सभी पांडव वेश बदलकर राजा विराट के यहाँ नौकर के रूप में काम करने गए थो राजा ने उन्हें नौकर बनाकर रखना ठीक नहीं समझा| उनके अनुसार वे लोग राजवर्ग के लगते थे| परन्तु पांडवों के बहुत आग्रह के बाद राजा विराट ने उन्हें नौकरी पर रख लिया| युधिष्ठिर 'कंक' के नाम से विराट के दरबारी बनकर उनके साथ चौपड़ खेलते थे। भीम 'वल्लभ' नाम से रसोइयों का मुखिया बन गया। अर्जुन 'बृहन्नला' के नाम से विराट की कन्या उत्तरा तथा उसकी सखियों और दासियों को गाना-बजाना सिखाने लगा। नकुल 'ग्रंथक' नाम से घोड़ों को तथा सहदेव तंतिपाल' नाम से गाय-बैलों की देखभाल करने लगे। द्रौपदी 'सैरंध्री' के नाम से विराट की पत्नी सुदेष्णा की दासी बनकर सेवा करने लगी।
रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बहुत प्रतापी, बलवान और वीर योद्धा था। उसने विराट राजा की शक्ति और सत्ता में बहुत वृद्धि की थी| मत्स्य देश की सेना का वही नायक था। कीचक के मारे जाने की खबर जब हस्तिनापुर पहुंचा तो दुर्योधन को लगा कि भीम ने ही उसका वध किया होगा। बारह वर्ष जब से समाप्त हुआ था दुर्योधन पांडवों की खोज में ही लगा हुआ था। उसने मत्स्य देश पर आक्रमण करने का निश्चय किया कि पांडव यदि वहाँ होंगे तो वे विराट की ओर से लड़ेंगे। इससे अज्ञातवास से पहले उनका भेद खुल जाने पर उन्हें फिर से वनवास भोगना पड़ेगा।
दुर्योधन का साथ देते हुए अपनी पुरानी शत्रुता का बदला लेने के प्रयास में त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा ने मत्स्य देश पर दक्षिण से हमला करने की जिम्मेदारी ली। दूसरी ओर से हमला दुर्योधन करेगा ऐसा तय हुआ। दुर्योधन की सेना नगर में घुसकर पर छापा मारेगी।
सुशर्मा ने विराट के दक्षिणी हिस्से पर आक्रमण कर गायों के झुंड-के-झुंड अपने अधिकार में कर लिए। कंक बने युधिष्ठिर ने विराटराज को सांत्वना दी और अपने भाइयों सहित सुशर्मा से मुकाबला करने की आज्ञा माँगी। अजुर्न को छोड़कर चारों पांडव विराट के साथ युद्ध करने चले गए। विराट को सुशर्मा ने बंदी बना लिया। युधिष्ठिर ने भीम को विराट को छुड़ा लाने तथा सुशर्मा को पराजित करने के लिए भेजा। थोड़ी ही देर की लड़ाई में भीम ने विराट को छुड़ा लिया तथा सुशर्मा को बंदी बना लिया। नगर में सब आनंद मनाने लगे।
तभी उत्तर की ओर से दुर्योधन ने आक्रमण कर दिया। राजकुमार उत्तर कौरव सेना को देखकर घबरा गया। सैरंध्री बनी द्रौपदी के प्रस्ताव पर बृहन्नला बने अर्जुन को उत्तर का सारथि बनाया गया था। बृहन्नला बने अर्जुन ने राजकुमार को घोड़ों की रास संभालने को कहा। द्रोण को विश्वास हो गया कि यह तो अर्जुन है और यह बात संकेत से भीष्म को भी बता दी। दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि यदि अज्ञातवास के दिनों में पांडवों का पता चल जाता है तो उन्हें फिर से बारह वर्षों का वनवास भुगतना होगा। अर्जुन ने डोरी चढ़ाकर तीन बार जोर से टंकार की और शंख बजाया। कौरव सेना काँप उठी कि पांडव आ गए।
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