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The Hindi Editorial Analysis - 19th June 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण

संदर्भ

हाल के समय में जैसा कि जलवायु वार्ताओं में देखा गया है और इसकी प्रशंसा करनी होगी कि सरकारें और गैर-सरकारी संस्थाएँ देशों को अपने शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाओं को लागू करने में मदद करने हेतु प्रतिबद्धताएँ जता रही हैं। हालाँकि इन प्रतिबद्धताओं के बावजूद वर्ष 2100 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 2.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने का अनुमान है।

  • यह पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों से पीछे रह जाने की स्थिति है जहाँ इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित रखने का आह्वान किया गया था।
  • इस परिदृश्य में वैश्विक उत्सर्जन वक्र को मोड़ने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाना अनिवार्य हो जाता है। महामारी के बाद के भविष्य के लिये तत्काल जलवायु कार्रवाई विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। इस संदर्भ में भविष्य की प्रत्यास्थी और सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली के निर्माण के लिये नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण (Renewable Energy Transition या RE Transition) महत्त्वपूर्ण है।

भारत और नवीकरणीय ऊर्जा


नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण (Renewable Energy Adoption) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता क्यों है?

  • तेल और कोयले की खपत में अचानक हुई बढ़ोतरी के कारण वर्ष 2021 में CO2 उत्सर्जन में ऐतिहासिक वृद्धि देखी गई।
    • स्वच्छ ऊर्जा पर महामारी वसूली वित्त (Pandemic Recovery Finance) के केवल 2% व्यय के साथ उत्सर्जन के वर्ष 2023 में अब तक के उच्चतम स्तर तक पहुँच जाने का अनुमान है।
  • यद्यपि स्वच्छ उपायों पर स्थापित एक ऊर्जा अर्थव्यवस्था का उभार हो रहा है, ऊर्जा रूपांतरण को अभी लंबा रास्ता तय करना है।

नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को सुगम बनाने के लिये भारत ने क्या पहल की है?

  • वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी स्थापित क्षमता को 450 GW तक ले जाएगा।
    • CoP26 में भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा से अपने कुल बिजली उत्पादन का 50% प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई।
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI) भारत सरकार की एक अन्य पहल है जो नवीकरणीय ऊर्जा के लिये कच्चे माल के उत्पादन हेतु विनिर्माण क्षेत्र के संवर्द्धन का लक्ष्य रखती है।
  • प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान/पीएम-कुसुम (PM-KUSUM) वर्ष 2022 तक 25,750 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता के दोहन के साथ किसानों को वित्तीय और जल सुरक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
    • जल पंपों का सौरीकरण (Solarisation) उपभोक्ता के दरवाज़े तक उपलब्ध वितरित बिजली की दिशा में एक कदम है।
  • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय अपनी वेबसाइट पर ‘अक्षय ऊर्जा पोर्टल’ और ‘इंडिया रिन्यूएबल आइडिया एक्सचेंज (IRIX) पोर्टल’ को भी होस्ट करता है।
    • IRIX ऐसा मंच है जो ऊर्जा के प्रति जागरूक भारतीयों और वैश्विक समुदाय के बीच विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
  • भारत द्वारा वर्ष 2070 तक ‘नेट जीरो’ हासिल करने के निर्णय को वैश्विक स्तर पर ‘गेम चेंजर’ के रूप में सराहा गया। मार्च, 2022 के अंत तक देश ने लगभग 110 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच कर उपयुक्त प्रगति दर्ज की है।
    • भारत ने ऊर्जा संबंधी वित्तपोषण के 122 बिलियन डॉलर में से 35 बिलियन डॉलर (जो जीवाश्म ईंधन के लिये आवंटित राशि का लगभग दोगुना है) नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को आवंटित करने की भी प्रतिबद्धता जताई है।

नवीकरणीय ऊर्जा आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण कैसे होगी?

  • नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से भारत जैसे तीव्र विकासशील देश में हरित पुनर्प्राप्ति (Green Recovery) का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • नवीकरणीय क्षेत्र न केवल आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्द्धी है, बल्कि इसमें रोज़गार सृजन की भी अपार संभावनाएँ हैं, क्योंकि सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में कहीं अधिक श्रम-प्रधान हैं।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों के 500 गीगावाट के अपने लक्ष्य तक पहुँचने में भारत4 मिलियन नए स्वच्छ ऊर्जा रोज़गार पैदा कर सकता है जिससे 1 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्राप्त होगा।
    • ऐसा मुख्य रूप से वितरित नवीकरणीय ऊर्जा (Distributed RE- DRE) से होने की उम्मीद है, जो स्थानीय रोज़गार के अवसर पैदा करेगी।
  • इस तरह के प्रयास नए उद्यमों की शुरुआत को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं और घरेलू व्यवसायों को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
  • भारत में ग्रीन हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण जैसी आगामी प्रौद्योगिकियों के लिये एक विनिर्माण केंद्र बनने की भी क्षमता है।
  • अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से, नवीकरणीय स्रोत बाज़ार और राजस्व आश्वासन प्रदान करते हैं जो कोई अन्य संसाधन प्रदान नहीं कर सकते।

नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पर्यावरण पर प्रभाव: यद्यपि नवीकरणीय ऊर्जा सृजन शून्य-कार्बन गतिविधि है (कुछ जैव ईंधन को छोड़कर), इसके जीवन चक्र के अन्य बिंदुओं पर (जैसे कच्चे माल के निष्कर्षण और उपकरण निर्माण के दौरान) उत्सर्जन होता है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी पर भी RE के हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं।
  • कुशल कर्मियों की कमी: भारत के बिजली क्षेत्र को न केवल निजी क्षेत्र में बल्कि वितरण कंपनियों (DISCOMs), ग्रिड प्रबंधन कंपनियों, नियामकों और नीति-निर्माताओं के अंदर भी कुशल कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ा है और वर्तमान परिदृश्य में यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है।
    • कौशल विकास के माध्यम से भारत के अंदर क्षमता निर्माण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत में सुविकसित प्रशिक्षण कार्यक्रम समय की मांग है।
  • स्थापना लागत का मुद्दा: स्थापना (installation) की उच्च प्रारंभिक लागत नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। यद्यपि किसी कोयला संयंत्र के विकास के लिये उच्च निवेश की आवश्यकता होती है, यह ज्ञात है कि पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों को भी भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
    • इसके अलावा, उत्पन्न ऊर्जा की भंडारण प्रणालियाँ महँगी हैं और मेगावाट उत्पादन के मामले में एक वास्तविक चुनौती का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • ‘रिसोर्स लोकेटर’: अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र जो अपनी ऊर्जा को ग्रिड के साथ साझा करते हैं, उन्हें बड़े खुले क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। अधिकांश मामलों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत स्थान के आधार पर तय होते हैं जो उपयोगकर्ताओं के लिये विकर्षण का कारण हो सकते हैं।
    • सर्वप्रथम कुछ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं।
    • दूसरा, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत और ग्रिड के बीच की दूरी लागत और दक्षता के मामले में एक प्रमुख पहलू है।
    • इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत मौसम, जलवायु और भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करते हैं, इसलिये इसका अर्थ है कि एक प्रकार का ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र के लिये उपयुक्त नहीं है।

आगे की राह

  • वैश्विक भागीदारी: वैश्विक भागीदारी साझा की जा रही प्रौद्योगिकी या वित्तीय संसाधनों के माध्यम से समर्थन के नए चैनल खोल सकती है।
    • जलवायु कार्रवाई नीतियों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अवलंब के लिये विकासशील देशों को महत्त्वाकांक्षी और सुदृढ़ अनुसंधान और विकास (R&D) वित्तपोषण तथा समर्थनकारी वित्तपोषण अवसंरचना की आवश्यकता है।
    • विकासशील देश लागत प्रभावी स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को ऊर्जा नियोजन में एकीकृत कर सकते हैं।
  • वितरित नवीकरणीय ऊर्जा (Distributed Renewable Energy- DRE): वितरित नवीकरणीय ऊर्जा, जिसमें नवीकरणीय स्रोतों से बिजली केंद्रीकृत संयंत्रों के बजाय उपयोग के बिंदुओं के पास उत्पादित की जाती है, ‘ग्लोबल साउथ’ के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ विश्वसनीय एवं आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच बढ़ाने में मदद कर सकती है, यदि एक अनुकूल विनियामक और नीतिगत वातावरण का निर्माण किया जाए।
    • रूफटॉप सोलर जैसे DRE अनुप्रयोग विकासशील विश्व की विनिर्माण आपूर्ति शृंखला को डीकार्बोनाइज कर सकते हैं; सौर कृषि-पंप सौर-आधारित सिंचाई समाधान प्रदान कर सकते हैं; और शहरी माल परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों का तेज़ी से कार्यान्वयन कर सकते हैं।
    • DRE के पैमाने में वृद्धि से नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने और निवेशकों को रिटर्न प्रदान करने का अवसर मिलेगा।
  • WWF के सुझावों पर ध्यान देना: सफलतापूर्वक ग्रीन रिकवरी पैकेज पेश करने वाले देशों से सीख लेकर नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत रणनीतिक ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है।
    • WWF (World Wildlife Fund for Nature) की ‘ग्रीन रिकवरी थ्रू रिन्यूएबल्स’ शीर्षक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ग्रीन रिकवरी पैकेज के अंग के रूप में प्राथमिकताएँ चार-घटकीय होनी चाहिये:
      (i) रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना
      (ii) वित्तीय राहत के लिये तरलता का प्रवेश कराना
      (iii) बेहतर व्यापार संभावनाओं के लिये आर्थिक क्षमता में वृद्धि करना
      (iv) हरित ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करना
  • एक-दूसरे को पूरकता प्रदान करने वाले और मुख्य घटकों (प्रौद्योगिकी विकास, निर्माण, भंडारण, बिजली उत्पादन और वितरण सहित) की पहचान करने वाले समाधानों की एक शृंखला का परीक्षण करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण बहुत प्रभावी होगा।
  • उत्तरदायी ऊर्जा के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा: RE केवल ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ को इंगित न करता हो, बल्कि ‘रेस्पोंसिबल एनर्जी’ को भी सूचित करता हो।
    • नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये, RE उद्योग को चार सिद्धांतों पर कार्य करना चाहिये:
      (i) सार्वभौमिक श्रम, भूमि और मानवाधिकारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना;
      (ii) प्रत्यास्थी, फलते-फूलते पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, पुनर्बहाली और संपोषण;
      (iii) सहभागी शासन सिद्धांतों के लिये प्रतिबद्धता
      (iv) यह चिह्नित करना कि प्रत्यास्थी समुदाय और एक समावेशी कार्यबल उनकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • RE क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ियों को इस बात की साझा समझ का निर्माण करना चाहिये कि जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने वाली निष्कर्षित मानसिकता से कैसे बचा जाए।
      (i) उन्हें नकारात्मक प्रभावों को रोकने और कम करने और अपनी RE खरीद प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिये पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव आकलन का भी अध्ययन करना चाहिये, और आपूर्ति शृंखला में ‘सर्कुलरिटी’ और ‘ट्रेसबिलिटी’ के लिये डिज़ाइनिंग को शामिल करना चाहिये।
  • जलवायु वित्तपोषण: 1 ट्रिलियन डॉलर के जलवायु वित्त का आह्वान करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने अपने COP26 संबोधन में इस बात पर प्रकाश डाला कि विकासशील देश पुराने, अपूर्ण जलवायु वित्त लक्ष्यों के साथ शुद्ध-शून्य के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को नहीं प्राप्त कर सकते।
    • ऊर्जा-निर्धन देशों को अपने कार्बन कटौती लक्ष्यों में तेज़ी लाने और जीवाश्म ईंधन से अपने विकास प्रक्षेपवक्र को अलग करने हेतु नई तकनीकों में निवेश करने के लिये धन की आवश्यकता है।
    • जलवायु वित्तपोषण से इन निवेशों का उपयोग इस प्रकार किया जा सकता है—
      (i) सर्वप्रथम, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तैनाती को बढ़ाकर स्वच्छ विद्युतीकरण के लिये ठोस प्रयास।
      (ii) दूसरा, ऊर्जा दक्षता और प्रौद्योगिकी परिनियोजन एवं व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से ऊर्जा की मांग को कम करने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना।
      (iii) तीसरा, जीवाश्म ईंधन परिचालन से मीथेन उत्सर्जन में कटौती करना।
      (iv) चौथा, स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में निवेश करना।
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