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The Hindi Editorial Analysis - 8 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

ताइवान पर अमेरिका-चीन में संघर्ष

संदर्भ

अमेरिकी स्पीकर नैन्सी पेलोसी की हाल की ताइवान यात्रा को चीन ने पसंद नहीं किया है। इसने दो शक्तिशाली देशों- चीन और अमेरिका के बीच तीव्र तनाव पैदा कर दिया है क्योंकि चीन ताइवान को अपने एक पृथकतावादी प्रांत (Breakaway Province) के रूप में देखता है।

  • ताइवान, जो स्वयं को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है, पर लंबे समय से चीन द्वारा इसपर दावा किया जाता रहा है। लेकिन ताइवान अमेरिका को अपने सबसे बड़े सहयोगी के रूप में देखता है, जबकि वाशिंगटन ने एक विधान पारित कर रखा है जिसके अनुसार, ताइवान के आत्मरक्षा प्रयासों में अमेरिका उसकी सहायता करेगा।

ताइवान पर अमेरिका-चीन टकराव

  • ताइवान (आधिकारिक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’) पूर्वी एशिया में अवस्थित एक देश है। यह उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में पूर्वी और दक्षिण चीन सागर के मिलन-बिंदु पर जापान और फिलीपींस के बीच सबसे बड़ा स्थल भाग है।
    • ताइवान सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये उल्लेखनीय है और सेमीकंडक्टर की वैश्विक आपूर्ति शृंखला वृहत रूप से ताइवान पर निर्भर है।

चीन के लिये प्रासंगिकता: चीन और ताइवान की अर्थव्यवस्थाएँ अटूट रूप से जुड़ी हुई हैं। वर्ष 2017 से 2022 के बीच 515 बिलियन डॉलर के निर्यात मूल्य के साथ चीन ताइवान का सबसे बड़ा निर्यात भागीदार है। चीन की तुलना में लगभग आधे निर्यात मूल्य के साथ अमेरिका इसका दूसरा सबसे बड़ा भागीदार है।

  • अमेरिका के लिये प्रासंगिकता: ताइवान में द्वीपों की एक शृंखला मौजूद है जिनमें से कई अमेरिका के सहयोगी हैं। अमेरिका चीन की विस्तारवादी योजनाओं का मुक़ाबला करने के लिये इन क्षेत्रों के उपयोग करने की योजना रखता है।
    • अमेरिका का ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन यह ताइवान संबंध अधिनियम (Taiwan Relations Act), 1979 के तहत ताइवान को स्वयं की रक्षा के लिये साधन प्रदान करने के लिये बाध्य है।
    • यह ताइवान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है और ‘रणनीतिक अस्पष्टता’ (strategic ambiguity) की एक नीति का पालन करता है।

ताइवान मुद्दे पर भारत का रुख

भारत-ताइवान संबंध:

  • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ विदेश नीति के एक अंग के रूप में भारत ने ताइवान के साथ व्यापार और निवेश के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय मुद्दों और लोगों के पारस्परिक संपर्क के क्षेत्र में गहन सहयोग विकसित करने का प्रयास किया है।
    • उदाहरण के लिये, नई दिल्ली में अवस्थित भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) और ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर (TECC)।
    • भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं लेकिन वर्ष 1995 के बाद से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रखा है जो वास्तविक दूतावासों के रूप में कार्य करते हैं।

भारत का रुख:

  • वर्ष 1949 से भारत ‘एक चीन’ (‘One China’) की नीति को स्वीकार करता रहा है जो ताइवान और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देती है।
  • हालाँकि, भारत एक कूटनीतिक तर्क के लिये इस नीति का उपयोग करता रहा है, अर्थात यदि भारत ‘एक चीन’ की नीति में विश्वास करता है तो चीन को भी ‘एक भारत’ की नीति पर अमल करना चाहिये।
  • हालाँकि भारत ने वर्ष 2010 से संयुक्त वक्तव्यों और आधिकारिक दस्तावेजों में ‘एक चीन’ नीति के पालन का उल्लेख करना बंद कर दिया है, लेकिन चीन के साथ संबंधों के ढाँचे के कारण ताइवान के साथ उसकी संलग्नता अभी भी सीमित रही है।

आगे की राह

  • चीन की अर्थव्यवस्था रूस की अर्थव्यवस्था की तुलना में वैश्विक अर्थव्यवस्था से कहीं अधिक गहनता से जुड़ी हुई है। इस स्थिति में चीन यदि ताइवान पर आक्रमक कार्रवाई की इच्छा रखता है तो उसे बेहद सतर्कता से इस कोण पर विचार करना होगा, विशेष रूप से जबकि यूक्रेन संकट अभी भी जारी है।
  • अंततः ताइवान का मुद्दा केवल एक सफल लोकतंत्र के विनाश की अनुमति देने के नैतिक प्रश्न से संबद्ध नहीं है अथवा यह अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता से जुड़ा प्रश्न भर नहीं है। ताइवान पर चीन का आक्रमण किसी भी स्थिति में एशिया के समीकरण को बदल देने की क्षमता रखता है।
  • इसके अलावा, भारत ‘एक चीन’ की नीति पर पुनर्विचार कर सकता है और ताइवान के साथ संबंधों को मुख्यभूमि चीन के साथ अपने संबंधों से अलग खाँचे में रख सकता है, जिस प्रकार चीन ‘एक भारत’ की नीति पर अमल नहीं करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर (जिसे भारत अपना अंग मानता है) में चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के रूप में अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना को आगे बढ़ा रहा है।
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