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The Hindi Editorial Analysis - 19 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण का भविष्य


संदर्भ

अर्थव्यवस्था के विस्तार, जनसंख्या वृद्धि, बढ़ते शहरीकरण, बदलती जीवन शैली और व्यय शक्ति में वृद्धि के साथ देश की ऊर्जा मांग बढ़ती जा रही है। वर्तमान में सड़क परिवहन क्षेत्र में ईंधन की आवश्यकता का लगभग 98% जीवाश्म ईंधन (Fossil fuels) से और शेष 2% जैव ईंधन (Biofuels) द्वारा पूरा किया जाता है।

  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 (National Policy on Biofuels 2018) इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (Ethanol Blended Petrol- EBP) कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol blending) का एक सांकेतिक लक्ष्य प्रदान करती है।
  • भारत जैसे तेज़ी से विकास करते देश के लिये ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करना और एक उन्नतिशील निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जबकि इथेनॉल सम्मिश्रण CO2 उत्सर्जन को कम कर सकता है, इथेनॉल उत्पादन के लिये अकुशल भूमि एवं जल उपयोग के साथ ही खाद्य सुरक्षा चिंताएँ अभी भी बनी हुई हैं।

इथेनॉल सम्मिश्रण से अभिप्राय

  • इथेनॉल एक कृषि सह-उत्पाद है जो मुख्य रूप से गन्ने से चीनी के प्रसंस्करण के दौरान प्राप्त होता है। यह चावल की भूसी या मक्का जैसे अन्य स्रोतों से भी प्राप्त होता है।
  • वर्तमान में हमारे वाहनों में उपयोग किये जा रहे पेट्रोल में 10% इथेनॉल मिश्रित होता है।
    • भारत वर्ष 2030 तक इस अनुपात को 20% तक बढ़ाने का मूल लक्ष्य रखता था, लेकिन वर्ष 2021 में नीति आयोग द्वारा इथेनॉल रोडमैप जारी किये जाने के साथ अब इस लक्ष्य को 2025 तक पूरा कर लेने की प्रतिबद्धता जताई गई है।

भारत के लिये इथेनॉल सम्मिश्रण का महत्त्व

  • भारत ने वाहन निकास उत्सर्जन को कम करने के लिये पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण को अपनाया है।
    • वर्ष 2020-21 में भारत द्वारा पेट्रोलियम का शुद्ध आयात 185 मिलियन टन रहा था। अधिकांश पेट्रोलियम का उपयोग वाहनों द्वारा किया जाता है और इसलिये एक सफल 20% इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम देश के लिये प्रति वर्ष 4 बिलियन डॉलर की बचत कर सकता है।
  • नवीकरणीय इथेनॉल कंटेंट से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और हाइड्रोकार्बन (HC) के उत्सर्जन में शुद्ध कमी आने की उम्मीद है।
  • इथेनॉल ब्लेंडिंग से देश के तेल आयात में कमी आएगी जिस पर उल्लेखनीय मात्रा में मूल्यवान विदेशी मुद्रा का व्यय करना पड़ता है।
  • कृषि अवशेषों से अधिकाधिक इथेनॉल का उत्पादन किसानों की आय में वृद्धि करेगा और पराली जलाने की घटना में कमी लाकर वायु प्रदूषण को न्यूनतम करेगा।

इथेनॉल सम्मिश्रण से संबद्ध चुनौतियाँ

  • गन्ना उत्पादन की ओर बढ़ना: 20% मिश्रण दर प्राप्त करने के लिये देश के मौजूदा शुद्ध बुवाई क्षेत्र के लगभग दसवें भाग को गन्ना उत्पादन की ओर मोड़ना होगा।
    • किसी एक फसल के लिये भूमि की ऐसी आवश्यकता से अन्य फसलों पर दबाव पड़ने की संभावना है और इससे खाद्य कीमतों में वृद्धि आ सकती है।
  • भंडारण की कमी: आवश्यक जैव-रिफाइनरियों की वार्षिक क्षमता 300-400 मिलियन लीटर निर्धारित की गई है, जो अभी भी 5% पेट्रोल-इथेनॉल मिश्रण की आवश्यकता को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
    • भंडारण मुख्य चिंता का विषय होने जा रहा है, क्योंकि अगर E10 आपूर्ति को E20 आपूर्ति के साथ जारी रखना है तो भंडारण को अलग करना होगा जो फिर लागत बढ़ाएगा।
      • E10 ईंधन 90% पेट्रोल के साथ 10% इथेनॉल का मिश्रण है।
      • E20 ईंधन 80% पेट्रोल के साथ 20% इथेनॉल का मिश्रण है।
  • खाद्य असुरक्षा: पेट्रोल टैंक तक पहुँचता चीनी और गन्ना उत्पादन फिर साथ-साथ हमारे खाद्य, पशुओं के चारे, गोदामों में बफ़र स्टॉक या निर्यात हेतु पर्याप्त नहीं होगा।
    • भारत के लिये एक साथ घरेलू खाद्य आपूर्ति प्रणाली को सुदृढ़ करना, अनाज के लिये एक निर्यात बाज़ार बनाए रखना और आने वाले वर्षों में अपेक्षित दर पर अनाज को इथेनॉल में बदलना आसान नहीं होगा। यह ऐसा विषय है जिस पर लगातार निगरानी रखने की आवश्यकता होगी।
  • राज्यों के बीच इथेनॉल परिवहन की अस्थिरता: इथेनॉल के अंतर-राज्य परिवहन में अवरोध है क्योंकि सभी राज्यों द्वारा उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के संशोधित प्रावधानों को एकसमान रूप से लागू नहीं किया गया है।
    • फीडस्टॉक या उद्योगों की अनुपलब्धता के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में इथेनॉल सम्मिश्रण को नहीं अपनाया गया है।
  • नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं: चूँकि इथेनॉल का पेट्रोल की तुलना में पूरी तरह से दहन होता है, यह कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे उत्सर्जन नहीं करता है। लेकिन नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आती जो एक प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक है।

भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018
  • E100 पायलट प्रोजेक्ट
  • प्रधानमंत्री जी-वन (JI-VAN) योजना 2019
  • प्रयुक्त कुकिंग ऑइल का पुनःउपयोग (Repurpose Used Cooking Oil- RUCO)

आगे की राह

  • इथेनॉल ब्लेंड की एकसमान उपलब्धता सुनिश्चित करना: अखिल भारतीय उपयोग को सक्षम करने के लिये इथेनॉल ब्लेंड को अधिशेष वाले राज्यों से कमी वाले राज्यों में आपूर्ति करने की आवश्यकता होगी ताकि देश में इथेनॉल ब्लेंड की एकसमान उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • उन्नत जैव ईंधन को बढ़ावा देना: गैर-खाद्य फीडस्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन (जिसे ‘उन्नत जैव ईंधन’/ Advanced Biofuels के रूप में जाना जाता है और जिसमें दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन शामिल हैं) की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि खाद्य उत्पादन प्रणाली में कोई अवरोध उत्पन्न किये बिना इस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध संसाधन का दोहन किया जा सके।
  • आपूर्ति संवृद्धि: विभिन्न फीडस्टॉक्स से इथेनॉल उत्पादन के लिये योजनाएँ और जैव-रिफाइनरियों एवं उनकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन।
  • मंज़ूरी के लिये एकल खिड़की: इथेनॉल उत्पादन हेतु नई और विस्तारित परियोजनाओं को त्वरित मंज़ूरी देने के लिये एकल खिड़की मंजूरी प्रणाली तैयार की जानी चाहिये।
  • इथेनॉल के लिये न्यूनतम मूल्य निर्धारित करना: विस्तारित/नई इथेनॉल क्षमताओं में अनुमेयता लाने और उद्यमियों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार तेल विपणन कंपनियों द्वारा खरीद हेतु वृद्धि उपबंध (escalation clause) के साथ कुछ वर्षों के लिये इथेनॉल का न्यूनतम मूल्य निर्धारित कर सकती है।
  • खाद्य सुरक्षा और इथेनॉल सम्मिश्रण के बीच संतुलन रखना: भारत की जैव ईंधन नीति यह निर्धारित करती है कि ईंधन की आवश्यकताओं को खाद्य आवश्यकताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा से बचना चाहिये और केवल अतिरिक्त खाद्य फसलों का उपयोग ही ईंधन उत्पादन के लिये किया जाना चाहिये।
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