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The Hindi Editorial Analysis- 10th October 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

प्रत्येक बूँद की गणना


संदर्भ:

  • जल एक प्राकृतिक और आर्थिक संसाधन है, जो अद्वितीय और अपूरणीय है। यह हमारे ग्रह पर असमान रूप से वितरित है, जो इसकी प्रतिस्पर्द्धी और परस्पर विरोधी प्रकृति को रेखांकित करता है। इस दुर्लभ संसाधन के असमान वितरण का एक बढ़ती हुई जनसंख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का एक उपयुक्त उदाहरण भारत पेश करता है।
  • भारत विश्व की कुल आबादी में 18% की हिस्सेदारी रखता है। लेकिन इस आबादी के लिये जल की बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति के लिये भारत के पास विश्व के ताज़े जल संसाधनों का केवल 4% मौजूद है, जो जल वितरण और पहुँच की चुनौती को दर्शाता है।
  • भारत सरकार ने अपने  जल जीवन मिशन (ग्रामीण एवं शहरी) के माध्यम से ‘जल के अधिकार’ को मान्यता प्रदान की है और पूरी तरह कार्यात्मक टैप वाटर कनेक्शन का एकसमान वितरण प्रदान करने का लक्ष्य रखती है।
  • लेकिन जल निकायों का कुप्रबंधन, संदूषण और भूजल का अत्यधिक उपयोग जल प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौतियों के साथ-साथ ‘जल के अधिकार’ के दुरुपयोग को उजागर करता है और स्थायी जल प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता को प्रकट करता है।

‘जल का अधिकार’ क्यों आवश्यक है?


  • मानव अधिकार के रूप में जल का अधिकार: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्पष्ट रूप से जल और स्वच्छता के मानव अधिकार को मान्यता दी है और स्वीकार किया कि मानवाधिकारों की पुष्टि के लिये स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता आवश्यक है।
  • जीवन के अधिकार की परिधि के तहत: भारत में जल के अधिकार को संविधान में मूल अधिकार के रूप में प्रतिष्ठापित नहीं किया गया है। हालाँकि संघ के साथ-साथ राज्य स्तरों के न्यायालयों ने सुरक्षित एवं आधारभूत जल के साथ ही स्वच्छता के अधिकार की व्याख्या की है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) में निहित है।
  • सतत विकास लक्ष्य: SDG 6 सभी के लिये जल और स्वच्छता की उपलब्धता एवं संवहनीय प्रबंधन सुनिश्चित करने का आह्वान करता है, जो वैश्विक राजनीतिक एजेंडे में जल और स्वच्छता के महत्त्व की पुष्टि करता है।

जल जीवन मिशन की वर्तमान स्थिति


  • उद्देश्य:
    • जल जीवन मिशन (ग्रामीण): इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों को व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त जल उपलब्ध कराना है।
    • जल जीवन मिशन (शहरी): यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है और इसे भारत के सभी 4,378 सांविधिक शहरों में कार्यात्मक नलों के माध्यम से जल की आपूर्ति का सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
    • यह 500 अमृत शहरों (AMRUT cities) में अन्य फोकस क्षेत्र के रूप में सीवेज/सेप्टेज प्रबंधन का कवरेज प्दान करने का भी लक्ष्य रखता है।
  • प्रदर्शन: गोवा, तेलंगाना और हरियाणा ने सभी घरों में 100% नल कनेक्टिविटी का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
    • पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव जैसे केंद्रशासित प्रदेशों ने भी अपने 100% घरों में नल जल कनेक्शन प्रदान कर दिये हैं।
  • केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट: सरकार के महत्त्वाकांक्षी जल जीवन मिशन के कार्यकरण के आकलन के लिये केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय द्वारा आयोजित सर्वेक्षण के अनुसार:
    • भारत में लगभग 62% ग्रामीण परिवारों के पास अपने परिसर के भीतर पूरी तरह कार्यात्मक नल जल कनेक्शन (प्रति व्यक्ति प्रति दिन कम से कम 55 लीटर जल क्षमता संपन्न) मौजूद हैं।
    • यद्यपि रिपोर्ट में क्लोरीन संदूषण की एक संबंधित समस्या का भी उल्लेख किया गया है।
    • हालाँकि जल के नमूनों के 93% जीवाणु संबंधी संदूषण से कथित रूप से मुक्त थे, अधिकांश आँगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में अवशिष्ट क्लोरीन की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक थी और यह अनुपयुक्त स्थानीय ग्रहण का संकेत दे रही थी।

भारत में जल संसाधनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ


  • भूजल संसाधन का गिरता स्तर:
    • तीव्र शहरीकरण से प्रेरित अनियंत्रित भूजल निकासी के कारण इस मूल्यवान संसाधन में गिरावट आई है।
    • उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश भागों में अब भूजल ज़मीनी स्तर से 100 मीटर नीचे तक चला गया है। वर्तमान निकासी दर के जारी रहने पर भविष्य में भूजल स्तर 200-300 मीटर नीचे जा सकता है।
    • जलभृतों (aquifers) से जल के कम होते जाने के साथ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भूमि अचानक या धीरे-धीरे नीचे धँस सकती है जिसे भूमि अवतलन (land subsidence) के रूप में जाना जाता है।
  • बढ़ता जल प्रदूषण: 
    • घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्ट की एक बड़ी मात्रा को जल निकायों में बहाया जाता है, जिससे जलजनित रोगों और सुपोषण/यूट्रोफिकेशन का खतरा उत्पन्न हो सकता है। ये फ़ूड वेब और विशेष रूप से जलीय पारिस्थितिक तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण जल प्रणाली में अनियमितताएँ: तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव आ रहा है, समुद्र स्तर की वृद्धि हो रही है और तापमान में वृद्धि के साथ वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो रही है जिससे बादल अधिक भारी हो रहे हैं।
    • व्यापारिक पवनें बादलों के अधिक भार के कारण उन्हें उड़ाने में असमर्थ हो जाती हैं, जिससे महासागरों के ऊपर ही अधिक वर्षा देखी जाती है और वर्षा-निर्भर क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बनती है। कई स्थानों पर अत्यधिक वर्षा/बादल फटने (cloudbursts) की घटनाओं से बाढ़ या फ्लैश फ्लड की भी उत्पत्ति होती है।
  • कुशल अपशिष्ट जल प्रबंधन का अभाव: 
    • भारत में जल संसाधनों की कम आपूर्ति के साथ ही अक्षम अपशिष्ट जल प्रबंधन जल का इष्टतम आर्थिक उपयोग कर सकने की देश क्षमता को पंगु बना रहा है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा मार्च 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की वर्तमान जल उपचार क्षमता 27.3% और सीवेज उपचार क्षमता 18.6% है।
    • अधिकांश सीवेज उपचार संयंत्र अधिकतम क्षमता पर कार्य नहीं कर रहे हैं और वे निर्धारित मानकों के अनुरूप भी नहीं हैं।

आगे की राह


  • विकेंद्रीकृत जल-उपयोग ऑडिट: भारत में एक समर्पित जल उपयोग ऑडिट तंत्र की आवश्यकता है जो जागरूकता की कमी, अति प्रयोग और जल निकायों के प्रदूषण के कारण स्थानीय स्तर पर जल वितरण प्रणालियों में जल की क्षति की पहचान करे और इसका उन्मूलन करे।
  • स्थानीयकृत जल संसाधन प्रबंधन: जल जीवन मिशन की भूमिका को दोहरे दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिये, जहाँ जल संसाधनों के आपूर्ति प्रबंधन और संवहनीयता/स्थिरता दोनों पर बल दिया जाना चाहिये, क्योंकि ‘जल जीवन’ शब्द स्वयं में जल के जीवन का भी प्रतीक है। मानव के स्वस्थ जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है जब वह जल के स्वस्थ जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करे।
  • इस प्रकार, शहर स्तर पर प्रभावी वाटरशेड प्रबंधन योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है और सभी घरों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • जल जीवन मिशन के साथ महिला सशक्तिकरण का सम्मिश्रण करना: चूँकि जल की कमी महिलाओं के लिये असमान रूप से अहितकारी है, नल के जल की उपलब्धता और अभिगम्यता सुनिश्चित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को अपने बच्चों को समय देने और विकास प्रक्रिया में भाग लेने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, यह मिशन महाराष्ट्र में प्रचलित ‘जल पत्नी’ (Water Wives) की प्रथा को कम करने में मदद कर सकता है।
  • ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति (VWSC) में 50 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना इस दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है।
  • जल संरक्षण क्षेत्र और जल धन अभियान: जल पुनर्भरण हेतु समय देने के लिये सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के पुनर्भरण या आगे निकासी पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। इसे शहरों में ऐसे जल संरक्षण क्षेत्र (Water Conservation Zones) स्थापित कर प्राप्त किया जा सकता है जहाँ शून्य-दोहन (zero-exploitation) की स्थिति निर्मित की जाए।
  • नागरिकों को जल के कुशल उपयोग के बारे में सूचित करने के लिये जागरूकता अभियान भी चलाया जाना चाहिये, जिसके लिये ‘नीर’ नामक एक शुभंकर का उपयोग किया जा सकता है।
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