बोलते समय हमारे मुँह से ध्वनियाँ निकलती हैं। इन ध्वनियों के छोटे से छोटे टुकड़े को वर्ण कहा जाता है। इन्हीं वर्गों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं। वर्णों का सार्थक एवं व्यवस्थित मेल शब्द कहलाता है।
उदाहरण – आ + ग् + अ + म् + अ + न् + अ = आगमन
प् + उ + स् + त् + अ + क् + अ = पुस्तक
प् + र् + आ + च् + ई + न् + अ = प्राचीन
क् + ष् + अ + त् + र् + इ + य् + अ = क्षत्रिय
शब्द कोश में रहते हैं तथा एक निश्चित अर्थ का बोध कराते हैं; जैसे-लड़का, आम, खा। पद-शब्दों के साथ जब विभक्ति चिह्नों या परसर्गों का प्रयोग करके तथा व्याकरणिक नियमों में बाँधकर वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तब वही शब्द पद बन जाते हैं; जैसे –
लड़के ने आम खाया।
परसर्ग का प्रयोग
लड़के आम खाएँगे।
(व्याकरण सम्मत नियमों का प्रयोग)
1. कोशीय शब्द-वे शब्द जो शब्दकोश में मिलते हैं और जिनका अर्थ कोश में प्राप्त हो जाए; जैसे-बाल, क्षेत्र, कृषक, पुष्प, शशि, रवि आदि।
2. व्याकरणिक शब्द-वे शब्द जो व्याकरणिक कार्य करते हैं, उन्हें व्याकरणिक शब्द कहते हैं।
जैसे-वृद्धा से अब चला नहीं जाता।
घायल से लड़ा नहीं जाता।
यहाँ रेखांकित अंश ‘जाता’ व्याकरणिक शब्द है।
(क) सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाने वाले गांधी जी का नाम विश्व प्रसिद्ध है।
(ख) पटेल के आदर्शों पर चलने वाले आज भी बहुत मिल जाएँगे।
(ग) हमेशा बक-बक करने वाले तुम, आज मौन क्यों हो?
इन वाक्यों के रेखांकित अंश क्रमशः संज्ञा, विशेषण और सर्वनाम पदबंध हैं।
हिंदी में जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है उनके स्रोत भिन्न-भिन्न हैं। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि से आये शब्दों के कारण रूप बदल गया है।
शब्दों के भेद निम्नलिखित आधार पर किए जाते हैं –
(क) तत्सम शब्द-जो शब्द अपरिवर्तित रूप में संस्कृत भाषा से लिए गए हैं या जिन्हें संस्कृत के मूल शब्दों से संस्कृत के ही
प्रत्यय लगाकर नवनिर्मित किया गया है, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।
तत्सम शब्द दो शब्दों से बना है, ‘तत्’ और ‘सम’ जिसका अर्थ है उसके अनुसार अर्थात् संस्कृत के अनुसार। तत्सम शब्दों के कुछ उदाहरण-प्रौद्योगिकी, आकाशवाणी, आयुक्त, स्वप्न, कूप, उलूक, चूर्ण, चौर, यथावत, कर्म, कच्छप, कृषक, कोकिल, अक्षि, तैल, तीर्थ, चैत्र, तपस्वी, तृण, त्रयोदश, कन्दुक, उच्च, दश, दीपक, धूलि, नासिका आदि।
(ख) तद्भव शब्द-जो शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न तो हुए हैं, पर उन्हें ज्यों का त्यों हिंदी में प्रयोग नहीं किया जाता है। इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है। इनको तद्भव शब्द कहते हैं।
तद्भव शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है; जैसे – ‘तद्’ और ‘भव’। जिसका अर्थ है-उसी से उत्पन्न।
तद्भव शब्दों के कुछ उदाहरण – काजर, सूरज, रतन, परीच्छा, किशन, अँधेरा, अनाड़ी, ईख, कुम्हार, ताँबा, जोति, जीभ, ग्वाल, करतब, कान, साँवला, साँप, सावन, भाप, लोहा, मारग, मक्खी , भीषण, पूरब, पाहन, बहरा, बिस आदि।
(ग) देशज शब्द-वे शब्द जिनका स्रोत संस्कृत नहीं है किंतु वे भारत में ग्राम्य क्षेत्रों अथवा जनजातियों में बोली जाने वाली तथा संस्कृत से भिन्न भाषा परिवारों के हैं। देशज शब्द कहलाते हैं। ये शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।
देशज शब्दों के कुछ उदाहरण-कपास, अंगोछा, खिड़की, ठेठ, टाँग, झोला, रोटी, लकड़ी, लागू, खटिया, डिबिया, तेंतुआ, थैला, पड़ोसी, खोट, पगिया, घरौंदा, चूड़ी, जूता, दाल, ठेस, ठक-ठक, झाड़ आदि।
(घ) आगत या विदेशी शब्द-विदेशी भाषाओं से संपर्क के कारण अनेक शब्द हिंदी में प्रयोग होने लगे हैं। ये शब्द ही आगत या विदेशी शब्द कहलाते हैं। हिंदी में प्रयुक्त विदेशी शब्द निम्नलिखित हैं –
(क) रूढ़ शब्द-जिन शब्दों के सार्थक खंड न किए जा सकें तथा जो शब्द लंबे समय से किसी विशेष अर्थ के लिए प्रयोग हो रहे हैं, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं।
रूढ़ शब्द के कुछ उदाहरण-ऊपर (ऊ + प + र), नीचे (नी + चे), पैर (पै + र), कच्चा (क + च् + चा), कमल (क + म + ल), फूल (फू + ल), वृक्ष (वृ + क्ष), रथ (र + थ), पत्ता (प + त् + ता) आदि।
(ख) यौगिक शब्द-दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों द्वारा निर्मित शब्दों को यौगिक शब्द कहते हैं। यौगिक शब्दों के कुछ
उदाहरण –
रसोईघर = रसोई + घर
अनजान = अन + जान
अभिमानी = अभि + मानी
पाठशाला = पाठ + शाला
रेलगाड़ी = रेल + गाड़ी
ईमानदार = ईमान + दार
हिमालय = हिम + आलय
हमसफ़र = हम + सफ़र
आज्ञार्थ = आज्ञा + अर्थ
वाचनालयाध्यक्ष = वाचन + आलय + अध्यक्ष
(ग) योगरूढ़ शब्द-जो यौगिक शब्द किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं।
योगरूढ़ शब्दों के उदाहरण –
चिड़ियाघर = चिड़िया + घर = शाब्दिक अर्थ = पक्षियों का घर।
विशेष अर्थ = सभी प्रकार के पशु-पक्षियों के रखे जाने का स्थान ।
पंकज = पंक + ज = शाब्दिक अर्थ = कीचड़ में उत्पन्न।
विशेष अर्थ = कमल।
श्वेतांबरा = श्वेत + अंबर + आ = शाब्दिक अर्थ = सफ़ेद वस्त्रों वाली।
विशेष अर्थ = सरस्वती।
नीलकंठ = नील + कंठ शाब्दिक अर्थ = नीला कंठ।
विशेष अर्थ = शिव जी।
दशानन = दश + आनन = शाब्दिक अर्थ = दस मुँह वाला।
विशेष अर्थ = रावण।
लंबोदर = लंबा + उदर = शाब्दिक अर्थ = लंबे उदर वाला।
विशेष अर्थ = गणेश।
(क) सामान्य शब्द-जिन शब्दों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में होता है, उन्हें सामान्य शब्द कहते हैं। उदाहरण-रोटी, पुस्तक, कलम, साइकिल, शिशु, मेज़, लड़का आदि।
(ख) अर्ध तकनीकी शब्द-जो शब्द दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में भी प्रयोग में लाए जाते हैं तथा किसी विशेष उद्देश्य के लिए ही इनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें अर्ध तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – दावा, आदेश, रस।
(ग) तकनीकी शब्द-किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग की जाने वाली शब्दावली के शब्दों को तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – विधि (कानून) के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले शब्द – विधि, विधेयक, संविधान, प्रविधि आदि।
इसी प्रकार–प्रशासन, बैंक, चिकित्सा, विज्ञान, अर्थशास्त्र के क्षेत्रों से संबंधित शब्द हैं-महानिदेशक, आयोग, समिति, कार्यवृत्त, सीमा शुल्क, सूचकांक, पदोन्नति, शेयर, कार्यशाला, आरक्षण आदि।
साहित्य में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है – संधि, समास, उपसर्ग, रूपक, दोहा, रस आदि।
(क) निरर्थक शब्द-जो शब्द अर्थहीन होते हैं, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द सार्थक शब्दों के पीछे लग उनका अर्थ-विस्तार करते हैं।
उदाहरण-
(ख) सार्थक शब्द-जिन शब्दों का कुछ न कुछ अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।
उदाहरण – कोयल, पशु, विचित्र, कर्तव्य, संसार आदि।
सार्थक शब्द अनेक प्रकार के है –
(i) एकार्थी शब्द-जिन शब्दों का केवल एक निश्चित अर्थ होता है, वे एकार्थी शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण-हाथी, ईश्वर, पति, पुस्तक, शत्रु, मित्र, कमरा आदि।
(ii) अनेकार्थी शब्द-जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं।
उदाहरण- अर्थ – मतलब, प्रयोजन, धन।
कर – हाथ, टैक्स, किरण।
अंबर – आकाश, कपड़ा, सुगंधित पदार्थ।
काल – समय, अवधि, मौसम।
आम – सामान्य, एक फल, मामूली।
काम – कार्य, मतलब, संबंध, नौकरी।
(iii) समानार्थी या पर्यायवाची शब्द-जो शब्द एक समान (लगभग एक सा ही) अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। पर्याय का अर्थ है दूसरा अर्थात् उसी प्रयोजन या वस्तु के लिए दूसरा शब्द। इनका अर्थ लगभग एक समान होता है पर पूर्ण रूप से समान नहीं।
उदाहरण – कमल – शतदल, वारिज, जलज, नीरज, पंकज, अंबुज।
पेड़ – विटप, पादप, वृक्ष, द्रुम, रूख, तरु।
आकाश – नभ, गगन, आसमान, अंबर।
पक्षी – खग, विहग, विहंगम, द्विज, खेचर।
धरती – भू, भूमि, धरा, वसुंधरा।
अँधेरा – अंधकार, तम, तिमिर, हवांत।
(iv) विपरीतार्थक शब्द-हिंदी भाषा के प्रचलित शब्दों के विपरीत अर्थ देने वाले शब्दों को विपरीतार्थक शब्द कहते हैं।
उदाहरण – कटु – मधुर
आदि – अंत
उपकार – अपकार
हार – जीत
अनुज – अग्रज
आदर – निरादर, अनादर
आय – व्यय
चतुर – मूर्ख
वाक्यों में प्रयुक्त शब्दों अर्थात् पदों को पाँच भेदों में बाँटा जाता है
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा-जिन संज्ञा शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान एवं वस्तु का बोध हो, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – भगत सिंह, ताजमहल, कुरान, रामायण, भारत, लाल किला, कुतुबमीनार आदि। शब्द एवं पद में अंतर
(ख) जातिवाचक संज्ञा-जो संज्ञा शब्द किसी एक ही जाति के प्राणियों, वस्तुओं एवं स्थानों का बोध करवाते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – लड़का, पर्वत, ग्रह, खिलाड़ी, पशु, पक्षी, मित्र, भवन, शहर, इमारत आदि।
जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं –
(ग) भाववाचक संज्ञा – जो संज्ञा शब्द, गुण, कर्म, दशा, अवस्था आदि भावों का बोध करवाते हैं, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण – सुंदरता, लंबाई, बचपन, भूख, चोरी, घृणा, क्रोध, ममता, चुनाव, लालिमा आदि।
सर्वनाम के निम्नलिखित छह भेद माने जाते हैं –
(क) पुरुषवाचक सर्वनाम
(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम
(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम
(घ) संबंधवाचक सर्वनाम
(ङ) प्रश्नवाचक सर्वनाम
(च) निजवाचक सर्वनाम
(क) पुरुषवाचक सर्वनाम-वक्ता स्वयं अपने लिए, श्रोता के लिए अथवा किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण – हम, तुम, ये, तू, मैं, वे आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम के निम्नलिखित तीन उपभेद हैं –
उदाहरण – वह, वे, यह, ये, उसका, उसे, उन्हें आदि।
(ख) निश्चयवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से पास या दूर स्थित वस्तुओं या प्राणियों का बोध हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण-
उपर्युक्त वाक्यों में यह, वे, वह, ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं।
(ग) अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनामों से निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध ना हों, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –
(घ) संबंधवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम शब्द किसी अन्य (प्रायः अपने उपवाक्य से पूर्व) उपवाक्य में प्रयुक्त संज्ञा व सर्वनाम से संबंध बताते हैं, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –
(ङ) प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए जाता है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण –
(च) निजवाचक सर्वनाम-जो शब्द वाक्य में कर्ता के साथ आकर अपनेपन का बोध कराते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम
कहते हैं।
उदाहरण –
(क) धरती गोल है।
(ख) राजेश ईमानदार बालक है।
(ग) यह महँगी पुस्तक है।
(घ) मेरी कक्षा में पचास छात्र हैं।
(ङ) ये फूल खुशबूदार है।
(च) पके आम स्वादिष्ट होते हैं।
विशेष्य-विशेषण जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उस संज्ञा या सर्वनाम को विशेष्य कहते हैं।
उदाहरण – धरती, बालक, पुस्तक, छात्र, फूल, आम आदि उपर्युक्त उदाहरणों में विशेष्य हैं।
प्रविशेषण-विशेषणों की विशेषता बताने वाले विशेषण को प्रविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(क) वह बहुत चालाक है।
(ख) रमेश अत्यंत शौकीन है।
(ग) राजेश बेहद ईमानदार है।
(घ) इस साल अत्यल्प वर्षा हुई।
मुख्य रूप से विशेषण के चार भेद होते हैं –
(क) गुणवाचक विशेषण
(ख) संख्यावाचक विशेषण
(ग) परिमाणवाचक विशेषण
(घ) संकेतवाचक विशेषण या सार्वनामिक विशेषण
(क) गुणवाचक विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण-दोष (भाव, रंग, आकार, प्रकार, स्वाद, गंध, देश काल, स्पर्श एवं दशा आदि) का बोध करवाते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(ख) संख्यावाचक विशेषण-जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या-संबंधी विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक
विशेषण कहते हैं।
उदाहरण-
संख्यावाचक विशेषण के दो उपभेद हैं –
(ग) परिमाणवाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों से उनके विशेष्य की माप-तौल (मात्रा) का बोध हो, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
परिमाणवाचक विशेषण के दो उपभेद हैं –
(घ) संकेतवाचक विशेषण-जब सर्वनाम शब्द संज्ञा शब्दों से पहले लगकर विशेषण शब्दों का कार्य करते हैं या उसकी ओर संकेत करते हैं, तो उन्हें संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(क) श्याम लिख रहा है।
(ख) बच्चा सो रहा है।
(ग) राम प्रतिदिन मैदान में खेलता है।
(घ) पतंग बहुत ऊँचाई पर उड़ रही है।
(ङ) कविता चित्र बनाती है।
(च) भौरे फूलों पर गुंजार कर रहे हैं।
(छ) किसान फ़सल की सिंचाई कर चुके थे।
(ज) थका हुआ मज़दूर जल्दी सो गया।
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं –
(क) अकर्मक क्रिया
(ख) सकर्मक क्रिया
(क) अकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा नहीं रहती, वे अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण –
(ख) सकर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा रहती है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –
सकर्मक क्रिया के दो उपभेद हैं –
1. एककर्मक क्रिया-जो सकर्मक क्रियाएँ केवल एक कर्म के साथ प्रयुक्त होती हैं, उन्हें एककर्मक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
2. द्विकर्मक क्रिया-जिस वाक्य में क्रिया के साथ दो कर्म प्रयुक्त होते हैं, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
रचना अथवा बनावट के आधार पर क्रिया के भेद –
(क) सरल क्रिया-रूढ़ अर्थों में वाक्य में प्रयोग की जाने वाली साधारण क्रिया को सरल क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
(ख) संयुक्त क्रिया-जब दो या दो से अधिक क्रिया शब्द मिलकर पूर्ण क्रिया का बोध कराएँ, तो वह क्रिया संयुक्त क्रिया कहलाती है।
उदाहरण –
(ग) प्रेरणार्थक क्रिया-जिन क्रियाओं द्वारा कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करे, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –
इस क्रिया में दो कर्ता होते हैं।
(घ) नामधातु क्रिया-जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से बनाई जाती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण –
(ङ) पूर्वकालिक क्रिया-वाक्य में मुख्य क्रिया से पूर्व प्रयुक्त संपन्न होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
(च) मुख्य क्रिया-जो क्रियाएँ वाक्य में मुख्य कार्य करने का बोध कराती हैं, उन्हें मुख्य क्रिया कहते हैं।
उदाहरण –
अव्यय के पाँच भेद हैं –
(क) क्रियाविशेषण
(ख) संबंधबोधक
(ग) समुच्चयबोधक
(घ) विस्मयादिबोधक
(ङ) निपात
(क) क्रियाविशेषण-जो अव्यय क्रिया की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
क्रियाविशेषण के चार भेद होते हैं –
(i) रीतिवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के होने की रीति का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(ii) स्थानवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के घटित होने के स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(iii) कालवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के घटित होने अथवा करने का समय (काल) का बोध कराते हैं, उन्हें कालवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण-
(iv) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण-जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण –
(ख) संबंधबोधक-संबंधबोधक वे अव्यय या अविकारी शब्द हैं जो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं।
उदाहरण –
(ग) समुच्चयबोधक-जो अव्यय शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं।
उदाहरण –
(घ) विस्मयादिबोधक-जो अव्यय आश्चर्य, घृणा, हर्ष, लज्जा, ग्लानि, पीड़ा, दुख आदि मनोभावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।
उदाहरण –
(ङ) निपात-जो अव्यय वाक्य में किसी शब्द के बाद लगकर उसके अर्थ पर विशेष प्रकार का बल देते हैं, उन्हें निपात शब्द कहते हैं।
उदाहरण –
प्रश्नः 1.
शब्द से आप क्या समझते हैं ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
वर्णों के सार्थक एवं व्यवस्थित मेल को शब्द कहते हैं।
उदाहरण – क् + अ + म् + अ + ल् + ए + श् + अ = कमलेश
व् + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ = विद्यालय
प्रश्नः 2.
पद किसे कहते हैं? पदों के उदाहरण भी लिखिए।
उत्तरः
शब्द स्वतंत्र होते हैं परंतु यही शब्द व्याकरण के नियमों में बाँधकर जब वाक्य में प्रयोग किए जाते हैं तब वे पद बन जाते हैं।
उदाहरण – लड़कों ने कई खेलों में भाग लिया।
यहाँ रेखांकित अंश पद हैं।
प्रश्नः 3.
स्रोत के आधार पर शब्द कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखिए।
उत्तरः
स्रोत के आधार पर शब्द चार प्रचार के होते हैं। ये हैं –
(क) तत्सम शब्द
(ख) तद्भव शब्द
(ग) देशज शब्द
(घ) विदेशी शब्द
प्रश्न 4.
विदेशज शब्दों से आप क्या समझते हैं?
उत्तरः
वे शब्द जो विदेशी भाषा से हिंदी में आए हैं और बोलचाल तथा लेखन में प्रयोग किए जा रहे हैं, उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
उदाहरण – बस, टेलीफ़ोन, चाय, चीनी, रोटी, किताब, स्टेशन, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, शर्ट, बटन आदि।
प्रश्नः 5.
रचना या बनावट के आधार पर शब्द कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए।
उत्तरः
रचना या बनावट के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं। ये हैं
(क) रूढ़ शब्द
(ख) यौगिक शब्द
(ग) योगरूढ़ शब्द
प्रश्नः 6.
यौगिक शब्दों से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तरः
जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दांशों या शब्दों के मेल से बनते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं। जैसे –
जंतु + शाला = जंतुशाला
कलम + दान = कलमदान
मुसाफ़िर + खाना = मुसाफ़िरखाना
फल + वाला = फलवाला
प्रश्नः 7.
निपात किसे कहते हैं? कोई तीन निपात लिखकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तरः
जो अव्यय किसी शब्द के बाद आकर उसके अर्थ पर विशेष बल देते हैं, उन्हें निपात कहते हैं। तीन मुख्य निपात हैं –
तक – मरीज से बोला तक नहीं जाता है।
ही – रमन ने ही यह गमला तोड़ा है।
तो – तुम तो पहले झूठ नहीं बोलते थे।