संचार प्रौद्योगिकी (Communication Technology)
- सचूना और संचार प्रौद्योगिकी, जिसे आम तौर पर आईसीटी (ITC) कहा जाता है, का प्रयोग अक्सर सूचना प्रौद्योगिकी के | पर्यायवाची के रूप में किया जाता है। यह आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी में दूरसंचार (टेलीफोन लाइन एवं वायरलेस संकेतों) की भूमिका पर जोर देती है। आईसीटी में वे सभी साधन शामिल होते हैं, जिनका प्रयोग कम्प्यूटर नेटवर्क एवं हार्डवेयर में और साथ ही साथ आवश्यक सॉफ्टवेयर सहित सूचना एवं संचार का संचालन करने के लिए किया जाता है।
- दूसरे शब्दों में आईसीटी के अंतर्गत आईटी के साथ-साथ दूरभाष संचार, प्रसारण मीडिया मानवीय प्रगति और मानव के सर्वांगीण विकास का केन्द्रीय तत्व है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं। इस प्रौद्योगिकी ने मानवीय विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। यह प्रौद्योगिकी न सिर्फ व्यक्तियों अपितु राष्ट्रों और सभ्यताओं के बीच संवाद को भी प्रोत्साहन प्रदान करती है। दूरसंचार, संचार प्रौद्योगिकी का मुख्य रूप है, जिसमें सूचनाओं का संप्रेषण विद्युत चुम्बकीय माध्यम द्वारा होता है। दूरसंचार के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सूचनाओं जैसे ध्वनि एवं संगीत, चित्र व वीडियो, कम्प्यूटर फाइलों आदि को संप्रेषित किया जा सकता है।
संचार के प्रकार (Types of Communication)
- संप्रेषण विधि के आधार पर संचार को दो भागों में बाँटा जा सकता है :
- एनालॉग संचार (Analog Communication) : एनालॉग संचार में सूचना को सतत संकेतों के रूप में संप्रेषित किया जाता है। इन संकेतों में तरंगों के विभव (Poential) और धारा में लगातार परिवर्तन होता है।
- डिटीडल संचार (Digital Communication) : इसमें तरंगों की धारा व विभव के मान में एक निश्चितअनुपात में ही परिवर्तन होता है, इसमें सूचना सतत संकेत के रूप में नहीं, बल्कि पूर्व परिभाषित स्तरों पर आधारित संकेतों द्वारा प्रेषित की जाती है। जैसे बाइनरी सिग्नल में केवल दो स्तर (0 से 1) होते हैं। इसका आरंभ और समापन एक स्विच की भाँति होता है। इसकी क्षमता उच्च होती है तथा इसमें त्रुटियाँ भी कम होती हैं।
- संप्रेषण माध्यम के आधार पर भी संचार को दो भागों में बाँटा जा सकता है- तार रहित संचार बेतार संचार
तार रहित संचार (Wired Communication)
इस संचार में तरंग हमेशा चालक के माध्यम से होने वाले विद्युत प्रवाह से जुड़ी होती है। इस संचार में भौतिक तारों का प्रयोग किया जाता है, जो मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-
- खुले तार युग्म (Open Wire Pair): इसमें कुचालकों की परत चढ़े ताँबे के दो तार होते हैं, जो 'समानान्तर चालक के रूप में कार्य करते हैं। ताँबे के तार की यह समानान्तर व्यवस्था एक ऐसी प्रसारण व्यवस्था को जन्म देती है जो तड़ित (Lightning Bolt) जैसी बाधाओं के प्रति कम संवेदनशील होती है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह सस्ता होता है और तार बिछाना भी आसानी से संभव हो जाता है, किन्तु इसकी कमी यह है कि इसकी क्षमता सीमित होती है व आँकड़ों के प्रेषण की दर अत्यन्त धीमी होती है। यह संकेतों को बिना रिपीटर के कुछ किलोमीटर तक ही ले जा सकता है। इसका प्रयोग मुख्यतः टेलीफोन सेवा में किया जाता है।
- को-एक्सियल केबल (Co-axial Cable): खुले तार युग्म की कमियों को दूर करने के लिए को-एक्सियल केबल प्रयोग में लाई जाती है। इसमें संकेतों में विकिरण हानि बहुत कम होती है और यह बाह्य अवरोध के प्रति बहुत कम संवेदनशील होती है। को-एक्सियल केबल के केन्द्र में ताँबे का तार चालक के रूप में होता है। इसके चारों ओर तार की जाली रहती है, जिसे शील्ड (Shield) कहते हैं । ताँबे के तार व शील्ड के बीच टेफलॉन या पॉलीथिन का प्रयोग कुचालक के रूप में किया जाता है। को-एक्सियल केबल का प्रयोग टीवी सिग्नलों के लिए किया जाता है।
- प्रकाशतीय तंतु (Optical Fibre): प्रकाशीय तंतु काँच अथवा सिलिका के पतले रेशे होते हैं, जो प्रकाश के माध्यम से तीव्र और बेहतर संचार स्थापित करने में मदद करते हैं । प्रकाशीय प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection) के सिद्धांत पर कार्य करता है, जिसमें प्रकाश स्वतः परावर्तित होकर संचरण करता है। प्रकाशीय तंतुओं के माध्यम से संदेश भेजने के लिए सबसे पहले संदेश को प्रकाशीय संकेतों में परिवर्तित किया जाता है, फिर प्रेक्षक ट्रांसमीटर इन प्रकाशीय संकेतों को प्रकाशीय तंतुओं के माध्यम से प्रसारित करता है। गंतव्य स्थान पर डिकोडिंग प्रक्रिया द्वारा इन प्रकाशीय संकेतों को डिजीटल या विद्युत संकेतों में बदला जाता है, जिन्हें कम्प्यूटर/टेलीफोन समझ सकता है।
यद्यपि संचार की प्रक्रिया के लिए प्रकाश के प्रयोग के आरंभिक संकेत 1870 ई. में ग्राहम बेल के प्रयोगों में ही मिलने लगते हैं, किन्तु प्रकाशीय तंतुओं का सैद्धांतिक ज्ञान 1920 के आसपास विकसित हुआ तथा इसका तीव्र व्यावसायिक विकास 1960 के पश्चात् प्रारंभ हो गया। इस प्रणाली के कई लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं-
- प्रकाश के संचरण में प्रतिरोध की समस्या पैदा नहीं होती, जो विद्युत धारा आदि के संचरण में होती है।
- प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के गुण के कारण संकेतों को बार-बार तीव्र बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिससे ऊर्जा की खतप कम हो जाती है।
- प्रकाशीय तंतुओं की क्षमता संचार के अन्य माध्यमों से काफी अधिक होती है। इसकी प्रत्येक केबल में लगभग 24 तंतु हो हैं और प्रत्येक तंतु में प्रसारण के हजारों चैनल स्थापित किए जा सकते हैं।
- इस पद्धति में किसी भी प्रकार की गुंजाइश नहीं होती। इसमें न तो जंग लगने जैसी समस्या आती है और न ही लघुपरि जैसी समस्या होती है।
- तंतु भार की दृष्टि से काफी हल्के होते हैं। अत: इन्हें स्थापित करना काफी आसान होता है।
- प्रसारण तीव्र गति से होता है, क्योंकि प्रकाश की गति विद्युत (को-एक्सयल केबल में विद्युत की गति प्रकाश की गति का लगभग 66 प्रतिशत होती है) या ध्वनि की गति से बहुत अधिक तीव्र होती है।
प्रकाशीय तंतु की समस्याएँ (Problems of optical fibre)
- प्रकाशकीय तंतु अति शुद्ध कांच के बनाए जाते हैं, जिनकी उपलब्धता तो विरल होती ही है, साथ ही उनका रखरखाव भी चुनौतीपूर्ण होता है।
- इन तंतुओं के माध्यम से संचार व्यवस्था कायम करने के लिए अत्यधिक सावधानी तथा दक्षता की जरूरत होती है, क्योंकि यह व्यवस्था प्रकृति में काफी जटिल है। हजारों संकेतों के समानांतर संचरण के कारण इस प्रणाली में उच्च प्रबंधन क्षमता की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान संचार व्यवस्था में प्रकाशीय तंतु का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।
भारत की स्थिति (India's Position)
- भारत में प्रकाशीय तंतुओं की व्यवस्था का पहला प्रयोग 1979 में पुणे में किया गया, जब दो स्थानीय टेलीफोन एक्सचेंजों में संचार संबंध को प्रकाशीय तंतुओं के माध्यम से स्थापित किया गया। वर्तमान में देश के अनेक संस्थाओं में इस इस प्रौद्योगिकी से संबंधित अनुसंधान कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है, जिसने दूरसंचार प्रणालियों के लिए प्रकाशीय तंतु का उत्पादन किया है।
- वर्तमान में भारत में प्रकाशीय तंतु का निर्माण हिन्दुस्तान केबल्स लिमिटेड, नैनी (इलाहाबाद) तथा ओ.टी.एल. भोपाल द्वारा किया जा रहा है। इसके अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में फाइबर के विभिन्न गुणों को विकसित करने की अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया जा रहा है।
तार रहित संचार (Wireless Communication)
तार रहित संचार में अंतरिक्ष का उपयोग माध्यम के रूप में किया जाता है तथा अंतरिक्ष तरंगों, आकाशीय तरंगों व संचार उपग्रहों का उपयोग किया जाता है । उच्च आवृत्ति की तरंगों के लिए अपेक्षाकृत छोटे एंटीने की आवश्यकता पड़ती है।
- अंतरिक्ष तरंगे (Space Waves): ये तरंगें आकाशीय माध्यम द्वारा प्राप्तकर्ता के एंटीने तक पहुँचती हैं। इसके द्वारा अति उच्च आवृत्ति वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगों (Eectro Magnetic Waves) के माध्यम से संचार व्यवस्था स्थापित की जाती है। एंटीने को ऊँचा कर या निश्चित दूरी पर रिपीटर लगाकर इस तरह के संचार की दूरी को बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि पृथ्वी की सतह की वक्रता के कारण ये तरंगें अधिक दूरी तक उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। रिपीटर के अभाव में इससे अधिकतम 50-60 किमी तक संचार स्थापित किया जा सकता है। चूँकि इन तरंगों की आवृत्ति अति उच्च एवं उच्च होती है, इसलिए कम लम्बाई के पैसबोलिक एंटीने का उपयोग किया जाता है। टेलीविजन प्रसारण, उपग्रहण संचार व माइक्रोव संचार में अंतरिक्ष तरंगों का प्रयोग किया जाता है ।
- आकीशीय तरंगे (Sky Waves) : आकाशीय तरंगें प्रेषित होने के पश्चात् आयनमण्डल में पहुँची है तथा आयनमण्डल से टकराकर पुनः पृथ्वी पर वापस आती है। आयनमण्डल से तरंगों का परावर्तन आकाशीय तरंगों की आवृत्ति पर निर्भर करता है। 40 मेगा हर्ट्ज तक की तरंगों का परावर्तन आयनमण्डल से ही हो पाता है । इससे उच्च आवृत्ति वाली तरंगें आयनमण्डल को पार कर बाहर निकल जाती हैं तथा उन तरंगों का परावर्तन नहीं हो पाता है । आकाशीय तरंगों का प्रयोग उच्च आवृत्ति तरंगों का प्रसारण सेवा में किया जाता I
- उपग्रह संचार (Satelite Communication): उपग्रह संचार में अंतरिक्ष में स्थित उपग्रह पर ट्रांसमीटर व रिसीवर लगा होता है, जिस रेडियो ट्रांसपोंडर कहा जाता है। यह ट्रांसपोंडर दो आवृत्तियों (सी बैण्ड तथा के-यू बैण्ड) पर कार्य करता है। पृथ्वी की सतह से प्रेषित संकेत उपग्रह के रिसीवर द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है, जिसे अप-लिंक कहा जाता है। ट्रांसपोंडर इस संकेत को संवर्धित कर पुनः औ ट्रांसमीटर के जरिये पृथ्वी की सतह पर भेज देता है, जिसे डाउन लिंक कहा जाता है। संकेतों को आपस में मिलने से रोकने के लिए अप लिंक तथा डाउन लिंक की आवृत्तियों में अंतर रखा जाता है। डाउनलिंक आवृत्ति की अपेक्षा कम होती है।
जीएसएम (GSM- Global System for Mobile)
- जीएसएम एक ऐसी तकनीक है, जिसमें फोन में एक सिम (SIM- Subscriber Identity Module) लगाकर मोबाइल सेवा प्रदान की जाती है। इसमें बिना फोन सेट बदले अलग-अलग मोबाइल फोन सेवा प्रदाता कंपनियों की सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है। इसमें संकेत तथा ध्वनि हेतु डिजीटल पद्धति का प्रयोग किया जाता है। जीएसएम का नेटवर्क चार विभिन्न आवृत्तियों पर कार्य करता है। अधिकांशतः जीएसएम नेटवर्क 900 मेगाहर्ट्ज से 1800 मेगाहर्ट्ज के बीच कार्य करता है। वर्तमान में | संपूर्ण विश्व के मोबाइल फोन बाजार में जीएसएम की हिस्सेदारी लगभग 85 प्रतिशत (2007 में) है।
सी.डी.एम.ए. (CDMA - Code Division Multiple Access)
- सीडीएमए एक ऐसी तकनीक है जिसमें सिम का प्रयोग किए बगैर मोबाइल फोन सेवा प्रदान की जाती है । इसमें सूचनाएँ फोन में पहले से प्रोग्राम की जाती हैं। इसमें एक अलग तरह के कोड का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि प्रत्येक कॉल के बीच अंतर किया जा सके। इस तकनीक में विभिन्न सिग्नल एक ही ट्रांसमिशन चैनल से होकर गुजरते हैं, जिससे उपलब्ध बैण्ड विड्थ का अधिकाधिक उपयोग कियाजा सके। किसी अन्य तकनीक की तुलना में इसमें ध्वनि और आँकड़ों की गुणवत्ता बेहतर होती है। यह तकनीक प्रत्येक (User) को एक विशिष्ट आवृत्ति के साथ नहीं जोड़ती, बल्कि प्रत्येक चैनल उपलब्ध स्पैक्ट्रम का प्रयोग करता है । यह उपलब्ध बैण्डविड्थ को कई आवृत्तियों में बाँटकर एक साथ संचारित करता है । प्रयोक्त उसमें से वांछित सूचना पृथक कर सकता है।
- बैंड्विड्थ (Bandwidth ): बैण्ड की अधिकतम तथा न्यूनतम आवृत्ति के बीच अंतर । इसे प्रति सेकेण्ड में अभिव्यक्त संचार चैनल की क्षमता की माप के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
मोबाइल फोन तकनीक ( Mobile Phone Technology)
- मोबाइल फोन तकनीक बेतार संचार (Wireless Communication) पर आधारित है, जिसमें रेडियो संकेतों को किसी ट्रांसमिशन टॉवर, एंटीना अथवा उपग्रह द्वारा भेजा व प्राप्त किया जाता है। इस तकनीक के लिए वृहत स्तर पर रेडियो ट्रांसमीटर/ रिसीवर का नेटवर्क आवश्यक होता है, ताकि मोबाइल फोन सुचारू रूप से कार्य कर सके। सभी मोबाइल फोन सेवा प्रदाता कंपनियों पास इस तरह का नेटवर्क होता है, जिस क्षेत्र में सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा सेवाएं प्रदान की जाती हैं, उस क्षेत्र को विभिन्न जोन में बाँट दिया जाता है, जिसे (Cell) कहते हैं ।
- प्रत्येक सेल में एक रेडियो ट्रांसमीटर/ रिसीवर और माइक्रो-प्रोसेसर युक्त एक बेस स्टेशन होता है तथा सभी बेस स्टेशन आपस में एक-दूसरे से संचार स्थापित कर सकते हैं। मोबाइल फोन तकनीक में प्रत्येक प्रयोक्ता के पास एक हैण्डसेट होता है जो एक प्रकार का ट्रांसमीटर/रिसीवर ही होता है । हैण्डसेट जिस स्टेशन के प्रभाव क्षेत्र में रहता है, वहाँ से विद्युत चुम्बकीय तरंगों का भेज व प्राप्त सकता है । प्रत्येक हैण्डसेट प्रत्येक क्षण उस कंपनी के बस स्टेशन को संकेत भेजता रहता है, जिसका सिम कार्ड हैण्डसेट में लगा होता है।
- हैण्डसेट से किसी नंबर को डायर करने पर संकेत विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में समीपवर्ती बेस स्टेशन तक पहुँचता है। इसके बाद बेस स्टेशन पर लगा कम्प्यूटर डायल किए गए नंबर को उस कंपनी के बेस स्टेशन को प्रेषित कर देता है, जहाँ उस नंबर की अवस्थिति होती है। वहाँ स्थित बस स्टेशन उस नंबर वाले हैण्डसेट को अलर्ट कर देता है और हैण्डसेट का रिंगटोन बजन लगता है।
1-जी तकनीक (1st Generation Techhnology)
- इस पीढ़ी में संचार नेटवर्क कम बैण्डविड्थ वाले एनालॉग संचार नेटवर्क होते हैं। इनके माध्यम से वॉइस तथा टैक्स्ट सहंदेशों का आदान-प्रदान संभव होता है । ये सेवाएं सर्किल स्विचिंग के साथ ही उपलब्ध होती है। फोन कॉल के शुरू होने के साथ ही इसकी | पल्टस रेट की गणना भी शुरू हो जाती है तथा कॉल समाप्त होने के साथ ही समाप्त हो जाती है। उल्लेखनीय है कि 1 जी की संचार | सेवाएं शुरुआत में केवल कार आदि में ही लगाई जाती थीं, क्यों कि इस समय इसका उपयोग करने वाले उपकरण आकार में बड़े होते थे, जिन्हें हाथ में लेकर चलना या जेब में रखना संभव नहीं था।
2-जी तकनीक (2nd Generation Technology)
- 1-जी के संचार नेटवर्क की ही तरह 2-जी नेटवर्क भी कम बैण्डविड्थ वाला संचार नेटवर्क है। दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि 2-जी नेटवर्क डिजीटल प्रौद्योगिकी पर आधारित है, इस कारण इनके माध्यम से संदेशों के आदान-प्रदान की गति में वृद्धि हो जाती है। 1जी की तरह 2 जी नेटवर्क में भी अधिक बैण्डविड्थ का प्रयोग किया जाता है। हालांकि 1 जी नेटवर्क की तुलना में 2 जु नेटवर्क की | रेंज अधिक होती है। जी नेटवर्क की सुविधाएं केवल देश की सीमा के अंदर उपलब्ध होती हैं, जबकि 2 जी नेटवर्क अंतरराष्ट्रीय सेवाएँ
उपलब्ध कराता है।
3-जी तकनीक (3rd Generation Technology)
- 3-जी तकनीक तीसरी पीढ़ी की मोबाइल फोन सेवा है, जिसमें दूसरी पीढ़ी (2जी) की अपेक्षा अधिक तीव्र गति, उच्च आवृत्ति और बेहतर बैण्डविड्थ प्रदान की जाती है। 3जी नेटवर्क पर उपभोक्ता 2 मेगाबाइट प्रति सेकेण्ड की गति से डाटा संप्रेषित कर सकते हैं, जबकि 2जी में अधिकत 144 किलोबाइट प्रति सेकेण्ड डाटा ही संप्रेषित हो सकता है। 3जी तकनीक 15 से 20 मेगाहर्ट्ज बैण्ड विड्थ में कार्य करती है, जबकि 2जी तकनीक अधिकतम 200 किलोहर्ट्ज बैण्डविड्थ में ही कार्य करती है । ज्ञातव्य है कि बैण्डविड्थ | जितनी अधिक होगी, डेटा ट्रांसफर की गति भी उतनी ही अधिक होगी। प्रयोक्ताओं के लिए 3जी सेवा इस अर्थ में लाभप्रद है कि हाइस्पीड इंटरनेट, फिल्में, वीडियो क्लिप, म्युजिक डाउनलोडिंग, वीडियो कांफ्रेंसिंग, वॉयस व वीडियो डाटा ट्रांसफर आदि सुविधाओं | का लाभ (2जी के मुकाबले कई गुना अधिक) उठा सकते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि एक वायरलैस इंटरनेट से युक्त लैपटॉप की सारी सुविधाएँ 3जी में समाहित हैं ।
4जी तकनीक (4th Generation Technology)
- 4जी तकनीक मोबाइल फोन सेवा की चौथी पीढ़ी की तकनीक है, जो पूर्ण रूप से इंटरनेट प्रोटोकॉल पर आधारित सेवा है। इसमें वॉयस, डाटा और मल्टीमीडिया को समान गति से भेजा व प्राप्त किया जा सकेगा। 4जी तकनीक की गति 100 Mbps होगी, जबकि 3जी की गति 384 Kbps से 2mbps तक है। 3जी तकनीक बाइड एरिया नेटवर्क अवधारणा पर कार्य करती है, जबकि 4जी तकनीक लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) की अवधारणा पर कार्य करेगी। 4जी तकनीक में उपभोक्ताओं को अति उच्च गुणवत्ता की ऑडियो व वीडियो सुविधा उपलब्ध हो सकेगी, डेटा ट्रांसफर अति तीव्र गति से हो सकेगा व 3जी की तुलना में कीमतों में कमी आएगी। इस तकनीक में इंटरनेट प्रोटोकॉल आधारित सेवा होने के कारण वॉयस, डाटा और मल्टीमीडिया को एक समान गति से प्रेषित करना व प्राप्त करना संभव हो सकेगा।
जी.पी. आर. एस. (GPRS- General Packet Radio Service)
- जी.पी.आर.एस. डाटा स्थानांतरित की एक विधि है, जिसमें जी. एस. एम. तकनीक का प्रयोग कर मोबाइल फोन द्वारा डाटा स्थानांतरण किया जाता है । पैकेट स्विचिंग के द्वारा उच्च गति से डाटा स्थानांतरण में इसका उपयोग किया जाता है। इसे 2जी या 3जी सेवा में प्रयोग में लाया जाता है। जब 2 जी तकनीक में जीपीआरएस का उपयोग किया जाता है, तो उसे 2.5 जी की संज्ञा दी जाती है।
कन्वर्जेन्स (Convergence)
- कन्वर्जेन्स से अभिप्राय एक ऐसी प्रणाली के विकास से है, जिसमें विभिन्न तकनीकों व सेवाओं, जैसे- टेलीफोन, टीवी, फैक्स, | इंटरनेट, वीडियोफोन, वीडियो कांफ्रेंसिंग आदि को समेकित कर एक ही माध्यम द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाता है। इसके प्रौद्योगिकी, संचार प्रौद्योगिकी एवं प्रसारण सेवाओं को समन्वित कर एक ही चैनल से ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है। | कन्वर्जेन्स की अवधारणा के अंतर्गत सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से जुड़े सभी क्षेत्र, जैसे- टेलीफोन, ई-कॉमर्स, टेलीबैंकिंग, टेलीट्रेडिंग, टेलीएजुकेशन, टेलीमेडिसिन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, टीवी, रेडियो और सीडी प्लेयर आदि आते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कन्वर्जेन्स के अंतर्गत एक ही उपकरण में कम्प्यूटर, इंटरनेट, टेलीविजन तथा मोबाइल फोन की सुविधा उपलब्ध होगी। टीवी कार्यक्रमों को इंटरनेट पर भी प्रेषित व प्रसारित किया जा सकेगा तथा इंटरनेट के माध्यम से टेलीफोन सेवाओं की सुलभता सुनिश्चित हो सकेगी। कन्वर्जेन्स को साकार करने में डिजीटल तकनीक की अहम भूमिका है।
- भारत में सूचना प्रौद्योगिकी, संचार प्रौद्योगिकी एवं प्रसारण क्षेत्रों के लिए लायसेंस, रजिस्ट्रेशन एवं नियमन संबंधी सभी निर्णय एक ही स्थान पर लिए जाने के उद्देश्य से कन्वर्जेन्स विधेयक-2001 लाया गया। इस विधेयक में भारतीय संचार आयोग के रूप में एक स्वतंत्र तथा स्वायत्त वैधानिक निकाय की स्थापना का प्रस्ताव किया गया, साथ इस विधेयक में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, भारतीय दूरसंचार अधिनियम, 1885, बेतार टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 तथा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियामक अधिनियम, 1955 को समाप्त कर देने का प्रावधान किया गया था। इसके अलावा इसमें सूचना आधारित समाज के निर्माण हेतु एक मजबूत अवसंरचना ढाँचे के विकास का भी प्रस्ताव किया गया।
ए.एम. तथा एफ.एम.
- प्रभावी एवं कुशल संचार के लिए तरंगों की आवृत्ति को परिवर्तित किया जाता है इसके लिए मॉड्यूलेशन किया जाता है। मॉड्यूलेशन के अंतर्गत कैरियर वेव एवं संदेश संकेत होते हैं। कैरियर वेव उच्च आवृत्ति वाली होती है, जबकि संदेश संकेत प्राय: निम्न आवृत्ति के। यदि संदेश संकेत कैरियर वेव आयाम को परिवर्तित करता है, तो यह प्रक्रिया ए. एम. (Amplitude Modulation) कहलाती है और यदि संदेश संकेत कैरियर वेब की आवृत्ति को परिवर्तित करता है, तो यह प्रक्रिया एफ.एम. (Frequency Modulation) कहलाती है।
ब्लूटूथ (Bluetooth)
- ब्लूटूथ एक ऐसी वायरलेस तकनीक है, जिसमें कम दूरी पर स्थित उपकरणों के मध्य आवाज और डाटा दोनों को स्थानांतरित किया जाता है। इंफ्रारेड के द्वारा केवल दो उपकरणों को आपस में जोड़ा जा सकता है, जबकि ब्लूटूथ एक सीमित क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक उस उपकरण से जुड़ने में समर्थ है, जो ब्लूटूथ तकनीक से युक्त है। ब्लूटूथ के माध्यम से मोबाइल फोन, टेलीफोन, लैपटॉप पर्सनल कम्प्यूटर, प्रिंटर, डिजीटल कैमरा, मॉडेम तथा वीडियोगेम आदि उपकरणों को जोड़ा जा सकता है एवं उनके बीच सूचना का आदान-प्रादन किया जा सकता है। ब्लूटूथ तकनीक में उपकरणों को जोड़ने से संबंधित कार्यों पर दिशा का कोई प्रभाव नहीं होता है ।
वाई-फाई (Wi-fi-Wireless Fidelity)
- वाई-फाई तार रहित संचार आधारित एक तकनीक है, जिसके माध्यम से विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे मोबाइल फोन या कम्प्यूटर को वायरलेस नेटवर्क की सीमा के भीतर इंटरनेट से जोड़ा जा सकता है । वाई - फाई एरिया दो प्रकार का होता है - ओपन और क्लोज। ओपन वाई-फाई का इस्तेमाल करने के लिए कोई भी स्वतंत्र है, जबकि क्लोज वाई-फाई को उपयोग में लाने के लिए पासवर्ड | की आवश्यकता होती है। इस तकनीक में सूचना के आदान-प्रदान के लिए रेडियो आवृत्ति तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। जिस क्षेत्र में वाई-फाई एक्सेस किया जाता है, उसे हॉट स्पॉट कहा जाता है। वाई-फाई का नकारात्मक पक्ष यह है कि इसमें कोई भी व्यक्ति इंटरनेट से जुड़ सकता है तथा इसके वायरलेस उपकरण प्रायवेंसी को हैक कर तोड़ सकते हैं।
वाई मैक्स (Wi MAX - Worldwide Interoperability for Microwave Access)
- इस तकनीक में माइक्रोवेव लिंक के द्वारा लम्बी दूरी तक वायरलेस सेवा के माध्यम से संचार स्थापित किया जाता है। इसके द्वारा ब्रॉडबैण्ड में इंटरनेट तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। वाई मैक्स इंटरनेट और सेल्यूलर दोनों नेटवक7 पर काम करता है। वाई- फाई की रेंज जहाँ कुछ मीटर तक होती है, वहीं वाईमैक्स की स्पीड दस किमी तक रहती है। यह वायरलैस कवरेज की क्षमता को द से तीस गुणा तक बढ़ा देता है। जहाँ लैपटॉप के लिए इसकी सीमा 5 से 15 किली होती है, वहीं फिक्स्ड कम्प्यूटर के लिए 50 किमी होती है। इसकी डाउनलोड क्षमता 20 एमबीपीएस है एवं इसमें इंटरनेट पर जीपीआरएस, गेमिंग और डाउनलोड की सुविधा मौजूद है।
डी.टी.एच. (D.T.H. - Direct to Home)
- डीटीएच टेलीविजन प्रसारण की एक तकनीक है, जिसमें उपग्रह तथा टेलीविजन सेट के बीच किसी ट्रांसमीटर की आवश्यकता नहीं रहती। इस व्यवस्था के अंतर्गत संचार उपग्रह पर लगे ku- band के माध्यम से संचार कायम किया जाता है और इसके द्वारा प्रसारित तरंगों की आवृत्ति 11 से 15 गीगाहर्ट्ज के बीच होती है। इस कारण इन तरंगों की भेदन क्षमता अधिक होती है और टेलीविजन सेट पर 35 से 40 सेमी. व्यास वाले छोटे से एण्टिना की मदद से संकेतों को प्राप्त किया जाता है।
- इसकी दूसरी विशेषता यह है कि इस तकनीक में प्रसारण के लिए डिजीटल संकेतों का प्रयोग किया जाता है। इस कारण संचार की प्रक्रिया में मौसम से संबंधित व्यवधान कोई समस्या पैदा नहीं करते। इसके दृश्यों में स्पष्टता होती है तथा ध्वनि स्टीरियोफोनिक होती है। इसकी तीसरी विशेषता यह है कि ku बैण्ड के माध्यम से 10-12 चैनलों का प्रसारण एक साथ हो सकता है। अतः कुछ ku बैण्डों का प्रयोग करने से 100 से अधिक चैनलों का प्रसारण सफलतापूर्वक होने लगता है।
डी.टी.टी. (D.T.T. - Digital Terrestrial Television
- डिजीटल टेरिस्ट्रियल टेलीविजन, डिजीटल तकनीक पर आधारित होता है, जो टेलीविजन चित्र को द्वि-अंकीय संख्याओं की एक श्रृंखला के रूप में कूटबद्ध करता है और उसके बाद इसके सम्पीडन के लिए कम्प्यूटर प्रोसेसिंग का प्रयोग करता है। डिजीटल टेरेस्ट्रियल टेलीविजन रेडियो स्पेक्ट्रम के यूएचएफ (U.H.F.- Utra High Frequecy) भाग में प्रसारित होता है। डीटीटी द्वारा पिक्चर, रिजॉल्यूशन, अन्तर्क्रियात्मक वीडियो और डाटा सर्विस उपलब्ध कराई जाती है, जो कि एनालॉग तकनीक में संभव नहीं है। एनालॉग प्रसारण की तुलना बेहतर रिसेप्शन, बहुल प्रसारण सुविधा, तकनीकों का अभिसरण, चैनल की अत्यधिक क्षमता तथा कार्यक्रम दिशा-निर्देशन जैसी विशेषताएँ इस तकनीक में उपलब्ध हो पाती है।
एच.डी. टीवी (HD TV- High Definition Television)
- एचडी टीवी एक प्रकार का डिजीटल टीवी है, जो उच्च स्तरीय रिजॉल्यूशन उपलब्ध कराता है। इसमें परम्परागत टेलीविजन से पांच गुना अधिक सूचना ग्रहण करने की क्षमता है। वर्तमान एनालटग टेलीविजन चित्र 480 क्षैतिज रेखाओं तक रिजॉल्यूशन उपलब्ध कराता है, जबकि एक एचडी टीवी 1080 क्षैतिज रेखाओं तक रिजॉल्यूशन उपलब्ध कराता है। एनालॉग टेलीविजन में टीवी स्क्रीन की ऊँचाई और चौड़ाई का अनुपात 3 : 4 होता है, जबकि एचडी टीवी में यह अनुपात 9 : 14 होता है। HD TV का सर्वोत्तम उदाहरण फ्लाज्मा टीवी तथा LCD टीवी है। HD TV में सिनेमा हाल व डीवीडी पर प्रयुक्त साउण्ड के समान डॉल्बी डिजीटल साउण्ड होता है।
अन्तक्रियात्मक टेलीविजन (Interactive Television)
- अन्तक्रियात्मक टेलीविजन से अभिप्राय पर्सनल वीडियो रिकार्डर द्वारा टेलीविजन का उपयोग पर्सनल कम्प्यूटर के रूप में करने से है। पर्सनल वीडियो रिकार्डर सेट टॉप बॉक्स के रूप में कार्य करते हुए कम्प्यूटर चिप की मदद से साधारण टेलीविजन को इंटरएक्टिव टेलीविजन में परिवर्तित कर देता है। इस टेलीविजन में यह सुविधा उपलब्ध होती है कि कोई व्यक्ति अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को देखने के साथ-साथ उसे रिकार्ड, रिप्ले व पॉज कर सकता है।
प्लाज्मा टेलीविजन (Plasma Television)
- प्लाज्मा टेलीविजन एक तरह का हाई डेफिनेशनल टेलीविजन होता है, जिसमें पिक्सल का निर्माण अक्रिय गैसों, जैसे- निऑन और जीनॉन के छोटे-छोटे कंटेनर से मिलकर होता है। प्रत्येक पिक्सल को दो विद्युतीय चार्ज प्लेट के मध्य रखा जाता है एवं विद्युत का प्रवाह होने पर यह चमकने लगता है। टेलीविजन में लगा उपकरण विद्युतीय क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जिससे विभिन्न रंगों का मिश्रण बनता है तथा टेलीविजन पर दिखता है। इस टेलीविजन का स्क्रीन प्लेट होता है, जिस पर इमेज और अन्य टेलीविजन की तुलना में बेहतर दिखता है।
एलसीडी (Liquid Crystal Display Television)
- एलसीडी टेलीविजन प्रकाश को उत्सर्जित करने के स्थान पर उन्हें ब्लॉक करने के सिद्धांत पर कार्य करता है । यही कराण है कि इसमें ऊर्जा की खपत प्लाज्मा टीवी की तुलना में कम होती है। इस टेलीविजन में दो ग्लास प्लेटों के मध्य क्रिस्टल पदार्थ मौजूद होते हैं, जब इसमें विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो यह क्रिस्टल क्रमिक रूप से व्यवस्थित हो जाते हैं, जिससे धारा उन्हें पार नहीं कर पाती। इस तरह प्रकाश को ब्लॉक करने के सिद्धांत पर आधारित इस टेलीविजन द्वारा चित्र व सूचना प्राप्त किए जाते हैं।
एल.ई.डी. टेलीविजन (Light Emitting Diode Television)
- एलईडी टीवी एक प्रकार का एलसीडी टीवी है, जिसमें पृष्ठ प्रकाश के लिए LED का प्रयोग किया जाता है। जबकि अन्य टेलीविजन में सीसीएफएल का प्रयोग किया जाता है। इस टेलीविजन में विद्युत की कम खतप होती है। ऊर्जा का प्रत्येक क्षेत्र में बेहतर वितरण होता है, अतिगुणवत्ता युक्त चित्र प्रदर्शित होता है तथा इसकी टीवी स्क्रीन अत्यन्त पतली की जा सकती है।
- संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि LCD टीवी में जब पृष्ठ प्रकाश LED द्वारा हो, तो उसे LED TV कहते हैं। इस टेलीविजन में गैलियम का आर्सेनिक जैसे अर्द्धचालकों का प्रयोग किया जाता है।
इंटरनेट टेलीफोनी (Internet Telephony)
- इंटरनेट प्रणाली द्वारा उपलब्ध टेलीफोन सेवा ही इंटरनेट टेलीफोनी कहलाती है। सामान्य टेलीफोन नेटवर्क स्विचिंग सिस्टम के आधार पर कार्य करता है और स्विचिंग प्रोग्राम से ही नियंत्रित होता है, जबकि इंटरनेट टेलीफोनी में स्विचिंग प्रोग्राम को इंटरनेट के साथ जोड़ दिया जाता है। इंटरनेट टेलीफोनी न सिर्फ संचार व इससे संबंधित अवसंरचना की लागत को कम कर देता है, बल्कि स्पीच डाटा कंप्रेशन तकनीक द्वारा यह डाटा के आकार को भी कम कर देती है। एक ब्राडबैण्ड कनेक्शन पर एक ही समय में एक से ज्यादा | टेलीफोन कॉल को ट्रांसमिट किया जा सकता है, जिससे इंटरनेट टेलीफोनी रूप में एक अतिरिक्त टेलीफोन लाइन मिल जाती है । | नेटवर्क व्यस्तता जैसी समस्याएँ इस नेटवर्क में सामान्यत: नहीं मिलती। साधारण टेलीफोन प्रत्यक्ष रूप से टेलीफोन कंपनी से जुड़े होते हैं, जबकि इंटरनेट टेलीफोन सीधे सर्वर से जुड़े होते हैं, जिससे इसकी कार्यक्षमता अधिक होती है।
थ्री-डी टेलीविजन (3-D Television
- थ्री-डाइमेंशनल टेलीविजन होलोग्राफिक तकनीक पर आधारित टेलीविजन है, जिस पर थ्री-डी तस्वीरें बिना किसी विशेष चश्मे की सहायता से देखी जा सकती हैं। होलोग्राफिक तकनीक में लेजर किरणों के द्वारा थ्री-डी तस्वीरें बिना किसी विशेष चश्मे की सहायता से देखी जा सकती है । होलोग्राफिक तकनीक में लेजर किरणों के द्वारा थ्री-डी प्रभाव उत्पन्न किया जाता है । लेजर किरणों के द्वारा ऐसा कोणीय प्रभाव पैदा किया जाता है, जिससे एक ही तस्वीर को दोनों नेत्रों द्वारा अलग-अलग कोणों से देखा जा सकता है और दर्शक को थ्री-डी तस्वीरें दिखाई देती हैं। इस तकनीक को कार्यरूप देने के लिए प्लाज्मा टीवी की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह टेलीविजन थ्री-डी प्रभाव उत्पन्न करने के लिए अलग-अलग प्रकाश स्तर पैदा कर सकने में सक्षम है।
वीडियो ऑन डिमाण्ड ( Vido on Demand )
- वीडियो ऑन डिमाण्ड अथवा ऑडियो एण्ड वीडियो ऑन डिमाण्ड एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें प्रयोक्ता अपनी सेवा प्रदाता | कंपनी से अपनी इच्छानुसार वीडियो या ऑडियो से संबंधित कार्यक्रमों (चलचित्र, गाना आदि) को मंगवा कर देख या सुन सकते हैं। | टेलीविजन या पर्सनल कम्प्यूटर पर वीडियो ऑन डिमाण्ड को मंगवाने के लिए अधिकांश इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीविजन का प्रयोग | किया जाता है। इंटरनेट टेलीविजन, वीडियो ऑन डिमाण्ड का ही एक प्रचलित रूप है। कुछ विमानन कंपनियाँ अपने यात्री विमान में यात्रियों को वीडियो ऑन डिमाण्ड की सेवाएँ उपलब्ध करा रही हैं, जिसमें यात्रियों को यह सुविधा देना होती है कि वे यात्रा के दौरान अपने मनपसंद ऑडियो या वीडियो कार्यक्रमों का लुत्फ उठा सकें।
TDMA (Time Diyision Multiple Access)
- टीडीएमए के अंतर्गत आवृत्ति स्पेक्ट्रम के साथ-साथ समय को भी विभिन्न चैनलों में विभाजित कर दिया जाता है। टीडीएमए का मुख्य लाभ यह है कि डिजीटल कंप्रेशन के माध्यम से 10 किलोबाइट प्रति (10 किलो हर्ट्ज) सेकेण्ड में पहुँच जाती है, जिससे सेल्युलर सिस्टम की क्षमता बढ़ जाती है। इसका नुकसान यह है कि चाहे वॉयस क्वालिटी बेहतर हो या खराब और चाहे नेटवर्क पर ट्रेफिक हो, फिर भी यह अपने चैनल स्लॉट को उसी दर से बाँटता रहता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह डिजीटल डाटा के अनुसार परिवर्तन नहीं करता है।
ई-कचरा (E-Waste)
- इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के खराब होने के पश्चात् कचरे के रूप में बचे हुए अपशिष्ट को ही ई-कचरा कहा जाता है। ई-कचरा सम्पूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। ई-कचरे की छँटाई और उसे पुनर्चक्रित करने में लगे असंख्य मजदूर : विषैले रसायनों व रेडियोधर्मी विकिरण से प्रभावित हो रहे हैं। विकासशील देशों के साथ-साथ विकसित देशों में भी इसके कारण भूगर्भीय जल विषाक्त हो रहा है। कम्प्यूटर बैटरी में उपयोग होने वाले कैडमियम से कैंसर होने के साथ-साथ जननांगों एवं भ्रूण को भी नुकसान पहुँचने की संभावना बनी रहती है। विकसित देशों द्वारा अर्द्धविकसित व विकासशील देशों में ई-कचरे की भारी डंपिंग किए जाने की वजह से इन विकासशील व पिछड़े देशों में और भी भयावह समस्या है।
- कुछ गैर सरकारी संगठनों के अनुसार अमेरिका द्वारा अधिकांश ई-कचरे को गुप्त रूप से भारत, चीन व पाकिस्तान जैसे देशों में भेज दिया जाता है। इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि इन देशों में कचरा निस्तारण काफी सस्ता है तथा पर्यावरण कानून अत्यन्त ढीले हैं। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैण्ड व ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी इस तरह की समस्याएँ उत्पन्न कर रहे हैं। विभिन्न पर्यावरणीय संगठनों ने अमेरिका से बेसल समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग की है, जिसके तहत विकासशील देशों को हानिकारक ई-कचरों के निर्यात पर विश्वस्तरीय प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
VSAT (Very Small Aperture Terminals)
- संचार उपग्रहों की उपयोगिता को आसान तथा कम खर्चीला बनाने हेतु छोटे आकार के एंटीना और कम क्षमता वाले ट्रांसमीटर रिसीवर का विकास किया गया, जिसे वीसैट नाम दिया गया है। वस्तुतः यह पूर्ण रूप से निजी स्वामित्व वाला उपग्रह आधारित संचार तंत्र है। इसका उपयोग निजी और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को प्रामाणिक एवं विश्वसनीय संचार व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए किया गया है.
- दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वीसैट वस्तुत: इस तरह की पृथ्वी केन्द्र हैं, जिनमें 1 से 2 मीटर तक के व्यास वाला एंटीना लगाना होता है, जो टर्मिनल्स को बहुत ही आसानी से बड़े नेटवर्क से जोड़ देता है। वीसैट का पृथ्वी केन्द्र भारत में नई दिल्ली स्थित मास्टर अर्थ स्टेशन से जुड़ा होता है। व्यावसायिक फर्मे वीसैट को दूरसंचार विभाग के स्थान पर पूर्ण विश्वस्त आँकड़े प्राप्त करने के लिए स्वीकार कर रही हैं।
- भारत में वीसैट संचार सेवा की शुरुआत वर्ष 1998 में की गई। इसके अंतर्गत 650 से भी ज्यादा वीसैट का प्रयोग करके इस संचार सेवा से भारत के प्रत्येक जिला मुख्यालय को जोड़ दिया गया है, भारत में वीसैट की दूसरी संचार सेवा का आरंभ वर्ष 1991 में आर.ए.बी.एम.एन. (Remote Area Buusiness Message Network) के रूप में किया गया, जिसकी क्षमता 1000 वीसैट के संचालन की है। इसके साथ-साथ वीसैट का उपयोग विभिन्न प्रकार की आधुनिक दूरसंचार एवं जनसंचार सेवाओं के लिए भी किया जा रहा है और ई-मेल, वॉयस मेल, अंतर्राष्ट्रीय आँकड़ा, नेटवर्क, फैक्स एवं हाईब्रिड मेल सर्विस में तो इसका उपयोग पहले से ही लाभप्रद साबित हो रहा है।