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वर्तनी किसे कहते है? परिभाषा और उदाहरण | Hindi Language for Teaching Exams - DSSSB TGT/PGT/PRT PDF Download

परिभाषा

वर्तनी शब्द का अर्थ है- अनुसरण करना, अर्थात पीछे-पीछे चलना। भाषा के उच्चरित रूप या बोलने में जो कहा जाता है अथवा उच्चरित किया जाता है, उसी के अनुरूप या अनुसार लिखा भी जाता है; इसे ही वर्तनी कहते हैं। भाषा का लिखित रूप वर्तनी की सहायता लेता है। अतः भाषा के उच्चरित रूप को उसी रूप में लिपिबद्ध करना ‘वर्तनी’ कहलाता है।

वर्तनी का महत्व

  • वर्तनी की सहायता से युग-युगों से संचित ज्ञान हमें आज भी लिखित रूप में प्राप्त होता है।
  • वर्तनी के द्वारा लिपिबद्ध साहित्य और ज्ञान-विज्ञान देश की सीमाओं को भी लांघता है और सभी को सुलभ हो जाता है।
  • वर्तनी के माध्यम से दूरस्थ लोगों में पत्र और संदेश का आदान-प्रदान होता है।

वर्तनी की एकरूपता

वर्तनी की एकरूपता से भाषा का मानक रूप स्थायी बनता है तथा इसमें भ्रांतियों के अवसर नहीं रहते हैं।

वर्तनी की सहायता से भाषा लिखित रूप प्राप्त करती है। यदि वर्तनी अशुद्ध हो तो स्वाभाविक है, कि भाषा भी अशुद्ध होगी तथा इससे भाषा की मानकता प्रभावित होगी।

वर्तनी में अनुद्धि के विशेष कारण होते हैं। जैसे-

  • लिपि के संबंध में पूर्ण ज्ञान न होना,
  • व्याकरण का ज्ञान न होना,
  • शुद्ध उच्चारण न करना आदि

हिंदी वर्तनी के कुछ आवश्यक नियम

  1. कारक तथा उनके चिह्न (विभक्ति चिह्न)
    • लिखने में कारकों की विभक्तियाँ अन्य शब्दों से जोड़कर नहीं, अपितु अलग लिखनी चाहिए। जैसे- मोहन ने – कर्ता कारक, सोहन को – कर्म कारक आदि।
    • सर्वनाम में विभक्तियाँ जोड़कर लिखी जाती हैं। जैसे- उसने, मुझसे, उसको, मेरा आदि।
  2. निपात-शब्द या अव्यय
    • यदि सर्वनाम और विभक्ति के बीच निपात जैसे- ही, को आदि आ जाएँ, तो उन्हें अलग लिखा जाता है। जैसे- (क) मैं आप ही के लिए लाया हूँ। (ख) उस ही से मुझे यह समाचार मिला।
    • कुछ अव्यय शब्द पृथक लिखे जाते हैं, यथा – ‘तक’ और ‘साथ’ (मेरे साथ, वहाँ तक)।
    • आदरसूचक अव्यय ‘श्री’ और ‘जी’ भी अलग लिखे जाते हैं। उदाहरणार्थ- श्री राम, रोशनलाल जी।
    • जिन अव्ययों के साथ विभक्ति चिह्न आते हैं, वे चिह्न भी अलग लिखे जाते हैं। यथा- यहां से, सदा से, तब से।
  3. संयुक्त और सहायक क्रिया
    • संयुक्त क्रिया और सहायक क्रिया को एक साथ नहीं, अपतिु पृथक् लिखना चाहिए। जैसे- (क) मोहन जा सकता था। (ख) वे आ सकते थे।
    • पूर्वकालिक क्रियाएँ एक शब्द के रूप में मिलाकर लिखते हैं। यथा- खा पीकर, रो रोकर, पढ़कर, सोकर
    • कभी-कभी इनके बीच में योजक का प्रयोग अधिक स्पष्टता के लिए किया जाता है। जैसे- पढ़-लिखकर, रो-रोकर, खा-पीकर
  4. योजक चिह्न का प्रयोग
    • से, सा, जैसा आदि शब्द यदि उपमा या गुणों की समानता प्रकट करने के लिए आते हैं, तो उनमें योजक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए। जैसे-
      (i) हरिश्चंद्र-सा सत्यवादी।
      (ii) लक्ष्मीबाई- जैसी स्त्री।
      (iii) द्वंद्व समास में योजक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए। जैसे- माता-पिता, रात-दिन, भाई-बहन आदि।प्रायः तत्पुरूष समासों में हाइफन या योजक चिह्न की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे- नगरवासी, बलिवेदी, गंगाजल आदि। यदि भ्रम उत्पन्न होने की संभावना हो, तो हाइफन लगाते हैं जैसे- भू-तत्व।
  5. संस्कृत से जो तत्सम शब्द हिंदी में आए हैं, उन्हें उसी रूप में लिखा जाना चाहिए। जिन शब्दों को हिंदी में हलंत रहित कर दिया गया है, उनमें संस्कृत के आधार पर पुनः हलंत लगाना आवश्यक नहीं है। यथावर्तनी किसे कहते है? परिभाषा और उदाहरण | Hindi Language for Teaching Exams - DSSSB TGT/PGT/PRTसंस्कृत के कुछ तत्सम शब्द, जो उसी रूप में हिंदी में अपनाए गए हैं, उन्हें उसी प्रकार लिखना चाहिए। ब्रह्म, उऋण, गृहीत, अत्यधिक, चिह्न, अनधिकार, प्रदर्शनी आदि।
  6. अशुद्ध उच्चारण के कारण वर्तनी की अशुद्धियाँ
    • इ-ई से संबंधितवर्तनी किसे कहते है? परिभाषा और उदाहरण | Hindi Language for Teaching Exams - DSSSB TGT/PGT/PRT
    • उ-ऊ से संबंधित – रूप (रूप), गुरू (गुरू)
    • स के स्थान पर श – प्रसाद (प्रशाद), शासक (शाशक)
    •  श के स्थान पर स – शायद (सायद), शब्द (सब्द)
      इनमें कोष्ठक में लिखे रूप अशुद्ध हैं।
    • ण के स्थान पर न- प्रनाम, गुन (यहां ध्यान रखना चाहिए कि ‘ण‘ का प्रयोग संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है और ‘न‘ का प्रयोग हिंदी में तद्भव शब्दों में किया जाता है।)
    • व के स्थान पर ब- ब्यापार, बीणा, बर्षा।
    • ढ और ढ़ का प्रयोग- ढ़ का प्रयोग प्रायः शब्द के आरंभ में नहीं होता है। जैसे- पढ़ना, गढ़ना।
    • ई-यी-ई के उच्चारण के कारण कुछ शब्दों के अंत में ‘यी’ के स्थान पर ‘ई’ का प्रयोग होता है; जबकि होना ‘यी’ ही चाहिए। जैसे- स्थायी, वाजपेयी, उत्तरदायी आदि।
    • इ और ई- वाक्य के अंत में यदि ‘ई’ के बाद कुछ जोड़ा जाए और यदि शब्द बहुवचन बने, तो ई को इ बना देते हैं। जैसे- लड़की लड़कियाँ विद्यार्थी विद्यार्थियों
    • उ और ऊ- इसी प्रकार वाक्य के अंत में यदि ‘ऊ’ के बाद कुछ जोड़ा जाए तो ‘ऊ’ का ‘उ’ हो जाता है। जैसे- साधू-साधुओं, डाकू-डाकुओं
  7. अनुनासिक और अनुस्वार
    • अब अनुनासिक का प्रयोग अधिकांशतः उन शब्दों में किया जाता है, जिनमें शिरोरेखा के ऊपर कोई और मात्रा नहीं लगाई जाती है। जैसे- हँसना, ऊँगली, आँख, गँवार, साँस, ऊँट आदि।
    • यदि शिरोरेखा के ऊपर अन्य मात्रा लगाई गई हो, तो अनुस्वार के स्थान पर अनुनासिक का प्रयोग किया जाता है। जैसे- मैँ को मैं, ईँधन को ईंधन, सेँकना को सेंकना
  8. श, स और ष के प्रयोग में अशुद्धियाँ
    ‘श’ की ध्वनि तालव्य है, ‘ष’ की ध्वनि मूर्धन्य है और ‘स’ की ध्वनि दंत्य है। अतः इनके शुद्ध उच्चारण से वर्तनी की अशुद्धि दूर की जा सकती है। निम्न नियमों को ध्यान में रखकर इनके सही प्रयोग को जान लेना चाहिए-
    • यदि क, ख, प, फ तथा ट और ठ वर्णों से पहले विसर्ग हो, तो वह ‘ष‘ में बदल जाता है। जैसे- निः + पाप = निष्पाप, निः + फल = निष्फल
    • यदि ‘क’ वर्ग तथा ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो ‘स’, ‘ष’ में बदल जाता है। जैसे – वि + सम = विषम, अभि + सेक = अभिषेक।
    • संस्कृत के तत्सम शब्दों का ‘श’ तद्भव में ‘स’ बन जाता है। जैसे- शूली-सूली
    • ‘च’ और ‘छ’ वर्ण से पहले प्रायः ‘श’ का ही प्रयोग होता है। जैसे – निश्च्छल, निश्चय।
    • इसी प्रकार ऋ के बाद तथा ‘ट’ वर्ग से पहले ‘ष’ ही आता है। जैसे- ऋषि, कृषि, कष्ट, दुष्ट, अन्वेषण, षडानन आदि।
    • शब्द और पदों में यदि ‘श’, ‘ष’ और ‘स’ साथ हों, तो उनका क्रम वर्णमाला के ही अनुसार होता है। जैसे- शासक, प्रशंसा, शोषण।
    • ‘ष’ का प्रयोग प्रायः संस्कृत के पदों और मूल धातुओं में मिलता है। यथा- संतोष, भाषा, शिष्ट, षटकोण।
    • समस्त पदों में यदि दो से अधिक शब्द साथ हों, तो योजक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए। जैसे- राज-भक्ति, जन्म-दिन, गृह-विज्ञान और मन-वचन-कर्म, रवि-शशि-नक्षत्र।
  9. द्वित्व अक्षरों की अशुद्धियाँ
    सभी वर्णों के दूसरे और चैथे अक्षर द्वित्व रूप में नहीं लिखे जाते हैं। जैसे-
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FAQs on वर्तनी किसे कहते है? परिभाषा और उदाहरण - Hindi Language for Teaching Exams - DSSSB TGT/PGT/PRT

1. परिभाषावर्तनी किसे कहते है?
उत्तर: परिभाषावर्तनी को वह प्रक्रिया कहा जाता है जिसमें एक शब्द, वाक्य या वाक्यांश की परिभाषा बदलकर उसका अर्थ मोड़ा जाता है। इसका उदाहरण इस प्रकार हो सकता है कि "दूध" शब्द की परिभाषा को "गाय के लिए मात्र आहार" से "संग्रहित वसा और ऊबड़ वाले कार्बोहाइड्रेट का एक पदार्थ" में बदला जाता है।
2. परिभाषावर्तनी का उदाहरण दें।
उत्तर: एक उदाहरण देने के लिए हम पहले ही दूध की परिभाषा ले चुके हैं, इसे अगले तरह से बदला जा सकता है - "दूध" का अर्थ है "एक प्रकार का पेयजल"।
3. परिभाषावर्तनी क्यों किया जाता है?
उत्तर: परिभाषावर्तनी का उद्देश्य शब्द, वाक्य या वाक्यांश के अर्थ में परिवर्तन करके उसका स्पष्टीकरण करना होता है। यह पठन-पाठन के संदर्भ में अधिक स्पष्टता और समझदारी प्रदान करने के लिए किया जाता है।
4. परिभाषावर्तनी किस प्रकार की प्रक्रिया है?
उत्तर: परिभाषावर्तनी एक क्रियात्मक प्रक्रिया है जिसमें शब्द, वाक्य या वाक्यांश की परिभाषा को बदलकर उसका अर्थ मोड़ा जाता है। इसके द्वारा शब्दों के अर्थ का स्पष्टीकरण किया जाता है ताकि पाठन-पाठन का अधिक समझदारी और स्पष्टता प्राप्त हो सके।
5. परिभाषावर्तनी क्या होती है?
उत्तर: परिभाषावर्तनी एक शब्द, वाक्य या वाक्यांश की परिभाषा को बदलकर उसका अर्थ मोड़ने की प्रक्रिया है। इसके माध्यम से शब्दों के अर्थ को स्पष्टीकृत किया जाता है ताकि पाठन-पाठन का अधिक समझदारी और स्पष्टता हो सके।
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