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Economic Development (आर्थिक विकास): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

कर्नाटक लौह अयस्क खनन

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक में बेल्लारी, चित्रदुर्ग और तुमकुर ज़िलों के लिये लौह अयस्क खनन की "सीमा" को यह कहते हुए बढ़ा दिया कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण का संरक्षण आर्थिक विकास की भावना के साथ-साथ होना चाहिये।
  • कर्नाटक में लौह अयस्क के उत्पादन और बिक्री पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के दस वर्ष बाद न्यायालय ने अपने ही आदेशों में ढील दी है।

कर्नाटक लौह अयस्क खनन प्रतिबंध

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन के लिये वर्ष 2009 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की जाँच शुरू होने के बाद बेल्लारी में ओबुलापुरम खनन कंपनी (OMC) को प्रतिबंधित कर दिया।
  • अवैध खनन के परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति की लूट हुई, राजकोष को भारी नुकसान हुआ, वन भूमि पर कब्जा कर लिया, पर्यावरण को भारी क्षति हुई और स्थानीय आबादी के बीच बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य का मुद्दा उठा।
  • वर्ष 2008 और वर्ष 2011 की दो लोकायुक्त रिपोर्टों ने अवैध खनन घोटाले में शामिल तीन मुख्यमंत्रियों सहित 700 से अधिक सरकारी अधिकारियों का खुलासा किया।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की रिपोर्ट के पश्चात् खनन बड़े पैमाने पर हो रहे उल्लंघन की ओर ध्यान दिया गया तथा सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में बेल्लारी में खनन कार्यों को रोकने हेतु एक आदेश जारी किया।
  • इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक से लौह अयस्क के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका उद्देश्य पर्यावरणीय क्षरण को रोकना और अंतर-पीढ़ीगत इक्विटी की अवधारणा के हिस्से के रूप में भावी पीढ़ियों के लिये संरक्षित करना था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने A और B श्रेणी की खानों के लिये अधिकतम अनुमेय वार्षिक उत्पादन सीमा 35 MMT भी तय की।
  • इसने भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को अवैध खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिये एक सुधार और पुनर्वास (R&R) योजना तैयार करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2012 मेंं सर्वोच्च न्यायालयने 18 "श्रेणी A" खानों का परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति दी।

खानों को उनके द्वारा की गई अवैधताओं की सीमा के आधार पर वर्गीकृत किया गया था

श्रेणी की खदानें ये "पट्टे हैं जिनमें कोई अवैधता/सीमांत अवैधता नहीं पाई गई है"

  • अधिक गंभीर उल्लंघन वाली खदानें उनके द्वारा अवैधता के आधार पर B और C श्रेणियों में आती हैं।
  • एक बार जब खदानों को फिर से संचालित करने की अनुमति मिली तो अयस्क को नीलामी के माध्यम से आवंटित किया गया।

आदेश का निहितार्थ

  • खानों के बंद होने से स्टील मिलों को कच्चे माल की कमी का सामना करना पड़ा जिससे उन्हें भारत के बाहर से आयात करने के लिये मज़बूर होना पड़ा परिणाम स्वरुप वैश्विक लौह अयस्क दिग्गजों के लिये देश व्यापार के लिये खोल दिया गया।
  • उत्पादन, ई-नीलामी और कीमतों पर प्रतिबंधों ने कर्नाटक में लाखों खनन आश्रितों को भी प्रभावित किया था जिससे उनकी आजीविका अनिश्चित हो गई थी।

 इस मुद्दे से सम्बंधित हाल के घटनाक्रम क्या रहे हैं

  • खनन फर्मों की अपील
    • मई 2022 में खनन फर्मों ने सर्वोच्च न्यायालय से बेल्लारी, तुमकुर और चित्रदुर्ग ज़िलों में खनन पट्टेदारों के लिये लौह अयस्क के निर्यात या बिक्री में ई-नीलामी मानदंडों को समाप्त करने की अपील की है।
    • इन्होंने दावा किया कि स्टॉक नहीं बिकने के कारण इन्हें क्लोजर का सामना करना पड़ रहा है।
  • कर्नाटक सरकार का पक्ष: कर्नाटक सरकार सीलिंग सीमा को पूरी तरह से हटाने के पक्ष में है।
  • मूल याचिकाकर्त्ता का पक्ष:मूल याचिकाकर्त्ता ने इस आधार पर किसी भी निर्यात का विरोध किया कि खनिज राष्ट्रीय संपत्ति हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है और केवल तैयार स्टील का निर्यात किया जाना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में पहले से ही उत्खनित हो चुके लौह अयस्क के निर्यात को ई-नीलामी के अलावा अन्य तरीकों से फिर से शुरू करने की अनुमति दी है और इसके साथ ही  निम्नलिखित खदानों के लिये खनन की सीमा को भी बड़ा दिया है:
      • बेल्लारी: 28 MMT से 35 MMT
      • चित्रदुर्ग और तुमकुर: 7 MMT से 15 MMT
  • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि देश के बाकी हिस्सों की खानों के सापेक्ष इन तीन ज़िलों में स्थित खानों के लिये समान प्रतिस्पर्धा बनाए रखना आवश्यक है।

लौह अयस्क खनन में ई-नीलामी

परिचय

  • ई-नीलामी विक्रेताओं (नीलामीकर्त्ताओं) और बोलीदाताओं (व्यापार से व्यावसायिक परिदृश्यों में आपूर्तिकर्त्ता) के बीच एक लेनदेन है जो इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार के माध्यम में होता है।

प्रक्रिया

  • प्रत्येक बोली के पूरा होने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय निगरानी समिति, दस्तावेज़ प्रकाशित करती है जिसमें लौह अयस्क की गुणवत्ता, जिस खदान से संबंधित है, उसके लिये बोली लगाने वालों की संख्या और अंतिम लेने वालों का विवरण सूचीबद्ध होता है।
  • एक बार पंजीकृत होने के बाद खरीदार आगामी नीलामी देख सकता है जिस पर वे बोली लगा सकते हैं।
  • प्रत्येक विक्रेता उस अयस्क की गुणवत्ता को निर्दिष्ट करता है जो उसके प्रकार और उस न्यूनतम मूल्य के अंतर्गत होगा जिस पर बोली शुरू होनी है।
  • विक्रेता वे हैं जिनके पास कानूनी लौह अयस्क खदानें हैं और खरीदार आमतौर पर स्टील निर्माता हैं।

भारत बना विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थ 


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत यूनाइटेड किंगडम को पछाड़कर विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अब संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की ही अर्थव्यवस्था भारत से बड़ी है।
  • अनिश्चितताओं से युक्त विश्व में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6-6.5% की वृद्धि करते के साथ ही भारत वर्ष 2029 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है।

Economic Development (आर्थिक विकास): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

प्रमुख बिंदु

  • नया मील का पत्थर: दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक को पीछे छोड़ना, विशेष रूप से दो शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करने वाली अर्थव्यवस्था, वास्तव में मील का पत्थर है।
  • अर्थव्यवस्था का आकार: मार्च, 2022 की तिमाही में 'सांकेतिक/नॉमिनल कैश टर्म' में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 854.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जबकि यूनाइटेड किंगडम की 816 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी
  • जनसंख्या का आकार: वर्ष 2022 तक भारत की जनसंख्या 1.41 बिलियन है जबकि यूनाइटेड किंगडम की जनसंख्या 68.5 मिलियन है।
  • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद
    • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद आय स्तरों की अधिक यथार्थवादी तुलना प्रदान करता है क्योंकि यह किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद को उस देश की जनसंख्या से विभाजित करता है।
    • भारत में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम बनी हुई है, वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 190 देशों में से 122वें स्थान पर है।
  • गरीबी
    • कम प्रति व्यक्ति आय अक्सर गरीबी के उच्च स्तर की ओर संकेत करती है।
    • 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन में चरम गरीबी की हिस्सेदारी भारत की तुलना में काफी अधिक थी।
    • हालाँकि भारत ने गरीबी पर अंकुश लगाने में काफी प्रगति की है, फिर भी सापेक्ष स्थिति उलट गई है।
  • स्वास्थ्य
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) सूचकांक को प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों, गैर-संचारी रोगों तथा सेवा क्षमता एवं पहुँच सहित आवश्यक सेवाओं के औसत कवरेज़ के आधार पर 0 (सबसे खराब) से 100 (सर्वश्रेष्ठ) के पैमाने पर मापा जाता है।
    • जबकि तेज़ आर्थिक विकास और वर्ष 2005 से स्वास्थ्य योजनाओं पर सरकार की नीति ने भारत के लिये एक अलग सुधार किया है, इसके बावजूद अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
  • मानव विकास सूचकांक (HDI)
    • उच्च सकल घरेलू उत्पाद और तेज़ आर्थिक विकास का अंतिम लक्ष्य बेहतर मानव विकास मानकों का होना है
    • HDI (2019) के अनुसार यूके का स्कोर 0.932 और भारत का स्कोर 0.645 है जो तुलनात्मक रूप से यूके से काफी पीछे है।
    • अपने धर्मनिरपेक्ष सुधार के बावजूद भारत को अभी भी ब्रिटेन की वर्ष 1980 की स्थिति को प्राप्त करने में एक दशक लग सकता है।
  • वर्तमान परिदृश्य
    • नाटकीय बदलाव पिछले 25 वर्षों में भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ पिछले 12 महीनों में पाउंड के मूल्य में गिरावट देखी गई है।
    • वैश्विक भू-राजनीति में सही नीतिगत परिप्रेक्ष्य और पुनर्संरेखण से भी भारत के अनुमानों में उर्ध्मुखी संशोधन (Upward Revision) हो सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे

निर्यात में कमी और आयात में वृद्धि

  • विनिर्माण क्षेत्र की8% की अल्प वृद्धि चिंता का विषय है।
  • साथ ही आयात की तुलना में निर्यात से अधिक होना चिंता का विषय है।

अप्रत्याशित मौसम

  • यह अप्रत्याशित मानसून कृषि विकास और ग्रामीण मांग पर दबाव डाल सकता है।

महँगाई में वृद्धि

  • लगातार सात महीनों से मुद्रास्फीति में लगभग 6% की लगातार वृद्धि हो रही है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्च ऊर्जा और कमोडिटी की कीमतों से प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका उपभोक्ता मांग और कंपनियों की निवेश योजनाओं पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।

भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने 62वें ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (Automotive Component Manufacturers Association-ACMA) के वार्षिक सत्र को संबोधित किया।
  • सत्र का विषय 'फ्यूचर ऑफ मोबिलिटी- ट्रांस्फोर्मिंग टू बी अहेड ऑफ ऑपरच्युनिटी' (Future of Mobility - Transforming to be Ahead of Opportunity) था।
  • ACMA, भारतीय ऑटो कंपोनेंट उद्योग के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था है। 850 से अधिक निर्माताओं की इसकी सदस्यता संगठित क्षेत्र में ऑटो कंपोनेंट उद्योग के कारोबार में 85% से अधिक का योगदान करती है।

सत्र की मुख्य विशेषताएँ

  • इस सत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग के लिये 5-सूत्री कार्य एजेंडा प्रस्तुत किया गया:
  • विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिये गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना।
  • समग्र रूप से विचार करने और खुलेपन एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना से दूसरों के साथ जुड़ने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण रखना।
  • मूल्यवर्द्धन पर बल देना।
  • अप्रतिस्पर्द्धी बाज़ार से बाहर निकलना और उन क्षेत्रों में बाज़ार के नए अवसरों का पता लगाना जहाँ स्वस्थ्य प्रतिस्पर्द्धा हो।
  • उद्योग के लिये बड़े लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षाएँ निर्धारित करना।
  • इसके अलावा सरकार इस बात पर बल देती है कि ऑटोमोटिव कंपोनेंट उद्योग का भविष्य अधिक कनेक्टेड होने, सुविधा पर ध्यान केंद्रित करने, स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ गतिशीलता की ओर उन्मुख होने तथा अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने पर आधारित है।

भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग की स्थिति

परिचय

  • ऑटोमोबाइल उद्योग में यात्री वाहन, वाणिज्यिक वाहन, तिपहिया, दोपहिया और क्वाड्रिसाइकिल सहित सभी ऑटोमोबाइल वाहन शामिल हैं।
  • भारत का मोटर वाहन बाज़ार वर्ष 2021 में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जिसके पूर्वानुमान अवधि (2022-2027) पर1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्ज करते हुए वर्ष 2027 में 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • 4 मिलियन से अधिक मोटर वाहनों के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ भारत दुनिया में ऑटोमोबाइल का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता, दूसरा सबसे बड़ा बस निर्माता और तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक निर्माता है।
  • वर्ष 2025 तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाज़ार 50.000 करोड़ (7.09 अमेरिकी डॉलर) तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सेदारी: 7.1%
  • भारत के निर्यात में हिस्सेदारी: 4.7%

पहल

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स क्षेत्रों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना की घोषणा की।
  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिये पीएलआई योजना (3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत) उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी उत्पादों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और ऑटोमोटिव विनिर्माण मूल्यं शृंखला में निवेश आकर्षित करने हेतु 18% तक के वित्तीय प्रोत्साहन प्रस्तावित करती है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)

  • स्वचालित मार्ग के तहत पूर्ण लाइसेंसिंग के साथ 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है। इसलिये निवेशकों के लिये भारत में अपना विनिर्माण संयंत्र/दुकान स्थापित करना आसान हो गया है।

ऑटोमोटिव मिशन योजना 2016-26 (एएमपी 2026)

  • ऑटोमोटिव मिशन योजना 2016-26 (एएमपी 2026) भारत में ऑटोमोटिव इकोसिस्टम के विकास की दिशा को रेखांकित करती है, जिसमें अनुसंधान, डिज़ाइन, प्रौद्योगिकी, परीक्षण, निर्माण, आयात/निर्यात, बिक्री को नियंत्रित करने के साथ ही ऑटोमोटिव वाहनों, घटकों और सेवाओं का उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण शामिल है।

नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 (NEMMP):

  • एनईएमएमपी पहल भरोसेमंद, किफायती और सक्षम एक्सईवी (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन) को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है जो सरकार-उद्योग दोनों के सहयोग से उपभोक्ताओं के प्रदर्शन और कीमत संबंधी अपेक्षाओं को पूरा कर सके।

ऑटोमोबाइल उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ

  • शेयर्ड कार: गत 3-4 वर्षों में भारत में ओला, उबर जैसे शेयर ए्प में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है।
  • ये एप भारी ट्रैफ़िक में ड्राइविंग जैसी परेशानी के बिना यात्रा को और अधिक सुविधाजनक बनाते हैं तथा वाहन के रखरखाव की लागत से बचाते हैं, वह भी सभी सस्ती दरों पर। इसने निश्चित रूप से स्वामित्व की अवधारणा को चुनौती दी है और इस प्रकार वाहनों की बिक्री को प्रभावित किया है।
  • टाइट क्रेडिट अवेलेबिलिटी: देश में 80-85% वाहनों को राष्ट्रीयकृत बैंकों, निजी बैंकों या NBFC द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
  • कार खरीदने वाले लोगों को ऋण देने में बैंक अतिरिक्त सतर्कता बरत रहे हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर संक्रमण: सरकार क्रमशः 2023 और 2025 तक आंतरिक दहन संचालित दोपहिया एवं तिपहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रही है।
  • यह परिवर्तन अचानक तब आया है, जब ऑटोमोबाइल क्षेत्र की स्थिति पहले से ही विकट है क्योंकि वाहनों की बिक्री दो दशक के निचले स्तर पर आ गई है और रोज़गार में कमी के साथ बाज़ार  की स्थिति भी खराब हो गई है।
  • कमर्शियल वाहनों की मांग में कमी: नए मॉडल के ट्रकों की माल ढुलाई क्षमता में वृद्धि हुई है। इससे नए ट्रकों की मांग में गिरावट आई है क्योंकि उपभोक्ता अपने ट्रकों में माल ढुलाई कर सकते हैं।

ग्रीन फिन्स हब


चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने यूके स्थित चैरिटी रीफ-वर्ल्ड फाउंडेशन के साथ मिलकर ग्रीन फिन्स हब लॉन्च किया।
  • ग्रीन फिन्स हब दुनिया भर में डाइविंग और स्नॉर्कलिंग ऑपरेटरों के लिये वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।

ग्रीन फिन्स

परिचय

  • ग्रीन फिन्स द रीफ-वर्ल्ड फाउंडेशन और UNEP द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वित संरक्षण प्रबंधन दृष्टिकोण है जो समुद्री पर्यटन से जुड़े नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में औसत दर्जे की कमी को प्रदर्शित करता है।
  • मूल रूप से वर्ष 2004 में थाईलैंड में स्थापित ग्रीन फिन्स दृष्टिकोण डाइविंग और स्नॉर्कलिंग पर्यटन उद्योग में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने तथा कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये एक उपकरण है।

लक्ष्य

  • इसका उद्देश्य स्थायी डाइविंग और स्नॉर्कलिंग को बढ़ावा देने वाले पर्यावरण के अनुकूल दिशा-निर्देशों के माध्यम से प्रवाल भित्तियों की रक्षा करना है।
  • यह समुद्री पर्यटन के लिये एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पर्यावरण मानक प्रदान करता है और इसकी मज़बूत मूल्यांकन प्रणाली अनुपालन को मापती है।

ग्रीन फिन्स हब

परिचय

  • ग्रीन फिन्स हब अब तक का पहला वैश्विक समुद्री पर्यटन उद्योग मंच है।
  • यह स्थायी समुद्री पर्यटन को 'बढ़ावा' देगा।
  • इसके 14 देशों के लगभग 700 ऑपरेटरों से दुनिया भर में संभावित 30,000 ऑपरेटरों तक पहुँचने की उम्मीद है।

महत्त्व

  • इसका उद्देश्य ग्रीन फिन्स सदस्यता के माध्यम से समुद्री पर्यटन क्षेत्र में स्थिरता की दिशा में भूकंपीय बदलाव को उत्प्रेरित करना है।
  • प्रवाल भित्तियाँ कम-से-कम 25% समुद्री जीवन का घर हैं, समुद्री-संबंधित पर्यटन के लिये मक्का है, कुछ द्वीप राष्ट्रों में सकल घरेलू उत्पाद में 40% या उससे अधिक का योगदान करते हैं। हालाँकि वे सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र हैं, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के लिये 1.5 या 20०C के वैश्विक तापमान वृद्धि के बीच प्रवाल भित्ति अस्तित्व में है।
  • ग्रीन फिन्स हब के माध्यम से सर्वोत्तम अभ्यास, ज्ञान और नागरिक विज्ञान की बढ़ती पहुँच प्रवाल भित्तियों तथा अन्य नाजुक समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों के भविष्य को सुनिश्चित करने में एक गेम चेंजर हो सकती है।
  • प्लेटफॉर्म दुनिया भर में डाइविंग और स्नॉर्कलिंग ऑपरेटरों द्वारा परीक्षण किये गए समाधानों का उपयोग करके अपनी दैनिक प्रथाओं में सरल, लागत प्रभावी परिवर्तन करने में मदद करेगा।
  • यह उन्हें अपने वार्षिक सुधारों पर नज़र रखने और अपने समुदायों तथा ग्राहकों के साथ संवाद करने में भी मदद करेगा।

सतत् तटीय और समुद्री पर्यटन

  • सतत् पर्यटन का तात्पर्य पर्यटन उद्योग की सतत् कार्यप्रणाली से है। यह मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर हरित पर्यटन क्षेत्र के मुद्दों को संबोधित करता है।
  • संयुक्त राज्य के अनुसार,सतत् पर्यटन में निम्नलिखित को शामिल किया जाना चाहिये:
  • पर्यावरणीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग करें जो पर्यटन विकास में एक प्रमुख तत्त्व का गठन करते हैं, आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखते हैं और प्राकृतिक विरासत एवं जैवविविधता के संरक्षण में मदद करते हैं।
  • मेज़बान समुदायों की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रामाणिकता का सम्मान करें, उनकी निर्मित और जीवित सांस्कृतिक विरासत तथा पारंपरिक मूल्यों का संरक्षण करें एवं अंतर-सांस्कृतिक समझ व सहिष्णुता में योगदान करें।
  • व्यवहार्य, दीर्घकालिक आर्थिक संचालन सुनिश्चित करना, सभी हितधारकों को सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करना जो उचित रूप से वितरित हो, जिसमें स्थिर रोज़गार और आय-अर्जन के अवसर तथा समुदायों की मेज़बानी के लिये सामाजिक सेवाएँ व गरीबी उन्मूलन में योगदान करना शामिल है।
  • तटीय और समुद्री पर्यटन (सीएमटी) कुल वैश्विक पर्यटन का कम-से-कम 50% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। यह अधिकांश छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (एसआईडीएस) और कई तटीय राज्यों के लिये सबसे बड़ा आर्थिक क्षेत्र है।
  • 5 फ़ीसदी की अनुमानित वैश्विक विकास दर से तटीय और समुद्री पर्यटन के वर्ष 2036 तक 26 फीसदी के साथ समुद्री अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा मूल्यवर्द्धित खंड बनने की उम्मीद है।

तटीय और समुद्री पर्यटन से जुड़ी चुनौतियाँ

  • प्राकृतिक संपत्तियों का निरंतर ह्रास और अपकर्षण इस पर भरोसा करने वाले स्थानीय समुदायों के साथ-साथ उद्योग की स्थिरता एवं व्यवहार्यता को जोखिम में डाल रहा है।
  • कोविड -19 महामारी ने पर्यटन उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया। वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल ने लगभग 75 मिलियन नौकरियों के नुकसान तथा वैश्विक स्तर पर $ 2 ट्रिलियन से अधिक की पर्यटन-प्रेरित जीडीपी में कमी का अनुमान लगाया है।
  • तापमान में वृद्धि, अधिक लगातार पर्यावरणीय घटनाओं, जल की कमी और समुद्र के स्तर में वृद्धि (SLR) के माध्यम से जलवायु परिवर्तन उच्च मानवजनित भेद्यता वाले तटीय क्षेत्रों को दृढ़ता से प्रभावित करेगा।

तटीय और समुद्री पर्यटन की दिशा में अन्य पहल

वैश्विक पहल

  • ग्लोबल सस्टेनेबल टूरिज्म काउंसिल (GSTC) और वर्ल्ड वाइल्ड फंड (WWF) प्रकृति-सकारात्मक पर्यटन बनाने के लिये होटल, क्रूज़ जहाज़ो, टूर ऑपरेटरों और उद्योग के साथ साझेदारी कर रहे है जहाँ सभी आपूर्ति शृंखला अभिकर्त्ताओं, प्रकृति और व्यवसायों के लिये मूल्य बनाने के लिये एकजुट होते हैं।
  • सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस इनिशिएटिव संयुक्त राष्ट्र द्वारा विनियमित वैश्विक समुदाय है, जो कि सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस प्रिंसिपल्स के कार्यान्वयन का समर्थन करते हुए, निजी वित्त और महासागर स्वास्थ्य के बीच प्रतिच्छेदन पर केंद्रित सहयोग करता है।
  • सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस प्रिंसिपल्स महासागर अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिये मूलभूत आधारशिला हैं। इसे वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया जो बैंकों, बीमाकर्त्ताओं और निवेशकों से मिलकर सतत् ब्लू इकोनॉमी को वित्तपोषित करने हेतु दुनिया का पहला वैश्विक मार्गदर्शक ढाँचा है। वे SDG 14 (जल के नीचे जीवन) के कार्यान्वयन को बढ़ावा देते हैं, और महासागर-विशिष्ट मानकों को निर्धारित करते हैं।
  • ओशन रिकवरी एलायंस एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन के सहयोग से UNEP और विश्व पर्यटन संगठन के नेतृत्व में ग्लोबल टूरिज़्म प्लास्टिक इनिशिएटिव का हस्ताक्षरकर्त्ता बन गया है।
  • ग्लोबल टूरिज़्म प्लास्टिक इनिशिएटिव का उद्देश्य पर्यटन कार्यों में प्लास्टिक की चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर एक बदलाव को बढ़ावा देकर प्लास्टिक प्रदूषण से निपटना है, जहाँ प्लास्टिक कभी भी बेकार नहीं जाता है, बल्कि सभी पर्यटन गतिविधियों से प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म करना है।

भारतीय पहलें

  • डीप ओशन मिशन
  • ब्लू इकोनॉमी पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स
  • ओ-स्मार्ट
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन

भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था 

चर्चा में क्यों?

  • एक्ज़िम बैंक ऑफ़ इंडिया के एक दस्तावेज़ के अनुसार भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था जिसमें कला एवं शिल्प, ऑडियो और वीडियो कला तथा डिज़ाइन शामिल हैं, वर्ष 2019 में 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात किया गया।

दस्तावेज़ के प्रमुख निष्कर्ष

  • वर्ष 2019 तक भारत का रचनात्मक वस्तुओं और सेवाओं का कुल निर्यात 121 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब था, जिसमें से रचनात्मक सेवाओं का निर्यात लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • वर्ष 2019 में भारत में कुल रचनात्मक वस्तुओं के निर्यात का 87.5% डिज़ाइन सेगमेंट का तथा अन्य 9% कला और शिल्प सेगमेंट का योगदान शामिल है।
  • इसके अलावा भारतीय संदर्भ में रचनात्मक वस्तु उद्योग में 16 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था देश में काफी विविध है जो मनोरंजन उद्योग के क्षेत्र जैसे रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है।
  • राजस्व के मामले में शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय बॉक्स ऑफिस बाज़ारों के संबंध में भारत अमेरिका के बाहर विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है।
  • अध्ययन के अनुसार, इस विकसित क्षेत्र में मानव रचनात्मकता, ज्ञान, बौद्धिक संपदा के साथ-साथ प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

अध्ययन का महत्त्व

  • शोध पत्र भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की अप्रयुक्त निर्यात क्षमता का मानचित्रण करता है।
  • अध्ययन 'भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था का प्रतिबिंब और विकास' एक अनूठी पहल है।
  • इसने संयुक्त राष्ट्र के वर्गीकरण के अनुसार कला और शिल्प, श्रव्य दृश्य, डिजाइन तथा दृश्य कला जैसे सात अलग-अलग रचनात्मक खंडों का विश्लेषण किया, ताकि उनकी निर्यात क्षमता का मानचित्रण किया जा सके।
  • अध्ययन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग, विस्तारित वास्तविकता और ब्लॉकचेन की भूमिका पर भी रेखांकित किया गया है, जो रचनात्मक अर्थव्यवस्था के कामकाज को प्रभावित कर रहे हैं।
  • यह यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों की रचनात्मक अर्थव्यवस्था की नीतियों का भी विश्लेषण करता है, जहाँ रचनात्मक अर्थव्यवस्था को समर्पित मंत्रालयों या संस्थानों के साथ महत्त्वपूर्ण बल मिला है।

भारत में रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु आगे की राह

  • भारत में रचनात्मक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित द्वारा बढ़ावा दिया जाना चाहिये:
  • भारत में रचनात्मक उद्योगों को परिभाषित करना और उनका मानचित्रण करना।
  • रचनात्मक उद्योगों के लिये वित्तपोषण।
  • संयुक्त कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • कॉपीराइट के मुद्दे को संबोधित करना।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देना।
  • रचनात्मक ज़िलों और केंद्रों की स्थापना।
  • रचनात्मक उद्योगों के लिये एक विशेष संस्थान का गठन।
  • जबकि भारत ने रचनात्मक अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योगों में प्रगति की है, देश में अपनी रचनात्मक अर्थव्यवस्था के मूल्य को बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर है।
  • देश में रचनात्मक अर्थव्यवस्था के लिये एकल परिभाषा और समर्पित संस्थान तैयार करने की आवश्यकता है, जो इसकी अप्रयुक्त क्षमता का पता लगा सके।

गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला की समीक्षा 

चर्चा में क्यों?

  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस के मौजूदा मूल्य निर्धारण फार्मूले की समीक्षा के लिये प्रसिद्ध ऊर्जा विशेषज्ञ किरीट पारिख की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।

गैस-मूल्य निर्धारण फॉर्मूला समीक्षा की आवश्यकता:

ऊँची कीमतें

  • वर्तमान रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण वैश्विक कीमतों में उछाल आने से स्थानीय गैस की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर हैं तथा आगे और बढ़ने की आशंका है।
  • वैश्विक प्राकृतिक गैस की कीमतों में उछाल ने ऊर्जा और औद्योगिक लागतों को बढ़ा दिया तथा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों की विफलता से चिंताएँ बढ रही है।
  • देश लगातार सात महीनों से भारतीय रिज़र्व बैंक के 2% -6% के टॉलरेंस बैंड से ऊपर की मुद्रास्फीति से जूझ रहा है।

वर्तमान फॉर्मूला अदूरदर्शी

  • वर्तमान फॉर्मूला "अदूरदर्शी" है और यह गैस उत्पादकों को प्रोत्साहन नहीं देता है।
  • भारत में, इसके ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी 6% है, जबकि वैश्विक औसत 23% है।
  • इसका उद्देश्य अगले कुछ वर्षों में इस संख्या को 15% तक बढ़ाना है।

कम मूल्य निर्धारण उत्पादकों को दंडित करता है

  • भारतीय गैस कीमत भारत में LNG आयात की कीमत तथा बेंचमार्क वैश्विक गैस दरों के औसत पर निर्धारित की जाती है।
  • भारत द्वारा इसका कम मूल्य निर्धारित किया जा रहा है।
  • मौजूदा कीमतों पर उत्पादक दंडित होते हैं और कुछ हद तक उपभोक्ता उत्पादक को दोष देता है।

भारत में गैस बाज़ार का परिदृश्य

  • भारत में कुल खपत 175 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रतिदिन (MMSCMD) है।
  • इसमें से 93 MMCMD घरेलू उत्पादन के माध्यम से और 82 MMCMD द्रवीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas-LNG) आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। गैस की खपत सीधे आपूर्ति की उपलब्धता से संबंधित है।
  • देश में खपत होने वाली प्राकृतिक गैस में से लगभग 50% LNG का आयात किया जाता है।
  • उर्वरक क्षेत्र गैस का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, जो खपत का एक तिहाई हिस्सा है, इसके बाद शहरी गैस वितरण (23%), विद्युत (13%), रिफाइनरी (8%) और पेट्रोकेमिकल्स (2%) का स्थान आता है।
  • कई उद्योगों को डर है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में LNG (आयातित गैस) की कीमतें 45 अमेरिकी डॉलर प्रति मैट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (Metric Million British Thermal Unit- mmBtu) के दायरे में बनी रहीं तो दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता को मौजूदा स्तरों से प्राकृतिक गैस की खपत में गिरावट देखने को मिल सकती है।

भारत में वर्तमान गैस मूल्य निर्धारण

परिचय

  • भारत में प्रशासित मूल्य तंत्र (Administered Price Mechanism- APM) के तहत गैस की कीमत, सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • इस प्रणाली के तहत, तेल और गैस क्षेत्र को चार चरणों- उत्पादन, शोधन, वितरण और विपणन में नियंत्रित किया जाता है। ।
  • गैर-प्रशासित मूल्य तंत्र या मुक्त बाज़ार गैस को आगे दो श्रेणियों - अर्थात् संयुक्त उद्यम क्षेत्रों से घरेलू रूप से उत्पादित गैस और आयातित LNG में विभाजित किया गया है।
  • प्राकृतिक गैस का मूल्य निर्धारण उत्पादन साझाकरण अनुबंध (Production Sharing Contract- PSC) प्रावधानों के अनुसार नियंत्रित होता है।
  • जबकि टर्म कॉन्ट्रैक्ट के तहत LNG की कीमत LNG विक्रेता और खरीदार के मध्य बिक्री और खरीद समझौता (Sale and Purchase Agreement- SPA) द्वारा नियंत्रित होता है, स्पॉट कार्गो पारस्परिक रूप से सहमत वाणिज्यिक शर्तों पर खरीदे जाते हैं।
  • इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण मौज़ूद है। विद्युत और उर्वरक जैसे सब्सिडी वाले क्षेत्रों को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत कम कीमत मिलती है।
  • इसके अलावा, देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर पूर्वी राज्यों को अपेक्षाकृत सस्ती कीमतों पर गैस मिलने के साथ देश में क्षेत्र विशिष्ट मूल्य निर्धारण मौजूद है।
  • भारतीय बाज़ार में गैस आपूर्ति के एक बड़े हिस्से का मूल्य निर्धारण नियंत्रित है और बाज़ार संचालित नहीं है क्योंकि कीमत बदलने से पहले सरकार की मंज़ूरी आवश्यक है।

मुद्दे

  • नियंत्रित मूल्य निर्धारण के परिणामस्वरूप विदेशी अभिकर्त्ताओं की सीमित भागीदारी के मामले में इस क्षेत्र में निवेश को हतोत्साहित किया जा सकता है, जिनके पास गहरे जल के E&D गतिविधियों के संदर्भ में आवश्यक प्रौद्योगिकी तक पहुँच है।
  • इसके अलावा नियंत्रित मूल्य निर्धारण वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उपभोक्ता क्षेत्रों (बिजली / उर्वरक / घरेलू) की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित करता है क्योंकि इससे मांग पक्ष में ऊर्जा दक्षता में कम निवेश होता है।

आगे की राह

  • चूँकि देश में कई मूल्य निर्धारण व्यवस्थाएँ मौजूद हैं, विभिन्न स्रोतों से गैस एकत्रित करने की नीति निर्माताओं द्वारा विचार-विमर्श किया गया है।
  • विद्युत और उर्वरक ग्राहकों के अलग स्रोत के साथ क्षेत्रीय स्रोत पर विचार किया जा रहा। ग्राहक समूहों और संबंधित प्रशासनिक मुद्दों के बीच क्रॉस सब्सिडी से बचने के मद्देनजर अलग स्रोत पर विचार किया गया।
  • रंगराजन समिति ने निष्पक्ष और एक-समान गैस मूल्य निर्धारण का प्रस्ताव दिया है।
  • घरेलू गैस मूल्य निर्धारण विधि गैस आयात के लिये वेल-हेड पर वॉल्यूम-वेटेड एवरेज का 12 महीने का ट्रेलिंग एवरेज और यूएस हेनरी हब, यूके एनबीपी और जापानी क्रूड कॉकटेल कीमतों का वॉल्यूम-वेटेड एवरेज होना चाहिये।
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): September 2022 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. कर्नाटक में लौह अयस्क खनन की स्थिति क्या है?
Ans. कर्नाटक भारत का अहम लौह अयस्क खनन केंद्र है। यह राज्य देश के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादन क्षेत्रों में से एक है। कर्नाटक में विभिन्न क्षेत्रों में लौह अयस्क खनन कार्य चल रहे हैं और इसकी महत्त्वपूर्ण खाद्य उपकरण उद्योगों में उपयोग होता है।
2. भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग कैसा है?
Ans. भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र है। यह उद्योग देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान देता है और रोजगार के अवसर प्रदान करता है। भारत में कई ऑटोमोबाइल कंपनियां हैं जो विभिन्न प्रकार की वाहनों का निर्माण करती हैं।
3. भारत में ग्रीन फिन्स हब क्या है?
Ans. भारत में ग्रीन फिन्स हब एक पहल है जिसका उद्देश्य निवेशकों को पर्यावरण मित्ती वाणिज्यिक मार्गदर्शन प्रदान करना है। यह पहल उद्यमियों को ग्रीन वित्तीय समाधानों, प्रदूषण नियंत्रण, और प्रदूषण मितिंद्रीकरण के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरणीय और वाणिज्यिक लाभ का संतुलन सुनिश्चित करना है।
4. भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था क्या है?
Ans. भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें नयी और नवाचारी विचारों का उपयोग करके नई और नवीनतम वस्तुओं, सेवाओं और अवसरों को पैदा किया जाता है। इसका मकसद नवीनतम तकनीकी और नवाचारों को अपनाने के माध्यम से अर्थव्यवस्था को विकसित करना है।
5. गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला की समीक्षा क्या है?
Ans. गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला एक तरीका है जिसका उपयोग गैस की कीमत की निर्धारण के लिए किया जाता है। इस फॉर्मूला में विभिन्न प्राकृतिक और आर्थिक प्राथमिकताएं शामिल होती हैं, जैसे कि उत्पादन कीमत, मूल्यांकन और मार्जिन। गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूला उद्योगों और उपभोक्ताओं के लिए स्थिर और न्यायसंगत गैस की कीमत सुनिश्चित करने में मदद करती है।
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