UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022

The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में सुधार


संदर्भ

5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का भारत का स्वप्न औद्योगिक क्षेत्र के विकास पर उल्लेखनीय रूप से निर्भर करेगा। भारत में आठ औद्योगिक क्षेत्र हैं जिन्हें प्रमुख क्षेत्र या कोर सेक्टर (Core Sectors) माना जाता है।

  • कोर सेक्टर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production- IIP) में 40% हिस्सेदारी रखते हैं; इस प्रकार औद्योगिक गतिविधि के प्रमुख संकेतक का निर्माण करते हैं। इस्पात और कच्चे तेल को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों के स्वस्थ प्रदर्शन के साथ कोर सेक्टर ने जून, 2022 में कोविड के स्तर से 8% की वृद्धि दर्ज की।
  • चूँकि उद्योग 4.0 (Industry 4.0) का दौर है तो भारत के औद्योगिक विकास में, विशेष रूप से कोर क्षेत्रों में, विद्यमान बाधाओं को स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मांग आपूर्ति से अधिक होती जा रही है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) क्या है?

  • यह एक संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन की माप करता है। इसका आधार वर्ष 2011-2012 है।
  • इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • यह एक समग्र संकेतक है जो निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत उद्योग समूहों की विकास दर की माप करता है:
    • व्यापक क्षेत्र (Broad sectors): खनन, विनिर्माण और बिजली।
    • उपयोग-आधारित क्षेत्र (Use-Based Sectors): बुनियादी वस्तुएँ, पूंजीगत वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ।
  • आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक (Index of Eight Core Industries- ICI): यह भारतीय अर्थव्यवस्था के आठ सबसे मौलिक औद्योगिक क्षेत्रों का सूचकांक है और IIP में 40.27% भारांक (weightage) रखता है।
    • मासिक ICI आठ प्रमुख उद्योगों में उत्पादन के सामूहिक और व्यक्तिगत प्रदर्शन की माप करता है।
    • कोर सेक्टर के आठ प्रमुख उद्योग अपने भारांक के घटते क्रम में इस प्रकार हैं:
      (i) रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।
भारत में औद्योगिक क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
  • कुशल अवसंरचना और जनशक्ति की कमी: वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये उच्च प्रौद्योगिकी आधारित आधारभूत संरचना, विशेष रूप से परिवहन और कुशल जनशक्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • दूरसंचार सुविधाएँ मुख्य रूप से बड़े शहरों तक ही सीमित हैं। अधिकांश राज्य बिजली बोर्ड घाटे में चल रहे हैं और दयनीय स्थिति में हैं।
    • रेल परिवहन पर अत्यधिक भार है जबकि सड़क परिवहन कई प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है।
  • समान अवसर बनाए रखना: MSME क्षेत्र मध्यम एवं वृहत स्तर के औद्योगिक क्षेत्रों और सेवा क्षेत्रों की तुलना में ऋण उपलब्धता एवं कार्यशील पूंजी की ऋण लागत के मामले में अपेक्षाकृत कम अनुकूल स्थिति रखता है। इस जारी पूर्वाग्रह को दूर करने की ज़रूरत है।
  • विदेशी आयात पर निर्भरता: भारत अभी भी परिवहन उपकरण, मशीनरी (इलेक्ट्रिकल और नॉन-इलेक्ट्रिकल), लोहा एवं इस्पात, कागज, रसायन एवं उर्वरक, प्लास्टिक सामग्री आदि के लिये विदेशी आयात पर निर्भर है।
    • भारत में उपभोक्ता वस्तुओं का कुल औद्योगिक उत्पादन 38% का योगदान देता है। सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे नव औद्योगिक देशों में यह प्रतिशत क्रमशः 52, 29 और 28 है।
    • इससे पता चलता है कि आयात प्रतिस्थापन अभी भी देश के लिये एक दूर का लक्ष्य है।
  • अनुपयुक्त अवस्थिति आधार: कई उदाहरण हैं जहाँ लागत प्रभावी बिंदुओं के संदर्भ के बिना ही औद्योगिक अवस्थिति तय कर ली गई। प्रत्येक राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत प्रमुख उद्योगों की स्थापना अपने सीमा-क्षेत्र में कराने के लिये प्रयासरत रहता है और स्थान चयन संबंधी निर्णय प्रायः राजनीति से प्रेरित होते हैं।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में घाटे: विकास के समाजवादी प्रारूप पर ध्यान केंद्रित करने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के तहत निवेश में आरंभिक पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
    • लेकिन लालफीताशाही और तनावपूर्ण श्रम-प्रबंधन संबंधों से ग्रस्त अप्रभावी नीति कार्यान्वयन के कारण इनमें से अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम घाटे में चल रहे हैं।
    • प्रत्येक वर्ष सरकार को इस घाटे की भरपाई के लिये और कर्मचारियों को वेतन देने के दायित्वों की पूर्ति के लिये भारी व्यय करना पड़ता है।
भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये प्रमुख सरकारी पहलें
  • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) – घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिये।
  • पीएम गति शक्ति – राष्ट्रीय मास्टर प्लान - मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना।
  • भारतमाला परियोजना – उत्तर-पूर्व भारत में कनेक्टिविटी में सुधार के लिये
  • स्टार्ट-अप इंडिया – भारत में स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिये
  • मेक इन इंडिया 2.0 – भारत को वैश्विक डिज़ाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिये।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान – आयात निर्भरता में कमी लाने के लिये
  • विनिवेश योजनाएँ – भारत के आर्थिक पुनरुद्धार का समर्थन करने के लिये
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र – अतिरिक्त आर्थिक गतिविधि सृजन और वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये।
  • MSME इनोवेटिव स्कीम – इन्क्यूबेशन और डिज़ाइन इंटरवेंशन के माध्यम से विचारों को नवोन्मेष में विकसित कर संपूर्ण मूल्य शृंखला को बढ़ावा देने के लिये

आगे की राह


  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाएँ: सार्वजनिक निवेश बढ़ाने और ‘पीपीपी’ (Public-Private Partnership- PPP) परियोजनाओं का निर्माण करने की आवश्यकता है, जिससे दक्षता और पारदर्शिता बढ़ेगी।
    • घाटकोपर और वर्सोवा के बीच मुंबई मेट्रो की पहली लाइन पीपीपी मॉडल पर बनाई गई थी।
  • अवसंरचनात्मक बाधा को दूर करना: भौतिक अवसंरचना क्षेत्रों में क्षमता वृद्धि की धीमी दर औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि को बाधित कर रही है। कोर सेक्टर में क्षमता वृद्धि और अवसंरचनात्मक बाधाओं को दूर करने से मध्यम अवधि और दीर्घावधि में औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन में तेज़ी आएगी।
  • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का इष्टतम उपयोग: कुल जनसंख्या में युवा कामकाजी आबादी की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ भारत अपनी चरम विनिर्माण क्षमता हासिल कर सकता है क्योंकि अगले दो-तीन दशकों में इसके जनसांख्यिकीय लाभांश और एक बड़े कार्यबल से इसे लाभ प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • ‘अनुसंधान और विकास’ में सुधार लाना: औद्योगिक अनुसंधान और विकास को सामान्य रूप से और विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्र-विशेष के लिये सशक्त करने की आवश्यकता है ताकि औद्योगिक क्षेत्र अधिक मांग-प्रेरित हो सके।
  • वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने की क्षमता: भारत का विनिर्माण उद्योग ‘उद्योग 4.0’ की दिशा में पहले ही आगे बढ़ रहा है जहाँ हर डेटा पॉइंट को संयुक्त किया जाएगा और उसका विश्लेषण किया जाएगा।
    • इंजीनियरों की बड़ी संख्या, युवा श्रम शक्ति और कम मज़दूरी (चीन से लगभग आधी) भारत को एक ‘ग्लोबल पावरहाउस’ बनने के लिये सुदृढ़ करती है।
  • औद्योगिक नीति में सुधार: मध्यावधि से लेकर दीर्घावधि तक दोहरे अंकों की उत्पादन वृद्धि को बनाए रखने और मुख्य क्षेत्र की कमज़ोरियों को कम करने के लिये एक प्रभावी औद्योगिक नीति ढाँचा तैयार करने की आवश्यकता है ताकि बहुआयामी सुधारों के एक और दौर की शुरुआत हो।
The document The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2209 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2209 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

past year papers

,

Exam

,

The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Sample Paper

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Extra Questions

,

shortcuts and tricks

,

Semester Notes

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Free

,

Objective type Questions

,

MCQs

,

ppt

,

Summary

,

practice quizzes

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Important questions

,

The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

pdf

,

mock tests for examination

,

The Hindi Editorial Analysis - 3 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

video lectures

,

study material

,

Viva Questions

;