निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस का नाम बताइए:
प्रश्न 1. दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माही। ।
गावत गीत सबै मिलि सुंदरि वेद जुआ जुरि विप्र पढ़ाही। |
राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाहीं॥
याते सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥
उत्तर: संयोग शृंगार रस
प्रश्न 2. बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौहिं करै भौहन हँसै, देन कहे नरिजाय ॥
उत्तर: संयोग शृंगार रस
प्रश्न 3. कहत, नटत रीझत खिझत हँसत मिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नयनन ही सो बात॥
उत्तर: संयोग शृंगार रस
प्रश्न 4. खद्दर कुरता भकभकौ, नेता जैसी चाल।
येहि बानक मो मन बसौ, सदा विहारी लाल॥
उत्तर: हास्य रस
प्रश्न 5. तन मन सेजि जरै अगि दाहू। सब कहँ चंद भयउ मोहिराहू॥
चहूँ खंड लागे अँधियारा। जो घर नाही कंत पियारा॥
उत्तर: वियोग शृंगार रस
प्रश्न 6. भाषे लखन कुटिल भई भौंहें।
रद फुट फरकट नैन रिसौंहें ।
उत्तर: रौद्र रस
प्रश्न 7. जाके प्रिय न राम बैदेही।
तजिए उसे कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
तज्योपिता प्रहलाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितनि, भय मुद-मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै बहुतक कहौ कहाँ लौं।
तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासो होत सनेह राम पद ऐतो मतो हमारे ॥
उत्तर: शांत रस
प्रश्न 8. पौरि के किंवार देत धरै सबै गारिदेत
साधुन को दोष देत प्राति न चहत हैं।
माँगते को ज्वाब देत, बात कहै रोयदेत,
लेत-देत भाज देत ऐसे निबहत है।
मागेहुँ के बंद देत बारन की गाँठ देत
धोती की काँछ देत देतई रहत है।
ऐसे पै सबैई कहै, दाऊ, कछू देत नाहि,
दाऊ जो आठो याम देतई रहत है।
उत्तर: हास्य रस
प्रश्न 9. राम नाम मणि दीप धरि, जीह देहरी द्वार।
तुलसी बाहर भीतरेहु जो चाहत उजियार ॥
उत्तर: शांत रस
प्रश्न 10. ‘ यशोदा हरि पालने झुलावे।
हलरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै।
मेरे लाल को आउ निदरिया काहे न आनि सोवावै।
तू काहे ना बेगि सो आवै तोको कान्ह बुलावै।
उत्तर: वात्सल्य रस
प्रश्न 11. सखिन्ह रचा पिउ संग हिंडोला। हरियल भूमि कुसुंभी चोला॥
हिय हिंडोल अस डोले मोरा। विरह झुलाइ देत झकझोरा ॥
उत्तर: वियोग शृंगार रस
प्रश्न 12. मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, स्याम हरित दुति होय॥
उत्तर: शांत रस
प्रश्न 13. बाने फहराने घहराने घंटा गजन के,
नाही ठहराने, राव राने देश-देश के।
नग भहराने, ग्राम नगर पराने सुनि,
बाजत निसाने शिवराज जू नरेश के।
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के
मौन की भजाने अलि छूटे लट केश के।
दल के दरारन ते कमठ करारे फूटे,
केरा कैसे पात विहराने फन सेस के॥
उत्तर: वीर रस
प्रश्न 14. चूरन खावै एडीटर जात,
जिनके पेट पचै नहिं बात।
चूरन पुलिस वाले खाते,
सब कानून हज़म कर जाते।
साँच कहै ते पनही खावै,
झूठे बहुविधि पदवी पावै।
उत्तर: हास्य रस
प्रश्न 15. निज दरेर सौ पौन पटल फारति फहरावति।
सुर-पुरते अति सघन घोर घन धसि धवरावति॥
चली धार धुधकार धरादिशि काटत कावा।
सगर सुतन के पाप ताप पर बोलति धावा।
उत्तर: वीर रस
प्रश्न 16. स्वानों को मिलता दूध भात भूखे बालक अकुलाते हैं।
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते हैं।
युवती की लज्जा वसन बेच जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक तब तेल फुलेलों पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
उत्तर: करुण रस
प्रश्न 17. बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति शीतल जबभई विषम ज्वाल की पुंजै।
वृथा बहति जमुना खग बोलत वृथा कमल फूलैं अलि गुंजै।
पवन पानि धनसारि संजीवनि दधिसुत किरन भानु भई भुंजै।
हे ऊधव कहिए माधव सो विरह विरद कर मारत लुंजै।
सूरदास प्रभु को मग जोहत अखियाँ भई बरनि ज्यों गुंजै।
उत्तर: वियोग शृंगार रस
प्रश्न 18. चरन कमल बंदी हरि राई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरौ सुनै गूंग पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई ।
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौ तिहि पाई॥
उत्तर: शांत रस
प्रश्न 19. हे खग, हे मृग मधुकर श्रेनी
तुम्ह देखी सीता मृग नैनी॥
उत्तर: वियोग शृंगार रस
प्रश्न 20. लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए।
देख रूप लोचन ललचाने । हरसे जनुनिज निधि पहचाने।
थके नयन रघुपति छबि देखी। पलकनि हूँ परिहरी निमेषी।
अधिक सनेह देहभइ भोरी। सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।
लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हें पलक कपाट सयानी॥
उत्तर: संयोग शृंगार रस
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