सहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ है, सहन करना। सहिष्णुता का अर्थ है, ऐसे लोग जो आपके धर्म, विचार, राष्ट्रीयता, आदि से भिन्नता या विरोध रखते हैं। उसके प्रति भी एक वस्तुनिष्ठ, न्यायोचित तथा सम्मानपूर्वक मनोवृत्ति बनाये रखना तथा किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचना। समय के साथ सहिष्णुता के अर्थ में परिवर्तन आते रहे है। आज वर्तमान में शिक्षा, सद्भाव की भावना व राष्ट्रीयता के विकास के कारण सहिष्णुता यानि दूसरों के विचारों को सुनना, उन्हें अपने तार्किक मतों से संतुष्ट करना या उनका पक्ष सही है तो उसे स्वीकार करना आदि मनोवृत्ति में वृद्धि हुई है। प्राचीन काल में अशोक, मध्यकाल में अकबर व आधुनिक काल में महात्मा गांधी, सहिष्णुता के अद्भुत उदाहरण है। पश्चिम में इरास्मस ने पुनर्जागरण काल में सहिष्णुता का विचार दिया।
समानुभूति शब्द की बहुत सारी परिभाषा है। लेकिन वृहद स्तर पर ये कुछ सामान्य सी बातें करती हैं। जैसे दूसरों की देखभाल करना, दूसरों की मदद की इच्छा रखना, संवेगों का अनुमान करना और अपने संवेगों को दूसरों से जोड़ना, और यह जानना कि दूसरे व्यक्ति की विचार भावनाएँ क्या हैं, के लिए अपने उसके बीच के अंतर को धूमिल करना।
समानुभूति की आवधारण दूसरो से संवेगों की मानसिक अवस्था को समझने को अपने में शामिल करती हैं। दूसरों के संवेगों को समझने के लिए दूसरों के शारीरिक हाव-भाव को समझना अति आवश्यक हो जाता है। इस अर्थ में व्यक्ति के विश्वास व उसकी इच्छाओं का केन्द्रीय महत्व हो जाता है। बिना किसी के विश्वासों, इच्छाओं को जाने हुए उसके संवेगों के सही अर्थ को नहीं जाना जा सकता है और इस प्रकार समानुभूति को नहीं जाना जा सकता है।
समानुभूति के लिए दूसरों के संवेगों को जानने के लिए कल्पनात्मक होना भी आवश्यक है। बिना कल्पनात्मक हुए दूसरों की स्थिति के बारे में खुद को रखकर उनका सही ज्ञान नहीं हो सकता साथ ही सहिष्णुता का गुण समानुभूति के लिए अति आवश्यक है क्योंकि दूसरों के संवेगों को जानने के लिए उसके विचारों को, उसकी बातों को सुनना और उनके हिसाब से सोचना अति आवश्यक है।
उनकी भावनाओं एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तद्नुरूप कदम भी उठाने चाहिये।
तद्नुभूति (Empathy) न केवल लोगों में संवाद स्थापित करने में मदद करता है बल्कि यह नागरिकों पर
सफलतापूर्वक प्रभाव भी डालता है तथा यह पारस्परिक समझ को बढ़ावा देता है।
करूणा (Compassion) बनाम सहानुभूति (Sympathy)
करूणा और सहानुभूति दोनों मानव जीवन के संवेगात्मक पक्ष से संबंधित है। करूणा इच्छित न होकर अंत: करण से सम्बन्धित है। दूसरों की कठिनाईयों को समझना और उसे दूर करने की चाहत ही करूणा है। गरीब एवं जरूरतमंद, जो अपनी आवाज स्वयं नहीं उठा सकते, अपनी स्थिति को स्वयं परिवर्तित नहीं कर सकते, उनकी आवाज बनना तथा उनकी स्थिति में परिवर्तन लाना ही करूणा को इंगित करता है।सहानुभूति में केवल हमदर्दी का भाव रहता है। हम ऐसा कहते हैं, कि 'मुझे आपके प्रति हमदर्दी है।' इसका मतलब है कि 'मैं आपके बारे में यह मानता हूँ कि आप अभी अच्छी स्थिति में नहीं हैं।
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