेना थी।
  • सिविल नौकरशाही के अंतर्गत भी इनकी (CDS) नियुक्ति को लेकर विरोध है, क्योंकि इससे उच्च रक्षा व्यवस्था पर उनका नियंत्रण कम होने की संभावना है।
  • एक समस्या यह भी है कि यह एक ऐसा पद है, जो बिना किसी स्पष्ट उत्तरदायित्व एवं भूमिका के केवल एक औपचारिक पद बनकर रह सकता है।

वर्तमान संरचना

इस कमेटी में सेना, वायुसेना तथा नौसेना के प्रमुख सम्मिलित होते हैं, साथ ही यह एक ऐसा मंच भी है, जहाँ पर तीनों सेना प्रमुख महत्त्वपूर्ण सैन्य मामलों पर चर्चा करते हैं। इस कमेटी की अध्यक्षता तीनों प्रमुखों में से वरिष्ठतम के द्वारा सेवानिवृत्त होने तक रोटेशन के आधार पर की जाती है।

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