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The Hindi Editorial Analysis - 17th June 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

LAC एवं चीन


संदर्भ

आक्रामक चीन के उदय और भारतीय सीमा क्षेत्र के निकट उसके द्वारा आधारभूत संरचनाओं के विस्तार के परिदृश्य में भारत के लिये आवश्यक है कि वह भी अपनी अवसंरचनात्मक क्षमताओं का विस्तार करे ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के किसी भी दुस्साहस के विरुद्ध एक प्रतिरोध या निवारक क्षमता (Deterrence) का निर्माण हो। इसके साथ ही भारत को चीन को नियंत्रित रख सकने के लिये अपनी दीर्घकालिक रणनीति का विकास करना होगा।

मुद्दा क्या है?


  • चीन LAC के निकट संवेदनशील क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण और विस्तार कर रहा है। नवीनतम उपग्रह से प्राप्त नवीनतम छवियों से पता चला है कि चीन पैंगोंग त्सो झील पर अब एक दूसरे सेतु/पुल का निर्माण कर रहा है। यह सेतु झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच टैंकों के आवागमन और सैन्य बलों की तेज़ आवाजाही को सुगम बना सकता है।

चीन किस तरह की अवसंरचना का निर्माण कर रहा है?

  • वायु अवसंरचना में सुधार हेतु निर्माण: पहले प्रकार के क्षेत्र में PLAAF (चीनी वायु सेना) की क्षमताओं में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया गया है, क्योंकि अब तक तिब्बत पठार क्षेत्र में उसके पास सीमित संख्या में ही परिचालित हवाई अड्डे रहे थे और चीनी वायु सेना हाई अल्टीट्युड अभियानों में गंभीर अक्षमता का सामना कर रही थी।
    • वर्ष 2017 में डोकलाम की घटना के बाद से चीन द्वारा तिब्बत और शिनजियांग में 37 एयरपोर्ट एवं हेलीपोर्ट का नवनिर्माण या उन्नयन किया गया है, जिनमें से कम से कम 22 का सैन्य या द्वैध उपयोग किया जा सकता है।
    • द्वैध उपयोग सुविधाएँ वे अवसंरचनाएँ हैं जिनका सैन्य और नागरिक दोनों ही उपयोग किया जा सकता है। इन सुविधाओं में शामिल हैं:
      (i) सैन्य विमानों की पार्किंग के लिये पक्के आश्रय,
      (ii) उत्तरजीविता सुनिश्चित करने के लिये भूमिगत अवसंरचनाएँ,
      (iii) सुरक्षा के लिये वायु रक्षा मिसाइलें,
      (iv) रनवे विस्तार,
      (v) हेलीकॉप्टर संचालन सुविधाएँ।
  • लॉजिस्टिक्स बढ़ाने हेतु निर्माण: दूसरा क्षेत्र PLA द्वारा अपने मुख्य भूमि अड्डों से युद्ध स्थालों तक बेहतर सड़क एवं रेल नेटवर्क के माध्यम से अपनी सेना को तेज़ी से भेज सकने की क्षमता पर केंद्रित है।
    • वर्ष 2015 और 2020 के बीच तिब्बत राजमार्ग की लंबाई 7,840 किमी से बढ़कर 11,820 किमी हो गई जो 51% वृद्धि दर्ज करती है।
    • जून 2021 में ल्हासा और न्यिंग्ची के बीच एक हाई-स्पीड रेल लाइन की शुरुआत हुई जो5 घंटे में 435 किमी की दूरी तय करना सक्षम करेगी।
  • ‘फॉरवर्ड मूवमेंट’ को तेज़ करने हेतु निर्माण: LAC पर तीव्रता से युद्धक शक्ति का अनुप्रयोग कर सकने के लिये भी अवसंरचना विकसित की जा रही है।
    • चीन ने G219 राजमार्ग से LAC की ओर कम से कम आठ प्रमुख सड़कों का निर्माण किया है। ये सड़कें लद्दाख, दौलत बेग ओल्डी से गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और चुमार तक महत्त्वपूर्ण भारतीय सैन्य चौकियों के सामने के क्षेत्र तक संपर्क सुविधा प्रदान करती हैं। इसके अलावा, पैंगोंग त्सो में सेतु जैसी अवसंरचना सैन्य बलों की तीव्र उत्तर-दक्षिण आवाजाही में मदद करेगी।

चीन की मंशा क्या है?

  • चीन के अवसंरचना विकास का उद्देश्य LAC पर संघर्ष के दौरान वायु शक्ति की तैनाती में भारत की लाभ की स्थिति को कम करना है।
  • यह LAC पर अपनी सैन्य क्षमताओं की कमी को दूर करने, तिब्बत में भारतीय वायु शक्ति की लाभ की स्थिति को बेअसर करने और PLA की युद्ध क्षमता को बढ़ाने पर लक्षित है।

भारत के लिये क्या चुनौतियाँ हैं?

  • यह LAC पर युद्ध के लिये PLA की सैन्य क्षमता को बढ़ाएगा।
  • तिब्बत और शिनजियांग में बेहतर बुनियादी ढाँचे के साथ चीन अपने सैन्य ठिकानों से सीमा तक अपने सैनिकों को शीघ्रता से से जुटा सकता है।
  • चीन तिब्बत पर भारत की वायु शक्ति की बढ़त को बेअसर करने में भी सक्षम होगा।

भारत की ओर से क्या प्रतिक्रिया दी गई है?

  • भारतीय सेना ने सैन्य बलों की एक बड़ी संख्या को पाकिस्तान सीमा हटाकर उत्तरी मोर्चे पर फिर से तैनात कर दिया है।
  • आधारभूत संरचना के विकास, निगरानी में सुधार और सड़कों के निर्माण पर प्रमुखता से बल दिया गया है।
  • पूर्वी लद्दाख में वर्ष 2020 के गतिरोध के बाद सरकार ने LAC के किनारे 32 सड़कों के निर्माण को मंज़ूरी दी है।

आगे की राह

  • प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करना: भारत को एक ऐसी रणनीति विकसित करनी चाहिये जो उसकी प्रतिरोधक स्थिति को सुदृढ़ करे।
    • यह प्रतिरोधक क्षमता LAC पर बड़ी संख्या में सैन्य बलों तैनाती पर आधारित होगी।
    • भारत को उन क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो संघर्ष की स्थिति में दंडात्मक लागत के आरोपण के रूप में प्रतिरोध का निर्माण कर सकती हैं।
  • सामरिक दृष्टिकोण: बुनियादी ढाँचे के विकास और सैन्य बलों की तैनाती जैसे आवश्यक उपाय करने के साथ ही भारत को एक दीर्घकालिक सैन्य रणनीति को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • IAF और नौसेना की श्रेष्ठ भूमिका: हाई-अल्टीट्युड अभियानों में भारतीय वायु सेना की परिचालन तत्परता और प्रमुख भूमिका सुनिश्चित करने की आवश्यकता है क्योंकि चीन के पास इस भूभाग में कई ‘फॉरवर्ड बेस’ मौजूद हैं और इसके अलावा, तिब्बत के पठार की चरम जलवायु परिवहन और सैनिकों की लामबंदी को अत्यंत कठिन बनाती है।
    • भारत को हिंद महासागर में भी एक प्रमुख नौसैन्य स्थिति विकसित करने की आवश्यकता है।
  • पारंपरिक साधनों से परे जाना: लंबी दूरी की मिसाइलों, साइबर युद्ध, अंतरिक्ष हथियारों आदि के माध्यम से युद्ध छेड़ने की कीमत को संघर्ष के निकटस्थ क्षेत्र से परे ले जाने के लिये सभी क्षेत्रों में क्षमताओं का विकास किया जाना चाहिये ताकि एक प्रतिरोधक संतुलन बना रहे।
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