भारत में मानसून का सर्वाधिक भाग लगभग 90% दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त होता है जोकि भारत में जून माह में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करता है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की पूरी क्रियाविधि को समझने के लिए मार्च से जून तक के मौसम को समझना आवश्यक है। 21 मार्च को सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत् चमकता है। उसके बाद धीरे-धीरे उत्तरायण होने लगता है तथा 21 जून तक कर्क रेखा के ऊपर पहुंच जाता है। इसके साथ साथ ITCZ (Inter Tropical Conversion Zone, अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र) भी उत्तर की तरफ खिसकने लगता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में गर्मी बढ़ने लगती है। जैसे जैसे ITCZ उत्तर की ओर खिसकता है, उत्तरी भारत में प्रवाहित होने वाली पछुआ जेट धारा की दक्षिणी शाखा कमजोर पड़ने लगती है तथा अब वो हिमालय के उत्तर में चीन तथा तिब्बत से होकर प्रवाहित होने लगती है।
22 मार्च के बाद सूर्य के उत्तरायण होने के साथ साथ पश्चिमोत्तर भारत गरम होने लगता है। जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में मार्च एवं अप्रैल में पश्चिमोत्तर भारत में एक कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न दबाव के क्षेत्र को भरने के लिए उत्तर भारत में हवाएं चल पड़ती है क्योंकि ये निम्न दबाव का क्षेत्र अभी इतना शक्तिशाली नहीं है कि ये हिंद महासागर की आर्द्र हवाओं को आकर्षित कर सके अतः ये हवाए स्थलखंडों से आती जिनमें आर्द्रता की मात्रा काफी कम होती है जोकि वर्षा करने में असमर्थ होती है। इन हवाओं से धूल भरी आंधियाँ चलती हैं।
मई माह के अंत में 20-25 मई तक जब ITCZ कर्क रेखा के आस पास पहुँचने लगता है तब पश्चिम बंगाल मौसमी हलचल का केन्द्र बन जाता है। इस समय में या तो यहां तेज धूल भरी आंधियां चलती है या यदि हवाओं में आर्द्रता की मात्रा अधिक होती है तो तेज धनझावटी वर्षा होती है। इस वर्षा को काल बैसाखी के नाम से भी जाना जाता है।
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