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Geography (भूगोल): November 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

ग्रहण के प्रकार

चर्चा में क्यों?
हाल ही में 8 नवंबर, 2022 को पूर्ण चंद्र ग्रहण (TLE) देखा गया।

  • इसके पहले भारत में अक्तूबर 2022 में आँशिक सूर्य ग्रहण देखा गया था।

प्रमुख बिंदु

  • सुपरमून:
    • यह उस स्थिति को दर्शाता है जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सर्वाधिक निकट और साथ ही पूर्ण आकार में होता है।
    • चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा किये जाने के दौरान एक समय दोनों के मध्य सबसे कम दूरी रह जाती है जिसे उपभू (Perigee) कहा जाता है और जब दोनों के मध्य सबसे अधिक दूरी हो जाती है तो इसे अपभू (Apogee) कहा जाता है।
    • चूँकि पूर्ण चंद्रमा पृथ्वी से कम-से-कम दूरी के बिंदु पर दिखाई देता है और इस समय यह न केवल अधिक चमकीला दिखाई देता है, बल्कि सामान्य पूर्णिमा के चंद्रमा से भी बड़ा होता है।
    • नासा के अनुसार, सुपरमून शब्द वर्ष 1979 में ज्योतिषी रिचर्ड नोल द्वारा दिया गया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार पूर्ण सुपरमून और एक पंक्ति में दो से चार नए सुपरमून हो सकते हैं।

चंद्र ग्रहण

  • परिचय:
    • चंद्र ग्रहण तब होता है,जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इस दौरान सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे की बिल्कुल सीध में होते हैं तथा यह घटना केवल पूर्णिमा के दिन ही घटित होती है।
    • सर्वप्रथम चंद्रमा पेनुम्ब्रा (Penumbra) की तरफ चला जाता है-पृथ्वी की छाया का वह हिस्सा जहाँ सूर्य से आने वाला संपूर्ण प्रकाश अवरुद्ध नहीं होता है। चंद्रमा के भू-भाग का वह हिस्सा सामान्य पूर्णिमा की तुलना में धुँधला दिखाई देगा।
    • उसके बाद चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में चला जाता है, जहाँ सूर्य से आने वाला प्रकाश पूरी तरह से पृथ्वी के कारण अवरुद्ध हो जाता है। इसका मतलब है कि पृथ्वी के वायुमंडल में चंद्रमा की डिस्क द्वारा परावर्तित एकमात्र प्रकाश पहले ही वापस ले लिया गया है या परिवर्तित किया जा चुका है।
  • पूर्ण चंद्र ग्रहण:
    • पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच स्थित होती है और पृथ्वी की छाया चाँद पर पड़ती है।
    • इस दौरान चंद्रमा की पूरी डिस्क पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में होती है, इसलिये चंद्रमा लाल (ब्लड मून) दिखाई देता है।
    • रेलिघ प्रकीर्णन (Rayleigh Scattering) नामक घटना के कारण चंद्रमा लाल रंग का हो जाता है।
    • रेलिघ प्रकीर्णन का तात्पर्य तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन के बिना किसी माध्यम में कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से है। यही कारण है कि आकाश नीला दिखाई देता है।
    • ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल हो जाता है क्योंकि इस तक पहुँचने वाला सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुज़रता है। धूल या बादलों के कारण सूर्य की रोशनी में प्रकीर्णन के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है।
    • NASA (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के अनुसार, पूर्ण चंद्र ग्रहण औसतन हर डेढ़ साल में एक बार होता है।
  • आंशिक चंद्र ग्रहण:
    • जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है एवं वह सूर्य से चंद्रमा पर आने वाले प्रत्यक्ष प्रकाश में बाधा डालती है।
    • यह छाया बढ़ती जाती है और फिर चंद्रमा को पूरी तरह से ढके बिना कम हो जाती है।
  • पेनुम्ब्रल चंद्र ग्रहण (Penumbral eclipse):
    • इसमें चंद्रमा, पृथ्वी के पेनुम्ब्रा या इसकी छाया के बाहरी भाग से होकर गुज़रता है।
    • इसमें चंद्रमा इतना धुँधला हो जाता है कि इसे देख पाना मुश्किल हो सकता है।

दुर्लभ मृदा धातु

चर्चा में क्यों?
भारत की चीन पर आयात संबंधी बढ़ती निर्भरता के चलते भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने सरकार से इस क्षेत्र में निजी खनन को प्रोत्साहित करने और आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने का आग्रह किया है।
भारत के पास दुनिया के दुर्लभ खनिज़ भंडार का 6% है, यद्यपि यह वैश्विक उत्पादन का केवल 1% उत्पादन करता है, और चीन से ऐसे खनिजों की अपनी अधिकांश आवश्यकताओं को पूरा करता है।

  • उदाहरण के लिये, 2018-19 में, भारत ने दुर्लभ मृदा धातु आयात का 92% और मात्रा के आधार पर 97% चीन से प्राप्त किया गया था।
  • CII के सुझाव:
    • CII ने सुझाव दिया कि 'इंडिया रेयर अर्थ्स मिशन' को डीप ओशन मिशन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की तरह पेशेवरों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।
    • उद्योग समूह ने चीन की 'मेड इन चाइना 2025' पहल का हवाला देते हुए दुर्लभ पृथ्वी खनिजों को 'मेक इन इंडिया' अभियान का हिस्सा बनाने का भी विचार रखा है, जो नई सामग्रियों पर केंद्रित है, जिसमें स्थायी मैग्नेट शामिल हैं जो दुर्लभ मृदा खनिजों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
  • दुर्लभ मृदा धातु:
    • यह 17 धातु तत्वों का एक समूह हैं। इनमें स्कैंडियम और यट्रियम के अलावा आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड्स शामिल हैं जो लैंथेनाइड्स के समान भौतिक और रासायनिक गुणयुक्त हैं
    • 17 दुर्लभ मृदा धातुओं में सीरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), एर्बियम (Er), यूरोपियम (Eu), गैडोलिनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडाइमियम (Yb) और इट्रियम (Y) शामिल हैं।
    • इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, संदीप्ति व विद्युत रासायनिक गुण विद्यमान होते हैं और इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
    • यहांँ तक कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी REE की बहुत आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था हेतु हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग एवं ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों आदि में।
    • इन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले इन्हें इनके ऑक्साइड रूपों से निकालना तकनीकी रूप से मुश्किल था।
    • यह कई खनिजों में विद्यमान होते हैं लेकिन आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृत किया जाता है।

चीन का एकाधिकार

  • चीन ने समय के साथ दुर्लभ मृदा धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% दुर्लभ मृदा धातुओं का उत्पादन किया था।
  • वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष मात्रा का उत्पादन अन्य देशों द्वारा किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) देश शामिल हैं।
  • वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप की रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी तो एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई।
  • फिर भी संसाधित दुर्लभ मृदा धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।

दुर्लभ मृदा धातुओं के लिये भारत की वर्तमान नीति

  • भारत में अन्वेषण का कार्य खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है। खनन और प्रसंस्करण बीते समय में कुछ छोटी निजी कम्पनियों द्वारा किया गया है, लेकिन वर्तमान में यह इंडियन रेअर अर्थ्स लिमिटेड (Indian Rare Earths Limited- IREL) के अंतर्गत है 
  • भारत ने IREL जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिजों पर एकाधिकार प्रदान किया है जिसमें शामिल REE हैं: तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाज़ाइट।
  • इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) दुर्लभ मृदा ऑक्साइड (कम लागत, कम-प्रतिफल वाली अपस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का उत्पादन करती है, इन्हें उन विदेशी फर्मों को बेचती है, जो धातुओं को निकालते हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत, उच्च-प्रतिफल वाली डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का निर्माण करते हैं।
  • IREL का फोकस मोनाज़ाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।

संबंधित पहल

  • वैश्विक स्तर पर:
    • बहुपक्षीय खनिज सुरक्षा साझेदारी (Multilateral Minerals Security Partnership- MSP) की घोषणा जून 2022 में की गई थी, जिसका लक्ष्य जलवायु उद्देश्यों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करने हेतु  देशों को एक साथ लाना था।
    • इस साझेदारी में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया गणराज्य, जापान और विभिन्न यूरोपीय देश शामिल हैं।
    • भारत साझेदारी में शामिल नहीं है।
  • भारत द्वारा:
    • खान मंत्रालय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) (Mines and Minerals ,Development and Regulation- MDMR) अधिनियम, 1957 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2021 के माध्यम से खनिज उत्पादन को बढ़ावा देने, देश में व्यापार करने में आसानी में सुधार लाने और सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में खनिज उत्पादन का योगदान बढाने के लिये संशोधन किया है।
    • संशोधन अधिनियम में प्रावधान है कि किसी भी खदान को विशेष उपयोग के लिये आरक्षित नहीं किया जाएगा।

आगे की राह

  • भारत को अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से सबक लेना चाहिये कि वे अपनी खनिज ज़रूरतों को कैसे सुरक्षित करने की योजना बना रहे हैं और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुनिश्चित करने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं या इस तरह के संवादों को बढ़ावा देने के लिये क्वाड और बिम्सटेक जैसी मौजूदा साझेदारी का उपयोग कर रहे हैं।
  • हरित प्रौद्योगिकियों के निर्माण की लंबवत एकीकृत आपूर्ति शृंखला कैसे बनाई जाए, इस पर रणनीति बनाने के लिये सरकार शीर्ष-स्तरीय निर्णय लेने की भी आवश्यकता है अन्यथा हम अपने जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों से चूक सकते हैं।
  • भारत को एक नया दुर्लभ मृदा विभाग (DRE) बनाने की ज़रूरत है जो इस क्षेत्र में व्यवसायों के लिये एक नियामक और सहायक की भूमिका निभाए।

भूकंप

चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेपाल में 6.6 तीव्रता का भूकंप आया,जिसमें कुछ लोगों की मौत हो गई और कई घर नष्ट हो गए थे, भारत में भी इसके शक्तिशाली झटके महसूस किये गए।

इन झटकों का कारण क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र भूगर्भीय सर्वेक्षण (USGS) के अनुसार, इन झटकों का प्रमुख कारण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के महाद्वीपीय टकराव है जो हिमालय में भूकंप के लिये प्रमुख कारक है।
  • ये प्लेटें प्रतिवर्ष 40-50 मिलीमीटर की सापेक्ष दर से करीब आती जा रही हैं।
  • यूरेशिया के नीचे भारत के उत्तर की ओर धकेलने/बढ़ने से कई भूकंप उत्पन्न होते हैं, फलस्वरूप यह इस क्षेत्र को पृथ्वी पर भूकंपीय रूप से सबसे अधिक खतरनाक क्षेत्रों में से एक बनाता है।
  • हिमालय और इसके आसपास के क्षेत्रों में कुछ सबसे खतरनाक भूकंप देखे गए हैं जैसे कि वर्ष 1934 में 8.1 तीव्रता वाला, कांगड़ा में वर्ष 1905 में 7.5 की तीव्रता का और कश्मीर में वर्ष 2005 में 6 तीव्रता का भूकंप।

भूकंप

  • परिचय:
    • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
    • भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें ‘सिस्मोग्राफ’ (Seismographs) से मापा जाता है।
    • पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर (Hypocenter) कहलाता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुँचती है अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
    • भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।
    • भूकंप की घटनाओं को या तो कंपन की तीव्रता या तीव्रता के अनुसार मापा जाता है। परिमाण पैमाने को रिक्टर पैमाने के रूप में जाना जाता है। परिमाण भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा से संबंधित है। परिमाण को निरपेक्ष संख्या, 0-10 में व्यक्त किया जाता है।
    • तीव्रता के पैमाने का नाम इटली के भूकंपविज्ञानी मर्केली के नाम पर रखा गया है। तीव्रता का पैमाना घटना के कारण होने वाली दृश्य क्षति को ध्यान में रखता है। तीव्रता पैमाने की सीमा 1-12 है।
  • भूकंप का वितरण:
    • परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी: विश्व की सबसे बड़ी भूकंप पेटी, परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी, प्रशांत महासागर के किनारे पाई जाती है, जहाँ हमारे ग्रह के सबसे बड़े भूकंपों के लगभग 81% आते हैं। इसने "रिंग ऑफ फायर" उपनाम अर्जित किया है।
    • यह पेटी विवर्तनिक प्लेटों की सीमाओं में मौजूद है, जहाँ अधिकतर समुद्री क्रस्ट की प्लेटें दूसरी प्लेट के नीचे जा रही हैं। इसका कारण इन ‘सबडक्शन ज़ोन’ में भूकंप, प्लेटों के बीच फिसलन और प्लेटों का भीतर से टूटना है।
    • मध्य महाद्वीपीय बेल्ट: अल्पाइन-हिमालयी बेल्ट (मध्य-महाद्वीपीय बेल्ट) यूरोप से सुमात्रा तक हिमालय, भूमध्यसागरीय और अटलांटिक में फैली हुई है।
    • इस बेल्ट में दुनिया के सबसे बड़े भूकंपों का लगभग 17% भूकंप आते है, जिसमें कुछ सबसे विनाशकारी भी शामिल हैं।
    • मध्य अटलांटिक कटक: तीसरा प्रमुख बेल्ट जलमग्न मध्य-अटलांटिक रिज में है। रिज वह क्षेत्र होता है, जहाँ दो टेक्टोनिक प्लेट अलग-अलग विस्तृत होती हैं।
    • मध्य अटलांटिक रिज का अधिकांश भाग गहरे पानी के भीतर है और मानव हस्तक्षेप से बहुत दूर है।

भारत में भूकंप जोखिम मानचित्रण

  • तकनीकी रूप से सक्रिय वलित हिमालय पर्वत की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक झटकों के आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों (II, III, IV और V) में विभाजित किया गया है।
  • पहले भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की गंभीरता के संबंध में पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) ने पहले दो क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया है।
  • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे और कोड को प्रकाशित करने हेतु एक आधिकारिक एजेंसी है।

Geography (भूगोल): November 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • भूकंपीय ज़ोन II:
    • मामूली क्षति वाला भूकंपीय ज़ोन, जहाँ तीव्रता MM (संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना) के पैमाने पर V से VI तक होती है।
  • भूकंपीय ज़ोन III:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन IV:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन V:
    • यह क्षेत्र फाॅल्ट प्रणालियों की उपस्थिति के कारण भूकंपीय रूप से सर्वाधिक सक्रिय होता है।
    • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
    • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

हिमालयी क्षेत्र में पूर्व चेतावनी प्रणाली

चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) ने अचानक आने वाली बाढ़, चट्टानों के स्खलन, स्खलन, ग्लेशियर झील के फटने और हिमस्खलन के खिलाफ हिमालयी राज्यों में पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने के लिये क्षेत्रीय अध्ययन शुरू किया है।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली क्या है?

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली खतरे की निगरानी, पूर्वानुमान और भविष्यवाणी, आपदा जोखिम मूल्यांकन, संचार और तैयारी गतिविधियों, प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं की एक एकीकृत प्रणाली है जो व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों, व्यवसायों तथा अन्य लोगों को खतरनाक घटनाओं से पहले आपदा जोखिमों को कम करने के लिये समय पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है।
  • यह तूफान, सुनामी, सूखा और हीटवेव सहित आसन्न खतरों से पहले लोगों एवं संपत्ति के नुकसान को कम करने में मदद करती है।
  • बहु-खतरा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली कई खतरों को संबोधित करती है जो अकेले या एक साथ हो सकटे हैं।
  • बहु-खतरे वाली पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपदा जोखिम जानकारी की उपलब्धता बढ़ाना आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-2030 के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क द्वारा निर्धारित सात वैश्विक लक्ष्यों में से एक है।

आपदा प्रबंधन हेतु भारत के प्रयास

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना:
    • भारत ने सभी प्रकार की आपदाओं के न्यूनीकरण के संदर्भ में तेज़ी से कार्य किया है तथा आपदा प्रतिक्रिया के लिये समर्पित विश्व के सबसे बड़े बल ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ (NDRF) की स्थापना के साथ सभी प्रकार की आपदाओं की स्थिति में तेज़ी से प्रतिक्रिया की है।
  • NDMA की स्थापना:
    • भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 द्वारा NDMA की स्थापना और राज्य एवं ज़िला स्तरों पर संस्थागत तंत्र हेतु सक्षम वातावरण का निर्माण अनिवार्य है।
    • यह आपदा प्रबंधन पर नीतियाँ निर्धारित करता है।
  • अन्य देशों को आपदा राहत प्रदान करने में भारत की भूमिका:
    • भारत की विदेशी मानवीय सहायता में इसकी सैन्य शक्ति को भी तेज़ी से शामिल किया गया है जिसके तहत आपदा के समय देशों को राहत प्रदान करने के लिये नौसेना के जहाज़ों या विमानों को तैनात किया जाता है।
    • "नेबरहुड फर्स्ट" की इसकी कूटनीति के अनुरूप, राहत प्राप्तकर्त्ता देश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं।
  • क्षेत्रीय आपदा तैयारियों में योगदान:
    • बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC/बिम्सटेक) के संदर्भ में भारत ने आपदा प्रबंधन अभ्यासों की मेज़बानी की है जो NDRF को साझेदार राज्यों के समकक्षों को विभिन्न आपदाओं का सामना करने के लिये विकसित तकनीकों का प्रदर्शन करने की अनुमति देता है।
    • NDRF और भारतीय सशस्त्र बलों के अभ्यासों ने भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के संपर्क में ला दिया है।
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदा का प्रबंधन:
    • भारत ने DRR, सतत् विकास लक्ष्यों (2015-2030) और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क को अपनाया है, जो सभी DRR, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA) एवं सतत् विकास के बीच संबंधों को स्पष्ट करते हैं।
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