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History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2022 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के नैतिक मूल्य

चर्चा में क्यों?
भारत ने 2 अक्तूबर, 2022 को देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती मनाई।

शास्त्री जी का जीवन एक संदेश:

  • जाति व्यवस्था के खिलाफ:
    • शास्त्री का जन्म रामदुलारी देवी और शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर हुआ था। हालाँकि प्रचलित जाति व्यवस्था के खिलाफ होने के कारण उन्होंने अपना उपनाम छोड़ने का फैसला किया।
    • वर्ष 1925 में वाराणसी के काशी विद्यापीठ से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें 'शास्त्री' की उपाधि दी गई।
    • 'शास्त्री' शीर्षक 'विद्वान' या ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है, जो पवित्र शास्त्रों का ज्ञाता होता है। इस प्रकार शास्त्री जी ने छोटी सी उम्र में ही व्यापक दृष्टिकोण अपनाया।
  • प्रतिकूल समय के दौरान ज़िम्मेदारियाँ लेना:
    • वह देश की असंख्य ज़िम्मेदारियों को उठाने वाले सार्वजनिक जीवन जीने वाले दिग्गजों में से एक थे।
    • विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने खुद को जवाबदेह ठहराने के साथ एक सच्चे नेता के गुणों का प्रदर्शन किया।
    • इतने कर्तव्यनिष्ठ थे कि जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में रेल मंत्री रहने के दौरान वर्ष 1956 में तमिलनाडु के अरियालुर में एक ट्रेन दुर्घटना के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
    • इनके व्यक्तित्व  की नेहरू सहित सभी ने सराहना की,गई जिन्हें वे अपना "हीरो" मानते थे।
  • सार्वजनिक और निजी जीवन में एकरूपता:
    • वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश खाद्यान्न की भारी कमी का सामना कर रहा था।
    • इस समय अमेरिका की तरफ से भी खाद्य आपूर्ति में कटौती का अतिरिक्त दबाव था।
    • इस संकट का सामना करते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने घोषणा की कि अगले कुछ दिनों के लिये वह अपने पूरे परिवार के साथ शाम का भोजन छोड़ देंगे।
  • नैतिकता:
    • ऐसा कहा जाता है कि उनके आधिकारिक उपयोग वाली कार का एक बार उनके बेटे ने इस्तेमाल कर लिया था।  
    • जब उन्हें इस बात का पता चला तब उन्होंने अपने ड्राइवर से यह पता करने को कहा कि गाड़ी कितनी दूर चली है और फिर बाद में उन्होंने सरकार के खाते में उतना पैसा जमा कर दिया

लाल बहादुर शास्त्री की प्रासंगिकता:

  • भारतीयों को उनकी सादगी, विनम्रता, मानवतावाद, तपस्या, कड़ी मेहनत, समर्पण और राष्ट्रवाद का अनुकरण करना चाहिये।
  • वर्ष 1964 में शास्त्री जी का पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था इसमें उन्होंने चरित्र निर्माण एवं नैतिक शक्ति पर ज़ोर दिया था, जिसका विशेष महत्त्व  है, खासकर तब जब हम अपने आसपास मूल्यों के सर्वांगीण पतन को देख सकते हैं।

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को उनकी 90वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी।

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2022 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

परिचय:

  • डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था।
  • उनकी जयंती को राष्ट्रीय नवाचार दिवस और विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • उन्होंने वर्ष 1954 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और वर्ष 1957 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से वैमानिकी इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल की।
  • वह भारत और विदेशों से 48 विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों से मानद डॉक्टरेट प्राप्त करने के अद्वितीय सम्मान के साथ भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक हैं।
  • उन्होंने वर्ष 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और वर्ष 2007 में पूरा कार्यकाल पूरा किया।
  • उन्होंने कई सफल मिसाइलों के निर्माण के लिये कार्यक्रमों की योजना बनाई, जिससे उन्हें "भारत का मिसाइल मैन" कहा जाता है।

प्राप्त पुरस्कार

उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार - पद्म भूषण (1981) और पद्म विभूषण (1990) तथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न (1997) से सम्मानित किया गया।

  • साहित्यिक रचनाएँ:
    • "विंग्स ऑफ फायर", "इंडिया 2020 - ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम", "माई जर्नी" और "इग्नाइटेड माइंड्स - अनलीशिंग द पावर इन इंडिया", "इंडोमेबल स्पिरिट", "गाइडिंग सोल्स", "एनविजनिंग ए एम्पावर्ड नेशन" , "प्रेरणादायक विचार" आदि।
  • मृत्यु:
    • 27 जुलाई 2015 शिलांग, मेघालय में उनकी मृत्यु हो गई।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का योगदान

  • योगदान:
    • ‘फाइबरग्लास’ तकनीक में अग्रणी
    • वह ‘फाइबरग्लास’ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी थे और उन्होंने इसरो में इसे डिज़ाइन करने तथा इसके विकास कार्य को शुरू करने हेतु एक युवा टीम का नेतृत्त्व किया था, जिससे ‘कंपोज़िट रॉकेट मोटर’ का निर्माण संभव हो पाया।
  • सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-3):
    • उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ (SLV-3) को विकसित करने हेतु परियोजना निदेशक के रूप में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने जुलाई 1980 में ‘रोहिणी उपग्रह’ का नियर-अर्थ ऑर्बिट में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया और भारत को स्पेस क्लब का एक विशेष सदस्य बनाया।
    • वह इसरो के प्रक्षेपण यान कार्यक्रम, विशेष रूप से PSLV कॉन्फिगरेशन के विकास हेतु उत्तरदायी थे।
  • स्वदेशी निर्देशित मिसाइलें:
    • इसरो में दो दशकों तक काम करने और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करने के बाद उन्होंने ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ में स्वदेशी निर्देशित मिसाइलों को विकसित करने की ज़िम्मेदारी ली।
    • वह ‘एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम’ (IGMDP) के मुख्य कार्यकारी थे।
    • उन्होंने परमाणु ऊर्जा विभाग के सहयोग से सामरिक मिसाइल प्रणालियों और पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षणों का नेतृत्त्व किया, जिसने भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बना दिया।
  • प्रौद्योगिकी विज़न 2020:
    • वर्ष 1998 में उन्होंने ‘टेक्नोलॉजी विज़न-2020’ नामक एक देशव्यापी योजना को सामने रखा, जिसे उन्होंने 20 वर्षों में भारत को ‘अल्प-विकसित’ से विकसित समाज में बदलने के लिये एक रोडमैप के रूप में पेश किया।
    • योजना में अन्य उपायों के अलावा कृषि उत्पादकता में वृद्धि, आर्थिक विकास के वाहक के रूप में प्रौद्योगिकी पर ज़ोर देना और स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा तक पहुँच को व्यापक बनाना भी शामिल है।
  • चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा:
    • एपीजे अब्दुल कलाम ने हृदय रोग विशेषज्ञ बी. सोमा राजू के सहयोग से कोरोनरी हृदय रोग के लिये 'कलाम-राजू-स्टेंट' विकसित किया, जिससे स्वास्थ्य सेवा सभी के लिये सुलभ हो पाई।
    • इस उपकरण से भारत में आयातित कोरोनरी स्टेंट की कीमतों में 50% से अधिक की कमी आई है।
  • लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट:
  • वे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट से विशेष रूप से जुड़े हुए थे।
  • वह एवियोनिक्स से जुड़े हुए थे। वह लड़ाकू विमान उड़ाने वाले पहले भारतीय राष्ट्राध्यक्ष भी बने।
  • अन्य
    • उन्होंने ‘PURA’ (प्रोवाइडिंग अर्बन एमेनिटीज़ टू रूरल एरियाज़) के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया, जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिकल्पित की गई थी।
    • अपने विविध अनुभवों के आधार पर उन्होंने ‘विश्व ज्ञान मंच’ की अवधारणा का प्रचार किया, जिसके माध्यम से 21वीं सदी की चुनौतियों के लिये संगठनों और राष्ट्रों की मुख्य दक्षताओं को नवप्रवर्तन एवं समाधान तथा उत्पाद बनाने हेतु समन्वित किया जा सकता है।

लोथल: दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात बंदरगाह 

 

चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (National Maritime Heritage Complex-NMHC) साइट के निर्माण की समीक्षा की है।

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर:

  • यह परियोजना मार्च 2022 में शुरू हुई और इसे 3,500 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया जा रहा है।
  • इसमें लोथल मिनी-रिक्रिएशन जैसी कई नवीन विशेषताएँ होंगी, जो इमर्सिव तकनीक के माध्यम से हड़प्पा वास्तुकला और जीवन-शैली को फिर से बनाएंगी।
  • इसमें चार थीम पार्क हैं- मेमोरियल थीम पार्क, मैरीटाइम एंड नेवी थीम पार्क, क्लाइमेट थीम पार्क और एडवेंचर एंड एम्यूज़मेंट थीम पार्क।
  • यह भारत के समुद्री इतिहास को सीखने और समझने के केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
  • NMHC को भारत की विविध समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने और लोथल को विश्व स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में उभरने में मदद करने के उद्देश्य से विकसित किया जा रहा है।

लोथल

  • परिचय:
    • लोथल, सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के सबसे दक्षिणी स्थलों में से एक था, जो अब गुजरात राज्य के भाल क्षेत्र में स्थित है।
    • माना जाता है कि बंदरगाह शहर 2,200 ईसा पूर्व में बनाया गया था।
    • लोथल प्राचीन काल में एक फलता-फूलता व्यापार केंद्र था, जहाँ से मोतियों, रत्नों और गहनों का व्यापार पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका तक किया जाता था।
    • गुजराती में लोथल (लोथ और थाल का एक संयोजन) का अर्थ है "मृतकों का टीला।
    • संयोग से मोहनजो-दड़ो शहर का नाम (सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा, जो अब पाकिस्तान में है) का अर्थ सिंधी में भी यही है।
    • लोथल में दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात बंदरगाह था, जो शहर को सिंध के हड़प्पा शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच व्यापार मार्ग पर साबरमती नदी के प्राचीन मार्ग से जोड़ता था
  • खोज:
    • भारतीय पुरातत्त्वविदों ने वर्ष 1947 के बाद गुजरात के सौराष्ट्र में हड़प्पा सभ्यता के शहरों की खोज शुरू की।
    • पुरातत्त्वविद् एस.आर. राव ने उस टीम का नेतृत्व किया जिसने उस समय कई हड़प्पा स्थलों की खोज की, जिसमें बंदरगाह शहर लोथल भी शामिल था।
    • लोथल में फरवरी 1955 से मई 1960 के बीच खुदाई का कार्य किया गया।
  • डॉकयार्ड की पहचान:
    • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी, गोवा ने स्थल पर समुद्री माइक्रोफॉसिल और नमक, जिप्सम, क्रिस्टल की खोज की, जो दर्शाता है कि यह निश्चित रूप से डॉकयार्ड था।
    • बाद की खुदाई में ASI ने टीला, बस्ती, बाज़ार और बंदरगाह का पता लगाया।
    • खुदाई वाले क्षेत्रों के निकट पुरातात्त्विक स्थल संग्रहालय है, जहाँ भारत में सिंधु-युग की प्राचीन वस्तुओं के कुछ सबसे प्रमुख संग्रह प्रदर्शित किये गए हैं।
  • लोथल विरासत का महत्त्व:
    • लोथल को अप्रैल 2014 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था और इसका आवेदन यूनेस्को की अस्थायी सूची में लंबित है।
    • लोथल का उत्खनन स्थल सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र बंदरगाह शहर है।
    • इसका विरासत मूल्य दुनिया भर के अन्य प्राचीन बंदरगाह-नगरों के बराबर है, जिनमें शामिल हैं,
    • जेल हा (पेरू)
    • इटली में ओस्टिया (रोम का बंदरगाह) और कार्थेज़ (ट्यूनिस का बंदरगाह)
    • चीन में हेपू
    • मिस्र में कैनोपस
    • गैबेल (फोनीशियन के बायब्लोस)
    • इज़रायल में जाफा
    • मेसोपोटामिया में उर
    • वियतनाम में होई एन
    • इस क्षेत्र में इसकी तुलना बालाकोट (पाकिस्तान), खिरसा (गुजरात के कच्छ में) और कुंतासी (राजकोट में) के अन्य सिंधु बंदरगाह शहरों से की जा सकती है।

संसदीय समितियाँ

चर्चा में क्यों?
हाल ही में 22 स्थायी समितियों का पुनर्गठन हुआ।
संसदीय समितियाँ

  • परिचय:
    • संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
    • समिति अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और यह अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
    • संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद में हुई है।
    • वे अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 118 से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं।
      • अनुच्छेद 105 सांसदों के विशेषाधिकारों से संबंधित है।
      • अनुच्छेद 118 संसद को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।
  • आवश्यकता:
    • विधायी कार्य शुरू करने के लिये संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता है लेकिन कानून बनाने की प्रक्रिया अक्सर जटिल होती है तथा संसद के पास विस्तृत चर्चा के लिये सीमित समय होता है।
    • साथ ही राजनीतिक ध्रुवीकरण और चर्चा हेतु सामंजस्य का अभाव संसद में तेज़ी से विद्वेषपूर्ण और अनिर्णायक बहसों को जन्म दे रहा है।
    • इन मुद्दों के कारण विधायी कार्य का एक बड़ा निर्णय संसद के बज़ाय संसदीय समितियों में होता है।

संसद की विभिन्न समितियाँ

  • भारत की संसद में कई प्रकार की समितियाँ हैं। उन्हें उनके काम, उनकी सदस्यता और उनके कार्यकाल के आधार पर विभेदित किया जा सकता है।
  • तथापि मोटे तौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।
    • स्थायी समितियाँ स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) होती हैं और निरंतर आधार पर काम करती हैं।
    • स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
      • वित्तीय समितियाँ
      • विभागीय स्थायी समितियाँ
      • जाँच हेतु समितियाँ
      • जाँच और नियंत्रण के लिये समितियाँ
      • सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबंधित समितियाँ
      • हाउस कीपिंग या सर्विस कमेटी
  • जबकि तदर्थ समितियाँ अस्थायी होती हैं और उन्हें सौंपे गए कार्य के पूरा होने पर उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
    • उन्हें आगे जाँच समितियों और सलाहकार समितियों में विभाजित किया गया है।
    • प्रमुख तदर्थ समितियाँ विधेयकों पर प्रवर और संयुक्त समितियाँ हैं।

संसदीय समितियों का महत्त्व

  • विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
    • अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं, जो जनता की समस्या को समझते हैं लेकिन निर्णय लेने से पूर्व विशेषज्ञों और हितधारकों की सलाह पर भरोसा करते हैं।
    • संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता हासिल करने में मदद करती हैं और उन्हें मुद्दों पर विस्तार से सोचने का समय देती हैं।
  • लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
    • ये समितियाँ एक लघु-संसद के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि उनके पास विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद होते हैं, जो संसद में उनकी ताकत के अनुपात में, एकल संक्रमणीय चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं।
  • विस्तृत जाँच के लिये साधन:
    • जब इन समितियों को बिल भेजे जाते हैं, तो उनकी बारीकी से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से इनपुट मांगे जाते हैं।
  • सरकार पर नियंत्रण प्रदान करता है:
    • हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन उनकी रिपोर्टें उन परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड बनाती हैं जो बहस योग्य प्रावधानों पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिये सरकार पर दबाव डालती हैं।
    • बंद दरवाजे और लोगों की नज़रों से दूर होने के कारण समिति की बैठकों में चर्चा भी अधिक सहयोगी होती है, जिसमें सांसद मीडिया दीर्घाओं के लिये कम दबाव महसूस करते हैं।

संसदीय समितियों को कम महत्त्व दिये जाने से संबद्ध मुद्दे

  • सरकार की संसदीय प्रणाली का कमज़ोर होना:
    • संसदीय लोकतंत्र संसद और कार्यपालिका के बीच शक्तियों को समेकित करने के सिद्धांत पर काम करता है, लेकिन संसद से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार की ज़िम्मेदारी को बनाए रखने के साथ ही इसकी शक्तियों पर भी नियंत्रण बनाए रखे।
      • इस प्रकार महत्त्वपूर्ण विधानों को पारित करते समय संसदीय समितियों को महत्त्व न दिये जाने या उन्हें दरकिनार करने से लोकतंत्र के कमज़ोर होने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
  • ब्रूट मेजोरिटी को लागू करना:
    • भारतीय प्रणाली में यह अनिवार्य नहीं है कि विधेयक समितियों को भेजे जाएँ। यह अध्यक्ष (लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति) के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
      • अध्यक्ष को विवेकाधीन शक्ति प्रदान कर इस प्रणाली को विशेष तौर पर लोकसभा में जहाँ बहुमत सत्तारूढ़ दल के पास होता है, को कमज़ोर रूप में प्रस्तुत किया गया है।

आगे की राह

  • पारित किये गए महत्त्वपूर्ण विधेयकों की जाँच अनिवार्य रूप से विधायी प्रक्रिया में बाधा नहीं है, बल्कि कानून की गुणवत्ता और विस्तार से शासन की गुणवत्ता को बनाए रखना आवश्यक है।
  • इस प्रकार कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की शुचिता सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत संसदीय समिति प्रणाली की आवश्यकता है।

 भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

चर्चा में क्यों?
भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियमों को पारित किये हुए लगभग 30 वर्ष हो गए हैं, लेकिन इस दिशा में वास्तविक प्रगति बहुत कम हुई है

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण

  • विषय:
    • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण राज्य के संसाधनों और कार्यों पर अधिकार को केंद्र से निचले स्तरों पर निर्वाचित अधिकारियों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है ताकि शासन में अधिक प्रत्यक्ष नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित हस्तांतरण केवल प्रत्योजन नहीं है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि निर्धारित शासनिक कार्यों को कानून द्वारा औपचारिक रूप से स्थानीय सरकारों को सौंपा जाता है, वित्तीय अनुदान और कर संबंधी उचित अंतरण द्वारा उनकी सहायता की जाती है तथा कर्मचारियों की सुविधा प्रदान की जाती है ताकि उनके पास अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिये आवश्यक साधन हों।

संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • स्थानीय सरकार, जिसमे पंचायत भी शामिल हैं, संविधान के अनुसार राज्य का विषय है, परिणामस्वरूप पंचायतों को शक्ति और अधिकार का हस्तांतरण राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
  • संविधान कहता है कि पंचायतों और नगरपालिकाओं को हर पाँच साल में चुना जाएगा तथा राज्यों को कानून के माध्यम से कार्यों एवं ज़िम्मेदारियों को हस्तांतरित करने का आदेश दिया जाएगा।
  • भारत में संवैधानिक रूप से पंचायती राज संस्थानों (PRIs) की स्थापना करके 73 वें और 74वें संशोधनों ने पंचायतों एवं नगरपालिकाओं को निर्वाचित स्थानीय सरकारों के रूप में स्थापित करना अनिवार्य कर दिया।
    • इन संशोधनों के द्वारा संविधान में दो नए भाग जोड़े गए, अर्थात् भाग IX शीर्षक "पंचायत" (73 वें संशोधन द्वारा) और भाग IXA शीर्षक "नगर पालिका" (74 वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
  • 11वीं अनुसूची में पंचायतों की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।
  • 12वीं अनुसूची में नगर पालिकाओं की शक्तियाँ, अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायत का गठन

स्थानीय निकायों की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • महिला प्रतिनिधित्त्व में बढ़ोतरी:
    • 73वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के बाद से निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का अनुपात लगातार बढ़ रहा है।
    • वर्तमान में भारत में 1 मिलियन निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ 260,512 पंचायतें हैं, जिनमें 1.3 मिलियन महिलाएँ हैं।
    • जबकि संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 7-8% है। निर्वाचित स्थानीय प्रतिनिधियों में से 49% (ओडिशा जैसे राज्यों में यह 50% को पार कर गया है) महिलाएँ हैं।
  • विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा का निर्माण:
    • 73वें और 74वें संशोधनों के पारित होने से हस्तांतरण (3 एफ: कोष, कार्य और पदाधिकारी) के संबंध में विभिन्न राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा पैदा हुई है।
    • उदाहरण:
      • केरल ने अपने 29 कार्य पंचायतों को हस्तांतरित कर दिये हैं।
      • केरल से प्रेरित राजस्थान ने स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला और कृषि जैसे कई प्रमुख विभाग पंचायती राज संस्थानों (PRI) को हस्तांतरित किये हैं।
      • इसी तरह बिहार ने "पंचायत सरकार" के विचार को प्रस्तुत किया है और ओडिशा जैसे राज्यों ने महिलाओं के लिये 50% सीटें बढ़ाई हैं।

भारत में स्थानीय निकायों की समस्या

  • अपर्याप्त निधि: स्थानीय सरकारों को दिया जाने वाला धन उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त होता है।
    • कई प्रकार की शर्तें धन के उपयोग को बाधित करती हैं, जिसमें आवंटित बजट खर्च करने में अनम्यता भी शामिल है।
    • स्थानीय सरकारों की अपने स्वयं के करऔर उपयोगकर्त्ता शुल्कों को बढ़ाने के लिये निवेश क्षमता बहुत कम है।
  • अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:
    • कुछ ग्राम पंचायतों (GPs) के पास अपना भवन नहीं है और वे स्कूलों, आँगनवाड़ी केंद्रों तथा अन्य स्थानों के साथ जगह साझा करते हैं।
      • कुछ के पास अपना भवन है लेकिन शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • ग्राम पंचायतों में इंटरनेट कनेक्शन होने के बावजूद कई मामलों में वे काम नहीं कर रहे हैं। किसी भी डेटा प्रविष्टि उद्देश्यों के लिये पंचायत अधिकारियों को ब्लॉक विकास कार्यालयों का दौरा करना पड़ता है जिससे काम में देरी होती है।
  • कर्मचारियों की कमी:
    • स्थानीय सरकारों के पास बुनियादी कार्य करने के लिये भी कर्मचारी नहीं हैं।
    • इसके अलावा अधिकांश कर्मचारियों को उच्च स्तर के विभागों द्वारा काम पर रखा जाता है, जिनको स्थानीय सरकारों में प्रतिनियुक्ति पर रखा जाता है, इसलिये वे ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करते हैं और एकीकृत विभागीय प्रणाली के हिस्से के रूप में कार्य करते हैं।
  • असामयिक और विलंबित चुनाव:
    • राज्य अक्सर चुनावों को स्थगित कर देते हैं और स्थानीय सरकारों के लिये पंचवर्षीय चुनावों के संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन करते हैं।
  • स्थानीय सरकार की निम्न भूमिका:
    • स्थानीय सरकारें स्थानीय विकास के लिये नीति बनाने वाले निकाय के बजाय केवल कार्यान्वयन मशीनरी के रूप में कार्य कर रही हैं। प्रौद्योगिकी-सक्षम योजनाओं ने उनकी भूमिका को और कम कर दिया है।
  • भ्रष्टाचार:
    • आपराधिक तत्त्व और ठेकेदार स्थानीय सरकार के चुनावों की ओर आकर्षित होते हैं, जो अपने पास उपलब्ध अत्यधिक धन के कारण जनता को लुभाते हैं। इस प्रकार भ्रष्टाचार की शृंखला का निर्माण होता है, जिसमें सभी स्तरों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों के बीच भागीदारी शामिल होती है।
    • हालाँकि यह साबित करने के लिये कोई सबूत नहीं है कि विकेंद्रीकरण के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है

आगे की राह

  • ग्राम सभाओं का पुनरुद्धार:
    • शहरी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और वार्ड समितियों को वास्तविक रूप में लोगों की भागीदारी के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये पुनर्जीवित करना होगा।
  • संगठनात्मक संरचना को सुदृढ़ बनाना:
    • पर्याप्त जनशक्ति के साथ स्थानीय सरकार के संगठनात्मक ढाँचे को मज़बूत करना होगा।
    • पंचायतों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सहायक और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती तथा नियुक्ति के लिये गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये।
  • कराधान हेतु व्यापक तंत्र:
    • स्थानीय स्तर पर कराधान के लिये एक व्यापक तंत्र तैयार किया जाना चाहिये। स्थानीय कराधान के बिना ग्राम पंचायतों को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है।
  • वित्तपोषण:
    • पंचायती राज मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के लिये वित्त आयोग के अनुदानों और व्यय की निगरानी करनी चाहिये ताकि अनुदानों की प्राप्ति में देरी न हो।
      • यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अनुदानों का उचित और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाए।
      • पंचायतों को भी नियमित रूप से स्थानीय लेखापरीक्षा के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि वित्त आयोग के अनुदान के मामले में देरी न हो।
The document History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2022 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
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FAQs on History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2022 UPSC Current Affairs - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. लाल बहादुर शास्त्री के जीवन में कौन-कौन से नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण थे?
उत्तर: लाल बहादुर शास्त्री एक नैतिक व्यक्तित्व थे और उनके जीवन में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, आपसी समझदारी, सेवाभाव, और देशभक्ति जैसे मूल्य शामिल थे।
2. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के क्या नैतिक मूल्य थे?
उत्तर: डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एक नैतिक व्यक्तित्व थे और उनके जीवन में सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, आदर्शवाद, विनम्रता, और शिक्षा के प्रति समर्पण जैसे मूल्य शामिल थे।
3. लोथल क्या है और यह दुनिया के सबसे पुराने ज्ञात बंदरगाह के रूप में क्यों माना जाता है?
उत्तर: लोथल एक प्राचीन शहर है जो भारत में स्थित है। यह दुनिया के सबसे पुराने ज्ञात बंदरगाह के रूप में माना जाता है क्योंकि यहां से मिले गए निर्माण सामग्री, उपकरण, और अन्य वस्त्र सामग्री ने इसकी प्राचीनता को साबित किया है।
4. भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण क्या होता है?
उत्तर: भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण एक नीति है जिसमें सत्ताधारी अधिकारीयों के कार्यकाल की सीमा और उनकी सत्ता के प्रभाव को सीमित करने का प्रयास किया जाता है। इसका उद्देश्य न्यायपूर्ण, संभावित और समर्थित नेतृत्व के माध्यम से लोकतांत्रिक और उच्चतर शासन ढांचे को स्थापित करना है।
5. अक्टूबर 2022 को भारत में ऐतिहासिक कला और संस्कृति के कौन-कौन से महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं?
उत्तर: अक्टूबर 2022 में भारत में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जैसे कि संगठन की गई संसदीय समितियाँ, कला और संस्कृति से सम्बंधित आयोजन और उत्सव, और ऐतिहासिक स्थानों के प्रमुखता को बढ़ावा देने के लिए की गई उपाय।
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