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Geography (भूगोल): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: GMCCA फोरम

चर्चा में क्यों?
ग्लोबल मीथेन, क्लाइमेट एंड क्लीन एयर (GMCCA) फोरम 2022 का आयोजन वाशिंगटन, डीसी, यूएसए में किया जा रहा है ताकि ग्लोबल मीथेन प्लेज का पालन करके मीथेन पर विशेष ध्यान देने के साथ जलवायु की रक्षा और वायु गुणवत्ता में सुधार के अवसरों पर चर्चा की जा सके।

फोरम का एजेंडा क्या है?

  • यह फोरम ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव (GMI) तथा यूएनईपी-आयोजित जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) द्वारा प्रायोजित एक संयुक्त कार्यक्रम है।
    • GMI एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी भागीदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन के उपयोग के समक्ष उत्पन्न बाधाओं को कम करने पर बल देता है। यह विश्व में मीथेन-से-ऊर्जा परियोजनाओं को शुरु करने के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करता है जो भागीदार देशों को मीथेन परियोजनाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
    • भारत GMI का भागीदार देश है।
  • मीथेन और अन्य अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करने के वैश्विक प्रयासों पर उच्च स्तरीय सत्र आयोजित किये जाएंगे।
  • यह फोरम मीथेन को कम करने की दिशा में वैश्विक स्तर पर अनुकूल नीति के साथ  राजनीतिक और वैज्ञानिक तर्कों की रूपरेखा तैयार करेगा। इसका लक्ष्य आगे के मार्ग को परिभाषित करना भी है। 

वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा क्या है?

  • परिचय:
    • मीथेन उत्सर्जन में कमी हेतु कार्रवाई को उत्प्रेरित करने के लिये नवंबर 2021 में COP (पार्टियों का सम्मेलन) 26 में वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा शुरू की गई थी।
    • इसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने किया था।
    • इसमें 111 देश प्रतिभागी हैं जो मानव-जनित वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के 45% हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • भारत, वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का हिस्सा नहीं है लेकिन विश्व स्तर पर शीर्ष पाँच मीथेन उत्सर्जकों में से एक है। इसका अधिकांश उत्सर्जन कृषि क्षेत्र में देखा जा सकता है।
    • इस प्रतिज्ञा में शामिल होकर देश वर्ष 2030 तक 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% मीथेन उत्सर्जन को सामूहिक रूप से कम करने के लिये मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • चिंताएँ:
    • मीथेन ने वर्तमान में मानवजनित ग्रीनहाउस गैस चालित वार्मिंग के लगभग एक-तिहाई में योगदान दिया है।
    • मीथेन, वातावरण में तेल और गैस उद्योगों में रिसाव, पशुपालन एवं लैंडफिल में कचरे के अपघटन के कारण प्रवेश करती है।
    • वर्तमान में वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 2% मीथेन क्षेत्र में जाता है।
    • यदि वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया जाता है, तो वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 13% की वृद्धि होने की संभावना है।
  • क्षेत्रवार मीथेन के शीर्ष बारह उत्सर्जक (2021 में)

Geography (भूगोल): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiमीथेन

  • परिचय:
    • मीथेन गैस पृथ्वी के वायुमंडल में कम मात्रा में पाई जाती है। यह सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) शामिल होते हैं। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है। यह एक ज्वलनशील गैस है जिसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थ के टूटने या क्षय होने से होता है। यह आर्द्रभूमियों, मवेशियों, धान के खेत जैसे प्राकृतिक एवं कृत्रिम माध्यमों द्वारा वातावरण में उत्सर्जित होती है।
  • मीथेन का प्रभाव:
    • मीथेन कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली गैस है और यह वायुमंडल में लंबे समय तक नहीं रहती है। इसके उत्सर्जन को अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में कम करके ग्लोबल वार्मिंग में और अधिक कमी की जा सकती है।
    • यह ज़मीनी स्तर के ओज़ोन (Ozone) को खतरनाक वायु प्रदूषक बनाने के लिये ज़िम्मेदार है।

वायु प्रदूषण से निपटने के लिये भारत की पहल

  • हरित धारा।
  • भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना
  • भारत स्टेज-4 (बीएस-4) से भारत स्टेज-6 (बीएस-6) उत्सर्जन मानक

आगे की राह

  • डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मीथेन और अन्य अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करना आवश्यक है।
  • राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं या रणनीतियों का विकास करना जो उत्सर्जन में कमी को प्रोत्साहित करने, समयसीमा को परिभाषित करने व आवश्यक संसाधनों का आकलन करने के लिये विशिष्ट कार्यों की पहचान करते हैं।
  • मीथेन उत्सर्जन के उद्देश्य से नई नीतियों या विनियमों का प्रस्ताव, जिसमें रिसाव का पता लगाने और मरम्मत कार्य, प्रौद्योगिकी एवं उपकरण मानकों, फ्लेयरिंग और वेंटिंग पर सीमा, मापन तथा रिपोर्टिंग आवश्यकताओं जैसे उपाय शामिल हों।
  • राजनीतिक प्रतिबद्धता स्थापित करने, अपेक्षाओं को चिंह्णित करने और बेहतर योजना बनाने के लिये राष्ट्रीय न्यूनीकरण लक्ष्यों को अपनाना, चाहे वह अर्थव्यवस्था-व्यापक हो या क्षेत्रीय।
  • सैटेलाइट डिटेक्शन पर आधारित सुपर-एमिटर रैपिड रिस्पांस सिस्टम में भाग लेना, जो बड़े उत्सर्जन की घटनाओं को उचित समय पर संबोधित करने के लिये संचार चैनल स्थापित करेगा।
  • अनुदान, लक्षित वित्त या अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से उपशमन और मानक प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान एवं विकास की दिशा में वित्तपोषण तथा सत्यापन योग्य शमन परियोजनाओं का समर्थन करना।

समुद्री जीवन के लिये जलवायु जोखिम सूचकांक

चर्चा में क्यों?
हाल ही में समुद्री जीवन के लिये जलवायु जोखिम सूचकांक शीर्षक से एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया था, जो लगभग 25,000 समुद्री प्रजातियों और उनके पारिस्थितिक तंत्र के लिये जलवायु जोखिम को रेखांकित करता है।

  • यह नया सूचकांक समुद्री जीवन के प्रबंधन और संरक्षण के लिये जलवायु-स्मार्ट दृष्टिकोण का समर्थन करने का आधार तैयार करता है।

निष्कर्ष क्या हैं?

  • समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों को बदलना:
    • महासागर की सतह का अधिक गर्म होना और जलवायु दशाओं के कारण प्रजातियों को गहरे, अधिक उत्तरी और ठंडे स्थानों पर जाना पड़ रहा है, इससे उनके व्यवहार में बदलाव देखा जा सकता है। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को मौलिक और अभूतपूर्व तरीके से नया आकार दे रहा है।
  • उच्च उत्सर्जन परिदृश्य:
    • उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में देखें तो, वैश्विक औसत महासागर तापमान वर्ष 2100 तक 3-5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। इस परिदृश्य के तहत 25,000 प्रजातियों में से लगभग 90% उच्च या गंभीर जलवायु जोखिम में हैं। अपनी भौगोलिक सीमा के 85% में आम प्रजातियाँ खतरे में हैं।
  • उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र:
    • उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्रों में जैवविविधता हॉटस्पॉट एवं निकटवर्ती पारिस्थितिक तंत्र में जोखिम सबसे अधिक होता है, ये क्षेत्र वैश्विक मछली पकड़ने के 96% का समर्थन करते हैं।
    • शार्क और टूना जैसे शीर्ष शिकारियों को खाद्य शृंखला के नीचे की प्रजातियों की तुलना में काफी अधिक जोखिम होता है। इस तरह के शिकारियों का पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्यात्मकता पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
  • अल्प आय वाले राष्ट्र:
    • उच्च उत्सर्जन के तहत कॉड और लॉबस्टर जैसी मछली प्रजातियों के लिये जलवायु जोखिम का खतरा कम आय वाले देशों के क्षेत्रों के भीतर लगातार अधिक होता है,, यहाँ लोग अपनी पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये मत्स्य पालन पर अधिक निर्भर रहते हैं।
    • यह जलवायु असमानता का एक और उदाहरण प्रस्तुत करता है, इसमें कम आय वाले वे देश शामिल हैं जिन्होंने जलवायु परिवर्तन में कम-से-कम योगदान किया है और अधिक आक्रामक रूप से अपने उत्सर्जन को कम कर रहे हैं, इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों का सामना कर रहे हैं,, जबकि उनके पास अनुकूलन करने की सबसे कम क्षमता है।
  • कम उत्सर्जन परिदृश्य:
    • कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत पेरिस समझौते में दो डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग सीमा के अनुसार, समुद्र के औसत तापमान में वर्ष 2100 तक 1-2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।
    • इसके अंतर्गत भविष्य में लगभग सभी समुद्री जीवों (98.2%) के लिये कम जलवायु जोखिम होगा। पारिस्थितिक तंत्र संरचना, जैवविविधता, मत्स्य पालन और कम आय वाले देशों के लिये जोखिम बहुत कम या समाप्त हो जाता है।

सिफारिशें

  • जलवायु शमन को प्राथमिकता देने वाले अधिक टिकाऊ पथ को चुनने से समुद्र के जीवन और लोगों को स्पष्ट लाभ होगा।
  • जलवायु जोखिमों को कम करने के लिये उत्सर्जन में कटौती सबसे प्रत्यक्ष दृष्टिकोण है।
  • उत्सर्जन को कम करने के अलावा हमारे महासागरों की रक्षा के लिये एक वार्मिंग जलवायु के अनुकूल होने के तरीके खोजना अनिवार्य है।
  • नए तरीकों और अनुकूलन रणनीतियों को शामिल करने, दुनिया के कम संसाधन वाले हिस्सों में क्षमता विकसित करने तथा अनुकूलन उपायों के पेशेवरों विरोधियों के बीच संतुलन की आवश्यकता है।

जलवायु टिपिंग पॉइंट्स

चर्चा में क्यों?
एक प्रमुख अध्ययन के अनुसार, जलवायु संकट ने दुनिया को कई "विनाशकारी" टिपिंग बिंदुओं के कगार पर पहुँचा दिया है।

  • क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट्स या CTPs एक वृहत जलवायु प्रणाली के मार्कर हैं जो एक सीमा से परे ट्रिगर होने पर स्वतः तापन को बनाए रखते हैं।

Geography (भूगोल): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiअध्ययन के नए निष्कर्ष:

  • अध्ययन के अनुसार, मानव समुदाय के कारण 1.1 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापन अब तक के पाँच खतरनाक टिपिंग पॉइंट पहले ही पार कर चुकी है।
    • इनमें ग्रीनलैंड की हिम छत्रक का पिघलना, समुद्र के जल स्तर में भारी वृद्धि, उत्तरी अटलांटिक में प्रमुख धारा का पतन, बारिश को बाधित करना जिस पर अरबों लोग भोजन के लिये निर्भर हैं और कार्बन युक्त पर्माफ्रॉस्ट का अचानक पिघलना शामिल है।
  • 5 °C पर फाइव टिपिंग पॉइंट संभव हो जाते हैं, जिसमें विशाल उत्तरी जंगलों में परिवर्तन और लगभग सभी पर्वतीय हिमनदों का पिघलना, उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों का मरना तथा पश्चिम अफ्रीकी मानसून में परिवर्तन शामिल हैं।
  • कुल मिलाकर शोधकर्त्ताओं को 16 टिपिंग पॉइंट्स के प्रमाण मिले, जिनमें से अंतिम छह को ट्रिगर करने के लिये कम-से-कम 2 डिग्री सेल्सियस के वैश्विक उष्मन की आवश्यकता होती है।
    • टिपिंग पॉइंट कुछ वर्षों से लेकर सदियों तक की समय-सारिणी पर प्रभावी होंगे।
  • आर्कटिक में 2 °C से अधिक पर चिह्नित 9 वैश्विक टिपिंग बिंदु ग्रीनलैंड पश्चिमी अंटार्कटिक का पतन और पूर्वी अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के दो हिस्से हैं, जो अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) का आंशिक और कुल पतन है।
  • अन्य संभावित टिपिंग बिंदुओं का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है, जिसमें समुद्री ऑक्सीजन की हानि और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून में प्रमुख बदलाव शामिल हैं।

आगे की राह

  • यह मूल्यांकन जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये तत्काल कार्रवाई के लिये मज़बूत वैज्ञानिक प्रमाण प्रदान करता है।
  • वर्तमान में विश्व ग्लोबल वार्मिंग के 2 से 3°C की ओर बढ़ रहा है; सबसे अच्छा, यदि सभी शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञाओं और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों को लागू किया जाता है तो यह 2 °C से नीचे तक पहुँच सकता है।
    • यह कुछ हद तक टिपिंग पॉइंट (tipping point) जोखिम को कम करेगा लेकिन फिर भी यह खतरनाक होगा क्योंकि यह कई जलवायु टिपिंग पॉइंट्स को ट्रिगर कर सकता है।

वानिकी रिपोर्ट में जैवविविधता: FAO


चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी "वानिकी रिपोर्ट में जैवविविधता को प्रमुखता” (Mainstreaming Biodiversity in Forestry Report) के अनुसार, 'उत्पादक वनों' में जैवविविधता को एकीकृत करना सर्वोपरि है।

  • जैवविविधता को मुख्यधारा में लाना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सार्वजनिक एवं निजी अभिकर्त्ताओं की नीतियों, रणनीतियों तथा विधियों में जैवविविधता के विचारों को लागू करने की प्रक्रिया है।

जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने हेतु चुनौतियाँ:

  • वनों की कटाई: वनों की कटाई प्रतिवर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर (मुख्य रूप से कृषि विस्तार के लिये खासकर कम आय वाले उष्णकटिबंधीय देशों में) की खतरनाक दर से जारी है।
  • अवैध वन गतिविधियाँ: अवैध लकड़ी की कटाई का अनुमान वैश्विक लकड़ी उत्पादन का 15-30% है।
  • निम्न संरक्षण प्रोफाइल: संरक्षित क्षेत्रों के बाहर संरक्षण की निम्न प्रोफ़ाइल।
  • अपर्याप्त क्षमता: विकासशील देश वन और जैवविविधता नियमों को लागू करने के लिये संघर्ष करते हैं।
  • सहभागिता की कमी: स्वदेशी लोगों और स्थानीय सामुदायिक भागीदारी की कमी।
  • कमज़ोर शासन: कमज़ोर शासन और कानून प्रवर्तन संरक्षित क्षेत्रों में जैवविविधता संरक्षण की सबसे बड़ी बाधा हैं

वन संरक्षण का महत्त्व:

  • आर्थिक लाभ के लिये प्रबंधित वन जैवविविधता संरक्षण हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वन पूरी भूमि सतह के 31% पर फैले हुए हैं, ये अनुमातः 296 गीगाटन कार्बन को संग्रहीत करते हैं और दुनिया के अधिकांश स्थलीय जीवों को आवास प्रदान करते हैं।
  • दुनिया के जंगल लगभग 80% उभयचर प्रजातियों, 75% पक्षी प्रजातियों और 68% स्तनपायी प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा सभी संवहनी पौधों का लगभग 60% उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाया जाता है।
  • जैवविविधता को बनाए रखने में वनों की भूमिका स्पष्ट रूप से वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र रणनीतिक योजना 2017-2030 द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • वर्ष 2019 में FAO ने कृषि क्षेत्रों में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने की रणनीति अपनाई।

भारत में वन और जैवविविधता संरक्षण की स्थिति

  • वन और वृक्ष आवरण:
    • भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, कुल वन और वृक्ष आवरण 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, यह वर्ष 2019 के 21.67% से अधिक है।
    • उच्चतम वन क्षेत्र/आच्छादन वाले राज्य: मध्य प्रदेश > अरुणाचल प्रदेश > छत्तीसगढ़ > ओडिशा > महाराष्ट्र।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शिक्षा, बाट और माप तथा न्याय प्रशासन के साथ वन एवं जंगली जानवरों व पक्षियों के संरक्षण को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48 A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार एवं देश के वनों व वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
    • संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।

भारत के वन और जैवविविधता को नियंत्रित करने वाली नीतियाँ:

  • भारतीय वन अधिनियम, 1952
  • वन संरक्षण अधिनियम, 1980
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988
  • राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
  • वन (संरक्षण) नियम, 2022

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • प्राकृतिक वनों को एक विशिष्ट वन वृक्षारोपण में बदलने से रोकना।
  • लाभों के समान बँटवारे को बढ़ाने पर बल देने के साथ स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के वन अधिकार को मान्यता देना।
  • पौधों और वन्यजीवों के ओवरहार्वेस्टिंग को नियंत्रित करने के लिये हार्वेस्टिंग प्रजातियों के स्थायी प्रबंधन को सुनिश्चित करना।
  • अन्य भूमि उपयोग क्षेत्रों में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाते हुए एक बहुक्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य को अपनाना।
  • जैवविविधता लाभों को बढ़ावा देने और ज्ञान एवं क्षमता विकास में निवेश करने के लिये कम उत्पादन हेतु मुआवज़े जैसे आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रतिबद्धताओं का लाभ उठाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी में संलग्न होने जैसे बाज़ार-आधारित उपकरणों को सुविधाजनक बनाना।
  • जैवविविधता संरक्षण को बढ़ाने के लिये बहाली (Restoration) पर वैश्विक गति का लाभ उठाना।

आगे की राह

  • वन क्षेत्र में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने के लिये एकीकृत बहु-हितधारक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो क्षेत्रीय सीमाओं को पार करते हैं।
  • वानिकी में जैवविविधता को मुख्यधारा में लाने में वन नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों, परियोजनाओं और निवेशों को प्राथमिकता देना शामिल है जिनका पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों व आनुवंशिक स्तरों पर जैवविविधता का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022

चर्चा में क्यों?

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में दुनिया भर में स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों, सरीसृपों और मछलियों की आबादी में 69% की गिरावट आई है।

यह रिपोर्ट प्रति दो वर्ष में जारी की जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • वन्यजीव आबादी में क्षेत्रवार गिरावट:
    • वन्यजीव आबादी (94%) में सबसे अधिक गिरावट लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र में हुई।
    • अफ्रीका ने वर्ष 1970-2018 के मध्य अपनी वन्यजीव आबादी में 66% की गिरावट दर्ज की, जबकि एशिया प्रशांत क्षेत्र में 55% की गिरावट दर्ज की गई।

       Geography (भूगोल): October 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • मीठे जल की प्रजातियों की आबादी में गिरावट:
    • विश्व स्तर पर मीठे जल की प्रजातियों की आबादी में 83 प्रतिशत की कमी आई है।
    • पर्यावास की हानि और प्रवास के मार्ग में आने वाली बाधाएँ निगरानी की जा रही प्रवासी मछली प्रजातियों के खतरों के लिये ज़िम्मेदार थीं।
  • कशेरुकीय वन्यजीव आबादी का पतन:
    • लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) के अनुसार, विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कशेरुकीय वन्यजीव आबादी विशेष रूप से चौंका देने वाली दर से गिर रही है।
    • LPI, वैश्विक स्तर पर 5,230 प्रजातियों की लगभग 32,000 आबादी की विशेषता के लिये स्थलीय, मीठे जल और समुद्री आवासों से कशेरुकीय प्रजातियों की जनसंख्या प्रवृत्तियों के आधार पर दुनिया की जैविक विविधता की स्थिति के आकलन का उपाय है।
  • मैंग्रोव क्षरण:
    • जलीय कृषि, कृषि और तटीय विकास के कारण प्रतिवर्ष 0.13% की दर से मैंग्रोव का नुकसान जारी है।
    • तूफान और तटीय कटाव जैसे प्राकृतिक खतरों के साथ-साथ अतिदोहन तथा प्रदूषण से कई मैंग्रोव प्रभावित होते हैं।
    • 1985 के बाद से भारत और बांग्लादेश में सुंदरबन मैंग्रोव वन के लगभग 137 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का क्षरण हुआ है, जिससे वहाँ रहने वाले 10 मिलियन लोगों में से कई के भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में कमी आई है।।
  • जैवविविधता के लिये प्रमुख खतरे:
  • WWF ने स्थलीय कशेरुकियों के लिये 'खतरे के हॉटस्पॉट' को चिह्नित करने हेतु जैवविविधता के छह प्रमुख खतरों की पहचान की है:   
    • कृषि
    • शिकार
    • लॉगिंग
    • प्रदूषण
    • आक्रामक प्रजाति
    • जलवायु परिवर्तन

प्रकृति हेतु विश्व वन्यजीव कोष (WWF)

  • यह दुनिया का अग्रणी संरक्षण संगठन है और 100 से अधिक देशों में काम करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विट्रज़लैंड में है।
  • इसका मिशन प्रकृति का संरक्षण करना और पृथ्वी पर जीवन की विविधता के लिये सबसे अधिक दबाव वाले खतरों को कम करना है।
  • WWF दुनिया भर के लोगों के साथ हर स्तर पर सहयोग करता है ताकि समुदायों, वन्यजीवों और उनके रहने वाले स्थानों की रक्षा करने वाले अभिनव समाधान विकसित एवं वितरित किये जा सकें।

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • ग्रह मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता के नुकसान की दोहरी आपात स्थिति का सामना कर रहा है, जिससे वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों को खतरा है। जैवविविधता से क्षति तथा जलवायु संकट से दो अलग-अलग मुद्दों के बजाय एक के रूप में निपटा जाना चाहिये क्योंकि वे आपस में जुड़े हुए हैं।
  • एक हरित भविष्य के लिये हमारे उत्पादन, उपभोग, शासन और वित्त प्रबंधन में क्रांतिकारी एवं महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की आवश्यकता होती है।
  • हमें अधिक सतत् मार्ग की दिशा में एक समावेशी सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। जो यह सुनिश्चित करते हों कि हमारे कार्यों के परिणाम और उससे उत्पन्न लाभ सामाजिक रूप से न्यायसंगत एवं समान रूप से साझा किये गए हैं।
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