जब जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्ति याद दिलाई तो पर्वत की चोटी पर खड़े हुए हनुमान ने समुद्र की ओर देखा| हनुमान ने पूर्व दिशा की ओर मुँह करके पिता को प्रणाम किया। उन्होंने पर्वत पर झुककर उसे हाथ-पैर से कसकर दबाया और छलांग लगाई और आकाश में उड़ने लगे। पर्वत के कुछ हिस्से टूट कर गिर गए| पर्वत के नीचे की घाटी में वृक्ष काँप गए, चट्टानें नीचे लुढ़कने लगी, पशु-पक्षी चिल्लाकर भागने लगे, धुआँ उठने लगा परंतु हनुमान वायु की गति से आगे बढ़ते गए। समुद्र के बीच में स्थित मैनाक पर्वत हनुमान को विश्राम देना चाहता था परंतु हनुमान मैनाक से टकराकर निकल गए। रास्ते में राक्षसी सुरसा मिली, वह हनुमान को खाना चाहती थी हनुमान उसके मुँह में घुसकर निकल आए। राक्षसी सिंहिका ने जल में हनुमान की परछाई पकड़ ली तो उन्होंने उसे भी मार डाला।
हनुमान जब सागर पार उतरे तो उन्हें सोने की जगमगाती हुई लंका दिखाई दी। एक पहाड़ी पर खड़े होकर हनुमान ने लंका नगरी को देखा जो उन्हें बहुत खुबसूरत लगी| उन्होंने दिन के समय लंका में प्रवेश करना उचित न समझा और शाम ढलने पर नगरी में प्रवेश किया। वे कूदते-फाँदते राजमहल में पहुँचे परंतु उन्हें वहाँ किसी भी कक्ष में सीता जैसी कोई स्त्री नहीं दिखाई दी। उन्होंने राक्षसों के घर, पशुशालाएँ आदि भी देख लीं परंतु सीता कहीं नहीं थी। रात हो गयी थी| तभी उनका ध्यान अशोक वाटिका की ओर गया। वे निराश होकर एक घने पेड़ में छिपकर बैठ गए और इधर-उधर देखने लगे। वहाँ से उन्हें अट्टाहास सुनाई पड़ा। राक्षसियों के बीच एक स्त्री बैठी थी। हनुमान देखते ही पहचान गए यह सीता माँ हैं| राक्षसियाँ सीता के पास से हट नहीं रही थीं।
तभी वहाँ रावण आया और सीता को अनेक प्रकार के लालच देकर अपनी रानी बनने के लिए कहा परंतु सीता ने उसे राम के पास पहुंचाने के लिए कहा अन्यथा अपने विनाश के लिए तैयार रहने को कहा| रावण सीता को दो महीने का वक़्त देकर वहाँ से चला गया| धीरे-धीरे सारी राक्षसियाँ वहाँ से चली गयीं| राक्षसियों के जाने के बाद हनुमान ने पेड़ पर बैठे-बैठे राम-कथा प्रारंभ कर दी। सीता जी ने ऊपर देखकर पूछा कि वह कौन था? हनुमान ने नीचे आकर सीता को प्रणाम कर राम की अंगूठी देकर स्वयं को राम का दास बताया। वह यहाँ उनका समाचार लेने आया है। सीता ने राम का कुशल समाचार पूछा। हनुमान सीता जी को कंधे पर बैठाकर राम के पास ले जाना चाहते थे परंतु सीता ने इसे सही नहीं माना और राम तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए कहा। हनुमान सीता से विदा लेकर चल पड़े।
हनुमान लौटने के लिए उत्तर दिशा की ओर जाने ही लगे थे कि कुछ सोचकर रुक गए। उन्होंने रावण का उपवन नष्ट कर दिया और अशोक वाटिका के कई वृक्ष उखाड़ दिए| कई राक्षसों को मार गिराया और रावण के पुत्र अक्षकुमार को भी मार दिया| राक्षसों ने रावण को इसकी सूचना दी| मेघनाद ने हनुमान को बाँधकर रावण के सामने दरबार में उपस्थित किया। रावण ने जब हनुमान से उसका परिचय पूछा तो उसने बताया कि वह श्रीराम का दास हनुमान है और सीता जी की खोज में आया था। रावण हनुमान को मारना चाहता था परंतु विभीषण ने कहा कि दूत को मारना अनुचित है इसलिए रावण ने हनुमान को बाँधकर उनकी पूँछ में आग लगाने का आदेश दिया। हनुमान ने उछल-कूद करते हुए सारी लंका में आग लगा दी।
दूसरे तट पर सभी हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे थे। हनुमान ने वहाँ जाकर संक्षेप में लंका की घटना की जानकारी वानरों को दी| समाचार पाकर सभी वानर किलकारियाँ मारते हुए किष्किंधा पहुँच गए। हनुमान ने सीता जी द्वारा दिया आभूषण राम को दिया और उनके बारे में बताया| उन्होंने राम से कहा कि वे आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं| का पर आक्रमण की तैयारियाँ होने लगीं। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना बनाई तथा हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील की योग्यता के अनुसार भूमिकाएँ तय की गईं।
13 videos|37 docs|13 tests
|
|
Explore Courses for Class 6 exam
|