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Geography (भूगोल): September 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मोटे अनाजों को बढ़ावा

चर्चा में क्यों?
  • हाल ही में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) द्वारा वर्ष 2022-2023 के लिये खरीफ उपज की खरीद पर चर्चा के लिये एक बैठक आयोजित की गई।
  • भारत सरकार ने मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहन देने पर विचार किया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने गेहूँ और धान की खेती को प्रभावित किया है।
  • खरीफ फसल बाज़ार से मोटे अनाज की खरीद का लक्ष्य दोगुना हुआ, राशन में मोटे अनाज की अधिक संभावना नजर आ रही है।

मोटे अनाज

परिचय
  • मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
  • कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है।
  • ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail) , प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं।
    • ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।
महत्त्व
  • मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
  • ये फसलें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में और एक आशाजनक निर्यात योग्य वस्तु के रूप में भी अच्छी संभावनाएँ प्रदान करती हैं।
  • मानव उपभोग के लिये भोजन, पशु और मुर्गीयों के लिये चारा और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिये सूखा प्रवण क्षेत्रों में उनकी खेती, ईंधन और औद्योगिक उपयोग के रूप में इनका उपयोग सामान्य है।
  • उनका पौष्टिक मूल्य कुपोषण से निपटने के लिये एक उत्कृष्ट उपकरण के रूप में कार्य करता है।
    • यह अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में रोज़गार-सृजन में सहायता करता है, जहाँ अन्य वैकल्पिक फसलें सीमित हैं और इन फसलों का उपयोग आकस्मिक फसल के रूप में किया जाता है।
मोटे अनाज उत्पादक राज्य
  • कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि।

मोटे अनाज के उपयोग

चारा

  • कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्वार और बाजरा की खेती मुख्य रूप से चारे के उद्देश्य से की जाती है।

औद्योगिक उत्पाद

  • चारा: माल्टिंग, उच्च फ्रुक्टोज सिरप, स्टार्च, गुड़, बेकरी आदि में उपयोग किया जाता है।
  • बाजरा: शराब बनाने/माल्टिंग, स्टार्च, बेकरी, पोल्ट्री और पशु आहार में प्रयुक्त।
  • मक्का: शराब बनाने, स्टार्च, बेकरी, मुर्गी पालन और पशु चारा, जैव-ईंधन में उपयोग किया जाता है।
  • चारा/फीड का स्रोत (Source of Feed)
    • पशुओं के लिये मोटे अनाज और पोल्ट्री फीड की मांग बढ़ रही है।
    • भारत में चारा की आवश्यकताएँ सामान्य रूप से बेकार अनाज से पूरी की जाती हैं और विशेष रूप से मोटे अनाज से बनाई जाती हैं।
    • पोल्ट्री फीड में मक्का आवश्यक कार्बोहाइड्रेट स्रोत है।

सरकार का मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रण

जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन ने देश में गेहूँ और धान के उत्पादन को प्रभावित किया है, जो मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • गेहूँ और धान की खेती अनिश्चित मौसम स्वरुप के कारण देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।

मानसून

  • अनियमित मानसून ने वर्ष 2022 के खरीफ मौसम की उपज के लिये सरकार की चिंता बढ़ा दी है।
  • वर्ष 2022 में ज़्यादातर इलाकों में धान और दलहन की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है।

मोटे अनाज का उत्पादन वृद्धि

  • मोटे अनाज की बुवाई वर्ष 2022 में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में की गई है, जबकि वर्ष 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाज की बुवाई की गई थी।
  • वर्तमान में देश में लगभग 50 मिलियन टन मोटे अनाज का उत्पादन होता है।
  • मक्का और बाजरा सबसे ज़्यादा उगाया जाता है।

संपोषणीय फसल

  • मोटे अनाज में सूखा सहिष्णुता, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला आदि जैसी विशेषताएँ होती हैं।

खेती की कम लागत

  • ग्रीष्मकालीन धान की खेती की तुलना में खेती की लागत कम है और सिंचाई के लिये कम मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।

मोटे अनाज की सहायता हेतु सरकार की पहल

  • ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millet Promotion-INSIMP):
    • सरकार ने बाजरा को पौष्टिक अनाज के रूप में बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2011-12 में 300 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की।
    • इस योजना का उद्देश्य देश में बाजरा के बढ़े हुए उत्पादन को उत्प्रेरित करने के लिये दृश्य प्रभाव के साथ एकीकृत तरीके से उचित उत्पादन और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि

  • सरकार ने बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है, जो किसानों के लिये बड़े मूल्य प्रोत्साहन के रूप में देखा जा सकता है।
    • इसके अलावा उपज के लिये स्थिर बाज़ार प्रदान करने हेतु सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा को शामिल किया है।

निवेश सहायता

  • सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।

बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति दी है।
  • भारत ने वर्ष 2018 को "बाजरा के राष्ट्रीय वर्ष (National Year Of Millets)" के रूप में मनाया।

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में अनुसंधान से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग, मानसून में विचलन/अस्थिरता को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप लंबी शुष्क अवधि और भारी बारिश की अल्प अवधि दोनों होती है।
  • वर्ष 2022 में वर्ष 1902 के बाद से दूसरी सबसे बड़ी चरम घटनाएँ देखी गई हैं। बाढ़ और सूखे जैसी खतरनाक घटनाएँ बढ़ गई है।

भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

विपरीत वर्षा प्रतिरूप

  • मानसून प्रणालियों के मार्ग में बदलाव देखा गया है जैसे कि कम दबाव और गर्त अपनी स्थिति के दक्षिण की तरफ स्थांतरित होने तथा फ्लैश फ्लड जैसी घटनाएँ हो रही हैं।
  • मानसून गर्त मूल रूप से एक कम दबाव प्रणाली को संदर्भित करता है जो गर्मियों में उत्तरी हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी को प्रभावित करता है। इसमें अपेक्षाकृत बड़ा क्षेत्र शामिल है एवं बंद आइसोबार का व्यास 1000 किमी जितना चौड़ा हो सकता है।
    • मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में वर्ष 2022 में अधिक बारिश दर्ज की गई, इसके विपरीत पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में वर्षा नहीं हुई।
  • अगस्त 2022 में भी बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक दो मानसून गर्त बने और पूरे मध्य भारत को प्रभावित किया।
  • जबकि प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा अद्वितीय होती है, वर्ष 2022 में वर्षा में एक बड़ी क्षेत्रीय और अस्थायी परिवर्तनशीलता रही है।

कारण

  • तीव्र ला नीना स्थितियों का बना रहना, पूर्वी हिंद महासागर का असामान्य रूप से गर्म होना, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD), अधिकांश मानसून गर्तों की दक्षिण की ओर गति और हिमालयी क्षेत्र में प्री-मॉनसून हीटिंग तथा ग्लेशियरों का पिघलना।
  • IOD को दो क्षेत्रों के बीच समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है - पहला, अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में पश्चिमी ध्रुव और दूसरा इंडोनेशिया के दक्षिण में तथा पूर्वी हिंद महासागर में पूर्वी ध्रुव।
    • IOD ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है, और इस क्षेत्र में वर्षा परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है।

प्रभाव

खरीफ फसलें

  • मानसून प्रणाली के मार्ग में बदलाव के प्रमुख प्रभावों में से एक खरीफ फसलों, विशेष रूप से चावल उत्पादन पर देखा जा सकता है। वे इस अवधि के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50% से अधिक का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रखते हैं।
  • खरीफ उत्पादन में गिरावट से चावल की कीमतें उच्च स्तर पर पहुँच सकती हैं।
  • बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश, जो देश के कुल चावल उत्पादन का एक- तिहाई हिस्सा उत्पादित करते हैं, में जुलाई और अगस्त में सक्रिय मानसून के बावजूद अत्यधिक कमी रही है।

अनाज की गुणवत्ता

  • यह असमान वर्षा वितरण अनाज की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है तथा साथ ही पोषण मूल्य भी बदल सकता है।
  • 'भारत में जलवायु परिवर्तन, मानसून और चावल की पैदावार' नामक एक अध्ययन के अनुसार, बहुत अधिक तापमान (> 35 डिग्री सेल्सियस) ऊष्मा को प्रेरित करता है जो पौधों की शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है जिससे बौनापन, उर्वरता में कमी, गैर-व्यवहार्य पराग और अनाज की गुणवत्ता कम हो जाती है।

खाद्य सुरक्षा

  • 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान भारत में मानसून की वर्षा कम बार लेकिन अधिक तीव्र हो गई।
  • वैज्ञानिकों और खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि बेहतर वर्षा से फसल बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • हालाँकि भारत के करोड़ों चावल उत्पादक और उपभोक्ता इन अभूतपूर्व परिवर्तनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं जो खाद्य सुरक्षा पर भी चिंताएँ बढ़ा रहे हैं।

आगे की राह

  • विश्वसनीयता और स्थिरता प्राप्त करने के लिये भारत को मानसून पूर्वानुमान की बेहतर भविष्यवाणी में अधिक संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता है।
  • गर्म होती जलवायु के साथ वायुमंडल में अधिक नमी होगी, जिससे भारी वर्षा होगी, परिणामस्वरूप, भविष्य में मानसून की अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि होगी। देश को इस बदलाव के लिये तैयार रहने की ज़रूरत है।
  • इस प्रकार भारत के जलवायु पैटर्न को सुरक्षित और स्थिर बनाने के लिये हमें न केवल घरेलू मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना) बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन) पर भी प्रभावी तथा समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि हम एक साझा भविष्य के साथ एक साझा विश्व में रहते हैं।

विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन 2022


चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट, ग्रेटर नोएडा में अंतर्राष्ट्रीय डेयरी महासंघ विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन (International Dairy Federation World Dairy Summit-IDF WDS) 2022 का उद्घाटन किया।

  • अंतर्राष्ट्रीय डेयरी संघ डेयरी शृंखला के सभी हितधारकों के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता का प्रमुख स्रोत है।
    • वर्ष 1903 से IDF के डेयरी विशेषज्ञों के नेटवर्क ने डेयरी क्षेत्र को वैश्विक सहमति तक पहुँचने के लिये तंत्र प्रदान किया है कि कैसे दुनिया को सुरक्षित और टिकाऊ डेयरी उत्पाद उपलब्ध कराने में मदद की जाए।

अंतर्राष्ट्रीय डेयरी महासंघ विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन (IDF WDS)

  • IDF विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन वैश्विक डेयरी क्षेत्र की वार्षिक बैठक है, जिसमें दुनिया भर से लगभग 1500 प्रतिभागियों को एक साथ लाया जाता है।
  • इस तरह का पिछला शिखर सम्मेलन भारत में लगभग आधी सदी पहले 1974 में आयोजित किया गया था।
  • इस वर्ष की थीम डेयरी फॉर न्यूट्रिशन एंड लाइवलीहुड है।
  • IDF विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन उद्योग के विशेषज्ञों को ज्ञान और विचारों को साझा करने के लिये मंच प्रदान करेगा कि कैसे क्षेत्र सुरक्षित और टिकाऊ डेयरी के साथ दुनिया को पोषण प्रदान करने में योगदान दे सकता है।
  • प्रतिभागियों को व्यापक अर्थों में वैश्विक डेयरी क्षेत्र के लिये प्रासंगिक नवीनतम शोध निष्कर्षों और अनुभवों पर ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।

भारत में डेयरी क्षेत्र की स्थिति

परिचय

  • भारत दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान पर है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23% का योगदान देता है, इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और ब्राज़ील का स्थान आता है।
  • शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्य हैं: उत्तर प्रदेश (14.9%), राजस्थान (14.6%), मध्य प्रदेश (8.6%), गुजरात (7.6%) और आंध्र प्रदेश (7.0%)।

महत्त्व

  • डेयरी क्षेत्र की क्षमता न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती है, बल्कि विश्व भर में करोड़ों लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत भी है।
  • यह क्षेत्र देश में 8 करोड़ से अधिक परिवारों को रोज़गार प्रदान करता है।
  • भारत में डेयरी सहकारी समितियों की एक-तिहाई से अधिक सदस्य महिलाएँ हैं।

डेयरी क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियाँ

  • चारे की कमी: अनुत्पादक पशुओं की अत्यधिक संख्या है जो उपलब्ध खाद्य और चारे के उपयोग में उत्पादक डेयरी पशुओं के हिस्से पर दबाव डालते हैं।
  • औद्योगिक विकास के कारण प्रत्येक वर्ष चराई क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी आ रही है जिसके परिणामस्वरूप कुल आवश्यकता के लिये खाद्य और चारे की आपूर्ति में कमी आ रही है।
  • स्वास्थ्य: पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल केंद्र प्रायः दूरस्थ स्थानों पर होते हैं और मवेशियों की आबादी तथा पशु चिकित्सा संस्थान के बीच के अनुपात में व्यापक अंतराल है, परिणामस्वरूप पशुओं को पर्याप्त रूप से स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
  • इसके अलावा नियमित रूप से टीकाकरण और कृमि मुक्ति कार्यक्रम नहीं चलाया जाता है, परिणामस्वरूप बछड़ों एवं विशेष रूप से भैंस की प्रजातियों की बड़ी संख्या में मौत होती है।
  • स्वच्छता की स्थिति: कई पशु मालिक अपने मवेशियों के लिये उचित आश्रय प्रदान नहीं करते हैं, जिससे उन्हें अत्यधिक जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
  • डेयरी क्षेत्र की अनौपचारिक प्रकृति: गन्ना, गेहूँ और चावल उत्पादक किसानों के विपरीत पशुपालक असंगठित हैं और उनके पास अपना पक्ष रखने के लिये राजनीतिक ताकत/दबाव समूह का अभाव है।
  • लाभकारी मूल्य निर्धारण में कमी: हालाँकि उत्पादित दूध का मूल्य भारत में गेहूँ और चावल के उत्पादन के संयुक्त मूल्य से अधिक है परंतु उत्पादन की लागत और दूध के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई आधिकारिक और आवधिक अनुमान नहीं होता है।

सरकार द्वारा की गई पहलें

  • उत्पादकता में वृद्धि: सरकार ने डेयरी क्षेत्र की बेहतरी के लिये कई कदम उठाए हैं, परिणामस्वरूप पिछले आठ वर्षों में दुग्ध उत्पादन में 44% से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • इसके अलावा वैश्विक स्तर पर 2% उत्पादन वृद्धि की तुलना में भारत में दुग्ध उत्पादन वृद्धि दर 6% से अधिक देखी जा रही है।

योजनाएँ

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन
  • राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
  • गोबर धन योजना
  • डेयरी क्षेत्र का डिजिटलीकरण और मवेशियों का सार्वभौमिक टीकाकरण
  • डेयरी विकास पर राष्ट्रीय कार्ययोजना
  • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष: इसका उद्देश्य मांस प्रसंस्करण क्षमता और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ाने में मदद करना है ताकि असंगठित डेयरी उत्पादकों को डेयरी बाज़ारों का आयोजन करने के लिये अधिक से अधिक पहुँच प्रदान की जा सके।

आगामी पहल

  • डेयरी इकोसिस्टम: सरकार एक ब्लैंच्ड डेयरी इकोसिस्टम विकसित करने पर कार्य कर रही है, जहाँ उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों का समाधान किया जाएगा।
  • इसके अलावा किसानों के लिये अतिरिक्त आय, गरीबों का सशक्तीकरण, स्वच्छता, रसायन मुक्त खेती, स्वच्छ ऊर्जा और मवेशियों की देखभाल इस इकोसिस्टम से परस्पर जुड़े हुए हैं।
  • पशु आधार: सरकार डेयरी पशुओं का सबसे बड़ा डेटाबेस तैयार कर रही है और डेयरी क्षेत्र से संबंधित पशुओं को इसमें टैग किया जा रहा है।
  • वर्ष 2025 तक भारत 100% पशुओं का फुट, माउथ डिज़ीज़ (खुरपका-मुँहपका रोग) और ब्रुसेलोसिस से बचाव के लिये टीकाकरण करेगा।

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