अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- इतिहास में पहली बार वर्ष 1995 में बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन ने लड़कियों के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिये एक कार्ययोजना का प्रस्ताव रखा।
- वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में घोषित करने हेतु संकल्प 66/170 को अपनाया।
- वर्ष 2022 की थीम: 'हमारा समय अभी है - हमारे अधिकार, हमारा भविष्य' (Our Time is now- our rights, our Future)।
- महत्त्व:
- यह दिन लड़कियों के अधिकारों और दुनिया भर में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों को पहचानने के लिये मनाया जाता है।
- यह दिवस लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और लड़कियों के सशक्तीकरण एवं उनके मानवाधिकारों की पूर्ति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है।
- साथ ही यह महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता समेत 17 सतत् विकास लक्ष्यों का अभिन्न अंग है।
- लैंगिक समानता की उपलब्धि सतत् विकास एजेंडा में निर्धारित 17 सतत् विकास लक्ष्यों में पाँचवा है।
- सभी लक्ष्यों में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को सुनिश्चित करके ही न्याय, समावेश, आर्थिक विकास एवं एक स्थायी वातावरण प्राप्त किया जा सकता है।
भारत में बालिकाओं की स्थिति
- परिचय:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट "भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2021" के अनुसार:
- कोविड से संबंधित प्रतिबंध के कारण वर्ष 2020 में गिरावट के बाद बच्चों के खिलाफ अपराध महामारी पूर्व के स्तर को पार कर गया।
- वर्ष 2021 में 1.49 लाख ऐसे मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2019 के 1.48 लाख से अधिक हैं।
- NCRB द्वारा प्रकाशित आँकड़े भारत के पूर्वी राज्यों के मामले में विशेष रूप से गंभीर हैं:
- सिक्किम में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की दर सबसे अधिक है, इसके बाद केरल, मेघालय, हरियाणा और मिज़ोरम का स्थान है।
- पश्चिम बंगाल और ओडिशा शीर्ष पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, एमपी और यूपी के साथ) में शामिल हैं, जो देश भर में बच्चों के खिलाफ किये गए कुल अपराधों का 47.1% है।
- वर्ष 2021 में अकेले पश्चिम बंगाल में बच्चों के खिलाफ अपराध के 9,523 मामले दर्ज किये गए।
बालिकाओं से संबंधित मुद्दे
- कन्या बाल हत्या और भ्रूण हत्या:
- भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है।
- कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र को वरीयता देना, दहेज प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
- वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 के 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।
- बाल विवाह:
- प्रत्येक वर्ष भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों की शादी हो चुकी है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 5 के अनुसार, बाल विवाह में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2015-16 के 27% से घटकर वर्ष 2019-20 में 23% हो गई है।
- शिक्षा:
- लड़कियाँ घर के कामों में अधिक व्यस्त रहती हैं और कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं।
- इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल में पढ़ रही लड़कियों की तुलना में स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक होती है या उनकी शादी पहले तय हो चुकी होती है।
- स्वास्थ्य और मृत्यु दर:
- भारत में लड़कियों को अपने घरों के अंदर और बाहर अपने समाज में ही भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भारत में असमानता का अर्थ है लड़कियों के लिये असमान अवसर।
- भारत में पाँच साल से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 फीसदी अधिक है। विश्व स्तर पर यह लड़कों के लिये 14% अधिक है।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- बेटी बचाओ बेटी पढाओ: इसे वर्ष 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात और कम होते बाल लिंगानुपात (वर्ष 2011 में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में यह योजना शुरू की गई। यह माता-पिता को लड़कियों के भविष्य के अध्ययन और विवाह पर होने वाले खर्च के लिये निवेश करने तथा धन एकत्रित करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
- सीबीएसई उड़ान योजना: यह योजना सीबीएसई द्वारा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन और स्कूली शिक्षा एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच शैक्षिक अंतराल को दूर करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
- माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): यह वर्ष 2008 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर 14-18 आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से ऐसी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये जिन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है।
- किशोरियों हेतु योजना: सरकार किशोर लड़कियों हेतु योजना भी लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य किशोरियों (AG) को सुविधा प्रदान करना, शिक्षित करना और सशक्त बनाना है ताकि वे आत्मनिर्भर एवं जागरूक नागरिक बन सकें
आगे की राह
- बाल संरक्षण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण:
- देश की बाल संरक्षण प्रणाली को मज़बूत करने और पुलिस, न्यायिक एवं कानूनी प्रणालियों को अधिक सक्रिय बनाने के लिये तत्काल उपाय किये जाने की आवश्यकता है।
- समुदाय आधारित बाल संरक्षण तंत्र:
- बच्चों से संबंधित अपराधों में दोषसिद्धि दर कम होती है और लंबितता दर ज़्यादा होती है, इसलिये समुदाय-आधारित बाल संरक्षण तंत्र को बढ़ावा देना, जैसे कि ग्राम-स्तरीय बाल संरक्षण समितियाँ इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
- सामाजिक जागरूकता बढ़ाना:
- स्कूली शिक्षा में लैंगिक मुद्दों पर संवेदीकरण को शामिल करके पितृसत्तात्मक सामाजिक दृष्टिकोण और पूर्वाग्रहों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
क्रिकेट में वेतन समानता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने "पे इक्विटी पॉलिसी" की घोषणा करते हुए कहा कि केंद्रीय अनुबंधित पुरुष और महिला खिलाड़ियों को मैच में समान फीस मिलेगी।
- यह कदम लैंगिक वेतन समानता लाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2022 के अनुसार, प्रगति की वर्तमान दर पर पूर्ण समता तक पहुँचने में 132 साल लगेंगे।
महिला खिलाड़ियों की फीस में वृद्धि
- महिला खिलाड़ियों को अब प्रति टेस्ट मैच के लिये 15 लाख रुपए, एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच (ODI) के लिये 6 लाख रुपए और T20 अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिये 3 लाख रुपए मिलेंगे। अब तक उन्हें एक दिवसीय मैच के लिये 1 लाख रुपए और एक टेस्ट के लिये 4 लाख रुपए का भुगतान किया जाता था।
- महिला क्रिकेटरों के लिये वार्षिक रिटेनरशिप समान रहती है - ग्रेड ए के लिये 50 लाख रुपए, ग्रेड B के लिये 30 लाख रुपए और ग्रेड C के लिये 10 लाख रुपए।
- बेहतर खेलने वाले पुरुषों को उनके ग्रेड के आधार पर 1-7 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है।
अन्य देश में खेलों में समान वेतन:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में समान वेतन लागू करने वाला दूसरा देश बन गया है।
- न्यूज़ीलैंड क्रिकेट (NZC) ने वर्षं 2022 में देश के खिलाड़ियों के संघ के साथ एक समझौता किया था, जिससे महिला क्रिकेटरों को पुरुष खिलाड़ियों के बराबर कमाई करने में मदद मिली।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका की महिला राष्ट्रीय फुटबॉलरों द्वारा समान मुआवज़ा सुरक्षित करने के लिये अपने महासंघ के साथ छह वर्ष लंबी लड़ाई जीतने के चार महीने बाद आया था।
- टेनिस ने अपने पुरुष और महिला खिलाड़ियों के बीच समान वेतन बढ़ाने के लिये कदम उठाए हैं, और आज सभी चार प्रमुख टेनिस टूर्नामेंट (ऑस्ट्रेलियाई ओपन, रोलैंड गैरोस, विंबलडन और यूएस ओपन) समान पुरस्कार राशि प्रदान करते हैं।
खेलों में लैंगिक स्तर पर समान वेतन संबंधी चुनौतियाँ:
- राजस्व सृजन:
- तर्क यह है कि पुरुष खिलाड़ियों द्वारा उत्पन्न प्रतिफल महिलाओं की तुलना में अधिक है।
- खेलों में मौद्रिक लाभों का आकलन करते समय कुछ बातों पर ध्यान दिया जाता है, जिसमें विज्ञापन, स्पोर्ट्स मर्चेंडाइजिंग और टिकटों की बिक्री आदि शामिल हैं। हालाँकि यह दर्शकों की संख्या और फैनबेस पर आधारित है जो किसी भी खेल की एंड्रोसेंट्रिक प्रकृति से प्रभावित है।
- खेल जगत में महिलाओं का प्रवेश सामाजिक प्रतिबंधों के कारण पुरुषों की तुलना में बहुत बाद में हुआ। इसके परिणामस्वरूप महिलाओं के खेल का 'मनोरंजन मूल्य' कम हो गया है।
- प्रदर्शन में अंतर:
- यह भी तर्क दिया जाता है कि चूँकि पुरुष 'मज़बूत' हैं और महिलाओं की तुलना में खेलों में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, इसलिये उन्हें अधिक राशि का भुगतान किया जाना चाहिये।
- अच्छे स्तर के (प्रोफेशनल) टेनिस में, पुरुष प्रति मैच पाँच सेट खेलते हैं और महिलाएँ प्रति मैच तीन सेट खेलती हैं, यह नियम इस धारणा पर आधारित है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ शारीरिक रूप से कमज़ोर हैं।
- महिलाओं की पाँच सेट खेलने की इच्छा और क्षमता के बावज़ूद निर्णय लेने वालों (जो ज़्यादातर पुरुष थे) का मानना था कि अगर महिलाएँ पांच सेट खेलती हैं तो खेल की गुणवत्ता खराब हो जाएगी।
- प्रतिनिधित्व संबंधी समस्या:
- खेल प्रशासन संरचनाओं में महिलाओं का कमज़ोर प्रतिनिधित्व भी खेल उद्योग में वेतन अंतर के बने रहने का एक कारण है। कुछ शासन संरचनाओं में महिला प्रतिनिधित्व में सुधार हुआ है, लेकिन यह हाल ही में हुआ है। इसके अलावा अधिकांश शासी निकायों को अभी भी महिला सदस्यता बढ़ाने हेतु इस दिशा में सुदृढ़ रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।
ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2022 के प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स उप मैट्रिक्स के साथ चार प्रमुख आयामों में लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति पर देशों को बेंचमार्क प्रदान करता है:
- आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक प्राप्ति, स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता, राजनीतिक सश।
- भारत का प्रदर्शन:
- भारत को कुल 146 देशों में 135वें स्थान पर रखा गया है।
- भारत का कुल स्कोर 0.625 (2021 में) से सुधरकर 0.629 हो गया है, जो पिछले 16 वर्षों में इसका सातवाँ सर्वोच्च स्कोर है।
- वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में से 140वें स्थान पर था।
- आर्थिक भागीदारी और अवसर (श्रम बल में महिलाओं का प्रतिशत, समान कार्य के लिये समान मज़दूरी एवं अर्जित आय):
- भारत 146 देशों में से 143वें स्थान पर है, भले ही इसका स्कोर वर्ष 2021 में 0.326 से बढ़कर 0.350 हो गया है।
- वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में से 151वें स्थान पर था।
- भारत का स्कोर वैश्विक औसत से काफी कम है और इस मामले में केवल ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही भारत से पीछे हैं।
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में लैंगिक अंतराल को कम करने हेतु भारत की पहल:
- आर्थिक भागीदारी एवं स्वास्थ्य तथा जीवन रक्षा:
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- महिला शक्ति केंद्र
- सुकन्या समृद्धि योजना
- महिला उद्यमिता
राजनीतिक आरक्षण:
- सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित की हैं।
निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का क्षमता निर्माण:
- यह शासन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये महिलाओं को सशक्त बनाने की दृष्टि से आयोजित किया जाता है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022
चर्चा में क्यों?
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्तूबर) के अवसर पर लैंसेट ने “एंडिंग स्टिग्मा एंड डीस्क्रिमिनेसन इन मेंटल हेल्थ” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की तथा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक और भेदभाव को समाप्त करने के लिये शख्त कार्रवाई का आह्वान किया।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति की व्यापकता:
- विश्व स्तर पर लगभग एक अरब लोग मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के साथ रह रहे हैं।
- 10-19 वर्ष के आयु वर्ग में सात में से एक मानसिक स्थिति से पीड़ित है।
- ये लोग स्थिति के प्रभाव और कलंक एवं भेदभाव के हानिकारक सामाजिक परिणामों के दोहरे खतरे का अनुभव करते हैं।
- कोविड -19 महामारी ने दुनिया भर में तत्काल मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को उज़ागर करने में मदद की।
- महामारी के पहले वर्ष में अवसाद और तनाव के प्रसार में अनुमानित 25% की वृद्धि हुई थी।
- प्रभाव:
- मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के साथ रहने वाले 90% लोग कलंक और भेदभाव की वजह से नकारात्मक रूप से प्रभावित महसूस करते हैं।
- स्टिग्मा "मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोगों के सामाजिक बहिष्कार और अक्षमता का कारण बन सकता है, जिससे भेदभाव एवं मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने में समस्याएँ, रोज़गार हासिल करने में चुनौतियाँ तथा स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं की संभावना बढ़ जाती है जिससे जल्दी मृत्यु हो सकती है।
- भारतीय परिदृश्य:
- यद्यपि भारत में स्टिग्मा/कलंक में धीरे-धीरे कमी आ रही है, फिर भी यह एक वास्तविक और वर्तमान समस्या बनी हुई है।
- गंभीर मानसिक विकार के निदान वाली महिलाएँ और उनके परिवार के सदस्यों को अधिक कलंक का सामना करना पड़ता है जो विवाह तथा रोज़गार व सामाजिक समावेशन को रोकता है।
- भारतीय मीडिया, विशेष रूप से टेलीविज़न धारावाहिकों जैसे दृश्य मीडिया मानसिक बीमारी को नकारात्मक रूप से चित्रित करना जारी रखते हैं।
- सुझाव:
- मानसिक स्वास्थ्य के कलंक और भेदभाव को खत्म करने के लिये मिलकर काम करने हेतु सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नियोक्ताओं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता एवं मीडिया संगठनों के साथ-साथ अनुभव वाले लोगों के सक्रिय योगदान के साथ तत्काल कार्रवाई होनी चाहिये।
- नियोक्ता को मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति वाले लोगों के लिये शैक्षिक अवसरों, कार्य भागीदारी और काम पर वापसी कार्यक्रमों तक पूर्ण पहुँच को बढ़ावा देना तथा मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की समझ में सुधार के लिये स्कूल पाठ्यक्रम में छात्रों के लिये सत्र आयोजित होने चाहिये।
- स्टिग्मा को कम करने के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के अनुभव वाले लोगों को सशक्त बनाने और उनका समर्थन करने की आवश्यकता है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
- विषय:
- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष 10 अक्तूबर को दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूक और शिक्षित करने के लिये मनाया जाता है।
- पहली बार विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्तूबर, 1992 को मनाया गया था।
- इस दिवस की शुरुआत तत्कालीन उप महासचिव रिचर्ड हंटर ने वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ की वार्षिक गतिविधि के रूप में की थी।
- वर्ष 2022 की थीम:
- वैश्विक स्तर पर सभी के लिये मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता बनाना।
मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम:
- मानसिक विकारों के भारी दबाव और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये सरकार वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) चला रही है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017:
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (MHCA) 2017 विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 2018 में लागू हुआ, जिसे भारत ने 2007 में अनुमोदित किया था।
- किरण हेल्पलाइन:
- यह प्रारंभिक स्क्रीनिंग, प्राथमिक चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक सहायता, संकट प्रबंधन, सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने आदि के उद्देश्य से मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करता है।
- मनोदर्पण:
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) (अब शिक्षा मंत्रालय) ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इसे लॉन्च किया। इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को कोविड-19 के समय में उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना है।
- मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य वृद्धि प्रणाली (मानस):
- वर्ष 2021 में भारत सरकार ने विभिन्न आयु समूहों में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य स्थिति वृद्धि प्रणाली (मानस) मोबाइल एप लॉन्च किया।
आगे की राह
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सरकार द्वारा सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधन आवंटन की मांग करती है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कलंक को कम करने के लिये हमें समुदाय/समाज को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के उपायों की आवश्यकता है।
- भारत को मानसिक स्वास्थ्य एवं इसके संबद्ध मुद्दों के बारे में शिक्षित करने और जागरूकता पैदा करने के लिये निरंतर वित्त की आवश्यकता है।
- स्वच्छ मनसिकता जैसे अभियानों के माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये प्रेरित करना समय की मांग है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2022
संदर्भ
भारत ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय आर्थिक विकास किया है और यह दुनिया की सबसे तेज़ी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालाँकि कई प्रगतियों के बावजूद भूख और कुपोषण अभी भी देश के लिये प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है।
- जबकि खाद्य सुरक्षा की स्थिति में उत्तरोत्तर सुधार हो रहा है, गरीब आबादी के लिये पोषण और संतुलित आहार तक पहुँच अभी भी समस्याग्रस्त है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2022 (Global Hunger Index- GHI, 2022) में भारत 121 देशों की श्रेणी में 6 स्थान और फिसलकर 107वें स्थान पर आ गया है। इस पर पहली प्रतिक्रिया में भारत सरकार ने सूचकांक की कार्यविधि को ही प्रश्नगत किया है।
- इस परिदृश्य में GHI, 2022 से संबंधित मुद्दों और भारत में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के दायरे पर एक विचार करना प्रासंगिक होगा।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक क्या है?
सामान्य दृष्टिकोण में भुखमरी या ‘हंगर’ (Hunger) भोजन की कमी से होने वाली परेशानी को संदर्भित करती है। हालाँकि GHI महज इसी आधार पर भुखमरी का मापन नहीं करता बल्कि यह भुखमरी की बहुआयामी प्रकृति पर विचार करता है।
इसके लिये GHI चार आधारों पर विचार करता है:
- अल्पपोषण (Undernourishment): जनसंख्या का वह हिस्सा जिसका कैलोरी सेवन अपर्याप्त है।
- यह GHI स्कोर के 1/3 भाग का निर्माण करता है।
- चाइल्ड स्टंटिंग (Child Stunting): 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जिनका कद उनकी आयु के अनुरूप कम है, जो गंभीर अल्पपोषण (chronic undernutrition) को दर्शाता है।
- यह GHI स्कोर के 1/6 भाग का निर्माण करता है।
- चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting): 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों का वह हिस्सा जिनका वजन उनके कद के अनुरूप कम है, जो तीव्र अल्पपोषण (acute undernutrition) को दर्शाता है।
- यह भी GHI स्कोर के 1/6 भाग का निर्माण करता है।
- बाल मृत्यु दर (Child Mortality): पाँच वर्ष की आयु से पूर्व मृत्यु का शिकार हो जाने वाले बच्चों का हिस्सा, जो अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्यकर वातावरण के घातक मिश्रण को प्रकट करता है।
- यह GHI स्कोर के 1/3 भाग का निर्माण करता है।
- कुल स्कोर को 100-पॉइंट स्केल पर रखा गया है और कम स्कोर बेहतर प्रदर्शन को परिलक्षित करता है।
- 20 से 34.9 के बीच के स्कोर को ‘गंभीर’ (serious) श्रेणी में आँका जाता है और GHI 2022 में 29.1 के कुल स्कोर के साथ भारत को इसी श्रेणी में रखा गया है।
भारत सरकार ने GHI 2022 की आलोचना क्यों की है?
- भारत सरकार ने GHI की कार्यविधि (Methodology) पर सवाल उठाया है। सरकार के तर्क के दो प्रमुख उप-भाग हैं:
- पहला, GHI ‘भुखमरी के एक भ्रामक मापन’ का उपयोग करता है, कि इसमें उपयोग किये गए 4 चरों में से 3 बच्चों से संबंधित हैं और ये पूरी आबादी के प्रतिनिधि नहीं हो सकते हैं।
- दूसरा, GHI का चौथा संकेतक, यानी अल्पपोषित आबादी का अनुपात ‘3000 लोगों के एक बहुत छोटे नमूने के जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है’, जो वैश्विक आबादी के पाँचवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत जैसे देश के आकलन के लिये उपयुक्त नहीं है।
भुखमरी से निपटने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें
- पोषण अभियान (POSHAN)
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
- फूड फोर्टिफिकेशन (Food Fortification)
- मिशन इन्द्रधनुष
- ‘ईट राइट इंडिया मूवमेंट’ (Eat Right India Movement)
भारत में भुखमरी और कुपोषण के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक
- गरीबी समर्थित भुखमरी: बदतर जीवन स्थिति बच्चों के लिये भोजन की उपलब्धता को सीमित करती है, जबकि आहार तक सीमित पहुँच के साथ अत्यधिक जनसंख्या की समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण जैसे परिणाम उत्पन्न करती है।
- दोषपूर्ण सार्वजनिक वितरण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य के वितरण में व्यापक भिन्नता की स्थिति रही है, जहाँ अधिक लाभ कमाने के लिये अनाज को खुले बाज़ार में ले जाया जाता है जबकि राशन की दुकानों में खराब गुणवत्ता वाले अनाज की बिक्री की जाती है। इसके साथ ही, इन राशन दुकानों को खोले जाने में भी अनियमितता की स्थिति रही है।
- अनभिज्ञात भुखमरी (Unidentified Hunger): किसी परिवार की गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line- BPL) की स्थिति को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंड मनमानी प्रकृति के हैं और ये मानदंड प्रायः अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं। गरीबी रेखा से ऊपर (Above Poverty Line- APL) और नीचे (BPL) के गलत वर्गीकरण के कारण खाद्य उपभोग में व्यापक गिरावट आई है।
- इसके अलावा, अनाज की खराब गुणवत्ता ने समस्या को और बढ़ा दिया है।
- प्रच्छन्न भुखमरी (Hidden Hunger): भारत सूक्ष्म पोषक तत्व की गंभीर कमी (जिसे ‘प्रच्छन्न भुखमरी के रूप में भी जाना जाता है) का सामना कर रहा है। गुणवत्ताहीन आहार, रोग और महिलाओं में गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकताओं की पूर्ति में विफलता जैसे कई कारण इस समस्या के लिये उत्तरदायी हैं।
- माताओं के बीच पोषण, स्तनपान और पालन-पोषण के संबंध में पर्याप्त ज्ञान का अभाव चिंता का एक अन्य क्षेत्र है।
- लिंग असमानता: पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण, लिंग असमानता बालिकाओं को बालकों की तुलना में अलाभ की स्थिति में रखती है और उन्हें अधिक पीड़ित बनाती है क्योंकि वे घर में सबसे बाद में आहार पाती हैं और कम महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं।
- बालकों के विपरीत बालिकाएँ विद्यालय तक कम अभिगम्यता के कारण ‘मध्याह्न भोजन’ (mid-day meals) से वंचित रहती हैं।
- टीकाकरण की कमी: जागरूकता की कमी के कारण निवारक देखभाल (विशेष रूप से टीकाकरण) के मामले में भी बच्चों की अनदेखी की जाती है और सामर्थ्य समस्याओं के कारण रोगों के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती है।
- पोषण संबंधी कार्यक्रमों की लेखापरीक्षा का अभाव: यद्यपि देश में पोषण में सुधार के मुख्य लक्ष्य के साथ कई कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, लेकिन स्थानीय शासन स्तर पर कोई विशिष्ट पोषण लेखापरीक्षा तंत्र मौजूद नहीं है।
आगे की राह
- पोषण को अलग-अलग चश्मे से देखना: बेहतर पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लिंग दृष्टिकोण और सामाजिक मानदंड भी शामिल हैं। इसलिये पोषण की कमी को पूरा करने के लिये व्यापक नीति बनाने की ज़रूरत है।
- यदि स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान और पोषण अभियान जैसी पोषण नीतियों को परस्पर संबद्ध किया जाए तो भारत की पोषण स्थिति में समग्र परिवर्तन लाया जा सकता है।
- सामाजिक अंकेक्षण तंत्र का निर्माण: राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को स्थानीय प्राधिकारों की मदद से हर ज़िले में मध्याह्न भोजन योजना का सोशल ऑडिट अनिवार्य रूप से करना चाहिये और इसके साथ ही पोषण संबंधी जागरूकता की दिशा में कार्य करना चाहिये।
- कार्यक्रम निगरानी के लिये सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग पर भी विचार किया जा सकता है।
- PDS के पुनःअभिमुखीकरण की आवश्यकता: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का पुनःअभिमुखीकरण और इसे बेहतर बनाने से इसकी पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी। यह पोषक आहार की उपलब्धता, अभिगम्यता और वहनीयता को सुनिश्चित करने के साथ ही आबादी के निम्न सामाजिक-आर्थिक तबके की क्रय शक्ति पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने में भी योगदान कर सकेगा।
- कृषि-पोषण गलियारा (Agriculture-Nutrition Corridor): वर्तमान में भारत के पोषण केंद्र (यानी इसके गाँव) पर्याप्त पोषण से सबसे अधिक वंचित हैं। कृषि-वाणिज्य के अनुरूप ‘गाँवों की पोषण संबंधी सुरक्षा’ (Nutritional security of villages) के नियंत्रण के लिये तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
- इस संबद्धता की आवश्यकता को समझते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में ‘भारतीय पोषण कृषि कोष’ का शुभारंभ किया गया था।
- महिला नेतृत्व में SDG मिशन: मौजूदा प्रत्यक्ष पोषण कार्यक्रमों को फिर से अभिकल्पित करने और इसे महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है, जो वर्ष 2030 तक भूख और सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त करने के सतत विकास लक्ष्य- 2 को साकार करने में भारत की सहायता कर सकता है।
- अपशिष्ट कम करना, भुखमरी मिटाना: भारत अपने कुल वार्षिक खाद्य उत्पादन का लगभग 7% और फलों एवं सब्जियों का लगभग 30% अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं एवं कोल्ड स्टोरेज के कारण बर्बाद कर देता है।
- ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेफ्रिजरेशन’ के अनुसार, यदि विकासशील देशों के पास विकसित देशों के समान स्तर की रेफ्रिजरेशन अवसंरचना मौजूद हो तो वे 200 मिलियन टन खाद्य या अपनी खाद्य आपूर्ति का लगभग 14% तक बचा लेंगे, जो भूख और कुपोषण से निपटने में मदद कर सकता है।