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The Hindi Editorial Analysis - 14 September 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत में खाद्य सुरक्षा


संदर्भ

  • भारत ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक विकास किया है और यह विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विभिन्न उपलब्धियों के बावजूद देश में गरीबी और खाद्य असुरक्षा की स्थिति अभी भी चिंता का विषय है। खाद्य या आहार को किसी व्यक्ति के भरण-पोषण, विकास और वृद्धि के लिये मूलभूत आवश्यकता माना जाता है।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI), 2021 में भारत 116 देशों के बीच 101वें स्थान पर रहा। खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) के अनुसार वर्ष 2021-22 में खाद्य मूल्य सूचकांक (Food Price Index- FPI) में 30% की वृद्धि हुई है।

खाद्य सुरक्षा क्या है?

  • खाद्य सुरक्षा (Food Security) की अवधारणा बहुआयामी है। जीवन के लिये खाद्य उतना ही आवश्यकता है, साँस लेने के लिये हवा। लेकिन खाद्य सुरक्षा का अर्थ दो वक्त भोजन प्राप्त होने तक ही सीमित नहीं है। इसके निम्नलिखित आयाम हैं:
    • उपलब्धता (Availability): इसका अर्थ है देश के भीतर खाद्य का उत्पादन, खाद्य का आयात और सरकारी अन्न भंडारों में स्टॉक की उपलब्धता।
    • अभिगम्यता या पहुँच (Accessibility): इसका अर्थ है कि खाद्य तक बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच हो।
    • वहनीयता (Affordability): इसका तात्पर्य है आहार संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य खरीदने के लिये व्यक्ति के पास पर्याप्त धन होना।

भारत में खाद्य सुरक्षा के लिये वर्तमान ढाँचा

  • संवैधानिक प्रावधान: हालाँकि भारतीय संविधान में खाद्य या भोजन के अधिकार (right to food) के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के मूल अधिकार की व्याख्या में मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार को निहित माना जा सकता है और इस क्रम में फिर भोजन का अधिकार एवं अन्य मौलिक आवश्यकताएँ भी इसमें शामिल होंगी।
  • बफर स्टॉक: यह भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) का मुख्य उत्तरदायित्व है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्न की खरीद करे और विभिन्न स्थानों पर अवस्थित अपने गोदामों में इन्हें संग्रहीत रखे तथा वहाँ से आवश्यकता के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA): यह खाद्य सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण में एक आमूलचूल परिवर्तन को इंगित करता है जहाँ अब यह कल्याण (welfare) के बजाय अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (rights-based approach) में बदल गया है।
  • NFSA निम्नलिखित माध्यमों से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को दायरे में लेता है:
    • अंत्योदय अन्न योजना: इसमें निर्धनतम आबादी को दायरे में लिया गया है जो fप्रति परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
    • प्राथमिकता वाले परिवार (Priority Households- PHH): PHH श्रेणी के अंतर्गत शामिल परिवार प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त करने के हकदार हैं।
  • अनुसार राज्य सरकारों को इसकी आपूर्ति की जाती है।

भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • मृदा स्वास्थ्य में गिरावट: खाद्य उत्पादन का एक प्रमुख तत्त्व है स्वस्थ मृदा, क्योंकि वैश्विक खाद्य उत्पादन का लगभग 95% भाग मृदा पर ही निर्भर करता है।
    • कृषि-रसायनों के अत्यधिक या अनुचित उपयोग, वनों की कटाई और प्राकृतिक आपदाओं के कारण मृदा का क्षरण संवहनीय खाद्य उत्पादन के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती है। पृथ्वी की लगभग एक तिहाई मृदा पहले ही क्षरित हो चुकी है।
  • आक्रामक खरपतवार के खतरे: पिछले 15 वर्षों में भारत ने आक्रामक कीटों और खरपतवारों के 10 से अधिक हमलों का सामना किया है।
  • कुशल प्रबंधन ढाँचे का अभाव: भारत में खाद्य सुरक्षा के लिये सुदृढ़ प्रबंधन ढाँचे का अभाव है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को खाद्यान्नों के लीकेज एवं डायवर्जन, समावेशन/बहिष्करण त्रुटियाँ, नकली एवं फर्जी राशन कार्ड और कमज़ोर शिकायत निवारण एवं सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • उपार्जन में खामियाँ: न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण किसान अपनी भूमि पर मोटे अनाजों के बजाय चावल और गेहूँ का अधिक उत्पादन करने लगे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: मानसून भारत की वार्षिक वर्षा के लगभग 70% भाग के लिये ज़िम्मेवार है और इसके शुद्ध बुवाई क्षेत्र के 60% को सिंचित करता है। वर्षा के पैटर्न में आ रहे बदलाव और ग्रीष्म लहर (heatwaves), बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता से भारत में कृषि उत्पादकता कम हो रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न हुआ है।
    • खरीफ फसल की निम्न उत्पादकता के बीच घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिये भारत सरकार ने टूटे चावल या कनकी (broken rice) के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • अस्थिर वैश्विक व्यवस्था के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण पहले ही प्रभावित रहे वैश्विक खाद्य आपूर्ति को वर्ष 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण व्यवधान का सामना करना पड़ा है और इसके परिणामस्वरूप खाद्य की कमी और खाद्य मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हुई है।

आगे की राह

  • संवहनीय खेती की ओर आगे बढ़ना: भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी के वृहत उपयोग के माध्यम से उत्पादकता में सुधार लाने, वाटरशेड प्रबंधन को गहन करने, नैनो-यूरिया के उपयोग एवं सूक्ष्म सिंचाई सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाने और सामूहिक प्रयास के माध्यम से राज्यों में फसल उपज अंतराल को कम करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • परिशुद्ध कृषि की ओर आगे बढ़ना: कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फसलों और मृदा को ठीक वही इनपुट मिले जो उनके इष्टतम स्वास्थ्य और उत्पादकता के लिये आवश्यक हैं।
  • राशन कार्डों की आधार सीडिंग: आधार को राशन कार्ड से जोड़ने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये ज़मीनी स्तर के निगरानी उपाय किये जाने चाहिए ताकि सुनिश्चित हो सके कि कोई भी वैध लाभार्थी खाद्यान्न के अपने हक से वंचित नहीं रह गया है। यह शून्य भुखमरी (zero hunger) के लक्ष्य (सतत विकास लक्ष्य-2) की पूर्ति में सहयोग करेगा।
  • JAM के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को JAM ट्रिनिटी प्लेटफॉर्म (जन धन , आधार और मोबाइल) के माध्यम से चिह्नित लाभार्थियों के खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है, जिससे खाद्यान्न की भारी भौतिक आवाजाही की आवश्यकता कम होगी और यह लाभार्थियों को अपनी उपभोग टोकरी चुनने में अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के साथ ही वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देगा।
  • फूड स्टॉक होल्डिंग्स में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: किसानों के साथ संचार चैनलों को बेहतर बनाने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से उन्हें अपनी उपज का बेहतर सौदा करने में मदद मिल सकती है, जबकि नवीनतम तकनीक के साथ भंडारण घरों में सुधार करना प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिये समान रूप से महत्वपूर्ण है।
  • मुद्दों को संबोधित करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना: असमानता, खाद्य विविधता, स्वदेशी अधिकार और पर्यावरण न्याय जैसे विविध मुद्दों को एक साझा चश्मे से देखते हुए भारत एक स्थायी हरित अर्थव्यवस्था की ओर आशापूर्ण कदम बढ़ा सकता है।
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