UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi  >  Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

बायोमास को-फायरिंग लक्ष्य में भारत का पिछड़ापन

चर्चा में क्यों?
विद्युत मंत्रालय उन संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति में कटौती करने पर विचार कर रहा है जो बायोमास को-फायरिंग मानदंडों का पालन नहीं करते हैं।

  • विद्युत मंत्रालय ने अक्तूबर 2021 में सभी ताप विद्युत संयंत्रों को अक्तूबर 2022 तक 5% को-फायरिंग अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया था।
  • 2020-21 में केवल आठ बिजली संयंत्रों ने बायोमास सह को-फायरिंग (co-fired biomass pellets) को अपनाया और यह संख्या हाल ही में बढ़कर 39 हो गई है।

बायोमास को-फायरिंग:

  • परिचय:
    • बायोमास को-फायरिंग कोयला थर्मल संयंत्रों में बायोमास के साथ ईंधन के एक हिस्से को प्रतिस्थापित करने की विधि है।
    • कोयले को जलाने के लिये डिज़ाइन किये गए बॉयलरों में कोयले और बायोमास का एक साथ दहन किया जाता है। इस उद्देश्य हेतु मौजूदा कोयला विद्युत संयंत्रों का आंशिक रूप से पुनर्निर्माण और पुनर्संयोजित किया जाना है।
    • को-फायरिंग एक कुशल और स्वच्छ तरीके से बायोमास को बिजली में बदलने एवं बिजली संयंत्रों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने का एक विकल्प है।
    • बायोमास को-फायरिंग कोयले को डीकार्बोनाइज़ करने के लिये विश्व स्तर पर स्वीकृत एक लागत प्रभावी तरीका है।
    • भारत एक ऐसा देश है जहांँ आमतौर पर बायोमास को खेतों में जला दिया जाता है, जो आसानी से उपलब्ध एक बहुत ही सरल समाधान का उपयोग करके स्वच्छ कोयले की समस्या को हल करने के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।

महत्त्व:

  • बायोमास को-फायरिंग फसल अवशेषों को खुले में जलाने से होने वाले उत्सर्जन को रोकने का एक प्रभावी तरीका है; यह कोयले का उपयोग करके बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को भी डीकार्बोनाइज़ करता है।
    • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में 5-7% कोयले को बायोमास से प्रतिस्थापित करने से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 38 मिलियन टन की  कमी आ सकती है।
  • यह जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकता है, कुछ हद तक कृषि पराली जलाने की भारत की बढ़ती समस्या का समाधान कर सकता है, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार पैदा करते हुए कचरे के बोझ को कम कर सकता है।
  • भारत में अधिक बायोमास उपलब्धता के साथ-साथ कोयला संचालित क्षमता में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

ुनौतियाँ:

  • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बायोमास के साथ 5-7% कोयले को प्रतिस्थापित करने से 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की कमी हो सकती है, लेकिन मौजूदा बुनियादी ढांँचा इसे वास्तविकता में बदलने के लिये पर्याप्त रूप से मज़बूत नहीं है।
  • को-फायरिंग के लिये प्रतिदिन लगभग 95,000-96,000 टन बायोमास पैलेट की आवश्यकता होती है, लेकिन देश में 228 मिलियन टन अतिरिक्त कृषि अवशेष उपलब्ध होने के बावजूद भारत की पैलेट निर्माण क्षमता वर्तमान में 7,000 टन प्रतिदिन है।
    • यह बड़ा अंतर उपयोगिता को मौसमी उपलब्धता और बायोमास पैलेट की अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण है।
  • बायोमास पैलेट को संयंत्र स्थलों पर लंबे समय तक संग्रहीत करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे वायु से नमी को जल्दी अवशोषित करते हैं, जिससे वे को-फायरिंग के लिये अनुपयुक्त हो जाते हैं।
  • कोयले के साथ दहन के लिये केवल 14% नमी वाले पैलेट का उपयोग किया जा सकता है।

बायोमास

  • परिचय:
    • बायोमास पौधे या पशु अपशिष्ट है जिसे विद्युत या ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये ईधन के रूप में जलाया जाता है। उदाहरण लकड़ी, फसलें और जंगलों, यार्डों या खेतों से निकलने वाले अपशिष्ट।
    • बायोमास हमेशा से देश के लिये महत्त्वपूर्ण एवं लाभदायक ऊर्जा स्रोत रहा है।
  • लाभ:
    • यह नवीकरणीय, व्यापक रूप से उपलब्ध, कार्बन-तटस्थ है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।
    • यह दृढ़ रूप से ऊर्जा प्रदान करने में भी सक्षम है। देश में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपयोग का लगभग 32% अभी भी बायोमास से ही प्राप्त होता है तथा देश की 70% से अधिक आबादी अपनी ऊर्जा आवश्यता हेतु इस पर निर्भर है।

बायोमास विद्युत और सह उत्पादन कार्यक्रम

  • परिचय:
    • इस कार्यक्रम को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
    • कार्यक्रम के तहत बायोमास के कुशल उपयोग के लिये चीनी मिलों में खोई आधारित सह उत्पादन और बायोमास विद्युत उत्पादन शुरू किया गया है।
    • विद्युत उत्पादन के लिये उपयोग की जाने वाली बायोमास सामग्री में चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल, नारियल के अवशेष, सोया भूसी, डी-ऑयल केक, कॉफी अपशिष्ट, जूट अपशिष्ट, मूंँगफली के छिलके आदि शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • ग्रिड विद्युत उत्पादन हेतु देश के बायोमास संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
  • संबद्ध पहलें:
    • कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन
    • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज
    • कोल बेनिफिसिएशन

आगे की राह

  • बिजली संयंत्रों में पैलेट निर्माण और को-फायरिंग के इस व्यवसाय मॉडल में किसानों की आंतरिक भूमिका सुनिश्चित करने के लिये प्लेटफॉर्मों की स्थापना करने की आवश्यकता है।
  • प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बिना को-फायरिंग क्षमता का दोहन करने के लिये उभरती अर्थव्यवस्थाओं को प्रौद्योगिकी और नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
  • मिट्टी और जल संसाधनों की सुरक्षा, जैवविविधता, भूमि आवंटन एवं कार्यकाल, खाद्य कीमतों सहित जैव ऊर्जा के लिये स्थिरता संकेतकों को नीतिगत उपायों में एकीकृत करने की आवश्यकता है।

सैंडलवुड स्पाइक डिज़ीज़

चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि चंदन की व्यावसायिक खेती पर सैंडलवुड स्पाइक डिज़ीज़ (SSD) एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।

सैंडलवुड स्पाइक डिज़ीज़

  • परिचय:
    • यह एक संक्रामक रोग है जो फाइटोप्लाज़्मा के कारण होता है।
    • फाइटोप्लाज़्मा पौधों के ऊतकों के जीवाणु परजीवी होते हैं जो कीट वैक्टर द्वारा संचरित होते हैं और पौधे से पौधे में संचरण में शामिल होते हैं।
    • अभी तक संक्रमण का कोई इलाज नहीं है।
    • वर्तमान में इस रोग के प्रसार को रोकने के लिये संक्रमित पेड़ को काटने एवं हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
    • यह रोग सर्वप्रथम वर्ष 1899 में कर्नाटक के कोडागु (Kodagu) ज़िले में देखा गया था।
    • वर्ष 1903 से 1916 के बीच कोडागु (Kodagu) एवं मैसूर क्षेत्र में दस लाख से अधिक चंदन के पेड़ हटा दिये गए।
  • चिंताएँ:
    • इस रोग के कारण प्रत्येक वर्ष 1 से 5% चंदन के पेड़ नष्ट हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इसके प्रसार को रोकने के लिये उपाय नहीं किये गए तो यह रोग चंदन के वृक्षों की पूरी प्राकृतिक आबादी को नष्ट कर सकता है।
    • एक और चिंता की बात यह है कि इस प्रवृत्ति को रोकने में किसी भी तरह की देरी के परिणामस्वरूप यह बीमारी खेती वाले चंदन के पेड़ों में फैल सकती है।
  • हाल में उठाए गए कदम:
  • जानलेवा बीमारी से निपटने के प्रयास में इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IWST) बंगलूरू और पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज़ एक साथ तीन साल के अध्ययन के लिये संगठित होकर काम करेंगे।
  • इसे केंद्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा 50 लाख रुपए के वित्तीय आवंटन के साथ शुरू किया गया।
    • IWST चंदन अनुसंधान और वुड साइंस के लिये उत्कृष्ट केंद्र है।

भारतीय चंदन:

  • विषय:
    • संतालम/सैंटालम एल्बम, जिसे आमतौर पर भारतीय चंदन के रूप में जाना जाता है, चीन, भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में पाया जाने वाला एक शुष्क पर्णपाती वन प्रजाति है।
    • चंदन लंबे समय से भारतीय विरासत और संस्कृति से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इस देश ने विश्व के चंदन व्यापार में 85% का योगदान दिया था। हालाँकि हाल ही में इसमें तेज़ी से गिरावट आई है।
    • यह छोटा उष्णकटिबंधीय पेड़ लाल लकड़ी और छाल के कई गहरे रंगों (गहरा भूरा, लाल तथा गहरा भूरा) के साथ 20 मीटर तक ऊँचा होता है।
    • क्योंकि यह मज़बूत और टिकाऊ होता है, इसे ज़्यादातर इसकी लकड़ी के उपयोग के कारण काटा जाता है।
  • IUCN रेड लिस्ट स्थिति: सुभेद्य
  • उपयोग:
    • भारत में इसे "चंदन" और "श्रीगंधा" भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में चंदन का एक विशेष स्थान है जहाँ पालने से लेकर श्मशान तक इसका उपयोग किया जाता है।
    • चंदन की हर्टवुड, जो कि बारीक होती है, का उपयोग बढ़िया फर्नीचर और नक्काशी के लिये किया जाता है। हर्टवुड और जड़ों से 'चंदन का तेल' भी प्राप्त होता है जिसका उपयोग इत्र, धूप, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन तथा दवाओं में किया जाता है। इसकी छाल में टैनिन होता है, जिसका उपयोग डाई के लिये किया जाता है।
    • चंदन के तेल में रोगाणुरोधक, सूजनजलन रोधक, आक्षेपनाशक और कसैले गुण होते हैं।
    • इसका उपयोग अरोमाथेरेपी में तनाव, उच्च रक्तचाप को कम करने और घावों को ठीक करने तथा त्वचा के दोषों का इलाज करने के लिये किया जाता है।
  • प्रमुख उत्पादक क्षेत्र:
  • भारत में चंदन ज़्यादातर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में उगाया जाता है

आगे की राह

अध्ययन द्वारा सलाह दी गई है कि परीक्षण का उपयोग यह प्रमाणित करने के लिये किया जाना चाहिये कि व्यावसायिक उद्देश्यों हेतु उत्पादित चंदन के पौधे SSD मुक्त हैं।

इसके अतिरिक्त इसने चंदन की पौध को संभालने की नीतियों में आवश्यक परिवर्तन करने का आग्रह किया है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

चर्चा में क्यों?
हाल ही में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर के संरक्षण केंद्र में 9 स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड चूजों के जन्म की पुष्टि गई है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्वभर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की कुल संख्या लगभग 150 है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या सोन चिड़िया विश्व में सबसे अधिक वज़न के उड़ने वाले पक्षियों में से एक है, यह पक्षी मुख्यतया भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है।
  • एक समय इस पक्षी का नाम भारत के संभावित राष्ट्रीय पक्षियों की सूची में शामिल था।
  • परंतु वर्तमान में विश्व भर में इनकी संख्या 150 के लगभग बताई जाती है।
  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम-1972 की अनुसूची-1 में तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।

मुख्य बिंदु:

  • जून 2019 में मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) जैसलमेर में संरक्षित किये गए 9 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अण्डों से स्वस्थ चूजों के जन्म की पुष्टि संरक्षण केंद्र द्वारा की गई है।
  • प्रशासन के अनुसार, विश्व के किसी भी संरक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत 6 माह के भीतर एक साथ इतनी बड़ी संख्या में स्वस्थ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के जन्म की यह सबसे बड़ी सफलता है।
  • इन 9 चूजों में से 7 चूजों को मादा और एक की नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के रूप में पहचान की गई है, जबकि कुछ माह पहले जन्मे एक अन्य चूजे की कम आयु के कारण अभी तक लैंगिक पहचान नहीं की जा सकी।

संरक्षण कार्यक्रम:

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII), देहरादून के साथ मिलकर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • इसके लिये सरकार ने 33 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, इसी कार्यक्रम के तहत जैसलमेर में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों की देखभाल और विकास के लिये एक केंद्र की स्थापना की गई है।
  • नवंबर 2018 में WII ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के चूजों के पुनर्वास के लिये 14 स्थानों को चिह्नित करने की जानकारी दी थी, इन स्थानों की पहचान करते समय वर्षा, वन्य स्रोतों से निकटता, तापमान, निवास स्थान, पानी की उपलब्धता आदि पर विशेष ध्यान दिया गया। इन 14 स्थानों में से राजस्थान के सोरसन को ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के पुनर्वास के लिये सबसे उपयुक्त स्थान के रूप में चुना गया।
  • WII के अनुसार, सोरसन में इन पक्षियों के प्रजनन को सूखा प्रवण जैसलमेर की अपेक्षा अधिक बढ़ावा मिलेगा।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण में चुनौतियाँ

प्रजनन और मृत्यु दर

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का औसत जीवनकाल 15 या 16 वर्षों का होता है तथा नर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की प्रजनन योग्य आयु 4 से 5 वर्ष, जबकि मादा के लिये यह आयु 3 से 4 वर्ष है।
  • एक मादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड 1 से 2 वर्षों में मात्र एक अंडा ही देती है और इससे निकलने वाले चूजे के जीवित बचने की दर 60%-70% होती है।
  • WII की रिपोर्ट के अनुसार, लंबे जीवन के बावजूद इतने धीमे प्रजनन और मृत्यु दर का अधिक होना इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये एक चुनौती है।

भोजन व प्रवास के विषय में कम जानकारी

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के भोजन और वासस्थान पर किसी प्रमाणिक जानकारी का अभाव होना इन पक्षियों के पुनर्वास में एक बड़ी चुनौती है।
  • गुजरात के वन्यजीव वैज्ञानिकों के सहयोग से राजस्थान वन्यजीव विभाग ने उच्च प्रोटीन और कैल्शियम युक्त कुछ पक्षी अहारों की पहचान की है, जिससे इस कार्यक्रम में कुछ मदद मिली है।

राज्यों द्वारा अनदेखी

  • WII की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ वर्षों पहले महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक राज्यों के कच्छ, नागपुर, अमरावती, सोलापुर, बेलारी और कोपल जैसे के ज़िलों में बड़ी संख्या में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पाए जाते थे। 
  • हालाँकि वर्तमान में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की घटती संख्या को देखते हुए इनके संरक्षण के लिये कर्नाटक ने WII के अभियान से जुड़ने की इच्छा जाहिर की है परंतु महाराष्ट्र से इस संदर्भ में कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।

अन्य चुनौतियाँ

  • वैश्विक स्तर पर और विशेषकर भारत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण उच्च वोल्टेज की विद्युत लाइनें (तार) हैं, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पक्षी की सीधे देखने की क्षमता (Poor Frontal Vision) कमज़ोर होने के कारण वे जल्दी विद्युत तारों नहीं देख पाते।
  • केवल जैसलमेर में 15% ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु विद्युत आघात से होती है।
  • इसके साथ ही इन पक्षियों का अवैध शिकार तथा कुत्ते व अन्य जंगली जानवर इस प्रजाति की उत्तरजीविता के लिये चुनौती उत्पन्न करते हैं।

आगे की राह

  • एक बार वयस्क हो जाने के बाद इन चूजों के विकास और प्रजनन के लिये उपयुक्त निवास स्थान की व्यवस्था करना तथा पुनः इन पक्षियों को प्राकृतिक वासस्थान में छोड़ने से पहले इन्हें भोजन और अपनी रक्षा के लिये आत्मनिर्भर बनाना भी WII के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।

ग्रीन स्टील

चर्चा में क्यों?
पूर्वी भारत में एक स्वच्छ इस्पात क्षेत्र देश के 'ग्रीन स्टील' में संक्रमण के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

  • 'ग्रीन स्टील' की दिशा में बढ़ने के लिये पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इस क्षेत्र में स्थित सभी इस्पात संयंत्रों को गैस प्रदान करने के लिये वर्ष 2019 में पूर्वी भारत में प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा परियोजना शुरू की है

ग्रीन स्टील

  • विषय:
    • ग्रीन स्टील जीवाश्म ईंधन के उपयोग के बिना ही इस्पात का निर्माण है।
      • यह कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन-गहन विनिर्माण मार्ग के बजाय हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण या बिजली जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जा सकता है।
    • यह अंततः ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है, लागत में कटौती करता है और इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है।
    • कम-कार्बन हाइड्रोजन (नीली हाइड्रोजन और हरी हाइड्रोजन) इस्पात उद्योग के कार्बन पदचिह्न को कम करने में मदद कर सकती है।
      • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHM): राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHM) स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये हाइड्रोजन का उपयोग करता है।
  • उत्पादन के तरीके
    • अधिक स्वच्छ विकल्पों के साथ प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना:
      • कार्बन कैप्चर और यूटिलाइज़ेशन टेक्नोलॉजीज़ (CCUS)
      • कम कार्बन हाइड्रोजन के साथ ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों के स्थान पर प्रयोग
      • लौह अयस्क के इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से प्रत्यक्ष विद्युतीकरण
  • महत्त्व
    • ऊर्जा और संसाधन उपयोग के मामले में इस्पात उद्योग सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के सबसे बड़े उत्सर्जक में से एक है।
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में की गई प्रतिबद्धताओं के मद्देनज़र, भारतीय इस्पात उद्योग को 2030 तक अपने उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने और 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
  • चुनौतियाँ:
    • इस समय देश का लोहा और इस्पात क्षेत्र आर्थिक रूप से कमज़ोर है। हालांकि ग्रीन स्टील निर्माण एक महँगी प्रक्रिया है जिसमें उच्च लागत शामिल है।

हाइड्रोजन के प्रकार:

  • ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। 
  • ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है जहाँ उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
  • ग्रे हाइड्रोजन (Grey Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है जहाँ संबंधित उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है। 
  • ब्लू हाइड्रोजन (Blue Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होती है, जहाँ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।

भारत में इस्पात उत्पादन की स्थिति:  

  • उत्पादन: भारत वर्तमान में कच्चे इस्पात का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जहाँ 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के दौरान 120 मिलियन टन (एमटी) कच्चे इस्पात का उत्पादन हुआ था।
  • भंडार: देश में इसका 80 प्रतिशत से अधिक भंडार ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में है।
  • महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र हैं: भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), बोकारो (झारखंडं।
  • खपत: भारत वर्ष 2021 (106.23 MT) में तैयार स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, विश्व स्टील एसोसिएशन के अनुसार, चीन सबसे बड़ा स्टील उपभोक्ता है।

आगे की राह

  • इस्पात क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों को अपनाया जाना चाहिये। कई पुराने संयंत्रों को नवीनीकृत करने की आवश्यकता है और विद्युत आधारित विनिर्माण के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों में एवं निवेश की उज्ज्वल संभावनाएँ हैं।
  • स्क्रैप का इस्तेमाल स्टील बनाने के लिये उपयोग की जाने वाली ऊर्जा को कम करने में किया जा सकता है जिसके पुनर्चक्रण के लिये उपयुक्त बुनियादी ढाँचा और स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  • सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र को इसकी मांग को पूरा करने के लिये पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ हरित इस्पात की खरीद के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को हरित इस्पात बाज़ार के विकास के लिये हरित मानक और समान प्रकार के लेबल के निर्माण की आवश्यकता है।
  • पुराने और प्रदूषणकारी संयंत्रों को हटाया जाना चाहिये।

जलवायु टिपिंग पॉइंट्स

चर्चा में क्यों?
एक प्रमुख अध्ययन के अनुसार, जलवायु संकट ने दुनिया को कई "विनाशकारी" टिपिंग बिंदुओं के कगार पर पहुँचा दिया है।

  • क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स या CTPs एक वृहत जलवायु प्रणाली के मार्कर हैं जो एक सीमा से परे ट्रिगर होने पर स्वतः तापन को बनाए रखते हैं।

अध्ययन के नए निष्कर्ष

  • अध्ययन के अनुसार, मानव समुदाय के कारण 1.1 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापन अब तक के पाँच खतरनाक टिपिंग पॉइंट पहले ही पार कर चुकी है।
    • इनमें ग्रीनलैंड की हिम छत्रक का पिघलना, समुद्र के जल स्तर में भारी वृद्धि, उत्तरी अटलांटिक में प्रमुख धारा का पतन, बारिश को बाधित करना जिस पर अरबों लोग भोजन के लिये निर्भर हैं और कार्बन युक्त पर्माफ्रॉस्ट का अचानक पिघलना शामिल है।
  • 5°C पर फाइव टिपिंग पॉइंट संभव हो जाते हैं, जिसमें विशाल उत्तरी जंगलों में परिवर्तन और लगभग सभी पर्वतीय हिमनदों का पिघलना, उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों का मरना तथा पश्चिम अफ्रीकी मानसून में परिवर्तन शामिल हैं।
  • कुल मिलाकर शोधकर्त्ताओं को 16 टिपिंग पॉइंट्स के प्रमाण मिले, जिनमें से अंतिम छह को ट्रिगर करने के लिये कम-से-कम 2 डिग्री सेल्सियस के वैश्विक उष्मन की आवश्यकता होती है।
    • टिपिंग पॉइंट कुछ वर्षों से लेकर सदियों तक की समय-सारिणी पर प्रभावी होंगे।
  • आर्कटिक में 2 °C से अधिक पर चिह्नित 9 वैश्विक टिपिंग बिंदु ग्रीनलैंड पश्चिमी अंटार्कटिक का पतन और पूर्वी अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के दो हिस्से हैं, जो अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) का आंशिक और कुल पतन है।
  • अन्य संभावित टिपिंग बिंदुओं का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है, जिसमें समुद्री ऑक्सीजन की हानि और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून में प्रमुख बदलाव शामिल हैं।

आगे की राह

  • यह मूल्यांकन जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये तत्काल कार्रवाई के लिये मज़बूत वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करता है।
    • वर्तमान में विश्व ग्लोबल वार्मिंग के 2 से 3°C की ओर बढ़ रहा है; सबसे अच्छा, यदि सभी शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाओं और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों को लागू किया जाता है तो यह 2 °C से नीचे तक पहुँच सकता है।
    • यह कुछ हद तक टिपिंग पॉइंट (tipping point) जोखिम को कम करेगा लेकिन फिर भी यह खतरनाक होगा क्योंकि यह कई जलवायु टिपिंग पॉइंट्स को ट्रिगर कर सकता है।

हरित पटाखे

चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिवाली के दौरान देखे गए व्यापक प्रदूषण के लिये पटाखों को जलाना या आतिशबाज़ी को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

हरित पटाखे

  • हरित पटाखों को 'पर्यावरण के अनुकूल' पटाखे कहा जाता है और पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम वायु तथा ध्वनि प्रदूषण पैदा करने के लिये जाना जाता है।
  • इन पटाखों को पहली बार वर्ष 2018 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय पर्यावरण एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
  • NEERI पर्यावरण विज्ञान और इंजीनियरिंग में अनुसंधान तथा विकासात्मक अध्ययन करने के लिये CSIR का एक घटक है।
  • ये पटाखे शोर की तीव्रता और उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से पारंपरिक पटाखों में कुछ खतरनाक कारकों को कम प्रदूषणकारी पदार्थों से बदल देते हैं।
  • अधिकांश हरित पटाखों में बेरियम नाइट्रेट नहीं होता है, जो पारंपरिक पटाखों में सबसे खतरनाक घटक है।
  • हरित पटाखे मैग्नीशियम और बेरियम के बजाय पोटेशियम नाइट्रेट व एल्युमिनियम जैसे वैकल्पिक रसायनों के साथ-साथ आर्सेनिक एवं अन्य हानिकारक प्रदूषकों के बजाय कार्बन का उपयोग करते हैं।
  • नियमित पटाखे भी 160-200 डेसिबल ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जबकि हरे पटाखों लगभग 100-130 डेसिबल तक सीमित होते हैं।

हरित पटाखों की पहचान

वर्तमान में तीन ब्रांड के हरित पटाखे खरीद के लिये उपलब्ध हैं

  • सेफ वाटर रिलीज़र (SWAS): ये पटाखे सल्फर या पोटेशियम नाइट्रेट का उपयोग नहीं करते हैं और इस प्रकार कुछ प्रमुख प्रदूषकों के बजाय जल वाष्प छोड़ते हैं। यह मंदक के उपयोग को भी लागू करता है तथा इस प्रकार पार्टिकुलेट मैटर (PM) उत्सर्जन को 30% तक नियंत्रित करने में सक्षम है।
  • सेफ थर्माइट क्रैकर (STAR): SWAS की तरह STAR में भी सल्फर और पोटेशियम नाइट्रेट नहीं होते हैं तथा कण धूल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के अलावा इसमें ध्वनि की तीव्रता भी कम होती है।
  • सेफ मिनिमल एल्युमिनियम (SAFAL): यह एल्युमिनियम सामग्री को मैग्नीशियम से बदल देता है और इस प्रकार प्रदूषकों के स्तर को कम करता है।
  • हरित पटाखों के सभी तीन ब्रांड वर्तमान में केवल CSIR द्वारा अनुमोदित लाइसेंस प्राप्त निर्माताओं द्वारा ही उत्पादित किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन (PESO) को यह प्रमाणित करने का काम सौंपा गया है कि पटाखे आर्सेनिक, पारा तथा बेरियम के बिना बनाए जाएँ तथा एक निश्चित सीमा से अधिक आवाज़ न हो।
  • इसके अलावा एक त्वरित प्रतिक्रिया (QR) कोडिंग प्रणाली के साथ हरित रंग के पटाखों को उनके बक्से पर मुद्रित हरे रंग के लोगो (Logo) द्वारा खुदरा दुकानों में पारंपरिक पटाखों से अलग किया जा सकता है।

हरित पटाखे के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • चूँकि हरित पटाखे केवल कानूनी रूप से उन फर्मों द्वारा निर्मित किये जा सकते हैं जिन्होंने CSIR के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, कोई भी लघु-स्तरीय व्यवसाय या कुटीर उद्योग हरित पटाखों का निर्माण नहीं कर सकता है, साथ ही पारंपरिक आतिशबाज़ी पर प्रतिबन्ध लगाने से बहुत से लोग बेरोज़गार हो जाएंगे।
  • सही हरे पटाखों की पहचान कैसे करें, इस बारे में सामान्यत: विक्रेताओं और जनता दोनों के बीच जागरूकता की कमी है। वास्तव में विशेषज्ञों ने स्ट्रीट वेंडर्स से हरित पटाखे खरीदने के प्रति आगाह किया है क्योंकि पटाखे से संबंधित सामग्री विश्वसनीय नहीं हो सकती है।
  • यह भी पता चला है कि अधिकांश ग्राहक हरित पटाखों की उपलब्धता की कमी या उनकी अधिक कीमतों के कारण 'पारंपरिक' पटाखे खरीदना पसंद करते हैं।

आगे की राह

  • सरकार द्वारा हरित पटाखों की उत्पादन गतिविधियों के लिये छोटे निर्माताओं को कानूनी मंज़ूरी देकर उनका उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किये जाने चाहिये। यह हरित पटाखों की कमी की समस्या से निपटने में मदद करेगा।
  • हरित पटाखों के फायदे और उनकी प्रामाणिकता की पहचान कैसे की जाए, यह कार्य लोगों को जागरूक किया जा सकता है।
The document Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
55 videos|460 docs|193 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. बायोमास को-फायरिंग लक्ष्य में भारत का पिछड़ापन क्या है?
उत्तर: बायोमास को-फायरिंग लक्ष्य में भारत का पिछड़ापन यह दर्शाता है कि भारत के वन एवं जलवायु परिवर्तन के कारण अल्पसंख्यक समुदायों और पिछड़े वर्गों को इस ऊर्जा उत्पादन के संबंध में समान उपयोग की सुविधा नहीं मिलती है। इसके साथ ही, इसका उपयोग उन समुदायों को भी नहीं करने दिया जाता है जिनके पास बायोमास स्रोतों का उपयोग करने का अधिकार हो सकता है।
2. सैंडलवुड स्पाइक डिज़ीज़ क्या होते हैं?
उत्तर: सैंडलवुड स्पाइक डिज़ीज़ एक पेड़ीय बीमारी होती है जो सैंडलवुड पेड़ों को प्रभावित करती है। यह बीमारी सैंडलवुड पेड़ों के रक्षक पथों को नष्ट करती है और उन्हें मरने का कारण बनती है। यह डिज़ीज़ पेड़ के आंतरिक भागों में बैक्टीरिया के प्रवेश से होती है और पेड़ को खतरे में डालती है।
3. ग्रीन स्टील क्या है?
उत्तर: ग्रीन स्टील एक पर्यावरण के साथ अनुकूल तकनीक है जिसका उपयोग इस्पात उद्योग में किया जाता है। यह स्टील उत्पादन प्रक्रिया को स्वच्छ एवं पर्यावरण के साथ अनुकूल बनाने के लिए नवीनतम तकनीकों का प्रयोग करता है। ग्रीन स्टील के उपयोग से उद्योग के कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है और पर्यावरण को संरक्षित रखा जा सकता है।
4. जलवायु टिपिंग पॉइंट्स क्या होते हैं?
उत्तर: जलवायु टिपिंग पॉइंट्स एक प्रदूषण प्रबंधन की तकनीक हैं जिनका उपयोग वातावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए किया जाता है। इन पॉइंट्स का उपयोग जलवायु प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण के लिए किया जाता है, जहां संयोजनीय और असंयोजनीय प्रदूषण के स्रोतों को पहचाना जा सकता है और इसका प्रबंधन किया जा सकता है।
5. हरित पटाखेपर्यावरण और पारिस्थितिकी क्या होता है?
उत्तर: हरित पटाखेपर्यावरण और पारिस्थितिकी एक पटाखेपर्यावरण का मतलब है जो पर्यावरण के साथ अनुकूल है। इसमें पर्यावरण के प्रदूषण को कम करने के लिए बनाए गए पटाखों का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग करके पटाखों के प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और कचरे के उत्पादन को कम किया जा सकता है।
55 videos|460 docs|193 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

Objective type Questions

,

shortcuts and tricks

,

Extra Questions

,

MCQs

,

practice quizzes

,

Viva Questions

,

past year papers

,

study material

,

Exam

,

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Sample Paper

,

Free

,

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Important questions

,

Semester Notes

,

video lectures

,

Summary

,

mock tests for examination

,

ppt

;