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पत्र लेखन | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

परिचय


पत्र लेखन एक विशेष कला – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने दुख-सुख दूसरों में बाँटना चाहता है। जब उसका कोई प्रिय व्यक्ति उसके पास होता है तब वह मौखिक रूप से अभिव्यक्त कर देता है परंतु जब वही व्यक्ति दूर होता है तब वह पत्रों के माध्यम से अपनी बातें कहता और उसकी बातें जान पाता है। वास्तव में पत्र मानव के विचारों के आदान-प्रदान का अत्यंत सरल और सशक्त माध्यम है। पत्र हमेशा किसी को संबोधित करते हुए लिखे जाते हैं, अतः यह लेखन की विशिष्ट विधा एवं कला है। पत्र पढ़कर हमें लिखने वाले के व्यक्तित्व की झलक मिल जाती है।

पत्रों का महत्त्व – पत्र-लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसका उल्लेख हमें अत्यंत प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने एकांत में एक लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर ब्राह्मण के हाथों श्रीकृष्ण को भिजवाया था। इसके बाद शिक्षा के विकास के साथ विभिन्न उद्देश्यों के लिए पत्र लिखे जाने लगे।

पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातें अवश्य ध्यान में रखें:

  • सरलता- पत्र सरल भाषा में लिखना चाहिए। भाषा सीधी, स्वाभाविक व स्पष्ट होनी चाहिए। अतः पत्र में व्यक्ति को पूरी आत्मीयता और सरलता से उपस्थित होना चाहिए।
  • स्पष्टता- जो भी हमें पत्र में लिखना है यदि स्पष्ट, सुमधुर होगा तो पत्र प्रभावशाली होगा। सरल भाषा-शैली, शब्दों का चयन, वाक्य रचना की सरलता पत्र को प्रभावशाली बनाने में हमारी सहायता करती है।
  • संक्षिप्तता- पत्र में हमें अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। अनावश्यक विस्तार पत्र को नीरस बना देता है। पत्र जितना संक्षिप्त व सुगठित होगा उतना ही अधिक प्रभावशाली भी होगा।
  • शिष्टाचार- पत्र प्रेषक और पत्र पाने वाले के बीच कोई न कोई संबंध होता है। आयु और पद में बड़े व्यक्ति को आदरपूर्वक, मित्रों को सौहार्द से और छोटों को स्नेहपूर्वक पत्र लिखना चाहिए।
  • आकर्षकता व मौलिकता- पत्र का आकर्षक व सुंदर होना भी महत्त्वपूर्ण होता है। मौलिकता भी पत्र का एक महत्त्वपूर्ण गुण है। पत्र में घिसे-पिटे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए। पत्र-लेखक को पत्र में स्वयं के विषय में कम तथा प्राप्तकर्ता के विषय में अधिक लिखना चाहिए।
  • उद्देश्य पूर्णता- कोई भी पत्र अपने कथन या मंतव्य में स्वतः संपूर्ण होना चाहिए। उसे पढ़ने के बाद तद्विषयक किसी प्रकार की जिज्ञासा, शंका या स्पष्टीकरण की आवश्यकता शेष नहीं रहनी चाहिए। पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कथ्य अपने आप में पूर्ण तथा उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो।

पत्र के अंग

  • पत्र लिखने वाले का पता तथा तिथि– आजकल ये दोनों पत्र के ऊपर बाएँ कोने में लिखे जाते हैं। निजी अथवा व्यक्तिगत पत्रों में प्रायः यह नहीं लिखे जाते किंतु व्यावसायिक और कार्यालयी पत्रों में पते के साथ-साथ प्रेषक का नाम भी लिखा जाता है। विद्यार्थियों को यह ध्यान रहे कि परीक्षा में पत्र लिखते समय उन्हें भी ऐसा कुछ भी नहीं लिखना चाहिए जिससे उनके निवास स्थान, विद्यालय आदि की जानकारी मिले। सामान्यतः प्रेषक के पते के स्थान पर ‘परीक्षा भवन’ लिखना ही उचित होता है।
  • पाने वाले का नाम व पता-प्रेषक के बाद पृष्ठ की बाईं ओर ही पत्र पाने वाले का नाम व पता लिखा जाता है;
    जैसे–
    सेवा में
    थानाध्यक्ष महोदय
    केशवपुरम्
    लखनऊ।
  • विषय-संकेत- औपचारिक पत्रों में यह आवश्यक होता है कि जिस विषय में पत्र लिखा जा सकता है उस विषय को अत्यंत संक्षेप में पाने वाले के नाम और पते के पश्चात् बाईं ओर से विषय शीर्षक देकर लिखें। इससे पत्र देखते ही पता चल जाता है कि मूल रूप में पत्र का विषय क्या है।
  • संबोधन– पत्र प्रारंभ करने से पहले पत्र के बाईं ओर दिनांक के नीचे वाली पंक्ति में हाशिए के पास जिसे पत्र लिखा जा रहा है, उसे पत्र लिखने वाले के संबंध के अनुसार उपयुक्त संबोधन शब्द का प्रयोग किया जाता है।
  • अभिवादन– निजी पत्रों में बाईं ओर लिखे संबोधन शब्दों के नीचे थोड़ा हटकर संबंध के अनुसार उपयुक्त अभिवादन शब्द सादर प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार आदि लिखा जाता है। व्यावसायिक एवं कार्यालयी पत्रों में अभिवादन शब्द नहीं लिखे जाते।
  • पत्र की विषय– वस्तु-अभिवादन से अगली पंक्ति में ठीक अभिवादन के नीचे बाईं ओर से मूल पत्र का प्रारंभ किया जाता है।
  • पत्र की समाप्ति- पत्र के बाईं ओर लिखने वाले के संबंध सूचक शब्द तथा नाम आदि लिखे जाते हैं। इनका प्रयोग पत्र प्राप्त करने वाले के संबंध के अनुसार किया जाता है; जैसे-औपचारिक-भवदीय, आपका आज्ञाकारी। अनौपचारिक-तुम्हारा, आपका, आपका प्रिय, स्नेहशील, स्नेही आदि।
  • हस्ताक्षर और नाम– समापन शब्द के ठीक नीचे भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के ठीक नीचे कोष्ठक में भेजने वाले का पूरा नाम अवश्य दिया जाना चाहिए। यदि पत्र के आरंभ में ही पता न लिख दिया गया हो तो व्यावसायिक व सरकारी पत्रों में नाम के नीचे पता भी अवश्य लिख देना चाहिए। परीक्षा में पूछे गए पत्रों में नाम के स्थान पर प्रायः क, ख, ग आदि लिखा जाता है। यदि प्रश्न-पत्र में कोई नाम दिया गया हो, तो पत्र में उसी नाम का उल्लेख करना चाहिए।
  • संलग्नक– सरकारी पत्रों में प्रायः मूलपत्र के साथ अन्य आवश्यक कागज़ात भी भेजे जाते हैं। इन्हें उस पत्र के ‘संलग्न पत्र’ या ‘संलग्नक’ कहते हैं।
  • पुनश्च-कभी– कभी पत्र लिखते समय मूल सामग्री में से किसी महत्त्वपूर्ण अंश के छूट जाने पर इसका प्रयोग होता है। विशेष- पहले पत्र भेजने वाले का पता, दिनांक दाईं ओर लिखा जाता था, पर आजकल इसे बाईं ओर लिखने का चलन हो गया है। छात्र इससे भ्रमित न हों। हिंदी में दोनों ही प्रारूप मान्य हैं।

पत्रों के प्रकार


पत्र दो प्रकार के होते हैं–
(i) औपचारिक पत्र।
(ii) अनौपचारिक पत्र।

(i) औपचारिक पत्र– अर्ध-सरकारी, गैर-सरकारी या सरकारी कार्यालय को जो भी पत्र लिखे जाते हैं, वे सभी पत्र औपचारिक पंत्रों के अंतर्गत आते हैं। कार्यालय द्वारा अपने अधीनस्थ विभागों को जो पत्र लिखे जाते हैं, वे सब भी इसी श्रेणी में आते हैं।
(ii) अनौपचारिक पत्र- जो पत्र निजी, व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक होते हैं, वे ‘अनौपचारिक’ पत्र कहलाते हैं। इस पत्र में किसी तरह की औपचारिकता के निर्वाह का बंधन नहीं होता। इन पत्रों में प्रेषक अपनी बात व भावना को उन्मुक्तता के साथ, बिना लाग-लपेट लिख सकता है।

औपचारिक एवं अनौपचारिक पत्र के आरंभ व अंत की औपचारिकताओं की तालिका

पत्र लेखन | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)

औपचारिक पत्रों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है –

  • प्रधानाचार्य को लिखे जाने वाले पत्र (प्रार्थना-पत्र)।
  • कार्यालयी प्रार्थना-पत्र-विभिन्न कार्यालयों को लिखे गए पत्र।
  • आवेदन-पत्र-विभिन्न कार्यालयों में नियुक्ति हेतु लिखे गए पत्र ।
  • संपादकीय पत्र-विभिन्न समस्याओं की ओर ध्यानाकर्षित कराने वाले संपादक को लिखे गए पत्र।
  • सुझाव एवं शिकायती पत्र-किसी समस्या आदि के संबंध में सुझाव देने या शिकायत हेतु लिखे गए पत्र।
  • अन्य पत्र-बधाई, शुभकामना और निमंत्रण पत्र ।
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FAQs on पत्र लेखन - Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)

1. कक्षा 9 में परिचयपत्र लेखन क्या है?
उत्तर: परिचयपत्र लेखन कक्षा 9 के छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल है जिसमें वे एक व्यक्ति, ईवेंट, स्थान या सामग्री के विषय में एक छोटा सा प्रस्तावना लिखते हैं। इसका उद्देश्य विषय को पढ़ने वाले को उसकी महत्ता और महत्व से अवगत करना होता है।
2. परिचयपत्र लेखन की विधि क्या है?
उत्तर: परिचयपत्र लेखन की विधि में छात्रों को इसका ध्यान रखना चाहिए कि वे विषय के बारे में सटीक और संक्षेप्त जानकारी प्रदान करें। इसके लिए वे निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं: - प्राथमिक सूचना प्रदान करें। - महत्त्वपूर्ण तथ्य, घटनाओं या विषय को दर्शाएं। - विषय के महत्व को समझाएं या सादर करें। - आँकड़ों, उदाहरणों या उद्धरणों का उपयोग करें जो विषय को समर्पित करें। - अंत में, अपने परिचयपत्र को संक्षेप्त में समाप्त करें।
3. परिचयपत्र लेखन क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: परिचयपत्र लेखन महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें एक विषय के बारे में अवगत कराया जा सकता है और हमें उसकी महत्ता के बारे में ज्ञान प्राप्त हो सकता है। यह हमें अच्छे लेखन कौशल के विकास में मदद करता है और हमें अपने विचारों को सुसंगत ढंग से व्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है।
4. एक अच्छे परिचयपत्र में कौन-कौन से तत्व शामिल होने चाहिए?
उत्तर: एक अच्छे परिचयपत्र में निम्नलिखित तत्व शामिल होने चाहिए: - प्राथमिक सूचना: परिचयपत्र की शुरुआत में विषय के बारे में कुछ प्राथमिक सूचना देनी चाहिए। - महत्वपूर्ण तथ्य या घटनाएं: विषय के महत्वपूर्ण तथ्य, घटनाएं या विषय को दर्शाना चाहिए। - विषय का महत्त्व: परिचयपत्र में विषय के महत्त्व को समझाना चाहिए ताकि पाठक को उसकी महत्ता समझ में आ सके। - उदाहरण या उद्धरण: अपने परिचयपत्र में आँकड़ों, उदाहरणों या उद्धरणों का उपयोग करें जो विषय को समर्पित करें। - संक्षेप्त में समाप्ति: परिचयपत्र को संक्षेप्त में समाप्त करना चाहिए।
5. परिचयपत्र लेखन के लिए किन-किन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है?
उत्तर: परिचयपत्र लेखन के लिए निम्नलिखित तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है: - वाक्य और शब्द संरचना: सुसंगत वाक्य और शब्द संरचना का उपयोग करें ताकि पाठकों को समझने में आसानी हो। - संक्षेप्त भाषा: संक्षेप्त और स्पष्ट भाषा का उपयोग करें ताकि पाठकों को बोर न हों और विषय को समझने में आसानी हो। - उदाहरण और उद्धरण: अपने परिचयपत्र में विषय के संबंध में उद
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