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प्रागैतिहासिक काल

  • प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Era):  प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसकी जानकारी प्रातात्विक स्रोतों से प्राप्त होती है। इस समय के इतिहास की जानकारी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुई है। प्रागैतिहासिक काल को ‘प्रस्तर युग’ भी कहते हैं।
  • प्रागैतिहासिक काल का अर्थ: प्रागैतिहासिक काल का अर्थ होता है ‘इतिहास से पूर्व का युग’।
  • प्रागैतिहासिक काल का समय: प्रागैतिहासिक काल का समय 5,00,000 ई.पू. से 2,500 ई.पू. तक माना जाता है।

प्रागैतिहासिक काल या प्रागैतिहासिक कालखंड को तीन भागों में विभाजित किया गया है —

  • पुरापाषाण काल (Palaeolithic Age) – 5,00,000 ई.पू. से 50,000 ई.पू. तक
    आखेटक एवं खाद्य संग्राहक
  • मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age) – 10,000 ई.पू. से 7000 ई.पू. तक
    आखेटक एवं पशु पालक
  • नवपाषाण काल (Neolithic Age) – 9,000 ई.पू. (विश्व) व 7,000 ई.पू. (भारत) से 2,500 ई.पू. तक
    खाद्य उत्पादक, स्थिर एवं समुदाय में रहना

1. पुरापाषाण काल


पुरापाषाण काल को तीन उपभागों में बाँटा जा सकता है —

निम्न पुरापाषाण काल :

  • निम्न पुरापाषाण काल 5,00,000 ई.पू. से 50,000 ई.पू. तक माना जाता है।
  • इस समय तक मानव आग का अविष्कार कर चूका था।
  • मानव समूह बनाकर शिकार कर भोजन का संग्रह करता था।

प्रमुख स्थल : कश्मीर, राजस्थान का थार, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में स्थित बेलन घाटी, भीमबेटका की गुफाएँ, नर्मदा घाटी (मध्य प्रदेश), सोहन नदी घाटी, कर्णाटक एवं आंध्रप्रदेश आदि।

मुख्य औजार : क्वार्ट्जाइट पत्थर के बने कुल्हाड़ी, हस्त कुल्हाड़ी या हस्त कुठार (hand-axe), खण्डक (गँड़ासा) (Chopper)।

मध्य पुरापाषाण काल :

  • मध्य पुरापाषाण काल 50,000 ई.पू. से 40,000 ई.पू. तक माना जाता है।
  • इस काल को फलक संस्कृति (Flake Culture) भी कहते हैं।
  • आग का प्रयोग व्यापक रूप में किया जाने लगा था।
  • इस काल में पत्थर के गोले से वस्तुओं का निर्माण होने लगा था।

प्रमुख स्थल: मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी, राजस्थान का डीडवाना, महाराष्ट्र का नेवासा, उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर और पश्चिम बंगाल का बाकुण्डा एवं पुरलिया।

मुख्य औजार: पत्थर की पपड़ियों के बने फलक, छेदनी और खुरचनी आदि इस काल के प्रमुख हथियार थे।हथियारों में क्वार्ट्जाइट के आलावा जैस्पर एवं चर्ट आदि पत्थरों का प्रयोग होने लगा था।

उच्च पुरापाषाण काल:

  • उच्च पुरापाषाण काल 40,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू. तक माना जाता है।
  • इस काल में होमो सेपियन्स (Homo Sapiens) अर्थात आधुनिक मानव का उदय हुआ।
  • इस काल का मानव शैलाश्रयों (Rock shelter) में रहने लगा था।
  • मानव चित्रकारी और नक्काशी करना जान चूका था।
  • इस काल के चित्रकारी के साक्ष्य मध्य प्रदेश स्थित ‘भीमबेटका की गुफाओं’ से प्राप्त हुये हैं।

प्रमुख स्थल: उत्तर प्रदेश स्थित बेलन घाटी, महाराष्ट्र स्थित बीजापुर एवं इनामगांव, केरल स्थित चित्तूर, झारखण्ड स्थिर छोटानागपुर का पठार आदि।

प्रमुख औजार: हड्डियों से बने औजार, फलक, तक्षणी एवं शल्क आदि।

2. मध्य पाषाण काल


  • मध्य पाषाण काल 10,000 ई.पू. से 7000 ई.पू. तक माना जाता है।
  • इस काल के मानव मछली पकड़कर, शिकार करके और खाद्य सामग्री एकत्रित कर जीवन यापन करते थे।
  • मानव द्वारा पशुपालन करने का प्रारम्भिक साक्ष्य इसी काल के मानवों का प्राप्त हुआ है।
  • मानव द्वारा पशुपालन के साक्ष्य राजस्थान के बागोर और मध्य प्रदेश के आदमगढ़ से प्राप्त हुए हैं।
  • इस काल के मानव एक ही स्थान पर स्थायी निवास करते थे इसका प्रारंभिक साक्ष्य सराय नाहर राय (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) एवं महदहा से स्तम्भगर्त के रूप में मिलता है।
  • इस काल के मानवों द्वारा एक दूसरे पर आक्रमण और युद्ध करने के प्रारंभिक साक्ष्य भी सराय नाहर राय से प्राप्त हुए हैं।
  • इतिहासकारों का मत है कि ‘मातृदेवी की उपासना’ और ‘शवाधान की पद्धति’ संभवतः इसी काल में प्रारम्भ हुई होगी।

प्रमुख स्थल : बिहार का ‘पायसरा – मुंगेर’, राजस्थान का बागोर, गुजरात का लंघनाज, उत्तर प्रदेश स्थित सराय नाहर राय (प्रतापगढ़) और महागढ, मध्य प्रदेश स्थित आदमगढ़ (होशंगाबाद), भीमबेटका (भोपाल) और बोधोर आदि।

प्रमुख औजार :

  • सर्वप्रथम तीर कमान का अविष्कार इसी काल में हुआ था।
  • इस काल के हथियार भी पत्थर और हड्डियों के ही बने होते थे लेकिन ये पुरापाषाणकाल की तुलना में बहुत छोटे होते थे, इसलिए इन्हें माइक्रोलिथ अर्थात लघुपाषण कहा जाता है।
  • हथियारों में लकड़ियों और हड्डियों के हत्थे लगे हंसिए एवं आरी आदि हथियार मिलते हैं।
  • नुकीले क्रोड, त्रिकोण, ब्लेड और नवचन्द्राकर आदि आकार के प्रमुख हथियार थे।

3. नवपाषाण काल

  • नवपाषाण काल विश्व के लिए 9,000 ई.पू. से और भारत के लिए 7,000 ई.पू. से 2,500 ई.पू. तक माना जाता है।
  • कृषि कार्य का प्रारम्भ, पशु पालन, पत्थरों को घिसकर औजार और हथियार बनाना आदि इस काल की विशेषता थी।
  • पत्थर की कुल्हाड़ियों का प्रयोग किया जाता था।
  • इस काल में मिट्टी के बने बर्तनों (मृदभांडों) का प्रयोग और उनमे विविधता मिलती है।
  • ग्राम समुदाय का प्रारम्भ और स्थिर ग्राम्य जीवन का विकास भी संभवतः इसी काल में हुआ था, अर्थात मानव घर बना कर एक ही स्थान पर रहता था।
  • इस काल के मानव गोलाकार और आयतकार घरों में रहा करते थे जिसे मिट्टी और सरकंडों से बनाया जाता था।
  • बलूचिस्तान के मेहरगढ़ से इस काल की कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। मेहरगढ़ से जौ, गेहूँ, खजूर और कपास की फसलों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ के लोग मिट्टी के कच्ची ईटों से बने आयताकार घरों में रहा करते थे।
  • मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त अनाज जौ था।
  • उत्तर प्रदेश के कोलडिहवा (इलाहबाद) से 6,000 ई.पू. के चावल उत्पादन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • कश्मीर के बुर्जहोम से गर्तावास (गड्ढा रूपी घर), हड्डी के औजार आदि मिले हैं। साथ ही कब्रों में मालिक के शवों के साथ उनके पालतू कुत्तों को भी दफनाया गया है।
  • सर्वप्रथम इसी काल में कुत्तों को पालतू बनाया गया।
  • बिहार के चिरांद (सारण) से हड्डी के बने औजार और मुख्य रूप से हिरन के सींगों से बने उपकरण मिले हैं।
  • कुंभकारी सर्वप्रथम इसी काल में मिलती है, बर्तनों में पॉलिशदार काला मृदभांड, धूसर मृदभांड और चटाई की छाप वाले मृदभांड प्रमुख हैं।
  • कर्णाटक के पिक्लीहल से राख के ढेर तथा निवास स्थान मिले हैं। यहाँ के निवासी पशु पाला करते थे।
    प्रमुख स्थल : सरुतरु और मारकडोला (असम), उतनूर (आन्ध्र प्रदेश), चिरांद, सेनुआर (बिहार), बुर्जहोम, गुफ्कराल (कश्मीर), कोलडिहवा, महागढ (उत्तर  प्रदेश), पैयमपल्ली (तमिलनाडु), ब्रह्मगिरि, कोडक्कल, पिक्लीहल, हल्लुर, मस्की, संगेनकल्लु (कर्नाटक), मेहरगढ़ (पाकिस्तान)
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